Sunday, July 29, 2018

जय भीम...नमों बुद्धाय...?

प्रिय बहुजन साथियों, 
आज हम जो कुछ भी हैं वो सब बाबा साहब की बदौलत है! आज हम अपनी बात रख सकते हैं, आज हम अपनी आवाज उठा सकते हैं, आज हमारा विरोधी, हमारा शोषण करने वाला ब्राह्मण-सवर्ण अपराधी समाज व उनके लोग यदि आज हमें तनिक भी स्वीकार कर पा रहे हैं तो यह सब बाबा साहब की बदौलत है! यदि आज हम और आप पहले से बेहतर एक जिंदगी जी पा रहे हैं, अच्छे कपड़े पहन पा रहे हैं, ढंग से खाने को मिल रहा है, हम एक बेहतर तालीम हासिल कर पा रहे हैं, और आज कार्यपालिका न्यायपालिका और विधायिका के गलियारों में यदि हम चहल-कदमी कर पा रहे हैं तो यह सब बोधिसत्व विश्वरत्न शिक्षा प्रतीक मानवता मूर्ति बाबा साहब डॉक्टर बी आर अंबेडकर के अथक संघर्षों का परिणाम मात्र है! इसलिए व्यक्तिगत तौर पर हमारा मानना है कि हम सभी को अभिवादन के लिए दूसरों (खासकर अपराधी जाति) के शब्दों का इस्तेमाल करने के बजाए अपने बहुजन समाज की परंपरा, अपने बहुजन समाज के रीति-रिवाज व अपने बहुजन समाज की अस्मिता को स्थापित करने के लिए, हमें अपने दिन की शुरुआत "जयभीम, जय भारत, नमो बुद्धाय" जैसे प्रबल प्रखर ओजस्वी शक्तिशाली शिक्षादायक मानवता प्रतीक ऩ्याय प्रेरक और सुख-समृद्धि व शान्ति प्रतीक शब्दों से करनी चाहिए!
जय भीम... 
नमों बुद्धाय...
 रजनीकान्त इन्द्रा, इतिहास छात्र, इग्नू नई दिल्ली


बहुजन मूर्तियों के मायने और जरूरत


प्रिय बहुजन साथियों,
हमारे विचार से, हम सब बहुजन साथियों को मिलकर हर गांव, हर गली-मोहल्ले में बोधिसत्व विश्वरत्न शिक्षा प्रतीक मानवता मूर्ति बाबा साहब डॉक्टर बी आर अंबेडकर की शिक्षादायी, मानवता प्रतीक प्रेरणादायक मूर्तियों की तरह ही बहुजन समाज के अन्य सभी महानायकों व महानायिकाओं की मूर्तियां को स्थापित किया जाए! ये मूर्तियां किसी किसी पूजा-पाठ या ब्रहम्णी कर्मकाण्ड के लिए नहीं है बल्कि ये मूर्तियां हमारे समाज को ब्रहम्णवाद, ब्रहम्णी कर्मकाण्ड रीति-रिवाजों, परम्पराओं और तीज-त्यौहारों से दूर कर हमारे समाज को हमारे समाज का इतिहास इतिहास बताती हैं, और ये मूर्तियाँ हमारे 85% आबादी वाले बहुजन समाज को आगे ले जाने वाली विचारधारा को स्थापित करती हैं, मजबूत करती हैं, हमें प्रेरणा देतीे हैं, हमें लड़ने का साहस देती हैं, हमें हमारे महानायकों व महानायिकाओं से मिलवाती हैं, उनके जीवनदर्शन से हमें अवगत कराती हैं, हमें बताती हैं कि अपराधी जाति के लोगों से किस तरह निपटना है! ये मूर्तियां हमें यह भी बताती हैं कि ब्राह्मण-सवर्ण समाज, जो कि अपराधी जाति हैं, के लोगों ने किस तरह हमारे लोगों पर अत्याचार किया है, किस तरह ब्राह्मण-सवर्ण अपराधी जाति के लोगों ने मिलकर सकल बहुजन समाज पर सदियों से गुलाम बनाये रखा था! ये हमारा इतिहास ही हमारे ऊपर हुए अत्याचार की हमें और हमारे लोगों को जानकारी देता है, एक प्रेरणा के तौर पर एक प्रतिक्रांति के लिए तैयार करता है! हमारी मुक्ति सामाजिक क्रांति से ही होगा! जब तक इस देश में सामाजिक बदलाव नहीं हो जाता है, जब तक इस देश में समतामूलक संस्कृति की स्थापना नहीं हो जाती है तब तक इस देश में किसी भी तरह से मानवता सुरक्षित नहीं रह सकती है! ऐसे में हमारा मानना है कि बाबा साहब डॉक्टर भीमराव रामजी आंबेडकर के साथ-साथ तथागत गौतम बुद्ध, ई वी रामास्वामी पेरियार नायकर, नारायणा गुरु, संत गाडगे, बिरसा मुंडा, छत्रपति शाहू जी महाराज, तिलकामांझी, मान्यवर कांशी राम साहब, बहन कुमारी मायावती जी, ललई यादव, झलकारीबाई, फूलन देवी और उदा देवी पासी जैसी तमाम बहुजन वीरांगनाओं की मूर्तियों को गांव-गांव, मोहल्ले-मोहल्ले प्रेरणा स्रोत के तौर पर स्थापित किया जाए और लोगों को इन मूर्तियों के जरिए बहुजन समाज के समतामूलक आंदोलन के लिए जागरूक किया जाय, और भारत में दुनियां के सबसे बड़े सामाजिक परिवर्तन की महाक्रांति के लिए तैयार किया जाए!
नमो बुद्धाय... 
जय भीम,जय भारत...
 रजनीकान्त इन्द्रा, इतिहास छात्र, इग्नू नई दिल्ली



