Thursday, May 13, 2010

खाप को मानवाधिकार आयोग की नसीहत

'खाप पंचायतों' या स्वयंभू जातीय परिषदों को कड़ी फटकार लगाते हुए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने उन्हें परंपरा के नाम पर कानून अपने हाथ में लेने के खिलाफ चेतावनी दी | आयोग ने एक बयान में कहा है कि आयोग का यह विचार है कि किसी को भी परंपरा के नाम पर किसी के जीवन के अधिकार का उल्लंघन करने के लिए कानून को अपने हाथ में लेने का अधिकार नहीं है।
 आयोग ने इन परिषदों की समान गौत्र में विवाहों को प्रतिबंधित करने के लिए हिंदू विवाह अधिनियम में संशोधन की मांग का भी संज्ञान लिया है। आयोग ने बयान में कहा है कि हिंदू विवाह अधिनियम में संशोधन का मुद्दा सामाजिक, सांस्कृतिक और पारंपरिक राष्ट्रीय पहलुओं को ध्यान में रखते हुए व्यापक बहस का विषय है ,  साथ ही यह संविधान में प्रदत्त किसी व्यक्ति के आजादी के अधिकार से भी जुड़ा है|
 आयोग ने अपना टिप्पणी तो दी मगर बहुत देर बाद | आयोग कहता है कि ये बहुत विचार - विमर्श का मुद्दा है | लेकिन भारत के पूर्व चीफ जस्टिक बालाकृष्णन ने कहा जो कहा है कि " प्यार करने वाले किसी खाप से नहीं डरते है " मेरे ख्याल से बालाकृष्णन ने मामले को ही निपटा दिया है | साथ ही साथ कानून मंत्री ने भी किसी भी संविधान  संसोधन से इनकार कर दिया है | 
 मेरे ख्याल से फैसला हो गया है कि दो प्रेमियों को जुदा करने हक़ किसी को भी नहीं है | हमें  ये हक़ हमारा संविधान और हमारा मानव अधिकार देता है , तो हमारे इस अधिकार को छीनने वाला समाज कौन होता है |
 जब दो प्रेमी साथ रहना चाहते है तो खाप और  समाज कौन होता है उन्हें जुदा करने वाला ? यदि हिन्दू धर्म का सहारा लेकर उन्हें अलग करने कि कोशिस कि गयी तो वे आत्म हत्या करने के लिए मजबूर हो जायेगें | इस हत्या का जिम्मेदार ये समाज और खाप जैसी संस्थाए होगी | उदहारण के लिए उन्नाव में एक प्रेमी युगल ने ट्रेन के सामने जान दे दी क्योकि समाज के लोगो ने उन्हें जुदा कर दिया था | 
 यदि देखा जाय तो प्रेमियों को जुदा करके ये समाज उनके जीवन में घटने वाली हर घटना के जिम्मेदार होगा |
 तथाकथित मनगढंत हिन्दू धर्मशास्त्र भी  कुछ मनगढंत प्रेम बयान करते है ।  जैसे - अर्जुन -सुभद्रा , राम - सीता , कृष्ण - रुकमणि इत्यादि | यदि ये सब सही है तो फिर खाप , एक  पापी साँप  , क्यों फन  उठा  रहा है ? यदि  कानून ऐसा कुछ होता है तो वह बहुत ही गलत होगा क्योकि प्रेमियों को जुदा करना दुनिया का सबसे बड़ा पाप है | क्यों कि दुनिया का सबसे बड़ा धर्म ही प्रेम है | हमारे समाज को अपने दृष्टिकोण में बदलाव लाना होगा जिससे प्रेम सदा जीवित रहे , फूले- फले और हमारा भारत प्रेम का घर बन जाय | हर किसी के आत्मा से यही दुआ निकले कि प्रेम सदा जिन्दा रहे |
  रजनीकान्त इन्द्रा 
इन्जिनीरिंग छात्र, एन.आई.टी-ए 
(मई १३, २०१०)

