Saturday, May 30, 2020

Thursday, May 28, 2020

ब्राह्मणवाद के दुष्चक्र में बौद्ध धम्म

भारत के बुद्धिज़्म में प्रचलित अचार-विचार कितने प्रासंगिक हैं, सीलोन में बुद्धिज़्म मूलरूप में हैं अथवा उसमे में बौद्ध पंडों द्वारा बदलाव किया गया हैं। इसके बारे में बाबा साहेब पड़ताल की राय रखते हैं ताकि धम्म को इसके मूल स्वरुप में जाना जा सके।
25 मई 1950 से "सीलोन बुद्धिस्ट" कांग्रेस द्वारा सीलोन की पुरानी राजधानी काण्डी में "विश्व बुद्ध परिषद" का आयोजन किया गया था। 26 मई 1950 के दिन बाबा साहब को बोलने का मौका मिला। तब बाबा साहब ने वहां उपस्थित लोगों को सम्बोधित करते हुए बाबा साहेब ने कहा कि -
"मैं चाहता हूं कि भारत में बौद्ध धम्म के केवल ब्राह्योपचार का ही अनुसरण किया जाता है या फिर सही बुद्ध धम्म का अनुसरण किया जाता है, इस बारे में भारतीय जाने बहुत धर्म जागृत है अथवा केवल परंपरागत है, यही मैं देखना चाहता हूं।"
ये सत्य हैं कि समय के साथ-साथ ब्राह्मणीकरण के चलते बुद्धिज़्म में ना सिर्फ ब्राह्मणी कर्मकांडों का प्रवेश हो चुका हैं बल्कि बुद्धिज़्म में भी एक पुरोहित वर्ग का जन्म हो चुका हैं। ये वर्ग दो-चार किताबों का संदर्भ देकर लोगों को कर्मकाण्डों में उलझाने का कार्य कर रहा हैं। ये और बात हैं कि इनके स्रोत अक्सर मूलस्रोत से होने के बजाय द्वितीय स्रोत (Secondary Source) होती हैं।
इनके मुताबिक ब्राह्मणी दिवाली के दिन दीपदान उत्सव मानना चाहिए। "ॐ मणि पद्मे हुं" का जाप करना चाहिए।  "ॐ" और स्वास्तिक सब बुद्धिज़्म के अंग हैं, आदि। इनके ऐसे तर्कों को सुनकर प्रतिक्रियावादी बुद्धिष्ट खुश हो जाते हैं। इनके ऐसे बातों से हिन्दुओं का वो फिरका भी सहज महसूस करने लगता हैं, जिसकों कृष्ण-साईं और बुद्ध दोनों की स्वार्थसिद्धि के अनुसार जरूरत होती हैं। नतीजा, बुद्धिज़्म का ब्राह्मणी संस्कृति से घालमेल। मतलब कि बुद्धिज़्म में कर्मकाण्डों व अंधविश्वासों का प्रवेश। अंततः बुद्धिज़्म में हानि।
हालाँकि, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता हैं कि बुद्धिज़्म की संस्कृति बहुत समृद्धि रहीं हैं। आज भारतियों के ब्राह्मणीकरण के बाद धम्म के बहुत सारी रीति-रिवाज आदि बहुत सारे प्रतीक ब्राह्मणी संस्कृति के द्योतक बन गए हैं। ऐसे में भारत में यदि बुद्धिज़्म को पुनः स्थापित करना हैं तो लोगों में भ्रांतियाँ फ़ैलाने के बजाय ब्राह्मणी प्रतीकों व ब्राह्मणी चेंटिंग की पद्धति से अलग आम जनमानस के समझ में आने वाली भाषा में बुद्धिज़्म के मूल सिद्धातों को लोगों तक पहुँचाने की जरूरत हैं।
