Monday, December 14, 2020

बहुजन आंदोलन के लक्ष्य व ऐजेण्डें से पुनः भटकता बहुजन समाज

2014 में हुए सत्ता परिवर्तन से लगभग 3 साल पहले 5 अप्रैल 2011 को भ्रष्टाचार के नाम पर एक आंदोलन शुरू किया गया था जिसका लक्ष्य भ्रष्टाचार को कम करना या खत्म करना नहीं बल्कि बहुजन विरोधी व गैर-बराबरी पसन्द मनुवादी समाज की "ए" टीम मतलब कि कांग्रेस को कुछ वर्षों तक के लिए सत्ता से हटाकर बहुजन विरोधी व गैर-बराबरी पसन्द मनुवादी समाज की ही "बी टीम" भाजपा को सत्ता में लाना था।

ठीक इसी तरह से 2024 में होने वाले सत्ता परिवर्तन से लगभग 3 साल पहले किसान आंदोलन के रूप में बहुजन विरोधी व गैर-बराबरी पसन्द मनुवादी समाज की "ए" टीम मतलब कि कांग्रेस को पुनः सत्तारूढ़ करने तथा इनकी "बी" टीम मतलब कि बीजेपी को मुख्य विपक्ष के रूप पुनः स्थापित करने का जाल बुना जा चुका है।

बहुजन समाज के लोगों ने भ्रष्टाचार विरोधी अनशन के दौरान बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। उन्हें उम्मीद थी कि इससे उनको और देश को फायदा होगा। लेकिन, भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन का लक्ष्य और इस को क्रियान्वित करने की रणनीति भ्रष्टाचार को कम करने या खत्म करने के लिए बिल्कुल नहीं थी।

भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन में बहुजन समाज के लोगों ने बढ़-चढ़कर कर हिस्सा लिया था लेकिन इस आंदोलन से फायदा किसको हुआ?

बहुजन समाज को याद होना चाहिए कि भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन को हथियार बनाकर एक बनिया दिल्ली में मुख्यमंत्री बन गया, एक मनुवादी पुलिस अधिकारी रही महिला गवर्नर बन गई, तमाम बहुजन विरोधी समाज के लोग सांसद व विधायक बन गए, और केंद्र में कांग्रेस की बी टीम ने पूरी तरह से कब्जा कर लिया।

भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन में बहुजन समाज के लोगों ने अपनी सक्रिय भागीदारी निभाई परंतु इससे उनको सिर्फ और सिर्फ नुकसान ही हुआ है।

इस भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के परिणामस्वरूप जहां केंद्र, राज्य व निकाय तक में पक्ष-विपक्ष दोनों पर मनुवादी ताकतों का कब्जा हो गया वहीं दूसरी तरफ बहुजन समाज केंद्र, राज्य व निकाय तक से बेदखल हो गया।

2011 में शुरू हुए भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन व इससे जुड़े लोगों का उद्देश्य सिर्फ और सिर्फ केंद्र व राज्य सहित निकाय स्तर तक, हर जगह से बहुजनवादी विचारधारा वाले लोगों को पूरी तरह से हटाकर भारतीय सामाजिक व्यवस्था में विशेषाधिकार प्राप्त जातियों के वर्ग व इनकी गैर-बराबरी वाली मनुवादी विचारधारा के लोगों को पक्ष और विपक्ष के रूप में स्थापित करना था।

इसमें वे सफल भी हुए जिसका परिणाम यह हुआ कि भारतीय समाजिक व्यवस्था के उच्च पायदान पर बैठा बहुजन विरोधी समाज समता-स्वतंत्रता-बंधुत्व के पोषक बुद्ध-अम्बेडकरी विचारधारा वाले लोगों को शासन-प्रशासन के हर संभव स्तर से हटाकर सत्ता व विपक्ष दोनों पर पूर्णरूप से काबिज हो गया।

इस प्रकार से भारत के केंद्र, राज्य व निकाय स्तर की सरकारों में सिर्फ और सिर्फ बहुजन विरोधी ताकते सत्ता व विपक्ष बनकर राज कर रही हैं।

संक्षेप में कहें तो भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के दौरान बहुजन समाज को सिर्फ और सिर्फ नुकसान हुआ है। बहुजन समाज, बहुजन समाज के मुद्दों व बहुजन आंदोलन के उद्देश्यों से भटक कर बहुजन विरोधी ताकतों द्वारा षडयंत्रात्मक प्रायोजित भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के झलावे में आकर गुमराह हो गया। अंततः नतीजा यह हुआ कि केंद्र, राज्य एवं निकाय समेत, हर जगह बहुजन समाज ना तो सत्ता में रहा और ना ही विपक्ष में।

2014 के बाद भारत में फासीवादी सरकार के रवैए को जब आम बहुजन समाज पहचानने लगा तो बहुजन समाज के लोगों में एक गोलबंदी दिखाई देने लगी लेकिन तानाशाही ताकते बहुजन समाज के इस गोलबंदी को समझ गए।

इसलिए बहुजन विरोधी हिटलरशाही ताकतों ने बहुजन समाज को कश्मीर संबंधित अनुच्छेद 370, सी ए ए, एनआरसी, कोरोना महामारी, नोटबंदी, जीएसटी, पुलवामा अटैक, चीन व कश्मीर के मुद्दे आदि को हथियार बनाकर के बहुजन समाज को बहुजन आंदोलन के उद्देश्यों से पुनः गुमराह कर दिया।

बहुजन समाज के नेतृत्व को बदनाम करना शुरू कर दिया जिसमें मनुवादी ताकतों को गुमराह बहुजनों ने भरपूर समर्थन दिया। परिणाम यह हुआ कि 2014 के बाद फिर 2019 में बहुजन समाज विरोधी गैर-बराबरी पसंद मनुवादी ताकते दोबारा सत्तारूढ़ हो गई।

परंतु मनुवादी ताकते अच्छी तरह से जानती है कि यदि लगातार उनकी कोई एक टीम ही सत्तारूढ़ रहती है तो बहुजन समाज विद्रोह कर देगा। इसलिए एक निश्चित समय अंतराल पर सत्ता परिवर्तन करना जरूरी है।

अतः भाजपा ने स्वत: अपने आप को सत्ता से दूर करने के लिए किसान संबंधित बिल को लाया। कांग्रेस इस बिल के सहारे पूरे देश में अपने पक्ष में एक गोलबंदी शुरू कर माहौल बनाना शुरू कर दिया है।

फिलहाल ध्यान देने योग्य बात यह है कि यदि यह बिल लोगों ने स्वीकार कर लिया होता तो भी सरकार को फायदा होता क्योंकि इसस मनुवादी सरकार अपनी पूंजीवादी नीतियों को धरातल पर उतारने में सफल हो जाती। और यदि लोग इसे अस्वीकार कर देते, जैसा कि फिलहाल किसान आंदोलन के रूप में देखने को मिल रहा हैं, तो इससे भाजपा इस बिल के सहारे स्वत: अपने आप को सत्ता से दूर कर लेती और खुद मजबूत विपक्ष के रूप में स्थापित होकर सत्ता अपने मनुवादी समाज की ए टीम मतलब कि "कांग्रेस" को सौंप देती।

