Sunday, June 20, 2021

शोषितों को अपने नेतृत्व, वैचारिकी व आंदोलन का सम्मान करना सीखने की जरूरत है।

कुछ लोग सर्वजन और श्री सतीश चन्द्र मिश्रा के नाम पर बहुजन समाज को बरगलाने का काम कर रहे हैं। और इसे मुद्दा बनाकर परम आदरणीय बहनजी पर आरोप लगाते हुए उनकी बहन जी ने मिशन को खत्म कर दिया है, परंतु ऐसे लोगों को आत्ममंथन करते हुए यह सोचना चाहिए कि क्या वह लोग अपने नायकों एवं नायिकाओं को एक फिरके विशेष तक ही सीमित रखना चाहते हैं या फिर उनके दूरदृष्टि, राष्ट्र निर्माण में योगदान और मानवता के लिए किए गए संघर्षों, उनके संदेशों को भी स्वीकार करेंगे?

ऐसे लोग अपने नायकों एवं नायिकाओं को अपने फिरके तक ही सीमित क्यों रखना चाहते हैं? ऐसे लोगों को यह भी सोचना चाहिए कि भारत में 3% ब्राह्मण समाज में पैदा हुआ नेता अपने आप को पूरे देश का नेता बताता है, और उसका 3 फीसदी समाज भी यह पैरवी करता है कि उसके समाज में जन्मा नेता सिर्फ उसके समाज का नहीं बल्कि पूरे देश का नेता है, राष्ट्रीय नेता है।

हमारी आबादी 85 फीसदी है। फिर भी हमारे समाज के लोग अपने नायकों-नायिकाओं को एक जाति विशेष तक ही क्यों सीमित रखना चाहते हैं? यदि 3 फीसदी ब्रह्मण समाज का नेतृत्व करने वाला नेता राष्ट्रीय नेता है, और उसे सर्वसमाज का नेता कहा जाता है तो फिर 85 फ़ीसदी आबादी का प्रतिनिधित्व करने वाली परम आदरणीया बहन जी को दलित, पिछड़े, आदिवासी और अल्पसंख्यक समाज के लोग बहनजी को सिर्फ दलित का नेता क्यों बताते हैं?

यदि आप अपने महानायकों-महानायकाकाओं को अपनी जाति विशेष तक ही रखना चाहते हैं तो यह आपके महानायकों एवं महानायिकाओं, उनके संघर्षों, उनके गौरव गाथाओं, आपके इतिहास और आपकी सांस्कृतिक विरासत का सबसे बड़ा अपमान है।

सोचने का विषय है कि यदि 3 फ़ीसदी वाला देश का नेता हो सकता है तो 85 फ़ीसदी आबादी का नेतृत्व करने वाली परम आदरणीय बहन जी को राष्ट्रीय नेता मानने से लोग इंकार क्यों करते रहते हैं?

फिलहाल, इसकी एकमात्र वजह ऐसे लोगों के मन में घोर जातिवादी मानसिकता का वास है जो कि शूद्रों में भी मौजूद हैं? यही वजह है कि मान्यवर साहब कहते हैं कि भारत की जाति व्यवस्था से जो समाज (अनूसूचित जाति) सबसे ज्यादा प्रताड़ित है, उसका भी वह (शूद्र समाज के) लोग नहीं देना चाहते हैं जो जाति व्यवस्था के प्रताड़ित तो है परन्तु अनूसूचित जाति से थोड़ा सा कम प्रताड़ित है।

कुछ लोगों का मानना हैं कि यह सब अफवाह मनुवादी लोग और उनकी मीडिया करती हैं। मनुवादी मीडिया अपनी विचारधारा व संस्कृति के अनुसार अपना कार्य कर रहीं हैं लेकिन बहुजन समाज के तथाकथित बुद्धिजीवी खुद अपने नायकों एवं नायिकाओं के कद को संकुचित क्यों कर रहें हैं? आज यूट्वूब पर कुछ प्रोफ़ेसर लोग पत्रकारिता करते फिर रहे हैं। 

ये अपने विश्ववद्यालय में कितने बच्चों को सहयोग किया हैं, कितनों को पीएचडी में मदद की हैं, वंचित जगत के छात्रों का कितना सहयोग किया हैं, इसका जिक्र करने के बजाय पत्रकारिता कर रहे हैं। डिबेट में उनकों बुलाते हैं जिनकों अनैतिकता व अनुशासनहीनता के कारण या तो मान्यवर साहेब ने ही पार्टी से निकल दिया था या फिर बहनजी ने निकल दिया हैं। आज भारत के राष्ट्रिय फलक पर बहनजी एकमात्र नेता हैं जो बहुजन समाज की आवाज को बुलंद कर रहीं हैं परन्तु मनुवादी दलों से मिलकर स्वार्थपूर्ति के लिए यह लोग आज बहनजी को बाबासाहेब और मान्यवर साहेब का शत्रु साबित करने पर तुले हैं और जगजीवन जैसे गाँधीवादी लोगों को बाबासाहेब का परम मित्र।

