Sunday, May 30, 2021

वैचारिक गोष्ठी - 2021



 

कैडर खत्म होने व पैसे को लेकर मिथ्यारोप लगाने वाले चमचों से सावधान

बहुजन आन्दोलन व बहुजन समाज की एकमात्र राष्ट्रिय पार्टी बसपा के सामने एक साथ कई चुनौतियाँ मौजूद हैं। इसमें से एक चुनौती हैं बहुजन समाज के चंद लोग जिनका उद्देश्य अपनी पार्टी को नुक्सान पहुंचना नहीं हैं परन्तु अपने निहित स्वार्थों के चलते वे अज्ञानता में ही सहीं अफवाहें फ़ैलाने का कार्य करते हैं। ऐसे लोग आरक्षण की बदौलत मिली शिक्षा, नौकरी और अपनी उम्र को ही अपनी काबिलियत और समाज सेवा समझते हैं। बहुजन समाज के ऐसे लोग अक्सर पार्टी व बहन जी को सोशल मिडिया के जरिये सलाह देते रहते हैं। और हमेशा शिकायत करते रहते हैं कि कैडर खत्म कर दिया गया है, और पैसे वालों को अहमियत दी जा रही है।

इसमें कोई शक नहीं है कि ऐसा कहने वाले लोग चुटकी भर होते हैं। ऐसे लोग अपनी भावना या फिर कुण्ठावश अपनी ही राष्ट्रिय राजनैतिक पहचान को कोसने में अपनी सारी ऊर्जा और समय नष्ट करते रहते हैं। ऐसे लोग समाज में पढ़े-लिखे होते हैं, आरक्षण के चलते अच्छे पदों पर होते हैं और बहुजन सत्ता आने के बाद से अन्य समाजों में भी इनकी स्वीकृति, सम्मान बढ़ा हैं जिसके चलते बहुजन समाज के कुछ भोले-भाले लोग इनकी अफवाहों के शिकार हो जाते हैं।

यह भी सच हैं अफवाहों के पैर तो नहीं होते जो कि स्थाई तौर पर जमीन पर टिक सकें परन्तु पंख जरूर होते हैं जो लोगों तक बहुत शीघ्रता से पहुँचते हैं। बहुजन समाज की राष्ट्रीय राजनैतिक पहचान, बहुजन आन्दोलन और बहुजन समाज को क्षति पहुँचाने की श्रेणी में पहले वे लोग हैं जिन्होंने पार्टी अपने निजी स्वार्थ के लिए ज्वाइन किया था, अपनी आर्थिक मुक्ति के लिए ज्वाइन किया है। ऐसे लोग चुनावी मौसम शुरू होने से पहले कार्यालय के चक्कर कटना शुरू कर देते हैं, पदाधिकारियों से मिलना-जुलना शुरू कर कर देते हैं। इसके बाद टिकट मांगने या फिर दिलाने के दावेदारी करने लगते हैं।

यहाँ पर यदि इनकी मंशा पूरी नहीं हुई तो ये लोग मैन व मनी के समीकरण को समझे बगैर पार्टी व पार्टी पदाधिकारियों पर दोषारोपण शुरू कर देते हैं। ये लोग पार्टी, इसके नेतृत्व व पदाधिकारियों को बदनाम करने के इरादे से अपना विरोध पार्टी कार्यालय के अंदर कम, गांव की भोली-भाली जनता के बीच ज्यादा करते हैं,  क्योकि इससे इनकों बहुजन विरोधी फिरके थोड़ी से जगह मिलने के सम्भवना होती हैं। 

साथ ही, यदि चुनाव के बाद परिणाम सकारात्मक नहीं हुए तो इन लोगों के दावे और मजबूत हो जाते हैं। ये कहते हैं कि पार्टी के पदाधिकारी भ्रष्ट हैं, चोर हैं। पार्टी ने कैडर बंद कर दिया हैं, पार्टी नेतृत्व को ऐसा नहीं करना चाहिए था, वैसा नहीं करना चाहिए था, उसको जिलाध्यक्ष नहीं बनाना चाहिए था, उसको मुख्य सेक्टर प्रभारी बनाकर बहुत बड़ी गलती की हैं। इसलिए चुनाव पर चुनाव हार रहे हैं, इसलिए लोग भाग जा रहे हैं। यही लोग बाद में दूसरी पार्टी ज्वाइन करके बाबासाहेब और मान्यवर साहेब का मिशन चलने का दावा करते हैं।

इन लोगों को मिशन से कोई रिश्ता-नाता नहीं होता हैं। ये लोग हमेशा शिकायत के ही मोड रहते हैं। इनके पास सिर्फ शिकायत होती हैं, समाधान, पार्टी के पैसा और समय बिल्कुल नहीं होता हैं। यदि पार्टी नेतृत्व इनकी बाते मानने लगती तो पार्टी 1984 में बन ही नहीं पाती क्योकि इन्हीं जैसे लोग थे जिन्होंने राजनैतिक पार्टी बनाने का विरोध किया था।

ऐसे लोगों के संदर्भ में अमिता अम्बेडकर, (वरिष्ठ युवा सक्रिय कार्यकर्ता, बसपा, लखनऊ) कहती हैं कि ऐसे लोग बहुजन आंदोलन व बहुजन राजनीति को मोबाइल के सिम की तरह इस्तेमाल करते हैं। मतलब कि इनके निजी स्वार्थ पूर्ति का नेटवर्क जिस पार्टी में मिलेगा उस पार्टी को तत्काल ज्वाइन कर लेंगे। इनकी अपनी ना तो कोई विचारधारा होती है, ना ही इनका अपना कोई स्टैंड होता है। इनका एकमात्र लक्ष्य होता हैं - निजी स्वार्थ पूर्ति का नेटवर्क का नेटवर्क पाना। 

जब एकमात्र बहुजन राजनैतिक दल बसपा में इनके स्वार्थ की पूर्ति नहीं हो पाती है, पार्टी पदाधिकारियों को इनकी मंशा व इनके उद्देश्य का भान हो जाता हैं तो इनको उठाकर बाहर फेंक दिया जाता है तब यह लोग अपने आप को बुद्धिजीवी दिखाने तथा पार्टी, पार्टी नेतृत्व व इसके अन्य पदाधिकारियों को गलत साबित करने के लिए या फिर दूसरे दलों में अपने आर्थिक मुक्ति के नेटवर्क को पाने के लिए बसपा को कोसना शुरू कर देते हैं।