जहाँ तक हम समझ पाए हैं बुद्धिज़्म आज जनमानस के जीवन को सरल, सुगम, सुखद और समृद्ध बनाने वाली जीवन-शैली हैं। लेकिन दुखद हैं कि बौद्ध धम्म के पंडों ने अपनी विशिष्टता को कायम बनाये रखने के लिए धम्म को जटिल बना दिया हैं। क्योंकि ये स्थापित सत्य हैं कि जब आप किसी सिद्धांत/पद्धति/पंथ/धर्म आदि को जटिल कर देते हैं तो वो आम जनमानस से दूर हो जाती हैं। लोगों के लिए उसको समझना कठिन हो जाता हैं। ऐसे में उन पण्डों का व्यापार और उनकी सामाजिक विशिष्टता व महत्व बढ़ जाता हैं। इसके पश्चात् ये पंडा वर्ग अपने व्यापार व सामाजिक प्रतिष्ठा को बनाये रखने के लिए उस सिद्धांत/पद्धति/पंथ/धर्म को कठिन से कठिन बनाये रखने के लिए नित नये कर्मकाण्डों को जन्म देता रहता हैं। शब्दों के मायाजाल में लोगों को उलझाने के लिए नई-नई व्यख्या करता हैं। अपने आपको जस्टिफाई करने के लिए नई-नई किताबे लिखता हैं। क्योंकि लिखित की प्रामणिकता अधिक होती हैं। यहीं ब्राह्मणों ने किया जिसके परिणाम स्वरुप ब्राह्मणवाद स्थापित हो सका। आज यहीं कार्य बुद्धिज़्म के पंडे भी कर रहे हैं। इन्होने अपने निजी स्वार्थ व मंशा की पूर्ती के लिए धम्म को हानि पहुँचाने का कार्य कर रहे हैं। इनकी सफलता की वजह हैं समरसतावादी लोग। ये समतावादी (यथास्थितिवादी) लोग समता (परिवर्तनवादी) के लिए खतरा हैं। समरसतावादियों ने पहले बुद्धिज़्म को निगल लिया हैं और अब बाबा साहेब को निगलने के लिए कार्यरत हैं। 
बुद्धिज़्म के मानने वालों को ये सोचने की जरूरत हैं कि आज बुद्धिज़्म में जितना कर्मकाण्ड (ढोंग-पाखण्ड) प्रवेश कर चुका हैं क्या वाकई उसको बुद्ध ने बनाया था? क्या बुद्ध के पास इतना वक्त रहा कि वे नित नए नियम बनाये। यदि धम्म को कानून की किताबों में ही बांधना था तो बुद्ध ने कुरान, बाइबिल, गीता आदि की तरह कोई एक पवित्र ग्रन्थ क्यों नहीं सृजित करवाया? हमारा स्पष्ट मानना हैं कि बुद्ध ने कुछ मूल सिंद्धांत जैसे कि त्रिशरण, पंचशील, अष्टांगिक मार्ग बताया होगा। इसको समझने के लिए अलग-अलग उदहारण दिए होगें। समयानुसार कुछ अनुशासन बताये होगें। लेकिन बुद्ध ने कर्मकाण्डों को कभी बल नहीं दिया होगा। ऐसे में हमारा स्पष्ट मत हैं कि जितने भी कर्मकाण्ड बुद्धिज़्म में व्याप्त हो गए हैं ये सब बुद्धिज़्म में पैदा हुए पण्डों की वजह से हैं।
समरसतावादी पंडों से पूछने पर वे कहते हैं कि बाबा साहेब ने खुद कहा हैं कि "मैं आप लोगों को एक कठिन धम्म दे रहा हूँ"। ये समरसतावादी पंडे जिस तरह से बाबा साहेब का नाम उछाल कर खुद को जस्टिफाई कर रहें हैं उससे स्पष्ट हैं की बाबा साहेब ने ऐसा कुछ नहीं कहा होगा। और यदि कहा भी होगा तो उस संदर्भ में बिलकुल नहीं कहा होगा जिस संदर्भ में ये पंडे कह रहें हैं। 
बौद्ध धम्म में पैदा हुए इन पंडों से यदि आप ज्यादा सवाल जबाब करेगें तो ये आप को दोषी करार कर देगें क्योकि आपने उनकी और उनके जैसों की लिखी किताबों नहीं पढ़ा हैं। आप फेसबुक पर उनसे ज्यादा सवाल करते हैं, इसलिए वे आपको फेसबुकिया विद्वान कहते हैं। वे आपके सवाल और आपकी असहमति पसंद नहीं करते हैं। वे चाहते हैं कि आप उनकी व उनके जैसों की किताबें पढ़िए। क्योकि यदि आपने उनकी व उन जैसों को चार-छह किताबें पढ़ ली तो आप सवाल ही नहीं करेगें। आप उनके जैसे ही बन जायेगें। यहीं वे चाहते हैं। नतीजा - धम्म में पंडों की सत्ता और धम्म के मूल तत्वों की हानि। फिलहाल भारत में धम्म के डूबने और १९५६ के बाद वांछित प्रसार ना होने की एक मुख्य वजह ये समरसतावादी बौद्ध पंडे हैं। 
