Tuesday, February 27, 2018

आपकी अस्मिता आपके हाथ

दिनाँक - फ़रवरी २६, २०१८ 
विषय - आपकी अस्मिता आपके हाथ 
प्रिय मूलनिवासी बहुजन साथियों,
सोचियें,
क्या ब्रहम्ण-सवर्ण व अन्य समाज के लोग आपके अम्बेडकर महोत्सव_14 अप्रैल व दीक्षा-दीप महोत्सव_14 अक्टूबर आदि पर आपको शुभकामनाएं देता है? नही!
फिर आप क्यों और किसको हैप्पी होली, हैप्पी दीवाली आदि कहते फिरते रहते हो!
क्यों आप आपना अर्थ व समय दूसरों के पर्वों व संस्कृति के लिए नष्ट करते रहते हो!
आपको मालूम होना चाहिए कि आप हैप्पी होली और हैप्पी दीपावली कह कर के आप अपने शोषक की शोषणवादी संस्कृति को और मजबूत कर रहे हैं!
बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर ने भी कहा है कि ब्राह्मणों का हर त्यौहार मूलनिवासी बहुजन समाज के पुरखों की हत्या का जश्न मात्र है!
इसी तरह होली का त्यौहार भी मूलनिवासी बहुजन समाज के सम्राट हिरण्यकश्यपु की हत्या व उनके घर-परिवार व समाज की मान मर्यादा के साथ किए गए जघन्यतम क्रूरता का ब्राह्मणी जश्न है! क्या आप इतने नालायक हो गए हैं कि अपने ही पुरखों की हत्या व उनके साथ हुए जघन्यतम क्रूरता का जश्न मनाएंगे?
यदि हम इतिहास पर नजर डालें तो हम पाते हैं कि ब्राह्मणी व्यवस्था में शुरू से लेकर आज तक महिला को गुलामों की स्थिति में ही रखा गया है! ऐसे में कोई महिला इतना बड़ा और जगन्नातम अपराध कैसे कर सकती है कि उसको हर साल त्यौहारों के स्वरूप में जिंदा जलाया जाए! यह सब सिर्फ और सिर्फ इसलिए किया जाता है ताकि समाज में महिला वह सकल मूलनिवासी बहुजन समाज की स्थिति हमेशा दूसरे दर्जे की बनी रहे! क्या आप इस समाज में दूसरे दर्जे का नागरिक बन कर ही जीना पसंद करोगे? यदि नहीं तो फिर क्यों आप लोग ऐसे त्यौहारों को अपने जहन में, अपनी संस्कृति में और अपने जीवन जीने की शैली में शामिल करते हो जो आपको आपके द्वारा ही आपको दूसरे दर्जे का नागरिक स्थापित करती है!
हमारे विचार से, यदि आपको समतामूलक समाज की स्थापना कर हर किसी को एक समान और एक बराबरी का हक दिलाना है तो आपके जीवन जीने की शैली, आपकी संस्कृति और आपके जहन में भी समतामूलक भावना को स्थापित करना होगा! ऐसे में आप के महापर्व, संस्कृति और जीवन व जहन शिक्षा-दीक्षा, ज्ञान-विग्यान व तर्क पर आधारित होने चाहिए! इसलिए लूट-मार, हत्या, बलात्कार आदि से ओत-प्रोत ब्राह्मणी त्यौहार जैसे कि होली, दीपावली, रक्षाबंधन आदि का पूर्णता बहिष्कार कर, तिरस्कार कर, परित्याग कर आपको समता मूलक समाज की समता मूलक संस्कृति के लिए शिक्षा-दीक्ष, ग्यान-विग्यान व तर्क पर आधारित महापर्व ही मनाना चाहिए!
ध्यान रहे,
जब तक आपकी अपनी स्वतंत्रत पहचान स्थापित नहीं हो जाती है तब तक आपको समाज में सम्मान व बराबरी का दर्जा नहीं मिलने वाला है! इसलिए दूसरों के त्यौहारों पर अपना अर्थ और समय खर्च ना करके वही पैसा आप अपने अंबेडकर महोत्सव_14 अप्रैल और दीक्षा-दीप महोत्सव_14 अक्टूबर पर खर्च कीजिए! इससे जहां एक तरफ आप का महापर्व मजबूत होगा, वहीं दूसरी तरफ आपकी अपनी, आपके अपने बहुजन समाज की सांस्कृतिक पहचान कायम होगी! और, आपकी यही सांस्कृतिक पहचान आपको समाज में पहचान, मान-सम्मान व बराबरी का दर्जा दिलाएगी!
सनद रहे,
हमारी लड़ाई सिर्फ सत्ता पाने की नहीं है बल्कि भारत के गैर-बराबरी वाले समाज से गैरबराबरी की जड़ को ही समाप्त कर समतामूलक समाज की स्थापना करना है जिसमें हर किसी को मान-सम्मान और स्वाभिमान से जीने का हक प्राप्त हो!
जय भीम....
आपका,
रजनीकान्त इन्द्रा 
इलाहाबाद हाईकोर्ट इलाहाबाद

Monday, February 26, 2018

What is Justices ?


"Justice is Not to have a look on the Law Books and decide the case in Black & White way, although it's fact of our judiciary. In my judgement, there is nothing Black & White as such. Because each and every case, happening around us, have it's background which generally get over looked, a lot of reasons can be given. Each and every Crime or Case has it's background which is the function of the Social Structure and Way of its functioning. So, Court of Law must consider it before giving it's final assent on it, because Justice is Not just to give punishment or award but to educate the society as a whole to prevent the inhuman ills and to promote the peace and prosperity for all."