मान्यवर काशीराम साहेब बीसवीं सदी के आठवें व नौवें दशक के संघर्ष के दौरान के अनुभव को याद करते हुए कहते हैं कि "उत्तर प्रदेश में मैंने देखा कि जो अधिकारी हैं, आईएएस हैं, आईपीएस हैं, इनका धंधा हैं कि वो हमारा विरोध करे।" यहीं चलन आज भी जारी हैं बसपा और बहनजी के खिलाफ सारा माहौल मनुवादी लोग कम उससे ज्यादा दलित-बहुजन समाज के सरकारी-नौकरीपेशा लोग कर रहें हैं। इसीलिए मान्यवर साहेब कहते हैं कि हमारे समाज के लोग मनुवादियों के ,चमचे भी नहीं बन पाये बल्कि मनुवादियों के चमचों के चमचे बनकर रह गए हैं। यहीं कारण हैं कि कुछ अपवादों को छोड़कर इन अधिकारी वर्गों ने ही बहुजन आन्दोलन को सबसे ज्यादा नुकसान किया हैं, और आज भी कर रहे हैं।

बहुजन आन्दोलन की वाहक बसपा के खिलाफ दुष्प्रचार करने वाले लोगों को सोचने की जरूरत हैं कि आज जब बहुजन समाज की राष्ट्रीय अस्मिता कायम हो चुकी है, ऐसे दौर में भी दुख इस बात का है कि दलित, आदिवासी, पिछड़े और अल्पसंख्यक समाज के लोग भी इन समाजों में जन्मे महानायकों एवं महानायिकाओं को खुद भी सिर्फ अपनी जाति विशेष तक ही सीमित रखना चाहते हैं, जबकि बहुजन समाज में जन्मे सभी महानायकों-महानायिकाओं, चाहे वह तथागत गौतम बुद्ध रहे हो, चाहे रैदास रहे हो, चाहे कबीर रहे हो, फुले शाहूजी, पेरियार, नारायणा गुरु, गाडगे, बाबासाहेब, मान्यवर साहब रहे हों या फिर आज सर्वसमाज का प्रतिनिधित्व करने वाली परम आदरणीया बहन जी है, यह सब भारत में समतामूलक समाज का निर्माण कर एक समतावादी भारत बनाना चाहते हैं, परंतु बहुजन समाज के लोग खुद अपने इन महानायकों एवं महानायिकाओं को अपनी जाति विशेष तक ही सीमित रखना चाहते हैं। यह लोग खुद उन्हें राष्ट्रीय नेता या देश का नेता या फिर सर्वसमाज का नेता मानने से इनकार करते रहते हैं।

ऐसा करके यह लोग ना सिर्फ अपनी सामाजिक, राजनीतिक एवं सांस्कृतिक धरोहर को नुकसान पहुंचा रहे हैं बल्कि आने वाली पीढ़ियों का भी बहुत बड़ा नुकसान कर रहे हैं।

फिलहाल, सर्वजन का नारा देने तथा सर्व समाज को बहुजन समाज पार्टी में स्थान देने की वजह से खुद दलित, पिछड़े, अल्पसंख्यक एवं आदिवासी समाज के लोग आज परम आदरणीय बहन जी का विरोध कर रहे हैं। और, उन पर मिथ्या आरोप लगा रहे हैं कि उन्होंने मिशन को खत्म कर दिया है। परंतु, ऐसे लोगों को अपने आप से कुछ सवाल पूछना चाहिए कि बहुजन समाज पर अत्याचार तो फुले के पहले और उनके समय में भी था, जो कि 1848 से लेकर अब तक जारी है।

हां, कारण में कुछ बदलाव है जो पहले से तय है, क्योंकि ये संक्रमण काल है। सामाजिक कारणों से जो अत्याचार हुए पिछले तीन दशकों से, जब से हम सत्ता में आयें हैं, गिरावट आई है। परन्तु, सामांती सोच एकाएक नहीं बदल सकता है। इसलिए सामांती सोच वाले अब बहुजन समाज पर इसलिए अत्याचार कर रहे हैं क्योंकि अब हम हर क्षेत्र में उनकी बराबरी कर रहे हैं।

