Monday, July 25, 2016

दलितों पर बढ़ता अत्याचार व इसका निदान


हमारे प्यारे देशवासियों, 
आज़ादी के दशकों बीत जाने के बाद भी, भारत की सरजमीं पर जातिवादी हिंसा व हत्या रुकने का नाम नहीं ले रही है। दिन-प्रतिदिन दलितों पर हो रहा शारीरिक और मानसिक जुल्म व अत्याचार बढ़ता ही जा रहा है। मनुवादी ब्राह्मणी सवर्णों के अत्याचार और जुल्म से सारा भारत जल रहा है। भारत की जमीं धधक रही है , सारा आसमान जल रहा है। भारत की सरजमीं पर मानवता त्राहि-त्राहि कर रही है। मनुवादी वैदिक ब्राह्मणी गाँधी और इसके चेले कहते थे कि ह्रदय परिवर्तन करेगें लेकिन कहाँ हुआ हृदय परिवर्तन? दलितों का जख्म आज भी हरा है? दलित समाज आज भी उसी मनुवादी ब्राह्मणी चक्की में उसी तरह पिस रहा है जैसा कि पहले पिस रहा था। भारत महाशक्ति बनना चाहता है लेकिन क्या देश की तक़रीबन २०% आबादी को अपाहिज बनाकर भारत महाशक्ति बन सकता है?
साथियों,
अभी ताजा जारी आंकड़ों के मुताबिक, २०१३-२०१६ के दौरान, भारत में दलितों के प्रति हिंसक वारदातों और बलात्कार की निर्मम निकृष्ट और अमानवीय घटनाओं में बहुत तेज बढ़ोत्तरी हुई है| राष्ट्रिय अनुसूचित जाति आयोग द्वारा जारी आकड़ों के मुताबिक, देश के ६ फीसदी और राजस्थान राज्य की १७ फीसदी आबादी दलित समाज की है, लेकिन राजस्थान राज्य में होने वाले ५२ फीसदी से ६५ फीसदी तक के अपराध दलितों के ही खिलाफ होते है, क्यों ? उत्तर प्रदेश में भी वर्ष २०१३ से २०१५ के दौरान दलितों के उत्पीड़न के मामले ७०७८ से बढ़कर ८९४६ हो गए है, क्यों ? यदि हम बिहार राज्य की तरफ रूख करे तो हम पाते है कि बिहार में भी दलितों के प्रति अत्याचार के मामलों में अच्छी-खासी बढ़ोत्तरी हुई है। राष्ट्रिय अनुसूचित जाति आयोग की रिपोर्ट कहती है कि  वर्ष २०१३ से २०१५ के दौरान दलित उत्पीड़न के मामले ६७२१ से बढ़कर ७८९३ हो गए है जो बिहार राज्य में दर्ज कुल केस का ४०-४७% है। गुजरात की तो बात ही मत करों वहां पर हो रहे अत्याचार और भी घिनौने है। 
साथियों,
दलितों के खिलाफ हो रहे हिंसा और शोषण की ये बारदातें भारत के लिए कोई नई बात है। लेकिन इन आकड़ों में गौर करने वाली बात ये है ये सारे वो मामले है जो पुलिस स्टेशन में दर्ज हुए। देश की पुलिस का जो रवैया है उससे हम सब अच्छी तरह से वाकिफ है। दलितों के मामलों में तो पुलिस और भी बेरहम और बेदर्द हो जाती है। दलितों के मामलों में केस वही दर्ज होते है जिनमे हत्या, बलात्कार और अन्य तमाम प्रकार के अत्याचार और अनाचार अपनी पराकाष्ठा को पार कर जाते है। कहने का मतलब यह है कि राष्ट्रिय अनुसूचित जाति आयोग की रिपोर्ट सिर्फ वो आकड़े ही बता रही है जो पुलिस स्टेशन में दर्ज हुए है। लेकिन उन करोड़ों मामलों का क्या जो पुलिस ने दर्ज ही नहीं किये, मनुवादी राजनेताओ और ब्राह्मणी आतंकवादियों ने दर्ज नही होने दिए, आर्थिक कमजोरी और अज्ञानतावश जो मामले दलित समाज के लोग दर्ज नहीं करवा पाये। हमारे कहने का मतलब  यह हो कि दलितों के प्रति अत्याचार के सरकारी आकड़े जब इतने भयावह है तो हकीकत में हो रहे अत्याचारों की सूची कितनी खौफनाक होगी। आज भारत में, दलितों प्रति शोषण, भारत की परंपरा बन गयी है।  
साथियों,
दलितों के साथ हर पल, हर शै और हर जगह अत्याचार होता है। चाहे वो विद्यालय हो या फिर विश्वविद्यालय हो, सरकारी कार्यालय हो या फिर प्राइवेट जगत की कंपनिया व संस्थाए हो, गाँव हो या फिर शहर। हर जगह दलितों का शोषण हो रहा है। रोहित विमला की हत्या सांस्थानिक हत्या थी जिसमें बीजेपी के मनुवादी वैदिक ब्राह्मणी जातिवादी मंत्री शामिल थे। रोहित की क्या गलती थी? यही कि  रोहित दलितों, आदिवासियों और अन्य पिछड़ों की आवाज को उठने का प्रयास कर रहा था। क्या दबे-कुचले शोषित समाज की आवाज उठाना गुनाह है ? क्या अन्याय के खिलाफ आवाज बुलंद करना पाप है? क्या समतामूलक समाज के स्थापना की बात करना जुल्म है? लेकिन हमें बहुत अफ़सोस के साथ कहना पड़ रहा है कि यही मनुवादी वैदिक ब्राह्मणी समाज की कटु सच्चाई है। 
साथियों,
डेल्टा मेघवाल राजस्थान की एक बच्ची थी जिसके साथ मनुवादी ब्राह्मणी दरिंदों ने सामूहिक बलात्कार किया और उसकी हत्या कर दी, उसकी हत्या स्कूल के दायरे में की गई थी इस लिए ये बलात्कार और निर्मम हत्या भी सांस्थानिक बलात्कार और संस्थानिक हत्या का है। गौ-माँस खाने के नाम पर कर्नाटक और अन्य जगहों पर भी दलितों की हत्या व शोषण हो रहा है। दलित समाज की बेबस व लाचार महिलओं व् बच्चियों के साथ सामूहिक बलात्कार हो रहा है। राष्ट्रिय अनुसूचित जाति आयोग के आकड़ों के अनुसार भारत में हर रोज दो दलित महिलाओं के साथ बलात्कार होता है। यही नही, घोर जातिवादी राज्य हरियाणा में भगाना की चार बहनों के साथ बलात्कार होता है ? इन दिनों में बलात्कारियों के हौसले इतने बुलन्द है कि जिन लड़कियों के साथ बलात्कार किया उन्ही लड़कियों को बयान वापस लेने का दबाव बनाया गया। जब वो लड़कियाँ नहीं मानी तो उन्ही लोगो ने दुबारा बलात्कार किया। आखिर ये शोषण क्यों? सदियों से सताये हुये दलितो को अर्धनग्न अवस्था में गाड़ी से बांधकर लोहे के सरियों से पिटाई की जाती है। ये ज्यादती पुलिस के सामने होती है और पुलिस मूक दर्शक बनी रहती है। गो-रक्षको व मनुवादी वैदिक ब्राह्मणी हिन्दू आतंकवादियों के हौसले इतने बुलन्द थे की उन्होंने ही वीडियो बनाया और वायरल कर दिया। 
साथियों, 
बिहार के मुज्जफर नगर के एक दलित महिला मुखिया के पति की निर्मम पिटाई की गयी। उसके बाद उसके पति को पेशाब पिलाया गया। क्या यही इंसानियत है? लेकिन हां दोस्तों यही अत्याचार और अनाचार मनुवादी वैदिक ब्राह्मणी धर्म और हिन्दू समाज की घिनौनी सच्चाई है। एक घटना में मनुवादी वैदिक ब्राह्मणी हिन्दू आतंकवादियों द्वारा एक बच्ची को नंगाकर पिटाई की गई। उसके बाद उसके नंगे बदन के ऊपर पैर रखकर खुलेआम मनुवादी वैदिक ब्राह्मणी हिन्दू आतंकवादियों ने फोटो खिंचवाया और फोटो को इंटरनेट के जरिये वायरल कर दिया गया। साथियों, यही मनुवादी वैदिक ब्राह्मणी हिन्दू धर्म है। बाराबंकी में रात के वक्त जब सब सो रहे थे उस रात के वक्त कुछ सवर्णों ने दलित परिवार के घर में घुसकर पिटाई की और उसकी पत्नी को नंगा किया और उसकी तस्बीर का प्रिंटआउट निकलकर उसे पूरे गांव में चिपका दिया। लेकिन किसी नेता, मंत्री, स्वघोषित निष्पक्ष जज ने मामले का संज्ञान तक नहीं लिया। इन मनुवादी वैदिक ब्राह्मणी हिन्दू आतंकवादियों की हिम्मत इतनी बाद गयी कि उन्होंने एक ऐसी महिला के बारे में अपशब्द कहा जिनके शौर्य, प्रशासन क्षमता और सहसपूर्ण निर्णय व मर्दानगी के किस्से मर्दों में बड़े शौक से कहे जाते है, जिसके शासन का पूरा देश लोहा मानता है , जो चार बार भारत के सर्वाधिक आबादी वाले उत्तर प्रदेश की मुखिया रह चुकी है, जो कई बार राज्यसभा और लोकसभा की सदस्य रह चुकी है, जिन्हें दुनिया  प्यार से आयरन लेडी बहन कुमारी मायावती कहती है। 
साथियों,
दलितों के साथ हो रहे अत्याचार की कोई इंतहा नहीं है। दुनिया के इतिहास के पास भी ऐसा उदाहरण नहीं है जो दलित समाज की बेबसी, लाचारी और तकलीफ की बराबरी कर सके या फिर हमारे दुःख-दर्द और हमारी तकलीफों को बया  कर सके।  
साथियों,
हमारे दुखों का रहस्य, हमारे बेबसी और लाचारी का अंत, हमारे लोगों पर हो रहे अत्याचारों का तोड़ बाबा साहेब के उसी मन्त्र में निहित है जिसमे बाबा साहेब ने कहा है "राजनितिक सत्ता वह मास्टर चाभी है जिससे हम अपने लिए अवसर के सारे दरवाजे खोल सकते है।" मतलब यह है कि हमारे शोषण को ख़त्म करने का आधार - देश की शासन-प्रशासन व्यवस्था व देश के अन्य सभी क्षेत्रों के हर स्तर पर हमारे समुचित प्रनिधित्व, सक्रिय  भागीदारी और जाति व्यवस्था के उन्मूलन में निहित है। हमें देश के शासन, प्रशासन, संसद, कार्यपालिका, न्यायपालिका, विश्वविद्यालय, उद्योगालय, मीडिया, सिविल सोसाइटी और अन्य सभी क्षेत्रों में अपनी समुचित स्वप्रतिनिधित्व और सक्रिय भागीदारी को सुनिश्चित करना ही होगा। 
साथियों,
हम पूरी दृढ़ता से इस बात को एक बार फिर से दोहराते कहते है कि हमारी हर समस्या का समाधान व निदान सिर्फ और सिर्फ देश के हर क्षेत्र के हर स्तर पर समुचित स्वप्रतिनिधित्व और सक्रिय भागीदारी और जाति के उन्मूलन में ही निहित है जिसे आज़ादी इतने साल बाद भी इस देश की मनुवादी वैदिक ब्राह्मणी सरकार लागू नहीं कर पायी है। इसलिये देश के हर क्षेत्र के हर स्तर पर अपने समुचित स्वप्रतिनिधित्व और सक्रिय भागीदारी को लागू करवाने के लिए हमें एकजुट होकर आगे बढ़ना होगा। इसी में हमारी, हमारे समाज की और हमारे लोगों की आज़ादी निहित है। 
साथियों,
जब हमारे लोग देश के हर क्षेत्र के हर स्तर पर होगें तभी, हमारे अधिकार, हमारे समाज का स्वाभिमान, हमारे लोगों और हमारे समाज की मातृ शक्ति का सम्मान सुरक्षित होगा। हमारे समाज को स्वाभिमान कोई गैर नहीं दे सकता है, हमारे अधिकारों की रक्षा कोई गैर नहीं कर सकता है, हमारे लोगों का सम्मान कोई गैर नहीं लौट सकता है, हमारा समुचित प्रनिधित्व कोई और नहीं कर सकता है। ये सब हम सब को मिलकर ही करना है। हम सब को ही अपने सम्मान, स्वाभिमान और मूलभूत मानवाधिकार के लिए लड़ना होगा। हमें अपना प्रतिनिधित्व खुद करना होगा। ये लड़ाई हमारी है, इसलिए इस लड़ाई में अगुवाई भी हमें ही करनी होगी। ये महायुद्ध हमारा है इसलिए इस महायुद्ध का महासेनापति हमें ही बनना होगा।
जय भीम, जय भारत!!! 