Rajani Kant Indra
History Student, IGNOU
Feb. 03, 2018

दलित शब्द के मायने


प्रिय मूलनिवासी बहुजन साथियों, 
कुछ लोग "दलित" शब्द को गाली करार करने का भरसक प्रयास कर रहे हैं! ऐसे लोग ब्रहम्ण-सवर्ण तबके के गुलाम है! बहुजन महाक्रांति व हमारे प्रति ब्रहम्णों-सवर्णों के रवैये को जहॉ तक हम समझ पाये हैं उसके मुताबिक हमारे विचार से, दलित शब्द गाली नहीं है बल्कि समाज के शोषित वर्ग का इतिहास बयान करने वाला शब्द है, ब्रहम्णों व सवर्णों द्वारा वंचित जगत पर किये गये व किये जा रहे अत्याचारों की कहानी कहने वाला शब्द है! दलित शब्द गाली नही बल्कि देश के शोषित समाज के दर्द व ब्रहम्णी संस्कृति के अत्याचारों को दुनिया के सामने रखने का कार्य कर रहा है, परिणामस्वरूप ब्रम्हणों की व्यवस्था दुनिया के सामने नंगी हो चुकी है! दलित शब्द शोषित जगत की पीड़ा को सुनाकर जहॉ एक तरफ दर्द देश के कोने-कोने में रहने वाले शोषित समाज को एक सूत्र मे बांधने का कार्य कर रहा है वही दूसरी तरफ ब्रहम्णी व्यवस्था के खिलाफ समता मूलक समाज व संस्कृति की पुनर्स्थापना के लिए प्रेरित करने का कार्य कर रहा है! यही कारण है कि गैर-बराबरी के हिमायती नही चाहते हैं कि एक पीड़ित दूसरे पीड़ित से जुड़े, अपने दर्द के रिश्ते को मजबूत करके हुकूमत के सिंहासन पर कब्जा करे! इसीलिए ब्रहम्णों व अन्य सवर्णों द्वारा दलित शब्द के दर्शन को हमारे ही समाज के कुछ दलालों की मदद से गलत ढंग से प्रचारित-प्रसारित किया जा रहा है, और दलित शब्द के स्थापित दर्शन को मिटाने का ब्रहम्णी प्रयास किया जा रहा है! दुःखद है कि हमारे लोग भी हमारे सामाजिक शत्रु का साथ दे रहे हैं!
धन्यवाद...  
रजनीकान्त इन्द्रा
इतिहास छात्र
इग्नू नई दिल्ली
जनवरी २८, २०१८


खतरे में लोकतंत्र

प्रिय बहुजन साथियों,
लोगों को अब लग रहा है कि लोकतंत्र खतरे में है लेकिन यही बात जब जस्टिस कर्णन कह रहे थे तब समझ में क्यों नहीं आया? देश का लोकतंत्र तो तभी खतरे में आ गया था जब पहेली बार आरएसएस-विहिप के नेतृत्व में बीजेपी ने रथयात्रा की शुरुआत की थी। देश का लोकतंत्र तो तभी खतरे में आ गया था जब आपने ब्राह्मणी व्यवस्था को कायम करने की जद्दोजहद करने वाली बीजेपी आदि को आपने वोट दिया था। देश का लोकतंत्र तो तभी खतरे में आ गया था जब पहेली बार ब्राह्मणी बीजेपी सत्ता में आयी थी। देश का लोकतंत्र तो तभी खतरे में आ गया था जब गुजरात नरसंहार का जिम्मेदार नरेंद्र मोदी देश का प्रधानमंत्री बना था। देश का लोकतंत्र तब-तब खतरे में रहेगा जब-जब आप ब्राह्मणी व्यवस्था को सत्तासीन करने के लिए आप वोट देगें। लेकिन धन्यवाद करों बाबा साहेब का, बाबा साहेब रचित भारतीय संविधान का, बुद्ध-अम्बेडकरी विचारधारा का, मूलनिवासी बहुजन आंदोलन का, मूलनिवासी बहुजन महानायक मान्यवर काशीराम साहेब का, मूलनिवासी बहुजन महानायिका बहन कुमारी मायावती जी का, लालू यादव का, मूलनिवासी बहुजन चिंतकों का, आज की युवा मूलनिवासी बहुजन पीढ़ी का जिन्होंने ने देश के लोकतंत्र को हर सम्भव खरते से महफूज़ रखा है।
रजनीकान्त इन्द्रा
इतिहास छात्र
इग्नू नई दिल्ली

जनवरी १३, २०१८

प्रेस कांफ्रेंस जजेज


"हम चारों (जस्टिस जे चेलामेश्वरम, जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस मदन लोकुर और जस्टिस कुरियन जोसेफ़) इस बात पर सहमत हैं कि इस संस्थान को बचाया नहीं गया तो इस देश में या किसी भी देश में लोकतंत्र ज़िंदा नहीं रह पाएगा| स्वतंत्र और निष्पक्ष न्यायपालिका अच्छे लोकतंत्र की निशानी है| चूंकि हमारे सभी प्रयास बेकार हो गए, यहां तक कि आज सुबह भी हम चारों जाकर चीफ़ जस्टिस (जस्टिस दीपक मिश्रा) से मिले| उनसे आग्रह किया| लेकिन हम अपनी बात पर उन्हें सहमत नहीं करा सके| इसके बाद हमारे पास कोई विकल्प नहीं बचा कि हम देश को बताएं कि न्यायपालिका की देखभाल करें| मैं नहीं चाहता कि 20 साल बाद इस देश का कोई बुद्धिमान व्यक्ति ये कहे कि चलमेश्वर, रंजन गोगोई, मदन लोकुर और कुरियन जोसेफ़ ने अपनी आत्मा बेच दी है|" 

जस्टिस जे चेलामेश्वरम, जज सुप्रीम कोर्ट       जनवरी १२, २०१८ 
अपने आवास पर आयोजित प्रेस कांफ्रेंस में




