Tuesday, December 1, 2009

बोम्मई और सरकारिया आयोग



 सरकारिया आयोग के निष्कर्षो के जिस पहलू पर सर्वाधिक बहस हुई तथा चर्चा मिली वह था राज्यों में राष्ट्रपति शासन लागू करने के संदर्भ में सरकारिया कमीशन के विचार। कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री एस. आर. बोम्मई ने अपनी सरकार की बर्खास्तगी को 1989 में सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी और राज्य विधानसभा में शक्ति परीक्षण कराने के उनके आग्रह को राज्यपाल द्वारा ठुकरा देने के निर्णय पर सवाल उठाया था।

                  सुप्रीम कोर्ट की नौ सदस्यीय एक पीठ ने बोम्मई मामले में मार्च 1994 में अपना ऐतिहासिक फैसला सुनाया और राज्यों में केंद्रीय शासन लागू करने के संदर्भ में सख्त दिशा-निर्देश तय किए।

                  न्यायमूर्ति सरकारिया ने केंद्र-राज्य संबंधों और राज्यों में संवैधानिक मशीनरी ठप हो जाने की स्थितियों की व्यापक समीक्षा की और 1988 में सौंपी गई अपनी रिपोर्ट में उन्होंने इस संदर्भ में समग्र दिशा-निर्देश सामन रखे। उन्होंने कहा कि राज्यपालों की नियुक्ति में मुख्यमंत्रियों से सलाह ली जानी चाहिए। राज्यपालों के पक्षपातपूर्ण आचरण पर अंकुश लगाने के लिए कदम उठाए जाने चाहिए। यदि चुनाव में किसी दल या गठबंधन को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलता है तो राज्यपाल को सबसे बड़े चुनाव पूर्व गठबंधन को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करना चाहिए। राज्यपालों को राजभवन के लान में विधायकों की गिनती कर किसी दल या गठबंधन के बहुमत के बारे में निर्णय नहीं लेना चाहिए। बहुमत का परीक्षण राज्य विधानसभा में ही होना चाहिए। छह वर्ष बाद बोम्मई मामले में सुप्रीम कोर्ट ने भी इस आयोग की महत्वपूर्ण सिफारिशों पर अपनी मुहर लगा दी। सच तो यह है कि आयोग की इस रिपोर्ट पर ही बोम्मई मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपना निर्णय सुनाया। बोम्मई मामले का निपटारा सुप्रीम कोर्ट की नौ सदस्यीय बेंच ने किया।

                उक्त निर्णय ने केंद्र सरकार द्वारा अनुच्छेद 356 के व्यापक दुरुपयोग पर विराम लगा दिया। सुप्रीम कोर्ट 1952 से 1994 के बीच इस अनुच्छेद के मनमाने इस्तेमाल पर विचलित थी, इसलिए उसने ऐसी भाषा में सख्त दिशा-निर्देश तय किए जिससे आने वाले वर्षो में इस अनुच्छेद के दुरुपयोग की कोई गुंजाइश ही न रहे। सात बिंदु, जो अदालत का बहुमत का दृष्टिकोण बनकर उभरे, इस प्रकार थे- अनुच्छेद 356(1) के तहत राष्ट्रपति शासन की उद्घोषणा न्यायिक समीक्षा के योग्य है (2) अदालत यह जांच सकती है कि राष्ट्रपति शासन की घोषणा क्या किसी सामग्री पर आधारित है और क्या वह सामग्री प्रासंगिक है (3) चुनौती दिए जाने की दशा में यह जिम्मेदारी केंद्र सरकार की है कि वह संबंधित सामग्री की प्रासंगिकता सिद्ध करे (4) अनुच्छेद 74 (2) राष्ट्रपति के समक्ष सामग्री की जांच-पड़ताल से कोई प्रतिबंध नहीं है और राष्ट्रपति इस संदर्भ में तब तक कोई अपरिवर्तनीय निर्णय नहीं ले सकते जब तक कि राष्ट्रपति शासन की उद्घोषणा को संसद अपनी मंजूरी न प्रदान कर दे (5) यदि अदालत उद्घोषणा को अवैध पाती है तो उसे पूर्व स्थिति बहाल करने का अधिकार है अर्थात वह विधानसभा और मंत्रिमंडल को बहाल कर सकती है-भले ही संसद ने उद्घोषणा को अपनी मंजूरी प्रदान कर दी हो (6) अदालत के पास अंतरिम राहत देने का भी अधिकार है अर्थात वह नए चुनावों पर रोक लगा सकती है (7) पंथनिरपेक्षता संविधान के मूल ढांचे का अंग है।

                 यद्यपि अदालत ने यह स्पष्ट करने में कोई कोताही नहीं बरती कि यदि उसके निर्णय को लागू करने में गड़बड़ी की गई तो वह हस्तक्षेप करने में नहीं हिचकिचाएगी