रजनीकान्त इन्द्र 
सितम्बर २५, २०१६ 

Sunday, July 24, 2016

मनुवादी ब्राह्मणी भारतीय मीडिया - एक सम्मानित पेशा नहीं, एक घिनौना धंधा है।

हमारे प्यारे देशवासियों,
आज आज़ादी के इतने साल बीत जाने के बाद भी, भारत की समाजिक व्यवस्था में कोई अंतर नहीं आया है। देश के हर क्षेत्र के हर स्तर पर जातिवादी विषमता और गैर-बराबरी पूरी तरह से कायम है। देश में हो रहा हर अत्याचार कहीं ना कहीं जातिवाद का ही परिणाम है। इस देश में शोषण का आधार ही जाति है और जातिगत शोषण एक घिनौनी सच्चाई। यही ब्राह्मणों द्वारा किया गया एक मात्र अविष्कार है। जिससे देश को फायदा नहीं, सिर्फ और सिर्फ नुकसान हुआ है। 
साथियों,
आज देश में दलितों, आदिवासियों, अल्पसंख्यकों और अन्य पिछड़ों के प्रति अत्याचार एक परम्परा बन चुकी है। यह वही अत्याचार है जो सदियों से मनुवादी ब्राह्मणी विचारधारा के लोग करते आये है। लेकिन यदि इन सब अलग हटकर दलितों, आदिवासियों और पिछड़ों के आवाज की बात करे तो हम पाते है इनके ऊपर कितना भी अत्याचार हो लेकिन इनकी आवाज कभी अख़बारों, न्यूज चैनलों और पत्रिकाओं की सुर्ख़ियों में दिखाई नहीं देती है। इनके मुद्दों पर कभी प्राईम टाइम पर विचार-विमर्श नहीं होता है। सारा का सारा मीडिया तंत्र देश और मानव समाज  के महत्वपूर्ण मुद्दों को उठाने बजाय इन मुद्दों को दबाने में लग जाता है। आखिर ऐसा क्यों है ? 