कहने का मतलब है कि पहले हम पर होने वाले अत्याचार की वजह यह थी कि हम उन पर निर्भर थे, हम उनके गुलाम थे। परंतु आज अत्याचार इसलिए हो रहा है क्योंकि हम संविधान में निहित अधिकारों की वजह से उनकी बराबरी कर उनके सामांती वर्चस्व को चुनौती दे रहे हैं। और, इसका कारण हमारी राजनीति का परवान चढ़ना है, बुद्ध, फूले, शाहू, अंबेडकर के वैचारिकी पर आधारित समतवादी आंदोलन का सतत् आगे बढ़ना है, जिसमें मान्यवर के साथ परम आदरणीया बहन जी का प्रमुख योगदान है।

ऐसे में मिशन को नुकसान कहां हुआ है? यदि बहनजी ने सर्वजन कह कर नुकसान किया है तो क्या बुद्ध रैदास कबीर फूले साहू अंबेडकर काशीराम सिर्फ बहुजन का कल्याण चाहते थे?

क्या भारत के एक हिस्से से नफरत करके सिर्फ बहुजन-बहुजन करने से बेगमपुरा और अशोक का भारत बन सकता है?

यदि सवर्णों ने आपको बहिष्कृत व नफरत कर ग़ैर-बराबरी का बर्ताव किया तो क्या आप उनसे गैर-बराबरी व नफ़रत का बर्ताव कर समता को स्थापित कर सकते हैं?

बुद्ध करूणा व समता की बात करते हैं तो उनके नाम पर लोगों को नफ़रत और गैर-बराबरी क्यों सिखाया जा रहा है?

क्या रात-दिन ब्राह्मणों-सवर्णों को कोसना ही आंदोलन है? लोगों को समझना पड़ेगा कि इतिहास में हमारे साथ जो अत्याचार हुआ है उस अत्याचार से सीख लेते हुए भारत की गैर-बराबरी वाली व्यवस्था को हमेशा के लिए दफन करके, बराबरी वाली व्यवस्था को स्थापित करना होगा।

बराबरी वाली व्यवस्था सिर्फ किसी को कोसने मात्र से नहीं आएगी, बल्कि बहुजन समाज में जन्मे तमाम संतो गुरुओं महानायक एवं महानायिकाओं की विचारधारा, उनके संदेशों, उनके संघर्षों व गौरव गाथाओं को अपने जीवन में उतार कर उनकी वैचारिकी को एक पुंज में पिरोकर हकीकत की सरजमी पर लागू करने से भारत में समता मूलक समाज का सृजन किया जा सकता है।

परंतु दुखद है कि लोग सिर्फ इतिहास में हुए अत्याचारों पर चर्चा करते आ रहे हैं लेकिन उन अत्याचारों से निजात पाने के लिए बराबरी वाले समाज की स्थापना कैसे की जाए, इस पर लोग अपना समय और ऊर्जा लगाने के बजाय अपने विरोधी की संस्कृति को चर्चा के केंद्र में स्थापित कर गैर-बराबरी की संस्कृति को और मजबूत कर रहे हैं।

शोषितों को भारत की सामाजिक व्यवस्था व राजनीति के समीकरणों को समझने के साथ-साथ यह भी समझना होगा कि इनको यदि श्री सतीश चन्द्र मिश्रा और ब्राह्मणों को भागीदारी देने से किसी को नाराजगी क्यों होती हैं ?

ऐसे लोगों को मालूम होना चाहिए कि मान्यवर कांशीराम ने कहा था कि जब हम हुक्मरान बनेंगे तो हम समतामूलक समाज का निर्माण करेंगे, लोकतंत्र को मजबूत करेंगे, और संविधान को लागू करेंगे।

लोकतंत्र व संविधान की भावना यह कहती हैं कि जिस समाज के जितनी संख्या है उसको उसी अनुपात में उतनी भागीदारी मिलनी चाहिए। तो क्या आप यह समझते हैं कि ब्राह्मण लोग इस देश के नागरिक नहीं है? क्या आप उनको भागीदारी नहीं देना चाहते हैं? इतिहास में उन्होंने आपको भागीदारी नहीं दिया तो क्या आप उनकी भागीदारी को खत्म कर देंगे? यदि आप ऐसा करेंगे तो क्या यह संविधान के साथ-साथ लोकतंत्र की भावना के खिलाफ नहीं है ? और ऐसा करके क्या आप कभी भी समतामूलक समाज की स्थापना कर सकते हैं?

