Wednesday, September 30, 2015

Tuesday, September 29, 2015

Monday, September 28, 2015

Saturday, September 26, 2015

Friday, September 25, 2015

Lack of Good Governance - Quotes


Thursday, September 24, 2015

Muzaffar Nagar Riot - Quotes


Gujarat HC on Personal Law - Quotes


SC on Parliamentary Disruption - Quotes





Constitution of Nepal - Quotes




Wednesday, September 23, 2015

Working of Reservation - Quotes


Time Management - Quotes


Tuesday, September 22, 2015

Question for Indian Media - Quotes


SC-ST-OBC Unity for a Beautiful India - Quotes


Baba Saheb For OBC - Quotes


Monday, September 21, 2015

गणपति का सच

"बुद्ध" का मतलब ही "अष्टविनायक" और "गणपति बाप्पा मोरया" अर्थात "चन्द्रगुप्त मोरया" है । लोकशाही युग में देश का प्रमुख राष्ट्रपति है, उसी प्रकार प्राचीन भारत के गणों के समूह के मुखिया को राजा, सम्राट, और गणपति कहते थे ।
इस प्राचीन भारत के, एक राज घराने में सिद्धार्थ गौतम नामक राजकुमार का जन्म हुआ जो आगे चलकर शाक्य गण का प्रमुख बना। सिद्धर्थ के सतचरित्र की सुप्रसिद्धि चारो तरफ फैलने लगे। सिद्धर्थ गणों के साम्राज्य के सम्राट बन गए जिसके कारण लोग उन्हें गणपति कहने लगे। कालांतर में सिद्धार्थ ने बुद्धत्व प्राप्त किया और जब अष्टांगिक मार्गों का प्रचार-प्रसार शुरू किया तो लोगों ने उन्हें अष्टविनायक भी कहना शुरू कर दिया। 
महात्मा बुद्ध के अनुसार - जगत में दुःख है। दुःख को दूर कर सुखी होने के लिए, महात्मा बुद्ध ने आठ सर्वश्रेष्ठ मार्ग भी बताये और कहा कि इस अष्टांगिक मार्ग का अवलम्ब करने से दुःख का नाश होता है। ये आठ नियम या सिद्धांत विनय से सम्बंधित है। इसलिए बुद्ध को विनायक कहा गया। महात्मा बुद्ध के अनुसार अष्टांगिक मार्ग का अवलम्ब करने से दुःख का नाश और सुख की प्राप्ति होती है। इसलिए बुद्ध को लोग सुखकर्ता और दुखहर्ता कहने लगे। इस प्रकार महात्मा बुद्ध का नाम "गणपति" और "अष्टविनायक" पड़ा ।
कालान्तर में आगे चलकर, चन्द्रगुप्त के रूप में भी एक प्रसिद्ध विशाल साम्राज्य वाला गणपति हुआ। चन्द्रगुप्त की ख्याति के कारण लोग उसे गणपति बाप्पा मोरिया कहने लगे। 
यहाँ दो बिन्दु गौर तलब है। एक, जब बुद्ध लोगों को धर्म का सन्देश देते थे तब उनके संदेशों में दो शब्दों का मूलभूत रूप से उल्लेख होता था- चित्त और मल्ल । चित्त यानि शरीर (मन) और मल्ल याने मल । महात्मा बुद्ध कहते थे कि तुम्हारे शरीर से मल (गन्दगी और बुराई इत्यादि ) निकाल देने पर तुम शुद्ध हो जाओगे और दुःख से मुक्त हो जाओगे। दूसरा, बुद्ध की माँ महामाया को सपने में एक हाथी आकर भविष्यवाणी करता है कि उसकी कोख से एक दिव्य बालक का जन्म होगा अर्थात सपने का हाथी, बुद्ध के जन्म का प्रतीक है और हाथी बौद्ध धर्म का भी प्रतीक है और बुद्ध हाथी वंश का है।  उपर्युक्त तथ्यों को विकृत कर ब्राह्मणों ने पार्वती के शरीर से मल निकालकर एक नागवंशीय बालक के जन्म की कहानी को प्रस्तुत किया। पाली भाषा में नाग का अर्थ हाथी होता है अर्थात यह बालक हाथी वंश का था। इसलिए इस नए जन्मे बालक को हाथी के स्वरुप में बताना जरुरी था। इसलिए धूर्त ब्राह्मणों ने शंकर द्वारा इस बालक का गर्दन कटवाया और सिर्फ हाथी का गर्दन ही लगवाया ना कि किसी शेर, बैल, घोड़े आदि का।  
इसलिए ब्राहमणों ने काल्पनिक गणपति को अष्टविनायक भी कहा और सुखकर्ता दुखहर्ता भी कहा। इसका तात्पर्य यह है कि गणपति कोई और नहीं बल्कि महात्मा बुद्ध ही है। ब्राहमणों ने सकल समावेशी मानव विकासवादी महात्मा बुद्ध के अस्तित्व को नष्ट करने और अपने सनातन हिन्दू ब्राह्मण धर्म को बचने के लिए एक नए काल्पनिक गणपति का निर्माण किया।  
धूर्तता का विद्वान होने के कारण ब्राह्मण सत्य ज्ञान नहीं जान पाये कि झूठ के पैर नहीं होते है इसलिए लिए वो ज्यादा दूर तक नहीं चल सकता है। झूठी महिमामंडन करते समय उन्होंने जो गलतियां की जिससे ब्राहमणों की धूर्त सोच उजागर होती है। वे इस प्रकार है-
(१) शंकर जब देवों का देव है तो गणपति का सर धड से अलग करते उसे समय यह पता क्यों नहीं चला कि वह उसका पुत्र है। 
 (२) जब गणपति देव था तो उसे यह कैसे पता नहीं चला कि जिसे वह रोक रहा है वह उसका बाप है। 
(३) शंकर को यह कैसे पता नहीं चला कि उसकी बीवी गर्भवती थी और  बच्चा जन्म ले चुका है।  
 (४) अगर पार्वती शरीर के मैल से बालक बना सकती है तो वह उसी मैल से बालक का सर क्यों नहीं बना पाई। 
 (५) जीवन मृत्यु का शाप वरदान देने वाले शंकर की शक्ति कहाँ गई थी कि वे भी अपने ही बेटे का सर फिर से नहीं जोड़ पाये ?  ईश्वर होते हुए भी शंकर ने एक निष्पाप हाथी की जान क्यों ली ?
 (६) ये भी सोचने की बात है कि क्या किसी छोटे से हाथी का सर भी किसी मनुष्य की गर्दन में फिट किया जा सकता है ?
 (७) सतयुग में गणपति का वाहन सिंह था और उसके दस हाथ थे । त्रेतायुग में उसका वाहन मोर बना और छः हाथ हो गए । द्वापरयुग में उसका वाहन मूषक अर्थात चूहा बना और चार हाथ हो गए। अगर गणेश समय और परिस्थिति के अनुसार अपने हाथ घटा बढ़ा सकता था तो अपना सर क्यों नहीं ठीक कर पाया । 
(७) प्राणी हत्या से जन्मे गणपति को सुखकर्ता दुख्कर्ता कैसे कहा जा सकता है । 
(८) शिवपुराण के अनुसार पर्वती ने मल के गोले पर गंगा का पानी गिरा और गणपति का जन्म हुआ । ब्रम्हवैवर्त पुराण के अनुसार - पार्वती अपने मल का गोला लेकर ब्रह्मदेव के पास ले जाती है और उसे जिन्दा करने के लिए विनती करती है तब उस पर प्रसन्न होकर ब्रम्हदेव अपने वीर्य का छिडकाव करता है और उस मल के गोले को गणपति बना देता है।
यहाँ सवाल ये उठता है कि गणपति का असली पिता कौन है ?
(९) आगे चलकर गणपति का विवाह ऋद्धी और सिद्धी यानि कि ब्रम्हदेव की पुत्रियों के साथ होता है अर्थात ब्रम्हवैवर्त पुराण के आधार पर ब्रम्हदेव के वीर्य से जन्म लेने वाले गणपती ने अपनी ही बहनों के साथ शादी किया। यदि ऐसा है तो खाप पंचायत जैसे असंवैधानिक और अवैध अदालते और हिन्दू धर्म के ठेकेदार एक ही गॉव में शादी करने वाले बच्चो को मौत की सजा क्यों देते है ? खाप पंचायतों और हिन्दू धर्म  ठेकेदारों द्वारा पहले गणपति को ही शूली पर क्यों नहीं चढ़ाया जाता है ?
(१०) आगे चलकर चन्द्रगुप्त मोर्य यह मोर्य वंश का गणपति हुआ इसलिए ब्राहमणों ने "गणपति बाप्पा मोर्या" ऐसी घोषणा दिये। क्योकि मोर्या (मोरिया) शब्द के बारे में ब्राहमणों के इतिहास में कोई उत्तर नहीं मिलता है।
कर्णाटक में चन्द्रगुप्त मोर्य ने जैन धर्म का प्रचार किया इसलिए उस क्षेत्र में कई लोग खुद के नाम के आगे मोरया नाम लगाते थे। महाराष्ट्र में मोरे सरनेम भी मोर्य का ही अपभ्रंश है। 
हालांकि १४ वीं सदी में ब्राम्हणो ने संत तुकाराम, जो कि एक मोरे थे,  के बारे में एक भ्रान्ति फ़ैलाने का कि एक मोरया गोसवि के नाम से लोगों ने मोरया सरनेम अपनाया, की असफल कोशिस की थी। ब्राह्मणों ने तुकाराम महाराज और पेशवाओं ने शिवाजी महाराज की हत्या करवाने के बाद बौद्ध लेणी (गुफा) और विहार की जगहे काबिज क़र वहां काल्पनिक देवी देवता बिठाना शुरू किया। कार्ला की बुद्ध लेणि में बुद्ध की माता महामाया को ब्राह्मणी एकविरा देवी का स्वरुप दिया; जुन्नर के लेन्याद्रि बुद्ध लेणी में गणपति बिठाकर उसे काल्पनिक अष्टविनायक गणपती का प्रमुख स्थल बनाया गया; शेलारवाडी, पुणे की लेणी में शिवलिंग बिठाकर कब्जा किया गया । 
सच्चा इतिहास यह है कि, प्राचीन भारत बौद्धमय था। अशोक सम्राट ने बुद्ध के बाद सारे भारत को बौद्धमय किया था। लेकिन ब्राम्हण समाज ने अशोक के वंश को ख़त्म कर बौद्ध धर्म में विचार और इतिहास को नष्ट करने की असफल कोशिस की और 33 करोड़ देवताओं को जन्म दिया।
निष्कर्ष - भारत में ब्राह्मणों ने अपने शोषणवादी धर्म को बचने और सकल समावेशी मानव विकासवादी बुद्ध धर्म के अस्तित्व के ख़त्म करने के लिए ही बुद्ध की सभी बातों को गीता और पुराण जैसे किताबो में डालने की नाकाम कोशिस की थे। मनगढ़ंत देवी-देवताओं को जन्म दिया। झूठा इतहास लिखा। परन्तु उन्हें वो सफलता नहीं मिली जो कि  वे चाहते थे। 