Tuesday, May 11, 2010

प्यार करने वाले खाप से नहीं डरते


सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के.जी. बालकृष्णनन ने कहा कि प्यार करने वाले किसी खाप से नहीं डरते हैं। चीफ जस्टिस का बयान उस समय आया जब प्रेमी जोड़ों पर खाप पंचायत का कहर बढ़ता ही जा रहा है।
 अब तो खाप पंचायत के पक्ष में कांग्रेस के नवीन जिंदल और हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री और भारतीय राष्ट्रीय लोकदल के प्रमुख ओम प्रकाश चौटाला भी उतर आए हैं। इन सभी का मानना है कि हिंदू मैरिज एक्ट में संशोधन कर एक ही गोत्र में शादी को प्रतिबंधित किया जाए।
 इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखते हुए बालकृष्णन ने प्यार करने वालों के पक्ष को और मजबूत कर दिया है। इस फैसले के बाद अब जहां पर प्रेमी जोड़ों को एक बल मिला है वहीं खाप पंचायत को जोर का झटका धीरे से लगा है | सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के.जी. बालकृष्णनन की राय बिलकुल ठीक है |
 प्यार करने वाले दुनिया से नहीं डरते है | प्यार हमरा है , जिंदगी हमारी है , तो हमारा फैसला करने वाला खाप कौन होता है | हम अपनी जिंदगी का फैसला खुद करेगें | ये हमारा अधिकार है | इसका अधिकार हमें हमारा प्यार , मानव धर्म , इंसानियत और भारतवर्ष का संविधान देता है | ये हमारा मूल अधिकार है | इस अधिकार को हमसे कोई नहीं छीन सकता है |
 मनोज बबली का बलिदान प्रेमियों के लिए बरदान शाबित होगा | अब खाप पंचायतों के बचे अस्तित्व का भी अंत बहुत ही करीब है |
  रजनीकान्त इन्द्रा 
इन्जिनीरिंग छात्र, एन.आई.टी-ए 
(मई ११, २०१०)

