Thursday, July 30, 2020

ईवीएम हैकिंग - बहुजन समाज को गुमराह करता मुद्दा

ईवीएम हैकिंग - बहुजन समाज को गुमराह करता मुद्दा
काफी दिनों से बहुजन समाज में जन्मे चमचे ईवीएम हैकिंग के नाम पर अभियान चलाकर के ईवीएम हैकिंग करने वाले दलों को टारगेट करने के बजाए बहुजन समाज की राजनैतिक अस्मिता 'बसपा'  व भारत महानायिका बहन जी को ही लगातार कोस रहे हैं। एंटी ईवीएम अभियान वाले बसपा और बहन जी को टारगेट क्यों  रहें हैं। बसपा और बहन जी को क्यों बदनाम कर रहें हैं? ये सवाल स्पष्ट करते हैं कि एंटी ईवीएम हैकिंग अभियान वालों की नियत बहुजन समाज के प्रति काली हैं। 

हम इस बात से इंकार नहीं करते हैं कि ईवीएम हैकिंग नहीं किया गया है। ईवीएम हैकिंग उतना ही सत्य है जितना कि बूथ कैपचरिंग सत्य था। ईवीएम हैकिंग का उतना ही विरोध करना चाहिए जितना कि बूथ कैपचरिंग का। ईवीएम हैकिंग लोकतंत्र के लिए उतना ही खतरनाक है जितना कि बूथ कैपचरिंग। ईवीएम हैकिंग का विरोध किया जाना चाहिए लेकिन ईवीएम हैकिंग को माध्यम बनाकर देश के बहुजन समाज को हाशिए पर धकेलना संविधान, लोकतंत्र व बहुजन समाज के साथ विश्वासघात है।

दुखद है कि इस विश्वासघात में देश की ब्राह्मणी शक्तियों का साथ देश के बहुजन समाज में जन्मे कुछ चमचे कर रहे हैं। यह चमचे एंटी ईवीएम अभियान के बहाने बहुजन समाज को बहुजन समाज की एकमात्र राष्ट्रीय पार्टी 'बसपा' के खिलाफ बरगला रहे हैं, जो कि बुद्ध-फूले-अंबेडकरी विचारधारा व बहुजन  आन्दोलन के लिए हानिकारक हैं।

बीसवीं सदी के चुनावी जमाने में बूथ कैपचरिंग के द्वारा ब्राह्मणी शक्तियां सत्ता हासिल करती थी और आज के दौर में वही ब्राह्मणी शक्तियां ईवीएम हैकिंग के द्वारा सत्ता पर कब्जा कर रही हैं। यदि देखा जाए तो भारत के चुनावी व्यवस्था के संदर्भ में ईवीएम हैकिंग और बूथ कैपचरिंग कोई दो अलग-अलग बातें नहीं है बल्कि अलग-अलग समय पर होने वाली चुनावी घोटाले की दो अलग-अलग विधियां है।

इन सब के बावजूद भी बहुजन समाज में जन्मे चमचे बहुजन समाज को गुमराह करने के लिए एंटी ईवीएम अभियान चला रहे हैं। एंटी ईवीएम अभियान चलाने में कोई गलत नहीं है, लेकिन यह एंटी ईवीएम अभियान ब्राह्मणी शक्तियों के इशारे पर चलाए जा रहे हैं, इसलिए यह बहुजन समाज के हित में कतई नहीं है। और, एंटी ईवीएम अभियान चलाने वाले लोगों का उद्देश्य ईवीएम हैकिंग के खिलाफ अभियान चलाना नहीं है बल्कि ईवीएम हैकिंग अभियान को माध्यम बनाकर के बहुजन समाज को बरगलाना है, बहुजन समाज की राष्ट्रीय राजनैतिक अस्मिता को नष्ट करना है। इसका एक प्रमुख कारण यह है कि एंटी ईवीएम हैकिंग अभियान चलाने वाले लोगों को बहुजन समाज को गुमराह करने के लिए ईवीएम हैकिंग करने वाली सत्ताधारी ताकतों से ही फंड मिलता है। ऐसे में एंटी ईवीएम अभियान चलाने वाले चमचों के चक्कर में पड़कर बहुजन समाज को किसी भी तरह गुमराह नहीं होना चाहिए, और अपने राजनैतिक अस्मिता बसपा के साथ हमेशा खड़े रहना चाहिए।

साथ ही साथ ईवीएम हैकिंग के विरुद्ध आंदोलन चलाने वाले चमचों को भी याद रखना चाहिए कि "ईवीएम हैकिंग और बूथ कैप्चरिंग" दोनों ही सत्ताधारी पार्टी के इशारे पर होते हैं। आप ईवीएम हटाओगे तो सत्ताधारी दल "बूथ कैपचरिंग" के द्वारा सत्ता स्थापित कर लेगा।

 याद रखने की जरूरत हैं कि मुद्दा ईवीएम नहीं है, मुद्दा जनता के रुख का है। यदि आज मौजूदा (२०१४-२० २४) तानाशाही जारी है तो इसका कारण ईवीएम हैकिंग नहीं बल्कि उसको प्राप्त जन समर्थन और उसके द्वारा बनाया गया माहौल है। इंदिरा गांधी ने भी इसी तरह के माहौल और जन समर्थन की बदौलत सत्ता हासिल की थी, जिसके लिए तमाम जगहों पर उन्होंने "बूथ कैपचरिंग" का सहारा लिया था। इन्हीं कृत्यों के चलते उनका रायबरेली का इलेक्शन रद्द कर दिया गया था। नतीजा यह हुआ कि उन्होंने पूरे भारत में लोकतंत्र की हत्या कर आपातकाल घोषित कर दिया।

बहुजन समाज के जागरूक लोगों को इन दोनों घटनाओं से सीख लेनी चाहिए। हमारा स्पष्ट मानना है कि सत्ताधारी दल को जब जन समर्थन और माहौल का सपोर्ट मिलेगा तो वह "ईवीएम हैकिंग और बूथ कैपचरिंग" दोनों से सत्ता हासिल कर सकता है। इसलिए ईवीएम का रोना रोने की बजाए हालात को सकारात्मक और माहौल को अपने पक्ष में कीजिए। ठीक उसी तरह से, जिस तरह से बूथ कैपचरिंग और गुंडागर्दी के दौर में मान्यवर कांशीराम साहब ने जन समर्थन व माहौल को अपने संवैधानिक व लोकतांत्रिक तरीके से बहुजन समाज के पक्ष में किया था। भूलना नहीं चाहिए कि जब बूथ कैपचरिंग का तांडव चल रहा था उस समय मान्यवर कांशीराम साहब ने कहा था ----
चढ़ गुंडों की छाती पर,
मार मोहर तू हाथी पर। (१)
वोट हमारा राज तुम्हारा,
नहीं चलेगा, नहीं चलेगा। (२)
बीएसपी की क्या पहचान,
नीला झण्डा निशान। (३)
वोट से लेगें पीएम-सीएम,
आरक्षण से लेगें एसपी-डीएम। (४)
जो जमीन सरकारी हैं, वो जमीन हमारी हैं। (५)
यह कुछ और नहीं, बल्कि मान्यवर कांशी राम द्वारा एक सकारात्मक माहौल का सृजन करना था। मान्यवर साहब व बहन जी द्वारा बनाए गए इस सकारात्मक माहौल के खिलाफ बूथ कैपचरिंग करने वाली शक्तियां टिक नहीं पाई। जिसका परिणाम यह हुआ कि बसपा ने भारत की सर्वाधिक आबादी वाले उत्तर प्रदेश की सरजमी पर चार-चार बार ऐसी हुकूमत की जिसकी मिसाल भारत के इतिहास में सम्राट अशोक के बाद नहीं मिलता है। साथ ही 1984 में गठित होने वाली बसपा ने 1996 आते-आते एक राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा भी प्राप्त कर लिया। यह "एंटी बूथ कैपचरिंग अभियान" के द्वारा नहीं, बल्कि बहुजन समाज में जागरूकता लाकर बहुजन समाज के पक्ष में एक सकारात्मक माहौल सृजित करने का परिणाम था। बाबा साहेब  रास्ते मान्यवर काशीराम साहेब और बहन जी के संघषों का ही परिणाम हैं कि आज बसपा देश के पिछड़े, वंचित, आदिवासी और अल्पसंख्यक समाज की नुमाइंदगी करते हुए देश के लगभग 90 फ़ीसदी आबादी की एकमात्र आवाज व उनकी एकमात्र राजनीतिक राष्ट्रीय अस्मिता है और माननीय बहन कुमारी मायावती जी उनकी एकमात्र राष्ट्रीय नेता है।

याद रहे यदि माहौल और जन समर्थन संविधान व लोकतंत्र विरोधी ताकतों के पक्ष में रहेगा तो ईवीएम हटा करके भी ईवीएम हैकिंग का लगातार रोना रोने वाले ग्राम प्रधान का भी इलेक्शन नहीं जीत सकते हैं।

इसलिए ईवीएम हटाओ अभियान चलाने वाले चमचे जिस भ्रम में जी रहे हैं उससे उनको भ्रम से बाहर निकलना चाहिए। हकीकत को पहचानिए, और इतिहास से सबक लेते हुए बहुजन समाज व बसपा के पक्ष में सकारात्मक माहौल व जन समर्थन तैयार करने में, यदि योगदान दे सके तो योगदान दीजिए। और यदि ऐसा ना कर सके तो कृपया नकारात्मक माहौल बनाकर बहुजन समाज को अंधकारमय गर्त में धकेलने का असफल प्रयास मत बनाइए।

याद रहे, एंटी ईवीएम अभियान नहीं बल्कि बहुजन समाज के पक्ष में सकारात्मक माहौल का सृजन करना ही बहुजन समाज व भारत देश के हित में है।
रजनीकान्त  इन्द्रा (Rajani Kant Indra)
एमएएच (इतिहास), इग्नू-नई दिल्ली