यदि बहन जी ने श्री सतीश चन्द्र मिश्रा को पार्टी में स्थान देकर मिशन को नुकसान पहुंचाया है तो आप बताइए कि जब बाबासाहब ने महाराष्ट्र में समता समाज संघ बनाया था तो कट्टर ब्राह्मण बाल गंगाधर तिलक के बड़े बेटे श्रीधर को समता समाज संघ अध्यक्ष क्यों बनाया था?  यदि ब्राह्मण को शामिल करने से मिशन खत्म हो जाता है तो यह मान लिया जाना चाहिए कि बाबासाहब द्वारा समता समाज संघ का अध्यक्ष एक ब्राह्मण को बनाने के समय मिशन लगभग खत्म हो गया था लेकिन क्या यह सत्य है?

इसलिए हमारा स्पष्ट मानना है कि बहुजन समाज के लोगों को अपनी सोच में बदलाव लाना होगा, और बदलते दौर और बहुजन आंदोलन के बढ़ते कदमों के नए आयामों, समीकरणों एवं भारत भविष्य निर्धारण के लिए आवश्यक मूल्यों को समझते हुए भारत में समतामूलक समाज की स्थापना के लिए संघर्षरत भारत महानायिका परम आदरणीया बहन कुमारी मायावती जी द्वारा किए जा रहे समतामूलक भारत निर्माण में अपना योगदान देना चाहिए।

रजनीकान्त इन्द्रा

Saturday, June 12, 2021

बसपा-शिअद गठबंधन तय करेगा पंजाब की सियासत

भारत की तीसरी सबसे बड़ी राष्ट्रीय पार्टी बहुजन समाज पार्टी और पंजाब के क्षेत्रीय दलों की सबसे बड़ी पार्टी शिरोमणि अकाली दल ने आपसी समझौते के तहत 2022 में होने वाले चुनावों में गठबंधन कर भाग लेने का निर्णय लिया है। बसपा दल के साथ समझौते के बजाय जन के साथ समझौता करने को हमेशा प्राथमिकता देती है। इसलिए बसपा का किसी भी दल के साथ प्री पोल एलायंस भारत के लिए एक महत्वपूर्ण खबर है।

हालांकि यह भी सच है कि देशहित व जनहित में, खासकर देश के वंचित जगत किसानों पिछड़ों आदिवासियों और अल्पसंख्यकों की समस्याओं के मद्देनजर, जब-जब जरूरत महसूस हुई है बसपा ने गैर-बराबरी की संस्कृति के पोषक राजनैतिक दलों के अत्याचारों से देश को बचाने के लिए गठबंधन भी किया है।

पंजाब की कांग्रेस सरकार तथा केंद्र की भाजपा सरकार द्वारा पंजाब के किसानों पर हुए अत्याचार के मद्देनजर ज्यादा महत्वपूर्ण माना जा रहा है।

यह गठबंधन इसलिए भी महत्वपूर्ण माना जाता है कि शिरोमणि अकाली दल सिखों की अपनी एक पार्टी है और सिख भारत के अल्पसंख्यकों में शामिल हैं। कहने का मतलब यह है कि बहुजन समाज पार्टी अपने दल में अकलियत समाज को व उनके हितों को प्राथमिकता देती है और "बहुजन" शब्द के दायरे में सिखों समेत पूरा अल्पसंख्यक समुदाय शामिल है। इसलिए यह गठबंधन सैद्धांतिक नजरिए से भी बेहतरीन कदम है।

यह गठबंधन पंजाब में कांग्रेस, भाजपा और वहां पर अपनी पकड़ बनाने की जद्दोजहद कर रही आम आदमी पार्टी के लिए ज्यादा महत्वपूर्ण है क्योंकि यह गठबंधन यदि सफल रहा तो आने वाले समय में पंजाब से कांग्रेस, भाजपा व नई नवेली पार्टियों को लम्बे समय तक के लिए पंजाब से बाहर कर सकती है।

सामान्य तौर पर पंजाब का अपर क्लास व कास्ट, मिडिल क्लास व वंचित जगत के लोग ही कांग्रेस, भाजपा और आम आदमी पार्टी के वोटर रहे हैं। पंजाब में वंचित जगत की आबादी लगभग एक तिहाई है, ऐसे में बहुजन समाज पार्टी और शिरोमणि अकाली दल के गठबंधन से पंजाब में एक नया राजनीतिक समीकरण तय होने की पूरी संभावना है।

यह गठबंधन जहां एक तरफ पंजाब की बहुतायत आबादी को एक सूत्र में बांधकर पंजाब की उन्नति में गति देने का काम करेगी, वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस को सत्ता से बेदखल कर भाजपा और आम आदमी पार्टी को किनारे भी लगा सकती हैं।

