Monday, February 26, 2018

मानसिक गुलामों द्वारा बहुजन महानायकों का व्यापारीकरण

प्रिय मूलनिवासी बहुजन साथियों,
बाबा साहेब डॉ अम्बेडकर जी के संघर्षों की बदौलत, मान्यवर काशीराम साहेब व बहन कुमारी मायावती जी ने मूलनिवासी बहुजन समाज को वो स्थान दिला दिया है कि मूलनिवासी बहुजन समाज को अब कोई भी किसी भी परिस्थिति में नजरअन्दाज नहीं कर सकता है! मूलनिवासी बहुजन महानायकों ने हमें वो मुक़ाम दिला दिया है कि हमारे समाज के लोग बेख़ौफ अपने हकों के लिए अपनी आवाज बुलन्द कर सकते हैं और करते भी आ रहे हैं!
अपने बातों को सबके सामने पेश करने के लिए, अपनी मांगों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए हमारे लोगों ने हर गली, हर मोहल्ले व सोशल मीडिया को पोस्टरों व बैनरों से पाट दिया है! इन पोस्टरों व बैनरों मे बहुजन महापुरुषों के फोटो लगे होते हैं, संदेश लिखे होते हैं! लेकिन आश्चर्य तब होता है जब ब्रहम्णी त्यौहारों के दरमियान ये सभी पोस्टर-बैनर अंधविश्वास पर आधारित उन सभी ब्रहम्णी रीति-रिवाजों, कर्मकांडों व त्यौहारों जैसे कि दीपावली-होली-नवरात्री-दशहरा-रक्षा बंधन-मकरसंक्रांति आदि की शुभकामनाएं देते नजर आते हैं!
 उदाहरण के तौर पर हमने एससी-एसटी-ओबीसी-कन्वर्टेड मॉयनॉर्टीज के छात्रों के एक संगठन का एक बैनर देखा जिसमें संगठन ने सभी मूलनिवासी बहुजन समाज को मकरसंक्रांति की शुभकामनाएं बांट रहे हैं! इसके पहले ये दीपावली-होली-नवरात्री-दशहरा-रक्षा बंधन आदि की शुभकामनाएँ दे चुके हैं! ये संगठन इकलौते नही है बल्कि इनकी भरमार है!
हमारे निर्णय मे मूलनिवासी बहुजन समाज के सारे संगठन मूलनिवासी बहुजन क्रांति के लिए है, इनसे जुड़े सारे लोग मूलनिवासी बहुजन समाज के लोग हैं, इनका मक़सद न्याय, समता-स्वातंत्रता-बधुत्व पर आधारित तर्कवादी वैग्यानिकता से ओत-प्रोत समाज का निर्माण है तो फिर ये लोग अपने पोस्टरों व बैनरों पर कुतर्क,अवैग्यानिकता, अन्याय, असमानता, छुआछूत, अत्याचार, अनाचार, गुलामी आदि समस्त निकृष्टतम बुराइयों पर आधारित दीपावली-होली-नवरात्री-दशहरा-रक्षा बंधन-मकरसंक्रांति आदि की शुभकामनाएं किसको देते रहते हैं?
यदि आप ब्रह्मणवादी व्यवस्था के रीति-रिवाजों, कर्मकाण्डों व त्यौहारों की बधाई मूलनिवासी बहुजन समाज को दे रहे हैं तो बुद्ध-अम्बेडकरी विचारधारा वाले मूलनिवासी बहुजन समाज को आपके इन शुभकामनाओं की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि ये कुतर्क, अंधविश्वास, कर्मकाण्ड, ढोंग, पाखण्ड, अन्याय, अत्याचार, अनाचार, जातिवाद, छुआछूत पर आधारित किसी भी त्यौहार की शुभकामनाएं समता-स्वातंत्रता-बधुत्व व न्याय पर आधारित बुद्ध-अम्बेडकरी विचारधारा वाले समाज के मूलभूत सिद्धांतों के सख्त खिलाफ है! साथ ही, ये सत्य स्वीकार किया जा है कि मूलनिवासी बहुजन समाज के लोग किसी भी तरह से जातिवादी नारीविरोधी मनुवादी सनातनी वैदिक ब्रहम्णी हिन्दू धर्म व संस्कृति का हिस्सा नहीं हैं!