Wednesday, July 29, 2020

राजस्थान की सियासी उथल-पुथल मे चमचों की बढ़ती तकलीफ

राजस्थान की सियासी उथल-पुथल मे चमचों की बढ़ती तकलीफ
        राजस्थान विधानसभा चुनाव २०१८ मुताबिक कांग्रेस १०० सीटों साथ बड़ी पार्टी बनकर उभरी, साम्प्रदायिक बीजेपी को राजस्थान की जनता ने ७३ सीटों समेट दिया। बहुजन समाज की एक मात्र पार्टी बसपा ०६ सीटों तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी।
फिलहाल, राजस्थान में सांप्रदायिक ताकतों को सत्ता दूर रखने की उम्मीद से बसपा ने लिखित तौर पर बिना शर्त कांग्रेस को समर्थन देकर सरकार बनवायी, लेकिन कांग्रेस के समय में भी जुल्म कम नहीं हुए। जनता पर हुए जुल्म के खिलाफ बसपा लगातार आवाज़ उठती रहीं। साथ ही, बसपा ने देशव्यापी ०२ अप्रैल की क्रांति के दौरान गिरफ्तार किये गए बेगुनाह बहुजन नवयुवकों के खिलाफ लगे आरोप को रद्द करने की मांग की। बसपा का दबाव कांग्रेस सरकार पर बढ़ता जा रहा था। इसलिए कांग्रेस ने बसपा के विधायकों को खरीद कर अपने आपको बसपा के दबाव से मुक्ति पाने और अपनी खुदमुख्तार सरकार बनाने के लिए बसपा विधायकों को खरीदने के कृत्य को अंजाम दिया। कांग्रेस के इस रवैये के संदर्भ में कर्णाटक के पूर्व मुख्यमंत्री एच डी कुमारस्वामी ने तो स्पष्ट दिया हैं कि "विधायक खरीद-फरोख्त का दूसरा नाम हैं कांग्रेस"।
फिलहाल, बसपा ने समय-समय पर शिकायत करती रहीं लेकिन किसी ने कोई सुनावई नहीं की। बसपा ने इस मसले को लेकर राज्यसभा चुनाव के दौरान चुनाव आयोग में भी अपील की लेकिन अपने अधिकार क्ष्रेत्र से बाहर का मामला बताकर चुनाव आयोग ने भी पल्ला छाड़ लिया। बसपा न्याय से महरूम रहीं। बसपा को मालूम था कि राजनीति में सहीं समय पर ही सही सबक सिखाया जा सकता हैं। इसलिए बसपा ने इन्तजार किया। और, जब २०२० में कांग्रेस के ही कुछ विधायक भाजपा के हाथों बिक गये तो कांग्रेस की सरकार खतरे में आ गयी। बसपा के लिए यही सबसे सहीं समय (जुलाई २०२०) हैं कि कांग्रेस को सबक सिखाया जाय। इसलिए बसपा ने अपने छह विधायकों को व्हिप के जरिये कहा हैं कि वे कांग्रेस के खिलाफ वोट करे। बसपा के व्हिप से कोंग्रेसी खेमे में खलबली मच गयी। और साथ ही, विधायक खरीद-फरोख्त में मसले को बसपा कोर्ट भी जाने की तैयारी कर रहीं हैं।
याद रहे, राजनीतिक लड़ाई में बार-बार कोर्ट जाना उचित नहीं है। राजनीतिक जंग में अपने राजनीतिक प्रतिद्वंदी पर सही समय पर सही वार करना ही उसके साथ सही न्याय है।
बसपा ने यही किया। बसपा के इस न्यायिक फैसले से बहुजन समाज के सबसे बड़े शत्रु बहुजन समाज में जन्मे चमचे, अपनी गुलामी के धर्म का पालन करते हुए अब बसपा को टारगेट कर उसके खिलाफ दुष्प्रचार  कर रहें हैं।
ऐसे गाँधी के हरिजनों से कुछ सवाल तो बनता ही हैं। बहुजन समाज जानना चाहता हैं कि बाबा साहब के विरोधियों (चमचों) को तकलीफ क्यों हो रही है? क्या गुलामी जहन में इस तरह समा चुकी है कि इनको अपनी स्वतंत्र राजनैतिक अस्मिता की पहचान तक नहीं है? बहुजन समाज के चमचों को यह सोचना चाहिए कि जब राजस्थान में बसपा कांग्रेस को समर्थन दे रही थी तो फिर बसपा के विधायकों को तोड़ने की क्या जरूरत थी? ऐसे में कांग्रेस ने तो राजस्थान में सकल बहुजन समाज की अस्मिता बसपा का अस्तित्व ही मिटाने का काम किया है, तो फिर बाबा साहब के विरोधी (चमचे) एक भी कोई ऐसा कारण बताएं कि बसपा कांग्रेस के खिलाफ वोट क्यों ना करें? जब कांग्रेस ने बसपा के 6 विधायकों को तोड़ने का प्रयास किया तो चमचों व दलालों ने कांग्रेस के खिलाफ आवाज क्यों नहीं उठाई? बसपा एक राष्ट्रीय पार्टी है। किसी राष्ट्रीय पार्टी के साथ, वह भी तब जब वह आपका समर्थन कर रही है, तो उस समय उसके विधायकों को तोड़ना क्या जायज है? यदि बहुजन समाज में जन्मे चमचों, राहुल, प्रियंका और सोनिया गांधी ने गहलोत के असंवैधानिक अलोकतांत्रिक और अनैतिक कृत्य का विरोध नहीं किया तो इसका सीधा सा मतलब है कि यह सब इनकी मंशा के अनुरूप इनके ही इशारे पर अशोक गहलोत द्वारा किया गया हैं। प्रियंका गाँधी भी अपने गिरेबान में झांके बगैर बसपा के खिलाफ दुष्प्रचार करते हुए कह रहीं हैं कि बसपा ने भाजपा की मदद के लिए व्हिप जारी किया हैं। प्रियंका गाँधी को खुद से भी सवाल करना चाहिए कि उन्होंने खुद राजस्थान में बसपा के छह विधायकों की खरीद-फरोख्त क्यों की? क्या ये असंवैधानिक, अलोकतांत्रिक और अनैतिक कृत्य प्रियंका और उनकी पार्टी ने क्यों किया? चमचों संग प्रियंका गाँधी को याद रखना चाहिए कि बसपा ने कांग्रेस को बचाए रखने का ठेका नहीं ले रखा है। इसलिए अपने गिरेबान में झांके बगैर चमचों व प्रियंका गाँधी द्वारा बसपा पर कोई टिपण्णी करना या तो मूर्खता हैं, या फिर निहायत धूर्तता। 
बसपा बहुजन समाज की एक राजनीतिक पहचान है, और राजस्थान के मौजूदा हालात को देखते हुए बहुजन समाज की राजनीतिक पहचान व राजस्थान की जनता के विश्वास को बनाए रखना और उसको बचाए रखना ज्यादा जरूरी है। बसपा एक राष्ट्रीय पार्टी है। उसकी अपनी स्वतंत्र विचारधारा है। उसके अपने इस तंत्र नायक हैं, नायिकाएं हैं। और उसकी अपनी स्वतंत्र राजनैतिक रणनीति है जो वह अपनी शर्तों पर देशहित व जनहित के अनुसार निर्णय लेकर अपनी नीतियों को लागू करती है।प्रियंका गाँधी समेत बहुजन समाज में जन्मे चमचों को यह बात मालूम होनी चाहिए कि भारत में सर्व समाज की सर्वप्रिय भारत महानायिका बहन कुमारी मायावती जी ने बहुत पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि बसपा परम पूज्य बाबा साहब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर और मान्यवर कांशी राम साहब के त्याग, तपस्या और उनके आंदोलन की प्रवक्ता है। इसलिए यदि फिर भी चमचे बसपा व बहन जी पर इस तरह की कोई भी नकारात्मक व अनैतिक टिप्पणी करते हैं तो यह उनकी मूर्खता का प्रमाण मात्र होगा।  
प्रियंका गाँधी और चमचों को याद रखना चाहिए कि बहुजन समाज पार्टी गाँधी के हरिजनों व चमचों को खुश करने के लिए नहीं बल्कि बाबा साहब के मिशन को पूरा करने के लिए बनायीं गयी पार्टी हैं। बाबा साहब के विरोधी बहुजनों को क्या यह खबर नहीं है कि बहुजन विरोधी दलों में उनकी पूछ सिर्फ तब तक है जब तक बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर के बताए हुए रास्ते पर चलने वाली बसपा का अपना स्वतंत्र स्टैंड है?
फिलहाल, बसपा के लिए कांग्रेस और बीजेपी में कोई अंतर नहीं है, सत्ता में चाहें भाजपा रहें या कांग्रेस बहुजन हितों की रक्षा नहीं होनी हैं। लेकिन, मौजूदा हालात में कांग्रेस ने राजस्थान में बसपा का अस्तित्व मिटाने का प्रयास किया है। इसलिए कांग्रेस को सबक सिखाना ज्यादा जरूरी है, ताकि कांग्रेस व अन्य सभी दल कभी भी असंवैधानिक, अलोकतांत्रिक और अनैतिक कृत्य करने की हिम्मत ना कर सके।
रजनीकान्त  इन्द्रा (Rajani Kant Indra)
एमएएच (इतिहास), इग्नू-नई दिल्ली