 साथियों,
जातिगत मानसिकता, जातिगत भेदभाव और जातिगत शोषण में मामले में भारत की मीडिया कंपनियां भी कम नहीं है। ये मीडिया हॉउस मोर्डेन होने का ढोंग करते है। लेकिन इनकी रगों में भी बही ब्राह्मणवादी सोच अपनी जड़ जमाए वैठी है। सूट-बूट पहन कर टेलीविजन चैनलों में बैठकर राष्ट्रिय महत्त्व के मुद्दों को दबाकर अपने राजनितिक, पूंजीपतियों व अन्य मनुवादी वैदिक ब्राह्मणी आकाओं को बचाने के लिए सनसनीखेज बनाकर टीवी पर भौकने वाले या फिर अंग्रेजी में जोर-जोर चिल्लाकर अपने आपको बहुत समर्पित एंकर व पत्रकार साबित की कोशिस करने वाले, ये तथाकथित एंकर व पत्रकार अपने आपको मोर्डेन सोच वाला पत्रकार और एंकर समझते है। हकीकत में ये सारे लोग एंकर व पत्रकार कम, व्यापारी ज्यादा है, जनता की आवाज कम, मनुवादी ब्राह्मणों के दल्ले ज्यादा है। किसी के जीवन की निजता का ख्याल करे बगैर, दूसरे के फटे में झाककर खबर देने को ये पत्रकारिता और एंकरिंग समझते है। देश की भोली-भाली जनता को सच्चाई से परे रखकर, उनको गुमराह करके, ये देशभक्ति का दावा ठोकते है। भारत का मीडिया हमारे दलित, आदिवासी, अल्पसंख्यक और पिछड़े समाज के साथ ऐसा निर्मम, निकृष्ट और भेदभाव पूर्ण वर्ताव क्यों कर रहा है। भारत का मीडिया दलितों, आदिवासियों और पिछड़ों की आवाज उठाने के बजाय उनकी आवाज को दबाने का प्रयास क्यों कर रहा है ? आज यही सबसे बड़ा प्रश्न है। ये सोचने का विषय है कि अखबारों, न्यूज चैनलों, पत्र-पत्रिकाओं में जो दिखता है, क्या वो हकीकत में भारत की आवाज है या फिर कुछ मनुवादी ब्राह्मणों और मनुवादी ब्रह्मणीं विचारधारा से बीमार लोगों की।
 साथियों, 
आज का ये दौर सूचनाओं का दौर है। आज युद्ध का मंच के मीडिया माध्यमों तक सीमित होकर रह गया है। आज के इस दौर में जिसका मीडिया है, उसकी आवाज है; जिसकी आवाज है, उसका वर्चश्व है; जिसका वर्चश्व है, उसी की जीत है। जिसका उदाहरण 16वी लोकसभा चुनाव में बीजेपी की एक तरफा जीत है। हम सभी जानते है कि १६वी लोकसभा का चुनाव में तथाकथित मनुवादी ब्राह्मणी बीजेपी का पूर्ण बहुमत संवैधानिक डेमोक्रेसी का नहीं, बल्कि मीडियाक्रेसी का अदभुद परिणाम है। १६वी लोकसभा का चुनाव जमीनी स्तर पर नहीं, बल्कि न्यूज चैनलों के दफ्तरों से लड़ा गया था। १६वी लोकसभा के चुनाव में देश की जनता ने अपने  सूझ-बूझ के बजाय न्यूज चैनलों पर चिल्लाने वाले जातिवादी एंकरों के बहकावे में आकर वोट दिया है जिसका परिणाम आज देश की ८५ फीसदी से ज्यादा जनता भुगत रही है। गुलाम ब्राह्मणी नरेंद्र मोदी ने गुजरात मॉडल की बात करके आपके साथ एक बहुत बड़ा षड्यंत्र रचा था उस समय उस षड्यंत्र में इसी मीडिया ने मोदी का साथ दिया था जिसका परिणाम आज पूरा भारत भुगत रहा है। मनुवादी गुलाम मीडिया ने ब्राह्मणी बीजेपी का साथ देकर गुजरात मॉडल के षड्यंत्र को विकास मॉडल बनाकर बीजेपी जैसे कट्टर जातिवादी राजनितिक दल को सत्ता पर कब्ज़ा दिला दिया है। जबकि हम सब जानते है कि हिन्दू-मुस्लिम दंगा, सवर्ण-दलित दंगा और अन्य जातीय व धार्मिक उन्माद को राजनीति फायदे, सत्ता का सुख भोगने व देश में मनुवादी वैदिक ब्राह्मणी हिन्दू आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए, एक विशिष्ट प्रबंधकीय ढंग से वोट को एकत्र कर सत्ता पर कब्ज़ा करना ही गुजरात मॉडल है। लेकिन ब्राह्मण बनिया मीडिया ने अपने जमीर और पत्रकारिता की आत्मा को बेचकर गुजराती फासीवादी मॉडल को विकास का मॉडल बना दिया। यही आज के संवैधानिक व लोकतान्त्रिक दौर में मनुवादी वैदिक ब्राह्मणों के राज का रह्श्य है। 
साथियों,
हमारे मीडिया चैनल, अख़बार और पत्रिकाएं हमारे लिए सूचनाओं का साधन है। हमारे देश की भोली-भली जनता सही-गलत का फर्क किये बगैर न्यूज चैनलों पर चिल्लाने वाले एंकरों द्वारा बोले और संपादकों द्वारा लिखी गयी बातो को सच समझकर गुमराह हो जाती है। इसलिए आज देश की जनता को ये सोचना होगा कि क्या मीडिया हमारी आवाज है या फिर हमारी आवाज को दबाने मात्र का साधन, क्या मीडिया एक देश सेवा का माध्यम है या उच्च जातियों और पूजी-पतियों का गुलाम, न्यूज चैनलों में सूट-बूट पहनकर चिल्लाने वाला इंसान हकीकत में एंकर है या फिर मनुवादी ब्राह्मणी सोच वालों का दल्ला। ये निर्णय देश की जनता को करना है, ये फैसला हम और आपको करना है, हमारे ये फैसले ही हमे और हमारे देश को गुमराह होने से बचा सकते है। 
 साथियों,
यदि हम मीडिया में दलितों, आदिवासियों  पिछड़ों का प्रतिनिधित्व देखे तो यह लगभग शून्य है। आज सोचने का विषय यह है कि देश के पत्रकारिता के कालेजों में आरक्षण के आधार पर ही सही लेकिन जो दलित, आदिवासी और पिछड़े समाज के बच्चे पत्रकारिता की पढ़ाई करते है, पत्रकारिता सीखते है, आखिर पढाई के बाद वो सब कहाँ गायब हो जाते है, वो मीडिया में क्यों नही दिखाई देते है? इंजिनीरिंग और मेडिकल की तरह पत्रकारिता में भी आरक्षण है। इंजिनीरिंग और मेडिकल जैसे पेशे में दलित, आदिवासी और पिछड़े समाज के बच्चे दिखाई देते है लेकिन पत्रकारिता के क्षेत्र में क्यों नहीं ? आखिर ये ४९.५ फीसदी पत्रकार कहाँ खो जाते ? ये सब सोचने का विषय है। हमारी आवाजे दब क्यों जाती है , हमारी आवाजे दब जाती है या जानबूझकर दबाई जाती है। 
साथियों,
यदि हम ताजे उदाहरण के सन्दर्भ में देखें तो हम पाते है कि रोहित बेमुला की सांस्थानिक मामलें में भी इसी मीडिया ने सौतेला बर्ताव किया, क्यों? गुजरात में दलितों पर हो रहे अत्याचार पर मीडिया ने चुप्पी क्यों साध रखी है, क्यों? सदियों से सताये हुये दलितो को अर्धनग्न अवस्था में गाड़ी से बांधकर लोहे के सरियों से पिटाई की जाती है। ये अत्याचार पुलिस के सामने होता है। गोरक्षको  व मनुवादी वैदिक ब्राह्मणी हिन्दू आतंकवादियों के हौसले इतने बुलन्द थे कि उन्होंने ही वीडियो बनाया और वायरल कर दिया और मीडिया हमेशा की तरह शांत ही रही, क्यों? सदियों से सताये हुये दलितों में विद्रोह की भावना जाग गई। इस प्रतिकार में दलितों ने पूरे गुजरात में आन्दोलन कर दिया। सुरेन्द्र नगर में तो मरी गाय के तीन ट्रक भरकर कलेक्ट्रेट ऑफिस के सामने पटक दिया और गो-रक्षको व अन्य मनुवादी वैदिक ब्राह्मणी आतंकवादियों को ललकारा कि अब तुम अपनी माओं का दाह संस्कार खुद ही कर लो। यहाँ से आन्दोलन चल निकला लेकिन मनुवादी वैदिक ब्राह्मणी  मीडिया ने मुद्दे को कवर करने के बजाय दबाने का प्रयास किया, क्यों? घोर जातिवादी राज्य हरियाणा में भगाना की चार बहनों के साथ बलात्कार होता है मीडिया शांत और खामोश रहती है क्यों? इन दिनों में बलात्कारियों के हौसले इतने बुलन्द है कि जिन लड़कियों के साथ बलात्कार किया उन्ही लड़कियों को बयान वापस लेने का दबाव बनाया गया। जब वो लड़कियाँ नहीं मानी तो उन्ही लोगो ने दुबारा बलात्कार किया।  फिर भी मीडिया ने मुद्दे को नहीं उठाया, क्यों? बाबा साहेब का भवन गिराये जाने के विरोध में, महाराष्ट्र का आन्दोलन जिसमें लोग बड़े पैमाने पर लोग इकठ्ठा हुये। ब्राह्मणी मीडिया आखे बंद करके कोप भवन में चली गई, क्यों? बहन कुमारी मायावती जी पर बीजेपी नेता द्वारा अभद्र टिपण्णी के मुद्दे को मीडिया ने उस तरह से क्यों नहीं प्रस्तुत किया जिस तरह से मनुस्मृति ईरानी को डियर बोलने पर प्रस्तुत किया था, भारत का मानवाधिकार और महिला आयोग भी चुप है, क्यों? हद तो तब हो गई जब मीडिया ने बहन जी की बारे में प्रयोग किये गए अभद्र भाषा को देश के सामने लाने के बजाय बिकाऊ मीडिया अभद्र भाषा बोलने वाले बीजेपी उपाध्यक्ष की माँ, बीबी और बेटी के राजनितिक व षड्यंत्रकारी हरकतों और करतूतों को महिला सम्मान व अधिकार का राष्ट्रिय मुद्दा बना दिया। मीडिया ने बीजेपीनेता के असभ्य व्यवहार को देश के सामने लाने के बजाय बहन जी को ही कटघरे में खड़ा कर दिया। क्यों? सिर्फ और सिर्फ इसलिए कि आयरन लेडी बहन कुमारी मायावती जी एक दलित है। 
 साथियों,
एक महिला जिसकी शौर्य, प्रशासन क्षमता और सहसपूर्ण निर्णय व मर्दानगी के किस्से मर्दों में बड़े शौक से कहे जाते है, जिसके शासन का पूरा देश लोहा मानता है , जो चार बार भारत के सर्वाधिक आबादी वाले उत्तर प्रदेश की मुखिया रह चुकी है, जो कई बार राज्यसभा और लोकसभा की सदस्य रह चुकी है यदि उन आयरन लेडी बहन कुमारी मायावती जी के खिलाफ बोले गए अभद्र भाषा पर आज देश का मीडिया चुप, खामोश है, तो आप सोचे कि इस ब्राह्मणी मीडिया से हम देश के गरीब, दलित, आदिवासी और पिछड़ों की आवाज उठाने की उम्मीद कैसे कर सकते है? अत्याचार और अनाचार की इसे बड़ी मिशाल और क्या हो सकती है। हमारे ख्याल से मनुवादी ब्राह्मणी मीडिया को नंगा करने और इसके दोगलेपन को साबित करने का इससे बेहतर उदाहरण दूसरा नहीं हो सकता है। यही नहीं, यह भी सोचने का विषय है कि क्या कारण है कि अत्याचार और अनाचार के इस दौर में भी, बात-बात पर देश की राजव्यवस्था के हर अंग को निष्पक्ष और ईमानदारी का नसीहत देने वाले स्वघोषित निष्पक्ष जज भी चुप है, क्यों ? यह सब सोचने का विषय है। हमारे सामने आज भी वही लड़ाई और वही मुद्दा है जो बाबा साहेब के समय में था। आज भी हम उसी स्वाभिमान और सम्मान की लड़ाई लड़ रहे है जिसे बाबा साहेब जैसे महापुरुषों ने शुरू किया था। आज भी वही गैर-बराबरी हमारे शोषण का आधार है जो सदियों पहले था।
साथियों,
देश के हर चैनल, हर अख़बार और हर पत्रिका पर सिर्फ और सिर्फ ब्राह्मण बनियों का कब्ज़ा है।हमारे पास अपना कोई मीडिया नहीं है, हमारी आवाज को मीडिया वाले दबने का प्रयास करते है और सत्ता पर काबिज मनुवादी वैदिक ब्राह्मणी लोग इनका उपयों करते है। 
साथियों,
हमारी आवाज दबाई जा रही है, नकारी जा रही है तो इसका सिर्फ और सिर्फ एक ही कारण है वो है देश के मीडिया चैनलों में, अखबारों में और पत्र-पत्रिकाओं में हमारे समाज के लोगों का प्रतिनिधित्व जो कि लगभग शून्य के बराबर है। हमारे समाज के पत्रकारिता के बच्चों के अवसर का देश के अख़बारों, चैनलों और पत्रिकाओं में नकारा जाना, ये सब मनुवादी ब्राह्मणी विचारधारा के लोग जो समाज में अपनी जातिवादी वर्चश्व को कायम रखना चाहते है, ये सब उन्हीं मनुवादी ब्राह्मणी विचारधारा के लोगों द्वारा रचा गया एक घिनौना षड़यंत्र है। 
आज के पत्रकार पत्रकारिता के वसूल भूल चुके है। एक समय था जब पत्रकारिता एक सम्मानित पेश हुआ करता था लेकिन हमारे सामाजिक व्यवस्था में व्याप्त मनुवादी ब्राह्मणी सोच ने, हमारे देश की पत्रकारिता को अपने आगोश बुरी तरह जकड़ रखा है। आज पत्रकारिता एक सम्मानित पेश होने के बजाय एक धंधा बनकर रह गया। आज के पत्रकारों ने पत्रकारिता के वसूलों को धन उगाही का जरिया बना दिया है, देश की पत्रकारिता का ये गिरता स्तर देश को सिर्फ और सिर्फ बर्बाद करने का माध्यम बनकर रह गया है। पत्रकारिता का मतलब होता है - समाज और देश में हो रही घटनाओं को निष्पक्ष रूप से जनता और सरकार की निगाह में लाना जिससे समाज और देश में सकारात्मक सोच विकसित हो सके; मानवाधिकार की बात करे जिससे मानव समाज और उसके सतत विकास को एक नई दिशा मिल सके; लेकिन दुर्भाग्यवश, पत्रकारिता का ये सम्मानित पेश एक धंधा बनकर रह गया है। देश का पत्रकार वर्ग अपने पत्रकारिता के वसूलों से परें, देश की आवाज बनने के बजाय ये पत्रकार और एंकर मनुवादियों, ब्राह्मणों और भष्ट नेताओं, गुंडों, दरिंदों और जाहिलों दल्ला बनकर रह गए है। आज के पत्रकार, अख़बार, न्यूज चैनल एक मोटी रकम तो जरूर कमा लेते है लेकिन उनकी इस हरकत की वजह से भारत की पूरी की पूरी पत्रकारिता बदनाम हो रही है, इस बात से उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता है। आज की पत्रकारिता और पत्रकार देश के लिए नहीं बल्कि अपने आकाओं को खुश करने तक ही सीमित रह गए है।
साथियों, 

