Tuesday, February 11, 2020

दिल्ली विधानसभा चुनाव २०२० - वैचारिकी से दूर होता बहुजन समाज 


दिल्ली विधानसभा चुनाव २०२०
वैचारिकी से दूर होता बहुजन समाज

दिल्ली विधानसभा चुनाव २०२० के परिणाम आ चुके हैं। दिल्ली में ६२ सीटों के साथ आम आदमी पार्टी ने सरकार बना ली, और बीजेपी ०८ सीटों के साथ विपक्ष की भूमिका निभा रहीं हैं। बहुजन समाज का बुद्ध-फुले-अम्बेडकर-काशीराम साहेब की वैचारिकी से दूरी के चलते गुमराह बहुजन समाज के लोग विकास के नाम पर जीत और साम्प्रदायिकता के नाम पर बीजेपी के शिकस्त की ख़ुशी मना रहें हैं।

ऐसे में ब्राह्मणवादी दलों को वोट करने वाले दिल्ली के बहुजन समाज के लोगों से कई सवाल बनते हैं। जैसे कि विकास क्या हैं? क्या वाकई बीजेपी हार गई है? यदि बीजेपी हार गयी तो केजरीवाल कौन हैं? जिसकी जीत की आप ख़ुशी मना रहें हैं, क्या वह कभी आपके अधिकारों के साथ था? दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 में बहुजन समाज की राजनीतिक पहचान क्या रही है? सत्ता किस वर्ग के पास हैं? ब्राह्मण-सवर्ण और अन्य लोगों के बाबा साहेब क्या हैं?  क्या वाकई बीजेपी का नुक्सान हुआ? यदि दिल्ली वालों ने विकास के नाम पर अरविन्द केजरीवाल को वोट किया है तो क्या बहन जी द्वारा करायें गए कार्य विकास की श्रेणी में नहीं आते हैं?

विकास क्या हैं?
हालाँकि विकास शब्द को अलग-अलग विद्वानों ने अलग-अलग तरह से परिभाषित करने की कोशिस की हैं। क्लार्क जे0 के शब्दों में ‘‘विकास बदलाव की एक ऐसी प्रक्रिया है जो लोगों को इस योग्य बनाती है कि वे अपने भाग्य विधाता स्वयं बन सके तथा अपने अन्र्तनिहित समस्त सम्भावनाओं को पहचान सकें।’’ Developmen is a process of change that enables people to take charge of their own destinies and realise their full potential”. (Clark, J. ,1991). रॉय एंड राबिन्सन के अनुसार ‘‘किसी भी देश के लोगों के भौतिक, सामाजिक व राजनैतिक स्तर पर सकारात्मक बदलाव ही विकास है।’’ “Positive changes in the material, social, political and physical status of a country’s people” (Rooy and Robinson, 1998)

फ़िलहाल, भारत के मौजूदा दौर में हालत इतने बदतर हो चुके हैं कि यदि कोई अस्पताल में खासी-जुखाम की दवाई मुफ्त करवा दे, स्कूल में बेंच लगवा दे, पीने के पानी और बिजली की कुछ यूनिट मुफ्त कर दे तो लोग अपने हकों व अपनी अस्मिता की बलि चढाने को तैयार हो जाते हैं। ये लोग अपने संवैधानिक हकों व बुद्ध-फुले-अम्बेडकरी वैचारिकी तक को भूलकर सत्ता अपने शोषक समाज के हाथों में सौपने को तैयार हो जाते हैं जैसा कि दिल्ली विधानसभा चुनाव-२०२० में हुआ हैं। 

यहाँ शोषित समाज यह भूल जाता हैं कि उसका कल्याण शासन-सत्ता व संसाधन के हर क्षेत्र के पायदान पर उसके अपने समुचित स्वप्रतिनिधित्व और समुचित भागीदारी से ही तय होगा। मान्यवर काशीराम साहेब कहते हैं कि बहुजन समाज को माँगने वाला नहीं बल्कि देने वाला शासक जमात बनने की आवश्यकता हैं। लेकिन, दुखद हैं कि दिल्ली का बहुजन समाज खांसी-जुखाम की दवाई और दीवारों की पुताई देखकर ही बिक गया। इससे भी दुखद व आश्चर्यजनक यह है कि ये इतने सस्ते में बिक गया!

क्या वाकई बीजेपी हार गई है? यदि बीजेपी हार गयी तो केजरीवाल कौन हैं, जिसकी जीत की आप ख़ुशी मना रहें हैं, क्या वह कभी भी आपके अधिकारों के साथ था? 
सोशल मिडिया पर लगातार शेयर की जा रहीं तश्वीरों के मुताबिक बहुजन समाज बीजेपी की हार से खुश हैं। लेकिन, क्या बीजेपी के हारने से ब्राह्मणवादी विचारधारा हार गयी हैं? इस सवाल के सन्दर्भ में अरविन्द केजरीवाल के बारे में जानना बहुत ही आवश्यक हैं। 
दीवारों की पुताई और खांसी-जुखाम की दवाई को विकास समझकर जिस अरविंद केजरीवाल को बहुजन समाज के लोगों ने वोट किया है उसी अरविंद केजरीवाल ने आईआरएस अधिकारी रहते हुए 1994 में इंडियन मेडिकल सर्विस में आरक्षण खत्म किए जाने के लिए दिल्ली में अनशन किया था। उसी अरविंद केजरीवाल ने मंडल कमीशन के खिलाफ में यह अफवाह फैलाई थी कि आरक्षण से जो लोग भारतीय चिकित्सा सेवा में आ रहे हैं, वह सही से रोगियों का इलाज नहीं कर पाते हैं, मरीजों को मार देते हैं, ऑपरेशन करते समय पट्टी, कैंची, धागा आदि रोगी के पेट में ही छोड़ देते हैं। सवर्ण बनिया अरविंद केजरीवाल के इस तरह के अफवाहों का कानपुर कृषि विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति प्रोफेसर रामनाथ जी ने खंडन करते हुए लिखा है कि रूई, पट्टी, कैंची, धागा आदि को मरीज के पेट में आरक्षण वाले नहीं बल्कि लाखों रुपए डोनेशन देकर पढ़ने वाले ब्राह्मण-सवर्ण डॉक्टर छोड़ देते हैं, और बहुजन मरीजों को मार देते हैं।