यदि आप ये शुभकामनाएं ब्रहम्णों व अन्य सवर्णों को दे रहे हैं तो भी इन ब्रहम्णों व अन्य सवर्णों को भी आपके इन शुभकामनाओं की कोई जरूरत नहीं है! मॉफ कीजिये यदि मूलनिवासी बहुजन समाज व ब्रहम्णी समाज के बीच समरसता की बात कर रहे हैं तो भी आप गलती कर रहे हैं क्योंकि ब्रहम्णी व्यवस्था के साथ समरसता की भावना आपके मूलनिवासी बहुजन क्रांति को जिन्दा निगल जायेगी!
ध्यान रहे, मूलनिवासी बहुजन समाज की मुक्ति जातिवादी नारीविरोधी मनुवादी सनातनी वैदिक ब्रहम्णी हिन्दू धर्म व संस्कृति के नेस्तनाबूद होने में निहित है जबकि इन स्वार्थी, अग्यानी, खोखली प्रसिद्ध की चाह रखने वाले ये स्वघोषित मूलनिवासी बहुजन हितैषी बाबा साहेब डॉ अम्बेडकर जी, गौतम बुद्ध, सम्राट अशोक, फूले, कबीर दास, संत शिरोमणि संत रैदास, मान्यवर काशीराम साहेब, नारायणा गुरू, पेरियार आदि अन्य मूलनिवासी बहुजन महापुरुषों की फोटो अपने पोस्टरों-बैनरों पर लगाकर ना सिर्फ मूलनिवासी बहुजन समाज को गुमराह कर मूलनिवासी बहुजन क्रांति को कमजोर कर रहे हैं बल्कि बुद्ध-अम्बेडकरी विचारधारा पर आधारित तर्कवादी वैग्यानिकता व मानवतावादी समाज के सृजन की राह में खड़े मानवता के सबसे बड़े शत्रु जातिवादी नारीविरोधी मनुवादी सनातनी वैदिक ब्रहम्णी हिन्दू धर्म व संस्कृति को लगातार मजबूत कर रहे हैं!
बाबा साहेब की तस्वीर लगाकर ब्रहम्णी संस्कृति को आगे बढ़ाने वाले ऐसे पोस्टर-बैनर मूलनिवासी बहुजन समाज के ऐसे लोगों को आरएसएस-बीजेपी की श्रेणी में ही खड़ा करता है! हम तो बेहिचक यहाँ तक कहते हैं कि मूलनिवासी बहुजन समाज के ऐसे लोग, जो बुद्ध व बाबा साहेब की तस्वीर लगाकर ब्रहम्णी संस्कृति को बढ़ावा देने का काम कर रहे हैं, ब्रहम्णी आरएसएस-बीजेपी से कईयों गुना ज्यादा खतरनाक है क्योंकि ऐसे लोग खुद मूलनिवासी बहुजन समाज के खिलाफ ब्रहम्णी आतंकवादियों के लिए मुखबिरी मात्र कर रहे हैं!
आरएसएस-बीजेपी ने बाबा साहेब को मूलनिवासी बहुजन क्रांति के प्रतीक बन चुके "नीले" रंग का कोट पहनाने के बजाय ब्रहम्णी भगवा रंग का कोट पहनाकर भी बहुजन क्रांति को उतना नुकसान नहीं किया है जितना कि बाबा साहेब व बुद्ध की तस्वीर लगाकर ब्रहम्णी संस्कृति को बढ़ावा देने वाले मूलनिवासी बहुजन के स्वघोषित हितैषियों ने!