उदहारण

१. कुछ वर्ष पहले केंद्र में सत्तारूढ़ राजग सरकार ने बिहार की राबड़ी देवी सरकार को बर्खास्त कर दिया था |सरकारिया आयोग की रिपोर्ट के तहत अंतत: केंद्र सरकार को राबड़ी देवी सरकार बहाल करने के लिए विवश होना पड़ा।

२. झारखंड राज्यपाल सैयद सिब्ते रजी ने कांग्रेस पार्टी के हितों की पूर्ति करने के लिए एक अल्पमत सरकार का गठन कराया, हालांकि बाद में वह भी अपने प्रयासों में असफल रहे।

३. कर्नाटक विधानसभा निलंबित अवस्था में रखने के केंद्रीय कैबिनेट का निर्णय |

             राजनीतिज्ञों द्वारा अदालत के दिशा-निर्देशों को स्वीकार करने का पहला संकेत 2003 में उस समय मिला जब अंतर राज्य परिषद ने यह माना कि सरकारिया कमीशन की महत्वपूर्ण सिफारिशों पर अमल होना चाहिए। परिषद ने कहा कि विधानसभा भंग नहीं की जानी चाहिए, बल्कि इसे तब तक निलंबित अवस्था में रखना चाहिए जब तक कि राष्ट्रपति शासन की उद्घोषणा को संसद के दोनों सदन अपनी मंजूरी न दे दें। राष्ट्रपति को भेजी गई राज्यपाल की रिपोर्ट एक प्रखर दस्तावेज होना चाहिए और इसे संबंधित तथ्यों तथा आधारों के साथ उद्घोषणा का अभिन्न अंग बनाया जाना चाहिए।



Dec. 01, 2009

Saturday, November 14, 2009

न्यायपालिका और भ्रष्टाचार

भष्टाचार और संविधान द्वारा दी गयी शक्ति का दुरूपयोग आज हमारी सरकार में आम बात है | आज हमारे देश के एक चपरासी से लेकर नेताओ , पुलिस अधिकारीयों और प्रशासनिक अधिकारियो तक पर भ्रष्टाचार के आरोप लग चुके है , और दोषी मिलाने पर सजा भी हुई है | लेकिन आज तक गिने चुने दो - चार न्यायाधीशों पर ही आरोप लगें है क्यों ? परन्तु और भी आश्चर्य यह है कि आज तक ये सिद्ध किसी भी न्यायाधीश पर नहीं हुआ है क्यों ? क्या सारे के सारे आरोप झूठे थे | इसकी सिर्फ न्यायिक जाँच होती है | इनका फैसला सिर्फ कोलेजियम करता है | इसके पारदर्शिता और निष्पक्षता के बारे में कोई भी इन्फोर्मेशन जनता को नहीं है क्योकि ये जनता के अधिकार क्षेत्र से बाहर है , आखिर क्यों ? हमारे न्यायाधीश अपने को कानून से ऊपर मानते है जबकि हमारे सुप्रीम कोर्ट के ही एक न्यायाधीश ने कहा है कि सब लोग हमारी भारतीय जनता के नौकर है | जब सब नौकर है तो मालिक ( भारतीय जनता ) को हिसाब देने में हिचक क्यों ? संपति को ना बताने की असफल कोशिस इसका एक उदहारण है |

