Friday, December 31, 2021

माया माह-2022

 


































Sunday, July 11, 2021

बसपा-सपा गठबन्धन-1993 & 2019 का इतिहास

बसपा-सपा गठबन्धन-1993 & 2019 का इतिहास

अभी हाल में ही उत्तर प्रदेश में संपन्न हुए पंचायती चुनाव - 2021 में जिस तरह से धन, बल का प्रयोग किया गया। महिला प्रत्याशियों के साथ बदसलूकी की गयी, कपडे फाड़े गए। लोगों को नामांकन से रोका गया और फिर वोटिंग करने से रोका गया। भाजपा की यह  गुंडागर्दी और जंगलराज सपा के गुण्डाराज, माफियाराज और जंगलराज को टक्कर दे रहा हैं। पुलिस-प्रशासन बेबस-लाचार निरीह हो चुका हैं। ऐसे में यह सब देखकर सपा सरकार की याद आ गयी।

साल 2016 में पंचायती चुनाव के दौरान उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले में भरी सड़क पर समाजवादी पार्टी की सरकार द्वारा संरक्षण प्राप्त समाजवादी पार्टी के एक मामूली से गुंडे ने पुलिस की मौजूदगी में सारेआम अपने गुंडों के साथ एक लड़की को बेरहमी से पीटा, उसके कपड़े फाड़ दिए, उसके सर को फोड़ दिया, और मानवता को शर्मसार करते हुए सरेआम गलत जगह पर छूकर उसकी अस्मिता को तार-तार कर दिया।

पूरी घटना पुलिस की मौजूदगी में समाजवादी पार्टी द्वारा संरक्षण प्राप्त गुंडों ने किया और वहां खड़ी बेबश लाचार जनता तमाशबीन बनी रही। राजनीतिक दबाव की वजह से सपाई गुंडों की गिरफ्तारी नहीं हो पाई थी। इस तरह की हजारों घटनाएं समाचार पत्रों और सोशल मीडिया समेत इंटरनेट पर उपलब्ध है। सपा के शासनकाल में यह गुंडई और अपहरण कोई नई घटना नहीं है। समाजवादी सरकार की पहचान ही गुंडों की सरकार के रूप में होती है।

यही वजह रही थी कि जब पहली बार बसपा-सपा गठबंधन हुआ था तब भी श्री मुलायम सिंह यादव ने उत्तर प्रदेश में जंगलराज और गुंडागर्दी को इस कदर परवान चढ़ा दिया था कि उत्तर प्रदेश के कुर्मी, लोहार, कहार, कुम्हार, केवट, फांसी, धोबी, भर के साथ-साथ वंचित और मुस्लिम समाज के लोग बहुत पीड़ित थे।

सपा की इसी गुण्डागर्दी, माफियाराज और जंगलराज की वजह से बहुजन समाज की उत्तर प्रदेश तक सीमित रहने वाली क्षेत्रीय पार्टी मतलब समाजवादी पार्टी भारत की तीसरी सबसे बड़ी राजनैतिक पार्टी बसपा के साथ नहीं चल सकी।

उत्तर प्रदेश होने वाले आम विधानसभा चुनाव-2022 के मद्देनजर पिछड़े वर्ग, अति पिछड़े वर्ग, वंचित जगत, आदिवासी समाज एवं मुस्लिम समाज को अपना, प्रदेश का व आने समय में देश के हित में समाजवादी पार्टी को समझने की जरूरत हैं।

बहुजन समाज की तमाम जातियों को यह जानना अति आवश्यक 1993 में पहली बार हुए गठबंधन और 2019 में दुबारा सपा के साथ हुए गठबंधन से बसपा ने किनारा क्यों किया? सपा के आचरण के चलते बहुजन समाज को कितना नुक्सान हुआ और भाजपा को कितना फायदा हुआ? इसका लेख-जोखा जरूरी हैं।

बोधिसत्व विश्वरत्न शिक्षा प्रतीक मानवता मूर्ति राष्ट्र निर्माता बाबासाहेब डॉ अम्बेडकर ने कहा हैं कि जो समाज अपना इतिहास नहीं जनता हैं वो कभी अपना इतिहास नहीं बना सकता हैं। ऐसे में बहुजन समाज कि पिछड़ी, अति पिछड़ी जातियों एवं मुस्लिम समाज को बसपा-सपा गठबन्धन का इतिहास जानना जरूरी हैं। ताकि आने वाले आगामी विधानसभा आमचुनाव-2022 में पिछड़ा वर्ग, अति पिछड़ा वर्ग और मुस्लिम समाज सहीं निर्णय ले सके।

बसपा-सपा गठबंधन - 1993

सन 1993 में सपा के साथ गठबंधन की सरकार के सन्दर्भ में मान्यवर कांशीराम साहब ने बहन जी को बसपा और सपा के बीच राजनैतिक तालमेल बिठाए रखने की जिम्मेदारी सौंपी थी जिसका बखूबी पालन करते हुए भारत गौरव भारत महानायिका परम आदरणीय बहन कुमारी मायावती जी ने बार-बार श्री मुलायम सिंह यादव को उत्तर प्रदेश में फैल रहे अत्याचार, अनाचार और गुंडागर्दी के संदर्भ में समय-समय पर आगाह किया।

परंतु श्री मुलायम सिंह का संरक्षण मिलता रहा और श्री मुलायम सिंह के इशारे पर गुंडे उत्तर प्रदेश में तांडव मचाते रहे। और, इस प्रकार मामला हद से आगे बढ़ता चला गया। अंत में मान्यवर साहब ने खुद मामले का संज्ञान लिया और वह उत्तर प्रदेश आए। यहां पर आकर उन्होंने पूरी मालूमात की।

19 जून 1995 को मुख्यमंत्री आवास लखनऊ पर बुलाई गयी प्रेस कॉन्फ्रेंस में पत्रकारों को सम्बोधित करते हुए मान्यवर साहेब कहते हैं कि-

 “आप लोगों के अलावा बाकी पार्टियां भी मुझसे कहती रही हैं कि उत्तर प्रदेश में माफिया का राज चल रहा है, गुंडाराज चल रहा है, खासकर पंचायत चुनाव में देखने को मिला कि नामांकन भरने से लेकर रिजल्ट आने तक जो गुंडागर्दी का नंगा नाच हुआ उसके बारे में मुझसे हर पार्टी ने शिकायत की और फिर मैंने उनकी शिकायतों को मुलायम सिंह तक पहुंचाया। तो मैं सोचता था कि इसकी शिकायत जायज है। जैसे बीजेपी, कांग्रेस, जनता दल के लोग मुझ से मिले और लगभग हर पार्टी के लोगों को शिकायत थी। मैंने वह शिकायत उन (मुलायम) तक पहुंचा दी।“ (बहुजन संगठक, वर्ष-15, अंक-23, 03 जुलाई 1995)

मान्यवर साहेब खुद अपने भाषण में बताते हैं कि 1995 के पंचायत चुनाव में बसपा के ही तमाम जीते सदस्यों का श्री मुलायम सिंह के इशारे पर अपहरण कर लिया गया था। जिसमें महिला पंचायत सदस्य आदरणीया श्रीमती तारा देवी का नाम भी शामिल था।

इसका जिक्र करते हुए 19 जून 1995 को मुख्यमंत्री आवास लखनऊ पर बुलाई गयी प्रेस कॉन्फ्रेंस में पत्रकारों के माध्यम से प्रदेश को सूचित करते हुए मान्यवर साहेब कहते हैं कि-