Saturday, July 25, 2020

बहन जी को सब कुछ याद हैं।

बहन जी को सब कुछ याद हैं।
बीसवीं सदी के आठवें दशक की बात हैं। मान्यवर काशीराम साहेब बामसेफ के बैनर तले जहाँ एक तरफ सरकारी नौकरी-पेशा लोगों को एकजुट कर रहे थे तो वहीँ दूसरी तरफ डीएस-4 के मंच से देश के दलित-शोषित समाज को पूरी सिद्धत से जागृत कर उनकों बहुजन आन्दोलन के लिए तैयार कर रहे थे। इसी दरमियान विदर्भ में जन्मे एक युवक, जो कि मध्य प्रदेश शासन के अधीन ग्रामीण अभियंत्रण विभाग में नौकरी कर रहा था, मान्यवर के मिशन से प्रभावित होकर बहुजन आन्दोलन का हिस्सा बनता हैं।
एक बार की बात हैं। साहब लोगों को मिशन और कैडर के सन्दर्भ में दिशा-निर्देश दे रहे होते हैं कि ये युवक एकाएक साहेब के पास आता हैं और कहता हैं कि साहेब मै फिल्म बनाना चाहता हूँ। साहेब उसे फटकारते हुए कहते हैं कि "मैं यहाँ सरकार बनाने की बात कर रहा हूँ, और तू फिल्म बनाने की बात कर रहा हैं। कितनी पढाई की हैं? फिल्म के बारे में कुछ जानता हैं?" युवक बोला, "नहीं"। साहब ने कहा कि पहले जा फिल्म के बारे में पढ़ाई कर, फिर आना।"
साहेब की ये बात सुनकर वो युवक राष्ट्रिय नाट्य अकादमी में प्रवेश के अर्जी दिया। उसका चयन हो गया। उसने मध्य प्रदेश शासन के अधीन ग्रामीण अभियंत्रण विभाग की नौकरी से इस्तीफ़ा दे दिया। उसकी माता जी उसके सामने मिन्नतें कर रहीं थी कि नौकरी मत छोड़। लेकिन वो युवक नहीं माना।
जब एनएसडी के लिए वो युवक नागपुर स्टेशन पर ट्रेन पकड़ने आया तो उसकी माता जी ने स्टेशन पर मौजूद पुलिस कर्मी के पैर पकड़ कर उससे विनती करने लगी कि उसका बेटा सरकारी नौकरी छोड़कर नाचने-गाने की पढाई करने के लिए दिल्ली जा रहा हैं, उसके बेटे को रोक ले। लेकिन पुलिस वाला कैसे रोक सकता था। फिलहाल वो युवक ट्रेन पर चढ़ा और एनएसडी-दिल्ली पहुँच गया।
समय बीतता गया। उस युवक ने एनएसडी से अपनी पढाई पूरी करके दिल्ली के आस-पास के क्षेत्र में ही थियेटर करना लगा। थियेटर से परिवार चलाने भर की ही आमदनी हो पाती थी। उस युवक के ऊपर परिवार की भी जिम्मेदारी थी। फिलहाल, आर्थिक स्थिति बद्तर हो चुकी थी। इस प्रकार वो युवक बहुजन आन्दोलन में सक्रिय नहीं हो पाया। इसके बावजूद दिल्ली व आप-पास के क्षेत्र में वह आन्दोलन और सभाओं के भाग लेता रहता था।
बात १९८६ की हैं। दिल्ली में मान्यवर साहेब से हुई एक मुलकात के दौरान साहेब ने उससे पूछा कि "आज कल क्या कर रहे हो? फिल्म की पढाई पूरी कर ली?" उस युवक ने बताया कि साहब थियेटर कर रहा हूँ। इसके बाद मान्यवर साहेब ने बहन जी से कहा कि "इस बच्चे का ख्याल रखना"।
दिन, महीने और साल बीतते गये। वो युवक अपने थियेटर के कार्य में व्यस्त रहा। और, उसी से अपनी जीविका भी चलता रहा। लेकिन थियेटर से इतनी कमाई नहीं हो पा रहीं थी। इसलिए माली हालत ख़राब ही रहीं। बावजूद इसके अपनी लगन के चलते युवक थियेटर कार्य, लेखन और बहुजन मुद्दे को सामने लाने में लगा रहा। भारतीय भाषा आन्दोलन से जुड़े रहकर विश्व हिंदी दिवस समेत तमाम अवसरों पर अपनी आवाज को बुलंद करते हुए भारतीय भाषा विकास में अग्रणी भूमिका निभाई।
फिलहाल, इधर मान्यवर साहेब की देख-रेख में माननीया बहन जी संघर्ष करती रहीं। बुद्ध-फुले-शाहू-अम्बेडकर के कारवां को नित नए मुक़ाम तक पहुँचती रहीं। साहेब, बहन जी के सतत संघर्ष और सकल बहुजन समाज में उभरती चेतना का परिणाम रहा कि ०३ जून १९९५ को पहली बार माननीया बहन जी ने भारत के सर्वाधिक आबादी वाले उत्तर प्रदेश की सरज़मी पर हुकूमत करने की शपथ ली। इसके बाद २१ मार्च १९९७ को दूसरी बार; ०३ मई २००२ को तीसरी बार मुख्यमन्त्री की शपथ ली।
इसके बाद ०९ अक्टूबर २००६ को मान्यवर साहेब का साया पिछड़े वर्ग, दलित, आदिवासी एवं अल्पसंख्यक समाज के सर से उठ गया। पिछड़े समाज की मसीहा माननीया बहन जी ने बहुजन समाज और बहुजन आन्दोलन की जिम्मेदारी को बखूबी संभल लिया। बहन जी ने इस कदर जिम्मेदारी निभा रहीं हैं कि भारत महानायिका बहन जी साहेब की कमी खलने नहीं दे रहीं हैं। इसका प्रमाण यह हैं कि बहन जी ने बुद्ध-बाबा साहेब के दिखलाये रास्ते पर चलते हुए १३ मई २००७ को पूर्ण बहुमत के साथ पिछड़े, दलित, आदिवासी और अल्पसंख्यक समाज की अपनी सरकार बनायीं।
फिलहाल १९८६ से लेकर २००७ लगभग २१ साल बीत गए। इस दरमियान उस युवक का मान्यवर साहेब व बहन जी से कोई ख़ास संपर्क नहीं रहा। वो युवक थियेटर में व्यस्त, अपनी जीवन जी रहा था। मुख्यमत्री बनते ही बहन जी ने उस युवक के एक दोस्त के पास फोन किया, और उस युवक दो दिन के भीतर लखनऊ भेजने के लिए कहा। उस युवक का दोस्त किसी कारण बस ये सूचना उस युवक तक नहीं पंहुचा सका। दो दिन से ज्यादा का वक्त बीत गया। एक शाम वो युवक फटेहाल, टूटी चप्पल पहने अपने दूसरे दोस्तों के साथ मंडी हॉउस के पास एक नुक्कड़ पर चाय पी रहा था। इतने वो उसका दोस्त आया और हर्ष से चिल्लाते हुए उस युवक से बोला कि तुम्हारी तो किश्मत खुल गई। तुम्हारे लिए लखनऊ से फोन आया था। तुमको तत्काल लखनऊ पहुँचाना हैं। अन्य दोस्त कुछ समझ ही नहीं पाये। वो शख्स भी आश्चर्यचकित था। उसको विश्वास नहीं हो रहा था कि बहन जी का बुलावा आया हैं। परन्तु, उसको याद था कि साहेब ने बहन जी से कहा था कि इस बच्चे का ख्याल रखना। शख्स अंदर ही अंदर खुश हो रहा था। आनन्द की तरंगे हिलोरे मार रहीं थी।
शख्स ने अपने दोस्त से बताया कि मेरे पास ना तो कपडे हैं, ना ही पैर में चप्पल। मै कैसे लखनऊ जाऊ। इसके बाद उसके दोस्त ने अगले दिन पांच हजार का इंतजाम किया। उस पैसे से उस शख्स ने नये कपडे, जूते आदि ख़रीदा। इसके बाद शाम वाली ट्रेन से लखनऊ के लिए रवाना हो गया। आँखों से नीद गायब थी। मन में तरह-तरह के विचार आ रहे थे। सोच रहा था कि लखनऊ में बहन जी ने अपने संघर्ष से पूर्ण बहुमत की सरकार बनायीं हैं। बहन से मिलने के बाद क्या होगा? बहन जी ने क्यों बुलाया हैं? इस तरह के सवाल उसके अंदर गूँज रहे थे। देखते-देखते रात गुजर गयी। सुबह करीब ६ बजे ट्रेन चारबाग पंहुच गयी। शख्स ट्रेन से उतरा और नहाने-धुलने के लिए रूम किरये पर लेने के लिए होटल पहुँचा गया।
होटल के मैनेजर ने शख्स का नाम पूँछा तो उसने अपना नाम यशवन्त उदय निकोसे बताया। यह नाम सुनते ही होटल के मैनेजर ने उसको पकड़ लिया। अपने गार्ड्स को एलर्ट कर दिया। पूछने पर मैनेजर ने बताया कि तुमको पुलिस ढूंढ रहीं हैं। तुम्हारे बारे में पूँछ-पूँछ कर पोलिस ने सबको परेशान कर दिया हैं। गार्ड्स से बोला कि इसको जाने मत देना, ये पुलिस द्वारा वांटेड हैं। शख्स ने बहुत मिन्नतें की कि मुझे आपके यहाँ एक कमरा चाहिए। मै ब्रश आदि करके नहाना-धुलना चाहता हूँ। उसकी मिन्नत सुनने के बाद उसके रूम के सामने गार्ड्स को तैनात कर मैनेजर ने पुलिस को सूचना दिया और बातचीत की।
इसके बाद जब निकोसे साहब नहा-धुल कर तैयार होकर बहन जी के आवास के लिए निकला। रिक्से वाले ने निकोसे को लेकर आवास की जगह आफिस पंहुच गया। गेट पर पंहुच कर गार्ड से निकोसे ने अपना परिचय बताया तो गार्ड ने रिक्शे वाले को एक जोरदार थप्पड़ लगा दिया, और कहा कि इनकों लेकर आवास पर जाओं। फिर रिक्शे वाला निकोसे साहब को लेकर आवास पर पहुँचा। वहां पहुंचकर गार्ड को अपना परिचय दिया। गार्ड ने अपने वॉकी-टॉकी पर अंदर बात की। निकोसे साहब भी वॉकी-टॉकी की बात सुन रहे थे। अंदर से निर्देश आया कि उनकों सम्मान के साथ बैठओं, चाय आदि दीजिये। बहन जी अभी आ रही हैं।
इसके बाद निकोसे साहब ने गार्ड द्वारा मारे गए थप्पड़ के लिए रिक्शे वाले से माफी मंगाते हुए उसको सौ रुपये दिए। निकोसे साहब अंदर गए।आदर-सत्कार किया गया। नास्ते में काजू किसमिस और मिठाइयाँ रखी हुए थी। निकोसे साहब ने नास्ता किया। इसके कुछ देर बाद ही भारत महानायिका बहन जी का आगमन हुआ। पहुंचते ही माननीय बहन जी ने निकोसे जी से उनका कुशल-मंगल पूंछा। इसके बाद सेक्रेटरी ने ढेर सारे पेपर मेज पर बिखेर दिया। बहन जी उन पेपर्स पर हस्ताक्षर करने को कहा। निकोसे साहब ने बिना कुछ सोचें-समझे और पेपर्स को पढ़े बगैर बहन जी के निर्देशानुसार हस्ताक्षर कर दिया। इसके बाद माननीय बहन जी निकोसे जी को महामहिम राज्यपाल से मिलवायीं। और, महामहिम राज्यपाल महोदय से कहा कि ये सब इनके कुछ कागज हैं, आप इनकों ध्यान से देख लीजिये, ये हैं श्री यशवंत निकोसे जी। हमारी सरकार श्री यशवंत निकोसे जी को उत्तर प्रदेश का सांस्कृतिक राज्य मंत्री बनाना चाहती हैं। सारी कागजी कार्यवाही पूर्ण होने के बाद निकोसे जी का शपथ ग्रहण हुआ। इसके बाद भारत महानायिका बहन जी ने श्री यशवंत निकोसे जी की काबिलियत को देखते हुए इन्हें उत्तर प्रदेश फिल्म विकास परिषद् का चेयरमैन और भारतेन्दु नाट्य अकादमी लखनऊ के निदेशक पद पर भी नियुक्त किया। ऐसी हैं बहन जी, जिन्होंने कल के नुक्कड़ के निकोसे को उत्तर प्रदेश का मंत्री बना दिया।[1]
याद रहें, ये वहीँ श्री यशवंत निकोसे है जिन्होंने बहुचर्चित "तीसरी आज़ादी" नाम की फिल्म बनायी हैं। इनके इन्हीं कार्यों और समर्पण की वजह से माननीय बहन जी ने श्री यशवंत निकोसे जी को ना सिर्फ उत्तर प्रदेश का सांस्कृतिक राज्य मंत्री बनाया बल्कि उत्तर प्रदेश फिल्म विकास परिषद् का चेयरमैन और भारतेन्दु नाट्य अकादमी लखनऊ के निदेशक पद पर भी नियुक्त किया। बहन जी मिशन के लिए योगदान देने वाले किसी भी शख्स को नहीं भूलती हैं, उचित अवसर आने पर ना सिर्फ उन्हें जान सेवा का उत्कृष्ट अवसर प्रदान करती हैं बल्कि उनका पूरा मान-सम्मान भी करती हैं।
सबक -
बहुजन आन्दोलन के शत्रु और ब्राह्मणवादी दलों व संगठनों के चमचे कहते हैं कि बहन जी मिशन के लोगों को पहचानती नहीं हैं, मिशन के लोगों को पार्टी से बाहर कर दिया हैं, बहन जी मिशन से भटक चुकी हैं। ऐसे में नागपुर महाराष्ट्र के रहने वाले मिशन से कभी जुड़े रहे श्री यशवंत निकोसे को बहन जी उत्तर प्रदेश का सांस्कृतिक राजयमंत्री, उत्तर प्रदेश फिल्म विकास परिषद् का चेयरमैन और भारतेन्दु नाट्य अकादमी का निदेशक बनाया जाना बहुजन समाज में जन्मे बहुजन समाज के दलालों और ब्राह्मणवादी दलों व संगठनों के चमचों के मुँह पर जोरदार तमचा हैं।
स्पष्ट हैं कि बसपा एक मिशन हैं। बहन जी इस मिशन को बखूबी आगे बढ़ा रहीं हैं। अपनी आर्थिक मुक्ति चाहने वाले बहुजन समाज में जन्मे बहुजन समाज के दलालों और ब्राह्मणवादी दलों व संगठनों के चमचों के अपने स्वार्थ के चलते बसपा और बहन जो को बदनाम कर रहे हैं, बुद्ध-फुले-अम्बेडकरी आन्दोलन को तोड़ने की कोशिस कर रहे हैं। ऐसे में, नवयुवकों के सामने श्री यशवंत निकोसे का उदाहरण उचित मार्गदर्शन करता हैं कि बहन जी किसी को और कुछ भी नहीं भूलती हैं। मिशन के लोगों को बहन जी ने हमेशा सम्मान किया। उनकों वाज़िब पद आदि से नवाज़ा हैं।
फिलहाल ये बात जरूर सच हैं कि जो भी लोग बुद्ध-अम्बेडकरी विचारधारा से हटकर अपनी आर्थिक मुक्ति के लिए आन्दोलन का सौदा कर रहें हैं, उनकों बिना समय गवाये बहन जी पार्टी से बाहर का रास्ता दिखती हैं क्योकि आन्दोलन स्वार्थी लोगों से नहीं बल्कि अनुशासित, निष्ठावान और समाज व आन्दोलन के प्रति समर्पित लोगों से ही चलता हैं।
अपील - कृपया इस देश का बहुजन समाज मान्यवर काशीराम के साथ छल करने वाले कांग्रेस-बीजेपी-आरएसएस फण्डित रजिस्टर्ड बामसेफ और अन्य तमाम संगठनों व लोगों से सावधान रहें। क्योकि ये सभी संगठन बहुजन आन्दोलन से बहुजनों को तोड़ने का कार्य कर रहे हैं। बहुजन समाज को गुमराह कर बहुजन समाज की एक मात्र राष्ट्रिय पार्टी बसपा को कमजोर कर कांग्रेस और भाजपा को मजबूत करने के लिए ही इनकों फण्ड मिलता हैं। बुद्ध-फुले-रैदास-कबीर-बाबा साहेब-मान्यवर काशीराम साहेब, बामसेफ की तश्वीरों के इस्तेमाल और बहन जी एवं बसपा के प्रति बहुजन समाज को गुमराह करके ही इनकी जीविका चलती हैं, इसलिए ही इनकों ब्राह्मणी संगठनों एवं दलों से फण्ड मिलता हैं। इसलिए कांग्रेस-बीजेपी-आरएसएस फण्डित रजिस्टर्ड बामसेफ और ऐसे अन्य सभी संगठनों बहुजन समाज को सर्तक रहने की जरूरत हैं। आज की मौजूदा हालत व बसपा व बहन जी के खिलाफ हो रहे दुष्प्रचार के संदर्भ में बाबा साहेब की ये बात पूर्णतया प्रासांगिक हैं कि "आंदोलन की मजबूती के लिए सभी कार्यकर्ताओं को अपने वरिष्ठों के आदेशों को बिना शिकायत स्वीकारने होंगे।[2]"
रजनीकान्त  इन्द्रा (Rajani Kant Indra)
एमएएच (इतिहास), इग्नू-नई दिल्ली