Sunday, July 22, 2018

बुद्ध-अम्बेडकर का व्यापार


"भारत में बुद्धिज्म के पतन का एक मुख्य कारण भंतों व बौद्धाचार्यों का परोहितपन भी है जिसे बहुजन समाज सदियों से नजरअंदाज करता आया है! जब तक भंते पुरोहित बनकर नामकरण, विवाह जैसे सभी ब्रहम्णी संस्कार करवाते रहेगें तब तक ब्रहम्निज्म मजबूत होता रहेगा!

सामान्यत: हर ब्राह्मणी संस्कार को जीवन की जरूरत बताते हैं! यह भंते व बौद्धाचार्य ही हैं जो ब्रहम्णी संस्कारों को अंजाम देने के लिए ब्रहम्णों की तरह घण्टों संस्कृत के बजाय पालि भाषा में ब्रम्हा-विष्णु-महेश के बजाय बुद्ध व बाबा साहब की प्रतिमा रखकर बुद्ध व बाबा साहब को सरेआम बेचते हैं!


कभी गौर कीजिए तो आप पायेगें कि भंते-बौद्धाचार्य व उनके भक्त वही करते हैं जो ब्रहम्ण व उसके मानसिक गुलाम यजमान! आज भारत में भंते व बौद्धाचार्य बुद्ध को नकारकर बुद्ध के नाम पर बुद्ध-धम्म के बजाय ब्राह्मणों की तरह अपने धम्म को ही अपना धंधा बनाकर बहुजनों को बुद्ध के नाम पर गुमराह करते आ रहे हैं! आए दिन भंते व बौद्ध आचार्य वही करते नजर आ रहे हैं जो ब्राह्मण करता रहा है! ऐसे में बुद्ध धर्म का पतन होना कोई अचरज की बात नहीं है!

हमारा स्पष्ट मानना है कि बुद्ध-अम्बेडकरी विचारधारा मानव के जीवन को आसान बनाने के लिए है, ना कि उनके जीवन को अंधविश्वास, भक्ति, ढोंग-पाखण्ड, अमानवीय, अवैग्यानिक रीति-रीवाजों व परम्पराओं में उलझाने के लिए!

आप गौर कीजिए आप पायेगें कि जिस तरह संस्कृत के श्लोक का अर्थ बताये बगैर ब्रहम्ण सारे संस्कार करवाता आ रहा है, ठीक उसी तरह से ये भंते व बौद्धाचार्य लोग सभी ब्रहम्णी संस्कारों को पालि भाषा में पढकर करवाते हैं! मतलब कि इन भंतों व बौद्धाचार्य लोगों ने चोला जरूर बदल लिया है लेकिन ये सब ब्रहम्णी रोग से ग्रसित रोगी मात्र ही है जो बहुजनों के लिए ब्रहम्णी रोग का वायरस बनकर बहुजनों को भी ब्रहम्णी रोग से संक्रमित कर रहे हैं, या यूं कहें कि संक्रमित कर चुके हैं!