फिलहाल बाबा साहेब का नाम लेकर बौद्ध धम्म में पैदा हुए समरसतावादी बौद्ध पंडों द्वारा धम्म को जो कठिन बताया जा रहा हैं, इसमें समरसतावादी पंडों ने यहाँ पर "कठिन" की परिभाषा क्या हैं, ये स्पष्ट नहीं किया। क्या बाबा साहेब देश की अशिक्षित जनता को कठिनता में झोंककर धम्म का प्रसार कर सकते थे? बिलकुल नहीं। इस लिए बौद्ध धम्म कठिन नहीं हो सकता हैं। यदि कठिन होता तो दुनिया में फ़ैल ही नहीं सकता था।
हमारा विचार हैं कि धम्म सरल, सुगम सुखद व समृद्ध बनाने वाली जीवन शैली थी। इसलिए धम्म ने दुनिया के कोने-कोने में अपने आपको स्थापित कर लिया। दूसरी बात ये भी हैं कि यदि बाबा साहेब ने धम्म कोकठिन कहा भी होगा तो उसका मतलब भारत के लोगों के संदर्भ में और ब्राह्मणी व्यस्था के संदर्भ में रहा होगा। क्योकि ब्राह्मणी धर्म का पालन करना सबसे आसान हैं।
आप किसी की भी पूजा कर लीजिये। आप ईश्वर को मानिये या नकार दीजिये। आपने कोई हिन्दू ग्रन्थ पढ़ा हो या न पढ़ा हो। कोई फर्क नहीं पड़ता हैं। स्पष्ट हैं कि ब्राह्मणी धम्म एक अनुशासनहीन धर्म हैं, जिसका पालन करना बहुत आसान हैं। और आज के समय में भारतीय लोग इस अनुशासनहीन ब्राह्मणी धर्म के आदी हो चुके हैं। ऐसे में अनुशासनहीन को किसी सरलतम अनुशासन में रखना भी बहुत कठिन कार्य है। इस संदर्भ में बाबा साहेब ने बुद्धिज़्म को कठिन बताया होगा, ये संभव हैं। लेकिन जिस तरह से बाबा साहेब का नाम लेकर बौद्ध पंडों ने लोगों को गुमराह करने का कार्य किया हैं वो ना सिर्फ निंदनीय हैं बल्कि बुद्धिज़्म को शर्मसार करने वाला भी हैं।
ऐसे में स्पष्ट हैं कि बुद्धिज़्म को ब्राह्मणी ब्राह्मणों से तो बचाया जा सकता हैं लेकिन बुद्धिज़्म में पैदा हो चुके ब्राह्मणों से बुद्धिज़्म को बचाना कठिन हैं।
फिलहाल भारत में बुद्ध धम्म के मूल स्वरुप में आये बदलाव और कर्मकाण्डों व रीति-रिवाजों की पड़ताल के संदर्भ में 26 मई 1950 के दिन "सीलोन बुद्धिस्ट कांग्रेस" द्वारा सीलोन की पुरानी राजधानी काण्डी में "विश्व बुद्ध परिषद" में बाबा साहेब कहते हैं कि -
"बौद्ध धम्म के आचार (पद्धति) और उपचार (विचार) भारत में देखने को नहीं मिलते हैं। उन्हें देखने के मौका लाभ उठायें। साथ यह भी देखें कि बौद्ध धम्म के मूल सिद्धांतो से मेल ना खाने वाली श्रद्धाओं से बौद्ध धर्म कितनी ग्रस्त है? और, मूल विशुद्ध स्वरुप धम्म कितना बचा है? और दुनिया सीलोन को बौद्धधर्मी कहती है। इसलिए सीलोन बौद्ध धम्म अनुयायी हैं। या कि वह धम्म आज भी वहां जीवित स्वरूप में प्रचलित है। इस बारे में सोच करें।"
इससे साफ जाहिर हैं कि बाबा साहेब बौद्ध धम्म के पंडों द्वारा बुद्धिज़्म की मूल भावना को किनारे कर धम्म को ब्राह्मणवादी रोजगार बना दिया गया था। इसलिए बाबा साहेब इसमें कुछ नए नियम व अनुशासन जोड़ना चाहते थे। जिससे कि बौद्ध पंडों की दुकान बंद हो सके और बुद्धिज़्म अपने मूल स्वरुप में मूल तत्वों के साथ सुगमता पूर्वक आम जान तक पहुंचकर उनके लिए कल्याणकारी साबित हो सके।
रजनीकान्त इन्द्रा
एमएएच इग्नू-नई दिल्ली