मानसिक गुलामों द्वारा बहुजन महानायकों का व्यापारीकरण

प्रिय मूलनिवासी बहुजन साथियों,
बाबा साहेब डॉ अम्बेडकर जी के संघर्षों की बदौलत, मान्यवर काशीराम साहेब व बहन कुमारी मायावती जी ने मूलनिवासी बहुजन समाज को वो स्थान दिला दिया है कि मूलनिवासी बहुजन समाज को अब कोई भी किसी भी परिस्थिति में नजरअन्दाज नहीं कर सकता है! मूलनिवासी बहुजन महानायकों ने हमें वो मुक़ाम दिला दिया है कि हमारे समाज के लोग बेख़ौफ अपने हकों के लिए अपनी आवाज बुलन्द कर सकते हैं और करते भी आ रहे हैं!
अपने बातों को सबके सामने पेश करने के लिए, अपनी मांगों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए हमारे लोगों ने हर गली, हर मोहल्ले व सोशल मीडिया को पोस्टरों व बैनरों से पाट दिया है! इन पोस्टरों व बैनरों मे बहुजन महापुरुषों के फोटो लगे होते हैं, संदेश लिखे होते हैं! लेकिन आश्चर्य तब होता है जब ब्रहम्णी त्यौहारों के दरमियान ये सभी पोस्टर-बैनर अंधविश्वास पर आधारित उन सभी ब्रहम्णी रीति-रिवाजों, कर्मकांडों व त्यौहारों जैसे कि दीपावली-होली-नवरात्री-दशहरा-रक्षा बंधन-मकरसंक्रांति आदि की शुभकामनाएं देते नजर आते हैं!
 उदाहरण के तौर पर हमने एससी-एसटी-ओबीसी-कन्वर्टेड मॉयनॉर्टीज के छात्रों के एक संगठन का एक बैनर देखा जिसमें संगठन ने सभी मूलनिवासी बहुजन समाज को मकरसंक्रांति की शुभकामनाएं बांट रहे हैं! इसके पहले ये दीपावली-होली-नवरात्री-दशहरा-रक्षा बंधन आदि की शुभकामनाएँ दे चुके हैं! ये संगठन इकलौते नही है बल्कि इनकी भरमार है!
हमारे निर्णय मे मूलनिवासी बहुजन समाज के सारे संगठन मूलनिवासी बहुजन क्रांति के लिए है, इनसे जुड़े सारे लोग मूलनिवासी बहुजन समाज के लोग हैं, इनका मक़सद न्याय, समता-स्वातंत्रता-बधुत्व पर आधारित तर्कवादी वैग्यानिकता से ओत-प्रोत समाज का निर्माण है तो फिर ये लोग अपने पोस्टरों व बैनरों पर कुतर्क,अवैग्यानिकता, अन्याय, असमानता, छुआछूत, अत्याचार, अनाचार, गुलामी आदि समस्त निकृष्टतम बुराइयों पर आधारित दीपावली-होली-नवरात्री-दशहरा-रक्षा बंधन-मकरसंक्रांति आदि की शुभकामनाएं किसको देते रहते हैं?
यदि आप ब्रह्मणवादी व्यवस्था के रीति-रिवाजों, कर्मकाण्डों व त्यौहारों की बधाई मूलनिवासी बहुजन समाज को दे रहे हैं तो बुद्ध-अम्बेडकरी विचारधारा वाले मूलनिवासी बहुजन समाज को आपके इन शुभकामनाओं की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि ये कुतर्क, अंधविश्वास, कर्मकाण्ड, ढोंग, पाखण्ड, अन्याय, अत्याचार, अनाचार, जातिवाद, छुआछूत पर आधारित किसी भी त्यौहार की शुभकामनाएं समता-स्वातंत्रता-बधुत्व व न्याय पर आधारित बुद्ध-अम्बेडकरी विचारधारा वाले समाज के मूलभूत सिद्धांतों के सख्त खिलाफ है! साथ ही, ये सत्य स्वीकार किया जा है कि मूलनिवासी बहुजन समाज के लोग किसी भी तरह से जातिवादी नारीविरोधी मनुवादी सनातनी वैदिक ब्रहम्णी हिन्दू धर्म व संस्कृति का हिस्सा नहीं हैं!
यदि आप ये शुभकामनाएं ब्रहम्णों व अन्य सवर्णों को दे रहे हैं तो भी इन ब्रहम्णों व अन्य सवर्णों को भी आपके इन शुभकामनाओं की कोई जरूरत नहीं है! मॉफ कीजिये यदि मूलनिवासी बहुजन समाज व ब्रहम्णी समाज के बीच समरसता की बात कर रहे हैं तो भी आप गलती कर रहे हैं क्योंकि ब्रहम्णी व्यवस्था के साथ समरसता की भावना आपके मूलनिवासी बहुजन क्रांति को जिन्दा निगल जायेगी!
ध्यान रहे, मूलनिवासी बहुजन समाज की मुक्ति जातिवादी नारीविरोधी मनुवादी सनातनी वैदिक ब्रहम्णी हिन्दू धर्म व संस्कृति के नेस्तनाबूद होने में निहित है जबकि इन स्वार्थी, अग्यानी, खोखली प्रसिद्ध की चाह रखने वाले ये स्वघोषित मूलनिवासी बहुजन हितैषी बाबा साहेब डॉ अम्बेडकर जी, गौतम बुद्ध, सम्राट अशोक, फूले, कबीर दास, संत शिरोमणि संत रैदास, मान्यवर काशीराम साहेब, नारायणा गुरू, पेरियार आदि अन्य मूलनिवासी बहुजन महापुरुषों की फोटो अपने पोस्टरों-बैनरों पर लगाकर ना सिर्फ मूलनिवासी बहुजन समाज को गुमराह कर मूलनिवासी बहुजन क्रांति को कमजोर कर रहे हैं बल्कि बुद्ध-अम्बेडकरी विचारधारा पर आधारित तर्कवादी वैग्यानिकता व मानवतावादी समाज के सृजन की राह में खड़े मानवता के सबसे बड़े शत्रु जातिवादी नारीविरोधी मनुवादी सनातनी वैदिक ब्रहम्णी हिन्दू धर्म व संस्कृति को लगातार मजबूत कर रहे हैं!