2 अगस्त 2008 को ताप्ती हॉस्टल जेएनयू में केजरीवाल ने ब्राह्मण कौशल कान्त मिश्रा वाले यूथ फॉर इक्वलिटी नामक संगठन, जो कि सन 2006 में आरक्षण का विरोध करने के लिए बनाया गया था, के बैनर तले आरक्षण के विरोध में मोर्चा खोलने की योजना बनाई थी। अरविंद केजरीवाल के इस रवैया पर जब डॉ उदित राज ने सवाल उठाया तो उसी सवर्ण अरविन्द केजरीवाल ने मौन व्रत धारण कर लिया। केजरीवाल से जब पूछा गया कि सरकारी नौकरियों की पदोन्नत में क्या दलितों को आरक्षण होना चाहिए, तब भी अरविंद केजरीवाल ने चुप्पी साध ली। अप्रैल 2014 में इंडिया टुडे को दिए गए साक्षात्कार में अरविंद केजरीवाल से कहा कि आरक्षण सिर्फ एक ही पीढ़ी को मिलना चाहिए क्योकि अरविन्द केजरीवाल चाहते हैं कि बहुजन समाज के बच्चे सफाई कर्मी और चपरासी से आगे ना बढ़ पाए।  क्योंकि, बहुजन विरोधी अरविन्द केजरीवाल जनाता हैं कि यदि आरक्षण से पहली पीढ़ी को नौकरी मिल भी जाए तो पहली पीढ़ी की सारी कमाई अगली पीढ़ी के लिए एक प्लेटफार्म तैयार करने में ही लग जाती है। और, दूसरी पीढ़ी आते-आते यह प्लेटफार्म जर्जर हो जाता है। नतीजा बहुजन समाज वही का वही रह जाएगा। बड़े षड्यंत्रकारी ढंग से अरविंद केजरीवाल ने बहुजन समाज को गुमराह करते हुए अपनी ब्राह्मणवादी सोच को अंजाम दिया है, और आरक्षण के मूल चरित्र "समुचित स्वप्रतिनिधित्व और सक्रिय भागीदारी" को दरकिनार करते हुए आरक्षण को नरेगा बनाने का निकृष्टतम कार्य किया, जो उसकी ब्राह्मणी मानसिकता को उजागर करता हैं। 

चुनाव के लिए जब अरविंद केजरीवाल को चुनाव-चिन्ह झाड़ू मिला तो अरविंद केजरीवाल ने झाड़ू को आगे बढ़ा करके अपने आप को वाल्मीकि-दलित भाइयों का हितैषी बताया, लेकिन नतीजा क्या रहा? अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री बन गया, और हमारे वाल्मीकि-दलित भाई आज भी झाड़ू लेकर गटर साफ कर रहे हैं, आज भी उसी गटर में दम तोड़ रहे हैं, आज भी उनकी आने वाली पीढ़ियां उसी गटर में अपना भविष्य तलाश रहीं हैं? क्या यही आपके लिए विकास है? अरविंद केजरीवाल ने पहली बार चुनाव लड़ते समय वादा किया कि जब उसकी सरकार आएगी तो वह संविदा पर कार्य कर रहे लगभग 70000 सफाई कर्मियों को नियमित कर देगा लेकिन आज तक उसने ऐसा नहीं किया फिर भी दिल्ली का दलित बहुजन समाज गुमराह होकर के अपनी राजनीतिक अस्मिता बनाने के बजाय ब्राह्मणवादियों की ही सरकार को बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

ब्राह्मणवादी केजरीवाल व किशन हजारे को प्रमोट करके ब्राह्मणी बीजेपी के लिए माहौल बनाने के लिए फण्ड करने वाले विवेकानन्द इंटरनैशनल फाउण्डेशन के आरएसएस लिंक के सन्दर्भ में कारवां मैगज़ीन (०५ नवम्बर २०१७) लिखता हैं -
"In 2009, the Vivekananda Kendra, founded by an RSS leader in the 1970s, set up a think tank named the Vivekananda International Foundation......The VIF declares itself an “independent, non-partisan institution,” but its links with the RSS are an open secret. A political activist associated with the RSS told me the organisation is “emotionally linked with the Sangh Parivar.” He added that Swaminathan Gurumurthy, a leader of the RSS-affiliated Swadeshi Jagaran Manch, was a major force behind the VIF’s creation.......In late 2010, the RSS was forced onto the defensive after one of its leaders, Indresh Kumar, was charged as a conspirator in the 2007 bombing of a Sufi shrine in Ajmer. The organisation responded with massive protests in defence of Kumar, and also of Pragya Singh and Aseemanand, two RSS-linked activists charged in relation to the Ajmer blast and two other bomb attacks between 2007 and 2008.

ब्राह्मणवादी रामदेव, अरविन्द केजरीवाल और किशन हजारे के आरएसएस लिंक और बीजेपी को सत्ता दिलाने के योगदान के सन्दर्भ में इनके एक अहम् सेमिनार को उजागर करते हुए कारवां मैगज़ीन आगे लिखता हैं - "In April 2011, the VIF organised a two-day seminar on “black money.” The attendees included Doval and Gurumurthy, the god-man Baba Ramdev, the social activist Anna Hazare, the anti-corruption campaigner Arvind Kejriwal, the politician Subramanian Swamy, the retired police officer Kiran Bedi and the RSS pracharak KN Govindacharya. Soon afterwards, Hazare and Ramdev began much-publicised fasts against corruption, accusing the ruling government of having abetted it. These sparked a massive protest movement that proved disastrous for the government, and provided the BJP, the RSS’s electoral offspring, with a crucial platform for its successful 2014 election campaign. Kejriwal, Swamy, Bedi and Govindacharya were all among the movement’s leadership."

केजरीवाल के भ्रष्टाचार विरोधी धरने के सन्दर्भ में कारंवा मैगज़ीन आगे लिखता हैं - The editor described the anti-corruption protests as an operation run from the VIF. “Some of the senior bureaucrats from home ministry and intelligence officials were also clandestinely part of it,” he said. “Doval was leading it, and probably this was his most successful operation.” 

कहने का तात्पर्य यह हैं कि India Against Corruption बहुजन समाज को भ्रष्टाचार और लोकपाल के मुद्दों में उलझाकर बहुजन समाज की अपनी बुद्ध-रैदास-कबीर-फुले-अम्बेडकर विचारधारा पर कार्य करने वाली बसपा की स्वतंत्र राजनीति को किनारे करने के लिए विवेकानन्द इंटरनैशनल फॉउण्डेशन के माध्यम से आरएसएस द्वारा ब्राह्मणवादी किशन हजारे, अरविन्द केजरीवाल, किरण बेदी आदि को लॉन्च करके बीजेपी को पूर्ण बहुमत की सत्ता दिलाकर भारत में ब्राह्मणराज को करने एक ब्राह्मणी षड्यंत्र था। 

हालाँकि विवेकानन्द इंटरनैशनल फाउंडेशन के माध्यम से आरएसएस द्वारा जब से India Against Corruption का अनशन लॉन्च करवाया गया तभी से हजारे-केजरीवाल-बेदी के बारे में सकल बहुजन समाज को सचेत किया जा रहा हैं लेकिन इसके बावजूद बहुजन समाज आरएसएस के चंगुल में फँस गया। और एक बार नहीं, दो-दो बार केजरीवाल को दिल्ली में और मोदी को केंद्र में और प्रांतों में बीजेपी को सत्ता सौप चुका हैं। फ़िलहाल अब आप तय कीजिये कि अरविन्द केजरीवाल कौन हैं? और, आप व आपके मूलभूत संवैधानिक व लोकतान्त्रिक अधिकारों के संदर्भ में अरविन्द केजरीवाल कहाँ खड़ा हैं?