याद रहे हमारी लड़ाई न्याय, समता-स्वातंत्रता-बधुत्व पर आधारित तर्कवादी, वैग्यानिकता व मानवता से ओत-प्रोत एक नए समाज के सृजन के लिए है! और, ये समाजिक परिवर्तन जातिवादी नारीविरोधी मनुवादी सनातनी वैदिक ब्रहम्णी हिन्दू धर्म व संस्कृति के साथ समरसता में नहीं बल्कि इस जातिवादी नारीविरोधी मनुवादी सनातनी वैदिक ब्रहम्णी हिन्दू धर्म व संस्कृति के खिलाफ सशक्त विद्रोह व बगावत में निहित है! जहॉ तक रही बात ब्रहम्णी त्यौहारों को बधाई देने सम्बन्धी आपके पोस्टरों व बैनरों के संदर्भ में तो हमें ब्रहम्णी त्यौहारों के लिए आपकी शुभकामनाओं में स्वार्थ, अग्यानता, खोखली प्रसिद्ध व मूलनिवासी बहुजन समाज को गुमराह करना, मूलनिवासी बहुजन आन्दोलन को नुकसान पहुंचाना मात्र ही नजर आता है! हम ऐसे सभी पोस्टर व बैनर वालों से ये कहना चाहते आप सब कृपया स्पष्ट करे कि आपके ऐसे पोस्टर व बैनर बहुजन कल्याण के लिए है या फिर बहुजनों की गुलामी को बढ़ावा देने के लिए?
ये लोग अपने पोस्टरों व बैनरों से आप ब्रह्मणवादी व्यवस्था को पोषित करने वाले त्यौहारों की बधाई दे रहे हैं जबकि ये स्वघोषित मूलनिवासी बहुजन हितैषी संगठन मूलनिवासी बहुजन समाज के लिए कार्य करने का दावा ठोकते नही थकते है! ऐसे में आपके पोस्टरों व बैनरों का तीन ही मतलब हो सकता है!
एक, या तो ये लोग बाबा साहेब को समझ नहीं पाये है और आज भी ब्रहम्णी व्यवस्था की गुलामी में ही जी रहे हैं! दो, या तो फिर ये लोग अपनी प्रसिद्ध मात्र के लिए काम कर रहे हैं! तीन, या तो ये लोग छोटे-मोटे चुनाव के चक्कर में बाबा साहेब व अन्य मूलनिवासी बहुजन महापुरुषों के नाम पर बहुजनों को इक्ट्ठा कर सवर्णों के बीच अपनी पैठ बनाना चाहते हैं!
फिलहाल ऐसे लोग राजनैतिक हकों आदि की बातें जरूर करते हैं लेकिन मूलनिवासी बहुजन समाज के हकों व हितों के लिए ना तो ये राजनीति कर सकते हैं और ना ही सोच सकते हैं! और यदि ये लोग मूलनिवासी बहुजन समाज को जागरूक करने का दावा करते हैं तो हमारे निर्णय मे ये लोग मूलनिवासी बहुजन समाज को जागरूक करने के बजाय गुमराह ही करते हैं!
हमारा निजी विचार है कि सिर्फ बाबा साहेब और बुद्ध को पोस्टर पर छाप लेने मात्र से कोई बहुजन कल्याणकारी नही हो सकता है! बहुजन कल्याण के लिए बुद्ध, बाबा साहेब व अन्य सभी बहुजन महापुरुषों के विचारों को ना सिर्फ समझने की ही जरूरत है बल्कि उनके विचारों को सही ढंग से समाज के सामने रखने व समाज को समझाने की भी जरूरत है!
हमारे निर्णय मे बहुजन महापुरुषों के विचारों को समझना आसान है लेकिन मूलनिवासी बहुजन समाज को समझाना थोडा कठिन है क्योंकि आज भी मूलनिवासी बहुजन समाज ब्रहम्णी विचारधारा के ही गिरफ्त में जी रहा है! अतः निवेदन है कि यदि बहुजन साथियों को विचारधारा सही से समझा ना सके तो कृपया गुमराह भी ना करे...
धन्यवाद...
जय भीम....
रजनीकान्त इन्द्रा
इतिहास छात्र
इग्नू नई दिल्ली
जनवरी ०८, २०१८


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