[1] (ये पूरा वाकया मार्च ०७, २०२० की शाम ५:४० बजे श्री यशवन्त उदय निकोसे से नागपुर में मुलाकात के दौरान हुई बातचीत पर आधारित हैं)
[2] बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर, बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर संपूर्ण वाड़्मय, खंड-39 भाग-2, डॉक्टर अंबेडकर प्रतिष्ठान सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय भारत सरकार नई दिल्ली (2019); पृष्ठ संख्या-434

Friday, July 24, 2020

अब दुःख नहीं, आश्चर्य होता हैं


अब दुःख नहीं, आश्चर्य होता हैं
जनता भाजपा सरकार को दोष दी रही हैं। प्रधानमंत्री व मुख्यमंत्री संग अन्य मंत्रियों की डिग्रियों पर सवाल उठा रहे हैं। हमारे विचार ये सब अपनी जिम्मेदारियों से भागना हैं। यदि २०१४ से लेकर आज तक के इस आतंकराज पर गौर करें तो हम पाते हैं कि मौजूदा आतंकी सरकार का कोई दोष नहीं हैं। यदि सरकार ने कोई अस्पताल नहीं बनवाया, स्कूल नहीं खुलवाया, सड़के नहीं बनवायी, नोटबंदी,जीएसटी, कोरोना में घोटाला हुआ हैं, हत्या हुई हैं, तो भी इसकी जिम्मेदार सरकार नहीं बल्कि जनता हैं। क्योंकि जनता ने कश्मीर, पाकिस्तान, दलित-मुस्लिम दमन, पूँजीवाद, भक्ति,गाय-गोबर और मंदिर के नाम पर वोट किया हैं, सरकार को चुना हैं तो जनता शिक्षा, स्वस्थ जैसे तमाम मूलभूत जरूरतों की उम्मीद क्यों करती हैं? मान्यवर काशीराम साहब कहते हैं कि "जनता जैसी होती हैं उसको वैसे ही नेता मिलते हैं।" 
यदि आज जंगलराज की सरकार हैं तो इसकी दोषी खुद जनता हैं। बचपन से लेकर आज तक दलितों, आदिवासियों, पिछड़ों एवं मुस्लिम समाज पर लगातार हो रहे अत्याचार, लूटमार, हत्या, बलात्कार, दंगा-फ़साद जैसी घटनाओं को इतनी बार सुन चुके हैं कि अब दुःख होना बंद हो गया है। ज़हन ने मान लिया हैं कि ये सब सामान्य घटनाएँ हैं। इन सब का दोषी कोई राजनेता नहीं, बल्कि जनता खुद हैं।
इसलिए अब दमन,अत्याचार, बलात्कार, लूटमार और हत्या पर ना तो दुःख होता हैं और ना ही आश्चर्य। साथ ही अब देश की जातिवादी मनुरोगी ताकतों के चरित्र पर आश्चर्य नहीं होता है बल्कि आश्चर्य इस बात पर होता है कि बहुजन समाज एकजुट होकर के इन मनुरोगी ताकतों को जड़ से उखाड़ कर अभी तक क्यों फेंक नहीं पाया है? अब आश्चर्य इस बात पर होता है कि देश के बहुजन समाज के पास बुद्ध-रैदास-कबीर-फूले-शाहू-अंबेडकर-बिरसा-कांशीराम और बहनजी जैसे महानायक और महानायिकाएं हैं, अपनी स्वतंत्र बुद्ध-अम्बेडकरी विचारधारा है, अपनी पूँजी, अपने मुद्दों पर खड़ा अपना संगठन हैं, और अपनी बहुजन अस्मिता है, फिर भी इस देश का बहुजन समाज अपनी अस्मिता को पोषण देने के बजाय बहुजन विरोधी ताकतों को लगातार सींच क्यों रहा है। बहुजन समाज अपने अत्याचारियों को मजबूत करने में लगा हुआ है, ये आश्चर्य हैं। 
बहुजन समाज की तमाम सामाजिक राजनीतिक आर्थिक और शैक्षणिक बीमारियों से बहुजनों को अवगत कराते हुए उनके लिए अवसर के सारे दरवाजे खोलने वाली उसकी चाबी बाबा साहब ने बहुजनों हाथों में दे दी है, लेकिन बहुजन समाज इस चाबी का इस्तेमाल कर अपने लिए अवसर के दरवाजे खोलने के बजाय चमचागिरी में लगा हुआ हैं। मान्यवर साहेब व बहन जी ने जिस कांग्रेस व भाजपा को सांपनाथ और नागनाथ कहा हैं पढ़े-लिखे लोग उसकी चमचागिरी कर रहे हैं, ये सबसे बड़ा अचम्भा हैं। बहुजन समाज के पास आज बहन कुमारी मायावती जी के रूप में एक सशक्त और उम्दा नेतृत्व है, बहुजन समाज पार्टी जैसा एक राष्ट्रीय राजनैतिक पार्टी है, इसके बावजूद बहुजन समाज नीले झंडे के नीचे एकत्रित होकर अपनी हुकूमत स्थापित करने में असफल हो रहा है, ये हैं आश्चर्य का विषय। बहुजन समाज की नई-नवेली पार्टियां और रजिस्टर्ड संगठन अपने शोषक से लड़ने के बजाय बसपा से लड़ रहे हैं, ये हैं आश्चर्य की बात। 
इसलिए किसी को भी मौजूदा आतंकराज पर ना तो दुखी होना चाहिए और ना ही आश्चर्य करना चाहिए। लोगों ने जैसी सरकार चुनी हैं उनके साथ वैसा ही बर्ताव हो रहा हैं। यदि चाहिए, ऐसी सरकार चुनिए जिसका शासन-प्रशासन संविधान सम्मत व बेहतरीन रहा हो। हमारे विचार से किसी भी बात पर दुख प्रकट करने और शोक प्रकट करने से समस्या का समाधान नहीं होगा। यदि लोग न्याय चाहते हैं, यदि लोग चुश्त-दुरुश्त शासन चाहते हैं, मूलभूत सुविधाएँ चाहते हो, तो आप एक ऐसे पार्टी को सत्ता दीजिए जो देश के सबसे निचले तबके की बात करता हो, जो संविधान सम्मत शासन दिया हो, जो देश के बहुजनों का बुद्ध-अम्बेडकरी वैचारिकी पर आधारित अपना राजनैतिक दल हो। 
फिलहाल, बहुजन समाज जितनी जल्दी अपनी अस्मिता को स्थापित कर शासक जमात में शुमार हो जाएगा उतनी ही जल्दी उसको अत्याचारों से मुक्ति मिल जाएगी। यहां पर राजनीति के अलावा बहुजन समाज को चाहिए कि वह बाबा साहब द्वारा बताए गए रास्ते पर चलते हुए अपनी जीवनशैली में बड़ा बदलाव करें। मतलब कि अपनी जीवन शैली से सारे ब्राह्मणरीति-रिवाजों, तीज त्योहारों, ब्राह्मणी रहन-सहन आदि सब को दरकिनार करते हुए अपनी स्वतंत्र सामाजिक अस्मिता को स्थापित कर अपने संस्कृति का पोषित करें, राजनीति के साथ-साथ अपनी स्वतंत्र सामाजिक-सांस्कृतिक और आर्थिक अस्मिता को स्थापित करे। इसी में इस देश की भलाई है।
रजनीकान्त इन्द्रा
इतिहास छात्र, इग्नू - नई दिल्ली