               भारत सरकार के विभिन्न अंग के लोगो पर आरोप लगे है , जाँच हुई है और सजा भी मिली है लेकिन आज तक कोई जज दण्डित क्यों नहीं हुआ ? क्या सारे आरोप झूठे होते है | हमारे नेताओ के मामले में राजनितिक फायदे के लिए आरोप लगते है लेकिन जज तो स्वतंत्र होते है ये किसके दबाव में आकार या किस राजनीति के लिए अपने संवैधानिक पॉवर का दुरूपयोग करते है ? भारत में न्यायाधीशों का वेतन भी उनके समक्ष लोगो से ज्यादा होता है फिर भी ये हालत है क्यों ? बात चाहे जो भी हो लेकिन हमारे न्यायपालिका का राजनीतिकरण हो चुका है | उदहारण स्वरुप इंदिरा गाँधी द्वारा अपने मन पसंद को मुख्य न्यायाधीश बनाकर इमरजेंसी को सही साबित करना , न्यायाधीश सब्बरवाल पर लगे आरोप , न्यायाधीश दिनकरण पर लगे आरोप | इसी तरह से ढेर सारे उदहारण है लेकिन ये उजागर नहीं हो पाते है क्योकि संविधान ने इसको एक पॉवर अवमानना की दी है | न्यायपालिका कितना भी निष्पक्ष क्यों ना हो जाए फिर भी राजनीति के दायरे से नहीं निकल सकती है | इसका कारण खुद न्यायाधीशों की नियुक्ति की अपारदर्शी प्रकिया और अवमानना का अधिकार है | फ़िलहाल जो कुछ भी हो अब भी कुछ नहीं बिगाडा है | हमारे देश की सी.बी.आई और पुलिस को अधिकार दिया जाए जिससे कि ये उनकी जाँच कार सके | किसी को भी अधिक स्वतंत्रता देना लोक तंत्र के लिए घातक होगा | संविधान निर्माण के समय न्यायाधीशों के अधिकारों को कम करने पर बल दिया गया था लेकिन सफल नहीं हुआ क्यों कि हमारी संविधान निर्माता समिति ने इस पद बैठने वालों को इस पद पर बैठने से पहले ही मान लिया कि वे बहुत ही इमानदार है | नतीजा आज सामने है कि सारे आम संविधान का उल्लंघन हो रहा है , उदहारण स्वरुप कर्नाटक के न्यायाधीश दिनाकरन को धक्का दिया जाना और दो न्यायाधीशों को विरोध प्रदर्शन के दौरान मामलों की सुनवाई स्थगित करने से इनकार करने पर अदालत हाल में बंद कर दिया गया। ये संविधान का अपमान ही तो है | लेकिन हमारे वकील भाई भी उताने ही सही है , जितना कि संविधान , क्योंकि आज वे जो कुछ कर रहे है वह जनता की भलाई के लिए और न्यायपालिका को विश्वनीय , पारदर्शी बनाने के लिए ही है | जब जनता में अधिकार और पारदर्शिता की बात आएगी तो संविधान का उल्लंघन होना तय है क्योकि संविधान के दायरे में रह कर परिवर्तन नहीं लाया जा सकता है | हमारे कानून मंत्री हमेशा हर निर्णय न्यायपालिका पर छोड़ देते है तो क्या इनको जनता ने कुर्शी तोड़ने के लिए बैठाया है | संसद का काम है समय के अनुसार कानून बनाना और परिवर्तित करना जबकि न्यायपालिका और कार्यपालिका का काम है उसका पालन करना | जबकि न्यायपालिका खुद ही कानून बनाना चाहती है तो फिर संसद और न्यायपालिका में जंग निश्चित है | ठीक यही हुआ था श्री सोमनाथ चटर्जी और न्यायपालिका के बीच | जनता ने भी सोम दादा का समर्थन किया था क्योकि संसद से सांसदों का निलंबन सही निर्णय था | जनता ने सदा सही का ही साथ दिया है और सदा देगी भी | अब वक्त आ गया है की न्यायाधीशों को सीधे पुलिस और सी.बी.आई. जाँच के दायरे में लाया जाए |

                 आज लोग कहते है कि चुनाव आयोग का ही सब जगह शासन हो , जो कि लोकतंत्र में संभव नहीं है फिर भी ये भारतीय चुनाव आयोग की निष्पक्षता और पारदर्शिता को दर्शाता है | श्री राम विलास पासवान के उस प्रस्ताव का हम स्वागत करते है जिसमे कहा गया था कि जब भारत के सर्वोच्च पदों जैसे भारतीय चुनाव आयोग और राजस्व विभाग , विदेश विभाग को चलने वाले आई.ए.एस. जैसी अग्नि परीक्षा देकर आते है तो न्यायाधीश क्यों नहीं ?

              देश कि जनता आज अपना हिसाब चाहती है , पारदर्शिता और निष्पक्षता चाहती है जो कि उसका अधिकार है तो उसे मिलाना ही चाहिए क्योकि कि स्वतंत्र भारत में जनता ही राजा है बाकी सब सेवक | अतः भारत सरकार के हर अंग को सी.बी.आई.और पुलिस के जाँच के दायरे में लाना चाहिए | यदि सरकार कोई और स्वतंत्र , निष्पक्ष , पारदर्शी और न्यायपूर्ण कमीशन बनाना चाहती है तो वह सराहनीय है परन्तु उस कमीशन में सरकार के हर अंग के लोग होने चाहिए जैसे कि आई.ए.एस. , आई.पी.एस. , आई.एफ.एस. , आई. आर.एस. , भारतीय थल सेना , भारतीय वायु सेना , भारतीय जल सेना , न्यायाधीश , राजनेता , पत्रकार , समाज सेवक , वैज्ञानिक और संघ लोक सेवा आयोग के सदस्य | ये कमीशन हर क्षेत्र के लोग को अपने में समाहित किये हुए है जो कि न्याय, निष्पक्षता और पारदर्शिता का एक उत्तम विकल्प है | जब जाँच कमीशन में हर तरह के और हर क्षेत्र के लोग होगें तो भ्रष्टाचार , अन्याय पर अंकुश लगेगा औए जनता का सरकार में विश्वाश बढेगा | अब जनता अपने कमाई का हिसाब चाहती तो उसे देना होगा क्योकि जनता ही स्वतंत्र भारत का राजा है जबकि और सब सेवक |