लोगों ने किसान बिल को अस्वीकार कर दिया, और इसका परिणाम यह होगा कि भाजपा मजबूत विपक्ष में और कांग्रेश सत्ता में स्थापित हो जायेगी। मतलब कि "चित हो या पट" सत्ता व विपक्ष में बहुजन विरोधी ताकतों का ही कब्ज़ा होगा। 

कांग्रेस व भाजपा एक ही हैं इसके एक नहीं बहुत सारे उदहारण मौजूद हैं। जैसे कि निकाय चुनावों में राजस्थान के डूंगरपुर जिले में भारतीय ट्राइबल पार्टी को सत्तारूढ़ होने से रोकने के लिए कांग्रेस और भाजपा ने हाथ मिला लिया (दैनिक भास्कर, 10. 12. 2020)। नतीजा, आदिवासियों का संगठन निकाय की सत्ता से बाहर हो गया। इसके पहले मिजोरम में चकमा स्वायत्त जिला परिषद के लिए हुए चुनाव में भी मिजो नैशनल फ़्रंट को सत्ता से बाहर करने के लिए साँपनाथ व नागनाथ (कांग्रेस व भाजपा) ने हाथ मिला लिया (पत्रिका एवं जनसत्ता, 26. 04. 2018)। 

फिलहाल, भारत का दलित-शोषित, आदिवासी, पिछड़ा व अल्पसंख्यक समाज पुनः वही गलती दोहरा रहा है जो इसने 2011 में हुए भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के दौरान की थी।

बहुजन समाज के लोगों को सोचने की जरूरत है कि देश के लगभग 90% जमीन पर सिर्फ 10% उच्च जातियों का ही कब्जा है। इस प्रकार से खेती योग्य भूमि पर भी सिर्फ और सिर्फ उच्च जातियों का ही कब्जा है। मतलब की उच्च जातियों के खेतों में काम करने वाले देश के 90% आबादी वाले बहुजन समाज के लोग हैं।

ऐसे में यदि किसान बिल रद्द हो जाता है तो भी क्या इससे सवर्ण समाज के खेतों में काम करने वाले भूमिहीन खेतिहर मजदूरों (बहुजन समाज) के जीवन में कोई बदलाव आएगा? भूमिहीन खेतिहर मजदूरों को खेती करने के लिए जमीन उपलब्ध हो जाएगी?

बहुजन समाज के लोग आज जिन जमींदारों के लिए पुलिस की मार खा रहे हैं, क्या उन जमींदारों ने कभी भी देश में आर्थिक व सामाजिक लोकतंत्र स्थापित करने के लिए आवाज उठाई है?

बहुजन समाज के लोग मनुवादी लोगों की एक आवाज पर भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन (2011) व किसान आंदोलन (2020) के लिए अपनी जान की बाजी लगा दी, क्या इन मनुवादी लोगों ने कभी भी देश में बहुजन समाज पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ कभी कोई अनशन किया है?

बहुजन समाज के लोगों को सोचना चाहिए कि वे जिन जमींदारों के लिए सड़कों पर आंदोलन कर रहे हैं, उन जमींदारों व उनकी जाति व वर्ग ने ही 2 अप्रैल 2018 के बहुजन भारत बंद को असफल करने का प्रयास क्यों किया था?

बहुजन समाज के लोग आज बहुजन आंदोलन वह बाबा साहब के नाम पर चाहे जितना शोर मचा ले लेकिन हकीकत यह है कि बहुजन समाज की अधिकांश आबादी बहुजन आंदोलन के लक्ष्यों व बाबा साहब के मिशन से भटक चुका है।

बहुजन समाज अपने मुद्दों तक को नहीं पहचान पा रहा है जिसका नतीजा यह हुआ कि वह एक ही गलती बार-बार करता आ रहा है कि वह बहुजन विरोधी मनुवादी ताकतों के बहकावे में आकर खुद को गर्त में धकेल बहुजन आंदोलन को एक मात्र राष्ट्रीय नेता आदरणीया बहन जी को जिम्मेदार ठहरा रहा है जबकि दशकों से आदरणीया बहन जी बहुजन समाज को सांपनाथ (कांग्रेस), नागनाथ (भाजपा) हरे सांप (क्षेत्रीय मनुवादी दल), अजगर (कम्यूनिस्ट) व आस्तीन के सांपों (बहुजन समाज में जन्में चमचें वह उनके दल एवं सगंठन) से सचेत करती आ रही है।

भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन व किसान आंदोलन के संदर्भ में बसपा के समर्थन को कुछ चमचे मुद्दा जरूर बना सकते हैं। ऐसे में उन चमचों को स्पष्ट होना चाहिए कि बहुजन समाज जिन मुद्दों की तरफ ज्यादा आकर्षित होता है यदि उन मुद्दों को बसपा छोड़ देती है तो इससे नुकसान बसपा का नहीं बल्कि बहुजन समाज का होगा। और, बहुजन समाज को रेस में बनाए रखना, तथा उसको सत्ता में स्थापित कर बहुजन आंदोलन को क़दम दर कदम लगातार आगे बढ़ाना बहुजन समाज पार्टी का काम है। इसलिए सारी बातों को जानते-समझते हुए भी बहुजन समाज पार्टी बहुजन समाज के लोगों के रुख को देखते हुए कुछ ऐसे क्रमचय-संचय कर रही है।

फिलहाल, बहुजन समाज के लोगों का असली मुद्दा शासन-प्रशासन के हर स्तर के हर पायदान पर बहुजन समाज का समुचित स्व-प्रतिनिधित्व व सक्रिय भागीदारी एवं धन-धरती का समुचित बंटवारा हैं।

बहुजन समाज के लिए बहुजन आंदोलन ही महत्वपूर्ण है। बहुजन आंदोलन भारत के समग्र व सर्वांगीण विकास एवं हर नागरिक के मान-सम्मान और स्वाभिमान के साथ-साथ उन हक़ के रक्षा-सुरक्षा की गारंटी देता है। बहुजन आंदोलन को आगे बढ़ाने का एक सशक्त माध्यम राजनैतिक सत्ता है।

इसलिए बहुजन समाज के हर सदस्य का यह नैतिक दायित्व है कि वह बहुजन समाज की अस्मिता बहुजन समाज पार्टी को केंद्र, राज्यों व निकाय तक पर बखूबी स्थापित करते हुए बुद्ध-अंबेडकरी विचारधारा पर आधारित समतामूलक समाज के सृजन के लिए आगे बढ़े। इसी में भारत व समस्त भारतीयों का सुंदर व स्वस्थ भविष्य निहित है।