Tuesday, July 21, 2020

बर्बाद करने से पहले बदनाम किया जाता हैं, अब बारी हैं जाटों और सिखों की

बिपुल कुमार देव, भाजपा नेता व त्रिपुरा मुख्यमंत्री, ने अपने एक बयान में कहा है कि सिखों और जाटों में दिमाग कम होता है। इस भाजपा नेता के इस बयान को गंभीरता से लेने की जरूरत है, क्योंकि शातिर मनुवादी आतंकी ताकतें एकाएक आक्रमण नहीं करती हैं। किसी भी समाज, संगठन या संस्था पर आक्रमण कर उसको बर्बाद करने से पहले उसके खिलाफ एक माहौल बनाया जाता हैं। आम लोगों के बीच में दुष्प्रचार के जरिए एक परसेप्शन तैयार किया जाता है। फिर इस माहौल, परसेप्शन के जरिये एक जनमत तैयार किया जाता है। फिर उसे पूरी तरह से जनसर्थन के साथ बर्बाद किया जाता हैं जैसे कि आज एअरपोर्ट, रेलवे, बीएसएनएल, पीएसयू, बहुजन आरक्षण, मुस्लिम समाज, दलित, आदिवासी, पिछड़े समाज आदि को किया जा रहा हैं। 
सर्वविदित हैं कि जब किसी झूठ को बार-बार कहा जाता है तो पब्लिक उसको सच मान लेती है। इसके बाद जब पब्लिक मनुरोगी आतंकी ताकतों की बातों को सच मान लेती है, तब मनुरोगी आतंकी ताकतों द्वारा अपने टारगेटेड संस्था, समाज या संगठन आदि पर आक्रमण करना व उसको तबाह करना आसान हो जाता है। मनुरोगी आतंकी ताक़तों के जरिये हो रहे इस दमन व नरसंहार में पब्लिक भी उन्हीं के साथ खड़ी हो जाती है। ऐसा करने में बहुजन विरोधी मीडिया का भी बहुत बड़ा हाथ होता है, जो मनुरोगी आतंकी ताक़तों के मंसूबे के मुताबिक कार्य करते हुए उनका सहयोग करती हैं। इस पूरे माजरे जो कुछ उदाहरणों द्वारा आसानी से समझा जा सकता हैं।
उदहारण - (१) आरक्षण को पहले बदनाम किया गया और फिर ख़त्म कर दिया गया। 
उदाहरण के तौर पर अगर देखा जाए तो भारत में बहुजन समाज के समुचित स्वप्रतिनिधित्व और सक्रिय भागीदारी (आरक्षण) पर किसी दल, संगठन, सरकारी संस्थाओं एवं न्यायपालिका में बैठी बहुजन विरोधी ताक़तों ने कभी भी अचानक आक्रमण नहीं किया है। इन सब ने सबसे पहले आरक्षण के खिलाफ एक माहौल बनाया है। माहौल को बनाने के लिए बहुजन विरोधी ताकतों द्वारा गांव के पान की दुकान से लेकर के विश्वविद्यालय, सेमिनार, कार्यालयों, विधानसभा और संसद के पटल पर विमर्श छेड़कर आरक्षण के खिलाफ एक माहौल बनाया गया। इसके बाद आरक्षण के विरोध में इतने सारे लेख लिखे गए और इतना सारा दुष्प्रचार किया गया कि भारत का भोला-भाला आम इंसान इनके बहकावे में आकर आरक्षण के खिलाफ लामबंद हो सामंती ताकतों के साथ खड़ा हो गया। इसके पश्चात जब पब्लिक के बीच में आरक्षण के खिलाफ एक फिरका तैयार हो गया, तब इन सामंती ताकतों ने न्यायपालिका में बैठे बहुजन विरोधियों का सहारा लेकर आरक्षण पर सीधा हमला कर दिया। नतीजा यह हुआ कि आरक्षण कागजों में जिंदा जरूर है लेकिन पूरी तरह से निष्प्रभावी हो चुका है। 
उदहारण - (२) दलितों-आदिवासियों को नक्सली करार कर आसानी से देश की सम्पदा को पूँजीपतियों को सौपी जा रहीं हैं।
सदियों से जंगलों व उसके इर्द-गिर्द रहने वाले दलितों-आदिवासियों से उनकी माटी और जंगल पर उनके हक़ को छीनकर जंगलों में धरती की कोख में दफ़न खनिजों को प्राइवेट हाथों में सौप दिया गया। जब दलितों-आदिवासियों ने अपने हक़ की बात की तो दलितों-आदिवासियों को राष्ट्रनिर्माण की राह में बाधा के रूप में प्रचारित किया गया। इसके बाद देश की जनता ने दलितों-आदिवासियों का दुःख-दर्द, उनके हक़ को समझे बगैर मनुवादियों के दुष्प्रचार को सही मान लिया। परिणामस्वरूप, सत्तासीन मनुरोगी ताक़तों ने बड़ी ही आसानी से दलितों-आदिवासियों को नक्सली घोषित कर दिया। नतीजा, कानूनन, मनुवादी ताक़तों को इन दलित-आदिवासियों को मारने, उनकी बच्चियों के साथ बलात्कार करने व जिन्दा दफ़न करने का हक़ मिल गया। इसी दमन के सहारे बड़ी ही आसानी से जंगलों के खनिजों को पूंजीपतियों के हाथों में सौंप दिया। देश में दलितों-आदिवासियों के मानवाधिकारों के लिए कभी भी किसी कोर्ट, मानवाधिकार आयोग, संगठन और सरकार ने न्यायिक इच्छा के साथ जहमत नहीं उठायी। और, ऐसा इसलिए संभव हो सका क्योकि दलितों-आदिवासियों को आज तक शासन-प्रशासन और सत्ता में समुचित स्वप्रतिनिधित्व व सक्रिय भागीदारी नहीं दिया गया। फिलहाल नक्सली करार देश की एक बड़ी आबादी आज कानूनन ब्राह्मणी ताक़तों के शोषण का शिकार हैं। देश की बाकी जनता ने भी सरकार के इस अधिकार को मान्यता दे ही रखी हैं। यदि कभी कोई इन नक्सलियों की समस्याओं को उठता है तो उस पर नक्सल होने का ठप्पा लगाकर देशद्रोही करार कर सलाखों की काल कोठरी में दफ़न कर दिया जाता हैं। और, ये सिलसिला बदस्तूर आज भी जारी हैं। 
उदहारण - (३) मुसलमानों को बदनाम कर आतंकवादी करार कर दिया गया। 
इसी तरह से मुसलमानों के खिलाफ भी उनके आतंकवादी होने का दुष्प्रचार इन्हीं सामंतवादी मनुवादी ताकतों द्वारा अस्सी के दसक में किया गया है। इसकी वजह ये हैं कि भारत की बड़ी आबादी धर्म के अफीम की आदी हैं। इसको धर्म के नाम पर किसी भी भट्टी में झोका जा सकता हैं। धर्म के नाम पर लोग खुद ही मर मिटने को उतारू रहते हैं। जनता की इसी मूर्खता का फायदा धर्म के ठेकेदारों ने उठाया। और, देश में हिन्दू बनाम मुस्लिम का माहौल तैयार किया। इसी कड़ी में मुस्लिमों को अधिकतर मामलों में फर्जी सबूतों के आधार पर पाकिस्तान से जोड़कर पूरे मुस्लिम समाज को आतंकवादी करार कर दिया गया। जबकि यदि भारत में आंकड़ा निकाला जाए तो आतंकवाद से कभी भी उतने लोग नहीं मरे हैं जितने की जातिवादी ताकतों द्वारा बहुजन समाज के लोगों की हत्या की गई हैं, गैंगरेप किया गया है। हिन्दू धर्म के ठेकेदारों ने मुस्लिम समाज को अत्याचारी करार कर आतंकवाद को राष्ट्रिय मुद्दा बनाया गया, इस पर विमर्श चलाया। लेकिन, इस देश में स्वघोषित बुद्धिजीवी उच्चजातीय समाज ने कभी भी जाति और वर्ण व्यवस्था को राष्ट्रिय मुद्दा नहीं बनाया, जाति के उन्मूलन और जातिवादी आतंकवाद को विमर्श में नहीं आने दिया। जबकि जातिवादी आतंकवाद के सामने पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद कुछ भी नहीं हैं। दुनिया जानती हैं कि जाति, जाति पोषक समाज व मनुरोगी लोग भारत के लिए पाकिस्तान से कई गुना ज्यादा खतरनाक हानि पंहुचा चुके हैं।
उदहारण - (४) बहुजनों को बदनाम कर उनकों अयोग्य करार किया जा रहा हैं। 
ठीक इसी तरह से दलित, आदिवासी और पिछड़े वर्ग के छात्रों को यह कहकर बदनाम किया जाता है कि इनके अंदर कार्य दक्षता नहीं है, क्षमता नहीं हैं, टैलेंट नहीं है, मेरिट नहीं है। इस झूठ को बहुजन विरोधी सामंती जातिवादी ताकतों ने इतना प्रचारित और प्रसारित किया हैं कि खुद बहुजन समाज का एक बड़ा तबका यह मानने लगा कि उनमें दक्षता, क्षमता, टैलेंट, मेरिट  की कमी है। और बहुजन समाज के भोले-भले लोगों के इस भोलेपन का फायदा उठाकर ब्राह्मणी ताक़तों ने बहुजन समाज के बच्चों को "अयोग्य (नॉट फ़ाउण्ड सूटेबल)" करार करके उनकी सीटें खाली छोड़ दी जिसको बाद में सवर्ण छात्रों द्वारा भर दिया जाता हैं। इन सबके बावजूद भी बहुजन खुद को अयोग्य मानकर अपनी आदर्श गुलामी के कर्तव्य को पूरी सिद्द्त से निभा रहा हैं।
उदहारण - (५) बीएसएनएल को बदनाम कर बर्बाद किया गया, इसके बाद पूरे टेलीकॉम सेक्टर को पूँजीपतियों को सौप दिया गया। 
इसका दूसरा उदाहरण टेलीकॉम कंपनियों से आप ले सकते हैं। जैसा कि हम सब जानते हैं कि बीएसएनल भारत की सबसे बड़ी दूरसंचार कंपनी है, जो जहां एक तरफ पूरे देश को एक सूत्र में बांधने का काम करती है तो वहीं दूसरी तरफ लाखों लोगों को रोजगार देती है। इन पब्लिक सेक्टर कंपनियों में आरक्षण की वजह से बहुजन समाज का एक बड़ा तबके जुड़ा हुआ हैं। बहुजन समाज के इस तबके को एकाएक सिस्टम से बाहर तो किया नहीं जा सकता हैं, इसलिए बहुजन विरोधी ताक़तों द्वारा पहले बीएसएनएल को बदनाम किया गया। बीएसएनएल को स्पेक्ट्रम विडिंग में भाग लेने से रोका गया ताकि प्राइवेट सेक्टर की टेलीकॉम कंपनियों को बढ़ावा दिया जा सके। यहीं वजह हैं कि प्राइवेट सेक्टर की कम्पनियां जब फोर-जी की सेवा दे रहीं होती हैं तो बीएसएनएल टू-जी और बहुत मुश्किल से थ्री-जी की सर्विस दे पाती हैं। इसके बाद पूरी प्लॉनिंग से बीएसएनल के खिलाफ दुष्प्रचार शुरू किया कि बीएसएनएल के नेटवर्क बहुत खराब है, बार-बार फोन कट जाता है, बीएसएनएल महंगा है, आदि। 
इस तरह के दुष्प्रचार करके बीएसएनएल को बदनाम किया गया। इसके बाद जनता में बीएसएनएल के खिलाफ एक जनमत तैयार हो गया। इसके बाद सत्ताधारी सामंती मनुवादी ताकतों द्वारा बीएसएनल को बर्बाद कर प्राइवेट सेक्टर की टेलीकॉम कंपनियां जैसे कि जियो आदि को बढ़ावा देने का खुलेआम मौका मिल गया। और, आज देखिये कि बीएसएनएल को हाशिये पर धकेल कर बोझ साबित कर दिया गया हैं। जनता ने भी बीएसएनएल को बोझ मान लिया। नतीजा ये हुआ कि सरकारी वेलफेयर ओरियंटेड बीएसएनएल को गर्त में पहुंचाकर उद्योगघरानों को टेलीकॉम इंडस्ट्री पर एकछत्र कब्ज़ा दे दिया गया। इसी षड्यंत्र के तहत आज रेलवे, एअरपोर्ट, हाइवे, टेलीकॉम, बैंक और अन्य सभी पीएसयू को पहले बदनाम कर फिर उनका निजीकरण किया जा रहा हैं। 
गौर करने वाली बात है कि यदि सरकार एकाएक बीएसएनल को बर्बाद करने पर लगती और प्राइवेट सेक्टर को बढ़ावा दे देती तो पब्लिक में विद्रोह हो जाता। इसलिए मनुवादी सामंती ताकतों द्वारा पहले बीएसएनएल के खिलाफ एक माहौल तैयार किया गया, उसके बाद बीएसएनएल को बर्बाद कर जियो आदि को बढ़ावा दे दिया गया। नतीजा, सामंती ताकतों को बढ़ावा देने वाली उद्योग घरानों की प्राइवेट टेलीकॉम कंपनियां जिओ आदि का विरोध करने के बजाए लाखों लोगों को सरकारी रोजगार देने वाली बीएसएनल को ही बोझ समझ मान लिया।
इस तरह से अगर देखा जाए तो दलित, आदिवासी, पिछड़े समाज को बदनाम करने के बाद मुसलमानों को बदनाम किया गया, बीएसएनएल जैसी सरकारी कंपनियों को बदनाम किया गया, और हाशिये पर धकेल कर पूंजीपतियों को टेलीकॉम का मालिक बना दिया गया। इसके बाद अब मनुवादी षड्यंत्र के तहत जाटों और सिखों को बदनाम किया जा रहा है। इसके पीछे एक रहस्य है। स्पष्ट हैं कि जो सिख समाज है वह हिंदू धर्म से पूरी तरह स्वतंत्र एक अलग धर्म है। लेकिन हिंदूवादी ताकते सिख धर्म को हिंदू धर्म का हिस्सा मान करके उनको अपने में समाहित कर सिख धर्म के वजूद को मिटाना चाहती हैं। जिससे कि उनके हिंदूवादी आतंक को बढ़ावा मिल सके। इसलिए अब सिखों और जाटों के खिलाफ अफवाहें फैला कर आम जनता के दिमाग में ये स्थापित किया जा रहा हैं कि जाट और सिख अयोग्य होते हैं। समय बीतने के साथ-साथ आने वाले समय में दलितों, आदिवासियों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों से नफ़रत करने वाली एक भीड़ जब तैयार हो जाएगी। इसके बाद सिखों और जाटों पर हिन्दू आतंकी ताकते उसी तरह से हमले, बलात्कार और अत्याचार करेंगे जैसा कि दलितों, आदिवासियों, पिछड़ों और मुसलमानों पर किया जा रहा है। 
इसलिए देश के सिख और जाट समाज को यह समझने की जरूरत है कि उनको किसी भी अफवाह के चक्कर में ना पड़कर संविधान और लोकतंत्र में अपनी आस्था बनाए रखें। देश के संवैधानिक और लोकतान्त्रिक मूल्यों को मजबूती से स्थापित करने के लिए बहुजन समाज (दलित आदिवासी, पिछड़ों और कन्वर्टेड मॉयनॉरिटीज) के साथ कंधे से कंधा मिलाकर बहुजन विरोधी मनुवादी सनातनी ताकतों के खिलाफ एकजुट होकर उनको सत्ता से बेदखल कर लोकतान्त्रिक तरीके नेस्तनाबूद करने के लिए बहुजन आन्दोलन का हिस्सा बने।
पहले दलित का दमन हुआ, फिर आदिवासियों का, इसके बाद खुद को क्षत्रिय समझने वाले शूद्रों (पिछड़ों) का। इसके बाद मुसलमानों को आतंकवादी घोषित कर दिया गया। इन सबको जाति और धर्म के नाम पर बांटकर एक-दूसरे के प्रति इनके ज़हन में जहर भरा गया। इसलिए जातिवादी ताक़तों ने इनका अलग-अलग सफलतापूर्वक शोषण किया। परन्तु, ताज्जुब वाली बात यह रहीं हैं कि एक-दूसरे के शोषण और उन पर हो रहे अत्याचार के समय ये सब चुप रहें हैं। जाति का जहर इनमे इस कदर भर दिया गया कि दलितों का पिछड़े वर्ग और मुसलमानों ने भी खूब छक कर शोषण किया हैं, और आज भी कर रहे हैं। हिन्दू-मुस्लिम दंगों में खुद पिछड़ा वर्ग बढ़-चढ़कर ऐसे हिस्सा लेता हैं जैसे कि ओलम्पिक खेलने जा रहे हो। मुस्लिम भी कम नहीं हैं। ये भी पिछड़ों को हिन्दू समझकर, दलितों को अछूत व नीच समझ नफ़रत करता हैं। इस प्रकार ये सब एक दूसरे से जाति, धर्म और छुआछूत के कारण नफ़रत करते रहें, और एक दूसरे के शोषण को देख खुश होते रहें।
हालाँकि, मान्यवर काशीराम साहेब के अथक प्रयासों की वजह से आज दलित, आदिवासी, पिछड़ा और मुस्लिम वर्ग अपने शोषक को पहचान चुका हैं। इनमे बहुजन आन्दोलन और वैचारिकी के प्रति जागरूकता आई हैं। इसी का परिणाम हैं आज भारत में इनकी एक राष्ट्रिय राजनैतिक पहचान हैं। इनकी अपनी राष्ट्रिय राजनैतिक दल (बसपा) हैं। 
फिलहाल, बिपुल कुमार देव के बयानों को गंभीरता से लेते हुए जाट और सिख समुदाय को जितनी जल्दी हो सके अपने नरसंहारक शत्रु को पहचान जाय। वैसे ये ऐतिहासिक सत्य हैं कि जाटों ने दलितों और पिछड़ों पर खुद अत्याचार किया। लेकिन यदि जाट बहुजन आन्दोलन जुड़कर संगठित नहीं हुए तो अब इनकी बारी हैं। यदि जाट और सिख खुद को हिन्दू समझते रहें तो आने समय में इन सबकी वही हालत होगी जो दलितों, आदिवासियों, पिछड़ों और मुस्लिमों की हुई हैं। इस लिए जाटों, सिखों दलितों, आदिवासियों, पिछड़ों और मुस्लिमों को नवाज़ देवबंदी साहब ये पंक्तियाँ याद रखनी चाहिए - 
जलते घर को देखने वालों फूस का छप्पर आपका है,
आपके पीछे तेज़ हवा है आगे मुकद्दर आपका है।
उस के क़त्ल पे मैं भी चुप था मेरा नम्बर अब आया,
मेरे क़त्ल पे आप भी चुप है अगला नम्बर आपका है।
रजनीकान्त इन्द्रा
इतिहास छात्र, इग्नू-नई दिल्ली