आज गौ-रक्षा के नाम पर दलितों के साथ जो सामूहिक निर्मम अत्याचार हो रहा। जिसे एक तरफ दुनिया का सबसे बड़ा मीडिया बीबीसी भी ताल ठोककर दिखा रहा है और इन अत्याचारी मनुवादी ब्राह्मणी आतंकवादियों को खुले आम गुंडा लिख रहा है तो वही दूसरी तरफ भारत की मीडिया पूरी तरह से खामोश है। भारत में बढ़ते मनुवादी ब्राह्मणी आतंकवाद को देश और दुनिया के सामने नंगा करने के बजाय मीडिया के धंधेबाज खुद नंगे होकर सो रहे है। क्या दलितों पर हो रहा निर्मम, निकृष्ट और अमानवीय अत्याचार देश का मामला नहीं है? क्या दलित महिलाओं और बच्चियों के साथ हो रहा व्यभिचार, अनाचार और अत्याचार महिला सम्मान और महिला अधिकार का राष्ट्रिय मुद्दा नहीं है ? क्या दलितों, आदिवासियों अल्पसख्यकों और पिछड़े वर्ग के लोग इंसान नहीं है? आखिर क्यों, मीडिया वर्ग दलितों, आदिवासियों अल्पसख्यकों और पिछड़ों के साथ इस तरह से सौतेला वर्ताव कर रहा है। ये सोचने का विषय है? 
साथियों,
सूचना के माध्यमों जैसे की अख़बारों, पत्रिकाओं और आज के ज़माने के न्यूज चैनलों द्वारा हमारी आवाज को नकारे जाने का ये कोई नया मामला नहीं है। इसका भी एक इतिहास है। यदि हम २०वी सदी के आन्दोलन की बात करें तो हम पाते है कि जब गाँधी, पटेल, नेहरू और तिलक जैसे मनुवादी ब्राह्मण, भारत के अपने मनुवादी वैदिक ब्राह्मणी व्यवस्था के राज के पुनर्स्थापना के लिए राजनितिक आज़ादी की बात कर रहे थे उसी दौर में मानवता मूर्ति बाबा साहेब डॉ आंबेडकर इंसानियत की आज़ादी के लिए महायुद्ध कर रहे थे। उस समय भी मनुवादी वैदिक ब्राह्मणी मीडिया ने दुनिया के सबसे बड़े महायुद्ध को आज़ाद कराने वाले मानव मसीहा को नेपत्थ में भेजने का पुरजोर प्रयास किया था। उस समय भी मीडिया के सारे भारतीय साधन इन्ही मनुवादी वैदिक ब्राह्मणी लोगों के हाथों था। उस समय भी पूँजी उन्ही मनुवादी वैदिक ब्राह्मणी लोगों की गिरफ्त में थी और आज भी है। उस समय भी इन मनुवादी वैदिक ब्राह्मणी लोगों ने हमारी आवाज को दबाने के पुरजोर प्रयास किया था और आज भी कर रहे है। उस वक्त भी मनुवादी वैदिक ब्राह्मणी लोगों ने हमारे साथ जातिगत अमानवीय व्यवहार करते थे और आज भी इस आज़ाद संवैधानिक लोकतान्त्रिक भारत में भी ये मनुवादी वैदिक ब्राह्मणी लोग हमारे साथ वही भेदभाव कर रहे है। उस समय भी हम लाचार थे और आज भी लगभग उसी स्थिति में है। मीडिया के माध्यम व इसके महत्त्व को जानकर ही बोधिसत्व ने मूकनायक, बहिष्कृत भारत, जनता,  समता और प्रबुद्ध भारत जैसे मीडिया के माध्यमों को विकसित किया। 
साथियों,
दुनिया द्वारा दिए गए इंटरनेट जैसे महान मीडिया के साधन द्वारा अपनी आवाज को उठाने का प्रयास करों। आज आपको अपनी आवाज उठाने के लिए किसी मनुवादी वैदिक ब्राह्मणी न्यूज चैनल, अख़बार और पत्र-पत्रिका का मुख ताकने की जरूरत नहीं है। हमें इन मनुवादी वैदिक ब्राह्मणी गुलाम मीडिया का मोहताज नहीं चाहिए। आप खुद ही मीडिया बन जाओ। अपनी आवाज को दुनिया के जर्रे-जर्रे तक पहुंचाओं। खुद जागो, लोगों को जगाओं। खुद जानें, लोगों को जनाओं। आप इंटरनेट का सदुपयोग करके अपनी आवाज को देश-दुनिया के कोने-कोने तक इतनी बुलंद कर दो कि आसमान का भी सीना फट जाए।   
याद रखों, हमारी एक आवाज और एक सोच भारत देश को नयी दिशा व दशा दे सकती है। इसलिए आप भी शासन-प्रशासन, संसद, न्यायालय, विश्वविद्यालय, उद्योगालय, मीडिया, सिविल सोसायटी व अन्य सभी क्षेत्र में अपने समुचित स्वप्रतिनिधित्व और सक्रिय भागीदारी को स्थापित करने के इस महायुद्ध में एक सिपाही बनों। उखाड़ फेकों मनुवादी वैदिक ब्राह्मणी विचार धारा को, नेस्तनाबूद कर दो ब्राह्मणी हिन्दू व्यवस्था को, स्थापित करों बेगमपुरा को। 
साथिओं,
हमारी लड़ाई किसी सत्ता पाने या सत्ता का सुख भोगने की लड़ाई नहीं है, हमारी लड़ाई है भारत एक समतामूलक समाज की स्थापना की; हमारी लड़ाई है अपने आत्मसम्मान को बचाने की; हमारी लड़ाई है, सामाजिक न्याय को स्थापित करने की; हमारी लड़ाई है बाबा साहेब के सपनों का भारत बनाने की।
साथिओं,
हमारी लड़ाई का सबसे खूबसूरत पहलू ये है कि हम लड़ रहे है- इंसानियत की रक्षा के लिए; हम लड़ रहे है सामाजिक न्याय के लिए; हम लड़ रहे है स्वतंत्रता; समता और बंधुत्व के लिए; इस लिए मानवता की रक्षा के इस युद्द का सबसे खूबसूरत और अटल है इसका परिणाम - मतलब की हमारे इस महाजंग का सिर्फ और सिर्फ एक ही परिणाम है - जीत, जीत और सिर्फ जीत। तो मेरे सिपाहियों, आगे आओ, कमर कस लो; आगे बढ़ों और उखाड़ फेकों गई-बराबरी और विषमता के मनुवादी वैदिक ब्राह्मणी विचारधारा को; नेस्तनाबूद कर दो मनुवादी वैदिक ब्राह्मणी व्यवस्था को। आगे बढ़ो और मदद करों, भारत में सामाजिक परिवर्तन की जंग लग लड़ रहे उन महायोद्धाओं योद्धाओं की जो बाबा साहेब के मिशन को आगे बढ़ाने का काम कर रहे है। भारत में समतामूलक समाज की स्थापना के लिये महासंघर्ष कर रहे है। याद रखो, बाबा साहेब के मिशन की पूर्ण सफलता में ही भारत व मानवता का का सुन्दर भविष्य सुरक्षित है। 
जय भीम, जय भारत!!!