इसलिए ही उन्होंने ने हिन्दू सनातनी ब्राम्हण धर्म को नाश करने वाले बुद्ध को ही विष्णु का दसवाँ अवतार बनाने की बेशर्मी भरी असफल कोशिश की। इन धूर्तों का ये प्रयास भारत में हिन्दू आतंकवादी संगठनों के माध्यम आज भी जारी है लेकिन ख़ुशी की बात यह है बुद्ध की स्वीकारिता पूरी दुनिया में बढ़ी है जबकि मानवता विरोधी और शोषणवादी हिन्दू धर्म की स्वीकारिता भारत में ही धीरे-धीरे ही सही पर निरन्तर घाट रही है । 
रजनीकान्त इन्द्रा 
सितम्बर २१,२०१५ 

Sunday, September 20, 2015

ओबीसी - सर्वश्रेष्ठ गुलाम वर्ग - Quotes


जननी जाति सशक्तिकरण - Quotes



भारत में समाज सुधार : अंग्रेजी हुकूमत का अनमोल योगदान

यदि दलित इतिहासकारों को छोड़ दिया तो भारतीय इतिहासकार पूरी तरह से ब्राह्मणवाद और सामंती सोच से पीड़ित रहें है। उन्होंने ने इतिहास का निष्पक्ष लेखा-जोखा करने के बजाय ब्राह्मणों और सवर्णों का महिमामंडन कर भारतियों को गुमराह किया। भारतीय इतिहासकरों द्वारा रचित इतिहास हमेशा से भेद-भाव पूर्ण रहा है। 
 इन धूर्त इतिहासकारों ने जहाँ एक तरफ कट्टर हिंदूवादी सामंती सोच और मनुवाद से बीमार धूर्त राजनेता मोहनदास को महात्मा बना डाला तो वही दूसरी तरफ झलकारी बाई के अदम्य सहस, शौर्य और बहादुरी को लक्ष्मीबाई के नाम लिखा दिया, बाबा साहेब को सिर्फ दलित मसीहा और देश द्रोही बना डाला तो पटेल, तिलक, मालवीय इत्यादि जैसे कट्टर हिन्दू को भारत के मसीहा और सच्चा देशभक्त। 
 इसी चरण में इन धूर्त इतिहासकारों ने अंग्रेजों को सिर्फ एक शोषक के रूप में याद किया है और बीमार भारतीय सोच, ब्राह्मणवाद और मनुवाद जैसे निकृष्ट सिद्धांतों को पोषक के रूप में । 
 अंग्रेजों ने भारत का शोषण जरूर किया लेकिन इन्ही अंग्रेजों ने भारत को समाज सुधार एवं निकृष्ट ब्राह्मणों और उनके सिंद्धातों को नकार कर आधुनिक भारत को मानवाधिकार का अनमोल उपहार भी दिया है । आइये, एक नज़र डाले कि कैसे अंग्रेजी हुकूमत ने भारत की बीमार सोच को नश्तनाबूत कर, भारत समाज सुधार में एक महत्वपूर्ण योगदान दिया - 
 1- अंग्रेजो ने 1795 अधिनयम 11 द्वारा शुद्रो को भी सम्पत्ति रखने का कानून बनाया।
 2- 1773 में ईस्ट इंडिया कम्पनी ने रेगुलेटिग एक्ट पास किया जिसमे न्याय व्यवस्था समानता पर आधारित थी । 6 मई 1775 को इसी कानून द्वारा बंगाल का सामन्त ब्राह्मण नन्द कुमार देव को फांसी हुई।
 3- 1804 अधिनीयम 3 द्वारा कन्या हत्या पर रोक अंग्रेजो ने लगाया (लड़कियो के पैदा होते ही तालु में अफीम चिपकाकर, माँ के स्तन पर धतूरे का लेप लगाकर, एवम् गढ्ढा बनाकर उसमे दूध डालकर डुबो कर मारा जाता था)
 4- 1813 मे ब्रिटिश सरकार ने कानून बनाकर शिक्षा ग्रहण करने का सभी जातियो और धर्मो के लोगो को अधिकार दिया ।
 5- 1813 में अंग्रेजो ने कानून बनाकर दास प्रथा का अंत किया। 
 6- 1817 में समान नागरिक संहिता बनाया (1817 के पहले सजा का प्राविधान वर्ण के आधार पर था। ब्राह्मण को कोई सजा नही, शुद्र को कठोर दंड दिया जाता था । अंग्रेजो ने सजा का प्राविधान समान कर दिया ।) 
 7- 1819 में अधिनियम 7 द्वारा ब्राह्मणों द्वारा शुद्र स्त्रियो के शुद्धिकरण पर रोक लगाया (शुद्रो की शादी होने पर दुल्हन अपने घर न जाकर कम से कम तीन रात ब्राह्मण के घर शारीरिक सेवा देना पड़ता था)
 8- 1830 नरवलि प्रथा पर रोक ( देवी -देवता को प्रसन्न करने के लिए ब्राह्मण शुद्रो (स्त्री व् पुरुष दोनों ) को मन्दिर में सिर पटक कर चढ़ा देता था) ।
 9- 1833 अधिनियम 87 द्वारा सरकारी सेवा में भेद भाव पर रोक अर्थात योग्यता ही सेवा का आधार स्वीकार किया गया तथा कम्पनी के अधीन किसी भारतीय नागरिक को जन्म स्थान ,धर्म, जाति या रंग के आधार पर पद से वंचित नही रखा जा सकता है।
 10- 1834 में पहला भारतीय विधि आयोग का गठन हुआ । जिसका प्रमुख उद्देश्य जाति, वर्ण, धर्म और क्षेत्र की भावना से ऊपर उठकर कानून बनाने की व्यवस्था करना था।
 11- 1835 प्रथम पुत्र को गंगा दान पर रोक (ब्राह्मणों ने नियम बनाया कि शुद्रो के घर यदि पहला बच्चा लड़का पैदा हो तो उसे गंगा में फेक देना चाहिये । पहला पुत्र ह्रष्ट-पृष्ट, स्वस्थ एवं तेज़ दिमाग वाला पैदा होता है । यह बच्चा ब्राह्मणों से लड़ न जाय इसलिए पैदा होते ही गंगा को दान करवा देते थे)
12- 7 मार्च 1835 को लार्ड मैकाले ने शिक्षा नीति राज्य का विषय बनाया और उच्च शिक्षा को अंग्रेजी भाषा का माध्यम बनाया गया।
 13- 1835 को कानून बनाकर अंग्रेजो ने शुद्रो को कुर्सी पर बैठने का अधिकार दिया।
 14- दिसम्बर 1829 के नियम 17 द्वारा विधवाओ को जलाना अवैध घोषित कर सती प्रथा का अंत किया।
 15- देवदासी प्रथा पर रोक । शुद्र अपनी लड़कियो को मन्दिर की सेवा के लिए दान देते थे । मन्दिर के पुजारी उनका शारीरिक शोषण करते थे। बच्चा पैदा होने पर उसे फेक देते थे और उस बच्चे को हरिजन नाम देते थे। 1921 को जातिवार जनगड़ना के आंकड़े के अनुसार अकेले मद्रास में कुल जनसंख्या 4 करोड़ 23 लाख थी जिसमे 2 लाख देवदासियां मन्दिरो में पड़ी थी। यह प्रथा अभी भी दक्षिण भारत के मन्दिरो में चल रही है ।
 16- 1837 अधिनियम द्वारा ठगी प्रथा का अंत कर दिया।
 17- 1849 में कलकत्ता में जे ई डी बेटन ने एक बालिका विद्द्यालय ने स्थापित किया।
 18- 1854 में अग्रेजो ने 3 विश्वविद्यलय कलकत्ता, मद्रास और बॉम्बे में स्थापित किया ।1902 में विश्वविद्यलय आयोग नियुक्त किया गया।
 19- 6 अक्टूबर 1860 को अंग्रेजो ने इंडियन पीनल कोड बनाया। लार्ड मैकाले ने सदियो से जकड़े शुद्रो की जंजीरो को काट दिया भारत में जाति, वर्ण और धर्म के विना एक समान क्रिमिनल लॉ लागु कर दिया।
 20- 1863 अंग्रेजो ने कानून वनाकर चरक पूजा पर रोक लगा दिया ( आलिशान भवन एवं पुल निर्माण पर शुद्रो को पकड़कर जिन्दा चुनवा दिया जाता था । इस पूजा में मान्यता थी कि भवन और पुल ज्यादा दिनों तक टिकाऊ रहेगे।)
 21- 1867 में बहु विवाह प्रथा पर पुरे देश में प्रतिबन्ध लगाने के उद्देश्य से बंगाल सरकार ने एक कमेटी गठित किया ।
 22- 1871 में अंग्रेजो ने भारत में जातिवार गणना प्रारम्भ किया। यह जनगणना 1941 तक हुई । 1948 में पण्डित नेहरू ने कानून बनाकर जातिवार गणना पर रोक लगाया।
 23- 1872 में सिविल मैरेज एक्ट द्धवारा 14 वर्ष से कम आयु की कन्याओ एवम् 18 वर्ष से कम आयु के लड़को का विवाह वर्जित करके बाल विवाह पर रोक लगाया।
 24- अंग्रेजो ने महार और चमार रेजिमेंट बनाकर इन जातियो को सेना में भर्ती किया लेकिन 1892 में ब्राह्मणों के दबाव के कारण सेना में अछूतों की भर्ती बन्द हो गयी।
 25- रैयत वाणी पद्गति अंग्रेजो ने बनाकर प्रत्येक पंजीकृत भूमिदार को भूमि का स्वामी स्वीकार किया।
 26- 1918 में अंग्रेजो ने साऊथ बरो कमेटी को भारत भेजा। यह कमेटी भारत में सभी जातियो का विधि मण्डल (कानून बनाने की संस्था) में भागीदारी के लिए आया। शाहू जी महाराज के कहने पर पिछडो के नेता भाष्कर राव जाधव ने एवम् अछूतों के नेता डा अम्बेडकर ने अपने लोगो को बिधि मण्डल में भागीदारी के लिये मेमोरण्डम दिया। 
27- अंग्रेजो ने 1919 में भारत सरकार अधिनियम का गठन किया ।
 28- 1919 में अंग्रेजो ने ब्राह्मणों के जज बनने पर रोक लगा दिया था और कहा कि इनके अंदर न्यायिक चरित्र नही होता है।
29- 25 दिसम्बर 1927 को डा अम्बेडकर द्वारा मनु समृति का दहन किया।
 30- 1 मार्च 1930 को डा अम्बेडकर द्वारा काला राम मन्दिर (नासिक) प्रवेश का आंदोलन चलाया।
31- 1927 को अंग्रेजो ने कानून बनाकर शुद्रो को सार्वजनिक स्थानों पर जाने का अधिकार दिया।
 32- नवम्बर 1927 को साइमन कमीशन की नियुक्ति किया। 1928 को भारत के लोगो को अतरिक्त अधिकार देने के लिए आया। भारत के लोगो को अंग्रेज अधिकार न दे सके इस लिए इस कमीशन के भारत पहुचते ही गांधी ने इस कमीशन के विरोध में बहुत बड़ा आंदोलन चलाया। साइमन कमीशन अधूरा रिपोर्ट लेकर वापस चला गया । इस पर अंतिम फैसले के लिए अंग्रेजो ने भारतीय प्रतिनिधियों को 12 नवम्बर 1930 को लन्दन गोलमेज सम्मेलन में बुलाया।
 33- 24 सितम्बर 1932 को अंग्रेजो ने कम्युनल अवार्ड घोषित किया जिसमे प्रमुख अधिकार निम्न दिए----
 A--वयस्क मताधिकार
 B--विधान मण्डलों और संघीय सरकार में जनसंख्या के अनुपात में अछूतों को आरक्षण का अधिकार 
 C--सिक्ख, ईसाई और मुसलमानो की तरह अछूतों को भी स्वतन्त्र निर्वाचन के क्षेत्र का अधिकार मिला। जिन क्षेत्रो में अछूत प्रतिनिधि खड़े होंगे उनका चुनाव केवल अछूत ही करेगे।
 D--प्रतिनिधियों के चुनने का दो बार वोट का अधिकार मिला एक वार चुन अपने प्रतिनिधियों को वोट देगे और दूसरी बार सामान्य प्रतिनिधियों को वोट देगे।
 34-- 19 मार्च 1928 को बेगारी प्रथा के विरुद्ध डा अम्बेडकर ने मुम्बई विधान परिषद में आवाज उठाई । अंग्रेजो ने इस प्रथा को समाप्त कर दिया।
 35-- अंग्रेजो ने 1 जुलाई 1942 से लेकर 10 सितम्बर 1946 से लेकर डा अम्बेडकर को वायसराय की कार्य साधक कौंसिल में लेबर मेंबर बनाया। लेबरो को डा अम्बेडकर ने 8.3 प्रतिशत आरक्षण दिलवाया।
 36-- 1937 में अंग्रेजो ने भारत में प्रोविंशियल गवर्नमेंट का चुनाव करवाया।
 37-- 1942 में अंग्रेजो से डा अम्बेडकर ने 50 हजार हेक्टेयर भूमि को अछूतों एवम् पिछडो में बाट देने के लिए अपील किया । अंग्रेजो ने 20 वर्षो की समय सीमा तय किया था।
 38-- अंग्रेजो ने शासन प्रसासन में ब्राह्मणों की भागीदारी 2.5 प्रतिशत पर लेकर खड़ा कर दिया।