Sunday, July 19, 2020

सचेत रहे बहुजन समाज !

बहुजन समाज में जन्मे चमचे और बहुजन आंदोलन, बहुजन वैचारिकी व उद्देश्य से दूर नासमझ व उन्मादी प्रवृति के बहुजन युवा बसपा और बहन जी पर निराधार आरोप लगातार लगाते रहते हैं कि बसपा इस या उस दल की एजेंट है, प्रवक्ता है। जबकि बहन जी स्पष्ट कर चुकी है कि "बीएसपी सही मायने में परमपूज्य बाबासाहेब आंबेडकर के मूवमेंट की प्रवक्ता है। बीएसपी मान्यवर श्री कांशीराम के त्याग और तपस्या की प्रवक्ता है।"  
यदि इसके बावजूद भी बहन जी और बसपा पर इस तरह के निराधार आरोप लगाए जाते हैं तो भी इसमें कोई नई बात नहीं है। क्योंकि जब बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर और मान्यवर कांशीराम साहब भी बहुजन समाज को दिशा निर्देशित करते हुए कदम दर कदम आगे बढ़ रहे थे, तब भी बाबा साहब अंबेडकर और मान्यवर कांशीराम साहब जैसे बहुजन महानायकों पर इस तरह के आरोप लगाए गए थे। इन महानायकों पर आरोप लगाने वाले कोई और नहीं, वहीँ चमचे थे जिनके वैचारिक वंशज आज बहन जी व बसपा पर लगातार निराधार आरोप लगाकर बहन और बसपा को बदनाम करते हुए बहुजन आन्दोलन की राह में अवरोध उत्पन्न कर रहे हैं।
याद रहे, इन्हीं जैसे लोगों या यूं कहें कि इनके पुरखों ने भी बाबा साहब को अंग्रेजों का एजेंट बताया था, हिन्दू धर्म का नाशक बताया था। और इनके पूर्वजों ने ही मान्यवर कांशीराम साहब पर विदेशी फण्ड लेने का आरोप लगाकर उनकों विदेशी एजेंट करार दिया था। इसके पहले इनके पुरखे और आज ये चमचे ब्राह्मणी दलों में ख़ुशीपूर्वक दरी बिछाने में गौरव महसूस कर रहे हैं। ऐसे में यदि आज ये दरी बिछाने वाले लोगों द्वारा बहन जी पर भी किसी भी तरह का निराधार आरोप लगाया जा रहा हैं तो इसमें कोई नई बात नहीं है। बहुजन समाज के शिक्षित व जागरूक लोगों को बहुजन समाज में जन्मे ऐसे चमचों से ना तो डरने की जरूरत है, और ना ही इसकी फिक्र करने की कोई जरूरत है। क्योंकि मान्यवर कांशीराम साहब कहा करते थे कि "हमें अपनी उर्जा किसी दूसरे की लाइन को मिटाने में नहीं, बल्कि अपनी लाइन को बड़ी करने में खर्च करनी चाहिए।"
ऐसे में बहुजन आन्दोलन, बहुजन समाज, संविधान और लोकतंत्र को लेकर चिंतित व सचेत बहुजन समाज के लोगों का फर्ज बनता है कि वे बहुजन समाज में जन्मे चमचों व ब्राह्मणी दलों में बिछाने वाले लोगों की परवाह किये बगैर पूरे हिम्मत और हौसले के साथ भारत महानायिका बहन कुमारी मायावती जी के नेतृत्व में सामाजिक परिवर्तन के बहुजन आंदोलन में अपना विश्वास बनाए रखते हुए, अपना यथासंभव सहयोग करते हुए बहन कुमारी मायावती जी के नेतृत्व में अपनी सरकार स्थापित कर भारत में समतामूलक समाज के सृजन व सम्राट अशोक के भारत की तरफ कदम दर कदम अग्रसर होते चले। इसी में भारत व हम भारत के लोगों की संपूर्ण मुक्ति है।
याद रहें, जिनके पुरखे बाबा साहेब के नाम की दुहाई देकर मान्यवर साहेब को कोसते थे, वे ही आज मान्यवर साहेब के नाम की दुहाई देकर बहन जी को कोस रहें हैं। आने समय इनकी औलादें बहन जी का नाम लेकर अगले सच्चे बहुजन नेतृत्व को कोसेगीं।
रजनीकान्त इन्द्रा
इतिहास छात्र, इग्नू - नई दिल्ली
१९.०७. २०२०