रजनीकान्त इंद्रा 
सितम्बर २४, २०१६ 

Friday, July 22, 2016

हमारी समस्या, हमारा समाधान

हमारे प्यारे देशवासियों,  
आज जहाँ एक तरफ सारी दुनिया बोधिसत्व विश्वरत्न शिक्षा प्रतीक मानवता मूर्ति बाबा साहेब डॉ भीमराव रामजी अम्बेडकर की १२५वी जयंती मना रही है वही दूसरी तरफ आरएसएस के नेतृत्व वाली वर्चश्व पसन्द सामन्ती मनुवादी वैदिक ब्राह्मणी बीजेपी सरकार बाबा साहेब की जयंती मनाने का ढोंग कर रही है। जब से केंद्र की सत्ता में बीजेपी सरकार आयी है तब से दलितों, आदिवासियों, अल्पसंख्यकों और अन्य पिछड़ों के साथ हो रहे अत्याचार में सिर्फ और सिर्फ घातांकीय इजाफा ही हुआ है। फिर चाहे वो मामला दादरी के इकलाख की निर्मम हत्या का हो या हैदराबाद विश्वविद्यालय के रोहित वेमुला की सांस्थानिक हत्या का हो या पंसारे जैसे विद्वानों की हिन्दू धर्म रक्षों द्वारा निर्मम हत्या का हो या दलित और आदिवासी महिलाओं व बच्चियों के साथ सामूहिक बलात्कार का मामला हो या आयरन लेडी बहन कुमारी मायावती के खिलाफ असभ्य शब्द के इस्तेमाल का हो या फिर गुजरात मॉडल में दलितों के साथ अमानवीय व निकृष्ट व्यावहार का हो। ये सारे मामले पूरी तरह से पूर्व नियोजित और बीजेपी सरकार के मौखिक रूप से पूर्ण समर्थन का परिणाम है। ये सरकार हिन्दू रक्षा दल, गौ-रक्षा दल और ब्राह्मणी व्यवस्था की रक्षा करने वाले ब्राह्मणी आंतकवादी संगठनों और हिन्दू आतंकवादियों को ना सिर्फ सह दे रही है बल्कि पूरी तरह से उनको पाल-पोष भी रही है।  

आज हमें मौजूदा केंद्र सरकार व स्वघोषित निष्पक्ष जजों से भी हमें कोई उम्मीद दिखाई नहीं देती है क्योंकि सत्ता व कोर्ट के गलियारों से खुद संविधान की आत्मा के कार्यपालक संस्थाये और रक्षक कोर्ट कम, इसके पदों पर बैठा वर्चश्व पसन्द सामन्ती मनुवादी वैदिक ब्राह्मणी विचारधारा से बीमार इंसान अधिक बोलता है। टेलीविजन हो या प्रिंट मीडिया इन सब पर भी पूरी तरह इन्ही ब्राह्मण-बनियों का कब्ज़ा है। इसलिए बीजेपी सरकार इन सबका इस्तेमाल करके दलित आवाज को दबाने की असफल कोशिश कर रही है। हम धन्यवाद कहते है फेसबुक और व्हाट्सअप जैसे डिजिटल माध्यमों का जिसकी मदद से दलितों, आदिवासियों और पिछड़ों चीख आज पूरे देश में गूँज रही है।

हमारे प्यारे देशवासियों,
हमारे पास दुनिया का सर्वोत्तम संविधान है जिसमें देश की हर समस्या का तोड़ है फिर भी भारत का वो विकास नहीं हो पाया जो होना चाहिए था। संविधान में सुशासन के सारे प्रावधान मौजूद है लेकिन उन प्रावधानों को अमल में लाने के लिए हमारी सरकारों, अदालतों व  अन्य संस्थाओं द्वारा जो सक्रिय कोशिश होनी चाहिए थी वो पूरी तरह से नदारद है। उदाहरण के तौर पर, पूरा देश इस बात से परिचित है कि हकीकत में गुजरात मॉडल क्या है? गुजरात में बीजेपी की सत्ता का मूलभूत आधार क्या है ? 

