Friday, October 30, 2009

शिक्षित गाँव, सशक्त भारत.....

भारत गांवों का देश है | अतः ग्रामीण आँचल के विकास के बाद ही भारत का विकास संभव है ,क्योकि सामान्य तौर पर पूँजीवाद में समूचे भारतवर्ष का विकास न होकर देश की सारी संपति कुछ ही लोगों तक सीमित होकर रह जाती है | इस तरह का असंतुलित पूँजीवाद ही देश में गरीबी को जन्म देती है | इसी कारण देश की चमक - दमक में गरीबों की झुग्गी झोपडी बाधक बनती है नतीजा - अतिकर्मण | ये गरीब बेचारे जाये तो कहाँ जाये ? पहेले से ही खाने को कुछ ढंग का था ही नहीं और अब घर से भी बेघर ! इसका नतीजा यह है - कि सरकार देश की गरीबी देखकर नहीं , देश के गरीबों को देख कर शर्म करती है । इससे सिर्फ और सिर्फ  नक्शल और आतंकवाद जैसी समस्याओं  का जन्म होता है , जो कि देश कि उन्नति , विकास और शांति में बाधक है | फ़िलहाल हमारी भारत सरकार इस  तरफ ध्यान तो दे रही है परन्तु जो कुछ भी हुआ है वह पर्याप्त नहीं है |

देश की पूँजी का संतुलित फैलाव सम्पूर्ण भारत पर होना चाहिए , जिससे कि ना तो कोई गरीब हो और ना ही गरीबी | इसके लिए भारत सरकार द्वारा भारतीय प्रशासन , भारतीय न्याय प्रणाली , भारतीय निर्वाचन और भारतीय अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रो में शीघ्र सुधार  की सख्त  जरूरत है ।

 जहाँ तक भारतीय प्रशासन की बात है , भारत सरकार को पुलिस सुधार करके , जनता को पुलिस उत्पीड़न से बचाना चाहिए । आज भी हमारी पुलिस गुलामी के दिनों में खीची गयी लकीरों पर चल रही है । देश की आजादी के इतने सालो बाद भी हमारी जनता , कानून और जनता के रक्षक पुलिस वालों के साथ ही सबसे ज्यादा असुरक्षित महसूस करती है । आज भी ग्रामीण भारत में , बिना रिश्वत के रिपोर्ट नहीं लिखी जाती है । पुलिस द्वारा जनता के उत्पीड़न की कहानी वैसे ही है जैसे कि अंग्रेजो द्वारा भारत की थी । यदि सरकार पुलिस में समुचित सुधार कर लेती है तो छोटे - मोटे मामलों के निपटारा निचले स्तर पर ही हो जायेगा , जो कि न्यायपालिका में बढ़ते फाइलो की संख्या पर अंकुश लगाने में मददगार साबित होगा ।

आगे , फिर भारत सरकार ने भूमि सुधर सम्बधी नियम और कानून तो बनाये लेकिन उन पर कितना अमल हुआ | इसका कोई उचित मापदंड और रिकार्ड नहीं है । हमारी प्रदेश सरकारों को सबसे पहले भूमि सुधार की तरफ ध्यान देना चाहिए क्योकि देश की दो - तिहाई से ज्यादा जनसँख्या आज भी गावों में ही निवास कराती है , जिसका मुख्य स्रोत कृषि ही है ।  उसर सुधर अधिनियम का पालन देश की मांग और कृषि अर्थव्यवस्था की  जरूरत के अनुरूप होना  चाहिए । भारत सरकार को ग्रामीण मंत्रालय के अतिरिक्त भारतीय ग्रामीण सुधार  आयोग जैसा एक सशक्त एवं प्रभावशाली आयोग का गठन करना चाहिए । जिससे की ग्रामीण योजनाओ की समुचित देख-रेख और सही संचालन हो सके | आयोग की कार्य प्रणाली और कार्य क्षेत्र  जिला , मंडल , प्रदेश , और राष्ट्रिय स्तर का होना चाहिए |

ग्रामीण भारत में शिक्षा व्यवस्था की बीमार हालत पर उचित ध्यान देते हुए , प्राइमरी , माधयमिक और उच्चतर माध्यमिक शिक्षा व्यवस्था पर तत्काल ध्यान और सुधार  की सख्त आवश्यकता है । शिक्षा का अधिकार कानून एक सराहनीय कदम है परन्तु शिक्षकों कि कमी , स्कूल और विद्यालयों की संख्या देश की जरूरत के अनुरूप बनायीं जानी  चाहिए । 