बाबा साहेब की तस्वीर लगाकर ब्रहम्णी संस्कृति को आगे बढ़ाने वाले ऐसे पोस्टर-बैनर मूलनिवासी बहुजन समाज के ऐसे लोगों को आरएसएस-बीजेपी की श्रेणी में ही खड़ा करता है! हम तो बेहिचक यहाँ तक कहते हैं कि मूलनिवासी बहुजन समाज के ऐसे लोग, जो बुद्ध व बाबा साहेब की तस्वीर लगाकर ब्रहम्णी संस्कृति को बढ़ावा देने का काम कर रहे हैं, ब्रहम्णी आरएसएस-बीजेपी से कईयों गुना ज्यादा खतरनाक है क्योंकि ऐसे लोग खुद मूलनिवासी बहुजन समाज के खिलाफ ब्रहम्णी आतंकवादियों के लिए मुखबिरी मात्र कर रहे हैं!
आरएसएस-बीजेपी ने बाबा साहेब को मूलनिवासी बहुजन क्रांति के प्रतीक बन चुके "नीले" रंग का कोट पहनाने के बजाय ब्रहम्णी भगवा रंग का कोट पहनाकर भी बहुजन क्रांति को उतना नुकसान नहीं किया है जितना कि बाबा साहेब व बुद्ध की तस्वीर लगाकर ब्रहम्णी संस्कृति को बढ़ावा देने वाले मूलनिवासी बहुजन के स्वघोषित हितैषियों ने!
याद रहे हमारी लड़ाई न्याय, समता-स्वातंत्रता-बधुत्व पर आधारित तर्कवादी, वैग्यानिकता व मानवता से ओत-प्रोत एक नए समाज के सृजन के लिए है! और, ये समाजिक परिवर्तन जातिवादी नारीविरोधी मनुवादी सनातनी वैदिक ब्रहम्णी हिन्दू धर्म व संस्कृति के साथ समरसता में नहीं बल्कि इस जातिवादी नारीविरोधी मनुवादी सनातनी वैदिक ब्रहम्णी हिन्दू धर्म व संस्कृति के खिलाफ सशक्त विद्रोह व बगावत में निहित है! जहॉ तक रही बात ब्रहम्णी त्यौहारों को बधाई देने सम्बन्धी आपके पोस्टरों व बैनरों के संदर्भ में तो हमें ब्रहम्णी त्यौहारों के लिए आपकी शुभकामनाओं में स्वार्थ, अग्यानता, खोखली प्रसिद्ध व मूलनिवासी बहुजन समाज को गुमराह करना, मूलनिवासी बहुजन आन्दोलन को नुकसान पहुंचाना मात्र ही नजर आता है! हम ऐसे सभी पोस्टर व बैनर वालों से ये कहना चाहते आप सब कृपया स्पष्ट करे कि आपके ऐसे पोस्टर व बैनर बहुजन कल्याण के लिए है या फिर बहुजनों की गुलामी को बढ़ावा देने के लिए?
ये लोग अपने पोस्टरों व बैनरों से आप ब्रह्मणवादी व्यवस्था को पोषित करने वाले त्यौहारों की बधाई दे रहे हैं जबकि ये स्वघोषित मूलनिवासी बहुजन हितैषी संगठन मूलनिवासी बहुजन समाज के लिए कार्य करने का दावा ठोकते नही थकते है! ऐसे में आपके पोस्टरों व बैनरों का तीन ही मतलब हो सकता है!
एक, या तो ये लोग बाबा साहेब को समझ नहीं पाये है और आज भी ब्रहम्णी व्यवस्था की गुलामी में ही जी रहे हैं! दो, या तो फिर ये लोग अपनी प्रसिद्ध मात्र के लिए काम कर रहे हैं! तीन, या तो ये लोग छोटे-मोटे चुनाव के चक्कर में बाबा साहेब व अन्य मूलनिवासी बहुजन महापुरुषों के नाम पर बहुजनों को इक्ट्ठा कर सवर्णों के बीच अपनी पैठ बनाना चाहते हैं!
फिलहाल ऐसे लोग राजनैतिक हकों आदि की बातें जरूर करते हैं लेकिन मूलनिवासी बहुजन समाज के हकों व हितों के लिए ना तो ये राजनीति कर सकते हैं और ना ही सोच सकते हैं! और यदि ये लोग मूलनिवासी बहुजन समाज को जागरूक करने का दावा करते हैं तो हमारे निर्णय मे ये लोग मूलनिवासी बहुजन समाज को जागरूक करने के बजाय गुमराह ही करते हैं!
हमारा निजी विचार है कि सिर्फ बाबा साहेब और बुद्ध को पोस्टर पर छाप लेने मात्र से कोई बहुजन कल्याणकारी नही हो सकता है! बहुजन कल्याण के लिए बुद्ध, बाबा साहेब व अन्य सभी बहुजन महापुरुषों के विचारों को ना सिर्फ समझने की ही जरूरत है बल्कि उनके विचारों को सही ढंग से समाज के सामने रखने व समाज को समझाने की भी जरूरत है!
हमारे निर्णय मे बहुजन महापुरुषों के विचारों को समझना आसान है लेकिन मूलनिवासी बहुजन समाज को समझाना थोडा कठिन है क्योंकि आज भी मूलनिवासी बहुजन समाज ब्रहम्णी विचारधारा के ही गिरफ्त में जी रहा है! अतः निवेदन है कि यदि बहुजन साथियों को विचारधारा सही से समझा ना सके तो कृपया गुमराह भी ना करे...
धन्यवाद...
जय भीम....
रजनीकान्त इन्द्रा
इतिहास छात्र
इग्नू नई दिल्ली
जनवरी ०८, २०१८