 अंग्रेजों ने भारत का आर्थिंक दोहन जरूर किया था लेकिन भारत के शूद्रों (अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़ों ) के जीवन की जंजीरों को कटाने में सबसे महत्वपूर्ण योगदान भी इन्ही अंग्रेजों ने दिया था ।
यदि हम ब्रिटिश इंडिया और इंडिपेंडेंट इंडिया पर गौर करे तो समाज सुधार और शूद्रों के उत्थान में ब्रिटिश इंडिया का योगदान सर्वश्रेष्ठ है जबकि अंग्रेजों के पहले के भारत एवं आज के इंडिपेंडेंट इंडिया का शून्य । ब्राह्मणवाद, सामंती सोच और मनुवाद जैसे मानसिक रोग से पीड़ित भारत, भारतीय समाज के सुधार के दृष्टिकोण से अंग्रेज किसी मसीहा से कम नहीं थे । 
 कुल मिलकर, यदि हम भारत में समाज सुधार के बारे में निष्पक्ष रूप से विश्लेषण करे तो हम पाते है कि समानता और सामाजिक सुधार के परिप्रेक्ष्य में अंग्रेजी हुकूमत ने १५० वर्षों में वो कर दिखाया जो भारत और भारतीय समाज अपने पूरे जीवन कल में नहीं कर सका ।
रजनीकान्त इन्द्रा 
सितम्बर २०, २०१५ 