हमारे प्यारे देशवासियों,
गुजरात में बीजेपी की सत्ता का मूलभूत आधार कुछ और नहीं  बल्कि - दलितों, आदिवासियों, अल्पसंख्यकों और अन्य पिछड़ों का नरसंहार व शोषण मात्र ही है। हिन्दू-मुस्लिम दंगा, सवर्ण-दलित दंगा और अन्य जातीय व धार्मिक उन्माद को राजनीति फायदे, सत्ता का सुख भोगने व देश में मनुवादी वैदिक ब्राह्मणी हिन्दू आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए एक विशिष्ट प्रबंधकीय ढंग से वोट को एकत्र कर सत्ता पर कब्ज़ा करना ही गुजरात मॉडल है। आज यही चिर परिचित वर्चश्व पसन्द सामन्ती मनुवादी वैदिक ब्राह्मणी हिन्दुवादी आरएसएस के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार का गुजरात मॉडल है। इसी गुजरात मॉडल का इस्तेमाल करके मौजूदा आरएसएस के नेतृत्व वाली वर्चश्व पसन्द सामन्ती मनुवादी वैदिक ब्राह्मणी बीजेपी सरकार केंद्र की सत्ता में आयी है जिसका परिणाम उबलते भारत में साफ-साफ दिखाई पड़ रहा है। इस सरकार ने संविधान की आत्मा को जो चोट पहुंचाई है उसका जख्म अब नासूर बन चुका है जिसका इलाज सिर्फ और सिर्फ अम्बेडकरवाद में निहित है। फ़िलहाल अब, आज देश की जनता के लिए सबसे अहम सवाल यह है कि जनता ने बीजेपी सरकार को सकल समावेशी विकास के लिए चुना था या फिर जुमलेबाजी, नरसंहार, बलात्कार, जातिवाद, भगवाकरण, हिन्दू आतंकवाद, फासीवाद और वर्चश्व पसन्द सामन्ती मनुवादी वैदिक ब्राह्मणी व्यवस्था को और मजबूत करने के लिए।

बीजेपी सरकार दलितों, आदिवासियों, अल्पसंख्यकों और अन्य पिछड़ों का कितना ख्याल करती है इसका सबूत बीजेपी सरकार के मंत्रिमंडल में दलितों, आदिवासियों, अल्पसंख्यकों और अन्य पिछड़ों के स्वप्रतिनिधित्व और उनकी भागीदारी से साफ-साफ मालूम हो जाती है। यही नहीं, देश के हर क्षेत्र के हर स्तर पर फिर चाहे वो शासन-प्रशासन हो, संसद हो, न्यायालय हो, विश्वविद्यालय हो, उद्योगालय हो, मीडिया हो, सिविल सोसायटी हो या ऐतिहासिक तथ्य, आरएसएस के नेतृत्व वाली मनुवादी वैदिक ब्राह्मणी बीजेपी सरकार ने इन सबका भगवाकरण करने की मुहीम छेड़ रखी है। जिसका मकसद देश के दलितों, आदिवासियों और अन्य पिछड़ों के समुचित स्वप्रतिनिधित्व, सक्रिय भागीदारी और उनके पनपते दलित आदिवासी साहित्य व इतिहास को नेस्तनाबूद करना मात्र ही है। वर्चश्व पसन्द सामन्ती मनुवादी वैदिक ब्राह्मणी बीजेपी सरकार का ये प्रयास, भारत के लिए सबसे बड़ा खतरा है जिसका सबसे बड़ा असर देश के विकास पर ही नहीं बल्कि देश की एकता और अखण्डता पर भी पड़ेगा।

हमारे प्यारे देशवासियों,
भारत की हर समस्या ब्राह्मणों द्वारा फैलाए गए एक ऐसे आतंकवाद में निहित है जिसे हम जाति कहते है। जहाँ एक तरफ बाबा साहेब जातिवाद के उन्मूलन की बात करते है वही दूसरी तरफ नीचे से लेकर ऊपर तक सत्ता के हर स्तर पर काबिज वर्चश्व पसन्द सामन्ती मनुवादी वैदिक ब्राह्मणी ब्राह्मण और इसके शिकार लोग हर कीमत पर जाति को बनाये रखना चाहते है। जातिवाद के इस आतंकवाद से भारत का कोई भी इन्सान भी इंसान अछूता नहीं है। इसीकारण भारत के सभी संवैधानिक संस्थाओं के अधिकतम संवैधानिक पदों पर बैठा इंसान संविधान की रक्षा कर संविधान के आत्मा की आवाज बनने के बजाय वर्चश्व पसन्द सामन्ती मनुवादी वैदिक ब्राह्मणी विचारधारा और व्यवस्था की आवाज बन बैठा है। नतीजा- देश के दलितों, आदिवासियों और पिछड़ों का शोषण। ये शोषण कहीं माओवाद के नाम पर, कहीं नक्सलवाद के नाम पर, कहीं गौ रक्षा के नाम पर, कहीं धर्म के नाम पर तो कहीं सिर्फ और सिर्फ समाज में अपनी उच्चता साबित करने के लिए जाति के नाम पर हो रहा अत्याचार, अनाचार और व्यभिचार अपनी पराकष्ठा को कब के पार कर चुका है !

जाति ही दलितों, आदिवासियों, और अन्य पिछड़ों के शारीरिक, मानसिक, राजनितिक, सामाजिक और आर्थिक शोषण का एक मात्र आधार है। इसलिए इस बीमारी का इलाज भी इसी के आधार पर ही होगा ना कि जुमलेबाजों की जुमलेबाजी से। भारत के हिन्दुओं की मानसिकता और उनकी वर्चश्व पसन्द सामन्ती मनुवादी वैदिक ब्राह्मणी विचारधारा व सामाजिक व्यवस्था से  बाबा साहेब अच्छी तरह वाकिफ थे। इसीलिए ही प्रो. अम्बेडकर ने अनुसूचित जातियों के लिए अल्पसंख्यकों की तरह अलग चुनाव क्षेत्र की माँग कर रहे थे और उनकी इस माँग को ब्रिटिश सरकार ने मान भी लिया था लेकिन वर्चश्व पसन्द साम्प्रदायिकतावादी सामन्ती मनुवादी वैदिक ब्राह्मणी जातिवादी विधारधारा से गाँधी ने दलितों की गुलामी को बरकरार रखने के लिए आमरण अनसन शुरू कर दिया। जीवन के इस जटिलतम अवसर पर मानवता मूर्ति डॉ आंबेडकर ने मानवता का एक अनोखा, अदभुद व खूबसूरत उदाहरण देते हुए जाति के पोषक व उपासक गाँधी को जीवनदान दिया। जिसका परिणाम पूना पैक्ट के रूप में परिलक्षित हुआ। जिसके परिणाम स्वरुप कालान्तर में दलितों, आदिवासियों व अन्य पिछड़े वर्ग को सरकारी नौकरियों, स्कूलों व विश्वविद्यालयों में समुचित स्वप्रतिनिधित्व व सक्रिय भागीदारी का (संविधान के अनुच्छेद १५, १६ व ३३५) में निहित) संवैधानिक, लोकतान्त्रिक व मूलभूत अधिकार मिला। साथ ही साथ, संविधान के अनुच्छेद ३३० व ३३२ के तहत राजनितिक आरक्षण मिला जिसके तहत दलितों व आदिवासियों को लोकसभा व विधानसभा की सीटों में आरक्षण प्राप्त हुआ जो सिर्फ दस साल के लिए था जिसे समीक्षा कर बढ़ाया जा सकता है। संविधान के इसी प्रावधान के तहत, हर दस साल में राजनीतक आरक्षण को संविधान संसोधन के जरिये के बढ़ाया जाता है। 

हमारे प्यारे देशवासियों,
ये कितना दुर्भागयपूर्ण है कि आज आजाद भारत में दलितों, आदिवासियों और पिछड़ों के समुचित स्वप्रतिनिधित्व व सक्रिय भागीदारी के संवैधानिक व लोकतान्त्रिक प्रावधानों को वर्चश्व पसन्द सामन्ती मनुवादी वैदिक ब्राह्मणी विचारधारा से बीमार लोगों ने वोट बैंक का जरिया बना कर रख दिया है। स्वघोषित विद्वानों, राजनेताओ और जजों ने स्वप्रतिनिधित्व व सक्रिय भागीदारी के इस बहुमूल्य प्रावधान को आरक्षण नाम देकर इसके आत्मा की निर्मम हत्या कर दी है। देश के राजनेताओं, कानून विदों और अन्य विद्वानों व अशिक्षित जनता द्वारा आरक्षण शब्द का जिस तरह से इस्तेमाल व व्याख्या किया गया है वो पूरी तरह से असंवैधानिक और गैर-लोकतान्त्रिक है।