यही लोग अक्सर कहते हैं कि बसपा ने कैडर बंद कर दिया है, और पैसे वालों को वरीयता देती है। जो कि सरासर गलत है और बहुजन समाज को गुमराह करने का बहुजन समाज में जन्मे चमचों द्वारा रचा गया एक बहुत बड़ा षड्यंत्र है, जिसके झलावे में कभी कभी भोली भाली जनता फंस भी जाया करती है।

दूसरे वह लोग हैं जो नौकरी पेशा में व्यस्त हैं, और घर से बाहर कभी निकलते तक नहीं है, और घर में बैठकर सोशल मीडिया और टीवी देख कर अपनी राय बनाते हैं। और विरोधियों द्वारा उछाले गए मुद्दों के भ्रम में पड़कर के अपने नेतृत्व पर लगातार सवालिया निशान लगाते रहते हैं, और दुष्प्रचार करते रहते हैं। सरकारी पदों पर बैठकर ये समाज का कितना प्रतिनिधित्व करते हैं यह सरकारी कार्यालयों के चक्कर कटाने वाले अच्छी तरह से वाकिफ हैं। इनका भी समाज से कोई लेना-देना नहीं होता है। ऐसे लोग बहुजन समाज की एकमात्र राष्ट्रीय अस्मिता के खिलाफ टिप्पणी करके सवर्ण समाज में अपने आपको निष्पक्ष साबित करते रहते हैं। साथ ही समाज में चर्चा में बने रहने के लिए अम्बेडकर जयंती आदि पर चंदा देते रहते हैं।

जब सेवानिवृत्ति का समय नजदीक आता हैं तो ये लोग बुद्ध, फुले, अम्बेडकर, मान्यवर साहेब की जयन्ती आदि पर पूरी तरह से सक्रिय हो जाते हैं। बड़ी राशि में चंदा देकर बड़े-बड़े कार्यकर्मों में माला पहनना शुरू कर देते हैं ताकि रिटायरमेंट के बाद जीवन अकेलेपन ना गुजरे और ये सकून से जी सके क्योंकि ये जानते हैं कि सरकारी पदों पर रहने के दौरान इन्होने समाज के लिए कुछ किया ही नहीं हैं तो जनता इनकों पूछेगी क्यों? इसलिए आरक्षण से प्राप्त शिक्षा और नौकरी पूरी करने के बाद सीधे टिकट व मंत्रालय चाहने वाले ऐसे चंदा देने वालों से बहुजन समाज को सावधान रहना चाहिए।

इनका भी जब रिटारयमेंट प्लान फेल होने लगता हैं तो ये समाज में शोर मचाना शुरू कर देते हैं कि पार्टी मिशन से भटक गयी, पैसे वालों को वरीयता दी जा रहीं, कैडर खत्म कर दिया गया हैं, आदि। पार्टी व पार्टी के पदाधिकारियों आदि पर लगातार पैसे का आरोप लगा करके पार्टी व पार्टी नेतृत्व को बदनाम करने वाले ऐसे लोग सच्चे मायने में बहुजन आंदोलन, इसके लक्ष्य, इसकी कार्यप्रणाली,राजनीति एवं रणनीति के फर्क से पूरी तरह अनजान है।

इनकी अज्ञानता का कारण कैडर नहीं बल्कि इनकी खुद की मिशन के प्रति निष्क्रियता होती हैं। इनके पास जब आप कैडर में शामिल होने और उसके लिए फण्ड की मांग रखों तो ये लोग तपाक से जबाब देते हैं कि "यार तुम लोग कुछ करते हो नहीं, चंदा मांगने चले आते हो।" सवाल यह होता हैं कि जब वह आपको कैडर के लिए निमंत्रण देने आया हैं तो आप और क्या चाहते हो?

बाद में, यहीं लोग पैसा और कैडर खत्म होने का आरोप लगते हैं। ये लोग आरक्षण से प्राप्त अपनी पदवी व उम्र को अपनी मेरिट समझते हैं। इसलिए इन लोगों ने कभी साहब से सीखने की कोशिश ना की है, ना ही कभी कोई कैडर अटैंड किया है, ना ही कैडर अटैंड करना चाहते हैं। क्योंकि अगर इन लोगों ने कभी कैंडर अटैंड किया होता या फिर घर पर ही कभी साहब को पढ़ा होता तो यह लोग मान्यवर कांशीराम साहब के उस रणनीति को जरूर जान पाते जिसमें मान्यवर कांशी रामसाहब मैन और मनी के बीच में एक सामंजस्य स्थापित करते हुए पार्टी चलाने की बात करते है। और यदि ये लोग मिशन के प्रति जरा से भी जागरूक व ईमानदार होते तो ये लोग साहेब के उस भाषण से जरूर परिचित होते जिसमे मान्यवर साहब कहते हैं कि अगर मेरे पास मात्रा रूपये 14000/- और होते तो मैं बहन जी को हरिद्वार के उप चुनाव में ही जीता करके लोकसभा भेज देता।

ऐसे लोग अपने इस अज्ञानता, अनभिज्ञता व अहंकार के चलते खुद को बुद्धिजीवी समझते हैं। नौकरी में होने के कारण अपने आप को विद्वान मानते हैं। साथ ही ऐसे लोग अपनी उम्र को मेरिट करार करते हुए अपने आप को ज्यादा जानकार साबित करने का प्रयास करते हैं। जबकि हकीकत में यह लोग बहुजन आंदोलन, इसके लक्ष्य, कार्यशैली, राजनीति आदि से ही पूरी तरह से अनजान है। और ऐसे लोग अपने इस अज्ञानता और अनभिज्ञता के चलते ना सिर्फ बहुजन समाज को गुमराह करते हैं बल्कि यह लोग बहुजन समाज के लिए खुद एक चुनौती बन गए हैं।

इसलिए आज बहुजन समाज व पार्टी को ना सिर्फ बहुजन समाज के विरोधियों से लड़ना पड़ता है बल्कि बहुजन समाज में जन्मे ऐसे अहंकारी, अज्ञानी व अनभिज्ञ स्वघोषित विद्वानों, बुद्धिजीवियों से भी पार पाने के लिए समय व ऊर्जा खर्च करना पड़ता है। यही वजह है कि बहुजन समाज पार्टी एक साथ मनुवादियों के साथ, बहुजन समाज के साम्रदायिक दलों के साथ, कम्युनिस्टों के साथ और बहुजन समाज में जन्मे बहुजन समाज व आन्दोलन के भीतर ही भीतर दीमक की तरह खोखला करने वाले तमाम फिरकों के साथ एक ही समय पर कई जंग लड़ रही है जिसकी वजह बहुजन समाज पार्टी या इसका नेतृत्व नहीं बल्कि बहुजन समाज वे लोग हैं जो आरक्षण से प्राप्त, शिक्षा, नौकरी, पद और अपनी उम्र को ही मेरिट मानते हैं।