Wednesday, March 31, 2010

शादी - विवाह

कहा जाता है कि इस दुनिया में मानव का दो बार नया जन्म होता है - पहेली बार जब वह माँ के गर्भ से बाहर की दुनिया में आता है , दूसरा जब  मानव अपना गृहस्थ जीवन शुरू करता है | गृहस्थ जीवन के पहेले तो मानव कि देख-रेख और उसका ख्याल पूरी तरह से माता - पिता रखते है |  इसी तरह गृहस्थ जीवन में मानव अपने जीवन साथी के साथ अपनी जिम्मेदारी खुद सभालाता है | गृहस्थ जीवन कि शुरुआत शादी जैसे पवित्र  बंधन से शुरू होती है | आज का मानव शादी के रिश्ते कि अहमियत को भूलता जा रहा है | 
 शादी वह पवित्र बंधन है जो सिर्फ और सिर्फ विश्वास और प्रेम पर टिका होता है | ऐसा कहा जाता है कि इसी रिश्ते में एक लड़की अपना घर , माता-पिता,भाई-बहन को छोड़ कर आप के पास आती है , लेकिन मेरे ख्याल से यदि देखा जाए तो वह कुछ भी छोड़ कर नहीं आती है क्योकि इस दुनिया में कोई भी कार्य घाटे का नहीं हो सकता है | पति - पत्नी का रिश्ता ही एक ऐसा रिश्ता है जो समय-समय पर जरूरत के अनुसार अपने रूप बदलता रहता है | एक आदमी के लिए पत्नी ही एक ऐसी दोस्त है जो समय-समय पर आपके लिए नए-नए रूप धारण करती है | इसी तरह एक औरत के लिए पति है एक ऐसा दोस्त है जो समयानुसार अपने रूप बदल कर कई रिश्तों को सार्थक करता है |   
उदहारण स्वरुप -   
जब कोई बच्चा छोटा होता है तो उसकी देख-भाल माता जी करती है लेकिन जब वही बच्चा बड़ा हो जाता है तो अक्सर उसकी पूरी देख-भाल पत्नी करती है | मेरे कहने का मतलब यह है कि जब बच्चा बड़ा हो जाता है तो जो काम बच्चे के माता जी करती थी , आज वही काम पत्नी आपके लिए कर रही है | यह संसार कुछ भी हो जाए लेकिन सदा कर्म प्रधान ही रहेगा | यदि अब हम माँ के कर्म को ( देख-भाल ) को पत्नी के कर्म से जोड़े तो , हम पाते है कि पत्नी आपके लिए माँ का रूप है , मतलब कि पत्नी का रिश्ता माँ के रिश्ते को भी समाहित किये हुए है | 
 जो समय बचपन में हम भाई-बहन के साथ बिताते थे , आज वही हम पत्नी के साथ बिता रहे है | यहाँ भी एक समानता है - पत्नी का रिश्ता अपने आप में भाई-बहन के प्यार को भी जोड़े हुए है |
  जब हमे अपने पीढ़ी को आगे बढ़ाने के लिए काम-योग का प्रयोग करना पड़ता है तो पत्नी ही साथ देती है | 
 पत्नी ही पति कि सबसे अच्छी दोस्त होती है जो पति के हर सुख-दुःख में साथ देती है इसी लिए पत्नी को जीवन साथी भी कहा जाता है | 
 यदि हम देखे तो पाते है कि पत्नी का ही एक ऐसा रिश्ता है जो संसार का हर रिश्ता अपने आप में समाहित किये हुए है |  इसी तरह पति भी पत्नी के लिए समय के अनुसार विभिन्न रूप में सामने आता है | 
 पति , पत्नी के लिए खाने-पीने और पालन पोषण कि सामग्री जुटता है जो कि एक पिता का कार्य है , इस तरह से इस समय पति , पत्नी के लिए एक पिता कि भूमिका निभाता है | 
 कठिन समय में पति पत्नी कि देख- भाल उसी तरह से करता है जैसा कि एक माँ अपने बेटी के लिए करती है , तो यहाँ उस पत्नी के लिए उसका पति ही माँ है | 
 दोनों एक दूसरे के दोस्त तो है ही - इसी कारण ये एक-दूसरे के जीवन साथी कहलाते है | 
 जो समय बचपन में पति-पत्नी अपने-अपने भाई-बहन के साथ बिताते थे , आज वही हम पति-पत्नी एक-दूसरे के साथ बिता रहे है | इस तरह से  पति-पत्नी आपस में भाई बहन के प्यार को भी जिन्दा रखते है |  
  इस प्रकार से हम कह सकते है कि लड़की शादी के बाद वास्तव  में जो कुछ छोड़ कर आती है वह सिर्फ कुछ यादे ही होती है , बाकी उसे अपने पति में हर रिश्ता ( माता-पिता , भाई-बहन , दोस्त या सहेली ) मिल जाता है , और इन सब के साथ जीवन भर साथ निभाने वाले जीवन साथी का रिश्ता तो वोनस है | 
 लेकिन आज तो लोग शादी जैसे पवित्र रिश्ते कि अहमियत को पूरी तरह भूल कर एक मशीन कि तरह जीवन बिता रहे है | शादी जैसे पवित्र रिश्ते को लोग सेक्स  का मात्र एक वैधानिक जरिया मानते है | पत्नी में छुपे माता-पिता , भाई - बहन , बेटी और दोस्त के रिश्तो को याद ही नहीं रख पाते है |  आज कि पीढ़ी सेक्स तो मौज मस्ती का साधन मात्र मानती है जबकि सेक्स अपनी पीठी या फिर मानव जाति को आगे बढ़ाने का एक कुदरती क्रिया मात्र है | शादी में समाहित रिश्तों को नजर अंदाज करने के कारण ही आये दिन तलाक  जैसे शब्दों से मानव का सामना होता रहता है|  शादी और सेक्स का सही ज्ञान ना होने के कारण ही आज कोई भी ना तो रिश्तों को  है और ना  रिश्तों की  | जीवन को जानने और समझाने के लिए हमें प्रेम और विशवास रिश्तों और सेक्स के अहेमियत  और  उनके मतलब समझाने होंगे | भारतीय उच्चतम न्यायाल  ने अपने एक अहम फैसले में कहा है कि विवाह सिर्फ यौन संतुष्टि का जरिया मात्र नहीं है। यह एक पवित्र बंधन है और इसकी सामाजिक प्रासंगिता है ।   यदि जीवन को समझना और जानना है तो प्रेम , विश्वास , सेक्स और रिश्तो के अहमियत और उनकी प्रशंगिकता को समझो और जानो | यदि आप इन सब को जान गए तो आप का जीवन अपने आप खुशियों से भर जायेगा |  
याद रहे ...