यह जानना बहुत आवश्यक है कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद १५, १६ व ३३५ के तहत दलितों, आदिवासियों और पिछड़ों को दिए गए अधिकार किसी परीक्षा में मिले अंक या तथाकथित मेरिट से तय नहीं होती है। ये तय होती है - देश के हर क्षेत्र में हर स्तर पर दलितों, आदिवासियों और पिछड़ों के समुचित स्वप्रतिनिधित्व व सक्रिय भागीदारी से। जहाँ तक रही बात मेरिट की, तो मेरिट किसी भी इंसान के निजी व पारिवारिक जागरूकता, समाजिक पृष्टिभूमि, आर्थिक स्थिति और राजनैतिक परिवेश से तय होती है। जहाँ तक भारत में, मेरिट की बात की जाये तो भारत में सिर्फ इंसान ही जातियों व वर्णों में नहीं बटें है बल्कि पूरा का पूरा तंत्र ही जातियों व वर्णों में बटा हुआ है जिसमे भारत के शैक्षणिक संस्थान भी शामिल है। उदहारण स्वरुप - इंजीनिरिंग के क्षेत्र में आई आई टी, एन आई टी, राजकीय इंजीनिरिंग कालेज व पॉलीटेक्निक कालेज क्रमशः ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य व शुद्र है। भारत की सरकारें भी इन कालेजों को वित्त इसी क्रम में आवंटित करती है। इन कालेजों को स्वयत्ता भी इसी क्रम में मिली हुई है। जिसका नतीजा यह है कि - ऊर्ध्वाधर इंजीनिरिंग शिक्षण सस्थानों की सूचि में, ऊपर से नीचे की तरफ जाने पर तथाकथित मेरिट और गुणवत्ता गिरती जाती है। इसका मतलब ये नहीं है की ऊर्ध्वाधर इंजीनिरिंग शिक्षण सस्थानों की इस व्यवस्था में निचले क्रम पर आने वाले इंजीनिरिंग शिक्षण सस्थान और इसके बच्चे कम प्रतिभाशाली है और उच्च स्तर पर आने वाले इंजीनिरिंग शिक्षण सस्थान और इसके बच्चे ज्यादा प्रतिभाशाली है बल्कि ऊर्ध्वाधर इंजीनिरिंग शिक्षण सस्थानों की इस व्यवस्था का सम्बन्ध बच्चों की प्रतिभा से नहीं बल्कि ऊर्ध्वाधर इंजीनिरिंग शिक्षण सस्थानों की व्यवस्था को पाल रही सरकारों द्वारा दिया जाने वाला भेदभाव पूर्ण वित्तीय योगदान और इन कालेजों को मिली गैर-बराबरी पर आधारित स्वायत्ता है। ये व्यवस्था जान-बूझकर ब्राह्मणवादी सरकारों द्वारा बनाई गई है। फिर चाहे वो कांग्रेस की सरकार रही हो, भाजपा की सरकार रही हो या फिर किन अन्य की। यदि हम मण्डल कमीशन के लागू होने से पहले के परिदृश्य को देखे तो हम पाते है कि इन सभी ऊर्ध्वाधर इंजीनिरिंग शिक्षण सस्थानों की व्यवस्था में बच्चों का प्रतिनिधित्व ठीक उसी अनुपात में झलकता है जैसा कि हमारी मनुवादी ब्राह्मणी सामजिक व्यवस्था में दिखता है। उदाहरण स्वरुप- आई आई टी में स्वघोषित तथाकथित उच्च वर्ग ब्राह्मणों का प्रतिनिधित्व अधिक है, एन आई टी में क्षत्रियों व वैश्यों का तो राजकीय इंजीनिरिंग कालेज व पॉलीटेक्निक कालेजों में शुदों व दलितों का। यही ऊर्ध्वाधर व्यवस्था हमारे पूरे तंत्र में गैर-संवैधानिक और गैर-लोकतान्त्रिक तरीके से समाया हुआ है जिसमे मेरिट योग्यता के अनुसार नहीं, बल्कि इंसान के निजी व पारिवारिक जागरूकता, समाजिक पृष्टिभूमि, आर्थिक स्थिति और राजनैतिक परिवेश से तय होती है।

हमारे प्यारे देशवासियों,
भारतीय संविधान ने दलितों, आदिवासियों, और अन्य पिछड़ों को जो समुचित स्वप्रतिनिधित्व और सक्रिय भागीदारी का संवैधानिक और लोकतान्त्रिक मूलभूत अधिकार दिया है उस अधिकार को भारत के राजनेताओं ने वोट बैंक, तो न्यायालयों ने आरक्षण और स्वघोषित तथाकथित विद्वानों और अशिक्षित जनता ने रोजी रोटी का साधन बना दिया है। कुल मिलकर इस देश के लोगों ने समुचित स्वप्रतिनिधित्व और सक्रिय भागीदारी के संवैधानिक और लोकतान्त्रिक अधिकार को नरेगा जैसा गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम बनाकर रख दिया है। हमे ये कहते हुए बहुत दुःख हो रहा है कि संविधान की रक्षा और बेकिस स्ट्रक्चर की बात करने वाले भी समुचित स्वप्रतिनिधित्व और सक्रिय भागीदारी के संवैधानिक और लोकतान्त्रिक प्रावधान को देश की आम जनता तक ले जाने और उन्हें समझने में पूरी तरह से नाकाम रहे है।

दलितों, आदिवासियों और अन्य पिछड़ों पर हो रहा शारीरिक व मानसिक अत्याचार का निदान कुछ कानूनों में संसोधन कर दण्ड को और कठोर करने या फिर कुछ वित्तीय मदद में नहीं बल्कि देश के दलितों, आदिवासियों और पिछड़ों को देश के हर क्षेत्र के हर स्तर पर समुचित स्वप्रतिनिधित्व और सक्रिय भागीदारी को सुनिश्चित करने मात्र में निहित है। इसलिए यदि देश सचमुच में एक सशक्त भारत चाहता है तो दलितों, आदिवासियों और पिछड़ों लिए भारत के शासन-प्रशासन, संसद, न्यायालय, विश्वविद्यालय, उद्योगालय, मीडिया, सिविल सोसायटी व अन्य सभी क्षेत्रों में समुचित स्वप्रतिनिधित्व और सक्रिय भागीदारी के मूलभूत लोकतान्त्रिक व संवैधानिक को सुनिश्चित करना ही होगा

यदि हम, हकीकत में, भारत का सकल समावेशी विकास चाहते है तो उसका एक ही रास्ता है- समुचित स्वप्रतिनिधित्व और सक्रिय भागीदारी। जहाँ तक रही बात आर्थिक आधार पर आरक्षण की तो गरीबी हर देश के हर समाज में पाई जाती है लेकिन जब गरीबी इस हद तक बढ़ जाये कि लोग अपनी मूलभूत आवश्यकताओं को भी ना पूरा कर पाए तो वो गरीबी का नहीं बल्कि मानवाधिकारों के हनन का मामला बन जाता है। इस तरह के मामलों का निदान समुचित व कारगर आर्थिक नीतियों में निहित होती है ना कि आरक्षण में। इस लिए आर्थिक आधार पर आरक्षण की बात करना, स्वप्रतिनिधित्व और सक्रिय भागीदारी के आत्मा की निर्मम हत्या मात्र है। यदि हम इतिहास पर नजर डाले तो हम पते है कि आज यदि दलित, आदिवासी और पिछड़े समाज के लोग गरीब है तो उसकी वजह सदियों से हो रहा जातिवादी अत्याचार है लेकिन यदि स्वघोषित उच्च जातियों में यदि कोई गरीब है तो उसकी गरीबी का कारण उसका निठल्लापन और निकम्मापन है। इसलिए आर्थिक आधार पर आरक्षण की बात सोचना भी संवैधानिक और लोकतान्त्रिक तौर पर पूर्णतया गुनाह है।

हमारे प्यारे देशवासियों,
हमारे निर्णय के मुताबिक, किसी भी देश में रहने वाले हर समाज, हर तबके का शासन-प्रशासन, संसद, न्यायालय, विश्वविद्यालय, उद्योगालय, मीडिया, सिविल सोसायटी व अन्य सभी क्षेत्र में उसका समुचित स्वप्रतिनिधित्व और सक्रिय भागीदारी ही सही मायने में लोकतंत्र को परिभाषित करता है। इस लिहाज से, यदि हम भारत को देखे तो भारत में लोकतंत्र लगभग नदारद ही है। भारत में लोकतंत्र पांच साल में एक बार वोट करने तक ही सीमित कर दिया गया है। आजादी के इतने दशक बीत जाने के बाद भी, भारत की राजनीति गुंडों, दरिंदों, बलात्कारियों और जातिवादियों के विश्राम का घर बनकर रह गया है। भारत के हर क्षेत्र के हर स्तर पर सिर्फ १५ फीसदी  का ही कब्ज़ा है। जबकि देश का ८५ फीसदी जनमानस राजनितिक, सामजिक, शैक्षणिक और आर्थिक रूप से बेबस और लाचार है। इस तरह से देश के हर क्षेत्र के हर स्तर पर कुछ चन्द लोगों का कब्ज़ा ना सिर्फ गैर-कानूनी है बल्कि पूरी तरह से असंवैधानिक और अलोकतांत्रिक भी है। 