 "जब मैं पिछले महीने 22 मई (1995) को उनकी पार्टी (सपा) के 4 एमएलए की सपोर्ट के लिए लखनऊ पहुंचा तो पहुंचते ही मुझे पता चला कि दूसरी पार्टियों के साथ-साथ बहुजन समाज पार्टी भी गुंडागर्दी की शिकार हो चुकी है। बहुजन समाज पार्टी की एक महिला उम्मीदवार (तारा देवी) का अपहरण किया गया। लगभग 80 घंटे तक उसे अपने कब्जे में बंदी बनाकर रखा। और हवाई अड्डे पर भी काफी लोग शिकायत करने इकट्ठा हुए जिनके पट्टियां बंधी हुई थी। वह लोग बोले हमें वोट डालने नहीं दिया गया, जब हमने वोट डालने की कोशिश की तो उन्होंने लाठी चार्ज करा दिया। हमारी उम्मीदवार (तारा देवी) का अभी तक पता नहीं, वो कहां पर हैं? तो उसके बाद मैं ज्यादा सोचने को मजबूर हुआ। तब मुलायम सिंह से मैंने गुस्से में काफी कुछ कहा उसके बारे में जब आप सब (पत्रकार) लोग जानते ही हैं।“ (बहुजन संगठक, वर्ष-15, अंक-23, 03 जुलाई 1995)

मान्यवर साहब ने मुलायम को फटकारते हुए आदरणीया श्रीमती तारा देवी समेत सभी लोगों को तत्काल हाजिर करने को बोला। और आदरणीया श्रीमती तारा देवी का अपहरण करने वाले गुंडों पर एक हफ्ते में कार्यवाही करने के लिए कहा। लेकिन श्री मुलायम सिंह ने अपने संरक्षण में काम कर रहे गुंडों को गिरफ्तार‌ नहीं किया।

मान्यवर साहब ने तय कर लिया कि उत्तर प्रदेश में अन्य बुराइयों को दूर करने से पहले उत्तर प्रदेश में गुंडों व गुंडों की सरकारों को बर्खास्त करना होगा क्योंकि गुंडागर्दी से प्रभावित होने वाला समाज इस देश का गरीब और मजलूम होता है। मान्यवर साहब ने कहा कि जिस की सुरक्षा और अधिकारों की रक्षा की जिम्मेदारी हमने उठाई है यदि वही सुरक्षित नहीं रहेगा तो ऐसे गठबंधन से क्या फायदा होने वाला है।

समाजवादी की सरकार में पिछड़े, अति पिछड़े, वंचित और अल्पसंख्यक समाज पर घोर अत्याचार हुआ। जब हम दिल्ली में रहते थे, उस समय दिल्ली में अलीगढ़ के मिशन से जुड़े बुजुर्ग साथी ने अलीगढ काण्ड का जिक्र करते हुए बताया कि अलीगढ़ में भट्ठे पर काम करने वाली दलित-आदिवासी महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया, और विरोध करने पर उनको भट्ठे में ही झोंक दिया गया। सबूत ख़त्म हो गए और गुण्डे आसानी से बच गये। गुण्डों के बुलन्द हौसले का कारण कुछ और नहीं तत्कालीन सरकार का खुला संरक्षण था। इस तरह से समाजवादी की सरकार में हजारों घटना है कि किस तरह से गुंडाराज परवान चढ़कर मानवता को शर्मसार करते हुए संविधान की धज्जियां उड़ा रहा था।

इन सब के मद्देनजर मान्यवर साहब ने तय किया कि बहुजन समाज को सबसे पहले गुंडों से बचाना है तो उसके लिए कानून व्यवस्था को संविधान के अनुसार लागू करना होगा।

मुलायम सिंह को समय-समय पर दी गयी चेतावनी को पत्रकारों के माध्यम से जनता को बताते हुए मान्यवर साहेब कहते हैं कि-

 "मैंने मुलायम सिंह को 18 महीने का समय दिया। इतने अर्से के बाद जब मैंने 18 महीने के कार्य का हिसाब-किताब लिया, तो मुझे ऐसी उम्मीद हुई कि आने वाले समय में कुछ सुधार हो सकता हैं, लेकिन आप लोगों ने फिर लिखा कि कांशीराम ठन्डे होकर चले जायेगें। मैंने ठन्डे दिमाग से सोचना और जिस व्यक्ति (मुलायम सिंह) को मुख्यमंत्री बनाया हैं, उसको ज्यादा से ज्यादा मौका देना, यह मैं जरूरी समझाता था। जल्दी में या बगैर मौका दिए कोई एक्शन लेना मैं सही नहीं समझता हूं। लेकिन बहुत लंबे अर्से से मैं अपने मुख्यमंत्री से अपील करता रहा हूं कि जिस मकसद के लिए सरकार बनाई गई है, उस मकसद को पूरा करने के लिए आप सही कदम उठाएं, खासकर जो दबा कुचला इंसान है, जिसको हम लोग "वीकर सेक्शन" भी कहते हैं उस पर अन्याय अत्याचार नहीं होना चाहिए। उसको राहत मिलनी चाहिए। अगर गुंडागर्दी होती है तो सबसे पहले इसका शिकार भी बहुजन समाज ही होता है।" (बहुजन संगठक, वर्ष-15, अंक-23, 03 जुलाई 1995)

इसलिए श्री मुलायम सिंह यादव की गुंडागर्दी से त्रस्त लोग साहब से मिल कर उत्तर प्रदेश को गुंडों से मुक्त कराने की इल्तज़ा की। साहब ने जनता की सुरक्षा को सर्वोपरि करार करते हुए उत्तर प्रदेश को अपराध मुक्त बनाने का बीड़ा उठाया। इस मुहिम में कांग्रेस, कम्युनिस्ट समेत तमाम दलों ने बसपा को बिना शर्त समर्थन देकर उत्तर प्रदेश को अपराध मुक्त प्रदेश बनाने की विनती की थी।

गुंडों और अपहरणकर्ताओं पर कानूनी कार्यवाही के संदर्भ में कैबिनेट मीटिंग का जिक्र करते हुए साहेब कहते हैं कि-

 “मैंने जाते-जाते उनसे यह कहा (उस वक्त मुझे हवाई अड्डे छोड़ने जाते समय कैबिनेट मंत्री भी वहां पंहुचे हुए थे) कि आप लोग कैबिनेट की मीटिंग बुलाकर जो मुलायम सिंह ने मुझसे वादा किया है कि 'जो गुनहगार है, उसको सजा दी जाएगी' तो कैबिनेट मीटिंग में उस पर विचार करो। 23 तारीख (23 मई 1995) को मैंने मुलायम सिंह से कहा कि एक हफ्ते के अंदर उनको सजा देनी चाहिए।“ (बहुजन संगठक, वर्ष-15, अंक-23, 03 जुलाई 1995)

मान्यवर काशीराम साहेब ने सपा के गठन से पूर्व ही मुलायम सिंह को समझा दिया था कि जिसके साथ समझौता किया जाता हैं, उसके साथ संघर्ष नहीं किया जाता हैं। परन्तु सत्ता के नशे में धुत मुलायम सिंह सब कुछ भूल चुके थे।

मान्यवर साहेब ने प्रेस कांफेरेंस के माध्यम से बताया कि-

        "हर पार्टी गुंडागर्दी का शिकार बन चुकी है। बहुजन समाज पार्टी जो आपके साथ समझौता किए हुई है वह भी गुंडागर्दी का शिकार बन गई है, तो यह समझौता तभी चल सकता है जब गुंडागर्दी का अंत हो। सारे लोग दुखी हैं गुंडागर्दी से।" (बहुजन संगठक, वर्ष-15, अंक-23, 03 जुलाई 1995)

मुलायम सिंह ने अपहरणकर्ताओं पर कार्यवाही नहीं की। मान्यवर साहेब आगे बताते हैं कि-