इस गठबंधन के औपचारिक घोषणा के बाद भारत के तीसरे सबसे बड़ी पार्टी बसपा की राष्ट्रीय अध्यक्ष व राष्ट्रीय नेता परम आदरणीय बहन कुमारी मायावती जी ने पंजाब तथा देश के नाम लिखे अपने ट्विटर संदेश में खुशी जाहिर करते हुए इस गठबंधन को पंजाब के लिए एक नए युग की शुरुआत बताते हुए कहते हैं कि "पंजाब में आज शिरोमणि अकाली दल और बहुजन समाज पार्टी द्वारा घोषित गठबंधन यह एक नया राजनीतिक व सामाजिक पहल है, जो निश्चय ही यहाँ राज्य में जनता के बहु-प्रतीक्षित विकास, प्रगति व खुशहाली के नए युग की शुरूआत करेगा। इस ऐतिहासिक कदम के लिए लोगों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।"

पंजाब में व्याप्त भ्रष्टाचार, किसानों व वंचितों पर हो रहे अत्याचार व बेरोजगारी की तरफ ध्यान दिलाते हुए परम आदरणीय बहन कुमारी मायावती जी कहती हैं कि "वैसे तो पंजाब में समाज का हर तबक़ा कांग्रेस पार्टी के शासन में यहाँ व्याप्त गरीबी, भ्रष्टाचार व बेरोजगारी आदि से जूझ रहा है, लेकिन इसकी सबसे ज्यादा मार दलितों, किसानों, युवाओं व महिलाओं आदि पर पड़ रही है, जिससे मुक्ति पाने के लिए अपने इस गटबन्धन को कामयाब बनाना बहुत जरूरी।"

पंजाब के बदलते राजनीतिक व सामाजिक समीकरण के मद्देनजर बसपा की राष्ट्रीय अध्यक्षा परम आदरणीय बहन कुमारी मायावती जी पंजाब के लोगों से अपील करते हुए कहती हैं कि "पंजाब की समस्त जनता से पुरज़ोर अपील है कि वे अकाली दल व बी.एस.पी. के बीच आज हुये इस ऐतिहासिक गठबन्धन को अपना पूर्ण समर्थन देते हुए यहाँ सन् 2022 के प्रारम्भ में ही होने वाले विधानसभा आमचुनाव में इस गठबन्धन की सरकार बनवाने में पूरे जी-जान से अभी से ही जुट जाएं।"

फिलहाल, सोशल मीडिया, टेलीविजन चैननों व लोगों के बीच यह ऐतिहासिक गठबंधन चर्चा के केंद्र में बना हुआ है। इस ऐतिहासिक गठबंधन के संदर्भ में सुप्रसिद्ध राजनैतिक विश्लेषक प्रोफेसर विवेक कुमार कहते हैं कि "1996 के बाद पंजाब में बहुजन समाज पार्टी का गठबंधन शिरोमणि अकाली दल से फिर हुआ। यह गठबंधन इस लिए भी ऐतिहासिक है क्योंकि यह प्री पोल अलाइंस है, पोस्ट पोल अलाइंस नहीं। ये बात और है की आज से 25 वर्ष पहले मान्यवर कांशीराम जी के अगुवाई में लोक सभा के चनावों में यह प्री पोल अलाइंस हुआ था और अब बहनजी के नेतृत्व में यह प्री पोल अलाइंस विधान सभा के चुनावो के लिए हो रहा है।"

हमारे बहुजन समाज का युवा अक्सर बसपा की राजनीति को समझने के बजाय अक्सर लोगों द्वारा गुमराह कर दिया जाता है। इसका एक प्रमुख कारण यह भी है कि राजनीति की समझ को विकसित कर रहा युवा अभी फ्री पोल और पोस्ट पोल अलाइंस के फर्क को बारीकी से समझ नहीं पाता है। यही वजह है कि प्रोफेसर विवेक कुमार देश के युवाओं एवं खासकर बहुजन युवाओं को सचेत करते हुए कहते हैं कि "बहुजनो को प्री पोल अलाइंस और  पोस्ट पोल अलाइंस में अंतर अवश्य ही समझना चाहिए क्योंकि आज तक बसपा ने प्री पोल अलाइंस कुछ ही दलों से किया है - जैसे कांग्रेस, सपा, एसएडी, INLD, JDS आदि।"