रजनीकान्त इन्द्रा

Saturday, May 29, 2021

खुद की अस्मिता को चुनौती देते गुमराह बहुजन युवा

बहुजन समाज के कुछ गुमराह युवा आज अपने ही राजनैतिक पहचान पर सवाल खड़ा कर रहे हैं जो कि बहुजन समाज के लिए हानिकारक है।

बहुजन समाज के स्वघोषित बुद्धिजीवी अक्सर यह प्रश्न खड़ा करते रहते हैं कि मान्यवर कांशी राम साहब के जमाने में हमारे अलग-अलग पत्र पत्रिकाएं थे, परंतु अब हमारे पास, जब कि हमारा समाज पहले से अधिक मजबूत हुआ है, अपना कोई मीडिया नहीं है।

बहुजन युवाओं के जहन में आने वाला यह सवाल अपने आप में खुद अपनी अस्मिता को चैलेंज कर रहा है जिसकी वजह यह है कि उन तक या तो सही इंफॉर्मेशन नहीं पहुंच पाई है या फिर वह लोग पार्टी के सामने हिमालय की तरह खड़ी राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, दुश्वारियों के साथ-साथ बहुजन समाज में जन्मे चमचों के चलते मिशन को धोखा देने वाले संदर्भ को समझने की जरूरत है।

आंदोलन की व्यापकता, समय और जन-धन के समीकरण के चलते दिक्कतें आ रही है।

बहुजन समाज के युवाओं को मालूम होना चाहिए कि बहन जी लोकतंत्र के महानायक मान्यवर कांशी राम साहब की ऐतिहासिक धरोहर बहुजन संगठक को आगे बढ़ाने के लिए तत्पर थी परन्तु सह संपादक की महत्वाकांक्षा बढ गई, वो खुद बहुजन संगठक को अपने नाम करवाना चाहते थे जबकि साहब की उत्तराधिकारी बहन जी थी।

विवादों के चलते बहुजन संगठक २००६ में ही बंद हो गया। इसके बाद बहनजी ने मायायुग शुरू किया परन्तु जिन पर जिम्मेदारी सौंपी गई वे पत्रिका को गर्त में पहुंचा दिए। घाटे की भरपाई बहनजी ने किया। मायायुग को मिटाने वाले लोग राज्यसभा जाना चाहते थे परन्तु दोनों लोगों को एक साथ राज्यसभा भेजना संभव नहीं था। फिलहाल, एक को राज्यसभा भेजा गया दूसरे को राज्य अनुसूचित जाति आयोग। परंतु इन सबको ये रास नहीं आया। अंत तक अपने पदों का सुख भोगने के बाद इन लोगों ने कहा कि बहनजी मिशन से भटक गई है, और पार्टी छोड़ दिया।

ऐसे में बदले समीकरणों के साथ बहन जी पत्रिका चलाएं या फिर राजनैतिक गतिविधियों पर ध्यान देकर सत्ता के समीकरण सिद्ध करें, यह बहन जी के सामने एक बहुत बड़ा प्रश्न था। ऐसे में बहन जी ने राजनीति पर फोकस करना ज्यादा जरूरी समझा, जोकि परम पूज्य बाबा साहब और मान्यवर कांशीराम साहब के साथ सभी बहुजन महा नायकों एवं महा नायिकाओं की प्राथमिकता थी। बहन जी ने कहा कि सब लोग लगातार धोखा देते रहते हैं ऐसे में

बहुजन समाज में जन्मे चमचों द्वारा अपने निजी स्वार्थ के चलते बहुजन समाज पार्टी मान्यवर मसीहा कांशीराम और बहन जी को लगातार धोखा देते रहने के चलते परम आदरणीय बहन कुमारी मायावती जी ने अपने कार्यकर्ताओं पर पूर्ण विश्वास जताते हुए कहा कि हमारे कार्यकर्ता ही हमारी मीडिया है। अपने कार्यकर्ताओं के माध्यम से अपने संदेशों को जन-जन तक पहुंचाने का काम कर रही हैं, परंतु बहुजन समाज के कुछ लोग परम आदरणीय बहन जी के इस संदेश को समझ नहीं पाए और बहन जी जिन्हें अपना मीडिया समझती हैं वह कार्यकर्ता ही बहन जी पर अपनी मीडिया ना होने का सवाल खड़ा करने लगे हैं।

बहुजन समाज के युवाओं को यह ज्ञात होना चाहिए कि बहुजन राजनीति जिसका उद्देश्य भारत में सामाजिक परिवर्तन कर समतामूलक समाज का निर्माण करना है के संदर्भ में सामाजिक राजनीतिक आर्थिक सांस्कृतिक और चमचा युग जैसी इन पांच महत्वपूर्ण समस्याओं को जहन में रखते हुए अपने कदम आगे बढ़ाने चाहिए

साथ ही, बहुजन समाज के युवाओं को बहुजन समाज की राजनीति के सामने खड़ी इन 5 समस्याओं को जहन में रखते हुए ही अपने मुखिया पर कोई टिप्पणी या कमेंट करना चाहिए। साथ ही इन 5 महत्वपूर्ण समस्याओं को ध्यान में रखते हुए ही अपनी पार्टी व इसके मुखिया के किसी भी निर्णय पर अपने विचार, लेख, चर्चा और भाषण आदि तैयार करना चाहिए।

रजनीकान्त इन्द्रा


संगठनों के समन्दर में अपना कौन?