        "जब एक हफ्ता बीत गया तो मुझसे उन्होंने (मुलायम सिंह) मुझसे समय मांगा। दो दिन का समय हमने दिया, क्योंकि वह (मुलायम) मिलना चाहता था, तब मैंने उससे (मुलायम) कहा कि मुझसे मिलने से पहले उनकों सजा देना जरूरी है। जिस एमएलए और जिन पुलिस के अधिकारियों ने हमारी महिला उम्मीदवार के अपहरण में गुस्ताखी की है उनकों सजा देने के बाद मुझसे मिल सकते हैं, उससे पहले नहीं। तो 30 तारीख (30 मई 1995) को उसका एक हफ्ता पूरा हो गया, और 31 तारीख (31 मई 1995) को उसने फिर मुझसे मिलने को कहा तो मैंने उससे (मुलायम) कहा कि उनको सजा दिए बगैर मुझसे नहीं मिल सकते हो। मैं आपको क्या सजा दे सकता हूं, इसके बारे में मुझे सोचना होगा। तब मैंने उस समय सोचा कि इस समझौते से बसपा को अलग कर लेना चाहिए और जिन पार्टियों ने एसपी-बीएसपी सरकार के समय में हुई गुंडागर्दी की शिकायत मुझसे की तो उसके साथ उन्होंने यह भी कहा कि बीएसपी यदि समझौते से अलग होती है तो गुंडागर्दी और बढ़ सकती है, क्योंकि आपके कुछ आदमियों (विधायकों) को खरीद लिया जाएगा। कुछ दूसरी पार्टियों से खरीद लिए जाएंगे, उनका अपहरण करके अपने साथ मिलाकर गुंडों की पूरी सरकार बन जाएगी तो इसलिए आप सरकार से समझौते से अलग होने के साथ-साथ अपना दावा भी करें कि हम सही सरकार बनाने की हालत में है।“ (बहुजन संगठक, वर्ष-15, अंक-23, 03 जुलाई 1995)

बसपा-सपा गठबंधन को तोड़ने की वजह का जिक्र करते हुए मान्यवर काशीराम साहेब कहते हैं कि-

        "मुलायम सिंह ने प्रदेश में जो गुण्डाराज और माफियाराज कायम कर रखा था, अब उसकी उन्हें सजा देना जरूरी हो गया था और यही सोचकर हमने मुलायम सरकार को गिराने तथा बसपा-सपा गठबंधन तोड़ने का फैसला किया।" (बहुजन संगठक, वर्ष-15, अंक-23, 03 जुलाई 1995)

उत्तर प्रदेश पंचायत व स्थानीय निकाय चुनाव के संदर्भ में बहन जी कहती हैं कि-

"यूपी में खासकर पंचायत व स्थानीय निकाय चुनाव आदि शायद ही कभी स्वतंत्र व निष्पक्ष तौर पर हुई होंगे। यहां दबंगई, धनबल, बाहुबल व पुलिस व सरकारी तंत्र का इतना अधिक दुरुपयोग किया जाता है कि यह चुनाव अधिकांशत: लोकतंत्र का माखौल बनकर ही रह जाते हैं और जनता के विरोध को जबरदस्ती दबा दिया जाता है।" (बी.एस.पी. द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति - दिनांक 15. 07. 2021)

 

पंचायतों व स्थानीय निकायों में हो रही गुण्डागर्दी के सन्दर्भ में सपा सरकार के गुण्डाराज का वर्णन करते हुए बहन जी कहती हैं कि-

"इतना ही नहीं बल्कि इन मामलों में (पंचायतों व स्थानीय निकायों में हो रही गुण्डागर्दी के सन्दर्भ में) बीएसपी का अनुभव हमेशा ही काफी कड़वा रहा है। इस संबंध में कौन भूल सकता है कि सन 1993 में सपा के साथ गठबंधन की सरकार बनने के बावजूद जब बीएसपी के कार्यकर्ताओं के साथ हिंसक बर्ताव करते हुए उनका अपहरण आदि करके उन्हें नामांकन भरने तक से भी रोका गया और अंततः एक चर्चित मामले में महिला कार्यकर्ता का फैजाबाद में अपहरण कर लेने के फलस्वरूप जब अति हो गई तो अन्य कारणों के साथ-साथ इसके विरोध में भी बीएसपी ने जून 1995 में सपा से गठबंधन तोड़ना ही बेहतर समझा और अपना समर्थन वापस ले लिया जिस कारण तब कि सपा सरकार सत्ता से बाहर हो गई थी।" (बी.एस.पी. द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति - दिनांक 15. 07. 2021)

नतीजन, मान्यवर कांशीराम साहब ने बसपा-सपा गठबंधन तोड़ दिया। जिसके परिणामस्वरूप 2 जून 1995 को भारत गौरव भारत महानायिका परम आदरणीय बहन कुमारी मायावती जी पर समाजवादी पार्टी के गुंडों ने श्री मुलायम सिंह यादव के इशारे पर बहन जी को जान से मारने के लिए आक्रमण किया। घंटों यह तांडव चलता रहा। परंतु वहां पर मौजूद लोगों की जद्दोजहद के परिणामस्वरूप बसपा के लोगों और भारत गौरव परम आदरणीया बहन कुमारी मायावती जी सुरक्षित रहीं।

परम आदरणीया बहन जी ने श्री मुलायम सिंह यादव समेत तमाम गुंडों पर विभिन्न धाराओं में मुकदमे दर्ज कराए। परंतु 2019 में होने वाले चुनाव में भाजपा को हटाने और भाजपा के अत्याचार से जनता को बचाने के उद्देश्य से बसपा ने गठबंधन किया।

परन्तु श्री अखिलेश यादव की शर्त थी कि परम आदरणीया बहन जी श्री मुलायम सिंह यादव पर किए हुए मुकदमे को वापस ले लें। बहन जी ने जनता के हित को सर्वोपरि क़रार करते हुए और श्री मुलायम सिंह पर दया करते हुए अपने मुकदमे को वापस ले लिया।

सरकार बनाने के दावे के सन्दर्भ में मान्यवर मसीहा काशीराम साहेब कहते हैं कि-

"मैंने कैलकुलेशन किया, क्योंकि अन्य सभी पार्टियों के लोग मुझसे मिलते थे, गुंडागर्दी की अंत के लिए। तब मैं संतुष्ट हुआ कि इस कैलकुलेशन के आधार पर हम बहुमत साबित कर सकते हैं। इसलिए मैंने राज्यपाल महोदय को पत्र लिखा, मुझे उनसे मिलना था, लेकिन मेरी बीमारी के कारण मुझे अस्पताल में दाखिल होना पड़ा, तो मैंने मायावती को राज्यपाल साहब के पास भेजा वह बात तो आप सभी (पत्रकारों) को मालूम है।“ (बहुजन संगठक, वर्ष-15, अंक-23, 03 जुलाई 1995)

फिलहाल, 03 जून 1995 को मतलब कि अगले ही दिन परम आदरणीया बहन जी ने भारत के सर्वाधिक आबादी वाले उत्तर प्रदेश मुख्यमंत्री की तौर पर शपथ ग्रहण की।

बहन जी के शपथ लेते ही उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था में अमूल-चूल परिवर्तन दिखाई पड़ने लगा। एक महीने के अंदर 1,45000 गुंडे सलाखों के पीछे पहुंच गए। अन्य गुंडे उत्तर प्रदेश को छोड़कर अन्य प्रदेशों में शरणागत हो गए। और कुछ तो भारत ही छोड़ कर विदेशों में जाकर छुप गए।

मान्यवर साहेब भारत में सामाजिक परिवर्तन और आर्थिक मुक्ति के आन्दोलन के प्रति बसपा की निष्ठा, ईमानदारी और संघर्ष को उजागर करते हुए पत्रकारों के माध्यम से देश को बताते हुए कहते हैं कि-

        "बहुजन समाज पार्टी ने कुर्सी के लालच में या किसी और लालच में समझौता नहीं तोड़ा है। गुंडागर्दी से सब लोग दुखी थे, चाहे वह किसी भी विचारधारा के हो। बीएसपी की अपनी विचारधारा है, बीजेपी की अपनी है, जनता दल की अपनी है, कांग्रेस व सीपीआई की अपनी विचारधारा है। तो मुझे ऐसा लगा कि सब लोग अपनी-अपनी विचारधारा को अपने पास रखकर गुंडागर्दी का मुकाबला कर सकते हैं। गुंडागर्दी का मुकाबला करने के लिए सब लोग इकट्ठा हो सकते हैं। इसलिए हम लोगों ने समझौता तोड़कर सरकार बनाने की सोची।“ (बहुजन संगठक, वर्ष-15, अंक-23, 03 जुलाई 1995)