Monday, May 25, 2020

एक फॉलोइंग और मिलियन से ज्यादा फॉलोवर्स - एक सन्देश हैं


एक फॉलोइंग और मिलियन से ज्यादा फॉलोवर्स - एक सन्देश हैं
आज बहुजन-विरोधी सत्तारूढ़ हैं। लेकिन बसपा के बढ़ते जनाधार और मुस्लिम समाज के जुडाव से दुखी होकर सत्तारूढ़ बहुजन विरोधी दलों के साथ-साथ हर बार की तरह मुस्लिमों को गुमराह करने के लिए उत्तर प्रदेश की एक क्षेत्रीय दल (जिसके मुखिया कुछ वर्ष पहले तक खुद को क्षत्रिय समझते थे) के लोगों ने फर्जीं अखबारी पोस्ट के जरिये ओबीसी की एक मात्र राष्ट्रिय बसपा पार्टी के खिलाफ तरह-तरह की अफवाहें फैलाई जा रहीं हैं। इस सबके द्वारा बसपा के खिलाफ षड्यंत्र किये जा रहें हैं।

इसलिए ओबीसी, अल्पसंख्यक, आदिवासी और वंचित समाज के युवओं को अपनी ऊर्जा बहुजन आन्दोलन को सतत आगे ले जा रहीं बहुजन समाज पार्टी के विकास कार्यों, बहुजन महानायकों-महानायिकाओं के संदेशों को जन-जन तक पहुंचाकर बसपा के बैनर तले बहुजन समाज को एक करने में इस्तेमाल करनी चाहिए। बहुजन युवाओं को अपने बहुजन मिशन के लिए कैसे प्रतिबद्ध रहना हैं, कैसे सोशल मीडया पर लिखना हैं, इसकी एक बेहतरीन सीख बहन जी के ट्विटर एकाउंट से मिल सकती हैं।

जैसा कि सर्वविदित हैं कि देश के प्रधानपंत्री, केंद्रीय मंत्री, मुख्यमत्री, राजनैतिक दल और राजनीतिक व्यापारियों व उनके चमचों के साथ-साथ सरकारी मशीनरी के लोग ट्विटर पर एक्टिव हैं। इसके ट्विटर एकाउंट पर गौर कीजिये तो आप पायेगें कि ये लोग हजारों को को फालों करते हैं। बहुत सारी अनैतिक, असंवैधनिक और अलोकतांत्रिक टिपण्णी करते हैं। एक-दूसरे पर छीटाकशी करते हैं। यदि आप बहन जी के ट्विटर एकाउंट पर गौर करे तो आप पायेगें कि ट्विटर पर ओबीसी वर्ग की एकमात्र राष्ट्रिय नेता बहनजी के ट्विटर एकाउन्ट पर गौर कीजिये तो बहन जी सिर्फ @TwitterSupport (जो कि टेक्नीकल सहयोग की ऑफिसियल आईडी हैं) को छोड़कर किसी को फालों नहीं करती हैं।