हम भारत सरकार से उम्मीद करते है कि वह निष्पक्षता, न्याय और पारदर्शिता लाने के लिए जल्द से जल्द कोई ठोस कदम उठाएगी |


जय हिंद


Nov. 14 , 2009

Thursday, November 12, 2009

भ्रष्टाचार की जड़


हमारी सरकार जिसके तीन अंग है विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका | जनता के हितों कि रक्षा के  सरकार के जिस अंग का सबसे ज्यादा महत्व है वह है हमारी पुलिस और कोर्ट | मै इलाहाबाद हाई कोर्ट के चारो तरफ चक्कर लगते लोगों को देखता हूँ | सोचता हूँ कि लोग कोर्ट क्यों आते है ? कितने लोग न्याय के लिए आते है और कितनों को न्याय मिलता है ? आज तक कोई ऐसा नहीं मिला जो मुझें कोर्ट या पुलिस की सच्चे दिल से सम्मान करता हो | कोर्ट कानून के दलालों का अड्डा है तो पुलिस सरकारी तंत्र में सबसे बदनाम चेहरा है | हमारे संविधान ने सबको ताकत दी है सिर्फ न्याय करने के लिए , लेकिन होता क्या है सब जानते है | पुलिस के ऊपर ढेर सारे आरोप रोज लगते रहते है | किसी ने कभी इसका मुख्य जड़ जानने की कोशिश ही नहीं की है जैसे की पुलिस जानता से पैसा क्यों लेती है ? ये रिश्वत कहाँ तक जाती है ?
आज हमारी जेलों में करीब ३.७५ लाख कैदी बंद है जिसमे से २.४५ लाख पर आज तक कोई गुनाह साबित नहीं हो पाया है , क्यों ? जिन पर गुनाह साबित हो चुका है क्या उन में कुछ निर्दोष भी है ? ये सब यदि आम आदमी जान जाए तो क्या देश की जनता सरकार पर भरोसा करेगी ? आज तक न्याय पालिका के कुछ ही ऐसे सही फैसले होगें जिसका देश की पूरी जानता तहें दिल से स्वागत करती है | सब जानता को ही क्यों बवकूफ बनाते है | जब २.४५ लाख लोगों पर जुर्म साबित नहीं हो पाया है तो वे किस बात की सजा भुगत रहें है ? क्या कर रही है पुलिस ? मामले आगे क्यों नहीं बढ़ते है ? कोर्ट को तारीख देने से ही फुर्सत नहीं है और पुलिस को चमचागीरी करने से | सब जानता  का ही शोषण करते है | सब जानता का पैसा है , जानता की कमाई है फिर भी लोग जानता को हिसाब देने से कतराते है , क्यों ? पुलिस , बडें ऑफिसर , ये सब बदनाम है रिश्वत के लिए लेकिन क्या हमारी न्यायपालिका इससे परे  है | न्यायपालिका को संविधान ने  पॉवर दी है अवमानना की  जो इसके सारे गुनाहों को छिपा लेती है | यह बात हमारे कई जज भी ये बात कह चुके है | आप सब जानते है की पुलिस रिश्वत लेती है , ऑफिसर रिश्वत लेते है ....ठीक है इसीलिए ये सब बदनाम है तो क्या सिर्फ न्याय पालिका ही आज का हरिश्चंद है जो ईमानदारी का ताज पहने है |
 आज कि जनता यदि किसी से खुश है तो सिर्फ एक संस्था से वह है भारतीय चुनाव आयोग | आप जब जानते है कि जब चुनाव कि आचार संहिता लागू होती है तो क्या होता है | आज कि जानता से पूछो तो वह भारतीय चुनाव आयोग का शासन चाहती है | ये सब कुछ और नहीं बल्कि भारतीय चुनाव आयोग का अपना कर्तव्य पालन का नतीजा है | जिन आई.ए.एस ऑफिसर को हमारे नेता और न्यायपालिका भ्रष्ट कहते है उन्ही आई.ए.एस. ऑफिसर द्वारा चलने वाली संस्था है भारतीय चुनाव आयोग |
यदि सरकार सचमुच जानता के साथ न्याय चाहती है तो " जज इन्क्वारी बिल "  जल्द से जल्द पारित करे और न्याय पालिका की हद तय करे | पुलिस सुधार का कमीशन बनाने के बजाय देश में असमान बेतन को ठीक करे क्योकि यही सारे भ्रष्टाचारकी जड़ है | आज प्राइमरी में बैठा मास्टर क्या करता है सब जानते है , इंजीनियरिंग कॉलेज का टीचर कितने नोबल पुरस्कार जीता है सब जानते है , मेडिकल कालेज  का डाक्टर कितने ध्यान से सरकारी मरीज देखता है सब जानते है , ऑफिस का बाबू कितना मेहनत करता है सब जानते है , फिर भी इनको बेतन बहुत कम लगता है , जो आये दिन धरना देते रहते है | फील्ड में शारीरिक और दिमागी मेहनत  दोनों की  जरूरत होती फिर भी पुलिस और फील्ड वर्कर के बेतन इतने कम क्यों है ?  