19 जून 1995 को मुख्यमंत्री आवास, लखनऊ, पर बुलाई गयी प्रेस कॉन्फ्रेंस में बोलते हुए मान्यवर काशीराम साहेब ने अपनी सरकार की प्राथमिकताओं को स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि –

"हमारी सरकार एक दिन चले या दो दिन चले, पर चलेगी बसपा की नीतियों, सिद्धांतों और कार्यक्रमों के ही आधार पर। हमारे कार्यक्रमों में सबसे ऊपर हैं गुंडाराज को समाप्त करना। हमने गुंडों के सरगना को कुर्सी से हटा दिया हैं। अब पूरे प्रदेश  के गुंडों और माफियाओं को ऐसा सबक सिखायेगें कि पूरे देश में एक सन्देश जाये।"  (बहुजन संगठक, वर्ष-15, अंक-23, 03 जुलाई 1995)

इस तरह से कानून व्यवस्था को लागू कर उत्तर प्रदेश को पूरी तरह से अपराध मुक्त कर दिया गया।

श्री मुलायम सिंह यादव और समाजवादी पार्टी की गुंडागर्दी का जिक्र करते हुए मान्यवर कांशी राम साहब खुद अपने एक इंटरव्यू में कहते हैं कि –

“मैंने एक पंचायत लेवल के आदमी (मुलायम सिंह) को मुख्यमंत्री बना कर एक बड़ी गलती की है।“

लोगों को जानकारी होनी चाहिए कि समाजवादी पार्टी श्री मुलायम सिंह यादव के दिमाग की नहीं बल्कि मान्यवर मसीहा कांशीराम साहब के दिमाग की उपज थी। मान्यवर कांशीराम साहब चाहते थे कि पिछड़े वर्ग में स्वतंत्र नेतृत्व पैदा की जाए और उसके द्वारा पिछड़े वर्ग और दलित समुदाय को बहुजन आंदोलन की वैचारिकी से जोड़ करके भारत से ब्राह्मणवाद को खत्म कर दिया जाए।

मान्यवर साहब ने पिछड़े वर्ग में सिर्फ मुलायम सिंह ही नहीं बल्कि इनके जैंसे तमाम नेता पैदा किये। इसी का परिणाम हैं आज पिछड़ी वर्ग की हर जाति में एक पार्टी हैं। पिछड़े व अति पिछड़े वर्गों में राजनीति की यह चेतना मान्यवर काशीराम साहेब की देन हैं। आज ये अपनी जाति के नाम पर पार्टी बनाकर घूम रहे हैं परन्तु जैसे-जैसे जागरूकता आएगी ये तमाम पिछड़ी जाति के लोग एक मंच पर, एक झण्डे के नीचे एकत्रित होकर बहुजन आन्दोलन को आगे बढ़ाने में सहयोग करेंगे। परन्तु मुलायम सिंह की महत्वकांक्षा के चलते पिछड़े वर्ग में बहुजन चेतना के विकसित होने की गति मंद पड़ गयी थी जिसे बसपा त्वरण प्रदान करने की सतत कोशिस कर रहीं हैं।

फिलहाल, इतिहास में यह दर्ज़ हो चुका हैं कि श्री मुलायम सिंह यादव की गुंडागर्दी के चलते बहुजन आंदोलन को बहुत बड़ा आघात लगा। जिसके कारण आंदोलन में रुकावट आई। आंदोलन की गति में भी काफी फर्क आया।

बसपा-सपा गठबंधन-2019

बहुजन आन्दोलन के संदर्भ में एक बार मान्यवर साहेब ने 1993 में सपा के साथ गठबंधन किया था जो कि मुलायम सरकार की गुण्डागर्दी की बलि चढ़ गया। इसके बाद उत्तर प्रदेश और केंद्र पर काबिज मनुवादी बीजेपी सरकार को सत्ता से बाहर करने के लिए परम आदरणीया बहनजी ने 2019 में सपा से फिर गठबंधन किया। बसपा के लिए यह दुबारा एक नई शुरुआत थी। इसका जिक्र बहनजी अपनी प्रेस विज्ञप्ति में करते हुए कहती हैं कि सपा का नेतृत्व बदल चुका हैं। पहली बार सपा-बसपा गठबंधन सरकार के दौरान जो कुछ हुआ उसका श्री अखिलेश यादव से कोई लेना-देना नहीं हैं। इसलिए सर्वसमाज के हित को ध्यान में रखते हुए बसपा, सपा से गठबंधन करके मनुवाद की कट्टर वाहक भाजपा को सजा देने के लिए एक नई शुरुआत की पहल की। 

इस चुनाव में जनता द्वारा परम आदरणीया बहनजी को देश के प्रधानमन्त्री और श्री अखिलेश यादव को उत्तर प्रदेश के मुख्यमन्त्री के तौर पर देखा जाने लगा। जनता, खासकर फुले-शाहू-अम्बेडकर आन्दोलन के वाहक अनुसूचित जाति, में अच्छा-खासा उत्साह था। परन्तु अखिलेश यादव के उस बयान ने बहुजन चिन्तकों को सोचने पर मजबूर कर दिया जब श्री अखिलेश ने कहा कि बहनजी का वोट ट्रांस्फ़ेरेबल हैं, परन्तु सपा के वोट के संदर्भ में हम ऐसा कुछ नहीं कह सकते हैं।

श्री अखिलेश यादव का यह बयान गठबंधन में उनके और उनकी पार्टी की नकारात्मकता को दर्शाता हैं। साथ ही बहनजी ने चुनावी भाषणों में जय भीम के साथ जय लोहिया भी कहा परन्तु श्री अखिलेश यादव ने कभी भी जय भीम को स्वीकार नहीं किया।

श्री अखिलेश यादव के इस रवैये का उनके वोटरों पर सीधा प्रभाव पड़ा या यूं कहिए कि अखिलेश यादव ने अपने वोटरों को इशारे में समझा दिया कि “बसपा के उम्मीदवारों को वोट नहीं करना हैं”। जिसका परिणाम यह हुआ कि समाजवादी पार्टी के कोर वोटर अहीरों ने गठबंधन के तहत चुनाव लड़ रहे बसपा के प्रत्याशियों को वोट करने के बजाय जहाँ-तहाँ शिवपाल सिंह यादव की पार्टी को वोट किया और जहाँ भाजपा मजबूत दिखी वहां हिंदुत्व के नाम पर खुलेआम भाजपा को वोट कर दिया।

चुनाव प्रचार के दौरान उत्तर प्रदेश के लगभग हर लोकसभा क्षेत्र के बसपा के प्रत्याशियों, पदाधिकारियों व कार्यकर्ताओं ने शिकायत भी दर्ज कराई कि “समाजवादी पार्टी के लोग सर्मथन में नजर नहीं आ रहे हैं। समाजवादी पार्टी के लोग सहयोग नहीं कर रहें हैं”। मिश्रिख लोकसभा सीट पर चुनाव प्रचार के दौरान यादव बस्तियों के बारे में जिक्र करते हुए अमिता अम्बेडकर बताती हैं कि "अहीर महिलाओं ने खुलेआम हम लोगों से कहा कि हम एक चमारिन को प्रधानमन्त्री कैसे बना सकते हैं। अखिलेश ने गलत फैसला लिया हैं। एक चमारिन से तो मोदी ही अच्छा हैं।"