धर्म - गुलामी का षड्यंत्र

प्रिय बहुजन साथियों, 
बाबा साहेब डॉ अम्बेडकर भी कहते हैं कि समाज में यदि मूलचूल परिवर्तन लाना चाहते हो तो सबसे पहले सारे धर्म ग्रंथों को बारूद से उड़ा दो! ये धर्म ग्रंथ ही इंसानों के मानसिक गुलामी का एक अहम कारण है! धर्म के नाम पर जितने हत्या ब्लातकार हुए हैं उतने किसी युद्ध में भी नहीं हुए हैं! और तो और, धर्म शास्त्रों व धर्म के ठेकेदारों ने धर्म के नाम पर हुए कत्ल-ए-आम व बलात्कार तक को पाक करार दिया है!
रोज हो रहे अत्याचार हत्या ब्लातकार, जिनकी एक तर्कवान इंसान भर्त्सना करता है, उसकी जड़ें धर्म की मिट्टी से ही पोषित होती हैं!
धर्म का एक मात्र उद्देश्य है समाज में कुछ लोगों की सामाजिक राजनैतिक व आर्थिक प्रतिष्ठा को कायम ऱखना! ये कुछ लोग वही है जिनके पास धर्म का ठेका है! सनातनी वैदिक ब्रहम्णी हिन्दू धर्म का ठेका ब्रह्मण के पास है, इस्लाम का मौलवी के पास, इसाई का पोप के पास तो सिख का उसके ठेकेदारों के पास! जहाँ एक तरफ धर्म के ठेकेदारों ने हमेशा से अपने पथ को सर्वोत्तम बताया हैं, वही दूसरी तरफ दूसरे के विचारों को बुराई के कमरों से नवाजा है! इसका कारण है बिल्कुल स्पष्ट है कि जितने ज्यादा लोग साथ होगें धर्म की सत्ता उतनी ही बुलन्द होगी! धर्म की सत्ता जितनी बुलन्द होगी उस धर्म के ठेकेदारों की राजनैतिक समाजिक व आर्थिक मजबूती उतनी ही ज्यादा होगी! इसलिए हिन्दू, मुस्लिम व इसाई धर्म, जो दुनियां की सबसे बड़ी आबादी को अपने आगोश में दबोचे है, सदा एक दूसरे को काफिर ही कहते हैं, एक दूसरे को शत्रु समझते हैं! यही उनके मानने वालो को एक दूसरे के खून का प्यासा बना देती है!
हिन्दू धर्म ने धर्म के चलते ही एक बड़े मानव समुदाय को शूद्र व अछूत घोषित कर उनके रूह तक की हत्या कर दी है, इस्लाम की शुरुआत ही लूटपाट व खून-खराबे से हुई है! इसाई धर्म ने भी धर्म के नाम पर लाखों का कत्ल करवाया है तो सिख भी इससे अछूता नही है! तथाकथित महाभारत युद्ध भी धर्म के नाम पर ही लडा गया था, मुस्लिम की सारी समस्या ही उनका मजहबी मूर्खता ही है! आज इस्लाम व हिन्दुत्व के नाम पर जितनी हिंसा हो रही है उतनी किसी अन्य के नाम पर नही! बरीकी से गौर करे तो हम पाते हैं कि धर्म ही इन सब के लिए उकसाता है, धर्म ही समाज की सभी बुराइयों का कारण है! धर्म ही है जो लोगों मे स्वातंत्र सोच को विकसित नहीं होने देती है! धर्म ही एक मात्र नशा है जिसकी खुमारी कब्र तक उसके मानने वाले का पीछा करती है! ये सब उसी धर्म ने करवाया है जिसके बारे में भक्त बडे ही गर्व से कहते हैं कि धर्म शत्रुता नही, भाईचारा सिखाता है! हकीकत ये है कि मानव समाज मे मौजूद समस्त बुराइयों का कारण धर्म ही है!
आगे, मुस्लिम की समस्या यह है कि वह कुरान के खिलाफ कुछ सुनना ही नहीं चाहता है! हिन्दू की भी यही समस्या है कि वो अपने वेद-पुराण-गीता-भागवत के खिलाफ कुछ सुनना नही चाहता है, यही समस्या इसाई व सिख की भी है! ये सब अपने को सर्वोत्तम समझते हैं, यही इनकी मानसिक गुलामी का सबसे बड़ा कारण है! ये सब भक्त है! भक्त उसे कहते हैं जिनमें खुद की कोई समझ नहीं होती है, ये मानसिक रूप से गुलाम, वैचारिक रूप से विकलांग होते हैं! ये भक्त सिर्फ और सिर्फ कूप मंडूक होते हैं, पूरे लकीर के फकीर मानसिक गुलाम होते है! इन सबकी वजह यही है कि धर्म की सत्ता उसके मानने वालो की मानसिक गुलामी व मानसिक विकलांगता पर ही टिका है! उदाहारार्थ - हिन्दू राष्ट्र की बात करने वाला सावरकर खुद हिन्दु धर्म के बारे में ना कुछ पढा था, ना कुछ जानता था! इस्लामिक स्टेट की बात करने वाला जिन्ना भी इस्लाम को पसंद नहीं करता था! लेकिन दोनों ने ही धर्म के नाम लाखों को मौत के घाट उतरवा दिया! पहले हुए, आज हो रहे और भविष्य में होने वाले सभी अमानवीय बुराइयों का कारण धर्म ही होगा!
ऐसे में सभी भक्तों के लिए जरूरी है कि वे अपने तर्क पट को खोले, उनकी मानसिक विकलांगता खुद-ब-खुद दूर हो जायेगी! ध्यान रहे समाज को हिन्दू मुस्लिम सिख इसाई की नही बल्कि सिर्फ और सिर्फ इंसान चाहिए! धर्म तो बांटता है, तर्क व वैग्यानिकता हमें एक करती हैं! इसीलिए समाज को मानवता के हित वाले नैतिक मूल्यों, तर्क व वैग्यानिक सोच की जरूरत है, बजाय कि किसी हिन्दू-मुस्लिम जैसे हिंसक अमानवीय निकृष्ट धर्म के!
जय भीम, जय भारत!
रजनीकान्त इन्द्रा
इतिहास छात्र
इग्नू नई दिल्ली
जनवरी ०२, २०१८


राजनीति के साँप


प्रिय मूलनिवासी बहुजन साथियों,  
मूलनिवासी बहुजन महानायिका वीरांगना बहन कुमारी मायावती जी की सांपनाथ-नागनाथ थ्योरी, जिसमें बहन जी ने कांग्रेस को सांपनाथ और बीजेपी को नागनाथ कहा था, से आगे बढ़ने की जरूरत है! 
हमारे विचार से, भारत के जातिवादी नारीविरोधी मनुवादी सनातनी वैदिक ब्रहम्णी हिन्दू धर्म, संस्कृति व सामाजिक-राजनैतिक-आर्थिक व्यवस्था में यदि कांग्रेस सांपनाथ है, बीजेपी नागनाथ है तो कम्युनिस्ट संग अन्य क्षेत्रीय राजनैतिक दल जो किसानों-मजदूरों-अल्पसंख्यकों व पिछडों की नुमाइंदगी करने का दावा करती हैं, अजगर है! पूरे शोषण तंत्र पर गौर करे तो हम पाते हैं कि कांग्रेस, बीजेपी व कम्युनिस्ट संग अन्य क्षेत्रीय राजनैतिक दल जो किसानों-मजदूरों-अल्पसंख्यकों व पिछडों की नुमाइंदगी करने का दावा करती हैं, ये सब ही मूलनिवासी बहुजन समाज के लिए खतरनाक है!
ऊपर वर्णित के मद्देनजर हम कह सकते हैं कि मूलनिवासी बहुजन समाज के लिए हर वो राजनैतिक व गैर-राजनैतिक दल, समाजिक व आर्थिक क्षेत्र में कार्यरत हर दल, हर संगठन खतरनाक है, जो बाबा साहेब डॉ अम्बेडकर व मान्यवर काशीराम साहेब के विचारधारा से इतर है! इसलिए मूलनिवासी बहुजन समाज को अपने भविष्य का फैसला करते समय हमेशा "सांपनाथ-नागनाथ-अजगर" थ्योरी को जहन में रखकर ही निर्णय करना होगा, अन्यथा परिणाम भारत के लोकतन्त्रिक व संवैधानिक मंशा के प्रतिकूल ही होगा!
धन्यवाद...
जय भीम, जय भारत!
 