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Monday, November 9, 2009

गलती और सजा

आज मै आप को एक ऐसी बात बताने जा रहा हूँ , जिसमे अपनो ने मिलकर किसी अपने को बिना किसी गुनाह के ही सजा दे डाली है | हाँ , दोस्तों ये मेरे ही जीवन की एक कहानी है |
जहाँ तक मुझें याद है , आज तक के जीवन में मैंने ऐसी कोई गलती नहीं की है की जिसके लिए मुझें पछताना पड़ें | बचपन की कुछ गलतियाँ सबसे हो जाती है , जो कि कुछ और नहीं बल्कि छोटे बच्चों की शरारत के सिवा कुछ नहीं है | ये शरारती गलतियाँ तो सबसे हो ही जाती है , जो की नादानी की ही वजह से होती है | इस प्रकार की जो भी गलतियाँ हो गयी है उसके लिए मुझे खेद है परन्तु अनजाने में हुई गलती को तो सब माफ़ ही कर देते है | इस लिए बचपन की उन छोटी - छोटी गलतियों के लिए ( जो कि बस गिनी चुनी चार - पांच ही हो सकती है ) मै माफ़ी मागता हूँ |


जहाँ तक मुझें याद है मैंने आज तक ना किसी से झगडा किया है , ना किसी को जानकर - बुझकर  में दुःख ही पहुचाया है | मैंने गुस्से में कभी - कभी कुछ लोगों को कुछ बातें कहीं है जो कि उन्हें बहुत ही बुरा लगा है | फिर भी गलती मेरी नहीं है क्योकि उन लोगों ने पूरी बात बिना सुने ही अपने मतलब का अर्थ निकल लिया है | मेरी बातों से उन्ही लोगों को दुःख पंहुचा है , जिन लोगो ने मेरी बात को पूरी तरह से नहीं सुनी है | ये तो सब जानते है कि आधा - अधुरा ज्ञान ही सभी मुशिबतों का कारण है , तो फिर यह दोष किसका हुआ | इस तरह कि घटनाएँ मेरी जिंदगी में बहुत ही आयी है , जिसका फल मुझे भुगतना पड़ा है |


हाँ , मै मनाता हूँ कि जिंदगी में हर आदमी सदा एक ही समय पर सबको खुश नहीं कर सकता है | किसी ना किसी को तो नाराज करना ही पड़ता है | इस बात को हम गणित कि भाषा में भी अच्छी तरह से समझ सकते है | इसे समझाने के लिए मै आप को गणित के समीकरण का उदहारण लेता हूँ |

जैसे

Given that x^4 - 5x^3 + 5x^2 + 5x - 6 = 0 . Find X  such that  { x > 0 & x > 2 }
( x - 3 ) ( x - 2 ) ( x - 1 )( x + 1) = 0

यहाँ पर हमें X कि चार वैल्यू मिल रहें है , चारों वैल्यू सही भी है क्योकि चारों वैल्यू समीकरण को संतुष्ट करते है , लेकिन दिए गए प्रतिबन्ध को देखते हुए केवल एक ही वैल्यू सही है |

समीकरण में तीन वैल्यू धनात्मक है , एक ऋणात्मक है | समीकरण में X= -1, 1 , 2 , 3 है परन्तु प्रतिबन्ध के अनुसार केवल X=3 ही धनात्मक और २ से बड़ी है |
मतलब सब कुछ सही है परन्तु प्रतिबन्ध के अनुसार केवल एक ही सही है |

इसी प्रकार मेरे भी जीवन में ऐसा समय आया है , जब मै चौराहे पर खडा हूँ और चुनना केवल एक ही रास्ता है | तब मैंने वही रास्ता चुना जो सबसे सही और न्याय पूर्ण था |
इसी तरह से जब चार लोगों में से एक का चुनाव करना हो तो प्रिय तो सब होते है लेकिन चुनना एक है , ऐसे में बचे तीन का नाराज होना स्वाभाविक है परन्तु मै क्या करू | ऐसे परिस्थिति में मैंने वही किया है जो सर्वाधिक न्यायपूर्ण रहा है | क्योकि मै एक साथ एक ही परिस्थिति में सब को खुश नहीं कर सकता हूँ |

 ऐसी स्थिति में सभी को मौजूद परिस्थितियों में से सबसे न्यायपूर्ण फैसला ही करना करना चाहिए | यहीं मैंने आज तक कि लाइफ में करने कि भरपूर कोशिश कि है |