अहीर समाज के लोगों में यह चर्चा बड़े जोरों से चल रही थी कि "डिम्पल यादव ने एक चमारिन का पैर छूकर पूरे अहीर समाज का अपमान किया है।" इससे भी ज्यादा दुखद हैं कि श्रीमती डिम्पल जी हिन्दू व्यवस्था के अनुसार जन्म से एक क्षत्रणी हैं परन्तु क्षत्रियों ने कोई विरोध नहीं किया लेकिन अहीरों ने इसे अपना अपमान बताया। इससे यह साबित होता हैं कि दलितों के प्रति अहीरों के मन में ब्राह्मणों-क्षत्रियों व बनियों से भी ज्यादा नफ़रत हैं। ब्राह्मणों सवर्णों ने 2007 विधानसभा आमचुनाव में बहनजी को अपना नेता स्वीकार कर पूर्ण बहुमत की सरकार बनवाने में मदद्गार साबित हुआ परन्तु शूद्रों में नीची समझी जाने वाली अहीर जाति अपनी नफ़रती मानसिकता के कारण अभी भी बहनजी के नेतृत्व व करिश्मा को किसी भी रूप में (यहाँ तक कि विपक्ष के तौर पर भी पूरे मन) स्वीकार नहीं कर पा रहा हैं।

इसी तरह से जब बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री श्री लालू प्रसाद यादव जी के पुत्र श्री तेजस्वी यादव जी ने बहनजी का चरणस्पर्श कर आशिर्वाद लिया तो भी अहीर समाज ने इसे अहीर समाज का अपमान मानते हुए सोशल मीडिया, गांव के चौराहों और परचून व पान की दुकानों पर बहन जी को खूब गाली-गलौज किया। हमारी नज़र में दलितों, पिछड़ों, अति पिछड़े वर्गों एवं अल्पसंख्यकों में मान्यवर साहब व बहनजी द्वारा लायी गई सामाजिक व राजनैतिक चेतना का ही परिणाम है कि पासी, धोबी, खटिक, जाटव, कुर्मी, निषाद, भर, नाई, जागरूक मुस्लिमों ने इसको नजरअंदाज कर अपने एजेंडे पर ध्यान केन्द्रित रखा।

                        यदि अहीर समाज अभी भी मनुवादी सोच का शिकार हैं, बहुजन आंदोलन की वाहक चमार जाति से घोर नफ़रत करती है तो इसके जिम्मेदार इन समाजों में इनके वे नेता हैं जो इनका वोट तो लेते हैं परन्तु इनको समाजिक बुराइयों से अवगत नहीं करा सकें हैं, इनमें श्री मुलायम सिंह यादव, श्री लालू प्रसाद यादव, श्री शरद यादव, श्री नीतीश कुमार आदि प्रमुख हैं।

फिलहाल, बहन जी ने 29 अक्टूबर 2020 की अपनी प्रेस विज्ञप्ति में साफ़-साफ कहा कि चुनाव के दौरान रणनीतियों पर चर्चा करने के बजाय श्री अखिलेश यादव लगातार अपने पिता श्री मुलायम सिंह यादव पर चल रहे मुकदमे को वापस लेने का दबाव बनाते रहे हैं।

बहन जी ने अपनी प्रेस विज्ञप्ति में साफ़-साफ कहा कि चुनाव के दौरान रणनीतियों पर चर्चा करने के बजाय श्री अखिलेश यादव लगातार अपने पिता श्री मुलायम सिंह यादव पर चल रहे मुकदमे को वापस लेने का दबाव बनाते रहे हैं। 29 अक्टूबर 2020 को अपने प्रेस विज्ञप्ति में आदरणीया बहनजी ने सपा व श्री अखिलेश यादव के रवैये और मंशा का खुलासा करते हुए बताती हैं कि-

 "जब इस बार सपा के साथ मिलकर लोकसभा आम चुनाव लड़ने का यहां उत्तर प्रदेश में हमारी पार्टी का इनके साथ गठबंधन हुआ तो तब फिर हमारी पार्टी यहां पूरे जी-जान से इस गठबंधन को जिताने में लग गई थी लेकिन वहीं दूसरी तरफ सपा के मुखिया गठबंधन होने के बाद से ही श्रे एस सी मिश्रा जी को अक्सर यह कहते रहे कि अब तो सपा व बसपा का गठबंधन हो गया है तो ऐसे में अब बहन जी को 2 जून 1995 के मामले को भुला के इस केस को वापस ले लेना चाहिए आप बहन जी से इस बारे में जरूर बात करें।" (बीएसपी द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति – दिनांक 29.10.2020)

परिणामस्वरूप करुणामयी बहनजी श्री मुलायम सिंह के गुनाहों को मुआफ करते हुए माननीय उच्चतम न्यायालय में विचाराधीन केस को वापस ले लिया। इसके बाद श्री अखिलेश यादव के बयान के अनुसार उनके कार्यकर्ताओं और वोटरों को जहाँ सपा का उम्मीदवार था वहां सपा को, जहाँ सपा कमजोर दिखी वहां शिवपाल यादव की पार्टी और अधिकांश जगह पर हिंदुत्व का समर्थन करते हुए भाजपा को वोट कर गठबंधन को धोखा देने का काम किया किया। जहाँ पर बसपा ने दस सीट जीती हैं वहां पर मुस्लिमों ने बसपा को समर्थन दिया। परिणामस्वरुप दलित और मुस्लिम समाज के साथ अन्य अति पिछड़े वर्ग के सहयोग से बसपा दस सीट जीतने में कामयाब रहीं।

आम जनता की राय हैं कि गठबंधन से सपा को नुक्सान हुआ हैं परन्तु यदि गौर से देखा जाय तो अखिलेश यादव ने यह गठबन्धन मोदी जी को दुबारा प्रधानमन्त्री बनाने और अपने पिता श्री मुलायम सिंह यादव के ऊपर माननीय उच्चतम न्यायलय में चल रहे मुकदमे को वापस कराने के उद्देश्य से किया था जिसमे वे पूरी तरह से सफल रहें।

सर्वविदित हैं कि मुलायम सिंह की घोर इच्छा थी कि श्री नरेंद्र मोदी जी दुबारा प्रधानमन्त्री। अपने पिता की इस इच्छा को पूरी करने और अपने पिता के ऊपर लगे केस को वापस करने के इरादे से श्री अखिलेश यादव द्वारा किया गया सपा के दोनों उद्देश्यों की पूर्ति करते हुए सपा के लिए गठबन्धन सफल रहा। क्योंकि गठबन्धन को धोखा देकर श्री अखिलेश यादव ने अपने पिता श्री मुलायम सिंह यादव की इच्छानुरूप बीजेपी की जीत के रास्ते को आसान कर दिया तो दूसरी तरफ करुणामयी परम आदरणीया बहनजी से विनती कर अपने पिता के ऊपर चल मुकदमे को वापस कराने में सफल रहें। इस प्रकार श्री अखिलेश यादव जी अपने इन दोनों उद्देश्यों को पूरा करने में कामयाब रहें।

श्री मुलायम सिंह जी, श्री नरेन्द्र मोदी जी को दुबारा प्रधानमन्त्री क्यों बनाना चाह रहे थे, इसकी कई वजह हो सकती हैं जैसे कि आय से अधिक सम्पत्ति व इनकी सरकार की हर भर्ती में भ्रष्टाचार व अन्य घोटाले।

फिलहाल, समाजवादी के लोग बहनजी पर सीबीआई और ईडी आदि के डर का जिक्र करते हैं जबकि माननीय उच्चतम न्यायलय ने तमाम केसों से बहनजी को पहले ही ना सिर्फ बरी कर चुकी हैं अपितु सीबीआई को फटकार भी लगा चुकी हैं। इसलिए हकीकत में भ्रष्टाचार व आय से अधिक सम्पत्ति के सन्दर्भ में सीबीआई और ईडी से डर बहनजी को नहीं बल्कि श्री मुलायम सिंह और के खानदान को हैं। और यही वह वजह हैं जिसके संसद में सिर्फ मुलायम सिंह ने विपक्ष में होने बावजूद भी श्री नरेन्द्र मोदी जी को दुबारा प्रधानमन्त्री के रूप में देखने की दृढ़ इच्छा व्यक्त की ताकि जरावस्था शान्तिपूर्वक काट सके। श्री मुलायम सिंह जी को डर हैं कि कहीं उनकी भी हालत श्री लालू प्रसाद यादव जी जैसी ना हो जाय, जोकि अत्यंत दुखद हैं।