बहन जी द्वारा ट्विटर पर किसी को भी फालों नहीं किया जाना यह बताता हैं कि "किसी की खीचीं लाइन को मिटाने में अपनी ऊर्जा नष्ट मत करों, बल्कि उसके बगल में उससे भी मोटी-गहरी और लम्बी लाइन खींच दो"। ऐसा करना बहन जी द्वारा बहुजन मिशन के लोगों के लिए एक अहम् सन्देश हैं। बहन जी ऐसे हीं अपने अनेक संदेशों, कृत्यों व कृत्य निहित संदेशों की वजह से ही बहन जी सभी राजनैतिक व्यापारियों व दलों से पूरी तरह अलग अपने बुद्ध-फुले-शाहू-आंबेडकर-काशीराम वैचारिकी और मिशन के प्रति पूर्ण समर्पित व भारत राष्ट्र निर्माण के लिए प्रतिबद्ध एकमात्र सशक्त राष्ट्रिय नेता हैं।

बहन जी के ट्विटर आईडी (@Mayawati) पर गौर कीजिये, आप पायेगें कि बहन जी किसी की प्रतिक्रिया में कोई पोस्ट नहीं करती हैं। बहन जी अपने समय और सोशल मिडिया का सदुपयोग कटे हुए मजदूरों-मजलूमों, पिछड़ों, मुस्लिमों, आदिवासियों, किसानों और देशहित के मुद्दों को आवाज देने, अपने बहुजन महानायकों-महनायिकाओं की वैचारिकी को जन-जन तक पहुँचाने और अपने अनुयायिओं व देश के खिलाफ कार्य करने वाली राजनैतिक पार्टियों, नेताओं आदि को सम्यक मार्ग दिखाने के लिए ही इस्तेमाल करती हैं।

बहन जी कभी भी अपनी ऊर्जा प्रतिद्वंदी की बुराई करने, किसी नेता की निजी जिंदगी आदि मुद्दों पर टिप्पणी करने में कभी भी नष्ट करती हैं। बहन जी पर बहुजन-विरोधी समाज, उनके नेताओं, कार्यकर्ताओं द्वारा खुलेआम गली-गलौज किया जाता हैं। इन सबके बावजूद बहन जी एक सम्यक बौद्ध उपासिका की भांति मानवीय संवैधानिक व लोकतांत्रिक मूल्यों पर आधारित शब्दावली का ही इस्तेमाल करती हैं।

बहन जी के कृत्यों पर गौर कीजिये तो आप पायेगें कि बहन जी हमेशा से समाज को जोड़कर समतामूलक समाज की स्थपना के लिए संघर्ष करती आ रहीं हैं। उन्होंने अपने शासनकाल में जहाँ एक तरफ संविधान-विरोधी ताकतों, कानून-विरोधी लोगों को सलाखों के पीछे किया है तो बुद्ध-फुले-अम्बेडकरी वैचारिकी के तहत देशहित में कार्य करने वाले सर्वसमाज को सदा एक समान निगाह देखते हुए सबके साथ न्याय किया हैं।

इतिहास गवाह हैं कि  बहन जी (बसपा) ने हमेशा संविधान और लोकतान्त्रिक मूल्यों के तहत समतामूलक समाज के सृजन के लिए ही कार्य किया है। इसलिए "एक फॉलोइंग और मिलियन से ज्यादा फॉलोवर्स" से सम्यक शिक्षा लेकर बुद्ध-फुले-शाहू-अम्बेडकर मिशन आधारित समतामूलक समाज सृजन के लिए कार्य करने वाले लोगों को चाहिए कि वो लोग भी सोशल मीडया पर संवैधनिक, लोकतान्त्रिक और नैतिक आचरण के तहत ही अपनी बात को रखें। किसी पार्टी, संगठन व व्यक्ति की बुराई में अपनी ऊर्जा नष्ट करने के बजाय अपनी बुद्ध-फुले-शाहू-अम्बेडकर वैचारिकी व बसपा के कार्यों को जन-जन तक पहुँचाकर समतामूलक समाज के सृजन के लिए अपनी मोटी-गहरी-लम्बी लाइन खींचने में अपना समय और ऊर्जा का सदुपयोग करें।
रजनीकान्त  इन्द्रा (Rajani Kant Indra)
एमएएच (इतिहास), इग्नू-नई दिल्ली