ब्राह्मण-सवर्ण और अन्य लोगों के बाबा साहेब क्या हैं?
बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर के मिशन और मान्यवर कांशी राम के दर्शन तथा बहन जी के संघर्ष से अनजान बहुजन समाज जय भीम बोलने वाले को अपना हितैषी समझता है। अपनी इसी गलतफहमी के चलते बहुजन समाज रामदास अठावले, रामविलास पासवान, उदित राज, चंद्रशेखर रावण, नरेंद्र मोदी, अरविंद केजरीवाल, प्रियंका गांधी, अखिलेश यादव आदि को अपना हितैषी समझने लगा है, जबकि इन सब का बाबा साहब की वैचारिकी से दूर-दूर तक कोई लेना देना नहीं है।

रामदास अठावले, उदित राज, रामविलास पासवान और चंद्रशेखर रावण जैसे लोगों के लिए बाबा साहब उनके निजी स्वार्थ सिद्धि का एक माध्यम मात्र हैं। ऐसे नेता बाबा साहब और मान्यवर कांशी राम साहब के नाम पर बहुजन समाज को गुमराह करके बहुजन समाज की पहचान बन चुके बहुजन समाज पार्टी के जनाधार को तोड़ने का प्रयास करते हुए ब्राह्मणी राजनीतिक दलों के लिए दलाली करते हैं।

नरेंद्र मोदी, प्रियंका गांधी, अरविंद केजरीवाल और अन्य सभी ब्राह्मण-सवर्ण राजनीतिक दलों व ब्राह्मण-सवर्ण नेताओं ने बाबा साहब को दलितों-आदिवासियों और अन्य पिछड़े वर्ग को रिझाने का एक साधन मात्र बना दिया हैं। इन सब ब्राह्मण-बनियों ने मिल करके बाबा साहब को राजनीति के बाजार में एक प्रोडक्ट बना दिया है, जो कि बाबा साहब का घोर अपमान है। बहुत ही दुखद है कि बहुजन समाज बाबा साहब के इस अपमान को समझ नहीं पा रहा है, और बाबा साहब का अपमान करने वाले इन दलों के हाथों में लगातार सत्ता की बागडोर सौपता जा रहा हैं।

फ़िलहाल इस संदर्भ में लोहियावादियों का जिक्र भी आवश्यक हैं। इसलिए जहां तक रही बात लोहियावादियों की तो इन सब के संदर्भ में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इन्हीं लोहियावादियों की सरकार ने ही बहन जी द्वारा बनाए गए संत रैदास नगर का नाम बदलकर भदोही, पंचशील नगर को हापुड़, कांशीरामनगर को कासगंज और भीमनगर को सम्भल कर दिया। इन्हीं लोहियावादियों की सरकार ने बहुजन महानायकों के नाम पर बनने वाले पार्कों की जमीन छीनकर जनेश्वर मिश्रा व लोहिया आदि पार्क का निर्माण कराया। इन्हीं लोहियावादियों की सरकार ने संसद भवन में प्रमोशन में रिजर्वेशन के अधिकार का खुलेआम विरोध कर इस बिल को फाड़ दिया था। इन्हीं लोहियावादी गुंडों की फ़ौज ने १९९५ में लखनऊ के गेस्ट हाउस में पिछड़े वर्ग की मसीहा बहन जी पर जानलेवा हमला किया था, जिसे बाद में बहुजन हितों के चलते अपने अपमान को भूलकर करुणामई बहन जी ने उन गुंडों को ना सिर्फ मॉफ किया बल्कि सुप्रीम कोर्ट से केस भी वापस ले लिया। इन्हीं लोहियावादियों की सरकार ने बहन जी की सरकार में प्रमोशन में रिजर्वेशन के तहत प्रमोशन पाए दलित-आदिवासी लोगों को तत्काल प्रभाव से इस तरह से डिमोट किया जैसे कि डिमोट करने की ओलंपिक प्रतिस्पर्धा चल रही हो। इन्हीं लोहियावादियों की सरकार ने अपने चुनावी भाषणों में कहा था कि यदि वे सत्ता में आए तो अंबेडकर पार्क पर बुलडोजर चलवायेगे। इन्हीं लोहियावादियों की सरकार में बहन जी की मूर्ति तोड़ दी गई थी। इन्हीं लोहियावादियों की सरकार में बसपा प्रदेश कार्यालय लखनऊ के ऊपर से होकर जबरदस्ती फ्लाईओवर बनवाया गया। इन्हीं लोगों द्वारा अंबेडकर पार्क आदि में स्वागत मुद्रा में लगी हाथियों की मूर्तियों को ढकवाने के लिए चुनाव आयोग पर दबाव डाला गया। ऐसे में इन लोहियावादियों द्वारा कुछ महीनों से अपने कार्यालयों में बाबा साहब की तस्वीर लगाना, भंतों को सम्मानित करना और संत शिरोमणि संत रैदास की जयंती मनाना एक ढोंग मात्र है। इन लोहियावादियों ने भी बाबा साहब को राजनीति में एक प्रोडक्ट के तौर पर इस्तेमाल कर बाबा साहब का जघन्यतम अपमान किया है। सकल बहुजन समाज को यह समझना होगा कि सवर्ण लोहिया कभी भी बहुजन समाज का आदर्श नहीं हो सकता है क्योंकि लोहिया गांधीवादी था, और गाँधी बहुजनों के हकों का शत्रु था। हम पिछड़े वर्गों के आदर्श लोहिया नहीं बल्कि बुद्ध, अशोक, संत शिरोमणि गुरु रैदास, कबीर, नानक, घासीदास, राष्ट्रपिता फुले, शाहू महाराज, रामास्वामी पेरियार, गाडगे, मान्यवर साहेब, रामस्वरूप वर्मा, ललई यादव, जगदेव प्रसाद कुशवाहा, बहन जी जैसे लोग हैं। 
इसलिए सकल बहुजन समाज को सदा याद रखना चाहिए कि -
लोहियावाद ही गांधीवाद है, 
गांधीवाद ही जातिवाद है, 
जातिवाद ही वर्णवाद है, 
वर्णवाद ही ब्राह्मणवाद है। 
और, 
ब्राह्मणवाद ही वर्णवाद है, 
वर्णवाद ही जातिवाद है, 
जातिवाद ही गांधीवाद है,
गांधीवाद ही लोहियावाद है।
ये सभी वाद कभी भी किसी भी सूरत-ए-हाल में दलित-आदिवासी-अन्य पिछड़े वर्ग का हितैषी नहीं हो सकता हैं फिर भी स्वार्थी व चमचे किस्म के लोग बसपा छोड़कर समाजवादी पार्टी में शामिल होकर बाबा साहेब और मान्यवर साहेब के सपने को साकार करने का दम भर रहें हैं। 

दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 में बहुजन समाज की राजनीतिक पहचान क्या रही है? सत्ता किस वर्ग के पास हैं?   
किसी भी समाज की सुरक्षा उस समाज के अपनी पहचान में छुपी होती है। यह पहचान अलग-अलग तरीके से सुरक्षा देकर समाज को प्रगति की तरफ उन्मुख होने में अहम भूमिका निभाता है।

फ़िलहाल, यह सुरक्षा मुख्यतः तीन प्रकार की होती है - सामाजिक सुरक्षा, आर्थिक सुरक्षा, और राजनीति सुरक्षा। यह तीनों आपस में एक दूसरे से इस कदर जुड़े होते हैं कि इनको एक-दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता है। ये तीनों जहाँ एक-दूसरे को प्रभवित करते हैं वहीँ एक-दूसरे से प्रभावित भी होते हैं। 

फ़िलहाल, जब हम बहुजन समाज की सुरक्षा पर गौर करते हैं तो हम पाते हैं कि बहुजन समाज सामाजिक और आर्थिक रूप से आज भी निरीह बना हुआ है, और काफी जद्दोजहद के बाद मान्यवर कांशी राम साहेब और बहन कुमारी मायावती जी के संघर्षों के परिणामस्वरुप बहुजन समाज बुद्ध-फूले-अंबेडकरी विचारधारा के सूत्र में बांधकर अपनी राजनैतिक पहचान को स्थापित करने में सफल हुआ है।

देश में जब भी कहीं पर दलित-आदिवासी और पिछड़े वर्ग के ऊपर अत्याचार होता है तो सारा देश बहनजी की तरफ ही देखता है। इससे यह साबित होता है कि बहुजन समाज पार्टी का देश के बहुजन समाज के लिए क्या मायने हैं। ये भी प्रमाणित होता हैं कि बसपा का भारत की राजनीति में क्या मायने हैं। लेकिन, दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 में जिस तरह से दिल्ली के लगभग 18% दलितों ने और लगभग 30 से 40% पिछड़ों ने अपनी राजनीतिक पहचान बसपा को वोट ना देकर RSS द्वारा खड़ी की गई आम आदमी पार्टी के वोट करके सवर्णों की सरकार बनाने में अहम भूमिका निभाई है वो बहुजन समाज द्वारा आत्महत्या करना हैं। इससे दिल्ली का बहुजन समाज तात्कालिक तौर पर खुश जरूर हैं लेकिन वह शायद यह भूल गया हैं कि दिल्ली में उन्होंने अपनी राजनीतिक अस्मिता को ही खतरे में डाल दिया है।

मान्यवर कांशीराम साहब कहते हैं कि 'हो सकता है कि चुनाव लड़ते समय हम जीत ना पाए लेकिन हमारी पार्टी को मिला वोट प्रतिशत देश की राजनीति में हमारी भागीदारी को स्थापित करते हुए यह प्रमाणित करता है कि कितने प्रतिशत लोग हमारे साथ हैं।'
मान्यवर साहेब कहते हैं कि -
वोट हमारा राज तुम्हारा,  
नहीं चलेगा, नहीं चलेगा।
लेकिन, दिल्ली के बहुजनों के क्या किया? इन्होने अपना वोट अपने पार्टी को देने के बजाय अपने शोषक ब्राह्मण-सवर्ण को दे दिया। और, उनकों सत्ता-विपक्ष दोनों में सत्तासीन कर अपनी राजनैतिक नुमांइदगी को शून्य कर दिया। इससे ज्यादा आत्मघाती और क्या हो सकता हैं। इन्होने ने तो अपने पैर अपने ही हाथों से काट लिया हैं। 

ऐसे में, बहुजन समाज को राजनीति का मायने भी समझने की अत्यंत आवश्यकता है। राजनीति का मतलब हमेशा सत्ता में बने रहना ही नहीं होता है। राजनीति का मतलब ये भी होता है कि आप जिस समाज का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं उस समाज की आवाज को लगातार प्रबल व प्रखर तौर पर हुक्मरान के कानों तक पहुंचाते रहे। लेकिन, दलित व अन्य पिछड़े और अल्पसंख्यक बहुजन समाज के लोग इस कदर गुमराह हो गए हैं कि वे खांसी-जुखाम की दवाई, दीवारों की पुताई और स्कूलों में बेंच देख करके ना सिर्फ अपनी मूलभूत मानवाधिकारों के विरोधी अरविंद केजरीवाल को सत्ता सौंप दी बल्कि दिल्ली में अपने ही हाथों अपनी राजनैतिक अस्मिता की कब्र तक खोद डाली है।

इतिहास गवाह है, जिस समाज की अपनी पहचान नहीं होती है वह समाज गुलाम होता है, भीख मांगने वाला होता है, उसी का हमेशा शोषण होता है। बड़े दुख की बात है कि दिल्ली के बहुजन समाज के लोगों ने गुमराह होकर अपनी खुद की पहचान को अपने ही हाथों दफन कर दिया है। अब यदि ऐसे में इनके ऊपर अत्याचार होता है तो यह लोग किस पहचान के साथ अपनी आवाज उठाएंगे? क्या इन लोगों को इस बात का इल्म नहीं है कि इन पर अत्याचार करने वाला ब्राह्मण-सवर्ण है। और, इन लोगों को अपनी फरियाद भी ब्राह्मण-सवर्ण समाज के ही पास लेकर जाना पड़ेगा क्योकि इन्होने सत्ता-विपक्ष दोनों ही ब्राह्मण-सवर्ण समाज के हाथ सौप दिए हैं। ऐसे में जब सब कुछ ब्राह्मण-सवर्ण समाज के ही हाथ में है तो वह अपने गुलामों की आवाज क्यों सुनेगा, जबकि ये ब्राह्मणवादी व्यवस्था का मतलब ही होता हैं जाति के अनुसार मान-अपमान, हक़ व शोषण। 