सदा गीता के रास्ते पर चलने कि कोशिश की है | आज तक मैंने जान-बूझ कर कोई गलती नहीं नहीं की है , किसी को धोखा नहीं दिया है , किसी को नुक्सान नहीं नहीं पहुचाया हूँ , किसी का अहित नहीं सोचा हूँ , फिर भी मुझें कुछ सजा भुगतनी पड़ी है | आज मै शायद इसी दौर से गुजर रहा हूँ | इस समय मै पांच तरफ से घिर चुका हूँ , बहुत ही परेशान हूँ , कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है , मेरे दोस्त ने मुझें ऐसा धोखा दिया है कि शायद ही किसी ने किसी को दिया हो | मैंने उससे सारा रिश्ता नाता तोड़ लिया है | अब हम अजनवी है , लेकिन मै तुमको को कभी भूल नहीं सकता हूँ | मुझें पता है कि हर दुःख के बाद ही सुख आता है , रात के बाद दिन आता है |


नवम्बर ०९,२००९ 

Friday, October 30, 2009

शिक्षित गाँव, सशक्त भारत.....

भारत गांवों का देश है | अतः ग्रामीण आँचल के विकास के बाद ही भारत का विकास संभव है ,क्योकि सामान्य तौर पर पूँजीवाद में समूचे भारतवर्ष का विकास न होकर देश की सारी संपति कुछ ही लोगों तक सीमित होकर रह जाती है | इस तरह का असंतुलित पूँजीवाद ही देश में गरीबी को जन्म देती है | इसी कारण देश की चमक - दमक में गरीबों की झुग्गी झोपडी बाधक बनती है नतीजा - अतिकर्मण | ये गरीब बेचारे जाये तो कहाँ जाये ? पहेले से ही खाने को कुछ ढंग का था ही नहीं और अब घर से भी बेघर ! इसका नतीजा यह है - कि सरकार देश की गरीबी देखकर नहीं , देश के गरीबों को देख कर शर्म करती है । इससे सिर्फ और सिर्फ  नक्शल और आतंकवाद जैसी समस्याओं  का जन्म होता है , जो कि देश कि उन्नति , विकास और शांति में बाधक है | फ़िलहाल हमारी भारत सरकार इस  तरफ ध्यान तो दे रही है परन्तु जो कुछ भी हुआ है वह पर्याप्त नहीं है |

देश की पूँजी का संतुलित फैलाव सम्पूर्ण भारत पर होना चाहिए , जिससे कि ना तो कोई गरीब हो और ना ही गरीबी | इसके लिए भारत सरकार द्वारा भारतीय प्रशासन , भारतीय न्याय प्रणाली , भारतीय निर्वाचन और भारतीय अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रो में शीघ्र सुधार  की सख्त  जरूरत है ।

 जहाँ तक भारतीय प्रशासन की बात है , भारत सरकार को पुलिस सुधार करके , जनता को पुलिस उत्पीड़न से बचाना चाहिए । आज भी हमारी पुलिस गुलामी के दिनों में खीची गयी लकीरों पर चल रही है । देश की आजादी के इतने सालो बाद भी हमारी जनता , कानून और जनता के रक्षक पुलिस वालों के साथ ही सबसे ज्यादा असुरक्षित महसूस करती है । आज भी ग्रामीण भारत में , बिना रिश्वत के रिपोर्ट नहीं लिखी जाती है । पुलिस द्वारा जनता के उत्पीड़न की कहानी वैसे ही है जैसे कि अंग्रेजो द्वारा भारत की थी । यदि सरकार पुलिस में समुचित सुधार कर लेती है तो छोटे - मोटे मामलों के निपटारा निचले स्तर पर ही हो जायेगा , जो कि न्यायपालिका में बढ़ते फाइलो की संख्या पर अंकुश लगाने में मददगार साबित होगा ।

आगे , फिर भारत सरकार ने भूमि सुधर सम्बधी नियम और कानून तो बनाये लेकिन उन पर कितना अमल हुआ | इसका कोई उचित मापदंड और रिकार्ड नहीं है । हमारी प्रदेश सरकारों को सबसे पहले भूमि सुधार की तरफ ध्यान देना चाहिए क्योकि देश की दो - तिहाई से ज्यादा जनसँख्या आज भी गावों में ही निवास कराती है , जिसका मुख्य स्रोत कृषि ही है ।  उसर सुधर अधिनियम का पालन देश की मांग और कृषि अर्थव्यवस्था की  जरूरत के अनुरूप होना  चाहिए । भारत सरकार को ग्रामीण मंत्रालय के अतिरिक्त भारतीय ग्रामीण सुधार  आयोग जैसा एक सशक्त एवं प्रभावशाली आयोग का गठन करना चाहिए । जिससे की ग्रामीण योजनाओ की समुचित देख-रेख और सही संचालन हो सके | आयोग की कार्य प्रणाली और कार्य क्षेत्र  जिला , मंडल , प्रदेश , और राष्ट्रिय स्तर का होना चाहिए |