पति-पत्नी ( प्रेम ) का ही एक ऐसा रिश्ता है जो हर रिश्ते को अपने में समाहित किये हुए है |
 रजनीकान्त इन्द्रा 
इन्जिनीरिंग छात्र, एन.आई.टी-ए 
(मार्च ३१, २०१०)

न्यायलय का अनोखा और न्यायपूर्ण फैसला

करनाल कोर्ट के एक बेंच ने आज ( मार्च ३०,२०१० ) अपने महत्वपूर्ण फैसले में मनोज - बबली की हत्या करने वालो को मृत्युदंड दे कर कानून के राज का प्रमाण दिया है | हत्या करने वालों में शामिल बबली के भाई सुरेश ,चाचा राजेंद्र , मामा बारू राम , चचेरे भाई सतीश और गुरदेव को मृत्युदंड की सजा सुनाई गई है ।  साजिस के मास्टर माइंड खाप पंचायत के मुखिया  खाप पंचायत के मुखिया गंगा राज को उम्र कैद की सज़ा तथा सातवें अभियुक्त  मनदीप सिंह को मनोज(23) और बबली(19) के अपहरण तथा हत्या की साजिश में शामिल होने के लिए सात वर्ष कैद की सज़ा सुनाई। बबली के घर वालों से गलती तो हो गयी पर इसमे गलती किसी की नहीं है बल्कि हमारे समाज के सड़े - गले नियमो का है | खाप पंचायत जैसे सड़े - गले और नीच नियमों की शुरआत मनु ने की थी | मनु तो इन सब को शुरुआत देकर चला गया लेकिन इसका खामियाजा भुगत रहे है - मनोज और बबली जैसे मासूम | आज भी हमारा देश प्राचीन काल की परम्पराओ में जी रहा है | हमारे समाज ने अपनी सोच ना बदली है और ना ही बदलना चाहती है | ऐसे में सरकार के कदम और कोर्ट के निर्णय ही ऐसे समाज को सबक दे सकते है | कोर्ट से सजा पाने वाले और मनोज - बबली , मनु के बनाये इस कुतंत्र की बलि चढ़ गए है | लेकिन हमें अब आगे से ये सोचना चाहिए कि हर किसी का एक मानवाधिकार है जो कि सिर्फ और सिर्फ मानवता का पाठ पढ़ता है | मनु  बनाये नियम , नियम नहीं बल्कि गुलामी  पापों का पिंजरा है  - खाप पंचायत इसका एक अनुपम उदहारण है |


मनु के इन्ही विचारों में मानव को मानव ना समझाने को प्रावधान है जिसने हमारे समाज में छुआ - छूत जैसे कलंकित रोग को जन्म दिया | इस रोग को मिटने में सदिया बीत गयी फिर भी ये रोग आज पूरी तरह से  लगभग जिन्दा ही है | जाति को हमारे  मनगढंत बेद - पुरानों ने भी कर्मो के आधार पर बांटा है , जिसके अनुसार मानव की जाति उसके कर्मो के आधार पर बदल जाति है | उदहारण स्वरुप - यदि कोई ब्राहमण परहित के लिए हथियार उठा ले तो वह क्षत्रिय बन जाता है ( यदि  मनगढंत हिन्दू ग्रंथो को सही माने तो ),  जैसे की परसुराम जन्म से ब्राहमण होते हुए भी वह क्षत्रिय थे  | लेकिन मनु के नीच और घटिया विचारो ने हमारे समाज को अलग - धलग करके राख कर  दिया है , जिसका दुष्परिणाम मानव जाति आज भी भुगत रही है |


मनु के विचार कुछ और नहीं बल्कि स्वार्थ की पूर्ति के लिए बनाये गए थे | मनु के इन नीच विचारो से सिर्फ और सिर्फ ब्राहमणों को सबसे ज्यादा फायदा था | मनु के नियनो के अनुसार यदि ब्राहमण कुछ भी ना करे तो भी वह राजाओ जैसी जिंदगी बिता सकता है , क्योकि ब्राहमण को मनु ने भगवान् का स्थान दे डाला था | ब्राहमणों ने इसका फायदा उठाकर क्षत्रियों को क्षत्रियों से लड़ाया , वैश्यों से मनचाहा दान के रूप भीख लिया , और शूद्रों को अपने पैरों तले कुचला है | आज भी हमारे समाज में यही प्रथाए चल रही है , जिसके दुष्परिणाम समय - समय पर सामने आते रहते है |