रजनीकान्त इन्द्रा

इतिहास छात्र, इग्नू-नई दिल्ली 

Saturday, December 5, 2020

दलितों, अपना नायक पहचानना सीखों

कुछ दलितों की निग़ाह में वी पी सिंह भी दलितों के मसीहा हैं। इनकों लगता हैं वी पी सिंह ने ख़ुशी-ख़ुशी बाबा साहेब को भारतरत्न से नवाज़ा था। ऐसे बहुजनों को सोचना चाहिए कि क्या वी पी सिंह के ह्रदय में बाबा साहेब के विचार थे, या वे बाबा साहेब को बहुत मानते थे जो इन्होने बाबा साहेब को भारतरत्न से नवाज दिया? अनुसूचित जातियों का ये अंधापन ही इनकों लेकर डूब रहा हैं।

सोचो, यदि वी पी सिंह इतने ही अम्बेडकरवादी थे तो वी पी सिंह का नाम मान्यवर काशीराम साहेब के साथ लिया जाना चाहिए लेकिन ऐसा नहीं हैं, क्यों? सोचों यदि वी पी सिंह इतने ही अम्बेडकरवादी हैं तो बहन जी ने इनकी भी मूर्ती क्यों नहीं लगवाई जबकि बहुजन आंदोलन में सहयोग देने वाले हर नायक-महानायक, नायिका-महानायिका को बहन जी ने जन-जन के जहन में स्थापित कर दिया हैं?

हमारे विचार से ये दलितों की मूर्खता हैं कि ये हर "जय भीम" कहने वाले एवं बाबा साहेब को माला फूल चढाने वाले को अम्बेडकरवादी समझ लेते हैं। यदि अम्बेडकरवादी होने का यही पैमाना हैं तो श्री नरेंद्र मोदी जी सबसे बड़े अम्बेडकरवादी होने चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं हैं। फिलहाल, दलितों का ये अंधापन ही दलितों को उनके अपने मिशन से उनकों भटका रहा हैं।

Friday, October 16, 2020

मान्यवर महापरिनिर्वाण सप्ताह @ 2020

 मान्यवर महापरिनिर्वाण सप्ताह की आखरी पोस्ट...उम्मीद करते हैं कि अगले साल मान्यवर महापरिनिर्वाण सप्ताह देश के बहुजन समाज द्वारा भी एक बड़े पैमाने पर मनाया जाएगा।

जय भीम नमो बुद्धाय








Thursday, October 15, 2020

Tuesday, September 15, 2020

बहन जी की यही पुकार, चमचों से दूर रहें बहुजन समाज

बहन जी की यही पुकार,

चमचों से दूर रहें बहुजन समाज।

आज "जय भीम" से आगे चलते हुए “जय भीम के वैचारिकी” को परवान तक ले जाने वाली बसपा, मान्यवर साहेब और बहन जी के नाम का इस्तेमाल चमचों द्वारा किया जाने लगा हैं। ऐसे में आम बहुजन के लिए ये कठिन प्रतीत होता हैं कि सच्चे बसपाई को कैसे पहचाना जाय? यदि परिस्थितियों का विश्लेषण किए बगैर कोई निर्णय लिया जाए तो अनुयायियों को जल्द ही पछताना पड़ सकता है। इसलिए बहुजन समाज के लोगों के सामने आज सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि मिशनरी और चमचों के बीच फर्क कैसे किया जाए?

वैसे तो इस प्रश्न का उत्तर बहुजन महानायक मान्यवर कांशीराम साहब ने चमचा युग नामक अपनी किताब में दे दिया है। लेकिन फिर भी चमचों की पैदाइश लगातार जारी है जिसके चलते बहुजन समाज के लोगों को आगाह करते हुए बीच-बीच में टिप्पणी करना आवश्यक है।

इसी तरह से एक चमचा खुद को निस्वार्थ बताते हुए एक अलग संगठन बनाकर ऑनलाइन कैडर और नुक्कड़ नाटक कर बसपा के प्रचार-प्रसार का दावा कर रहा है। वो कभी महाराष्ट्र, कभी राजस्थान, कभी हरयाणा तो आजकल मध्य प्रदेश की जनता के जहन में बसपा और बहन जी के नाम का इस्तेमाल करके जगह बनाने का प्रयास कर रहा हैं। कोई भी अपना संगठन और पार्टी बनाकर काम कर सकता हैं, इसमें किसी को भी समस्या नहीं होनी चाहिए। लेकिन यहाँ मुद्दा ये हैं कि जब बहन जी ने स्पष्ट कर दिया हैं कि हाथी निशान और बहन जी की तश्वीर बसपा के आलावा किसी भी अन्य संगठन को इस्तेमाल नहीं करना चाहिए तो अलग-अलग संगठन बनाकर लोग हाथी निशान और बहन जी की तश्वीर का इतेमाल क्यों कर रहे हैं? मध्यप्रदेश में बसपा पक्षधर होने का दावा करने वाला ऐसे दावे रहा है कि मालूम पड़े कि बसपा इन महोदय के ही कंधों पर ही टिकी हुई है। वैचारिक रूप से विकलांग होने के साथ-साथ चमचागिरी इनके जहन में इस कदर हावी है कि इनकी चमचागिरी इन महोदय के वक्तव्यों और कृत्यों में स्पष्ट झलकती हैं।

फिलहाल बसपा के लिए काम करने को लेकर इन महोदय का दावा कितना सही, कितना गलत है, इसका निर्णय अभी तो नहीं किया जा सकता है, लेकिन फिर भी प्राप्त जानकारियों के मुताबिक स्पष्ट है कि वह ना तो बसपा का हितैषी है, ना ही बहुजन समाज का हितैषी है, बल्कि वह मान्यवर कांशीराम साहब के "चमचा युग" में वर्णित एक आले दर्जे का चमचा है जिसको बहुजन समाज के लोग अभी पहचान नहीं पाए हैं।

बहुजन समाज के लोग ऐसे चमचों में भविष्य देखने के बजाय कुछ सवाल खुद से कर लें तो उनके भ्रम दूर हो सकते हैं, जैसे कि -

पहला सवाल, जितने लोगों को बहन जी ने बसपा से बाहर निकाला उन सब की लगभग लगभग वापसी हो चुकी है तो ऐसी क्या वजह है कि इन महोदय की आज तक वापसी नहीं हो पाई है? क्या बहन जी की इनसे कोई खास दुश्मनी है? यदि नहीं, तो इसका स्पष्ट मतलब है कि इन्होंने बहुजन समाज के खिलाफ और बसपा पार्टी के खिलाफ बहुत ही गंभीर व संगीन षड्यन्त्रात्मक कार्य किया होगा।

दूसरा सवाल, जो नवयुवक इसके झलावे में बहक रहे हैं उनकों लखनऊ के लोगों से पता करना चाहिए, पड़ताल करते हुए खुद को अवगत कराना चाहिए कि इन महोदय के ऊपर बहुत ही संगीन और गंभीर आरोप है जिसके चलते इसे "सेकेण्ड इन कमांड" के पद से ही नहीं निकाला गया बल्कि इसकी पार्टी से सदस्य्ता ही रद्द कर दी गयी। याद रहे, राहुल गांधी के ऊपर की गई टिप्पणी तो एक छोटी सी अनुशासनहीनता थी, असल आरोप बहुत गंभीर ही था।

तीसरा सवाल, जब बहन जी पहले ही कह चुकी है कि जिसको देश व समाज के लिए काम करना है वह सीधे बसपा के बैनर तले काम करें तो फिर अलग संगठन बनाकर काम करने की आवश्यकता इसको क्यों पड़ी? "मरते दम तक बसपा और बहन जी का साथ देने" का दावा करने वाले लोग बसपा से अलग संगठन बनाकर क्यों घूम रहे है?