न्याय पालिका में खेती से सम्बंधित मामलों की सुनवाई एक निश्चित समय सीमा के अंदर ही पूरी होनी चाहिए जिससे कि हमारा किसान कचहरी के चक्कर लगाने के बजाय अपने कृषि कार्यो पर उचित ध्यान दे सके । हमारी न्याय प्रणाली को सस्ती बनाया जाना चाहिए , जिससे किसान अपनी कमाई का हिस्सा अपने विकास में लगाये , ना कि वकीलों की जेब भरने में | इसके साथ ही देश की  न्याय पालिका में फैले भ्रष्टाचार से हम सब अच्छी तरह से वाकिफ है । आज तक किसी भी सरकार  ने इस दिशा में कोई भी ठोस कदम नहीं उठाया है  जो कि आज  देश के हर तबके  और अर्थव्यवस्था के हर क्षेत्र की मांग है | आज समय की मांग है कि देश कि न्याय व्यवस्था में सुधर कर , न्याय पालिका के भ्रस्टाचार को ख़त्म किया जाये । निचले स्तर पर  जजों की जबाबदेही और पारदर्शी कार्यप्रणाली आज देश के बेहतर प्रशासन के लिए जरूरी है ।

जहाँ तक भारतीय अर्थव्यस्था की बात है देश की बढती  जनसँख्या को देखते हुए रोजगार के ज्यादा से ज्यादा अवसर उपलब्ध जाये अर्थात जिसकी जैसी काबिलियत उसको वैसी नौकरी | प्राइवेट क्षेत्र में ग्रामीणों को वरीयता एक बेहतर विकल्प हो सकता है । १९९१ के बाद का अर्थव्यवस्था में सुधर डॉक्टर मनमोहन सिंह द्वारा किया गया सराहनीय कदम था । देश में अभी और आर्थिक सुधार  की जरूरत है । हमारी संसद को देश के हित में सोचते हुए आर्थिक सुधार के लिए बेहतर कदम उठाने चाहिए ।

        चुनाव आयोग द्वारा निगेटिव वोटिंग और नोटा को लागू करने का सशक्त प्रयास , राजनीत के अपराधीकरण को रोकने का एक बेहतर विकल्प हो सकता है । चुनाव सुधार से देश को ऐसे प्रतिनिधि मिलेगें जो को वास्तव में जनता के प्रतिनिधि होगे ना कि किसी दिखावे के । इस लिए हमारे देश को चुनाव में सुधार की सख्त जरूरत है ।

कुल मिलाकर , भारत सरकार को देश के हर क्षेत्र में ध्यान देना चाहिए लेकिन देश उचित विकाश तभी सम्भव है जब हमारा ग्रामीण भारत विकास करेगा ।
शिक्षित गाँव , शिक्षित भारत |
सशक्त गाँव , सशक्त भारत ||



                                        ~ रजनी कान्त इन्द्रा
Oct. 09 , 2009

Wednesday, October 28, 2009

जीवन भर का बलात्कार


हम आप सब को शारीरिक शोषण के बारे में बताना चाहते  है | वैसे तो शारीरिक शोषण से सब लोग परिचित है | शारीरिक शोषण के बारे में आप सब ने अच्छी तरह से सुने और देखें है | हमारा समाज भारतीय रीति-रिवाजों पर टिका हुआ है | भारतीय संस्कृति विश्व की सर्वश्रेष्ठ एवं महानतम संस्कृति है , परन्तु फिर भी इसमे बहुत सारी अमानवीय , कठोर और निर्मम बुराइयाँ है | इन बुराइयों को पहचानने की सख्त जरूरत है , नहीं तो दिन-प्रतिदिन मानवता और इंसानियत की हत्या होती रहेगी | शारीरिक शोषण के कई रूप हो सकते है परन्तु उनमे से एक सबसे घिनौना रूप है बलात्कार |  आप सब जानते है की बलात्कार की प्रक्रिया में दो पक्ष होते है |  १. बलात्कार करने वाला ( प्रायः पुरुष वर्ग ) २. जिसका बलात्कार होता है ( प्रायः स्त्री वर्ग ) 

सामान्य बलात्कार से  आप सब बहुत अच्छी तरह से वाकिफ है | इस तरह के बलात्कार में बलात्कारी सिर्फ और सिर्फ केवल एक बार ही बलात्कार करता है | इसके बाद क्या होता है आप सब अच्छी तरह से जानते है जैसे की पंचायत , पोलिस , मेडिकल और कोर्ट के चक्कर | इसमे बलात्कारी को बिना जमानत के  सख्त से सख्त  सजा होती है , और कभी-कभी फांसी भी हो जाती है | ये सबसे परिचित और सामान्य बलात्कार है , परन्तु इसी बलात्कार का एक और घिनौना , कठोर और सबसे निर्मम रूप है जिसमे शारीरिक और मानसिक बलात्कार होता है , भावनावों का बलात्कार होता है | यही बलात्कार का सबसे घिनौना , कुरूप , निर्दयी और निर्मम रूप है |  