रजनीकान्त इन्द्रा
इतिहास छात्र
इग्नू नई दिल्ली
दिसंबर २१, २०१७


ढोंगी प्रगतिशीलता


प्रिय मूलनिवासी बहुजन साथियों, 
कुछ ऐसे ब्रहम्ण व ब्रहम्णी रोगी जो अपने आप को प्रगतिशील दिखाना चाहते हैं या अपने प्रगतिशीलता के भ्रम में जी रहे हैं, उनका का कहना है कि ब्रहम्ण कोई जाति नहीं बल्कि एक अवस्था मात्र है! इस बात मे आयोटा मात्र सच्चाई नहीं है!
ये सच है कि ब्रहम्णी रोग से पीडित हर रोगी एक ब्रह्मण है! लेकिन ये और भी बड़ा सच है कि ब्रहम्णी हिन्दू व्यवस्था में जाति ही सबसे बड़ी एक मात्र सच्चाई है जिस पर नारीविरोधी जातिवादी मनुवादी सनातनी वैदिक ब्रहम्णी हिन्दू धर्म व संस्कृति (भारत की समस्त कुरीतियों, बुराइयों, अन्याय, पाखण्ड, गाय-गोबर-गौमूत्र आदि से ओत-प्रोत) की इमारत खड़ी है!
यदि ब्रहम्णों व ब्रहम्णी रोगियों की ये बात मान ले कि भारत के समाजिक पटल पर ब्रहम्ण जाति नहीं, सिर्फ और सिर्फ अवस्था मात्र है तो आज के समय में भी ब्रहम्ण समुदाय में पैदा हुआ हर ब्रह्मण इस ब्रहम्णी रोग से मुक्त क्यों नहीं होना चाहता है? यदि ब्रहम्ण एक अवस्था मात्र है तो ये ब्रहम्ण व ब्रहम्णी रोगी इस रोग से बाहर क्यों नहीं निकल पा रहे हैं जबकि सदियों से सारी मेरिट के ठेकेदार यही है?
आगे फिर इन्हीं ब्रहम्णों व ब्रहम्णी रोगियों का कहना है कि बुद्ध व बाबा साहेब मूर्तियों की स्थापना के विरोधी थे लेकिन मूलनिवासी बहुजन समाज ने तो बुद्ध व बाबा साहेब की ही मूर्तियाँ बना डाली है! ऐसे ब्रहम्णी रोगियों से यही कहना है कि बुद्ध व बाबा साहेब डॉ अम्बेडकर ब्रहम्णों की तरह मूर्ति पूजा कर्मकाण्ड, ढोंग, पाखण्ड, कुतर्क व अवैग्यानिकता के खिलाफ थे, तर्कवाद, वैग्यानिकता, समता-स्वातंत्रता-बधुत्व व मानवता का संदेश देते प्रेरणा स्रोत स्वरूपा बुद्ध, बाबा साहेब डॉ अम्बेडकर व अन्य सभी बहुजन महानायको व महानायिकाओं के मूर्तियों के नहीं!
सनद रहे, बुद्ध व बाबा साहेब के मूर्तियाँ ब्रहम्णी देवी-देवताओं की तरह नहीं है! ब्रहम्णी देवी-देवताओं की मूर्तियाँ पूजा-पाठ, अंधविश्वास, कर्मकाण्ड, ढोंग, पाखण्ड, कुतर्क व भारत में व्याप्त हर बुराई का कारण है! जबकि बुद्ध व बाबा साहेब की मूर्तियाँ तर्क, वैग्यानिकता, समता-स्वातंत्रता-बधुत्व व मानवता के प्रतीक व प्रेरणा स्रोत मात्र हैं!
उदाहरणार्थ- ब्रहम्णी मंदिरों में पूजा-पाठ होता है लेकिन लखनऊ के अम्बेडकर पार्क में बुद्ध व बाबा साहेब की मूर्तियों का नही, क्यों? क्योंकि ये मूलनिवासी बहुजन समाज के महानायकों व महानायिकाओं की मूर्तियाँ तर्क, वैग्यानिकता, समता-स्वातंत्रता-बधुत्व व मानवता के प्रतीक व प्रेरणा स्रोत मात्र है!
ब्रहम्णों व ब्रहम्णी रोगियों के ध्यान देने योग्य बात यह भी है कि उ. प्र. को ही नहीं बल्कि समूचे भारत को अम्बेडकरमय करने वाले मान्यवर साहेब काशीराम व मूलनिवासी महानायिका वीरांगना बहन कुमारी मायावती जी ने खुद ही कहा है कि बुद्ध, बाबा साहेब व अन्य मूलनिवासी बहुजन महापुरुषों की मूर्तियाँ तर्क, वैग्यानिकता, मानवता, समता-स्वातंत्रता-बधुत्व का प्रतीक व प्रेरणा स्रोत मात्र है!
ब्रहम्णव ब्रहम्णी रोगी सिर्फ और सिर्फ बदनाम करने के लिए बुद्ध व बाबा साहेब की मूर्ति के संदर्भ में ऐसा कहते हैं और आरोप लगाते हैं कि बुद्ध व बाबा साहेब मूर्तियों के खिलाफ थे लेकिन मूलनिवासी बहुजन समाज के बुद्ध व बाबा साहेब की मूर्तियाँ ही लगा डाली है!
जहॉ तक रही बात निर्वाण व मोक्ष की तो निर्वाण व मोक्ष में उतना ही अंतर है जितना कि धम्म व धर्म में, ग्यान व अग्यान में, मनुस्मृति व बाबा साहेब रचित भारत संविधान में! बुद्धिज्म को ब्रहम्णों ने षडयंत्र के तहत धर्म कहा है जबकि हर बुद्धिस्ट व अम्बेडकरवादी आज बुद्धिज्म को धम्म ही कहता है, धर्म नहीं!
बुद्धिज्म के दस्तावेजों आदि को नष्टकर ब्राह्मणों व ब्रहम्णी रोगियों ने बुद्धिज्म के मूल स्वरूप को ही बदल दिया है, विकृत कर दिया है! जिसके चलते सरल सहज बुद्धिज्म में पुरोहितवाद ने जन्म ले लिया! नतीजतन, सरल सहज बुद्धिज्म हीनयान, महायान जैसी शाखाओं में बंट गया! परिणाम स्वरुप, बुद्धिज्म कमजोर हुआ, ब्रहम्निज्म ने भारत को अपनी बुराइयों के आगोश में समेट लिया, लेकिन मिटा नही सका!
धन्यवाद...
जय भीम, जय भारत!
 