चौथा सवाल,  जब बहन जी ने बुद्ध-फुले-अम्बेडकरी आन्दोलन को बदनाम करने वाली भीम आर्मी को किनारे लगा दिया था तो ये महोदय दिल्ली में भीम आर्मी के मंच पर खड़े होकर के बहन जी के कौन से आदेश का पालन कर रहे थे?

पांचवा सवाल, बहुजन आन्दोलन में यथासंभव सहयोग करनी वाली नारी शक्ति के प्रति इनका नजरिया क्या हैं, इसकी पड़ताल जरूरी हैं। हमारा स्पष्ट मानना हैं कि नारीशक्ति के प्रति दमनकारी सोच, शोषणवादी मानसिकता वाला कभी भी बुद्ध-फुले-अम्बेडकरी आन्दोलन, बहन जी, मान्यवर साहेब और बसपा का हितैषी कभी नहीं हो सकता हैं। ये पांचवा सवाल बहुत महत्वपूर्ण हैं, इसको नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए।

फिलहाल इन चमचों के चमचों का कहना हैं कि यदि इस आले दर्ज़े के चमचे के खिलाफ कोई सबूत हो तो पेश किया जाय। ऐसे लोगों को मालूम होना चाहिए कि हमने बहुजन आन्दोलन, मौजूदा हालात और इन चमचों के व्यक्तित्व के मद्देनजर कुछ सवाल किये हैं। जिन लोगों को हर सवाल पर भी सबूत चाहिए तो उन लोगों को १९८० के बाद के बहुजन आन्दोलन के बारे में अध्ययन की जरूरत हैं। फिलहाल, इन आले दर्ज़े के चमचों के चमचों के सवालों के जबाब के तौर पर इनसे कुछ सवाल किये जा सकते हैं जिसके माध्यम से इनका भ्रम दूर हो सकता हैं। जैसे कि -

क्या कभी सोचा है कि मान्यवर कांशीराम साहब ने 1980 के दौर में जब चमचों को किनारे लगाया था, वह भी बहुत ही संगीन और गंभीर आरोपों में, तो उन्होंने उन आरोपों को पब्लिक के सामने बयान क्यों नहीं किया? मान्यवर साहेब के अथक परिश्रम से बनायीं गयी बामसेफ को जिन चमचों ने गर्त में पहुंचकर बामसेफ और बुद्ध-अम्बेडकरी आन्दोलन को अपनी जीविका का साधन बनाने वाले चमचों तक को साहब ने नजरअंदाज क्यों कर दिया हैं? कृपया पार्टी और बहुजन आंदोलन के मिशन और उसके रास्ते में आने वाली दुश्वारियां पर गौर कीजिए, फिर आपको इस सवाल का जवाब मिल जाएगा कि क्यों सब कुछ जानते हुए भी हम पब्लिक के सामने बहुजन समाज में चमचों के कुकृत्यों को सीधे तौर पर बयान नहीं कर सकते हैं?

चमचों के लिए सब कुछ ब्लैक एंड वाइट हो सकता है, लेकिन बहुजन आंदोलन में बहुत सारा एरिया ग्रे है, और वही ग्रे एरिया है जो निर्णायक होता है। और इस ग्रे एरिया को मान्यवर कांशीराम साहब ने हमेशा बहुजन आंदोलन के हित को संदर्भ में रखते हुए ही देखते थे जिसके कारण उन्होंने कभी भी बहुजन आंदोलन को धोखा देने वाले लोगों के ओछे कृतियों को पब्लिक के सामने नहीं रखा क्योंकि वह जानते थे कि यदि इनके इन ओछे चरित्रों को उजागर कर दिया जाएगा तो इन चंद चमचों के चलते पूरा का पूरा आंदोलन और पूरी की पूरी पार्टी बदनाम हो जाएगी।

यही वजह है कि आज भी बहुजन समाज पार्टी से जिन-जिन लोगों को गंभीर और संगीन आरोपों में भी निकाला गया है उन पर सिर्फ अनुशासनहीनता का ही आरोप लगाया जाता है जबकि उनके कृत्य इससे कहीं ज्यादा संगीन और गंभीर रहे हैं। यही कारण है कि ऐसे ओछे चरित्र वालों को पार्टी से ना सिर्फ बाहर कर दिया गया बल्कि उनकी प्रारंभिक सदस्यता तक को भी रद्द कर दिया गया है।

बहुजन समाज को स्पष्ट तौर पर याद रखना चाहिए कि बहुजन और बसपा की पैरवी करने वाला हर इंसान बहुजन, बसपा का हितैषी नहीं हो सकता है। कुछ चमचे बहुजन, बसपा और बहन जी का नाम लेकर कर बहुजन समाज को कमजोर करने का भी काम कर रहे हैं। क्योंकि यदि ये बहुजन, बसपा के हितैषी होते तो बहन जी इनको बसपा से कभी ना निकालती। और यदि निकाल भी दिया तो अब तक वापसी हो जानी चाहिए थी क्योंकि छोटी-मोटी अनुशासनहीनता के लिए बहन जी ने जितने लोगों को पार्टी से बाहर किया था लगभग सब की वापसी हो चुकी है। इसका मतलब है कि यदि इन महोदय की वापसी बसपा में नहीं हुई है तो इन्होंने बहुजन समाज के खिलाफ बहुजन समाज की राजनीतिक अस्मिता बसपा के खिलाफ बहुत संगीन व बहुत बड़ा षड्यंत्र किया हैं।

जिस तरह से ये महोदय खुद को बहन जी का सिपाही बताते है ठीक उसी तरह से कभी बहन जी के कार्यकाल में ओएसडी व अन्य जिम्मेदार पदों पर रहे लोग भी खुद को बसपा और बहन जी का सिपाही बताते थे लेकिन बाद में वह बसपा के ही खिलाफ दिल्ली और राजस्थान में चुनाव लड़े और बसपा विरोधियों से गठबंधन तक किए। और बसपा, बहुजन समाज के खिलाफ किये अपने इस षड्यंत्र का सारा ठीकरा बहन जी के माथे यह कहकर फोड़ दिया कि बहन जी मिशन से भटक चुकी। 

