Monday, February 26, 2018

ढोंगी प्रगतिशीलता


प्रिय मूलनिवासी बहुजन साथियों, 
कुछ ऐसे ब्रहम्ण व ब्रहम्णी रोगी जो अपने आप को प्रगतिशील दिखाना चाहते हैं या अपने प्रगतिशीलता के भ्रम में जी रहे हैं, उनका का कहना है कि ब्रहम्ण कोई जाति नहीं बल्कि एक अवस्था मात्र है! इस बात मे आयोटा मात्र सच्चाई नहीं है!
ये सच है कि ब्रहम्णी रोग से पीडित हर रोगी एक ब्रह्मण है! लेकिन ये और भी बड़ा सच है कि ब्रहम्णी हिन्दू व्यवस्था में जाति ही सबसे बड़ी एक मात्र सच्चाई है जिस पर नारीविरोधी जातिवादी मनुवादी सनातनी वैदिक ब्रहम्णी हिन्दू धर्म व संस्कृति (भारत की समस्त कुरीतियों, बुराइयों, अन्याय, पाखण्ड, गाय-गोबर-गौमूत्र आदि से ओत-प्रोत) की इमारत खड़ी है!
यदि ब्रहम्णों व ब्रहम्णी रोगियों की ये बात मान ले कि भारत के समाजिक पटल पर ब्रहम्ण जाति नहीं, सिर्फ और सिर्फ अवस्था मात्र है तो आज के समय में भी ब्रहम्ण समुदाय में पैदा हुआ हर ब्रह्मण इस ब्रहम्णी रोग से मुक्त क्यों नहीं होना चाहता है? यदि ब्रहम्ण एक अवस्था मात्र है तो ये ब्रहम्ण व ब्रहम्णी रोगी इस रोग से बाहर क्यों नहीं निकल पा रहे हैं जबकि सदियों से सारी मेरिट के ठेकेदार यही है?
आगे फिर इन्हीं ब्रहम्णों व ब्रहम्णी रोगियों का कहना है कि बुद्ध व बाबा साहेब मूर्तियों की स्थापना के विरोधी थे लेकिन मूलनिवासी बहुजन समाज ने तो बुद्ध व बाबा साहेब की ही मूर्तियाँ बना डाली है! ऐसे ब्रहम्णी रोगियों से यही कहना है कि बुद्ध व बाबा साहेब डॉ अम्बेडकर ब्रहम्णों की तरह मूर्ति पूजा कर्मकाण्ड, ढोंग, पाखण्ड, कुतर्क व अवैग्यानिकता के खिलाफ थे, तर्कवाद, वैग्यानिकता, समता-स्वातंत्रता-बधुत्व व मानवता का संदेश देते प्रेरणा स्रोत स्वरूपा बुद्ध, बाबा साहेब डॉ अम्बेडकर व अन्य सभी बहुजन महानायको व महानायिकाओं के मूर्तियों के नहीं!
सनद रहे, बुद्ध व बाबा साहेब के मूर्तियाँ ब्रहम्णी देवी-देवताओं की तरह नहीं है! ब्रहम्णी देवी-देवताओं की मूर्तियाँ पूजा-पाठ, अंधविश्वास, कर्मकाण्ड, ढोंग, पाखण्ड, कुतर्क व भारत में व्याप्त हर बुराई का कारण है! जबकि बुद्ध व बाबा साहेब की मूर्तियाँ तर्क, वैग्यानिकता, समता-स्वातंत्रता-बधुत्व व मानवता के प्रतीक व प्रेरणा स्रोत मात्र हैं!
उदाहरणार्थ- ब्रहम्णी मंदिरों में पूजा-पाठ होता है लेकिन लखनऊ के अम्बेडकर पार्क में बुद्ध व बाबा साहेब की मूर्तियों का नही, क्यों? क्योंकि ये मूलनिवासी बहुजन समाज के महानायकों व महानायिकाओं की मूर्तियाँ तर्क, वैग्यानिकता, समता-स्वातंत्रता-बधुत्व व मानवता के प्रतीक व प्रेरणा स्रोत मात्र है!
ब्रहम्णों व ब्रहम्णी रोगियों के ध्यान देने योग्य बात यह भी है कि उ. प्र. को ही नहीं बल्कि समूचे भारत को अम्बेडकरमय करने वाले मान्यवर साहेब काशीराम व मूलनिवासी महानायिका वीरांगना बहन कुमारी मायावती जी ने खुद ही कहा है कि बुद्ध, बाबा साहेब व अन्य मूलनिवासी बहुजन महापुरुषों की मूर्तियाँ तर्क, वैग्यानिकता, मानवता, समता-स्वातंत्रता-बधुत्व का प्रतीक व प्रेरणा स्रोत मात्र है!
ब्रहम्णव ब्रहम्णी रोगी सिर्फ और सिर्फ बदनाम करने के लिए बुद्ध व बाबा साहेब की मूर्ति के संदर्भ में ऐसा कहते हैं और आरोप लगाते हैं कि बुद्ध व बाबा साहेब मूर्तियों के खिलाफ थे लेकिन मूलनिवासी बहुजन समाज के बुद्ध व बाबा साहेब की मूर्तियाँ ही लगा डाली है!
जहॉ तक रही बात निर्वाण व मोक्ष की तो निर्वाण व मोक्ष में उतना ही अंतर है जितना कि धम्म व धर्म में, ग्यान व अग्यान में, मनुस्मृति व बाबा साहेब रचित भारत संविधान में! बुद्धिज्म को ब्रहम्णों ने षडयंत्र के तहत धर्म कहा है जबकि हर बुद्धिस्ट व अम्बेडकरवादी आज बुद्धिज्म को धम्म ही कहता है, धर्म नहीं!
बुद्धिज्म के दस्तावेजों आदि को नष्टकर ब्राह्मणों व ब्रहम्णी रोगियों ने बुद्धिज्म के मूल स्वरूप को ही बदल दिया है, विकृत कर दिया है! जिसके चलते सरल सहज बुद्धिज्म में पुरोहितवाद ने जन्म ले लिया! नतीजतन, सरल सहज बुद्धिज्म हीनयान, महायान जैसी शाखाओं में बंट गया! परिणाम स्वरुप, बुद्धिज्म कमजोर हुआ, ब्रहम्निज्म ने भारत को अपनी बुराइयों के आगोश में समेट लिया, लेकिन मिटा नही सका!
धन्यवाद...
जय भीम, जय भारत!
 
रजनीकान्त इन्द्रा, इतिहास छात्र, इग्नू नई दिल्ली
दिसम्बर २०, २०१७

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