क्या वाकई बीजेपी का नुक्सान हुआ?
बीजेपी भारत में ब्राह्मणराज स्थापित करने वाली आरएसएस का एक राजनैतिक मुखौटा मात्र हैं। इसलिए बहुजन समाज को बीजेपी की हार पर गौर करने के बजाय आरएसएस पर ध्यान देना चाहिए कि आरएसएस की हार हुई या नहीं? फ़िलहाल, दलित बहुजनों की नासमझी की वजह से ना सिर्फ सवर्ण बनिया अरविन्द केजरीवाल को सत्ता मिल गयी हैं बल्कि पिछले चुनाव की तुलना में बीजेपी के वोट में ८% की वृद्धि दर्ज़ हुई हैं, और उसके ८ विधायक भी विधानसभा में चहलकदमी कर रहें हैं। ये दुबारा याद दिलाने की जरूरत नहीं होनी चाहिए कि आम आदमी पार्टी और बीजेपी दोनों एक ही माँ (आरएसएस) की दो औलादें हैं। 

इससे ये स्पष्ट हो जाता हैं कि सत्ता में भी आरएसएस हैं, और विपक्ष में भी आरएसएस ही हैं। जब सत्ता और विपक्ष दोनों में आरएसएस ही हैं तो दलित-पिछड़े और अल्पसंखयक खुश किस बात पर हो रहें हैं? इससे भी महत्वपूर्ण सवाल ये हैं कि खासी-जुखाम की मुफ्त दवाई, स्कूल में बेंच और बिजली की कुछ यूनिट मुफ्त को विकास समझकर वोट करने वाला दलित-पिछड़ा-अल्पसंख्यक बहुजन समाज पक्ष-विपक्ष में कहाँ हैं? क्या खांसी-जुखाम, स्कूल के बेंच और चंद यूनिट मुफ्त की बिजली ही दलित-पिछड़े और अल्पसख्यक समाज की मूल समस्या हैं? 

देश के दलित-आदिवासी-पिछड़ा-अल्पसंख्यक बहुजन समाज से कुछ सवाल -
क्या आप भूल गए हैं कि उत्तर प्रदेश में भी एक रूपये की पर्ची पर बेहतरीन इलाज और जाँच बहनजी के शासनकाल में होता रहा हैं? क्या आप ये भी भूल गए हैं कि बहन जी के कार्यकाल में उत्तर प्रदेश में दलित-आदिवासी-पिछड़े और अल्पसंख्यक समाज को संविधान की मंशा के अनुरूप नौकरियों में निष्पक्ष चयन मिला हैं? क्या आप भूल चुके हैं कि पहली बार उत्तर प्रदेश में संविधान की मंशा के अनुरूप आरक्षण को लागू किया गया था? क्या आप भूमिहीनों को पहली बार बड़े पैमाने पर पट्टे-वितरण भी भूल चुके हैं? क्या आप बहन जी का कानून व्यवस्था भूल भी चुके हैं? क्या आप बहन जी द्वारा उत्तर प्रदेश में बहुजनों महानायकों-महनायिकाओं के नाम पर बने स्मारकों, जिलों, संस्थानों आदि को भूल चुके हैं? क्या आप भूल चुके हैं बहन जी की सरकार ने ही पहली बार बहुजन समाज के नायकों-महानायकों व महनायिकाओं की संघर्ष गाथाओं से दुनिया का साक्षात्कार कराया हैं? क्या आप भूल चुके हैं बहन जी की सरकार ने ही बहुजनों नायकों-महानायकों व महनायिकाओं को दुनिया के फलक पर पहली बार स्थापित कर बहुजन समाज के गौरवशाली इतिहास से दुनिया को अवगत कराया हैं? क्या आप भूल चुके हैं कि आज भारत में दलितों-आदिवासियों-पिछड़ों-अल्पसंखयकों की राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक व सांस्कृतिक अस्मिता की पहचान बहन जी ही हैं? 