ग्रामीण भारत में शिक्षा व्यवस्था की बीमार हालत पर उचित ध्यान देते हुए , प्राइमरी , माधयमिक और उच्चतर माध्यमिक शिक्षा व्यवस्था पर तत्काल ध्यान और सुधार  की सख्त आवश्यकता है । शिक्षा का अधिकार कानून एक सराहनीय कदम है परन्तु शिक्षकों कि कमी , स्कूल और विद्यालयों की संख्या देश की जरूरत के अनुरूप बनायीं जानी  चाहिए । 

न्याय पालिका में खेती से सम्बंधित मामलों की सुनवाई एक निश्चित समय सीमा के अंदर ही पूरी होनी चाहिए जिससे कि हमारा किसान कचहरी के चक्कर लगाने के बजाय अपने कृषि कार्यो पर उचित ध्यान दे सके । हमारी न्याय प्रणाली को सस्ती बनाया जाना चाहिए , जिससे किसान अपनी कमाई का हिस्सा अपने विकास में लगाये , ना कि वकीलों की जेब भरने में | इसके साथ ही देश की  न्याय पालिका में फैले भ्रष्टाचार से हम सब अच्छी तरह से वाकिफ है । आज तक किसी भी सरकार  ने इस दिशा में कोई भी ठोस कदम नहीं उठाया है  जो कि आज  देश के हर तबके  और अर्थव्यवस्था के हर क्षेत्र की मांग है | आज समय की मांग है कि देश कि न्याय व्यवस्था में सुधर कर , न्याय पालिका के भ्रस्टाचार को ख़त्म किया जाये । निचले स्तर पर  जजों की जबाबदेही और पारदर्शी कार्यप्रणाली आज देश के बेहतर प्रशासन के लिए जरूरी है ।

जहाँ तक भारतीय अर्थव्यस्था की बात है देश की बढती  जनसँख्या को देखते हुए रोजगार के ज्यादा से ज्यादा अवसर उपलब्ध जाये अर्थात जिसकी जैसी काबिलियत उसको वैसी नौकरी | प्राइवेट क्षेत्र में ग्रामीणों को वरीयता एक बेहतर विकल्प हो सकता है । १९९१ के बाद का अर्थव्यवस्था में सुधर डॉक्टर मनमोहन सिंह द्वारा किया गया सराहनीय कदम था । देश में अभी और आर्थिक सुधार  की जरूरत है । हमारी संसद को देश के हित में सोचते हुए आर्थिक सुधार के लिए बेहतर कदम उठाने चाहिए ।

        चुनाव आयोग द्वारा निगेटिव वोटिंग और नोटा को लागू करने का सशक्त प्रयास , राजनीत के अपराधीकरण को रोकने का एक बेहतर विकल्प हो सकता है । चुनाव सुधार से देश को ऐसे प्रतिनिधि मिलेगें जो को वास्तव में जनता के प्रतिनिधि होगे ना कि किसी दिखावे के । इस लिए हमारे देश को चुनाव में सुधार की सख्त जरूरत है ।

कुल मिलाकर , भारत सरकार को देश के हर क्षेत्र में ध्यान देना चाहिए लेकिन देश उचित विकाश तभी सम्भव है जब हमारा ग्रामीण भारत विकास करेगा ।
शिक्षित गाँव , शिक्षित भारत |
सशक्त गाँव , सशक्त भारत ||



                                        ~ रजनी कान्त इन्द्रा
Oct. 09 , 2009

Wednesday, October 28, 2009

जीवन भर का बलात्कार


हम आप सब को शारीरिक शोषण के बारे में बताना चाहते  है | वैसे तो शारीरिक शोषण से सब लोग परिचित है | शारीरिक शोषण के बारे में आप सब ने अच्छी तरह से सुने और देखें है | हमारा समाज भारतीय रीति-रिवाजों पर टिका हुआ है | भारतीय संस्कृति विश्व की सर्वश्रेष्ठ एवं महानतम संस्कृति है , परन्तु फिर भी इसमे बहुत सारी अमानवीय , कठोर और निर्मम बुराइयाँ है | इन बुराइयों को पहचानने की सख्त जरूरत है , नहीं तो दिन-प्रतिदिन मानवता और इंसानियत की हत्या होती रहेगी | शारीरिक शोषण के कई रूप हो सकते है परन्तु उनमे से एक सबसे घिनौना रूप है बलात्कार |  आप सब जानते है की बलात्कार की प्रक्रिया में दो पक्ष होते है |  १. बलात्कार करने वाला ( प्रायः पुरुष वर्ग ) २. जिसका बलात्कार होता है ( प्रायः स्त्री वर्ग ) 

