Monday, February 26, 2018

हमारी लड़ाई, हमारी अगुवाई


प्रिय बहुजन साथियों,
विषय - हमारी लड़ाई, हमारी अगुवाई
प्रिय मूलनिवासी बहुजन साथियों,
किसी का युद्ध कोई और लड़ेगा तो शोषण का कार्यकाल बढ़ता ही जायेगा! उदाहारार्थ - जब-जब वंचित जगत की लड़ाई वंचित/मूलनिवासी/बहुजन जगत के महानायकों (डॉ अम्बेडकर, मान्यवर काशीराम साहेब, बहन कुमारी मायावती जी आदि) के नेतृत्व में लडी गयी है, परिणाम सकारात्मक व सफल रहा है! लेकिन जब-जब इन्होनें अपने मुक्ति का नेतृत्व अपने शोषकों, तथाकथित पाखण्डी हितैषियों (कांग्रेस, बीजेपी व कम्युनिस्ट आदि) के हाथों में सौंपा है तब-तब इनके हर तरह के शोषण में घातांकीय इजाफा ही हुआ है!
ठीक इसीतरह, आज तक महिलाओं के हकों की लड़ाई इनका शोषक पुरूष ही लड़ता आ रहा है! नतीजा, महिला हकों की लड़ाई के नाम पर पुरूष वर्ग सरेआम महिलाओं के ही हकों को दफन कर महिलाओं की ही आजादी छीन रहा है!
इतिहास गवाह है कि कभी लव-जिहाद, कभी संस्कार-संस्कृति तो कभी इज्जत-मर्यादा के नाम पर खुद महिलाओं को ही निशाना बनाया जाता रहा है! सरकारे बिना समुचित स्वप्रतिनिधित्व के नारी समाज के सशक्तिकरण के लिए तमाम योजनाओं को घोषित करती रही है लेकिन आज तक वांछित परिणाम देखने को नहीं मिला हैं! उल्टा, नारी समाज के प्रति होने वाले अपराध बढ़ते ही जा रहे हैं! इतिहास पर गौर कर हम निसंदेह कह सकते हैं कि नारी जगत की मुक्ति नारियों के अगुवाई में ही संभव है, इनके शोषक पुरुषों की अगुवाई में नहीं!
इसीतरह से, किसानों का आन्दोलन सफल नही हो सका क्योंकि उनका नेतृत्व व प्रतिनिधित्व करने वाले किसान नही, बल्कि शहरों के वातानुकूलित महलों में बैठे सामान्त है!
मजदूरों की समस्याएं जस की तस बनी हुई हैं क्योंकि मजदूरों का नेतृत्व करने वाले या तो खुद पूंजीपति है या फिर उनके आदर्श गुलाम!
विक्लांगों, किन्नरों का हक आज भी अधर में अटका है क्योंकि उसका प्रतिनिधित्व खुद वो नहीं बल्कि ब्रहम्णों व ब्रहम्णी रोगियों द्वारा किया जाता रहा है!
निष्कर्ष के तौर पर हम ये कहना चाहते हैं कि जिनके लिए तमाम युद्ध उनके अगुआ बनकर उनके स्वघोषित हितैषियों द्वारा लड़े जा रहे हैं, यदि उनके लिए युद्ध का तांडव करने वाले उनके युद्ध में उनकों ही अगुआ बनकर अपनी लड़ाई खुद लड़ने दे तो परिणाम बेहतर होगें!
धन्यवाद...
जय भीम, जय भारत!
रजनीकान्त इन्द्रा, इतिहास छात्र, इग्नू नई दिल्ली
दिसम्बर २०, २०१७

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