Friday, September 18, 2015

भारत के प्रमुख लोक नृत्य

* करेले कि कथा = केरल = कथकली
* पंजे में भांग डालो = पंजाब = भांगड़ा
* राजा तुम घुमो = राजस्थान = घूमर
* असम कि बहु = असम = बिहू
* अरुण क मुखोटा = अरुणाचल = मुखोटा
* गुज़र गई गरीबी = गुजरात = गरबा
* झाड़ू में छाऊ = झारखण्ड = छऊ
* U K में गडा = उत्तराखंड = गढ़वाली
* अंधेरे मे कच्ची पूरी खाई खाई= आंध्र्रप्रदेश = कचिपूडि
* छतरी मे गाड़ी = छत्तीसगढ़ = गाडी
* हिम्मत कि धमाल = हिमाचल = धमाल
* गोवा कि मंडी = गोवा = मंडी
* बंगले कि काठी = पशिम बंगाल =काठी
* मेघ लाओ = मेघालय = लाहो 
* नाग कि चोच = नागालैंड = चोंग
* उड़ी उड़ीं बबा = उड़ीसा = ओड़िसी
* कान( कर्ण) में करो यक्ष ज्ञान = कर्नाटक = यक्ष ज्ञान
* जम्मुरा = जम्मू कश्मीर = राउफ
* तुम मिले भरत = तमिलनाडु = भरतनाट्यम
* उत्तर की रास = उत्तर प्रदेश = रासलीला

Banking Knowledge - Quotes

• चेक सिस्टम जारी करने वाला भारत का पहला बैंक
→→→ बंगाल बैंक (Bengal Bank) द्वारा पहली बार सन् 1784 में चेक सिस्टम जारी किया गया
• बचत खाता (Savings Bank a/c) खोलने वाला भारत का प्रथम बैंक
→→→ प्रेसीडेंसी बैंक (Presidency Bank) द्वारा पहली बार सन् 1830 में बचत खाता खोला गया...
• भारत में खुलने वाला पहला विदेशी बैंक
→→→ Comptoired’ Escompte de Paris of France (सन् 1860 में खुला)
• वर्तमान में कार्यरत भारत का सबसे पुराना बैंक
→→→ इलाहाबाद बैंक (Allahabad Bank)
• विदेश में शाखा खोलने वाला भारत का प्रथम बैंक
→→→ बैंक ऑफ इन्डिया ने सन् 1946 में भारत के बाहर लंदन में पहली बार अपनी शाखा खोली
• म्युचुअल फंड आरम्भ करने वाला प्रथम बैंक
→→→ भारतीय स्टेट बैंक (State Bank of India)
• क्रेडिट कार्ड जारी करने वाला प्रथम बैंक
→→→ सेंट्रल बैंक ऑफ इन्डिया
• ATM सेवा शुरू करने वाला प्रथम बैंक
→→→ HSBC
• इन्टरनेट बैंकिंग सेवा शुरू करने वाला प्रथम बैंक
→→→ ICICI