यदि दिल्ली वालों ने विकास के नाम पर अरविन्द केजरीवाल को वोट किया है तो क्या बहन जी द्वारा करायें गए ये कार्य विकास की श्रेणी में नहीं आते हैं?
उत्तर प्रदेश में बहन जी ने अपने कार्यकाल में 7 मेडिकल कॉलेज, 6 इंजीनियरिंग कॉलेज, 2 होमियोपैथिक कॉलेज, 24 से अधिक पॉलिटेक्निक कॉलेज, 2 पैरा मेडिकल कॉलेज, 6 विश्वस्तरीय विश्वविद्यालय, 200 से अधिक डिग्री कॉलेज, 200 से अधिक इंटर कॉलेज, 572 हाई स्कूल, 5549 से अधिक प्राइमरी स्कूल, 100 से अधिक ITI, 6 नए मंडल का गठन, 23 नए ज़िलों का गठन, 23 जिला अस्पताल, 23 जिला एवं सत्र न्यायालय, 23 जिलाधिकारी कार्यालय, 23 विकास भवन, 23 पुलिस लाइन, 23 एआरटीओ ऑफिस, 23 डाइट, 45 से अधिक नई तहसीलों का गठन, 40 से अधिक विकास खंड बनवाये, 28419 से अधिक अम्बेडकर ग्राम, 2400 सामुदायिक केन्द्र, 2 इण्टरनेशनल एयरपोर्ट बनवाये, 88 हजार बीटीसी शिक्षकों की भर्ती, 41 हज़ार कांस्टेबल की भर्ती, "कांशीराम शहरी आवास योजना" के तहत एक लाख एक हज़ार लोगों को आवास, जिला गौतम बुद्ध नगर में "गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय" की स्थापना, 108848 सफाईकर्मियों की भर्ती, बुंदेलखंड में आईटी पॉलिटेक्निक की स्थापना, महामाया तकनीकी विश्वविद्यालय गौतम बुद्ध नगर की स्थापना, गरीब बस्तियों में 2000 सामुदायिक केंद्र की स्थापना, 20 जिलो में अम्बेडकर पीजी छात्रावास की स्थापना, पंचशील बालक इंटर कॉलेज नॉएडा, महामाया बालिका इंटर कॉलेज गौतम बुद्ध नगर की स्थापना, डॉ भीमराव आंबेडकर मल्टी स्पेशलिटी हॉस्पिटल नॉएडा, मान्यवर कांशीरामजी यूनिवर्सिटी ऑफ़ एग्रीकल्चर एंड टेक्नोलॉजी बाँदा, मान्यवर कांशीराम गवर्नमेंट डिग्री कॉलेज गाज़ियाबाद, कांशीराम मल्टी स्पेशलिटी हॉस्पिटल नॉएडा, नॉएडा एक्सप्रेसवे का निर्माण, गंगा एक्सप्रेसवे का निर्माण, यमुना एक्सप्रेसवे का निर्माण हुआ, महामाया फ्लाईओवर नॉएडा का निर्माण, 2195 गाँव में 3332 KM की सड़को का निर्माण, मान्यवर श्री कांशीरामजी उर्दू अरबी फ़ारसी यूनिवर्सिटी लखनऊ, जौनपुर, गाजियाबाद, कांशीरामनगर, कुशीनगर, बिजनौर, कन्नौज, फर्रुखाबाद, मैनपुरी, श्रावस्ती में राजकीय महाविद्यालय, 2007 में आतंकवाद से निपटने के लिए एटीएस (ATS) का गठन, लखनऊ जिला कारागार, मोहनलालगंज-गोसाईगंज मार्ग पर आदर्श कारागार एवं नारीबंदी निकेतन का लोकार्पण, मान्यवर कांशीरामजी राजकीय मेडिकल कॉलेज सहारनपुर, मान्यवर श्री कांशीराम यूपी इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी लखनऊ, नगवा-वाराणसी में संत रविदास घाट का निर्माण, कन्नौज, बागपत, महाराजगंज, कौशाम्बी, बलरामपुर, सोनभद्र में जिला कारागार का निर्माण हुआ, मान्यवर कांशीराम जी इंस्टिट्यूट ऑफ़ पैरामेडिकल साइंसेज झाँसी, 5 नए मेडिकल कॉलेज उरई, कन्नौज, आजमगढ़, बाँदा मे, सावित्रीबाई फुले गर्ल्स हॉस्टल कानपुर, एससी-एसटी गर्ल्स के लिए हॉस्टल का निर्माण, भारत का पहला फार्मूला वन रेसिंग ट्रैक "बुद्धा इन्टर्नेशनल सर्किट" नॉएडा, मान्यवर श्री कांशीराम मल्टी स्पेशलिटी हॉस्पिटल लखनऊ, मान्यवर श्री कांशीराम इंटरनेशनल कन्वेंशन सेण्टर का निर्माण हुआ, मान्यवर श्री कांशीराम मल्टी स्पेशलिटी हॉस्पिटल ग्रेटर नॉएडा, उत्तर प्रदेश विकलांग विश्वविद्यालय लखनऊ,  वृद्ध कल्याण नीति के अंतर्गत 60 वर्ष के ऊपर सभी बीपीएल व्यक्तियों को वृद्धावस्था पेंशन, "सावित्री बाई फुले बालिका शिक्षा मदद योजना" के अंतर्गत बीपीएल परिवारों की बालिकाओं को आर्थिक सहायता तथा साइकिल प्रदान की गयी, वृद्ध महिलाओं के लिए प्रत्येक मंडल स्तर पर महिला भरण-पोषण की दर 1800 से बढाकर 3600 रूपये वार्षिक की गयी, बेरोजगारों के लाभ हेतु कौशाम्बी, कन्नौज, औरैया, चित्रकूट, श्रावस्ती, बलरामपुर, संत कबीरनगर, ज्योतिबा फुले नगर, चंदौली तथा बागपत में रजिस्ट्रेशन सेंटर स्थापित किये गए, नवनिर्मित जनपद मान्यवर कांशीराम नगर में एम्प्लॉयमेंट ऑफिस स्थापित किया गया, मत्स्य प्रशिक्षण केंद्र लखनऊ की स्थापना, प्रदेश में 60 जनपदों के परिवहन कार्यालयों में इंटरनेट की सुविधा, गोरखपुर तथा अलीगढ में होमियोपैथिक मेडिकल कॉलेज की स्थापना, 153 नए राजकीय होमियोपैथी चिकित्सालयो की स्थापना, 1052 विकलांगो को उचित दर की दुकानों का आवंटन, कन्नौज, बागपत, महाराजगंज, कौशाम्बी, बलरामपुर व सोनभद्र में जिला कारागारों का निर्माण, होमगार्ड स्वयंसेवको को दुर्घटना बीमा राशि 2 लाख से बढाकर 3 लाख की गयी, आशा योजना जिसके तहत 2007-10 तक 1,36,183 आशाओं का चयन किया गया, सिद्धार्थनगर, हाथरस एवं मऊ में ब्लड बैंक की स्थापना, एच आई वी/एड्स से संक्रमित व्यक्तियों को सम्मानजनक जीवन प्रदान करने के लिए 8 ड्रॉप इन सेण्टर इलाहबाद, लखनऊ, गोरखपुर, वाराणसी, मऊ, देवरिया, इटावा, बाँदा में स्थापित किये गए और इन रोगियों के इलाज के लिए 8 कम्युनिटी केअर सेंटर लखनऊ, कानपुर, अलीगढ, आगरा, गोरखपुर, वाराणसी, इलाहबाद, मेरठ में स्थापित किये गए, 12244 शिक्षामित्रों की नियुक्ति, 59690 बीटीसी अध्यापको का प्रशिक्षण करवा के भर्ती की गयी, लखनऊ व गाजियाबाद में हज़ हॉउस का निर्माण किया गया, एससी एसटी छात्रों के लिए नॉएडा में हॉस्टल स्थापित, एशिया का सबसे बड़ा "सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट" लखनऊ का निर्माण, राज्य सरकार द्वारा 140 मदरसों में मिनी आईटीआई की स्थापना, 169 मदरसों को मान्यता, बायो फ़र्टिलाइज़र यूनिट लखनऊ की स्थापना, महामाया राजकीय एलोपैथिक मेडिकल कॉलेज आदि। क्या बहन जी के कार्यकाल में हुए ये सारे कार्य दलितों-आदिवासियों-पिछड़ों-अल्पसंख्यकों के लिए विकास की श्रेणी में नहीं आते हैं? यदि इसके बावजूद दिल्ली का बहुजन कहता हैं कि उसने विकास के नाम पर वोट किया हैं तो यह सरासर उसकी नासमझी हैं।  

---बहुजनों के कुछ सवाल---
गुमराह बहुजन अक्सर सवाल करता है कि बहन जी सड़क पर क्यूँ नहीं आती हैं?
राजनीति का मतलब सड़क पर उतारकर हंगामा करना नहीं होता हैं। अपने लोगों का हक़ संवैधानिक व लोतांत्रिक दायरे में रहकर ही हासिल किया जा सकता हैं। इतिहास गवाह हैं बुद्ध-फुले-बाबासाहेब-मान्यवर साहेब सब ने तत्कालीन हालत के मद्देनजर ही कोई भी कदम उठाया हैं, वो भी कानून के दायरे में रहकर। यहीं इन महानायकों की सफलता का राज़ भी हैं। बाबा साहेब ने भी सड़क पर उतर कर आंदोलन किया था लेकिन जब देखा कि जिन लोगों के लिए बाबा साहेब संघर्ष कर रहे थे वो लोग ही मारे जा रहे थे तो बाबा साहेब ने अपने सड़क वाले आंदोलन को वापस ले लिया था, फिर चाहे वो महाड़ सत्याग्रह हो या फिर कालाराम मंदिर प्रवेश। 