बसपा का उद्देश्य समतामूलक समाज का सृजन करना हैं, किसी का दमन नहीं

कुछ नासमझ उन्मादी बहुजन समाज के लोग चाहते हैं कि बहुजन समाज पार्टी भी ब्राह्मणी दलों की तरह जाति और धर्म के नाम पर उन्माद फैलाने वालों (बहुजन युवाओं आदि) को संरक्षण दे? ऐसे लोगों का मानना हैं कि बसपा में किसी गैर-बहुजन को को हिस्सेदारी ना दी जाय, उन्मादी बहुजन युवाओं को खुलेआम अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक तरीके से जाति और धर्म के नाम पर उत्पात करनी की छूट दी जाय। असंवैधनिक और अलोकतांत्रिक तरीकों के हिमायती ये जोशीले बहुजन युवा अक्सर संविधान व लोकतंत्र की रक्षा के लिए सोशल मिडिया और मंचों पर चीखते रहते हैं। क्या ऐसे बहुजन युवाओं से संविधान और लोकतंत्र के रक्षा की उम्मीद की जा सकती हैं? 
हमारे विचार ये उन्मादी बहुजन युवा बहुजन आन्दोलन, बहुजन वैचारिकी, उसके लक्ष्य से पूरी तरह से दूर हैं, नासमझ हैं। या फिर, ये ब्राह्मणी दलों व संगठनों के हाथ की कठपुतली मात्र हैं, जो बसपा के खिलाफ बहुजन समाज को गुमराह कर बुद्ध-अम्बेडकरी आन्दोलन की वाहक बहन जी और बसपा को कमजोर करने के लिए मोती रकम में ब्राह्मणी दलों व संगठनों द्वारा ख़रीदे गए हैं। ये उन्मादी बहुजन युवा ब्राह्मणवाद को मजबूत करने के लिए ब्राह्मणी दलों व संगठनों द्वारा प्राप्त धन से शान्ति, शिक्षा, समृद्धि प्रतीक बहुजन महानायकों के नाम पर ही हिन्दू आतंकी संगठनों के नक्श-ए-कदम पर सेना और आर्मी बनाकर बहुजन समाज को बहुजन आन्दोलन से दूर करने का प्रयास कर रहे हैं। 
    बहुजन महानायकों के नाम पर सेना, आर्मी व अन्य संगठन चलाने वाले, रजिस्टर्ड बामसेफ और अन्य बहुजन व मूलनिवासी नाम के संगठन मान्यवर काशीराम साहेब के नाम की दुहाई देकर बहन जी को कोसते रहते हैं। ऐसे लोगों को मान्यवर साहेब की ये बात जरूर याद रखनी चाहिए कि "जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी"। यही भारत में सामाजिक व्यवस्था के मद्देनज़र लोकतंत्र की सबसे उपयुक्त परिभाषा हैं। हमारे विचार से बसपा के संदर्भ में, "हर किसी को यह बात स्पष्ट रूप से समझ जानी चाहिए कि बहुजन समाज के हितों का संरक्षण और भारत में समतामूलक समाज की स्थापना ही बसपा, बहुजन आंदोलन, बहुजन वैचारिकी और बहन जी का लक्ष्य है।"
दुखद है कि नासमझ लोग गैर-बहुजनों के दमन को ही बहुजन आंदोलन समझते हैं। क्या गौतम बुद्ध, संत शिरोमणि संत रैदास, कबीर दास, गुरु घासीदास, बिरसा मुंडा, पेरियार, फुले, शाहू, बाबासाहेब डॉक्टर अंबेडकर, मान्यवर कांशीराम साहब की वैचारिकी का उद्देश्य गैर-बहुजनों का दमन है? यदि कोई ऐसा सोचता है तो हमारे विचार से वह नासमझ नहीं, बल्कि खुद ब्राह्मणी रोग से बुरी तरह ग्रसित है।
इसलिए किसी भी जाति, धर्म या तबके के खिलाफ किसी भी तरह की अलोकतांत्रिक, असंवैधानिक और अनैतिक टिप्पणी ना तो बहुजन वैचारिकी का हिस्सा है, ना बहुजन आंदोलन का और ना ही इसके वाहक बसपा का। इसलिए यदि भारत में बहुजन वैचारिकी की वाहक बहन कुमारी मायावती जी और बहुजन समाज पार्टी ब्राह्मणी रोग से ग्रसित बहुजनों के प्रति भी किसी भी ब्राह्मणी कृत्य के लिए किसी भी तरह का सख्त एक्शन लेती हैं तो यह न्याय पूर्ण ही है। ब्राह्मणी कृत्य व सोच वाले लोगों के खिलाफ सख्त कारवाही करते हुए भारत महानायिका बहन जी स्पष्ट करती रहीं हैं कि ब्राह्मणी कृत्य व सोच वाले किसी भी इंसान का बहुजन आन्दोलन, बहुजन वैचारिकी और इसके वाहक बसपा में कोई स्थान नहीं हैं।
इसलिए सकल बहुजन समाज के साथ-साथ गैर-बहुजन समाज को ये याद रखना चाहिए कि, दमन करने वाले कभी मसीहा नहीं बन सकते हैं। और, किसी भी समाज का दमन करके कभी समतामूलक समाज की स्थापना नहीं की जा सकती है। बसपा का उद्देश्य बहुजन समाज में जन्मे महानायकों-महनायिकाओं की वैचारिकी पर चलते हुए भारत में सामाजिक परिवर्तन व आर्थिक मुक्ति के लक्ष्य को प्राप्त कर समतामूलक समाज का सृजन करना हैं।
रजनीकान्त इन्द्रा
इतिहास छात्र, इग्नू - नई दिल्ली
१९.०७. २०२०

Shailja Kant Indra in 12th CBSE



BSP बसपा



Saturday, July 18, 2020

बहन जी व बहुजन समाज का अपमान करती ब्राह्मणी व बहुजन मीडिया

आज भारत की पत्रकारिता रसातल में पहुंच चुकी है। एक तरफ पत्रकार खुलेआम समाज में ढोंग-पाखण्ड को बढ़ावा देता है, तो दूसरी तरफ अफवाह फ़ैलाने व दंगे भड़काने का कार्य कर रहा हैं। इसके इतर, भारत की पत्रकारिता में गिरावट के स्तर का अंदाज़ा इस बात से भी लगाया जा सकता हैं कि ब्राह्मणी रोग से ग्रसित मीडिया तंत्र सरकार से सवाल पूछने के बजाय विपक्ष और जनता से सवाल पूछ रहा हैं। जनता के मुद्दे को उठाने के बजाय जनता को उनके मूल मुद्दों से भटकाने का घिनौना कार्य कर रहा हैं। आज की ब्राह्मणी मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ होने का दावा करते-करते लोकतंत्र को ही ख़त्म करने में हिन्दू आतंकियों का खुलेआम साथ दे रहीं हैं।

फिलहाल, इन सबसे परे भारतीय पत्रकारिता जगत पर ब्राह्मण-सवर्ण समाज के एकछत्र कब्जे के चलते भारत की पत्रकारिता जगत ने कभी भी हाशिए के लोगों को अपने पात्र-पत्रिकाओं व अखबारों में ना तो सम्मान दिया है, ना ही उनके न्याय के लिए कभी आवाज उठाई है। यही वजह रही है कि बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर, मान्यवर कांशीराम साहब जैसे महानायकों ने शोषित-पीड़ित लोगों तक पहुंचने के लिए अपने-अपने समय में काल और परिस्थिति के अनुसार अलग-अलग पत्र-पत्रिकाओं व अख़बारों का संपादन किया है। 

इस कड़ी में पिछड़े वर्ग के एकमात्र रहनुमा और भारत की लोकप्रिय नेता बहन जी तो अपने कार्यकर्ताओं को ही अपना मीडिया कहती हैं। इसकी खास वजह ये हैं कि पत्र-पत्रिकाएँ हो, अख़बार हो या फिर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, इस सबके तीन ही मुद्दे हैं। एक, ब्राह्मणवाद को मजबूत करना। दो, मुनाफा कमाना। तीन, अपने इन दोनों उद्देश्यों की पूर्ती के लिए राजनैतिक सत्ता पर ब्राह्मणी मानसिकता वाले लोगों को सत्तासीन करना। 

इस प्रकार, मीडिया जनता की आवाज बनने के बजाय मुट्ठीभर ब्राह्मणों-सवर्णों की गुलाम बनकर रह गयी हैं। ऐसे में, मजलूमों के शोषणकर्ताओं की निजी मिलकियत बनी मिडिया से मजलूमों, वंचितों और पिछड़ों के मुद्दों को उठाने की उम्मीद करना बहुजनों के लिए आत्मघाती ही होगा। 

यहीं नहीं, ये लोग अक्सर बहन जी की बातों को तोड़-मरोड़कर पेश करते हुए जनता को गुमराह करने का पूरा प्रयास करते हैं। यहीं वजह हैं बहन जी किसी टेलीविजन चैनल पर अपने प्रवक्ता आदि नहीं भेजती हैं। पार्टी की तरफ से बहन जी का ही बयान आता हैं, वो भी लिखित बयान। कोशिस यहीं होती हैं कि जनता तक सही सन्देश पंहुचें ताकि जनता गुमराह ना हो। यहीं वजह हैं कि अपने लिखित बयानों के साथ-साथ बहन जी को सिर्फ और सिर्फ अपने बुद्ध-फुले-शाहू-अम्बेडकरी मिशन के साथियों पर ही भरोसा हैं। इसलिए बुद्ध-फुले-शाहू-अम्बेडकरी मिशन में मशहूर कहावत हैं कि बहन जी और बसपा के कार्यकर्ता ही बहन जी और बसपा के सच्चे मीडिया हैं।

फिलहाल, मुख मीडिया जगत (मुख से जन्मे समाज की गुलाम मिडिया) ने ना ही बाबा साहब जैसे महानायक को कभी तरजीह दिया है, और ना ही मान्यवर कांशीराम साहब व बहन जी के प्रति कभी सम्मानजनक व्यवहार किया है। इसका ताजा उदहारण अभी भाजपा शासित मध्य प्रदेश के गुना जिले में दलित परिवार पर पुलिस और प्रशासन के अधिकारियों द्वारा किए गए वहशी दरिंदगी के खिलाफ जब भारत में सामाजिक परिवर्तन की महानायिका बहन कुमारी मायावती जी ने सरकार से सवाल किया तो १६ जुलाई २०२० को विधान केसरी ने लिखा कि "गुना में दलित परिवार पर हिंसा मामले में भड़की मायावती"; पंजाब केसरी लिखता हैं कि "गुना दलित पिटाई काण्ड पर भड़की मायावती"; नवभारत टाइम्स लिखता हैं कि "दलित किसान की पिटाई, शिवराज ने राहुल को लपेटा, मायावती दोनों पर भड़की"; दैनिक भास्कर लिखता हैं कि "गुना किसान काण्ड : शिवराज सरकार पर भड़की मायावती", भारत रिपब्लिक वर्ल्ड लिखता हैं कि "गुना की घटना पर भड़की मायावती"; सच न्यूज ने भी लिखा कि "गुना  परिवार पर हिंसा मामले में भड़की मायावती। हमने यहाँ इतने सारे अख़बारों व वेब पोर्टल के चरित्र को बेनक़ाब किया। यदि आप पुराने अख़बारों, पत्र-पत्रिकाओं को खगांले तो ये लिस्ट और भी लंबी हो जाएगी। 

फिलहाल ब्राह्मणी मीडिया तंत्र द्वारा इसके पहले भी बहन जी के संदर्भ में इस तरह की शब्दावली का प्रयोग किया जाता रहा हैं। सच तो यह हैं कि मीडिया जगत में अपमान जनक शब्दों का इज़ाद ही बाबा साहेब, मान्यवर काशीराम साहेब और पिछड़े वर्ग की बुलन्द आवाज़ बहन जी जैसी शख्सियत को अपमानित करने के लिए ही किया गया हैं। क्या आप ने ऐसे अभद्र शब्दों का इस्तेमाल किसी ब्राह्मणी महिला राजनेता के खिलाफ पढ़ा या सुना हैं? 

भारत जानता हैं कि हिंदी पट्टी में भड़कीभड़का जैसे शब्द का इस्तेमाल मवेशियों व अन्य जानवरों के लिए किया जाता है। यहां पर गौर करने वाली बात यह है कि ऐसी शब्दावली का प्रयोग भारत महानायिका बहन कुमारी मायावती जी के लिए किस निगाह से और क्यों किया जा रहा है? क्या इसी तरह की शब्दावली का प्रयोग ब्राह्मण सवर्ण समाज से आने वाले महिला राजनेताओं के लिए भी किया जाता है? स्पष्ट है कि इसका जवाब नकारात्मक है। 

ऐसे में एक शिक्षित व जागरूक इंसान के जहन में ये सवाल लाज़मी हैं कि बहन जी के लिए मीडिया अभद्र शब्दों का प्रयोग क्यों करता रहता हैं? फिलहाल स्पष्ट हैं कि बहन जी के प्रति इस तरह का अपमानजनक शब्दावली का प्रयोग भारतीय मीडिया तंत्र में एकछत्र राज कर रहे वंचित आदिवासी और पिछड़े बहुजन समाज से नफरत करने वाले लोगों की ओछी मानसिकता दर्शाती है।

इससे भी दुखद और शर्मनाक बात यह है कि बहुजन हलचल नाम के यूट्यूब चैनल ने भी बहन जी के लिए अपमानजनक टिप्पणी का प्रयोग किया है। गुना जिले में दलित परिवार पर पुलिस और प्रशासन के अधिकारियों द्वारा किए गए वहशी दरिंदगी के खिलाफ जब भारत में सामाजिक परिवर्तन की महानायिका बहन कुमारी मायावती जी ने सरकार से सवाल किया तो १६ जुलाई २०२० को बहुजन हलचल यूट्यूब चैनल कहता है कि "म.प्र. पुलिस का दलित माँ बेटे पर कहर! MAYAWATI ने उगला BJP कांग्रेस पर जहर"