Thursday, September 17, 2015

Feudalism in Indian Democracy - Quotes


Unfortunate India - Quotes


Human & Democratic Right and Unity & Integrity of Country - Quotes




Cause behind the Birth of Pakistan - Quotes


Why SC,ST & OBC get Exploited - Quotes


अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम, 1989

भारत में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के व्यक्तियों पर अत्याचार या उत्पीडन को रोकने के लिये अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम (The Scheduled Castes and Tribes (Prevention of Atrocities) Act, 1989) भारतीय संसद द्वारा पारित किया गया।
परिचय
यह कानून एस.सी., एस.टी. वर्ग के सम्मान, स्वाभिमान, उत्थान एवं उनके हितों की रक्षा के लिए भारतीय संविधान में किये गये विभिन्न प्रावधानों के अलावा इन जातीयों के लोगों पर होने वालें अत्याचार को रोकनें के लिए 16 अगस्त 1989 को उपर्युक्त अधिनियम लागू किये गये। वास्तव में अछूत के रूप में दलित वर्ग का अस्तित्व समाज रचना की चरम विकृति का द्योतक हैं।
भारत सरकार ने दलितों पर होने वालें विभिन्न प्रकार के अत्याचारों को रोकनें के लिए भारतीय संविधान की अनुच्छेद 17 के आलोक में यह विधान पारित किया। इस अधिनियम में छुआछूत संबंधी अपराधों के विरूद्ध दण्ड में वृद्धि की गई हैं तथा दलितों पर अत्याचार के विरूद्ध कठोर दंड का प्रावधान किया गया हैं। इस अधिनिमय के अन्तर्गत आने वालें अपराध संज्ञेय गैरजमानती और असुलहनीय होते हैं। यह अधिनियम 30 जनवरी 1990 से भारत में लागू हो गया।
यह अधिनियम उस व्यक्ति पर लागू होता हैं जो अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति का सदस्य नहीं हैं और इस वर्ग के सदस्यों पर अत्याचार का अपराध करता है़। अधिनियम की धारा 3 (1) के अनुसार जो कोई भी यदि वह अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति का सदस्य नही हैं और इस वर्ग के सदस्यों पर निम्नलिखित अत्याचार का अपराध करता है तो कानून वह दण्डनीय अपराध माना जायेगा-
1. अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के सदस्यों को जबरन अखाद्य या घृणाजनक (मल मूत्र इत्यादि) पदार्थ खिलाना या पिलाना।
2. अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को शारीरिक चोट पहुंचाना या उनके घर के आस-पास या परिवार में उन्हें अपमानित करने या क्षुब्ध करने की नीयत से कूड़ा-करकट, मल या मृत पशु का शव फेंक देना।
3. अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य के शरीर से बलपूर्वक कपड़ा उतारना या उसे नंगा करके या उसके चेहरें पर पेंट पोत कर सार्वजनिक रूप में घुमाना या इसी प्रकार का कोई ऐसा कार्य करना जो मानव के सम्मान के विरूद्ध हो।
4. अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य के आबंटित भूमि पर से गैर कानूनी-ढंग से खेती काट लेना, खेती जोत लेना या उस भूमि पर कब्जा कर लेना।
5. अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को गैर कानूनी-ढंग से उनकें भूमि से बेदखल कर देना (कब्जा कर लेना) या उनके अधिकार क्षेत्र की सम्पत्ति के उपभोग में हस्तक्षेप करना।
6. अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के सदस्य को भीख मांगनें के लिए मजबूर करना या उन्हें बुंधुआ मजदूर के रूप में रहने को विवश करना या फुसलाना।
7. अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के सदस्य को वोट (मतदान) नहीं देने देना या किसी खास उम्मीदवार को मतदान के लियें मजबूर करना।
8. अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य के विरूद्ध झूठा, परेशान करने की नीयत से इसे पूर्ण अपराधिक या अन्य कानूनी आरोप लगा कर फंसाना या कारवाई करना।
9. किसी लोक सेवक (सरकारी कर्मचारी/ अधिकारी) को कोई झूठा या तुच्छ सूचना अथवा जानकारी देना और उसके विरूद्ध अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को क्षति पहुंचाने या क्षुब्ध करने के लियें ऐसें लोक सेवक उसकी विधि पूर्ण शक्ति का प्रयोग करना।
10. अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को जानबूझकर जनता की नजर में जलील कर अपमानित करना, डराना।
11. अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के किसी महिला सदस्य को अनादार करना या उन्हें अपमानित करने की नीयत से शील भंग करने के लिए बल का प्रयोग करना।
12. अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के किसी महिला का उसके इच्छा के विरूद्ध या बलपूर्वक यौन शोषण करना।
13. अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के सदस्यों द्वारा उपयोग में लायें जाने वालें जलाशय या जल स्त्रोतों का गंदा कर देना अथवा अनुपयोगी बना देना।
14. अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के सदस्यों को किसी सार्वजनिक स्थानों पर जाने से रोकना, रूढ़ीजन्य अधिकारों से वंचित करना या ऐसे स्थान पर जानें से रोकना जहां वह जा सकता हैं।
15. अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को अपना मकान अथवा निवास स्थान छोड़नें पर मजबूर करना या करवाना।
दण्ड
ऊपर वर्णित अत्याचार के अपराधों के लियें दोषी व्यक्ति को छः माह से पाँच साल तक की सजा, अर्थदण्ड (फाइन) के साथ प्रावधान हैं। क्रूरतापूर्ण हत्या के अपराध के लिए मृत्युदण्ड की सजा हैं। अधिनियम की धारा 3 (2) के अनुसार कोई भी व्यक्ति जो अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति का सदस्य नहीं हैं और-यदि वह अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य के खिलाफ झूठा गवाही देता है या गढ़ता हैं जिसका आशय किसी ऐसे अपराध में फँसाना हैं जिसकी सजा मृत्युदंड या आजीवन कारावास जुर्मानें सहित है। और इस झूठें गढ़ें हुयें गवाही के कारण अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के सदस्य को फाँसी की सजा दी जाती हैं तो ऐसी झूठी गवाही देने वालें मृत्युदंड के भागी होंगें।
यदि वह मिथ्या साक्ष्य के आधार पर अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को किसी ऐसे अपराध के लियें दोष सिद्ध कराता हैं जिसमें सजा सात वर्ष या उससें अधिक है तो वह जुर्माना सहित सात वर्ष की सजा से दण्डनीय होगा।