सामान्य बलात्कार से  आप सब बहुत अच्छी तरह से वाकिफ है | इस तरह के बलात्कार में बलात्कारी सिर्फ और सिर्फ केवल एक बार ही बलात्कार करता है | इसके बाद क्या होता है आप सब अच्छी तरह से जानते है जैसे की पंचायत , पोलिस , मेडिकल और कोर्ट के चक्कर | इसमे बलात्कारी को बिना जमानत के  सख्त से सख्त  सजा होती है , और कभी-कभी फांसी भी हो जाती है | ये सबसे परिचित और सामान्य बलात्कार है , परन्तु इसी बलात्कार का एक और घिनौना , कठोर और सबसे निर्मम रूप है जिसमे शारीरिक और मानसिक बलात्कार होता है , भावनावों का बलात्कार होता है | यही बलात्कार का सबसे घिनौना , कुरूप , निर्दयी और निर्मम रूप है |  

इस तरह के बलात्कार में तीन पक्ष होते है...  १. बलात्कार करने वाला ( प्रायः पुरुष वर्ग ) २. जिसका बलात्कार होता है ( प्रायः स्त्री वर्ग ) ३. बलात्कार करवाने वाले ( प्रायः माता-पिता और आप यानि कि ये समाज ) । बलात्कार के इस रूप को जानने से पहले आप को बलात्कार को जानना होगा | बलात्कार क्या होता है ? जब कोई पुरुष किसी स्त्री के साथ उसकी सहमति के बगैर जबरदस्ती शारीरिक सम्बन्ध बनाता है , तो ये बलात्कार कहलाता है | इस परिभाषा में " सहमति के बगैर " शब्द का ही सबसे ज्यादा महत्त्व है | बलात्कार कब होता है ? जब शारीरिक सम्बन्ध सहमति के बगैर बनाया जाए |  बलात्कार कब नहीं होता है ? जब स्त्री-पुरुष एक-दुसरे कि सहमति से शारीरिक सम्बन्ध बनाते है , तो यह बलात्कार नहीं होता है |  जिस बलात्कार को आप सब जानते है , उसमे प्रायः सिर्फ एक ही अपराधी होता है तथा एक निर्दोष होता है | 

लेकिन हम , आप को एक ऐसे बलात्कार के बारे में बातें जा जा रहे है । जिसमे दो अपराधी है तथा एक निर्दोष |   अपराधी कौन-कौन है ? बलात्कारी और बलात्कार करवाने वाले यानि कि माता-पिता और ये समाज |  निर्दोष कौन हैं ? जिसका बलात्कार होता है |  जहाँ हम समझते है .... आज हमारे समाज में नब्बे फीसदी से अधिक बेटियों कि शादी उनकी मर्जी के बगैर होती । घर कि इज्जत और सामाजिक मान मर्यादा के नाम पर उनकी और उनके प्रेम के अरमानो कि बली चढाई जाती है । ये किस्से पूरे भारत में बड़े ही सहज है ।  इस बलात्कार में बलात्कारी को कोई सजा ना होकर , हमारा समाज उसकी इज्जत करता है | ये कहाँ का न्याय है कि एक बलात्कारी को सजा तो दूसरे की आव भगत कि जाती है ?  यही है बलात्कार का सबसे घिनौना और सबसे निर्मम रूप जहाँ पर झूठे इज्जत के लिए माता-पिता अपने बेटी का हर पल , हर दिन यानि कि पूरी उम्र बेटी का बलात्कार करवाते है और इस बलात्कार में बेटी कि सहायता के लिए कोई भी सामने नहीं आता है | यहाँ पर बेटी पूरी तरह से असहाय रहती है | यही है बलात्कार का सबसे घिनौना और निर्मम रूप | ये सदा - सदा मानवता के खिलाफ है | अपने मन मर्जी से बेटी कि शादी करके आप सब अपना बोझ हल्का करते है | इस तरह की शादी में आप सब बेटी कि सौदेबाजी करते है | इस सौदेबाजी में , माँ-बाप द्वारा बेटी एक ऐसे कोठे पर बिठा दी जाती है जहाँ पर उसका एक ही ग्राहक है , उसका कथित पति । ये पति उसके जिंदगी कि ठेकेदारी लेता है और पूरी उम्र उसका बलात्कार करता है । 

आप ये नहीं सोचते है कि जिंदगी तो बेटी की है  , जीना बेटी को है , तो हम बेटी के अधिकारों का अतिक्रमण क्यों करे | लेकिन फिर भी आप सब करते है | यह नहीं सोचते है कि सही क्या है , गलत क्या है ? इस तरह के माता-पिता ही अपनी मान मर्यादा के नाम पर अपनी ही बेटी को एक कोठे पर बिठाकर उसका बलात्कार करवाते है | ऐसे माता-पिता और लोग , समाज के लिए कलंक है | ऐसे माता-पिता और समाज के लोग जो अपनी बेटी का खुद दिन-प्रतिदिन बलात्कार करवाते है , वह तो समाज के उन दरिंदों से भी गए गुजरे है जिनकी वे आए दिन आलोचना करते रहते है

बेटी को उसका अधिकार दो |