भारत में समतामूलक समाज के निर्माण की लड़ाई लड़ने बहुजन समाज को आज मनुवादी समाज के साथ-साथ बहुजन समाज में जन्मे चमचों से भी पार पाना होगा।

आज चारों तरफ कई सारी अलग-अलग विचारधाराएं घूम रही है, और इनके अपने-अपने वर्जन हैं। हर संगठन व इसके पदाधिकारियों व प्रवर्तक के अपने-अपने अंबेडकर, अपने-अपने बुद्ध, अपने-अपने फूले, शाहू, रैदास, कबीर, परियार और अपने-अपने मान्यवर कांशी राम साहब है।

इन सब को हकीकत में बहुजन समाज व इसके आंदोलन से सीधे तौर पर कोई सरोकार नहीं है बल्कि यह लोग बहुजन आंदोलन व बहुजन समाज के हित को अपने स्वार्थ सिद्धि को छुपाने के लिए एक मुखोटे के तौर पर इस्तेमाल करते हैं। सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, शैक्षणिक, सांस्कृतिक मीडिया आदि क्षेत्रों में इतने सारे संगठन बने हैं कि संगठनों का एक विशाल समंदर तैयार हो चुका है।

बुद्ध, रैदास, कबीर, नानक, घासी, फुले, शाहू, अंबेडकर, मान्यवर कांशी राम साहब व अन्य सभी बहुजन महानायकों एवं महानायिकाओं के विचारों, संदेशों व गौरव गाथाओं के अलग-अलग तैयार वर्जन्स तथा संगठनों के बड़े समन्दर में बहुजन समाज के लिए सबसे बड़ी चुनौती यह कि वह बुद्ध, फूले, शाहू, अंबेडकर विचारधारा वाले राजनैतिक दल, नेता, संगठन, मीडिया, विचारक, लेखक, चितंक आदि की पहचान कैसे करें?

बहुजन समाज के एक्टिव कार्यकर्ता, वोटर व सपोर्टर तथा बहुजन आंदोलन के तमाम पढ़े-लिखे सिपाहियों में आज भी यह समझ नहीं विकसित हो पाई है कि वह पहचान सके कि उनका अपना वैचारिक साथी, नेता, दल, संगठन, लेखक, चिंतक व विचारक कौन है?

इस संदर्भ में सुविख्यात समाज विज्ञानी प्रोफेसर विवेक कुमार कहते हैं कि भारत में दो तरह के बहुजन समाज के हितैषी व अंबेडकरवादी हैं। (१) Ambedkarites by Convenience (२) Ambedkarites by Conviction

(1) पहले अंबेडकरवादी वह हैं जो अंबेडकाराइट्स बाई कन्वीनियंस (Ambedkarite by Convenience) है। ऐसे लोगों का उद्देश्य अंबेडकरवाद और बहुजन आंदोलन के लिए उग्रता प्रदर्शित कर चर्चा करते हुए एक पहचान पाना है।

ऐसे लोग ऊंची आवाज में गला फाड़-फाड़ कर बाबा साहब, बुद्ध, फूले, शाहू, पेरियार, डॉ अंबेडकर, मान्यवर साहब, बहनजी व अन्य सभी बहुजन नायकों नायिकाओं का जिक्र करते हुए समाज को जागरूक करने का दावा करते हैं।

ऐसे लोग तब तक अंबेडकरवाद व बहुजन समाज के पक्ष में तीखा भाषण करते हैं, लेख लिखते हैं जब तक कि इनकी बहुजन समाज में अपनी एक पहचान स्थापित नहीं हो जाती है।

ऐसे लोग भारत के बड़े शहरों में बैठकर अपनी सुविधा के अनुसार हर छोटी-छोटी बात पर धरना प्रदर्शन करते रहते हैं, जिसका प्राथमिक उद्देश्य हर बात के लिए छोटे-छोटे धरना, प्रदर्शन आदि कर बहुजन समाज के बीच एक पहचान पाना है।

और जब इन लोगों की अपनी एक पहचान स्थापित हो जाती है तब ऐसे लोग बहुजन समाज में बनी अपने इस छाप को बड़ी सरलता के साथ प्रत्यक्ष या फिर अप्रत्यक्ष रूप से अपने निजी फायदे के लिए मनुवादी दलों, संगठनों व ताकतों के हाथों अपनी कीमत के अनुसार बेच देते हैं।

ये बात यूट्यूब पर बने तमाम बहुजन चैनलों में भी देखने को मिलती है। ऐसे लोग यूट्यूब पर जब शुरू-शुरू में चैनल बनाते हैं तो वह बसपा व बहन जी के समर्थक के तौर पर खुद को प्रदर्शित करते है। और जब इनको व इनके चैनल को मनचाहा व्यूवरशिप व सब्सक्राइबर्स मिल जाते हैं, जिससे को इनको कुछ आमदनी के साथ-साथ पब्लिक में एक पहचान बन जाती है, तब ऐसे लोग अपने आप को निष्पक्ष दिखाने के लिए उस बसपा व भारत महानायिका परम आदरणीय बहन जी के विरुद्ध मिथ्यारोप लगाकर दुष्प्रचार करना शुरू करते हैं, जिनके नाम की बदौलत इनको व इनके यूट्यूब चैनल्स को पब्लिक के बीच एक पहचान मिली है।

इसके बाद ये Ambedkarite by Convenience वाले यूट्यूबर्स भी अपनी इस पहचान को बहुजन समाज, बहुजन आंदोलन, बसपा व बहन जी के शत्रुओं के हाथों में बड़ी आसानी से चंद रुपयों में बेच देते हैं।

आज के इस दौर में बहुजन आंदोलन में बहुजन समाज को जितना खतरा बहुजन विरोधी ताकतों से हैं उतना ही खतरा इन अंबेडकराइट्स बाई कन्वीनियंस से भी है। "अंबेडकराइट बाई कन्वीनियंस" बहुजन समाज में जन्मा एक ऐसा चमचा वर्ग है जो प्रत्यक्ष तौर पर मनुवादियों के हाथों में ना खेलते हुए पर्दे के पीछे से मनुवादियों के लिए खेलते हुए अपने स्वार्थ सिद्धि के लिए पूरी तन्मयता से काम करता है।

ऐसे लोग सोशल मीडिया और युट्यूब जैसे प्लेटफॉर्म्स पर बाबा साहब, फ़ूले व अन्य बहुजन नायक-नायिकाओं की किताबें, उनकी चिट्टियां आदि पढ़ते हुए पूरे समाज को संदेश देते हैं कि किस तरह से बहुजन समाज के लोगों को बहुजन महानायकओ द्वारा बताए गए रास्ते पर चलना चाहिए।

परंतु यह लोग अपनी स्थापित पहचान के तहत एक तरफ यह स्वीकार करते हैं कि यह बहुजन युवाओं का मार्गदर्शन कर रहे हैं। मतलब कि यह उनके मार्गदर्शक हैं। परंतु जब इनके निजी जिंदगी में देखा जाता है तो यह लोग पूरी तरह से मनुवादी पर्वो रीति-रिवाजों और परंपराओं को सेलिब्रेट करते हैं।