आग अथवा किसी विस्फोटक पदार्थ द्वारा किसी ऐसे मकान को नष्ट करता हैं जो अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य द्वारा साधारणतः पूजा के स्थान के रूप में या मानव आवास के स्थान के रूप में या सम्पत्ति की अभिरक्षा के लिए किसी स्थान के रूप में उपयोग किया जाता हैं, वह आजीवन कारावास के साथ जुर्मानें से दण्डनीय होगा।
लोक सेवक होत हुयें इस धारा के अधीन कोई अपराध करेगा, वह एक वर्ष से लेकर इस अपराध के लिए उपबन्धित दण्ड से दण्डनीय होगा। अधिनियम की धारा 4 (कर्तव्यों की उपेक्षा के दंड) के अनुसार कोई भी सरकारी कर्मचारी/अधिकारी जो अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति का सदस्य नही हैं, अगर वह जानबूझ कर इस अधिनियम के पालन करनें में लापरवाही करता हैं तो वह दण्ड का भागी होता। उसे छः माह से एक साल तक की सजा दी जा सकती हैं।
अन्य प्रावधान
धारा-14 (विशेष न्यायालय की व्यवस्था) के अन्तर्गत इस अधिनियम के तहत चल रहे मामले को तेजी से ट्रायल (विचारण) के लियें विशेष न्यायालय की स्थापना का प्रावधान किया गया है। इससे फैसलें में विलम्ब नहीं होता हैं और पीड़ित को जल्द ही न्याय मिल जाता हैं। धारा-15 के अनुसार इस अधिनियम के अधीन विशेष न्यायालय में चल रहें मामलें को तेजी से संचालन के लिये एक अनुभवी लोक अभियोजक (सरकारी वकील) नियुक्त करने का प्रावधान हैं। धारा-17 के तहत इस अधिनियम के अधीन मामलें से संबंधित जाँच पड़ताल डी.एस.पी. स्तर का ही कोई अधिकारी करेगा। कार्यवाही करने के लियें पर्याप्त आधार होने पर वह उस क्षेत्र को अत्याचार ग्रस्त घोषित कर सकेगा तथा शांति और सदाचार बनायें रखने के लिए सभी आवश्यक उपाय करेगा तथा निवारक कार्यवाही कर सकेगा। धारा-18 के तहत इस अधिनियम के तहत अपराध करने वालें अभियुक्तों को जमानत नहीं होगी।
धारा-21 (1) में कहा गया हैं कि इस अधिनियम के प्रभावी ढंग ये कार्यान्वयन के लिये राज्य सरकार आवश्यक उपाय करेगी। (2) (क) के अनुसार पीड़ित व्यक्ति के लियें पर्याप्त के लियें सुविधा एवं कानूनी सहायता की व्यवस्था की गई हैं। (ख) इस अधिनियम के अधीन अपराध के जाँच पड़ताल और ट्रायल (विचारण) के दौरान गवाहों एवं पीड़ित व्यक्ति के यात्रा भत्ता और भरण-पोषण के व्यय की व्यवस्था की गई हैं। (ग) के अन्तर्गत सरकार पीड़ित व्यक्ति के लियें आर्थिक सहायता एवं सामाजिक पुनर्वास की व्यवस्था करेगी। (घ) के अनुसार ऐसे क्षेत्र का पहचान करना तथा उसके लियें समुचित उपाय करना जहाँ अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के सदस्यों पर अत्यधिक अत्याचार होते हैं। अधिनियम की धारा 21 (3) के अनुसार केन्द्र सरकार राज्य सरकार द्वारा अधिनियम से संबंधित उठायें गयें कदमों एवं कियें गयें उपायों में समन्यव के लियें आवश्यकतानुसार सहायता करेगी। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम 1995 यह नियम अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम 1989 का ही विस्तार हैं। अधिनियम के अधीन दर्ज मामलें को और अधिक प्रभावी बनानें तथा पीड़ित व्यक्ति को त्वरित न्याय एवं मुआवजा दिलाने के लियें अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण नियम 1995 पारित किया गया हैं।
धारा 5 (1) (थाना में थाना प्रभारी को सूचना संबंधी)- इसके अनुसार अधिनियम के तहत किये गयें अपराध के लियें प्रत्येंक सूचना थाना प्रभारी को दियें जानें का प्रावधान हैं। यदि सूचना मौखिक रूप से दी जाती हैं तो थाना प्रभारी उसे लिखित में दर्ज करेंगें। लिखित बयान को पढ़कर सुनायेंगें तथा उस पर पीड़ित व्यक्ति का हस्ताक्षर भी लेंगें। थाना प्रभारी मामलें को थाना के रिकार्ड में पंजीकृत कर लेगें। (2) उपनियम (1) के तहत दर्ज एफ.आई। आर. की एक काॅपी पीड़ित को निःशुल्क दिया जायेगा। (3) अगर थाना प्रभारी एफ.आई। आर. लेने से इन्कार करतें हैं तो पीड़ित व्यक्ति इसे रजिस्ट्री द्वारा एस. पी. को भेज सकेगा। एस.पी. स्वंय अथवा डी. एस.पी. द्वारा मामलें की जाँच पड़ताल करा कर थाना प्रभारी को एफ.आई। आर.दर्ज करने का आदेश देंगें।
धारा-6 के अनुसार डी.एस.पी. स्तर का पुलिस अधिकारी अत्याचार के अपराध की घटना की सूचना मिलतें ही घटना स्थल का निरीक्षण करेगा तथा अत्याचार की गंभीरता और सम्पत्ति की क्षति से संबंधित रिर्पोट राज्य सरकार को सौंपेगा। 
धारा-7 (1)-के तहत इस अधिनियम के तहत कियें गयें अपराध की जाँच डी.एस.पी. स्तर का पुलिस अधिकारी करेगा। जाँच हेतु डी.एस.पी. की नियुक्ति राज्य सरकार/डी.जी.पी. अथवा एस.पी. करेगा। नियुक्ति के समय पुलिस अधिकारी का अनुभव, योग्यता तथा न्याय के प्रति संवेदनशीलता का ध्यान रखा जायेगा। जाँच अधिकारी (डी.एस.पी.) शीर्ष प्राथमिकता के आधार पर घटना की जाँच कर तीस दिन के भीतर जाँच रिर्पोट एस.पी.को सौपेगा। इस रिर्पोट को एस.पी.तत्काल राज्य के डी.जी.पी. को अग्रसारित करेगें। 
धारा-11 (1) में यह प्रावधान किया गया हैं कि मामलें की जाँच पड़ताल, ट्रायल (विचारण) एवं सुनवाई के समय पीड़ित व्यक्ति उसके गवाहों तथा परिवार के सदस्यों को जाँच स्थल अथवा न्यायालय जाने आने का खर्च दिया जायेगा। (2) जिला मजिस्ट्रेट/ एस.डी.एम. या कार्यपालक दंडाधिकारी अत्याचार से पीड़ित व्यक्ति और उसके गवाहों के लियें न्यायालय जानें अथवा जाँच अधिकारी के समक्ष प्रस्तुत होने के लियें यातायात की व्यवस्था करेगा अथवा इसका लागत खर्च भुगतान करने की व्यवस्था करेगा। धारा 12 (1) में कहा गया हैं कि जिला मजिस्ट्रेंट और एस.पी. अत्याचार के घटना स्थल की दौरा करेंगें तथा अत्याचार की घटना का पूर्ण ब्यौरा भी तैयार करेंगें। (3) एस.पी. घटना के मुआवजा करनें के बाद पीड़ित व्यक्ति को सुरक्षा प्रदान करने की व्यवस्था करेंगें तथा आवश्यकतानुसार उस क्षेत्र में पुलिस बल की नियुक्ति करेंगें। (4) के अनुसार डी.एम./एस.डी.एम. पीड़ित व्यक्ति तथा उसके परिवार के लियें तत्काल राहत राशि उपलब्ध करायेंगें साथ ही उचित मानवोचित सुविधा प्रदान करायेगें। 
नीला सलाम, जय संविधान
जय भीम,जय भारत !