बसपा के राष्ट्रीय महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा ने पंजाब पहुंचकर शिरोमणि अकाली दल के नेतृत्व के साथ मिलकर इस गठबंधन की औपचारिक घोषणा की। इसके पश्चात बसपा के राष्ट्रीय महासचिव ने अपने मोबाइल फोन से शिरोमणि अकाली दल प्रमुख श्री प्रकाश सिंह बादल की परम आदरणीया बहन जी से बात करवाई। बातचीत के दौरान भारत महानायिका परम आदरणीय बहन कुमारी मायावती जी ने और श्री प्रकाश सिंह बादल ने एक दूसरे का कुशल-मंगल पूछा, स्वास्थ्य पर चर्चा की और बदलते पंजाब की जरूरत के मुताबिक नए सामाजिक व राजनैतिक समीकरण को तय करने के लिए एक दूसरे को बधाई दी।

पंजाब में हुआ बसपा-शिअद गठबंधन आने वाले समय में जहां पंजाब की सियासत के समीकरण तय करते हुए पंजाब की जनता को पंजाब की बेहतरीन तकदीर लिखने का मौका दे रहा है, वहीं दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश में होने वाले चुनाव में उत्तर प्रदेश के युवाओं में एक नया जोश एवं उमंग भरने का काम करेगा।

इससे इन्कार नहीं किया जा सकता है कि पंजाब का विधानसभा चुनाव और उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव के परिणामस्वरूप यदि पंजाब और उत्तर प्रदेश में सरकारें बनती है तो इसका सीधा फायदा 2023 में होने वाले छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव और 2024 में होने वाले महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में देखने को मिलेगा।

रजनीकान्त इन्द्रा

Sunday, June 6, 2021

दोहरे मापदण्ड वाली बहुजन पत्रकारिता

भारत की गैर-बराबरी वाली संस्कृति के पैरोकार हमेशा से पिछड़े, आदिवासी और वंचित जगत की स्वतंत्र राजनीति के विरोधी रहें हैं। गैर-बराबरी की सोच वाले दल, संगठन, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, प्रिंट मीडिया, तथाकथित बुद्धिजीवी सब एकसाथ पिछड़ों, आदिवासियों, वंचितों और अल्पसंख्यकों की एकमात्र राजनीतिक पार्टी व भारत में समतामूलक आन्दोलन की वाहक बहुजन समाज पार्टी के बारे में सदैव से दोहरा मापदंड अपनाते आ रहे हैं। यहीं वजह हैं कि बाबासाहेब, मान्यवर साहेब और बहनजी ने भी अपनी मीडिया के जरिये ही अपने संदेशों को भारतवासियों तक पहुँचाने का निर्णय लिया।

18 जनवरी 1943 को पूना के गोखले मेमोरियल हाल में महादेव गोविन्द रानाडे के 101वीं जयंती समारोह में ‘रानाडे, गाँधी और जिन्ना’ शीर्षक से दिया गया। उन्होंने कहा, "मेरी निंदा कांग्रेसी (सभी मनुवादी) समाचार पत्रों द्वारा की जाती है। मैं कांग्रेसी (सभी मनुवादी) समाचार-पत्रों को भलीभांति जनता हूं। मैं उनकी आलोचना को कोई महत्त्व नहीं देता। उन्होंने कभी मेरे तर्कों का खंडन नहीं किया। वे तो मेरे हर कार्य की आलोचना, भर्त्सना व निंदा करना जानते हैं। वे मेरी हर बात की गलत सूचना देते हैं, उसे गलत तरीके से प्रस्तुत करते हैं और उसका गलत अर्थ लगाते हैं। मेरे किसी भी कार्य से कांग्रेसी-पत्र (सभी मनुवादी) प्रसन्न नहीं होते। यदि मैं कहूं कि मेरे प्रति कांग्रेसी (सभी मनुवादी) पत्रों का यह द्वेष व बैर-भाव अछूतों के प्रति हिंदुओं के घृणा भाव की अभिव्यक्ति ही है, तो अनुचित नहीं होगा।"