मान्यवर साहेब के साथ बहन जी ने भी जागरूकता के लिए सड़क पर उतारकर लोगों तक बहुजन वैचारिकी को पहुँचाने का कार्य किया हैं। लेकिन, आज का गुमराह बहुजन जिस भीड़ के साथ बहन जी को सड़क पर देखना चाहता हैं उस भीड़ में ब्राह्मणवादी तत्वों को शामिल करवाकर आंदोलन को हिंसक बनाना मौजूदा सत्ता के लिए उतना ही आसान हैं जितना कि दो अप्रैल, जामिया विश्वविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय, जेएनयू आदि के प्रदर्शनों में रहा हैं। यदि बहुजन ऐसे किसी प्रदर्शन की उम्मीद करता हैं तो बहुजन समाज के जान-माल का उसी तरह नुकसान होगा जैसा कि बाबा साहेब के प्रदर्शन में हुआ था, जिसके चलते बाबा साहेब ने सड़क पर अपना बल दिखने के बजाय कानूनी तरीके से अपने हकों की ना सिर्फ लड़ाई लड़ी बल्कि फ़तेह भी हासिल किया। यदि कार्यशैली, भाषाशैली और नीतियों पर ध्यान दिया जाय तो बहन भी बाबा साहेब के ही नक्श-ए-कदम पर हैं। रहीं बात बहन जी के विरोध का तो बाबा साहेब जब संघर्ष कर रहे थे तब भी लोग तमाम कमियाँ निकालकर उनका ना सिर्फ विरोध कर रहें थे बल्कि उनके खिलाफ मंचों पर और चुनावों आदि में खुलेआम बग़ावत भी कर रहे थे। ऐसे में बहन जी का विरोध कोई खास बात नहीं है।  

बहुजन समाज को समझना होगा कि नेता नेतृत्व देता हैं, नेतृत्व करता हैं लेकिन आपके हिस्से की लड़ाई नहीं लड़ सकता हैं। आप अपनी जिम्मेदारी नेता के कन्धों पर नहीं डाल सकते हो, आप तटस्थ नहीं रह सकते हो। आपको अपने हिस्से की लड़ाई खुद ही लड़नी होगी। बहुजन समाज को ये भी ध्यान में रखना होगा कि सुश्री मायावती जी को बहन जी बनने में पाँच दशक से भी अधिक का समय लगा हैं। बहन जी बहुजन समाज की धरोहर हैं, पहचान हैं। इसलिए बहुजन समाज को बहन से ऐसी गलती की उम्मीद नहीं करनी चाहिए जो गलती बिहार के क्षेत्रीय नेता बाबू जगदेव प्रसाद कुशवाहा ने की थी जिसके चलते ना सिर्फ बाबू जगदेव प्रसाद कुशवाहा मिट गए बल्कि उनकी वैचारिकी तक को बिहार के लोग भूल गए हैं। 

स्वार्थी व चमचे किस्म के बहुजनों का एक आम सवाल है कि बसपा का वोट प्रतिशत गिरता जा रहा हैं, क्यों?
ये बात सही हैं कि हाल के चुनावों में बसपा के वोट प्रतिशत में कुछ गिरावट आयी हैं। लेकिन, क्या इसके लिए सिर्फ बहन जी ही जिम्मेदार हैं? जिन लोगों का तर्क हैं कि मान्यवर साहेब के ज़माने में बहुजन जुड़ रहा था, वोट प्रतिशत बढ़ रहा था तो उन लोगों को ये भी मालूम होना चाहिए कि मान्यवर साहेब ने स्पष्ट कह दिया था कि मै सबको संसद, विधायक, मंत्री आदि नहीं बना सकता हूँ। जिनको पद आदि का लोभ हो तो वो मेंरे साथ ना आये। जिनकों बाबा साहेब की वैचारिकी में विश्वास हो, बसपा में विशवास हो, बसपा के कार्यशैली और नीतियों में विश्वास हो वही मेरे साथ आयें। उस समय लोगों ने वैचारिकी को जाना-समझा, बुद्ध-फुले-शाहू-अम्बेडकर की वैचारिकी को पढ़ा और बसपा में ना सिर्फ शामिल हुए बल्कि तन-मन और धन से भी मदद किया। लेकिन, आज के हालत हैं कि हर किसी को कोई ना कोई पद चाहिए, टिकट चाहिए, पैसा चाहिए। यदि टिकट नहीं मिला तो लोग बीजेपी, कांग्रेस और सपा में शामिल होकर बाबा साहेब और मान्यवर का सपना पूरा करने का दम भर रहें हैं। ऐसे स्वार्थी व चमचे किस्म के लोग किसको गुमराह कर रहे हैं? ऐसे स्वार्थी व चमचे किस्म के लोग सिर्फ पार्टी में ही नहीं हैं बल्कि गुमराह बहुजन समाज भी इसी दुश्चरित्र का शिकार हो गया हैं। ऐसे में वोट प्रतिशत गिराने में खुद बहुजन समाज भी भागीदार हैं। अपने दल के प्रति यदि वफ़ादारी सीखना हैं तो ब्राह्मणों से सीखों। कांग्रेस-बीजेपी-कम्युनिस्ट-आप आदि जीते या हारे लेकिन उन्होंने हमेशा ब्राह्मण-सवर्ण राजनैतिक दलों को ही वोट किया हैं। यादवों से सीखिए जिसने हर हालत में सपा को ही वोट किया हैं।

यहाँ मान्यवर साहेब की बात बहुत ही प्रासांगिक हैं कि जब बीएसपी पूरे देश में फैल जाएगी तब बहुजन समाज में दलाल पैदा होंगे, और सारे मनुवादी दल इकट्ठा होकर इन दलालों के माध्यम से बीएसपी को हरायेंगें। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव २०१२ व २०१७, दिल्ली विधानसभा चुनाव- २०१५ व २०२०, आम लोकसभा चुनाव २०१४ व २०१९ इसका पुख्ता प्रमाण हैं।  