अफ्रीका में गाँधी के आन्दोलन की सच्चाई

सबसे पहले गाँधी का अफ़्रीकी आन्दोलन शुरू होता है जब उसे अंग्रेजो ने अपने डिब्बे से धक्का देकर भगा दिया ।  अंग्रेजो ने ये कहकर गाँधी को वहा से भगाया कि कोई भी काला व्यक्ति गोरों के डिब्बे में सफ़र नहीं कर सकता ।  इस घटना से गाँधी को बहुत बड़ा सदमा लगा। तभी से उसे रंगभेद की वजह से होने वाले अन्याय का अहसास हुआ और उसने तभी से इसके खिलाफ आन्दोलन करने की ठान ली।  
अब इस आन्दोलन का विरोधाभास देखिये- भारतियों द्वारा रचित इतिहास कहता है कि मोहनदास ने ये आंदोलन अफ्रीकियों के साथ हो रहे रंगभेद के खिलाफ किया था जबकि हकीकत में गाँधी ने ये आन्दोलन अफ़्रीकी लोगों के ऊपर होने वाले रंगभेदी अन्याय के विरुद्ध नही किया बल्कि साउथ अफ्रीका में रह रहे भारतीयों के साथ हो रहे रंगभेद और अन्याय के विरुद्ध था। गाँधी का कहना था कि हम भारतीय काले नहीं है । हमे भी अंग्रेजो के समान ट्रेन में सफ़र करने का अधिकार मिले।  उसके लिए गाँधी ने अंग्रेजों के सामने अपनी मांग रखी कि भारतीयों के लिए एक डब्बा आरक्षित रखा जाए लेकिन अंग्रेजो ने इससे साफ़ इंकार कर दिया।
यदि गांधी इतना ही महान होता तो वह काले लोगों के साथ सफर करने से परहेज़ करके सवर्णों के लिए एक अलग डिब्बे की मांग नहीं करता । इससे ये पूरी तरह से स्पष्ट हो जाता है कि गांधी भी अफ्रीकियों से उतना ही रंगभेद करता था जितना कि अंग्रेज ।