ब्राहमणों की नीतियों का पता इस बात से लगाया जा सकता है की जब भारत रत्न बाबा साहेब डॉ. भीम राव अम्बेडकर ने नारी जाति के उद्धार के लिए " हिन्दू कोड बिल " लाने का प्रश्ताव किया तो उन्हें हिन्दू विरोधी घोषित कर दिया गया | जो  ये वे लोग है जिन्होंने अपने बहु - बेटियों के अधिकारों का विरोध किया है | अपनो का जो भला ने चाह सके तो वह दूसरों के बारे में कैसे सोच सकता है | जब बाबा साहेब ने देखा की हिन्दू धर्म गीता जैसे कर्म-प्रधान शास्त्र पर ना चल कर , मनु के घटिया विचारो पर चल रहा है। … तब बाबा साहेब के  हिन्दू धर्म त्यागने का प्रण और दृंढ हो गया |

  
बाबा साहेब ने सर्व जन को समान समझाने वाले , समता , करुना और दया का पाठ पढ़ने वाले,  भगवान् बुद्ध के बौद्ध धर्म को भारी जन समुदाय के साथ ग्रहण किया  |  दुनिया का सबसे बड़ा धर्म है - मानवता का धर्म , जिसमे सभी को अपना कर्म , अधिकार और मंजिल चुनने की आजादी हो , लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हमारे कारण किसी दूसरे के अधिकारों का हनन ना हो | यही हमें भगवान् बुद्ध का बौद्ध धर्म सिखाता है | यदि समाज ने मनु के विचारों को नहीं त्यागा तो मनोज  - बबली जैसी हत्याए होती रहेगी और कोर्ट को मजबूर होकर समाज के राक्षसों को समाप्ति और समज को आइना दिखने के लिए मृत्युदंड जैसे आखिरी हथियार का प्रयोग कारण पड़ेगा |


हमारे समाज की सबसे बड़ी कमी है अन्धविश्वास और मनु के विचारो का समय के साथ ना बदलना | हमारे समाज को अभी तक शादी का मतलब ही नहीं पता है | इस लिए वे शादी को सदा सेक्स के साथ जोड़ कर दल - दल में फंस जाते है | शादी सिर्फ और सिर्फ दो आत्माओ का मिलन है , ना की दो शरीर का | हम सेक्स सिर्फ और सिर्फ इस लिए करते है ताकि हमारी मानव जाति लुप्त ना हो जाए | सेक्स हमें सिर्फ और सिर्फ इस लिए एक के साथ करना चाहिए ताकि हम और हमारा साथी बीमारियों से बचे रहे | सेक्स को यदि हम एक योग की तरह देखे तो सारी बातें अपने आप साफ़ हो जायेगीं । यदि हम ऐसा सोचे और करे तो मनु कि तमाम खामिया और समाज कि बुराइया अपने आप दूर हो जाएगी | लेकिन हमारे समाज का दुर्भाग्य है । लेकिन यदि समाज उन्नति करना चाहता है , अपना और परिवार का भला चाहता है तो उसे प्रेम के आदर्शो पर चलाना ही होगा | यदि इन सब के बावजूद भी समाज निर्यण नहीं ले पता है तो सबसे आसान राश्ता है दुनिया के सर्व श्रेष्ठ भारतीय संविधान का पालन करना | यदि आप ऐसा करते है तो बहुत सी समाश्याओ से आप आसानी से बच जायेगे |


  
हरियाणा प्रान्त की इस तरह की बदती घटनाओ ने पुलिस को सेफ हॉउस बनाना पड़ रहा है जो प्रेमी युगल को सुरक्षा प्रदान करेगा | ये पुलिस द्वारा  उठाया गया एक अनोखा कदम है |
  
कोर्ट के ऐसे निर्यण और सरकार तथा पुलिस के सहयोग से समाज को एक नयी दिशा मिलेगी | फिलहाल मुझें उम्मीद है कि हमारा युवा समाज और आने वाली पीढ़ी संविधान के आदर्शों पर चलते हुए अपने समाज को एक नयी दिशा देगा | भविष्य में कोई भी मनोज और बबली अपने अधिकारों से वांछित नहीं होगें और ना ही उनकी हत्या होगी | कोर्ट के फैसले से आज मासूम मनोज और बबली को नया मिला , ये निर्णय आने वाले दिनों में समाज को एक नयी उन्नतिशील , कर्मप्रधान , सर्व सम , मानवाधिकार का सन्देश देगी |