गुमराह बहुजन समाज के लोग इन चमचों के षड्यंत्र को समझे बगैर बहन जी को ही दोष देना शुरू कर देते हैं। उदाहरण के तौर पर सहारनपुर का गुमराह नवयुवक खुद को बसपा और बहन जी का सिपाही बताते-बताते बहुजन समाज के बीच अपने लिए एक सहानुभूति का माहौल खड़ा कर दिया। और बाद में जब पब्लिक उससे सहानुभूति के तहत जुड़ गई तब उसने यह कहना शुरू कर दिया कि वह बसपा के लिए काम करना चाहता है लेकिन बहन जी उससे नहीं मिलना चाहती हैं। बहुजन समाज के युवा लोग सहारनपुर के इस गुमराह नवयुवक की पृष्ठभूमि के बारे में जाने बगैर ही इसकी बात पर भरोसा कर बहन जी पर ही दोषारोपण शुरू कर दिया कि वह बसपा के लिए काम करना चाहता था लेकिन बहन जी ने उसे मौका नहीं दिया। इसीलिए वह अलग संगठन बनाकर काम कर रहा है जो कि बाद में एक अलग से राजनीतिक दल में तब्दील हो गया। जबकि इसकी हकीकत इससे काफी अलग है। आज सब कुछ स्पष्ट हो चुका हैं कि वो एबीवीपी का सदस्य हैं, शुरू से २०१९ लोकसभा चुनाव तक आरएसएस-बीजेपी द्वारा फंडित रहा हैं, इसके बाद कांग्रेस के रहम-ओ-करम पर जीविका चला रहा हैं। 

बहन जी उस गुमराह नवयुवक व बहुजन समाज पार्टी और बहुजन समाज के हित के खिलाफ उसको समर्थन कर रहे ब्राह्मणी संगठनों को बखूबी पहचान रही थी और समझ रही थी कि यह गुमराह ही नहीं बल्कि स्वार्थी व चमचा किस्म का नवयुवक हैं, जो कभी भी बहुजन समाज को नेतृत्व तो नहीं दे सकता है लेकिन बहुजन समाज का नुकसान जरूर कर सकता है, बहुजन समाज के हितों की सौदेबाजी जरूर कर सकता है। इसलिए बहन जी ने ऐसे चमचों को किनारे लगाया। बहुत दुःख होता हैं कि बहुजन समाज के हित में लिए गए इस फैसले के लिए भी बहन जी को बहुजन युवाओं की ही गलियां सुननी पड़ी। 

फ़िलहाल, अब यह बहुजन समाज के युवाओं को तय करना है कि बहुजन समाज का असली हितेषी चमचे हैं या फिर मान्यवर कांशीराम साहब के अनुयाई और मिशन के लोग? हालांकि फर्क करना काफी मुश्किल है लेकिन फिर भी यदि बहुजन महानायकों एवं वीरांगनाओं के मूल्यों आदर्शों विचारधारा व वर्तमान की परिस्थितियों का आपस में विश्लेषण करते हुए इनके अंतर संबंधों पर गौर किया जाए तो बहुजन समाज की एकमात्र हितेषी वा राष्ट्रीय पार्टी बसपा व इसकी अध्यक्षा आदरणीया बहन कुमारी मायावती जी निस्संदेह रूप से पूरे भारत में न्याय प्रिय, समता, स्वतंत्रता, बंधुता व संविधान में विश्वास करने वाली एकमात्र नेता है।

बहुजन समाज में जन्मे चमचों के संदर्भ में बहुजन समाज को याद रखना चाहिए कि बहुजन राजनीति में चमकने के लिए बसपा और बहन जी का नाम लेना अत्यंत आवश्यक है। इसलिए कोई भी कितना भी बड़ा चमचा क्यों ना हो, आर एस एस द्वारा कितनी भी उसे फंडिंग क्यों ना मिल जाए, बीजेपी-कांग्रेस व अन्य क्षेत्रीय पार्टियों के हाथों क्यों ना बिका हुआ हो लेकिन शुरुआती दौर में बहन जी और बसपा के पक्ष में उसे बोलना ही पड़ता है क्योंकि उसे पहचान इसी से ही मिल सकती है।

कृपया अपने नेतृत्व को चुनने से पहले वैचारिकी व परिस्थितियां और इनके बीच के अंतर संबंध का विश्लेषण करने के बाद ही यदि आप अपना नेतृत्व चुनते हैं तो भविष्य बेहतर हो सकता है, अन्यथा हमें बड़े दुख के साथ कहना पड़ रहा है की हालत वही होगी जो आज बहन जी के ओएसडी रहे कुछ चमचो के चाहने वालों की आज हुई है।

बहुजन समाज के युवाओं से यही कहना है कि आप अलग-अलग तरह के सामाजिक संगठनों में काम करने के बजाए भारत की राष्ट्रीय राजनीतिक दलों में से एक बहुजन समाज पार्टी के लिए काम करते हुए बहुजन महानायकों एवं वीरांगनाओं द्वारा स्थापित आदर्शों और मूल्यों के मद्देनजर भारत में समतामूलक समाज की स्थापना के संदर्भ में बहुजन समाज पार्टी के लक्ष्य सामाजिक परिवर्तन एवं आर्थिक मुक्ति के लिए पूरी शिद्दत से काम कीजिए। बहन जी ने सहारनपुर में भी स्पष्ट तौर पर कहा है कि जिसको भी समाज व देश के लिए काम करना है उन सब को चाहिए कि वह अलग-अलग मंचों पर जाने के बजाय बसपा के बैनर तले काम करें।

रजनीकान्त इन्द्रा (Rajani Kant Indra)

इतिहास छात्र, इग्नू-नई दिल्ली

Sunday, September 6, 2020

बसपा का छात्र संघ क्यूं नहीं है?

विश्वविद्यालयों के कुछ प्रोफेसर्स और छात्र अक्सर बहुजन समाज पार्टी और बहन जी द्वारा छात्र संघ नहीं बनाये जाने और विश्वविद्यालयों के चुनाव भाग ना लेने के चलते कोसते रहते हैं। उनका मानना हैं कि बसपा को छात्र राजनीति करनी चाहिए जबकि बसपा इससे दूरी ही बनाते हुए बहुजन युवाओं को उच्च शिक्षा की तरफ देखना चाहती हैं।