फिलहाल, गठबन्धन के प्रति श्री अखिलेश यादव जी की नकारात्मकता इस बात से भी परिलक्षित होती हैं कि लोकसभा आमचुनाव-2019 के परिणाम आने के बाद गठबन्धन की सफलता-विफलता पर चर्चा व समीक्षा होनी चाहिए थी। इस चर्चा व समीक्षा के लिए बसपा के राष्ट्रिय महासचिव श्री सतीश चंद्र मिश्रा ने श्री अखिलेश यादव से संपर्क करने की बहुत कोशिश की परन्तु श्री अखिलेश यादव जी ने बात नहीं की। इसके उलट श्री अखिलेश यादव जी उत्तर प्रदेश के मुख्यमन्त्री श्री अजय कुमार बिष्ट के साथ भोजन आदि पर निमंत्रण देकर आपसी चर्चा करते रहें। जब खुद पिछड़े वर्ग के लोगों ने इस बात पर आपत्ति जताई तो समाजवादी पार्टी ने श्री अखिलेश यादव और श्री अजय कुमार विष्ट की मुलाकातों को पारिवारिक बताकर मामले को टाल दिया। गठबन्धन के सिद्धान्तों के अनुसार श्री अखिलेश यादव को बसपा के साथ चुनाव परिणाम की समीक्षा करनी चाहिए थी, ऐसा ना करके उन्होंने यह जता दिया कि गठबंधन द्वारा सीट जीतना उनका उदेश्य नहीं था बल्कि उनका उद्देश्य श्री मुलायम सिंह जी को बचाने के लिए मोदी जी को दुबारा प्रधानमंत्री बनाने व श्री मुलायम सिंह पर माननीय उच्चतम न्यायालय में चल रहे केस को वापस लेना मात्र थे जिसमे वह सफल हुए।

इसके आलावा श्री अखिलेश यादव और सपा का दलित विरोधी चेहरा राज्यसभा चुनाव  सामने आया। गठबन्धन का पालन करने के बजाय श्री अखिलेश यादव बसपा के विधायकों को तोड़ने का प्रयास किया। 29 अक्टूबर 2020 को अपने प्रेस विज्ञप्ति में इस पूरे वाकिये का जिक्र करते हुए परम आदरणीया बहनजी कहती हैं कि-

 "इनका एक और दलित विरोधी चेहरा हमें कल (28.10. 2020) राज्यसभा के पर्चों के जांच के दौरान भी देखने को मिला जिसमें इनको सफलता नहीं मिलने पर खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे की तरह अब या पार्टी जबरदस्ती बीएसपी पर बीजेपी के साथ सांठगांठ करके या चुनाव लड़ने का आरोप लगा रही है जिसमें रत्ती भर भी सच्चाई नहीं है। 

जबकि इस मामले में सच्चाई तो यह है कि जब यहां उत्तर प्रदेश में राज्यसभा के लिए अधिसूचना जारी हुई जिसके तहत सबसे पहले वह अकेले ही श्री रामगोपाल यादव ने सपा की ओर से अपना पर्चा दाखिल किया तो तब फिर इसके बाद श्री मिश्रा जी ने मुझसे यह कहा कि बहन जी सपा ने अपना केवल एक ही पर्चा दाखिल कराया है। ऐसा लगता है कि शायद वह अपना दूसरा उम्मीदवार खड़ा नहीं कर रहे हैं। ऐसे में फिर हमें अपना भी उम्मीदवार जरूर खड़ा कर देना चाहिए वरना फिर कोई ना कोई बड़ा पूंजीपति हमारे भी विधायकों की खरीद फरोख्त करके यह चुनाव जीत जाएगा। हालांकि हमारी पार्टी अभी सोच कर चल रही थी कि सपा मुखिया की पत्नी लोकसभा का चुनाव नहीं जीत पाई है यदि उनको यह चुनाव लड़वाते हैं तो फिर बीएसपी इन को चुनाव जिताने में कोई भी कसर नहीं छोड़ेगी।" (बीएसपी द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति – दिनांक 29.10.2020)

आगे परम आदरणीया बहनजी कहती हैं कि –

"राज्यसभा के लिए अपना प्रत्याशी उतारने से पूर्व बहुजन समाज पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव श्री सतीश चंद्र मिश्रा जी ने समाजवादी पार्टी की अध्यक्ष श्री अखिलेश यादव से टेलीफोन पर खुद बात करनी चाहिए परंतु जब उनका फोन नहीं उठा। तो तब फिर उन्होंने उनके प्राइवेट सेक्रेट्री से भी फोन में बात की और कहा कि वह उनकी बात श्री अखिलेश यादव से करा दे। जिस पर उनको जवाब में कहा गया कि बात करा दी जाएगी, किंतु बात नहीं कराई गई। इसके पश्चात फिर श्री मिश्रा जी ने श्री रामगोपाल यादव जी से फोन पर वार्ता की और पूछा कि क्या समाजवादी पार्टी दो सीटों पर नामांकन करेगी या सिर्फ एक ही सीट पर। इस पर श्री रामगोपाल यादव ने स्पष्ट रूप से कहा कि समाजवादी पार्टी से एक सीट पर ही चुनाव लड़ेगी।

श्री मिश्रा ने उन्हें यह भी बताया कि अगर समाजवादी पार्टी एक ही सीट पर चुनाव लड़ती है तो तब फिर ऐसी स्थिति में बहुजन समाज पार्टी अपना एक प्रत्याशी इस चुनाव में जरूर उतारेगी वरना दसवीं सीट पर बीजेपी अपना प्रत्याशी अवश्य उतार देगी और फिर नवमी सीट जीतने के लिए उनके पास पर्याप्त वोट ना होने पर भी वह चुनाव जीत जाएंगे जबकि दूसरी तरफ सारे विरोधी पार्टियों के वोट जोड़े जाए तो बीजेपी की वोटों से कहीं अधिक होते हैं। 

इस वार्ता के बाद तब फिर बीएसपी ने उत्तर प्रदेश के ही लखीमपुर खीरी जिले के मूल निवासी श्री राम जी गौतम को जो दलित वर्ग से आते हैं, जिनको राजस्थान प्रदेश की वर्तमान कांग्रेस सरकार के चलते हुए वहां के नेतृत्व में बीएसपी के बढ़ते हुए जनाधार से दुखी होकर फिर इनको यहां से भगाने व इनका मनोबल गिराने के खास उद्देश्य से जो इनके साथ षड्यंत्र के तहत जिस प्रकार से बुरा बर्ताव किया गया था जो कदापि भुलाया नहीं जा सकता है व जिससे कांग्रेस की भी इस दलित विरोधी हरकत से पूरे देश के दलित समाज के लोग काफी आक्रोशित हुए, इनको फिर इनकी पार्टी के प्रति समर्पण व ईमानदारी आदि को खास ध्यान में रखकर इस चुनाव में पार्टी ने खड़ा करने का फैसला किया।