सशक्त, सक्षम और सक्रिय संविधान के बावजूद, भारतीय लोकतंत्र के शारीर में संविधान व लोकतंत्र  में निहित भारतीय संविधान और लोकतंत्र की आत्मा नहीं बल्कि मनुवादी ब्राह्मणी व्यवस्था की आत्मा का वास है। सशक्त, सक्षम और सक्रिय संविधान के बावजूद, भारतीय लोकतंत्र के शारीर में मनुवाद व ब्राह्मणवाद का वास यह साबित करता है कि भारत के संवैधानिक, गैर-संवैधानिक व अन्य सभी संस्थाओं के अधिकतम पदों बैठे लोगों की रगों में वही रूढ़िवादी अमानवीय वर्चश्व पसन्द सामन्ती मनुवादी वैदिक ब्राह्मणी विचारधारा ही  राज कर रही है। इसीलिए भारतीय संविधान के पिता डॉ आंबेडकर ने संविधान सभा के अंतिम भाषण में कहा है कि संविधान कितना भी बेहतरीन क्यों ना हो वह अन्ततः बुरा साबित होगा यदि उसे अमल में लाने वाले लोग बुरे होगें और संविधान कितना भी बुरा क्यों ना हो अन्ततः बेहतरीन साबित होगा यदि उसे अमल में लाने वाले लोग बेहतरीन होगें। आज देश की एक बड़ी आबादी, अपनी मूलभूत मानवीय जरूरतों से वंचित है तो सिर्फ और सिर्फ इसलिए कि संविधान को अमल में लाने वाले लोग बुरे है, वर्चश्व पसन्द है  सामन्ती है, मनुवादी है,  जातिवादी है, वैदिक ब्राह्मणी विचारधारा और इसकी व्यवस्था के रोगी है।

हमारे प्यारे देशवासियों,
इसी क्रम में यदि हम झारखण्ड, छत्तीसगढ़ और अन्य प्रांतों में फैले नक्सलवाद को देखें तो ये नक्सलवाद कुछ और नहीं बल्कि यहां के लोगों का देश के हर क्षेत्र के हर स्तर पर मतलब कि निचले स्तर से लेकर उच्च स्तर तक इनके समुचित प्रतिनिधित्व व सक्रिय भागीदारों को नकारे जाना ही है। नरेंद्र मोदी ने अपने छत्तीसगढ़ दौरे के दौरान दिये भाषण में कहा था कि वे वहां पर मूलभूत संरचना जैसे कि सड़क, अस्पताल, स्कूल इत्यादि विकसित करेंगे। यही सब भारत की पिछली सरकार भी कहती आयी है लेकिन जहाँ तक हमारा अपना अध्ययन है उसके मुताबिक हम इस निर्णय पर पहुंचते है कि मनुवादी सरकारों द्वारा उग्रवादी घोषित दलित, आदिवासी और पिछड़े लोग देश की सरकार से देश के हर क्षेत्र के हर स्तर पर अपना खुद का समुचित प्रतिनिधित्व व सक्रिय भागीदारी चाहती है। लेकिन उद्योगपतियों के पैसों से सत्ता का सुख भोग रही सत्ताधारी व विपक्षी राजनैतिक पार्टियां इन लोगों को इनका संवैधानिक और लोकतान्त्रिक अधिकार इस लिए नहीं देना चाहती है क्योकि इससे उद्योगपतियों, धन्ना सेठों को नुकसान होगा। ये सारी मनुवादी वैदिक ब्राह्मणी राजनितिक दल अपने पूँजीपति आकाओं को नाराज नहीं करना चाहते है। मनुवादी ब्राह्मणी राजनेताओं के पूँजीपति आकाओं की ख़ुशी राज, हमारे देश के दलितों, आदिवासिओं व पिछड़ों की बेबसी, लाचारी व इनके आंसुओं में छिपा है। हमारे निर्णय के मुताबिक यदि हमारी सरकारें इन मूलनिवासियों को देश के हर क्षेत्र के हर स्तर पर इनका अपना खुद का समुचित प्रतिनिधित्व व सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित कर दें जो कि इन लोगों का संवैधानिक और लोकतान्त्रिक अधिकार है तो ये लोग खुद ही धीरे-धीरे वो सारी सुविधाएं विकसित कर लेगें जिसका भ्रष्टाचार में लिप्त वर्चश्व पसन्द सामन्ती मनुवादी वैदिक ब्राह्मणी  सरकारें आज तक सिर्फ और सिर्फ वादा करती आयी है।


हमारे प्यारे देशवासियों,
आज भारत में बाबा साहेब को अपने की होड़ सी मची हुई है। कांग्रेस जिसने बाबा साहेब के इतिहास को मिटाने का पुरजोर प्रयास किया वो बाबा साहेब के गुण गए रही है। आरएसएस, विहिप जैसे हिन्दू आतंकवादी संगठन और बीजेपी जैसे कट्टर जातिवादी राजनैतिक दल भी बाबा साहेब को अपनाने के लिए पुरजोर कोशिश कर रहे है। लेकिन साथियों ध्यान देने योग्य बात ये कि इसी बीजेपी ने बाबा साहेब द्वारा स्थापित मुंबई स्थित बाबा साहेब द्वारा स्थापित बुद्धा प्रेस को, उस वक्त रात में ध्वस्त कर दिया गया जब हमारा दलित, आदिवासी और अन्य पिछड़ा समुदाय सो रहा था। बाबा साहेब के ये स्मारक हमारे लिए वैदिक ब्राह्मणी हिन्दुओं द्वारा बनाये गए मंदिरों जैसा अंधी आस्था का केंद्र नहीं बल्कि हमारा इतिहास और हमारे प्रेरणा के तमाम अम्बेडकरी प्रेरणा स्रोतों में से एक था। साथियों बसपा को छोड़कर सारे रजनैतिक दल अपने पोस्टरों व बैनरों पर बाबा साहेब डॉ आंबेडकर की तस्वीर लगाकर वोट बटोरने की फ़िराक में लगे हुए है। इन सभी भगवाधारी ब्राह्मणी हिन्दुओं का बाबा साहेब और उनके विचार से दूर-दूर तक कोई लेना-देना नहीं है। इन सबके लिए अम्बेडकरवाद का मतलब सिर्फ और सिर्फ इनके पोस्टरों और बैनरों पर बाबा साहेब डॉ आंबेडकर की तस्वीर लगाने तक ही सीमित है। इसलिए आप सब अपने लोकतान्त्रिक वोटिंग के अधिकार का प्रयोग बाबा साहेब की तस्वीर देखकर नहीं बल्कि अम्बेडकरवाद की विचारधारा को मानने वाले राजनैतिक दल को देखकर करना है। भारतीय बहुजनों, इसी में आपका का सकल समावेशी विकास निहित है। 

हमारे प्यारे देशवासियों,
हमारी समस्याओं का समाधान, देश के हर क्षेत्र के हर स्तर पर हमारे समुचित स्वप्रतिनिधित्व और और सक्रिय भागीदारी में निहित है। हमारे जीवन की दुश्वारियों को हमें ही ठीक करना होगा। किसी से हमें कोई उम्मीद नहीं रखनी चाहिये। हमारा एक मात्र शस्त्र और शास्त्र है बाबा साहेब द्वारा रचित भारतीय संविधान। हमें अपने समुचित स्वप्रतिनिधित्व और और सक्रिय भागीदारी के संवैधानिक और लोकतान्त्रिक मूलभूत अधिकार के जरिये अपनी समस्याओं का खुद ही हल ढूढ़ना होगा। क्योंकि यदि समस्या हमारी है तो समधान भी हमारा ही होगा। यही लोकतंत्र है और यही हमारे संविधान की आत्मा है। 


हमारे प्यारे देशवासियों, 
अंत में हम आपसे यही कहना चाहते है कि यदि सचमुच आप सब भारत का विकास चाहते हो, यदि आप अपना विकास चाहते हो, यदि आप अपना मूलभूत मानवाधिकार चाहते हो, यदि आप स्वाभिमान चाहते होयदि आप न्याय चाहते हो, यदि आप अपने बहन-बेटियों का सम्मान चाहते होयदि आप संविधान का राज चाहते होयदि आप लोकतंत्र चाहते हो, यदि आप देश के हर क्षेत्र के हर स्तर पर समुचित स्वप्रतिनिधित्व और सक्रिय भागीदारी चाहते हो तो धर्मान्धता से बाहर निकलों , मंदिरो का बहिष्कार करों , नकार दो ब्राह्मणों के भगवानों को, तिरस्कार करों ब्राह्मणी व्यवस्था का, तोड़ दो जाति की बेड़ियां, छोड़ दो गुलामी, जोड़ लो रिश्ता किताबों से, अपना लो अम्बेडकरवाद को। यही मानवता की आज़ादी का मार्ग है, यही मनुवादी ब्राह्मणी हिन्दू धर्म को नेस्तनबूद कर अम्बेडकरवाद से ओत-प्रोत, तर्कप्रधान, वैज्ञानिकता और मानवाधिकार पर आधारित एक बेहतरीन भारत के निर्माण का एक मात्र रास्ता है। 

जय भीम, जय भारत!!!



रजनीकान्त इन्द्रा 
सितम्बर २२, २०१६