फिलहाल, बहुजन साथी अभिषेक वर्मा और विद्रोही सागर अम्बेडकर के जरिये एक अहम् जानकारी जानकारी प्राप्त हुई। जिसके मुताबिक "मेरठ से मेरे मित्र ने जब माननीया बहन जी से मुलाकात की तो मेरे मित्र ने कहा कि बहन जी हम युवाओं के लिए छात्र संघ आदि भी बसपा की तरफ से होनी चाहिए जैसे अन्य दलों की हैं। तो बहन जी ने कहा कि हमारे कितने लोगों की फैक्ट्री, कल-कारखाने हैं? मेरे मित्र ने कहा, "जी बहन जी, ना के बराबर।" तब बहन जी ने कहा कि हमारे लोगों के पास सिर्फ शिक्षा ही हथियार हैं। अगर वह भी छिन जाएं मतलब कि छात्र संघ आदि में पड़कर हमारे लोग पढ़ाई से भी दूर हों जाएं तो उनका भविष्य खराब हो जाने की सम्भावना प्रबल हैं। क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति मंत्री नेता नही बन पाता है। जिन लोगों की होड़ में यह सब कह रहे हो कि उनके छात्र संघ आदि हैं, यदि उनके बच्चे ना भी पढ़े, तो भी उनके पास खूब ज़मीन, जायजाद, फैक्ट्री, कल-कारखाने हैं। वो वहाँ से अपनी जीविका और आय कर लेंगे, पर हमारे लोगों के पास शिक्षा के अलावा कुछ भी नही है। हमारे समाज के लोगों को शिक्षा से ही बेहतर जिंदगी मिल सकती हैं। इसलिए उनकों शिक्षा पर विशेष ध्यान देना चाहिए। औऱ रही बात राजनीति की तो पहले अपनी शिक्षा पूर्ण कीजिये, उसके साथ-साथ संवैधानिक रूप से समाज के कार्य कीजिये। क़ानून का सम्मान कीजिये। धैर्य रखिये। बहुजन युवा बसपा में होंगे।" 

यदि  राजनैतिक दलों की पड़ताल की जाय तो बसपा एक मात्र ऐसी राष्ट्रिय पार्टी हैं जिसमे युवाओं की ५६ फीसदी से ज्यादा भागीदारी हैं। बसपा एक मात्र ऐसी पार्टी हैं जिसमे जिला अध्यक्ष, प्रभारी, जोन इंचार्ज आदि महत्वपूर्ण पदों पर बहुजन युवाओं की आधे से अधिक सीढ़ी भागीदारी हैं। देश के अन्य दल युवाओं को मुख्यधारा राजनीति से दूर रखने मजदूर संघ, छात्र संघ, महिला विंग आदि बनाये घूम रहें हैं। दुखद हैं कि अन्य दलों के युवा मजदूर संघ, छात्र संघ, महिला विंग आदि के सदस्य बनकर गौरव का अनुबह्व कर रहे हैं जबकि आधे से अधिक पदों आदि पर बहुजन युवाओं को सीधी भागीदारी देने वाली एकमात्र पार्टी बसपा के बहुजन युवा ब्राह्मणी दलों व संगठनों के साथ साथ बहुजन समाज में जन्मे चमचों  के बिछाए जाल में फंसकर रोज बसपा से नाराजगी दर्ज़ करा रहें हैं, बसपा और बहन जी पर गलत आरोप लगाकर बहुजन आन्दोलन, बहुजन राजनीति और भारत महानायिका के खिलाफ साजिश  कर रहे हैं। 

फिलहाल छात्र संघ की राजनीति के संदर्भ में स्पष्ट हैं कि माननीया बहन जी बहुजन युवाओं व बहुजन समाज का उज्जवल भविष्य चाहती हैं। इसलिए अपने निजी स्वार्थपूर्ति के लिए बहुजन युवाओं पर मुकदमें लगवाने वाले और बहुजन युवाओं को भड़काकर जेल भेजने वाले बहुजन समाज में जन्मे चमचे को किनारे करते हुए बसपा हर मोड़ पर देश की जनता के साथ खड़ी हैं।  

फिलहाल, कुछ पढ़ें लिखे व यूनिवर्सिटी विद्वान बहन जी पर मिशन से भटकने का आरोप लगाये जा रहे जबकि हकीकत यह है कि बहन जी पर आरोप लगाने वाले लोग खुद ही भटके हुए हैं। इसलिए ऐसे सभी विश्वविद्यालयी प्रोफेसरों और छात्रों संग बहुजन समाज के अन्य सभा लोगों को बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर की सलाह याद रखनी चाहिए कि - "विद्यार्थियों को खुद की अहर्ता बढ़ाने का कार्य करते समय राजनीति में हिस्सा नहीं लेना चाहिए। उन्हें आत्मनिर्भरता का पथ ढूढ़ना चाहिए। अपने जीवन में हम आगे बढ़े बिना नहीं रहेंगे यह निश्चिय कर अगर तुम व्यवहारिक जगत में प्रवेश करोगो तो ही कुछ सफलता प्राप्त होगी।"

रजनीकान्त इन्द्रा 

इतिहास छात्र, इग्नू-नई दिल्ली 

Thursday, September 3, 2020

सम्मान के साथ जीने का हौसला, हिम्मत और हक़ दिया हैं, बसपा और बहनजी ने 

हमारा अम्बेडकर नगर जिला, जिसका गठन आदरणीया बहन कुमारी मायावती जी ने २९ सितम्बर १९९५ को किया था, राजनैतिक तौर पर बहुत जागरूक हैं। अम्बेडकर नगर जिले से बसपा सरकार में तीन-तीन कैबिनेट मंत्री रहें हैं। यह जिला बहुजन समाज पार्टी के गढ़ के तौर पर जाना जाता हैं।

हमारे इसी जिले से एक भैया हैं जो कि कपडे की सिलाई करते हैं। किसी काम से वो ठाकुरों के ग़ाँव गए हुए थे। हालाँकि जिससे काम था वो रास्ते में ही मिल गए। उन्होंने उन्हें घर चलने को कहा। रास्ते में राजनैतिक बातें होने लगी। इसी बीच उस ठाकुर ने भैया जी से पूँछा कि आप बताइये कि मायावती और बसपा ने आप को क्या दिया? आप पहले भी कपड़ा सिलते थे, और आज भी कपड़ा ही सिलते हैं, आपके जीवन कोई बदलाव तो दिखा नहीं, फिर आप क्यों मायावती और बसपा की पैरवी करते हैं? भैया जी ने कोई जबाव देने के बजाय बात को घुमा दिया।

कुछ देर बाद वो ठाकुर, भैया के साथ घर पहुँचा और अपने बेटे से कुर्सी व नास्ता-पानी लाने को बोला। इसके बाद वही सवाल फिर दुहराया कि मायावती और बसपा ने आप को क्या दिया? आप पहले भी कपड़ा सिलते थे, और आज भी कपड़ा ही सिलते हैं, आपके जीवन कोई बदलाव तो दिखा नहीं, फिर आप क्यों मायावती और बसपा की पैरवी करते हैं? इसी बीच ठाकुर साहेब का वह लड़का कुर्सी समेत नास्ता-पानी लेकर आ गए। तब भैया ने जबाब दिया कि हम तो अछूत हैं, दलित हैं। इसके बावजूद भी आज सम्मान के साथ आप मेरे लिए ये जो कुर्सी अपने बेटे से मंगवा कर ससम्मान बिठा रहे हैं, नास्ता-पानी भी करा रहे हैं। यहीं सम्मान हमें बसपा, मान्यवर काशीराम साहेब और बहन जी ने दिया हैं। देश की ८५ फीसदी बहुजन आबादी को सम्मान के साथ जीने का हौसला, हिम्मत और हक़ दिया हैं, बसपा और बहनजी ने। इसलिए हम बसपा और बहन जी के साथ हैं।