यहां पर सवाल यह उठता है कि यह बहुजन चैनल खुद को बहुजन हितैषी होने का दावा करता है लेकिन जब बहुजन समाज के ऊपर हो रहे अत्याचार के खिलाफ भारत महानायिका बहन कुमारी मायावती जी भाजपा सरकार से सवाल करती हैं तो इस बहुजन हलचल यूट्यूब चैनल वाले को जहर लगता है। इसका मतलब तो यहीं हैं कि इस बहुजन चैनल को भी आरएसएस-बीजेपी और कांग्रेस से कुछ पारितोषिक मिल गया होगा। इस बहुजन यूट्यूब चैनल का यह बर्ताव बहुजन समाज में पैदा हो चुके बुद्धिहीन स्वघोषित पत्रकारों की मूर्खता व ब्राह्मणी रोग से संक्रमण को व्यक्त करता हैं।

बाबा साहेब, बुद्ध-अम्बेडकरी मिशन और बहुजन मुद्दों और हितों का दावा करने वाले तमाम यूट्यूब चैनल के एंकर बिना किसी अध्ययन के मोबाइल उठाकर पत्रकार बन गए हैं। इन बहुजन यूट्यूबर पत्रकारों को ना तो बाबा साहेब के बारे में कोई खास जानकारी हैं, और ना ही उनके मिशन के बारे में कोई अध्ययन हैं। परिणामस्वरूप, ये बहुजन यूट्यूबर पत्रकार मान्यवर काशीराम साहेब, बहन जी, बामसेफ, डीएस-4 और बसपा को समझ ही नहीं पाए हैं। इसका नतीजा यह हुआ कि अपनी इस मूर्खता व अज्ञानता की वजह से ये बहुजन यूट्यूबर पत्रकार अक्सर बहन जी और बसपा के खिलाफ ही बयानबाजी करते रहते हैं, परिस्थितियों को समझे बगैर बसपा और बहन जी की नीतियों पर ही उंगुली उठाते रहते हैं। 

बहुजन यूट्यूबर पत्रकारों द्वारा ऐसा करने की दूसरी वजह ये हैं कि ये यूट्यूब चैनल इनकी जीविका का साधन हैं, इसके लिए इनकों अधिकतम लाइक्स व कॉमेंट्स चाहिए। बहुजन आंदोलन का नाम लेकर ये बहुजन यूट्यूबर पत्रकार अपने लाइक्स व कॉमेंट्स को बढ़ाने के लिए बहुजन समाज में जन्मे चमचों व गुंडों तक को हीरो बनाकर प्रमोट करने से कोई परहेज नहीं करते हैं। इन ब्राह्मणी चमचों-गुंडों और उनके ब्राह्मणी आकाओं द्वारा इन बहुजन यूट्यूबर पत्रकारों कों दो-चार हजार रूपये मिल जाते हैं। इन दो-चार हजार रुपयों के चक्कर में ये बहुजन यूट्यूबर पत्रकार बहुजन आन्दोलन और इसके नेतृत्व को ब्राह्मणी मीडिया से पहले ही ना सिर्फ बदनाम करना शुरू कर देते हैं बल्कि सफलतापूर्वक भोले-भाले बहुजन युवाओं व अन्य को गुमराह करने में सफल भी हो जाते हैं। 

सर्विदित हैं की बहुजन समाज ये बखूबी समझाता हैं कि ब्राह्मणी मीडिया बहुजन आन्दोलन और बहन जी के विरूद्ध आग ही उगलेगा। परन्तु, यहीं आग जब बहुजन समाज में जन्मे चमचों-गुण्डों और उनके ब्राह्मणी आकाओं से चंद रुपयों के लिए बहुजन यूट्यूबर पत्रकार उगलने लगता हैं तो बहुजन समाज कन्फ्यूज हो जाता हैं। परिणामस्वरूप, ऐसा करने से इन बहुजन यूट्यूबर पत्रकारों को शाम के चिकन-मटन व व्हिस्की की व्यवस्था जरूर हो जाती हैं लेकिन इनके इन हरकतों द्वारा बहुजन आन्दोलन, बहुजन समाज की एकमात्र राष्ट्रीय पार्टी (बसपा) और सकल बहुजन समाज की एकमात्र नेत्री बहन जी के प्रति जनता में संदेह उत्पन्न कर बहुजन समाज को गुमराह हो जाता हैं।ऐसी मूर्खतापूर्ण और ओछी हरकतें करने बावजूद भी ये बहुजन यूट्यूबर पत्रकार कहते हैं कि मिशन ख़त्म हो गया हैं, बसपा ख़त्म हो गयी हैं। 

इन बहुजन यूट्यूबर पत्रकारों की ओछी हरकतों के मद्देनज़र कोई भी जागरूक बहुजन इसी निर्णय पर पहुंचेगा कि ये बहुजन यूट्यूबर पत्रकार ब्राह्मणी मीडिया से भी ज्यादा खतरनाक हैं। क्योंकि बहुजन समाज जानता हैं कि ब्राह्मणी मीडिया उसकी दुश्मन हैं, इसलिए बहुजन उस पर विश्वास नहीं करता हैं। परन्तु, बहुजन यूट्यूबर पत्रकार तो बहुजन समाज में ही जन्मे चमचे हैं जिनकों भोला-भाला बहुजन पहचान नहीं पाता हैं, और गुमराह हो जाता हैं। 

यदि आप बहुजन यूट्यूब चैनल्स का अध्ययन करे तो आप पायेगें कि बहुजनों के बीच में आरएसएस-बीजेपी-आप-कांग्रेस आदि का प्रचार ब्राह्मणी मीडिया से ज्यादा बहुजन यूट्यूब चैनल्स ने किया हैं। इसकी वजह, इनकी मूर्खता, अध्ययन का आभाव,  लाइक्स व कॉमेंट्स की बेपनाह भूख हैं। ये बहुजन यूट्यूबर पत्रकार मान्यवर काशीराम साहेब की ये बात आज तक नहीं समझ पाए हैं कि नकारात्मक प्रचार भी प्रचार होता हैं।
साथ ही यदि आप बहुजन समाज में जन्मे स्वार्थी व ओछे चरित्र के कुछ नमूनों पर गौर करे तो पायेगें कि ब्राह्मणी मानसिकता के चलते ये लोग भी भारत महानायिका का अपमान करने से नहीं चूकते हैं। ओछी मानसिकता के ये बहुजन, खासकर युवा, भारत महानायिका बहन जी को बुआ कहकर सम्बोधित करते हैं। इनकी इन हरकतों की वजह से विरोधी भी बहन जी बुआ कहकर उनका अपमान करने से नहीं चूकते हैं। बहन जी को बुआ कहने वाले ओछी मानसिकता वाले बहुजनों ने क्या कभी सोचा हैं कि हर स्तर पर विरोध के बावजूद भी ब्राह्मण-सवर्ण समाज ने कभी भी बंगाल की दीदी (ममता बनर्जी) को आंटी क्यों नहीं कहा हैं? यदि ब्राह्मण-सवर्ण समाज अपने ब्राह्मण महिला नेता को दीदी के बजाय “आंटी” नहीं कह सकता हैं तो जाहिल बहुजन युवाओं ने बहन जी को बुआ क्यों कहा? लोक महानायिका बहन जी को बुआ कहने वाले जाहिलों को ये कब मालूम होगा कि आपके नेता का अपमान खुद आपके समाज का अपमान हैं। जो बहुजन जाहिल लोग बहुजन आन्दोलन के नेतृत्व बहन जी का अपमान करते हैं उनसे समाज के हित की उम्मीद कैसे कर सकते हो? बहन जी को बुआ कहने वाले वही ओछे लोग हैं जिनके पुरखों ने कभी बाबा साहेब और मान्यवर साहेब का विरोध किया था। ये जाहिल कोई और नहीं कांग्रेस-भाजपा-आप-सपा-कम्युनिस्ट आदी ब्राह्मणी राजनैतिक दलों में दरी बिछाने वाले गाँधी के हरिजन ही हैं। इन हरिजनों से बहुजन आन्दोलन और बुद्ध-फुले-शाहू-अम्बेडकरी मिशन को आज तक सिर्फ और सिर्फ नुक्सान ही हुआ हैं, और आगे भी ये गाँधी के हरिजन नुक्सान ही करेगें। 
कुल मिलाकर महत्वपूर्ण सवाल ये है कि चाहे कोई मीडिया तंत्र से हो, कोई राजनेता हो या फिर कोई अन्य ब्राह्मणी रोग से संक्रमित व्यक्ति हो, वह हमेशा बहुजन समाज की एकमात्र राष्ट्रीय नेता बहन जी के खिलाफ अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल करता रहता है। और, इस देश का बहुजन समाज इन शब्दों का इतना आदी हो चुका है कि उसको इस बात का इल्म ही नहीं है कि ब्राह्मण-सवर्ण मीडिया तंत्र उनके नेता की आवाज उन तक पहुंचा रहा है या फिर उनकी बातों को तोड़ मरोड़ कर उनके सामने पेश करने के साथ-साथ उनके नेता के लिए अभद्र भाषा का प्रयोग करते हुए उनको अपमानित भी कर रहा है।

तमाम बहुजन समाज के हितैषी होने का दावा करने वाले बुद्धिजीवी जो अक्सर फेसबुक और ट्विटर पर ट्रेड चलाते रहते हैं। क्या उन्होंने कभी भारत की एकमात्र राष्ट्रीय नेता बहन कुमारी मायावती जी के लिए जो अपमान जनक शब्दावली का लगातार इस्तेमाल किया जा रहा है, उसके खिलाफ कभी कोई फेसबुक-ट्विटर पर ट्रेंड चलाया है? क्या कभी इन स्वघोषित बुद्धिजीवियों ने मीडिया तंत्र से सवाल किया है? यदि नहीं तो क्यों? ऐसे सोशल मीडया चैम्पियनों की निष्ठा, ईमानदारी और मानवीयता पूरी तरह से संदेहास्पद हैं।

इस सब पर गौर करने के पश्चात् ये बात स्पष्ट हो जाती हैं कि बहुजन समाज में जागरूकता जरूर आई है। लेकिन अपने मुद्दे और अपने नेतृत्व व समाज के मान-सम्मान के संदर्भ में वह जागरूकता आज भी नहीं आ पाई है कि वह ब्राह्मणी तंत्र व लाइक्स व कॉमेंट्स के भूखे बहुजन यूट्यूबर पत्रकारों द्वारा बहुजन आन्दोलन, बहुजन नेतृत्व व बहुजन समाज के अपमान को पहचान सके। फिलहाल ब्राह्मणी मीडिया तंत्र व लाइक्स व कॉमेंट्स के भूखे बहुजन यूट्यूबर पत्रकारों द्वारा बहन जी व बहुजन समाज के लिए  अपमानजनक शब्दों के इस्तेमाल की हम कड़े शब्दों में विरोध करते हुए सकल बहुजन समाज से अपील करते हैं कि वह अपने एकमात्र राष्ट्रीय बहुजन नेत्री व भारत की सर्वप्रिय महानायिका बहन कुमारी मायावती जी के इस अपमान के खिलाफ आवाज बुलंद करें ताकि भविष्य में कोई किसी भी समाज या उसके नेतृत्व के खिलाफ इस तरह की अपमानजनक टिप्पणी करने की जुर्रत ना कर सके।

याद रहें, बहुजन समाज की एकमात्र राष्ट्रिय नेता और बहुजन महानायकों-महनायिकाओं के वैचारिकी की वाहक बहन जी का अपमान सकल बहुजन समाज का अपमान हैं।

रजनीकान्त इन्द्रा

इतिहास छात्र, इग्नू - नई दिल्ली

१८.०७. २०२०