और जब इन पर कोई बहुजन सवालिया निशान लगाता है तो यह लोग निहायत ओछी भाषा का इस्तेमाल करते हुए उभरते सवालों को दफन करने का प्रयास करते हैं।

इन सबके बीच सबसे दुखद बात यह है कि बहुजन समाज के लोग और खासकर युवा वर्ग इन "अंबेडकराइट बाई कन्वीनियंस" को पहचान नहीं पाते हैं, और इनको लगातार बढ़ावा देते रहते हैं।

बहुजन समाज व युवाओं द्वारा इन "अंबेडकराइट बाई कन्वीनियंस" को पहचान ना पाने की मुख्य वजह है कि बहुजन समाज के लोगों, खासकर युवाओं, का बहुजन आंदोलन के विभिन्न पहलुओं के बारे में इनकी अनभिज्ञता।

ऐसे में बहुजन समाज के लोगों को बहुजन वैचारिकी को जानना व समझना होगा ताकि बहुजन समाज के लोग इन अंबेडकराइट से बाई कन्वीनियंस से पूरी सचेत रह सकें, और बहुजन समाज के इन नये चमचों को अनजाने में भी प्रचारित व प्रसारित करने से बच सकें।

(2) दूसरे अंबेडकरवादी वह हैं जो अंबेडकराइट्स बाई कनविक्शन (Ambedkarites by Conviction) है। यह लोग बहुजन आंदोलन की इतिहास, इसकी कार्यशैली, बहुजन महानायकों व महानायिकाओं के संघर्षों, संदेशों व गौरव गाथाओं को केवल सोशल मीडिया पर सकारात्मकता के साथ ही नहीं बल्कि गांव के निचले तबके तक छोटी-छोटी सभाओं व कैडर कैंपों के माध्यम से पहुंचाने का कार्य करते हैं।

इनकी भाषा में उग्रता का अभाव पाया जाता है। ऐसे लोग लोकतांत्रिक व संवैधानिक शब्दों का इस्तेमाल करते हैं और भारत के संवैधानिक संस्थाओं का आदर करते हुए संविधान के दायरे में रहकर लोकतांत्रिक नैतिकता के तहत अपनी बात रखते हैं।

इनकी भाषा में कभी वैमनस्यता नहीं दिखती है। ये लोग मानवीय मूल्यों के तहत अपनी बात जनता के बीच रखते हुए समता, बंधुत्व के मूल्यों को प्रचारित करते हैं। ये लोग बदले की नहीं समतावादी बदलाव की पैरवी करते हैं। ये किसी से बदला नहीं लेना चाहते हैं, ये लोग सबके साथ न्याय करना चाहते हैं। इनका उद्देश्य देशी-विदेशी की खाई खड़ी करना नहीं बल्कि संविधान निहित मूल्यों के तहत सबको समान नागरिक के तौर पर देखते हैं और संविधान के अनुसार आचरण करते हैं।

यह लोग संविधान व संविधान द्वारा स्थापित संस्थाओं में व संवैधानिक व लोकतांत्रिक प्रक्रिया में पूर्ण विश्वास रखते हुए अपने लक्ष्य तक पहुंचने की मंशा रखते हैं। साथ ही यह लोग हर बात पर विरोध, प्रदर्शन, धरना व अनशन करने में विश्वास नहीं रखते हैं। ये लोग बाबा साहब के बताए रास्ते पर चलते हुए संवैधानिक वह लोकतांत्रिक तरीके से अपने हक अधिकार व सत्ता प्राप्ति को देते हैं।

इन लोगों का उद्देश्य बहुजन समाज को उन्माद की तरफ धकेलना नहीं बल्कि बहुजन समाज को संवैधानिक व लोकतांत्रिक मूल्यों के संदर्भ में जागरूक करते हुए संवैधानिक व लोकतांत्रिक तरीके से सत्ता पर काबिज़ होकर अपने बहुजन आंदोलन व बहुजन महानायकों एवं महानायिकाओं के विचारों, संदेशों, संघर्षों व गौरव गाथाओं को ध्यान में रखकर भारत की सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक व शैक्षणिक व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन करते हुए बहुजन आंदोलन के अंतिम उद्देश्य "समतामूलक समाज" का सृजन करना होता है।

अंबेडकराइट बाइक कनविक्शन वाले लोग मान्यवर कांशी राम द्वारा बताए गए रास्ते व उनकी कार्यशैली पर पूरी तन्मयता के साथ शांतिपूर्वक बहुजन आंदोलन व बहुजन समाज के लिए अंबेडकरवादी विचारधारा पर सतत कार्य करते हुए अपने मुद्दे अपनी विचारधारा अपने नायक नायिकाएं अपनी पार्टी और अपने नेतृत्व पर पूर्ण विश्वास जताते हुए संवैधानिक व लोकतांत्रिक तरीके से सत्ता प्राप्त कर बेहतर भारत का सृजन करना चाहते हैं।

निष्कर्ष -

बहुजन समाज के लोगों को चाहिए कि वह बहुजन वैचारिकी पर अध्ययन करें जिससे कि बहुजन समाज के लोग Ambedkarite by Convenience और Ambedkarites by Conviction के फ़र्क को समझ सके और इनको पहचान सके। जिसके परिणामस्वरूप बहुजन लोग अपने समय व ऊर्जा का इस्तेमाल अंबेडकराइट बाई कन्वीनियंस के प्रचार-प्रसार में खर्च करने के बजाय बहुजन समाज के लोग अंबेडकराइट्स बाई कन्वीनियंस की पहचान कर इनको पूरी तरह से नजरअंदाज कर अंबेडकराइट्स बाई कनविक्शन वाली एकमात्र राष्ट्रीय पार्टी, इसके नेतृत्व, इसकी विचारधारा, इसके समर्थक, पदाधिकारी, कार्यकर्ता, प्रचारक, लेखक व कार्य आदि को जन-जन तक पहुंचाने और "सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय" की नीति को ध्यान में रखते हुए सत्ता प्राप्ति के लिए संघर्ष कर भारत की बहुजन समाज की एकमात्र बुद्ध फूले अंबेडकरी विचारधारा वाली पार्टी व इसके नेतृत्व को मजबूती प्रदान करने में खर्च करें।

