Tuesday, February 27, 2018

आपकी अस्मिता आपके हाथ

दिनाँक - फ़रवरी २६, २०१८ 
विषय - आपकी अस्मिता आपके हाथ 
प्रिय मूलनिवासी बहुजन साथियों,
सोचियें,
क्या ब्रहम्ण-सवर्ण व अन्य समाज के लोग आपके अम्बेडकर महोत्सव_14 अप्रैल व दीक्षा-दीप महोत्सव_14 अक्टूबर आदि पर आपको शुभकामनाएं देता है? नही!
फिर आप क्यों और किसको हैप्पी होली, हैप्पी दीवाली आदि कहते फिरते रहते हो!
क्यों आप आपना अर्थ व समय दूसरों के पर्वों व संस्कृति के लिए नष्ट करते रहते हो!
आपको मालूम होना चाहिए कि आप हैप्पी होली और हैप्पी दीपावली कह कर के आप अपने शोषक की शोषणवादी संस्कृति को और मजबूत कर रहे हैं!
बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर ने भी कहा है कि ब्राह्मणों का हर त्यौहार मूलनिवासी बहुजन समाज के पुरखों की हत्या का जश्न मात्र है!
इसी तरह होली का त्यौहार भी मूलनिवासी बहुजन समाज के सम्राट हिरण्यकश्यपु की हत्या व उनके घर-परिवार व समाज की मान मर्यादा के साथ किए गए जघन्यतम क्रूरता का ब्राह्मणी जश्न है! क्या आप इतने नालायक हो गए हैं कि अपने ही पुरखों की हत्या व उनके साथ हुए जघन्यतम क्रूरता का जश्न मनाएंगे?
यदि हम इतिहास पर नजर डालें तो हम पाते हैं कि ब्राह्मणी व्यवस्था में शुरू से लेकर आज तक महिला को गुलामों की स्थिति में ही रखा गया है! ऐसे में कोई महिला इतना बड़ा और जगन्नातम अपराध कैसे कर सकती है कि उसको हर साल त्यौहारों के स्वरूप में जिंदा जलाया जाए! यह सब सिर्फ और सिर्फ इसलिए किया जाता है ताकि समाज में महिला वह सकल मूलनिवासी बहुजन समाज की स्थिति हमेशा दूसरे दर्जे की बनी रहे! क्या आप इस समाज में दूसरे दर्जे का नागरिक बन कर ही जीना पसंद करोगे? यदि नहीं तो फिर क्यों आप लोग ऐसे त्यौहारों को अपने जहन में, अपनी संस्कृति में और अपने जीवन जीने की शैली में शामिल करते हो जो आपको आपके द्वारा ही आपको दूसरे दर्जे का नागरिक स्थापित करती है!
हमारे विचार से, यदि आपको समतामूलक समाज की स्थापना कर हर किसी को एक समान और एक बराबरी का हक दिलाना है तो आपके जीवन जीने की शैली, आपकी संस्कृति और आपके जहन में भी समतामूलक भावना को स्थापित करना होगा! ऐसे में आप के महापर्व, संस्कृति और जीवन व जहन शिक्षा-दीक्षा, ज्ञान-विग्यान व तर्क पर आधारित होने चाहिए! इसलिए लूट-मार, हत्या, बलात्कार आदि से ओत-प्रोत ब्राह्मणी त्यौहार जैसे कि होली, दीपावली, रक्षाबंधन आदि का पूर्णता बहिष्कार कर, तिरस्कार कर, परित्याग कर आपको समता मूलक समाज की समता मूलक संस्कृति के लिए शिक्षा-दीक्ष, ग्यान-विग्यान व तर्क पर आधारित महापर्व ही मनाना चाहिए!
ध्यान रहे,
जब तक आपकी अपनी स्वतंत्रत पहचान स्थापित नहीं हो जाती है तब तक आपको समाज में सम्मान व बराबरी का दर्जा नहीं मिलने वाला है! इसलिए दूसरों के त्यौहारों पर अपना अर्थ और समय खर्च ना करके वही पैसा आप अपने अंबेडकर महोत्सव_14 अप्रैल और दीक्षा-दीप महोत्सव_14 अक्टूबर पर खर्च कीजिए! इससे जहां एक तरफ आप का महापर्व मजबूत होगा, वहीं दूसरी तरफ आपकी अपनी, आपके अपने बहुजन समाज की सांस्कृतिक पहचान कायम होगी! और, आपकी यही सांस्कृतिक पहचान आपको समाज में पहचान, मान-सम्मान व बराबरी का दर्जा दिलाएगी!
सनद रहे,
हमारी लड़ाई सिर्फ सत्ता पाने की नहीं है बल्कि भारत के गैर-बराबरी वाले समाज से गैरबराबरी की जड़ को ही समाप्त कर समतामूलक समाज की स्थापना करना है जिसमें हर किसी को मान-सम्मान और स्वाभिमान से जीने का हक प्राप्त हो!
जय भीम....
आपका,
रजनीकान्त इन्द्रा 
इलाहाबाद हाईकोर्ट इलाहाबाद

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