सनद रहें, बसपा राजनैतिक दल नहीं, बल्कि एक आंदोलन हैं। 
यह स्थापित सत्य हैं कि बसपा राजनैतिक दल होने से पहले बहुजन आंदोलन हैं, जिसका मकसद राजनैतिक शक्ति का इस्तेमाल करके बुद्ध-फुले-अम्बेडकरी समतामूलक समाज का निर्माण करना हैं। फ़िलहाल संगठन के सन्दर्भ में, पिछड़े वर्ग की मसीहा बहनजी द्वारा बसपा में अमूल-चूल परिवर्तन करने की जरूरत हैं। पार्टी में नौकरशाहों जैसे स्थानांतरण की आवश्यकता नहीं बल्कि सभी स्वार्थी चमचे टाइप के नेताओं को सन्यास दिलाकर अम्बेडकरी विचारधारा वाले नवयुवकों को पार्टी में स्थान दिया जाय। बसपा को चाहिए कि कैडर द्वारा गांव-शहर आदि के गुमराह हो चुके पिछड़े-आदिवासी-दलित-अल्पसंख्यक समाज को बुद्ध-फुले-अम्बेडकरी वैचारिकी से जोड़कर संगठन को मजबूत किया जाय। पार्टी से निकले जाने के बावजूद भी जिन लोगों ने किसी अन्य राजनैतिक दल या बसपा विरोधी कोई भी मंच आदि ज्वाइन नहीं किया हैं उनको पार्टी में वापस लेकर उनके अनुभव का लाभ उठया जाय। बहुजन समाज पार्टी को बुद्ध-फुले-अम्बेडकरी वैचारिकी से ओतप्रोत विद्वानों की निगरानी में अपना वेब चैनल, पत्रिका और अखबार भी लॉन्च करना चाहिए, और यदि फण्ड की आवश्यकता हो तो सकल बहुजन समाज से आह्वान करना चाहिए जिसके लिए बहुजन समाज सदैव तत्पर हैं। बसपा एक राष्ट्रिय राजनैतिक दल हैं, देश के दलितों-आदिवासियों-पिछड़ों-अल्पसंख्यकों-गरीबों-नारियों-फौजियों-अधिकारीयों-कर्मचारियों की एक मात्र हितैषी व उनकी बुलन्द आवाज़ हैं। ऐसे में यदि जारूरत हो तो बेझिझक बहुजन समाज के लोगों से सहयोग राशि का आह्वान भी करना चाहिए।

हमारे निर्णय में, बहुजन समाज को याद रखना चाहिए कि किसी भी समाज की सुनवाई उसके अपनी पहचान से ही होती हैं, और आज भी बहुजन समाज की पहचान बसपा ही हैं, बहनजी ही उसकी एकमात्र रहनुमा हैं। 

फ़िलहाल इन सब के बावजूद दिल्ली विधान सभा चुनाव-२०२० में दिल्ली के बहुजन समाज ने अपनी पहचान को मिटने व खुद को राजनैतिक तौर पर अनाथ करने का कार्य किया हैं। ये स्थापित सत्य हैं कि बहुजन समाज ही राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक, शैक्षिणक और सांस्कृतिक तौर पर विपन्न हैं लेकिन नीति-निर्धारण में इसकी भूमिका शून्य हैं, जिसकी वजह ये दिल्ली का बहुजन समाज खुद ही हैं जिसने अपनी बहुजन समाज पार्टी को वोट ना करके ब्राह्मणवादियों को वोट किया हैं। ऐसे में, अब बहुजन समाज को सोचने की जरूरत हैं दिल्ली की विधानसभा चुनाव-२०२० में ब्राह्मणवादी राजनैतिक दलों के लिए वोट तो कर दिया हैं लेकिन दिल्ली विधानसभा में बहुजनों की क्या भूमिका हैं, उसकी खुद की नुमाइंदगी कहाँ हैं? क्या आपका शासक आपका नुमाइंदा हो सकता हैं?

यदि दिल्ली विधानसभा चुनाव-२०२० को संक्षेप में कहें तो यह बहुजन समाज के लोगों का बाबा साहेब की भक्ति का परिणाम हैं क्योंकि आज बहुजन समाज के लोग बाबा की भक्ति में लीन होकर बाबा साहेब की वैचारिकी से दूर हो गए हैं। ये देश के सभी बहुजन विद्वानों व नेतृत्व की जिम्मेदारी हैं कि बाबा साहेब की वैचारिकी को हर बहुजन तक सम्यक तौर पर पहुँचायें। इसी में भारत और भारतियों की भलाई हैं।
रजनीकान्त इन्द्रा
इतिहास छात्र, इग्नू-नई दिल्ली

मुँह में अंबेडकर बगल में राम


सुन लो भैया, बहुजन की आवाज,
मुँह में अंबेडकर बगल में राम।
अब नहीं गलेगी तुम्हारी दाल।।

रैदास नगर का कर दिया भदोही नाम,
पंचशील नगर को हापुड़,
भीमनगर को दे दिया सम्भल नाम,
अम्बेडकर पार्क की जमीं छीनकर,
लिख डाला जनेश्वर लोहिया नाम
ऐसे ओछे कर्मन् से, आती ना तुमको लाज,
सुन लो भैया, बहुजन की आवाज,
मुँह में अंबेडकर बगल में राम।
अब नहीं गलेगी तुम्हारी दाल।।

क्षत्रिय बनने के चलते, दलितों पर किया अत्याचार,
पिछड़ों को दूर कर दिया बुद्ध-फूले-अंबेडकर से,
छीन लिया उनके प्रमोशन में आरक्षण का अधिकार,
भर दिया उनमें लोहिया के गांधीवाद का जहर,
और लूट लिया उनके जीवन का चमकता सहर,
जातिवाद संग सांम्प्रदायिकता बढ़ाया
वंचितों की अस्मत लूटी, जमीं छीनीकर,
मुस्लिमो को दे दिया दंगों की सौगात,
ऐसे ओछे कर्मन् से, आती ना तुमको लाज,
सुन लो भैया, बहुजन की आवाज,
मुँह में अंबेडकर बगल में राम।
अब नहीं गलेगी तुम्हारी दाल।।

रहोगे शूद्र भले ही लिख लो चाहे सिंह नाम,
ललई को भुला दिया करके गंगा का स्नान,
कांशीराम से कैसी नफ़रत,
जो बदल दिया अरबी-फारसी विश्वविद्यालय का नाम,
गफलत में खुद को क्षत्रिय समझे, ऐसे ही बंट गया सारा जहान,
भूल गए महानायकों को, ढहाने का प्रण कर लिया अम्बेडकर पार्क,
ऐसे ओछे कर्मन् से आती ना तुमको लाज,
सुन लो भैया, बहुजन की आवाज,
मुँह में अंबेडकर बगल में राम।
अब नहीं गलेगी तुम्हारी दाल।।
✓✓रजनीकान्त इन्द्रा ✓✓
10.02.2020