NIT - A

मार्च ३०, २०१० 

Sunday, March 28, 2010

आत्महत्या या सामूहिक हत्या


आज कल किसी लड़की - लडके या फिर किसी भी उम्र के इंसान द्वारा की गयी आत्महत्या की खबरे अखबारों में मिल ही जाति है | इसी तरह आज ( मार्च २७ , २०१० ) हम  जब अकबरपुर से सुलतानपुर के लिए जा रहे थे , तो  महारुआ में एक शादी - शुदा लड़की के आत्महत्या की खबर सुनी | सड़क पर खूब भीड़ - भाड़ थी | लोग तरह - तरह की बातें कर रहे थे | उत्तर-प्रदेश पुलिस अपना काम कर रही थी , वही जो आजतक करती आयी है , फाइल बना कर दफ़न कर देना | मेरे साथ बस में सफ़र कर यात्री भी उस मासूम लड़की के बारे में तरह - तरह की बाते चटकारे ले कर कर रहे थे |
लोग तरह - तरह की बातें करके लड़की को कोस रहे थे | कुछ लोग कह रहे थे कि उस लड़की ने आत्महत्या करके माँ बाप और घर वालों को रोने के लिए छोड़ दिया | इसी तरह तमाम तरह कि बातें कर रहे थे | सबसे खास बात है कि बस में सफ़र कर रही औरतें भी उस लड़की को कोस रही थी | 

हम बस में बैठे सभी लोगों कि बाते बडें ही ध्यान से सुन रहे थे | कोई भी उस लड़की के आत्महत्या करने के कारण के बारे में नहीं सोच रहा था | हमारे  ख्याल से कोई ना कोई तो कारण रहा ही होगा | आखिर कोई इतनी आसानी से आत्महत्या तो नहीं करता है | क्यों कोई कुदरत के दिए इस जीवन को इतनी आसानी से ख़त्म कारण चाहता है ? हमारी पुलिस भी इस तरह के मामलों को बड़ी ही आसानी से निपटती है , ऐसे कि जैसे कुछ हुआ ही ना हो | घर वाले , आस-पड़ोस के लोग उस मासूम को कोस कर अपनी भड़ास निकल लेते है | सबसे दुःख कि बात ये है कि लोग जानते ही नहीं ये जो कुछ भी हुआ , शायद आत्महत्या ना होकर सामूहिक हत्या हो | सबसे पहले मै आपको हत्या , आत्महत्या और सामूहिक हत्या और वध के बारे में बताना चाहता हूँ | 

जब कोई अपने स्वार्थ के लिए किसी निर्दोष की हत्या करता है , तो यह सामान्य तौर पर हत्या कहलाती है | जब किसी व्यक्ति से कोई गलती हो जाए और वह खुद को माफ़ ना कर सके और अपनी जान दे - दे तो यह आत्महत्या कहलाती है | जब समाज के लोगों के कारण कोई इंसान अपनी जान खुद अपने हाथों कुर्वान कर दे तो यह भी सामूहिक हत्या कहलाती है | इस सामूहिक हत्या में समाज के लोग अप्रत्यक्ष रूप से हत्या करते है | 

हमारे समाज में अज्ञानता कि कालिख इतनी काली है कि सच्चाई और सत्कर्म कि सफ़ेद स्याही उसका रंग नहीं बदल सकती है | यही आज हो रहा  है | 

जरा सोचो कि उस लड़की ने आत्म हत्या क्यों की ? हो सकता हो की उसके ससुराल वाले उसको परेशान करते रहे हो | उसका पति उसे बात बात पर पीटता हो | घर वाले दहेज़ की मांग कर रहे हो |  घर वालों की झूठी इज्जत को बनाये रखने के लिए वह ये बात किसी और से ना कह सकी हो या फिर किसी ने उसकी ना सुनी हो | वो लड़की प्यार किसी और से करती हो और उसकी शादी उसकी मर्जी के किलाफ़ घर वालों ने कर दी हो | 

इस तरह के कई कारण हो सकते है | जिसकी जांच होनी चाहिए | लेकिन हम कर क्या सकते है | हमारी पुलिस भी तो किसी लफड़े में नहीं फसन चाहती है , सो आसानी से फाइल बनायीं और दफ़न कर दी | हमारे देश का महिला आयोग है सिर्फ कागज पर कागजी कारवाही करने के लिए  । 