रजनीकान्त इन्द्रा

इतिहास छात्र, इग्नू-नई दिल्ली

बहन जी से असंवैधानिक तरीकों की उम्मीद ना कीजिए

भोले-भाले चमचों,

विरोध करने के लिए लाठी चलानी जरूरी है, क्या? एक स्वस्थ लोकतंत्रिक भाषा में विरोध कैसे किया जाता है, कृपया समझाने का प्रयास करेंगें? आपको ऐसा क्यूँ लगता है कि बहन जी चमचे और भक्तों की तरह गालियां देती फिरे? आप ऐसा क्यों सोचते हैं कि बहन जी चमचों की बात सुनें? कृपया बहन जी की तुलना भक्तों और चमचों के आकाओं से ना कीजिए। और ना ही बहन जी से किसी भी तरह के असंवैधानिक अलोकतांत्रिक और अनैतिक भाषा की उम्मीद कीजिए।

फिलहाल बहुजन समाज को विश्वास रहें कि बहनजी बुद्ध-फूले-अंबेडकरी विचारधारा की वाहक है, और अपनी इस बहुजन विचारधारा, बहुजन नायक-नायिकाओ के संघर्ष, बहुजन मुद्दे, नीति और रणनीति पर कायम हैं।

रजनीकान्त इन्द्रा

इतिहास छात्र इग्नू-नई दिल्ली

नेताओं और दलों को समझने के लिए उनकी विचारधारा समझनी जरूरी है।

अक्सर लोग कहते रहते हैं कि सारे नेता और सारी पार्टियां एक ही तरह की होती हैं। हमारे विचार से यह पूरी तरह से एक नासमझी भरा बयान होता है जिसमें लोग अपनी जिम्मेदारियों से अपना पल्ला झाड़ने की कोशिश करते हैं।

देश की जनता को इस बात को समझने की जरूरत है कि "पार्टियों की पहचान उसकी वैचारिकी के आधार पर होती है, तात्कालिक घोषणाओं के आधार पर नहीं।"

यदि दलों की वैचारिकी पर गौर करेंगे तो अलग-अलग दलों व नेताओं के बीच "जमीं-आसमान" का अंतर मिलेगा।

दुखद है कि भारत की लगभग पूरी की पूरी जनता वैचारिक समझ से पैदल है जिसके कारण लोक-लुभावन वादों के आधार पर वोट करती हैं, जिसका परिणाम बुरा आने पर वहीं जनता नेताओं को कोसती है जबकि सरकार नेताओं ने नहीं, बल्कि खुद जनता ने ही बनाई थी।

इसलिए हमारे विचार से जिस समय देश की जनता वैचारिक आधार पर सोचना शुरु कर देगी उसके बाद उसे अलग-अलग नेताओं और अलग-अलग दलों में "अंतर-काले" सफेद की तरह स्पष्ट हो जाएगा।

जय भीम जय भारत नमो बुद्धाय

रजनीकान्त इन्द्रा

इतिहास छात्र इग्नू-नई दिल्ली

Monday, August 31, 2020

Sunday, August 9, 2020

बसपा करेगी परशुराम मूर्ती निर्माण - क्या ये वैचारिक विचलन है ?

पिछड़े वर्ग की एकमात्र राष्ट्रिय नेता बहन जी द्वारा 09.08.2020 की प्रेस कॉन्फ़्रेंस में परशुराम की मूर्ती लगवाने व अन्य समाजों के नायकों के नाम पर अस्पताल बनवाने की बात कहीं हैं। बसपा विरोधियों के साथ-साथ बसपा का समर्पित कार्यकर्ता भी इस बयान को समझ नहीं पा रहा हैं। साथ ही बसपा के पदाधिकारी तो पहले से ही मिशन के संदर्भ में शून्य हैं, इसलिए उनके पास इस बात का कोई जस्टिफिकेशन नहीं हैं। इसलिए सोशल मिडिया पर बसपा द्वारा परशुराम मूर्ती लगवाने के संदर्भ में जो बात चल रहीं हैं, बसपा के किसी भी पदाधिकारी के पास अपने खुद के वोटर को संतुष्ट करने वाला जवाब नहीं हैं।

फिलहाल, इस पूरे बयान को अलग-अलग लोग अलग-अलग नजरिये से देख रहे हैं। हमारे विचार से बहन जी के बयान को इतना तूल नहीं दिया जाना चाहिए। लेकिन जनता तो स्वतंत्र हैं, स्वछंद हैं, उसको अपने विवेक से फैसला लेने का हक़ हैं, अपनी बात करने का अधिकार हैं। यहीं तो लोकतंत्र हैं।

अंधों के हाथ बटेर 

फिलहाल, बहुजन समाज में जो बसपा विरोधी फिरका हैं उसके हाथ तो बैठे-बिठाये एक बड़ा मुद्दा लग गया हैं। बहन जी के इस बयान से बसपा को ब्राह्मणों का उतना वोट नहीं मिलेगा जितना कि इस बयान के चलते दलित-बहुजन वोट काट सकता हैं। इस मामले में, फिलहाल, ज्यादा कुछ कहना जल्दबाजी होगी। परन्तु, सोशल मीडिया और यूट्यूब पर जिस तरह से ट्रेंड चल पड़ा हैं उससे देश का दलित-बहुजन समाज असमंजस में हैं। दलित-बहुजन समाज के इस असमंजस को दूर करने की काबिलियत बसपा के किसी भी पदाधिकारी में नहीं हैं। इसलिए इस पूरे प्रकरण का फायदा नई-नई बनी पार्टियों को आसानी से मिल सकता हैं।

इसमें कोई दो राय नहीं हैं कि 09.08.2020 के बसपा के बयान से सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, शैक्षणिक और अन्य विधाओं के जरिये मिशन के लिए कार्य कर रहे लोगों में थोड़ा सा असमंजस हैं, लोग सोह्सल मिडिया पर खुलकर लिख रहे हैं। परशुराम के चरित्र के बारे में राष्ट्रपिता फुले की राय को नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं। इसलिए इस संदर्भ में बुद्धिजीविओं की नाराजगी को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता हैं। इसका फायदा बहुजन विरोधी दलों को बहुजन समाज में जन्मे चमचों द्वारा मिल सकती हैं।

राजनीतिक क्रमचय-संचय मतलब सैद्धन्तिक समझौता नहीं होता हैं

सत्ता प्राप्त करने के लिए राजनैतिक क्रमचय-संचय करना पड़ता हैं। गैर-बराबरी वाले जाति आधारित सामाजिक व्यवस्था में २४ कैरेट खरी राजनीति संभव ही नहीं हैं। दूसरी महत्वपूर्ण बात हैं कि भारत की राजनीती पर सामाजिक संरचना के प्रभाव को कोई नजरअंदाज नहीं कर सकता हैं। इसलिए सत्ता हाशिल करने के लिए ये राजनैतिक क्रमचय-संचय एक जरूरत हैं।