परंतु कांग्रेस की तरह सपा ने भी अपने दलित विरोधी मानसिकता के तहत अपनी इस बात से कि हम दूसरा उम्मीदवार खड़ा नहीं करेंगे उससे मुकरते हुए बीएसपी के इस उम्मीदवार का विरोध करने के लिए एक षड्यंत्रकारी चाल के चलते हुए नामांकन के आखिरी मिनटों में एक निर्दलीय उम्मीदवार को पर्चा भरवाने का काम किया और उसके पश्चात दिनांक 28. 10. 2020 को नामांकन पर्चे की जांच के समय बहुजन समाज पार्टी के 4 विधायकों की खरीद फरोख्त करके उनसे या झूठा हलफनामा दिलवाया कि उन्होंने बहुजन समाज पार्टी के नामांकन पत्र में अपने हस्ताक्षर नहीं किए थे जबकि इन सभी विधायकों ने दिनांक 26. 10. 2020 को श्री राम जी गौतम के नामांकन पत्र में हस्ताक्षर किए थे और पर्चा दाखिले के समय में भी वहीं मौजूद थे। और फिर जांच उपरांत इन विधायकों का यह कथन असत्य व झूठा पाया गया तथा बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी का पर्चा सही पाया गया और फिर समाजवादी पार्टी द्वारा निर्दलीय उम्मीदवार करवाया गया पर्चा कई गंभीर त्रुटियों की वजह से खारिज हो गया अर्थात बीएसपी उम्मीदवार को हराने के लिए सपा ने अपने विधायकों के समर्थन से एक उद्योगपति से पर्चा दाखिल करा दिया और फिर आम चर्चा के मुताबिक जिनके धन से व आगे टिकट देने के लालच से मीडिया के अनुसार बीएसपी के इनको मिलाकर 7 विधायकों को तोड़ा गया जिसमें फिर भी इन्हें उद्योगपति को राज्यसभा भेजने के लिए सफलता प्राप्त नहीं मिल पाई है।

और आप इससे दुखी होकर यह समाजवादी पार्टी बी.एस.पी पर बीजेपी के साथ सांठ-गांठ करके यह चुनाव जीतने का गलत व बेबुनियाद जबरदस्ती के आरोप लगा रही है किंतु इनकी यह घिनौनी हरकत अब इस पार्टी को आगे चलकर कभी भी भारी पड़ सकती है।" (बीएसपी द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति – दिनांक 29.10.2020)

बहनजी द्वारा किये गए इस खुलासे के बाद श्री अखिलेश यादव और उनकी समाजवादी पार्टी की गठबन्धन के साथ की गयी धोखेबाजी और अपने पिता श्री मुलायम सिंह यादव की तरह ही अलोकतांत्रिक व असंवैधानिक तरीकों (विधायकों की खरीद-फरोख्त) द्वारा बसपा को तोड़ने का प्रयास जगजाहिर हो गया। श्री अखिलेश यादव और सपा का अलोकतांत्रिक व असंवैधानिक चरित्र व चेहरा एक बार फिर देश के सामने उजागर हो गया।

इसके साथ ही जिन लोगों को लगता है कि श्री अखिलेश यादव जी भोले-भाले है, बहनजी ने गठबंधन तोड़ दिया है। उनको यह सोचना चाहिए कि जब बसपा ने लोकसभा चुनाव में हार का सामना करने वाली श्रीमती डिम्पल यादव जी को राज्यसभा भेजने के लिए सम्पर्क किया तो श्री अखिलेश यादव जी ने कोई सकारात्मक रूख नहीं अपनाया, जबकि बसपा श्री अखिलेश यादव जी की पत्नी श्रीमती डिंपल यादव जी को ही राज्यसभा भेजना चाहती थी। बहुजन समाज के लोगों को यह भी सोचना चाहिए कि यदि अखिलेश यादव को राज्यसभा की एक सीट मुफ्त में मिल रही थी तो अखिलेश यादव ने उसको छोड़ क्यों दिया?

इसका सीधा मतलब होता है कि श्री अखिलेश यादव जी ने गठबंधन सिर्फ अपने पिताजी की इच्छा के अनुरूप अपने पिता श्री मुलायम सिंह जी को बचाने के लिए श्री मोदी जी को दोबारा प्रधानमंत्री बनाने के लिए उत्तर प्रदेश में भाजपा का रास्ता साफ करने तथा अपने पिता श्री मुलायम सिंह यादव जी को सुप्रीम कोर्ट में चल रहे केस से बाहर लाने के लिए किया था और यह दोनों मकसद पूर्ण हो गए। इसलिए उन्होंने चुप्पी साध ली और गठबंधन को आगे बढ़ाना उचित नहीं समझा। इन सब के बावजूद भी बहुजन समाज के लोग श्री अखिलेश यादव जी को भोला-भाला कह कर सहानुभूति जताते हैं और परम आदरणीय बहन जी पर लगातार गाली गलौज करते रहे हैं। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि बहुजन समाज के लोग सामाजिक तौर पर कुछ जागरूक जरूर हुए हैं परंतु उनमें राजनैतिक समझ व चेतना का आना अभी भी बाकी है।

फिलहाल, इस चुनाव के द्वारा अखिलेश यादव के दोनों उद्देश्यों (भाजपा के लिए रास्ता साफ करना और श्री मुलायम सिंह पर चल रहे केस को वापस कराना) की पूर्ति हो गयी। ये और बात हैं देश का अहीर वर्ग जो सपा के लिए जी-जान से लगा हुआ था, उसके साथ घोर छल हुआ। इस बातों तो जानकर अब अहीर बिरादरी समाजवादी पार्टी और अखिलेश से दूर भाग रहा हैं। जागरूक हुए काफी अहीर अब बसपा की तरफ रुख कर रहे हैं। अखिलेश यादव द्वारा लोकसभा आमचुनाव-2019 में गठबन्धन को धोखा देकर पर्दे के पीछे से भाजपा को समर्थन देने व पंचायती चुनाव-2021 के सपा के लोगों का भाजपा को समर्थन देने से सपा और श्री अखिलेश यादव की पोल खुल चुकी हैं।

परिणामस्वरूप मुस्लिम समाज भी बसपा की तरफ रुख कर चुका हैं। ऐसे में यदि उत्तर प्रदेश में होने वाले आम विधानसभा चुनाव-2022 में अपनी पार्टी को मजबूत करने के लिए सपा और भाजपा परदे के पीछे मिलकर उत्तर प्रदेश में साम्प्रदयिक ध्रुवीकरण कर सकते हैं। इसलिए पिछड़े, अति पिछड़े और मुस्लिम समाज को सपा-भाजपा के इन हथकण्डों से सावधान रहते हुए आपसी सौहार्द को कायम रखते बुद्ध-फूल-शाहू-अम्बेडकर के मिशन की एकमात्र वाहक भारत की तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बहुजन समाज पार्टी के साथ मजबूती से बने रहने की जरूरत हैं।

सपा से पिछड़े वर्ग को क्या मिला?

यह श्री मुलायम सिंह यादव की गुंडागर्दी और मूर्खतापूर्ण सोच का ही परिणाम है कि पिछड़ों का प्रतिनिधित्व करने वाली समाजवादी पार्टी की सरकार के दौरान ही पिछड़े व अति पिछड़े वर्गों का सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है। अनुसूचित जाति / अनूसूचित जनजाति के पदोन्नति में आरक्षण का विरोध करके श्री मुलायम सिंह यादव ने पिछड़े के लिए पदोन्नति में आरक्षण के लिए खुलने वाले दरवाजे को बंद कर दिया हैं।

        श्री मुलायम सिंह यादव और श्री अखिलेश यादव की नफरती मानसिकता का परिणाम हैं कि बसपा द्वारा उत्तर प्रदेश में पिछड़े वर्गों में जन्में संतों-गुरुओं और अन्य सभी महानायकों-महनायिकाओं के नाम पर बने स्कूलों, कॉलेजों, महाविद्यालयों, विश्वविद्यालओं, मेडिकल कॉलेजों, इंजिनीरिंग कॉलेजों, कृषि अभियंत्रण संस्थानों, भवनों, जिलों, सडकों, योजनाओं बदलने के साथ-साथ बहुजन समाज की तमाम विरासतों, स्मारकों आदि को बदनाम करने का कार्य किया गया।

कुर्मी समाज में जन्मे आरक्षण के जनक छत्रपति शाहूजी महाराज के नाम पर बने जीने व मेडिकल कॉलेज का नाम बदलकर श्री अखिलेश यादव ने ना सिर्फ शाहू जी महाराज का बल्कि पूरे देश के कुर्मियों का घोर अपमान किया हैं। यही वजह हैं कि कुर्मी समाज समाजवादी पार्टी को छोड़कर बसपा की तरफ तेजी से भाग रहा हैं, क्योंकि वह अब जान चुका हैं कि मान, सम्मान और स्वाभिमान का जीवन व सुरक्षा सिर्फ बसपा ही दे सकती हैं।