अगर उस लड़की ने ससुराल वालों के कारण आत्महत्या की हो तो यह ससुराल वालों ने मिलकर उसकी सामूहिक हत्या की है | यदि घर वालों ने उसकी मर्जी के खिलाफ शादी की हो तो घर वाले ही उसके हत्यारे है | इसकी जांच अच्छी तरह से होकर ससुराल वाले हो या मायके वाले उन सब को सजा मिलनी चाहिए जो की शायद आज तक कभी सुनाने ने नहीं आया है | ये सारी हत्याए इतने लोग मिल कर करते है और उनके खिलाफ कुछ नहीं होता है | यही कारण है की संसद में महिला आरक्षण बिल ठीक है | लेकिन आरक्षण देने से कुछ नहीं होने वाला है | इन सब मामलों की जांच होनी चाहिए और ससुराल और मायके वालो कि  , जो भी दोषी हो , सजा तो मिलनी ही चाहिए | यही नारी जाति का सम्मान और उसका अधिकार भी है | यदि ऐसा नहीं हुआ तो ये हत्याए प्रतिदिन होती रहेगीं | इसके लिए शायद नया कानून बनाना पड़े तो ठीक है लेकिन कानून से कुछ नहीं होगा उसका सख्ती से पालन होना चाहिए जो कि हमारे पुलिस का काम है | न्यायिक प्रक्रिया में भी तेजी बहुत जरूरी है |

इन सबके लिए हमारी सरकार क्र साथ-साथ मानव जाति को जगाना होगा , विशेष कर महिलाओ को | यदि ऐसा हुआ तो ही नारी जाति का उद्धार हो सकता है | यदि पुलिस अपना काम सही से करे तो आम आदमी को कोर्ट जाने कि जरूरत ही नहीं है | इसलिए सबसे ज्यादा जिम्मेदारी हमारी पुलिस कि बनती है | इसलिए पुलिस सुधार को अमल में लाकर लागो करना चाहिए | तभी हमति नारी जाति का और भारतवर्ष का कल्याण होगा |


Er. Rajani Kan Indra 

March 28 , 2010

Saturday, January 9, 2010

इन्तजार


इन्तजार हमारे जीवन का एक अनोखा हिस्सा है यह एक ऐसा शब्द है जिसका सामना हर किसी को अपनी जिंदगी में करना ही पड़ता है जिंदगी में हर चीज एक निश्चित समय अन्तराल के बाद ही मिलती है और ये समयांतराल हमारी सामाजिक व्यवस्था, आर्थिक स्थिति, राजनितिक और कुदरती नियमों के आपसी तालमेल द्वारा निर्धारित है, इन्ही पर निर्भर करती है। चाहत की शुरुआत और मिलन के बीच के समय अन्तराल को इन्तजार कहते है

जीवन में इन्तजार का अपना एक अलग ही रंग होता है इन्तजार का हर रूप अपने आप में अनोखा और अनुपम होता है। सामान्यतः बिना इन्तजार के इस अदभुद प्रकृति में कुछ नहीं मिलता है जैसे कि जब माली अपने बाग़ के पेडों की देख-रेख करने साथ उनमे फल लगाने का इन्तजार भी करता रहता है। जब वही पेड़ बड़े हो जाते है और उनमे बौर लगने लगता है तो माली कैसा महसूस करता है यह तो सिर्फ वह माली ही जान सकता है, जिसने इतने मेहनत के बाद अपने इन्तजार का फल पाया है। यहाँ माली से पूछों कि इन्तजार का फल कैसा होता है।

 इन्तजार का मतलब उस भौरें से पूछो जो एक अरसे से फूलों की कोमल पंखुड़ियों में समा जाने को बेचैन है इन्तजार की रूप रेखा उस किसान से जानो जो बरखा रानी की राह देख रहा हैइन्तजार का अर्थ उस माँ से पूछों जिसने अभी अपने मुन्ने का मुख ही ना देखा हो 
इन्तजार के बगैर तो जीवन में रंग हो ही नहीं सकता है इन्तजार जितना लम्बा होता है, उसका फल उतना ही मीठा और अनोखा होता है साथ भी यह भी सच है कि यदि इंतजार के बगैर जीवन की कोई चाहत पूरी भी हो जाये तो उसका मिलना बेमजा हो जाता है, उस आनन्द में वो कसक नहीं होती है, वो सुकून नहीं होता है, वो सुख नहीं होता है, वो चैन नही होता है जो इंतजार के लंबे दुखदायी लम्हे को काटने के बाद मिली चाहत में होता है। 