हमारे विचार से, बुद्ध-अम्बेडकर एक दार्शनिक हैं, वैग्यानिक हैं! उनको पढने के लिए, जानने के लिए, उनके दर्शन के प्रचार-प्रसार के लिए किसी भी अंधविश्वास, पूजा-पाठ, अवैग्यानिक कर्मकाण्डों व रीति-रिवाजों की कोई जरूरत नहीं है!

जरा सोचिये, क्या भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान, जीव विज्ञान, गणित आदि को पढ़ने के लिए किसी अंधविश्वास, ढोंग-पाखंड, कर्मकांड, रीत रिवाज, धूप अगरबत्ती पूजा पाठ आदि की जरूरत होती है? यदि नहीं, तो फिर बुद्ध अंबेडकर के विज्ञान व दर्शन को पढ़ने, जानने व समझने के लिए और बुद्धिज्म के ज्ञान को मानव समाज तक पहुंचाने के लिए भंते-बौद्धाचार्य व समाज के लोग ढोंग-पाखंड, अंधविश्वास पर आधारित रीति-रिवाज, पूजा पाठ, धूप-अगरबत्ती आदि का सहारा क्यों लेते हैं?

हमारा स्पष्ट मत है कि बुद्ध और अंबेडकर विज्ञान हैं, दर्शन है! इनको विज्ञान व दर्शन की तरह ही जीवन पढ़ा जाना चाहिए, समझा जाना चाहिए और अपने जीवन में आत्मसात किया चाहिए जैसे कि हम भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान, गणित आदि के सिद्धांतों को पढ़ते हैं, उनका विश्लेषण करते हैं और उनको अपने जीवन में आत्मसात करते हैं!

फिलहाल बात-चीत के दौरान भंते ने बताया कि बुद्ध लोगों को देखकर उनका भविष्य बता देते थे! ब्रहम्ण भी ज्योतिष के नाम पर यही करता रहता है! भंते के मुताबिक बुद्ध चमत्कार करते थे लेकिन हम यही जानते हैं और मानते हैं कि बुद्ध कोई ब्रहम्णी चमत्कारी नहीं बल्कि एक आम मानव की तरह ही थे जिन्होंने ने अपनी तर्कशक्ति का बेहतर उपयोग किया और हमारे जीवन को सरल सुगम व सुखमय बनाने का रास्ता दिखाया! इसलिए गौतम बुद्ध और बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर को एक ऐसे मानव के रुप में ही याद किया जाना चाहिए जिन्होंने मानवता की बेहतरी के लिए अपने बुद्धि का बेहतरीन इस्तेमाल किया!

सामान्यत: ब्रहम्णी रोग से संक्रमित सभी भंते व बौद्धाचार्य बुद्ध का वर्णन व चमत्कारी महिमागान उसी तरह करते हैं जैसे कि ब्रहम्ण! हमारा स्पष्ट मानना है कि यदि आप बुद्ध की राह पर चलना चाहते हैं तो कृपया बुद्ध-अम्बेडकर की पूजा ना कीजिए, धूप-अगरबत्त, पूजा-पाठ, ब्रहम्णी कर्मकाण्ड व सभी अवैज्ञानिक रीति रिवाज से दूर रहिये! बुद्ध-अम्बेडकर को उसी तरह से देखिए जैसे एक मार्गदर्शक, दार्शनिक व वैग्यानिक को देखते हैं!

याद रहे, बुद्ध-अम्बेडकर को खतरा पुरोहित बने भंतों व बौद्धाचार्यों, पूजा-पाठ, धूप-अगरबत्ती जैसे अवैग्यानिक कर्मकांडों, रीति-रिवाजों व परम्पराओं आदि से है! इसलिए इन सबका परित्याग आवाश्यक है! इसी में सकल बहुजन समाज तथा बुद्धिज्म का सुन्दर सम्यक भविष्य निहित है!"
 #एक दोस्त की शगाई के दौरान प्राप्त अनुभव, जुलाई 22, 2017 (इलाहाबाद)
नमो बुद्धाय...
जय भीम,जय भारत...
रजनीकान्त इन्द्रा, इतिहास छात्र, इग्नू नई दिल्ली