सनद रहें गठबंधन की सरकार के दौरान अपने मुख्यमंत्रित्व काल में बहन जी ने उस समय आरएसएस के लखनऊ स्थित एक आश्रम को दस लाख दान किया था, जब अटल बिहारी उसका लोकार्पण करने आये थे। इस मुद्दे को भी चमचे उछलते रहते हैं। लेकिन मालूम होना चाहिए कि वो गठबंधन का दौर था, कुछ राजनैतिक समझौते करने पड़ते हैं। यदि दस लाख का दान देने से पचास हजार करोड़ का बजट आपके हाथ आ जाय तो इसमें कोई नुक्सान नहीं हैं। बहन जी ने आरएसएस के एक आश्रम को दस लाख जरूर दिया लेकिन बीजेपी के समर्थन से बनी सरकार में ही अपने बहुजन नायकों-नायिकाओं को बाकायदा स्थापित कर दिया हैं।

इसलिए यदि बहन जी परशुराम की मूर्ती निर्माण करवा भी देती हैं तो उसके बदले बहुजनों को उसी तरह लाभ होगा जिस तरह आरएसएस को दस लाख का दान देकर बहुजन स्मारक स्थापित करके बहुजन इतिहास को संगमरमर के कठोर पत्थरों पर दर्ज़ करने से मिला हैं। यदि एक मूर्ती परशुराम की लग भी गयी तो साथ में बहन जी ने पिछड़े वर्ग के बचे हुए नायकों-नायिकाओं को भी स्थापित करने की बात कहीं हैं, जिसकी संख्या सैकड़ों में हो सकती हैं। इसलिए बहुजन समाज के लोगों को बहन जी के 09.08.2020 वाले बयान को राजनैतिक क्रमचय-संचय के तौर ही देखना चाहिए। इस पूरे प्रकरण में  सिद्धातों से समझौता करने जैसी कोई बात नहीं हैं।

हमें माँगने वाला नहीं, देने वाला समाज बनाना हैं। 

मान्यवर काशीराम साहेब कहते हैं कि हमें देश के वंचित जगत को मांगने वाला नहीं बल्कि देने वाला समाज बनाना हैं, शासक जमात बनाना हैं। मान्यवर अपने इसी मिशन के चलते १९८४ में गठित की हुई बसपा को १९९६ आते-आते राष्ट्रीय पार्टी बना देते हैं। साथ ही बसपा भारत के सबसे बड़ी आबादी वाले उत्तर प्रदेश की सरजमीं पर चार-चार बार हुकूमत करती हैं। बसपा किसी से बहुजन महानायकों-महनायिकाओं के नाम पर कभी स्कूल, कॉलेज, विशवविद्यालय या अन्य किसी संस्था की मांग नहीं की, ना ही ये इसके एजेण्डा में था। बसपा ने खुद अपनी सरकार बनाकर अपने एजेण्डा को पूरा किया, अपने नायकों-नायिकाओं को बाकायदा स्थापित किया हैं।

बसपा ने सत्ता हाशिल कर सबसे पहले देश के वंचितों को भरोसा दिलाया कि आप भी हुकूमत कर सकते हो। इसके बाद जो उच्च जातियां बहुजन हुकूमत को स्वीकार करने को तैयार नहीं थी, उन उच्च जातियों को स्वीकार करने पर मजबूर कर दिया कि वंचित भी सिर्फ हुकूमत ही नहीं, बल्कि सबसे उम्दा और संविधान अनुसार हकूमत कर सकता हैं। आज बसपा की स्वीकृति हैं। हर मुद्दे पर देश बहन जी के बयान का इन्तजार करता हैं। ऐसे में एक राष्ट्रिय पार्टी व बुद्ध-अम्बेडकरी विचारधारा वाली एकमात्र पार्टी होने के नाते बसपा को सभी लिए नकारात्मक भेदभाव से कोसों दूर लोकतान्त्रिक न्याय के तहत कार्य करना हैं। यही कारण हैं कि बहन जी कहती हैं कि "सर्वजन सुखाय, सर्वजन हिताय"। इसका ये मतलब नहीं हैं कि बसपा मिशन से भटक गयी। इसका मतलब ये हैं कि आज बसपा कोई छोटा सा संगठन नहीं बल्कि राष्ट्रीय पार्टी हैं, इसका आयाम लम्बा हो चुका हैं, फलक बड़ा हो चुका हैं। अम्बेडकरी मिशन का मतलब किसी का दमन करना नहीं हैं क्योकि दमन करके कभी समतामूलक समाज का निर्माण नहीं किया जा सकता हैं।

बहन जी योगी के नेतृत्व में ब्राह्मणों पर हो रहे अत्याचारों पर सवाल कर रहीं हैं। इसका मतलब हैं कि आज देश के शोषितों की पार्टी सिर्फ अपने लिए ही नहीं बल्कि शोषक जमात में पीड़ित लोगों के लिए भी आवाज उठा रहीं हैं। इस बात को इस तरह से देखा जाना चाहिए कि आज शोषक पर जब उसी की जाति वाले अत्याचार करते हैं तो शोषक जातियों का पीड़ित तबका भी शोषित वर्ग व उसके नेतृत्व की तरफ देख रहा हैं। मतलब कि बहुजन समाज के शासक जमात में पदार्पण का स्वागत कर रहा हैं।

फिलहाल, आज बसपा इस मुकाम पर पंहुच चुकी हैं कि वह मांगने वाली नहीं, बल्कि देने वाली पार्टी बन गयी हैं। आज बसपा खुल कर कह सकती हैं हमने बहुजन विरोधियों से कुछ अपने नायकों के नाम पर कुछ नहीं माँगा हैं लेकिन आज हम इस लायक हो चुके हैं कि गैर-बहुजन चाहे तो अपने लोगों के लिए बसपा से मांग सकता हैं। याद रहें मान्यवर साहेब कहते थे कि देने वाला समाज ही शासक समाज होता हैं। बहन जी के 09.08.2020 के बयान को यदि इस संदर्भ में देखा जाना चाहिए। 

इसलिए हमारे विचार से बहन जी के इस तरह के तमाम बयानों को इसी संदर्भ में समझा जाना चाहिए। बहन जी ने अपने कार्यकाल में बुद्ध-अम्बेडकरी वैचारिकी पर आधारित जितना कार्य किया, रामंदिर के संदर्भ में बहन जी का शानदार स्टैंड रहा हैं उसके मद्देनजर बहन जी के 09.08.2020 के बयान का पार्टी के मूलभूत सिद्धांतों से किसी भी तरह के कोम्प्रोमिज या विचलन के तौर पर देखना न्याय संगत नहीं माना जा सकता हैं।

रजनीकान्त इन्द्रा

इतिहास छात्र, इग्नू-नई दिल्ली