इन्तजार के अपने अलग ही रंग और रूप होते है, लेकिन जो भी होते है वे होते बड़े अनोखे है इन्तजार दुखद और सुखद दोनों तरह का हो सकता है इन्तजार अपने आप में सुख और दुःख दोनों को समेटे रखता है इस इन्तजार का सही और सच्चा अर्थ तो सिर्फ एक सच्चा प्रेमी ही बता सकता है

प्रेम में इन्तजार का अपना एक अलग ही महत्त्व होता है। इन्तजार के बगैर प्रेम की कल्पना असम्भव सी लगती है। प्रेम के बगैर इंतजार की कल्पना का असंभव प्रतीत होना ही, प्रेम में इंतजार के मायने को परिभाषित करता है, प्रेम में इन्तजार को महत्त्व देता है, या यूँ हक़ सकते है कि इन्तजार ही प्रेमियों को जीवंत रखता है। बिना इन्तजार के प्रेम हो ही नहीं सकता है प्रेम का नाम जीवन और जीवन नाम ही इन्तजार है प्रेम हमें जीवन में सब कुछ सिखा देता है इसलिए इन्तजार का सच्चा मतलब सिर्फ एक प्रेमी ही जान सकता है

हमने आज तक के जीवन में सबसे ज्यादा इन्तजार को ही कोसा है लेकिन जीवन गीत में कुछ ऐसा घटित हुआ कि हमें इन्तजार करने की सी आदत पड़ गयी। अब वही इन्तजार याद कर-कर के एक अनोखे सुख का अनुभव होता है हमें याद है कि हम जीवन गीत में दिन भर इन्तजार करते है सुबह से शाम और शाम से सुबह कब हो जाती है, पता ही नही चलता हैहमारी जिंदगी में अब इन्तजार ने अपना एक महत्वपूर्ण स्थान बना लिया है सोते समय रात को नीद ही नहीं आती है यदि सो भी गया तो रात को करीब ११ बजे के आस - पास तक आँखे खुद-बी-खुद खुल जाती है, बेचैनी बढ़ जाती, कल्पना हिलोरे लेने लगती है। इस तरह से फिर शुरू हो जाता है इंतजार का सिलसिला। जीवन गीत में इंतजार को कुछ यूँ कह सकते है कि जीवन में इन्तजार कोई एक घटना नहीं बल्कि एक सिलसिला है इस इन्तजार का भी अपना एक अनुपम सुख, शांति, सुकून व् आनन्द होता है इन्तजार का ये दुखदायी पल ही जीवन गीत में हमारी चाहतों के महत्त्व को बढ़ाता है, यही इंतजार उन चाहतों के मायनों को परिभाषित करता है, यही इंतजार उन मन्नतों में मीठास भारत है, यही चाहत उन मुरादों में मुक्कमल जहाँ की खुशियाँ का एहसास कराता है।
इस अनोखे सुखद पल का मतलब तो सिर्फ एक प्रेमी ही जान सकता है। ये इन्तजार भी कितना अजीब होता है जो हर कदम में उनकी आहट सुनवाता है दरवाजा खोला तो कोई और होता है, इसके बाद फिर शुरू हो जाता है इन्तजार का अगला पड़ाव आँखों में इन्तजार की अपना अलग ही अंदाज होता है जिसमे बंद आँखे सदा जगती रहती है हवा के झोकों में किसी खुशबू आती है जब बसंत के महीने में मंद-मंद बयार चल रही होती है तो ये इन्तजार कितना दुःखदाई होता है, ये बयाँ करना कागज और कलम के बस की बात नहीं है बसंत के उन झोकों के बीच इन्तजार कितना पीड़ादायी होता है कि बयाँ करना मुमकिन नहीं है


जीवन में हर चीज का एक रंग होता है पर प्रेम रंग सबसे प्यारा , अदभुद और अनोखा होता है प्रेम की शुरुआत ही इन्तजार से होती है| इन्तजार ही प्रेम का एहसास है इन्तजार ही प्रेम  का शुरुआत होता है इन्तजार अनोखे , सर्वशक्ति और अदभुद प्रेम का एक विचित्र अंग है। 
आओ, हम भी करे जतन अपने ईष्ट को पाने का और करे इन्तजार उस ईष्ट के मिलने का.....
Rajani Kant Indra


जनवरी ०९, २०१०