रजनीकान्त इन्द्रा, इतिहास छात्र, इग्नू नई दिल्ली
दिसम्बर २०, २०१७

हमारी लड़ाई, हमारी अगुवाई


प्रिय बहुजन साथियों,
विषय - हमारी लड़ाई, हमारी अगुवाई
प्रिय मूलनिवासी बहुजन साथियों,
किसी का युद्ध कोई और लड़ेगा तो शोषण का कार्यकाल बढ़ता ही जायेगा! उदाहारार्थ - जब-जब वंचित जगत की लड़ाई वंचित/मूलनिवासी/बहुजन जगत के महानायकों (डॉ अम्बेडकर, मान्यवर काशीराम साहेब, बहन कुमारी मायावती जी आदि) के नेतृत्व में लडी गयी है, परिणाम सकारात्मक व सफल रहा है! लेकिन जब-जब इन्होनें अपने मुक्ति का नेतृत्व अपने शोषकों, तथाकथित पाखण्डी हितैषियों (कांग्रेस, बीजेपी व कम्युनिस्ट आदि) के हाथों में सौंपा है तब-तब इनके हर तरह के शोषण में घातांकीय इजाफा ही हुआ है!
ठीक इसीतरह, आज तक महिलाओं के हकों की लड़ाई इनका शोषक पुरूष ही लड़ता आ रहा है! नतीजा, महिला हकों की लड़ाई के नाम पर पुरूष वर्ग सरेआम महिलाओं के ही हकों को दफन कर महिलाओं की ही आजादी छीन रहा है!
इतिहास गवाह है कि कभी लव-जिहाद, कभी संस्कार-संस्कृति तो कभी इज्जत-मर्यादा के नाम पर खुद महिलाओं को ही निशाना बनाया जाता रहा है! सरकारे बिना समुचित स्वप्रतिनिधित्व के नारी समाज के सशक्तिकरण के लिए तमाम योजनाओं को घोषित करती रही है लेकिन आज तक वांछित परिणाम देखने को नहीं मिला हैं! उल्टा, नारी समाज के प्रति होने वाले अपराध बढ़ते ही जा रहे हैं! इतिहास पर गौर कर हम निसंदेह कह सकते हैं कि नारी जगत की मुक्ति नारियों के अगुवाई में ही संभव है, इनके शोषक पुरुषों की अगुवाई में नहीं!
इसीतरह से, किसानों का आन्दोलन सफल नही हो सका क्योंकि उनका नेतृत्व व प्रतिनिधित्व करने वाले किसान नही, बल्कि शहरों के वातानुकूलित महलों में बैठे सामान्त है!
मजदूरों की समस्याएं जस की तस बनी हुई हैं क्योंकि मजदूरों का नेतृत्व करने वाले या तो खुद पूंजीपति है या फिर उनके आदर्श गुलाम!
विक्लांगों, किन्नरों का हक आज भी अधर में अटका है क्योंकि उसका प्रतिनिधित्व खुद वो नहीं बल्कि ब्रहम्णों व ब्रहम्णी रोगियों द्वारा किया जाता रहा है!
निष्कर्ष के तौर पर हम ये कहना चाहते हैं कि जिनके लिए तमाम युद्ध उनके अगुआ बनकर उनके स्वघोषित हितैषियों द्वारा लड़े जा रहे हैं, यदि उनके लिए युद्ध का तांडव करने वाले उनके युद्ध में उनकों ही अगुआ बनकर अपनी लड़ाई खुद लड़ने दे तो परिणाम बेहतर होगें!
धन्यवाद...
जय भीम, जय भारत!
रजनीकान्त इन्द्रा, इतिहास छात्र, इग्नू नई दिल्ली
दिसम्बर २०, २०१७