रजनीकान्त इन्द्रा

Wednesday, May 19, 2021

मानवता के प्रतीक के तौर पर जय भीम ही काफी है

हमारे ख्याल से, जय भीम बहुजन आंदोलन की वैचारिकी, संदेश, सिद्धांत, संघर्ष, गौरवशाली इतिहास, संस्कृति, बुद्धिज्म आदि को अपने रोजमर्रा की जिन्दगी व जीवन-शैली के साथ अभिवादन, सम्मान, स्वागत, सहमति, समर्थन, स्वीकृति, हौसला-अफजाई, जोश-जनून, वैज्ञानिकता, मानवीय मूल्यों, संवैधानिकता, लोकतांत्रिक व मानवीय वैचारिकी आदि के लिए इस्तेमाल किया जाता है। जय भीम इन सब मूल्यों, सिद्धांतों व वैचारिकी को बयां करने के लिए काफी है।

मूलनिवासी बनाम विदेशी की थ्योरी इतिहास के लिए महत्वपूर्ण हैं, मानव समाज की जानकारी और स्कूलों के पाठ्यक्रम के लिए जरूरी हैं क्योकि तथ्यों और इतिहास के साथ पूरी ईमानदारी और निष्पक्षता होनी चाहिए।

आज यह पुरातत्व विभाग द्वारा प्राप्त सबूतों, वैज्ञानिक शोध द्वारा प्रमाणित हो चुका हैं कि ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य विदेशी हैं। इन्होने भारत की मानवता, बंधुता व समतावादी भारतीय संस्कृति को नष्ट किया। इन ब्राह्मणो-सवर्णों ने बुद्धिज़्म की विरासत को मिटाने का पूरा प्रयास किया हैं। ब्राह्मणों-सवर्णों को बुद्धिज़्म, बुद्धिस्ट से इतनी नफ़रत हैं कि इन्होने बुद्धिस्टों को बहिष्कृत और अछूत बना दिया।

बुद्धिज़्म की विरासत इतने लम्बे समय तक धरती की कोख में दफ़न होने बावजूद अपने वज़ूद, साहित्य, मानवीय संस्कृति, कला आदि को ना सिर्फ बयां कर रही हैं बल्कि पुनर्स्थापना की तरह अग्रसर भी हैं।

बुद्धिष्ट पर मिथ्यारोप लगाने वाले ब्राह्मणों को जवाब देते हुए दिल्ली विश्वविद्यलय के में प्रोफ़ेसर रहे प्रो. ईश मिश्रा कहते हैं कि "कुछ लोग विदेशी आक्रमणों के लिए बुद्ध के अहिंसा की शिक्षा को जिम्मेदार मानते हैं। इसी तरह के एक सज्जन ने एक पोस्ट में बुद्ध की शिक्षा को विदेशी आक्रमणों और 'हजार साल की गुलामी' का जिम्मेदार बताया।“

प्रोफ़ेसर रहे प्रो. ईश मिश्रा कहते हैं कि “यहाँ महत्वपूर्ण सवाल यह हैं कि हजार साल की गुलामी कब से मानते हैं? 2000 साल से भी पहले से? बौद्ध क्रांति के विरुद्ध पुश्यमित्र से शुरू ब्राह्मणवादी प्रतिक्रांति से? बुद्ध अहिंसक जीवन शैली के प्रवर्तक थे, देश और समाज के सुरक्षातंत्र के भी समर्थक थे। अपराधियों को कड़ी-से-कड़ी सजा के सिद्धांत के प्रवर्तक थे, जो लोगों को अपराध करने से हतोत्साहित करने की मिशाल बने। राज्य के बौद्ध सिद्धांत के लिए कृपया दीघ निकाय और अनुगत्तरा निकाय पढ़ें। राज्य की उत्पत्ति का बौद्ध सिद्धांत, दैविक नहीं, सामाजिक संविदा का सिद्धांत है तथा राज्य के प्रचीनतम सिद्धांतों मे एक है।  अशोक, कनिष्क, हर्षवर्धन जैसे बौद्ध शासकों की गणना प्रचीन भारत के पराक्रमी सम्राटों में  होती है। राज्यों की पराजय और समाज के पतन का कारण बौद्ध नहीं, वर्णाश्रमी संस्कृति रही है। जिस समाज में शस्त्र और शास्त्र का अधिकार मुट्ठीभर लोगों को ही हो तथा कारीगर और श्रमजीवी बहुजन (शूद्र) को अधिकार से वंचित  रखा जाता हो, उस समाज को नादिरशाह जैसा चरवाहा भी 2000 घुड़सवारों के साथ पेशावर से बंगाल तक रौंद-लूट कर वापस जा सकता है और हमारे शूरवीर भजन गाते रह जाते हैं।

स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान औपनिवेशिक दलाल आंदोलन के गुरुत्व को कम करने के लिए हजार साल की गुलामी का भजन गाने लगे। पहले राज्य तलवार के बल पर स्थापित होते थे, और तलवार के धनी महान शासक माने जाते थे, चाहे वह सिकंदर हो या अशोक, समद्रगुप्त हो या अकबर। अंग्रेज विजेता अलग थे, वे तलवार से राज्य स्थापित करने नहीं बल्कि गुलाम मानसिकता के हमारे ही पूर्वजों को वर्दी पहनाकर, जमींदार या बाबू बनाकर उन्ही के बल पर हमें गुलाम बनाकर लूटने आए थे और 200 साल तक लूटते रहे। मध्ययुग में विदेशी आक्रांताओं के समक्ष देशी राजाओं की पराजय का कारण बुद्ध की शिक्षा नहीं वर्णाश्रमी व्यवस्था थी।" प्रो ईश मिश्रा ने स्पष्ट कर दिया हैं ब्राह्मण-सवर्ण विदेशी हैं। यहीं भारत की गुलामी व दुर्दशा के कारण हैं। 

अतः पाठ्यक्रम और इतिहास आदि के मूलनिवासी बनाम विदेशी थ्योरी सराहनीय हैं। ऐतिहासिक तथ्यों से किसी भी प्रकार की छेड़खानी नहीं होनी चाहिए। जो कुछ भारत के इतिहास के साथ अब तक ब्राह्मणवादी इतिहासकारों, ब्राह्मणवादी साहित्यकारों, ब्राह्मणवादी कवियों, ब्राह्मणवादी विचारकों आदि ने किया हैं वो सब इनकी मानसिक बीमारी का परिचायक हैं।