आज भी मनुवादी लोगों में कोई बदलाव नहीं हुआ था। पिछड़े, आदिवासी, वंचित जगत को मानीवय हक़ दिलाने वाले बाबासाहेब के प्रति मनुवादियों का जो रवैया था वह बदस्तूर आज भी जारी हैं जो कि बाबासाहेब के आन्दोलन की वाहक बहनजी और बसपा के प्रति दुष्प्रचार के रूप में स्पष्ट दिखाई पड़ती हैं। परन्तु इससे भी ज्यादा दुखद पहलू हैं बहुजन चैनल्स के नाम पर दुकान चला रहे बहुजन समाज के युट्यूबर्स व पत्रकार। जब इनकी पत्रकारिता व चैनल्स शुरू होते हैं तो बहनजी और बसपा के नाम पर, लोग बहनजी की फोटो अपने पत्रिका के कवर पेज पर छापते हैं, जब बहुजन समाज में इनकी विश्वसनीयता स्थापित हो जाती, इनकों इनकी आमदनी के लिए चन्दा और सब्सक्राइबर्स मिल जाते हैं तो बहुजन-विरोधियों के बीच इनकी एक कीमत तय हो जाती हैं। फिर ये लोगों को बुद्ध-फुले-शाहू-काशीराम के वैचारिकी की वाहक आदरणीया बहनजी और बसपा के पति भड़काते हुए गुमराह करना शुरू करते हैं, ये बहुजन समाज के चमचों को बहुजन हितैषी साबित करना शुरू कर देते हैं।

मतलब कि बहुजन समाज व इसकी अस्मिता के नाम से शुरू वाली पत्रिका वकायदा एक व्यापार बन जाती हैं। यही वजह हैं कि मनुवादी मीडिया के साथ-साथ बहुजन मीडिया भी बसपा व बहनजी के प्रति दोहरा मापदण्ड अपनाते हैं। बहुजन मीडिया व अन्य मीडिया के चरित्र पर गौर करेंगे तो आप पायेगें कि -

१) जब भी कोई बसपा से निकल दिया जाता हैं या छोड़कर चला जाता है तो चाहे मनुवादी मीडिया हो या फिर बहुजन समाज के युटयुबर्स, सब लोग उन्हें कद्दावर नेता कहते हैं, क्यों? जबकि अपने ही विधानसभा या लोकसभा क्षेत्र में ये अपन एक प्रधान या जिला पंचायत सदस्य तक नहीं जीता सकते हैं। साथ-साथ अपने विधानसभा या लोकसभा क्षेत्र में अपनी जाति का भी पूरा वोट नहीं पाते और पड़ोस के विधानसभा या लोकसभा क्षेत्र में पार्टी को अपनी जाति का एक भी वोट नहीं दिला पाते हैं। इसके बावजूद बहुजन समाज की शत्रु मीडिया ऐसे नेताओं को कद्दावर व दिग्गज करार करती हैं जो क़ि बहुजन समाज, बसपा और बहनजी के प्रति नफरत, घृणा का द्योतक हैं। (राम अचल राजभर और लालजी वर्मा पार्टी विरोधी गतिविधियों के चलते बसपा से निष्काषित, ०३ जून, २०२१)

२) बसपा के अंदर जब भी कोई फेरबदल होता है तो उस पर सबसे ज्यादा प्रश्न उनसे पूछे जाते हैं जो बसपा को ना तो वोट करते हैं, ना सपोर्ट करते हैं और ना ही वह बसपा के होते हैं, ना ही बुद्ध-फुले-अम्बेडकरी मिशन के बारे में कुछ जानते हैं, क्यों? बहुजन समाज के शत्रु, चमचे व मनुवादी लोग किसी भी सूरत में बसपा के बारे में सच्चाई बयां कर सकते हैं? यदि नहीं तो बहुजन समाज के शत्रुओं से बहुजन समाज के हित के बारे में सवाल कैसे किया जा सकता हैं।

३) यह सच हैं कि बसपा की तरफ से परम आदरणीया बहनजी के अलावा कोई भी मीडिया से मुखातिब नहीं होता हैं जिसकी मुख्य वजह बुद्ध--फुले-अम्बेडकरी आन्दोलन, बहुजन समाज व बसपा के प्रति मीडिया का नफरती व द्वेषपूर्ण रवैया हैं। मीडिया के इस व्यवहार से निपटने के लिए ही बहनजी ने लिखित प्रेस-विज्ञप्ति को वरीयता देती हैं ताकी उनकी बातों को तोड़-मरोड़ कर पेश ना किया जा सके। इसके बावजूद बहुजन युट्यूबर्स भी बसपा के बारे में जब भी इंटरव्यू करते हैं तो कभी भी बसपा के समर्थकों से नहीं बल्कि बसपा के विरोधियों से बसपा की राजनीति के बारे नजरिया प्रस्तुत करते हैं, क्यों?