सपा की सरकारों में होने वाली तमाम भारतियों में सरेआम भ्रष्टाचार हुआ। इसके तहत पूरे प्रदेश के अहीरों तक को किनारे करके इटावा, मैनपुरी, कन्नौज व इर्द-गिर्द के अहीरों को वरीयतापूर्वक भर्ती किया गया। जिससे ना सिर्फ पिछड़े वर्ग की अन्य जातियों का बल्कि खुद प्रदेश के अन्य अहीरों का घोर नुक्सान हुआ हैं। अहीर भी अब इस बात की चर्चा करने लगा हैं कि अहीरों के नाम पर बनी समाजवादी पार्टी पूरे प्रदेश के अहीरों की नुमाइन्दगी करने के बजाय श्री मुलायम सिंह यादव के भाई-भतीजों, पुत्रो व पुत्रवधुओं के चुनावी इलाके के अहीरों को ही वरीयता दी जाती हैं। यही वजह हैं कि अब अहीर समाज भी बसपा से जुड़कर बुद्ध-शाहू-फुले-अम्बेडकरी विधारधारा को आगे बढ़ाने के लिए खुलकर सामने आ रहा हैं।

सपा सरकार में सबसे ज्यादा नुकसान मुस्लिम वर्ग का हुआ

मुसलमानों को गुमराह कर मुसलमानों के वोटों के आधार पर अपनी सरकार बनाने वाली समाजवादी पार्टी ने उत्तर प्रदेश को दंगों में झोंक दिया था। जिसके परिणामस्वरूप उत्तर प्रदेश का मुस्लिम समुदाय अपने आप को बहुत ज्यादा असुरक्षित महसूस करने लगा।

नतीजा यह हुआ कि मुस्लिम समुदाय शिक्षा, स्वास्थ्य और प्रतिनिधित्व जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों से भटक कर अपने सुरक्षा में ही उलझ कर रह गया। फलतः नब्बे के दशक से लेकर आज तक मुस्लिम समुदाय असुरक्षित महसूस करते हुए समाजवादी पार्टी का बंधुआ वोटर बनकर रह गया है।

समाजवादी पार्टी की सरकार के दौरान हुए तमाम हिंदू-मुस्लिम दंगों के परिणामस्वरूप जहां मुस्लिम असुरक्षित महसूस करते हुए समाजवादी पार्टी का बंधुआ वोटर बन के रह गया तो वहीं दूसरी तरफ हिंदुत्व के नाम पर पिछड़ी, अति पिछड़ी जातियां एक होकर एकमुश्त भाजपा के साथ चली गई।

इस तरह से उत्तर प्रदेश में हिंदू बनाम मुस्लिम का माहौल खड़ा कर दिया गया जिसका फायदा ना पिछड़े वर्ग को हुआ और ना ही अल्पसंख्यक को हुआ। लेकिन इन दोनों के बल पर भाजपा और सपा ने अपनी सरकारे बनाकर जनता को गुमराह करते हुए अपने खानदान में तमाम सांसद, विधायक, पंचायत प्रमुख आदि बनाकर लोकतंत्र की हत्या करते हुए समाजवादी पार्टी को एक राजनीतिक पार्टी की बजाय एक परिवार की प्राइवेट लिमिटेड कंपनी बना दिया है।

मुस्लिमों को समझने की जरूरत हैं कि उत्तर प्रदेश में जब-जब समाजवादी पार्टी मजबूत हुई है तब तक हिंदुत्व की राजनीति भी मजबूत हुई है। परिणामस्वरूप उत्तर प्रदेश में धर्म के नाम पर अराजकता फैलाने वाले भाजपा को भी मजबूती मिली है। और यही वजह रही है कि सपा के बाद उत्तर प्रदेश में हमेशा भाजपा की सरकार बनी है क्योंकि हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण से भाजपा-सपा दोनों को फायदा होता है। इसीलिए सपा-भाजपा जनता से नज़रे बचाकर परदे के पीछे से एक दूसरे को मजबूत करने का काम लगातार करती हैं। इसका ताजा उदहारण हम लोकसभा आमचुनाव - 2019 में देख चुके हैं कि किस तरह से श्री अखिलेश यादव ने बड़ी चालाकी से बसपा के साथ किये गठबन्धन को धोखा देकर भाजपा का रास्ता साफ़ करने का काम किया था।

सपा-भाजपा दो अलग-अलग पार्टियां जरूर हैं परन्तु दोनों हिंदुत्व को बढ़ावा देने वाली मनुवादी विचारधारा पर चलने वाली पार्टियां हैं। इनकी आंतरिक युक्ति का ही नतीजा हैं कि सपा के बाद भाजपा के ही सरकार बनती है और जब जनता इन दोनों से त्रस्त हो जाती है तब वह शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा, कानून व्यवस्था और विकास के लिए बसपा की तरफ रुख करती है। यहीं वजह हैं सर्वसमाज ने खुद नैरा दिया और प्रचारित किया कि यूपी की मजबूरी हैं, बहनजी जरूति हैं। यह दुखद हैं कि लोग सब कुछ बिगड़ जाने के बाद लोग मजबूरी में बसपा की तरफ रुख करते हैं।

फिलहाल, सपा और भाजपा कि सांप्रदायिक राजनीति को जनता समझती है परंतु भारत की जनता सांस्कृतिक तौर पर इस कदर गुलामी से सराबोर है कि वह बसपा के साथ आने से कतराती है।

इस बात का जिक्र मानव मसीहा कांशी राम साहब ने अपने भाषण में किया है। जिसमें वे कहते हैं कि यह इस देश की विडंबना है कि “इस देश के कम गिराए हुए लोग (शूद्र - ओबीसी) इस देश में अधिक गिर आए हुए लोगों (वंचित बहिष्कृत जगत - एससी व एसटी) के साथ खड़े नहीं होना चाहते हैं”। यही वजह है कि इनमें आपस में एकता नहीं बन पाती है। परिणामस्वरूप मनुवादी पार्टियां मनुवादी व्यवस्था को कायम रखते हुए आगे बढ़ती जा रही हैं।

बहुजन आंदोलन को समाजवादी पार्टी व श्री मुलायम सिंह यादव द्वारा दिए गए धोखे के बावजूद भारत में बहुजन आंदोलन भारत गौरव भारत महानायिका परम आदरणीया बहन कुमारी मायावती जी के नेतृत्व में आगे लगातार बढ़ता जा रहा है।

परम आदरणीया बहन जी का शासन काल भारत में कानून का राज व संविधान सम्मत शासन के रूप में जाना जाता है। इस देश के पिछड़े, अति पिछड़े और अल्पसंख्यक समाज को शिक्षा, स्वास्थ्य के साथ-साथ प्रतिनिधित्व की जरूरत सबसे ज्यादा है।

यह सारे कार्य तभी हो सकते हैं जब प्रदेश में शांति का वातावरण हो। शांति के वातावरण में ही लोकतांत्रिक व संवैधानिक तरीके से विचार विमर्श करते हुए एक दूसरे के अधिकारों को सुरक्षित रखते हुए संविधान सम्मत व्यवस्था को लागू किया जा सकता है।

यह तभी हो सकता है जब उत्तर प्रदेश के पिछड़े वर्ग, अति पिछड़े वर्ग, वंचित जगत और अल्पसंख्यक समुदाय के लोग एक साथ एक मंच पर खड़े होकर बहुजन आंदोलन का नेतृत्व करने वाली एकमात्र नेता भारत गौरव भारत महानायिका परम आदरणीया बहन कुमारी मायावती जी और भारत की तीसरी सबसे बड़ी राष्ट्रीय पार्टी बहुजन समाज पार्टी के साथ मजबूती से खड़े हो।

रजनीकान्त इन्द्रा इतिहास छात्र, इग्नू-नई दिल्ली