फिलहाल यदि भारत में समतामूलक समाज के सृजन के लिए संघर्ष कर रहें बुद्ध-फुले-अम्बेडकरी आन्दोलन और इसको आगे बढ़ाने वाले मान्यवर काशीराम साहेब और परम आदरणीया बहनजी को देखे तो स्पष्ट हो जाता हैं कि भारत में समतामूलक समाज के निर्माण के लिए बुद्धिज़्म, मानवता, समता, स्वतंत्रता, बंधुता, करुणा, शिक्षा, लोकतन्त्र जैसे समस्त मानवीय मूल्यों को समाहित किया हुआ सम्बोधन, बहुजन आन्दोलन प्रतीक, सहमति, अभिवादन, स्वागत आदि का प्रतीक जय भीम हैं। 

बाबासाहेब ने भी कहा हैं कि यदि हमें भारत को एक राष्ट्र के तौर पर विकसित करना हैं तो कुछ गिले-सिकवे भूलने होगें। इसलिए भी समतामूलक समाज के सृजन हेतु मूलनिवासी बनाम विदेशी थ्योरी के बजाय जय भीम की संस्कृति व सरकार स्थापित करनी होगी।

हमारा ऐसा विश्वास है कि मानवता के दर्शन में मूलनिवासी व विदेशी के मुद्दे का कोई खास महत्व भी नहीं है। क्योंकि यदि इसका इतना ही महत्व होता तो परमपूज्य बाबासाहेब डॉ अंबेडकर कभी भी सवर्णों के अपने साथ शामिल ना करते, अपने संगठन आदि में स्थान ना देते।

समतामूलक समाज के सृजन में यदि मूलनिवासी व विदेशी के मुद्दे इतनी ही अहमियत रखते तो क्रांतिसूर्य ज्योतिबा फुले भी ब्राह्मणों से कभी मित्रता ना करते ना ही अपने मुहिम में कभी किसी ब्रह्मण को शामिल करते, ना ही विधवा ब्रहम्णी को प्रसव के लिए अपने घर में जगह देते, ना ही विधवा ब्रहम्णी के बेटे को गोद लेकर उसका लालन-पालन करते।

बहुजन समाज की स्वतंत्र राजनैतिक अस्मिता को स्थापित कर बहुजन समाज को चार-चार बार सत्ता तक पहुंचाने वाले मान्यवर साहब व भारत महानायिका परम आदरणीया बहनजी भी सवर्ण समाज को बहुजन समाज की राजनैतिक पार्टी व भारत में सामाजिक परिवर्तन के आन्दोलन बहुजन समाज पार्टी में जगह ना देते। समतामूलक समाज के समर्थन में बने समता समाज संघ के पद पर बाबासाहेब ने कट्टर ब्रह्मण बालगंगाधर तिलक के बेटे श्रीधर तिलक को नियुक्त किया था, कारण मूलनिवासी या विदेशी नहीं बल्कि समतामूलक समाज में श्रीधर का विश्वास था।

फूले, मान्यवर व बहनजी ने सर्व समाज के मानवीय मूल्यों वाले लोगों को अपने साथ कदमताल करने का मौका दिया तो इसका कारण समतामूलक समाज में लोगों का विश्वास है, ना कि मूलनिवासी या विदेशी पृष्ठभूमि।

रजनीकान्त इन्द्रा

Wednesday, May 5, 2021

राष्ट्रीय पुनर्वास विश्वविद्यालय लखनऊ - 2.21 फीसदी आबादी के लिए उम्मीद की किरण

2011 की जनगणना के अनुसार भारत की कुल आबादी का 2.21 प्रतिशत लोग विकलांग है। इनमें से अधिकांश ऐसे हैं जो समाज में तिरस्कार व बहिष्कार की जिंदगी जी रहे हैं। इनके शिक्षा का स्तर काफी कम है, और समाज भी अपनी मनुवादी संस्कृति के तहत इनके इस विकलांगता को इनके पुनर्जन्म का परिणाम मानकर इनको इनके हाल पर छोड़ देती है।

ऐसे में भारत जैसे देश में जहां पर सभी को समान नागरिक हक है, और सभी को अपने जिंदगी में बेहतर करते हुए आगे बढ़ने का अवसर उपलब्ध है, वहां इन सब के बावजूद 2008 के पहले तक की सारी सरकारों ने देश के 2.21 फ़ीसदी आबादी को इनके हाल पर छोड़ कर हाशिए पर ढकेल दिया था।

ऐसे में देश की 2.21 फ़ीसदी आबादी के सर्वांगीण विकास के मद्देनजर रखते हुए 29 अगस्त 2008 को परम आदरणीय बहन जी के नेतृत्व वाली बसपा सरकार ने उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में लगभग 131 एकड़ में फैला एक आवासीय विश्वविद्यालय की नींव रखी जो अपनी बनावट, स्थापत्य कला, तकनीकी, पाठ्यक्रम और विकलांगों के जीवन से जुड़ी हर मूलभूत सुविधाओं के साथ भारत में ही नहीं, बल्कि दुनिया का एक अनोखा विश्वविद्यालय है।

दुखद है कि यह विश्वविद्यालय भारत की केन्द्र सरकार व राज्य सरकारों के लिए आदर्श होना चाहिए था था परन्तु ऐसा नहीं है। केंद्र व राज्य सरकारों ने बहन जी के इस अहम कार्य को एक आदर्श के तौर पर अपना कर अपने-अपने राज्यों में लागू करने के बजाय नज़रअंदाज किया है।

फिलहाल, इस विश्वविद्यालय में 7 आधुनिक तकनीकी पर आधारित संकाय स्थापित किए गए।

1. Faculty of Law

2. Faculty of Art & Music

3. Faculty of Science & Technology

4. Faculty of Engineering & Technology

5. Faculty of Commerce & Management

6. Faculty of Computer & Information Technology

7. Faculty of Special Education (Specially for Disability)

इन 7 संकायों में कुल 30 अलग-अलग विभाग है।

1. Law

2. History

3. Fine Art

4. Physics

5. Zoology

6. Botany

7. Chemistry

8. Education

9. Commerce

10. Economics

11. Microbiology

12. Management

13. Biotechnology

14. Civil Engineering

15. Computer Science

16. Electrical Engineering

17. Mechanical Engineering

18. Mathematics & Statistics

19. Hindi & Other Indian Languages

20. Computer Science & Engineering

21. Department of Visual Impairment

22. Department of Mental Retardation

23. English & Other Foreign Languages

24. Department of Hearing Impairment

25. Artificial Limb and Rehabilitation Centre

26. Political Science & Public Administration

27. Electronics & Communication Engineering

28. Sociology, Social Science and Social Work

29. Centre for Indian Sign Language and Deaf Studies

30. Department of Multiple Disabilities & Rehabilitation

जिसके तहत विकलांगों को स्नातक से लेकर पीएचडी तक की शिक्षा दी जाती है। साथ ही इस विश्वविद्यालय में विकलांग जनों की समस्याओं को ध्यान में रखते हुए उनके लिए विशेष सुविधाएं भी है जिनमें से कुछ निम्नांकित हैं।