इस तरह के बलात्कार में तीन पक्ष होते है...  १. बलात्कार करने वाला ( प्रायः पुरुष वर्ग ) २. जिसका बलात्कार होता है ( प्रायः स्त्री वर्ग ) ३. बलात्कार करवाने वाले ( प्रायः माता-पिता और आप यानि कि ये समाज ) । बलात्कार के इस रूप को जानने से पहले आप को बलात्कार को जानना होगा | बलात्कार क्या होता है ? जब कोई पुरुष किसी स्त्री के साथ उसकी सहमति के बगैर जबरदस्ती शारीरिक सम्बन्ध बनाता है , तो ये बलात्कार कहलाता है | इस परिभाषा में " सहमति के बगैर " शब्द का ही सबसे ज्यादा महत्त्व है | बलात्कार कब होता है ? जब शारीरिक सम्बन्ध सहमति के बगैर बनाया जाए |  बलात्कार कब नहीं होता है ? जब स्त्री-पुरुष एक-दुसरे कि सहमति से शारीरिक सम्बन्ध बनाते है , तो यह बलात्कार नहीं होता है |  जिस बलात्कार को आप सब जानते है , उसमे प्रायः सिर्फ एक ही अपराधी होता है तथा एक निर्दोष होता है | 

लेकिन हम , आप को एक ऐसे बलात्कार के बारे में बातें जा जा रहे है । जिसमे दो अपराधी है तथा एक निर्दोष |   अपराधी कौन-कौन है ? बलात्कारी और बलात्कार करवाने वाले यानि कि माता-पिता और ये समाज |  निर्दोष कौन हैं ? जिसका बलात्कार होता है |  जहाँ हम समझते है .... आज हमारे समाज में नब्बे फीसदी से अधिक बेटियों कि शादी उनकी मर्जी के बगैर होती । घर कि इज्जत और सामाजिक मान मर्यादा के नाम पर उनकी और उनके प्रेम के अरमानो कि बली चढाई जाती है । ये किस्से पूरे भारत में बड़े ही सहज है ।  इस बलात्कार में बलात्कारी को कोई सजा ना होकर , हमारा समाज उसकी इज्जत करता है | ये कहाँ का न्याय है कि एक बलात्कारी को सजा तो दूसरे की आव भगत कि जाती है ?  यही है बलात्कार का सबसे घिनौना और सबसे निर्मम रूप जहाँ पर झूठे इज्जत के लिए माता-पिता अपने बेटी का हर पल , हर दिन यानि कि पूरी उम्र बेटी का बलात्कार करवाते है और इस बलात्कार में बेटी कि सहायता के लिए कोई भी सामने नहीं आता है | यहाँ पर बेटी पूरी तरह से असहाय रहती है | यही है बलात्कार का सबसे घिनौना और निर्मम रूप | ये सदा - सदा मानवता के खिलाफ है | अपने मन मर्जी से बेटी कि शादी करके आप सब अपना बोझ हल्का करते है | इस तरह की शादी में आप सब बेटी कि सौदेबाजी करते है | इस सौदेबाजी में , माँ-बाप द्वारा बेटी एक ऐसे कोठे पर बिठा दी जाती है जहाँ पर उसका एक ही ग्राहक है , उसका कथित पति । ये पति उसके जिंदगी कि ठेकेदारी लेता है और पूरी उम्र उसका बलात्कार करता है । 

आप ये नहीं सोचते है कि जिंदगी तो बेटी की है  , जीना बेटी को है , तो हम बेटी के अधिकारों का अतिक्रमण क्यों करे | लेकिन फिर भी आप सब करते है | यह नहीं सोचते है कि सही क्या है , गलत क्या है ? इस तरह के माता-पिता ही अपनी मान मर्यादा के नाम पर अपनी ही बेटी को एक कोठे पर बिठाकर उसका बलात्कार करवाते है | ऐसे माता-पिता और लोग , समाज के लिए कलंक है | ऐसे माता-पिता और समाज के लोग जो अपनी बेटी का खुद दिन-प्रतिदिन बलात्कार करवाते है , वह तो समाज के उन दरिंदों से भी गए गुजरे है जिनकी वे आए दिन आलोचना करते रहते है

बेटी को उसका अधिकार दो |