४) बसपा के अंदर क्या हो रहा है और क्या नहीं हो रहा है, इस पर टिप्पणी देने के लिए हमेशा गैर-बसपा के लोग ही सामने क्यों आते हैं? बुद्ध--फुले-अम्बेडकरी आन्दोलन के शत्रु यह तो बताते हैं कि "भर समाज" के एक विधायक को बसपा ने निष्कासित कर दिया, परन्तु ये लोग यह क्यों नहीं बताते हैं कि उत्तर प्रदेश बसपा की कमान एक "भर समाज" के नेता के ही हाथ में हैं। बुद्ध--फुले-अम्बेडकरी आन्दोलन शत्रु ये नहीं पूछते हैं कि जिन लोगों को बसपा से निकला गया हैं वे लोग पार्टी के पदाधिकारी होते हुए पार्टी के खिलाफ खड़े किये कैंडिडेट का समर्थन क्यों कर रहे थे?

५) कांग्रेस, भाजपा या अन्य किसी क्षेत्रीय दल में जब कोई फेरबदल होता है तो हमेशा उसके समर्थकों व करीबियों से सवाल-जवाब किया जाता है, जानकारी इकट्ठा की जाती हैं, परंतु जब बसपा में कुछ फेरबदल होता है तो बसपा के विरोधियों से सवाल जवाब क्यों किया जाता है, जब कि यह स्थापित सत्य है कि बुद्ध--फुले-अम्बेडकरी आन्दोलन का शत्रु सदैव बसपा का विरोधी करेगा। बसपा के बारे में कोई भी राय बनाने से पहले जनता को भी स्वयं से प्रश्न पूछना चाहिए कि बुद्ध--फुले-अम्बेडकरी आन्दोलन का शत्रु बसपा का सही पक्ष कैसे रख सकता हैं।

उपरोक्त सवालों से यह स्पष्ट हो जाता है कि बहुजन समाज के यूट्यूब के मीडिया और मनुवादी मीडिया व जितने सारे अखबार पत्र पत्रिकाएं है, सब मिलकर के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर अपने-अपने निहित स्वार्थ के लिए बुद्ध--फुले-अम्बेडकरी आन्दोलन की वाहक बहुजन समाज पार्टी व इसकी नेत्री परम आदरणीया भारत महानायिका बहन जी के रास्ते में अवरोध उत्पन्न करना चाहते हैं। साथ ही यह भी महत्वपूर्ण है कि बसपा बुद्ध-फुले-अम्बेडकरी मिशन पर सतत अग्रसर हैं जिसकी वजह से लोग अपने-अपने निहितार्थ लगातार बसपा का विरोध कर रहे है।

यह विरोध यह बह प्रमाणित करता हैं कि इसकी जड़े निरंतर गहरी होती जा रही है। परंतु बहुजन समाज के जो स्वघोषित बुद्धिजीवी हैं, उनकी गणित और उनकी राजनीति हमेशा सीटों की संख्या तथा हुल्लड़बाजी वाले विरोध तक ही सीमित रहती है, और वह लोग इसी हुल्लड़बाजी को विपक्ष की महत्वपूर्ण भूमिका समझते हैं। यही वजह है कि वह बसपा के संविधान व लोकतंत्र निहित मूल्यों के प्रति गहरी आस्था व निष्ठा को समझ नहीं पाते हैं। नतीजा, ऐसे लोग खुद गुमराह होकर बसपा के खिलाफ दुष्प्रचार करते हुए सर्व समाज को गुमराह करने का कार्य करते हैं।

अतः स्पष्ट हैं कि बहुजन मीडिया हो या मनुवादी मीडिया, ये दोनों ही अपने-अपने स्वार्थ के चलते पत्रकारिता के मूल्यों से भटक गयी हैं। यही कारण हैं कि बहनजी अपने कार्यकर्ताओं पर पूर्ण भरोसा करते हुए कहती हैं कि "हमारे कार्यकर्ता ही हमारी मीडिया हैं।" इसलिए बुद्ध-फुले-अम्बेडकरी मिशन के लोगों का ये दायित्व हैं कि वो बहनजी के ट्विटर संदेशों, प्रेस विज्ञप्ति और प्रेस कॉन्फ्रेंस को ज्यादा से ज्यादा शेयर करते हुए बहनजी के संदेशों व पार्टी के निर्णय को इसके मूल रूप व मूल अर्थ में में जन-जन तक पहुंचाकर अपने बुद्ध-फुले-अम्बेडकरी आन्दोलन, इसकी एकमात्र वाहक राजनैतिक दल बसपा व इनकी मुखिया परम आदरणीया बहनजी, संवैधानिकता व लोकतन्त्र को मजबूत कर राष्ट्रनिर्माण में अपना श्रेष्टतम योगदान दें।

रजनीकान्त इन्द्रा

Wednesday, June 2, 2021