1. Medical Facilities

2. Physiotherapy Unit

3. Assesment Services

4. Diagnostic Services

5. Therapeutic Services

6. Consultation Services

7. Exercise Therapy

8. Gait Training

9. Postural Correction

10. Disability minimizing therapy Plans

11. Ultrasonic Thearapy (US)-Digital & Modern Unit

12. Electrical Nerve Muscle Stimulator (EMS) and Transcutaneous Electrical Nerve Stimulation (TENS)-4 Channel

दुखद है कि देश की जनता, मीडिया जगत, तमाम मेरिटधारी बुद्धिजीवी लोगों तथा बहुजन समाज के रजिस्टर्ड संस्थाओं ने 2007 से 2012 से दौरान हुए इस तरह के सभी ऐतिहासिक व कालजयी कार्य को नजरअंदाज कर दफन कर दिया है।

ऐसे में, भारत में संविधान, लोकतंत्र और मानवाधिकार व भारत को मजबूत बनाने वाले लोगों का नैतिक दायित्व बनता है कि वे इस तरह के सभी कार्यों को ना सिर्फ जन-जन तक पहुंचाया जाए बल्कि राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय पटल पर नजीर के तौर पर भी स्थापित करें।

रजनीकान्त इन्द्रा

बसपा का समर्थन क्यों?

कोई पार्टी खुद सत्ता में नहीं आती है, जिनको उसकी वैचारिकी, नेतृत्व और शासन में विश्वास होता है वे खुद उसके लिए काम करते हैं, और अपने शासन से अपनी व समाज की सुरक्षा तय करते हैं।

हमें लगता है कि बसपा शासन देश हित में ज़रूरी है। इसलिए हम चाहते हैं कि बसपा सत्ता में आये। हम बसपा के लिए सोचते हैं क्योंकि हमें विश्वास है संविधान सम्मत लोकतांत्रिक शासन बसपा ही दे सकती हैं। हम बसपा के लिए लिखते हैं क्योंकि हमें पूर्ण विश्वास है कि हमारी सुरक्षा और भारत की रक्षा बसपा ही कर सकती है। हम जानते हैं कि बसपा ही बुद्ध रैदास कबीर फुले शाहूजी अम्बेडकर पेरियार और काशीराम के सपनों का भारत बना सकती है। बसपा ही रैदास का बेगमपुरा बसा सकती हैं। बसपा ही अशोक का भारत बना सकती हैं। बसपा ही भारत में सामाजिक परिवर्तन कर सकती हैं। बसपा ही सामाजिक, राजनैतिक व आर्थिक लोकतन्त्र स्थापित कर सकती हैं। बसपा ही समतामूलक समाज का निर्माण कर सकती हैं। इसलिए हम बसपा के साथ है।

रहीं बात विरोध करने की तो जिनके पुरखें बाबा साहब का विरोध करते हुए गांधी के चरणों में नतमस्तक थे, उनकी औलादों ने मान्यवर साहब को सीआईए का एजेंट बता कर विरोध किया था। और, उनकी ही आज वाली नस्लें बाबासाहेब और मान्यवर साहेब का नाम लेकर बहन जी का विरोध कर रहे हैं। ऐसे में चमचों की बातों को अहमियत मत दीजिए क्योंकि चमचे अपनी कुंठा निकालने को आलोचना कह कर जस्टीफाई करते हैं जबकि आलोचना की भाषा और निज कुंठा वाली विरोधी भाषा में बहुत अंतर होता है। 

मान्यवर कांशीराम साहब कहते हैं कि पूना पैक्ट के बाद से ही चमचे पैदा होने शुरू हो गए थे। ऐसे में, जब कोई सच्चा नेतृत्व और दल देश के पिछड़े वर्ग, वंचित और आदिवासी जगत के लिए सामने आएगा तो चमचे अपनी स्वार्थ के चलते बदनाम करेगें, और लोगों को गुमराह करेगें (जैसे कि बसपा के संदर्भ में हो रहा हैं)। बसपा का कद जैसे-जैसे बढ़ता जाएगा वैसे-वैसे ही बहुजन समाज में जन्मे चमचों द्वारा बसपा का विरोध होगा, और बसपा विरोधी दलों में इन चमचों की अहमियत भी बढ़ेगी।

याद रहे, चमचे तब भी थे, आज भी है, आगे भी रहेंगे। 1970 और 1980 के दशक में चमचे ही कहा करते थे कि "होऊ सकत नाही" परंतु आप जैसे निस्वार्थ व समर्पित बहुजन आंदोलन के सिपाहियों के चलते ही चमचों को मुंह की खानी पड़ी, और आप सब ने यह साबित कर दिया कि "होऊ सकत है"। आज यही चमचे बामसेफ आदि को रजिस्टर्ड करवाकर बसपा को बदनाम कर रहे हैं।  इन चमचों का कद ही बसपा के विरोध से बना हुआ है। इसलिए बहुजन समाज के हितैषी लोगों को मालूम होना चाहिए कि मान्यवर व बहनजी की सरकार चमचों की बदौलत नहीं, बल्कि आप जैसे मिशन को जानने-समझने वाले निस्वार्थी लोगों की वजह से बनी थी।

इसलिए अपना समय और ऊर्जा चमचों को जवाब देने में व्यर्थ करने के बजाए अपने मिशन, अपने मुद्दे, अपने नेतृत्व, अपनी पार्टी और अपनी विचारधारा को बार-बार विमर्श के केंद्र में रखते हुए जन-जन तक पहुंचाने में लगाना चाहिए। याद रहें, अपनी वैचारिकी, नेतृत्व व पार्टी पर विश्वास करके ही सत्ता तक पहुंच सकते हैं, जबरन विरोध से नहीं। 

रजनीकान्त इन्द्रा

Monday, May 3, 2021