अब गाँधी के दुसरा आन्दोलन साउथ अफ्रीका के पोस्ट ऑफिस में प्रवेश के लिए था । वहा के हर पोस्ट ऑफिस में दो दरवाजे होते थे । एक दरवाजे से अंग्रेज और दुसरे से काले लोग प्रवेश करते थे । भारतीयों को भी उसी दुसरे दरवाजे यानि कि काले लोगों के दरवाजे से जाना पड़ता था । 
अफ्रीका में रह रहे सवर्णों को अफ्रीका के काले लोगों के साथ उसी दूसरे दरवाज़े से ही आना-जाना पड़ता था जो कि  सवर्णों और खुद मोहनदास को पसंद नहीं था । इसलिए गाँधी ने इसके खिलाफ जो आन्दोलन छेड़ा उसमे उसने अंग्रेजों के सामने भारतीयों के लिए तीसरे दरवाजे के मांग की, लेकिन अंग्रेजोने गाँधी की इस मांग को भी मानने से इनकार कर दिया। अब फिर वही सवाल यदि गाँधी संत था तो उसने अपने और सवर्णों के लिए एक अलग दरवाज़े के मांग क्यों की । मतलब साफ है की गांधी अफ़्रीकी काले अफ्रीकियों के साथ एक ही दरवाज़े से आना-जाना पसंद नहीं करता था । मतलब की गांधी भी अफ्रीकियों के साथ रंगभेद का बर्ताव करता था ।
एक विवेकशील इंसान बड़ी आसानी से सोच सकता कि मोहनदास के ये आन्दोलन अफ्रीकियों के साथ हो रहे रंगभेद विरुद्ध था या भारतीयों को अन्य अफ्रीकियों की तरह मिल रहे बर्ताव के खिलाफ था ? मोहनदास द्वारा किये गए ये सभी आंदोलन कभी भी अफ्रीकियों के खिलाफ हो रहे रंगभेदी भेदभाव के खिलाफ नहीं और ना ही अफ्रीका में बसे सर्वसाधारण भारतीयों के लिए था बल्कि ये आन्दोलन वहाँ पर व्यापर करने गए बनिया और बाकि उच्च वर्नियों एवं सवर्णों के लिए किया गया था ।
भारतीय इतिहास में तो हमें यही पढ़ाया गया कि गाँधी ने अफ्रीकियों के साथ हो रहे रंगभेदी भेदभाव के खिलाफ अपना आंदोलन छेड़ा था । क्या गाँधी अफ्रीकियों में लोकप्रिय था? बिलकुल नहीं........ अगर वह लोकप्रिय होता तो 6 बार शांति के दिए जाने वाले नोबल पुरस्कार की अर्जी का अफ्रीकियों द्वारा विरोध क्यों किया जाता । क्यूँ हर बार अर्जी ख़ारिज कर दी गयी ? अभी अभी कुछ दिनों पहले साउथ अफ्रीका में गाँधी के पुतले को सफ़ेद रंग से पोता गया वो भी अफ़्रीकी लोगो द्वारा, क्यों ?
अंतर्राष्ट्रीय राजनितिक पटल पर भारत हमेशा अफ्रीका के साथ ऐतिहासिक रिश्ते की बात करता है लेकिन यदि ऐसा है तो अफ्रीकियों द्वारा भारतीयों के प्रति रवैया जरूर सक्रिय होता । यदि वाकई मोहनदास ने अफ्रीकियों के लिए कुछ किया होता तो अफ्रीकियों के दिल में भारत के प्रति प्रेम होता और अफ्रीका की सरकार भी एकतरफा चीन के साथ सारे महत्वपूर्ण समझौते करने से पहले भारत के बारे में अवश्य सोचता । 
इन सबसे एक बात स्पष्ट हो जाती है कि गांधी कोई संत या महात्मा नहीं बल्कि एक मानसिक रूप से कट्टर हिंदूवादी, सांप्रदायिक, स्वार्थी और धूर्त राजनेता था।
जहाँ तक बात भारत के इतिहास की है भारत का इतिहास हमेशा से तोड़-मरोड़ कर सवर्णों के पक्ष में और उनके महिमा मंडन में लिखा गया है जो कि सच्चाई से परे है जिसके उदाहरण ये सभी तथाकथित सवर्ण मसीहा और उनके इतिहासकार है। भारत में आज भी ऐतिहासिक और बुनियादी सामाजिक तथ्यों को न तो पढ़ाया जाता है और ना ही प्रकशित किया जाता है जिसकी वज़ह से लगभग पूरा का पूरा भारतीय समाज और नौजवान गुमराह होते है और जो लोग इन ऐतिहासिक तथ्यों को गहराई और सच्चाई से जानकार विश्लेषण करना चाहते है वे भारत को छोड़कर ब्रिटेन और अमेरिका के विश्वविद्यालयों में पढ़ाई करना बेहतर समझते है। 
क्या आप नहीं चाहते कि आपको और आपके के बच्चों को सच्चाई और तथ्यों से परचित कराया जाय । यदि हां तो पहले सवर्णों की गुलामी बंद करों । अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के साथ पिछड़ों के कदम ताल करते हुए सवर्णों को सत्ता से फेकना होगा और अपने आपको इनके धर्म और षड्यंत्र से मुक्ति दिलानी होगी नहीं तो आप कभी भी अपना वज़ूद नहीं जान पाओंगे और ज़िन्दगी भर उनकी गुलामी ही करते रहोगे।
जय भीम, जय भारत