तिहारी मार झेलती वंचित समाज की नारी


प्रिय बहुजन साथियों, 
भागलपुर बिहार में बिंदिया के साथ जो जघन्यता की गयी उसे सिर्फ महिला के साथ हुए अत्याचार के रूप में देखना भारतीय समाजिक व्यवस्था के जाति की सच्चाई को इंकार करना है!
महिला के साथ अन्याय हुआ है लेकिन ब्रहम्णी सामाजिक व्यवस्था में बिंदी सिर्फ एक महिला नही है बल्कि एक वंचित जगत की मूलनिवासी महिला है!
एक लड़की का दिल्ली में गैंग रेप हुआ था तो जन-सैलाब उमड गया था लेकिन उसी समय तमाम वंचित जगत की महिलाओं के संग जघन्यतम रेप हुआ लेकिन समाज शान्त रहा, क्यों?
यदि दिल्ली गैंग रेप के लिए उमडा जन-सैलाब महिला सम्मान, सुरक्षा व हक के लिए होता तो उसमें दिल्ली गैंग रेप के साथ वंचित जगत की महिलाओं के साथ हुआ जघन्यतम अत्याचार भी काउण्ट होता लेकिन ऐसा नही हुआ, क्यों? क्योंकि दिल्ली गैंग रेप के खिलाफ उमडा जन-सैलाब सिर्फ और सिर्फ सवर्ण महिलाओं के लिए ही था! हाय-तौबा करने वाले लोग भी सवर्ण थे! प्रचारित-प्रसारित करने वाला मीडियातंत्र भी सवर्ण ही था!
भारत में महिलाओं के साथ हो रहे कुल अत्याचारों में मूलनिवासी समाज की महिलाओं के साथ ही अधिकतर अत्याचार क्यों होते हैं! आकडों पर गौर करे तो हम पाते हैं कि भारत में होने वाले अधिकतर अत्याचार जाति आधारित ही क्यों होता है! हर घण्टे दो-तीन मूलनिवासी समाज की महिलाओं के साथ बलात्कार होता है, क्यों? इसके पीछे समाजिक, राजनैतिक व आर्थिक कारण गिनाये जा सकते हैं लेकिन ये याद रहना चाहिए कि - All Social, Cultural, Economic and Political Reasons, behind the all kind of Atrocities with Moolnivasi Bahujan Samajh, are function of the Caste. And, I firmly and Strongly believe that If root cause is Caste then Treatment must be Based on Caste, Not the Symptoms only.
I admit the Gender Discrimination. But in Indian Social Structure, Caste Discrimination is Primary Cause and Gender Discrimination is Secondary.
Since, Last Three Month I am Reviewing the files sitting inside the Higher Judiciary, I found the almost all Cases regarding Rape, Gang Rape, Molestation and other are belong to SC Women, Why?
We have to raise our voice based on root cause, Not just on the basis of symptoms only. Even today, Brahmanical People consider their Females as Women, and SC-ST-OBC Women just as their property. Do you still think that it is just gender issue? No Sir, It's Caste issue first and gender issue & rest later.
Yes, to have Mass support and to sensitize the people and the institutions of Justice, Administration & Governance, One can make it Gender issue primary and Caste issue as secondary. But, One must remember that in reality All these are Caste issue First.
One may blame us Castiest, But We don't care.
जय भीम, जय भारत!
रजनीकान्त इन्द्रा, इतिहास छात्र, इग्नू नई दिल्ली
दिसम्बर १७, २०१७


ब्राह्मणी आतंकवाद की सत्ता


प्रिय बहुजन साथियों,
आज देश के प्रति वफादारी की परिभाषा बदल चुकी है! विकास के मायने बदल चुका है! सवालों व तर्को पर पाबंदी लगाई जा चुकी है! विश्वविद्यालय व इसके पाठ्यक्रम तर्क व तथ्य के बजाय ब्रहम्णी विचारधारा को परोसकर बुद्धिजीवी नही, हिन्दू आतंकवादी पैदा कर रहे हैं!  
भारत की सरजमीं पर नौ दशकों से पल रहा जातिवादी नारीविरोधी मनुवादी सनातनी वैदिक ब्रहम्णी हिन्दू आतंकवादी संगठन (आरएसएस) का ब्रहम्णी हिन्दू आतंक समूचे भारत को अपने आगोश में समेट चुका है! संविधान को ताख पर रखकर मनुवाद को पूर्णतः अंगीकार किया जा चुका है!
बुद्ध-अम्बेडकर की जन्म व कर्म भूमि पर सरे-बाजार कत्ल-ए-आम किया जा रहा है! शोषक खुद को मसीहा बता रहा है! जंग-ए-आजादी के दरमियान अंग्रेजी हुकूमत के लिए मुखबिरी करने वाले देश के वफादार कहे व कहलवाये जा रहे हैं! भारत को पहचान दिलाने वाले कत्ल किये जा रहे हैं!
सरकारी कार्यालयों पर तिरंगे के बजाय ब्रहम्णी आतंकवाद के प्रतीक भगवा ध्वज को निडारता से फहराया जा रहा है! गरीब लाचार इंसान को कुल्हाड़ी से काटकर जिन्दा सिर्फ इसलिए जलाया जा रहा है क्योंकि वह मुसलमान है! मुंगेर-भागलपुर में वंचित जगत को जानवरों के साथ जिन्दा जला दिया जा रहा है!
इंसानियत को शर्मसार करने वाले इन दरिंदो को कुंठित ब्रहम्णी हिन्दू समाज अपनी रजामंदी ही नहीं दे रहा बल्कि इन दरिंदो के समर्थन में सड़क पर आ चुका है!
संसद मौन है! न्यायपालिका में सन्नाटा है! कार्यपालिका ऩिरंकुश है! चुनाव में ईवीएम मशीनों को नही बल्कि चुनाव आयोग को ही हैक व हाईजैक किया जा चुका है!
मंजर यह है कि न्यायपालिका के जजेज, चुनाव आयोग के आयुक्त, मानवाधिकार के संगठन, खुद मानवाधिकार आयोग व मुख्यधारा मीडिया ब्रहम्णी हिन्दू आतंकवादियों की रखैल बन उनके बिस्तर पर लोट रही हैं!
मूलनिवासी समाज, उसकी अस्मिता व उनकी की बहन-बेटिया पूर्णतः असुरक्षित है! मानवता कराह रही है! ब्रहम्ण व ब्रहम्णी रोगी तांडव कर रहे हैं! ये ब्रहम्णी हिन्दू आतंकवादी सरेआम भारत के बदन को नोच रहे हैं! ये हिन्दू आतंकवादी भारत का रेप नही, गैंग रेप कर रहे हैं! भारत लाचार है! लोकतंत्र अंतिम सांसे गिन रहा है! संविधान को पहेले ही कैदकर कालकोठरी में पहुँचाया जा चुका है!
दृश्य ऐसा है जैसे कि बेबस-लाचार भारत किसी की राह देख रहा है! हॉ, ऱाह ही तो देख रहा है! उनकी राह जिन्होंने (मूलनिवासी) भारत को विदेशियों (ब्रहम्ण-सवर्ण) से आजाद कराने का संकल्प उठाया था!
लेकिन दुःखद है क्योंकि, मूलनिवासी समाज आज भी अपनी थोथी जातीय उच्चता व वर्चश्वता के लिए ही लड़ रहा है! भगवान के चंगुल में फंसा भक्त बना हुआ है! अपने पुरखों को, अपने इतिहास को, अपने साथ हो रहे अत्याचार को नजरअन्दाज करता नजर आ रहा है! लेकिन कब तक?
फिर भी मन के सुरंग के अंतिम छोर पर आशा की किरण दिख रही क्योंकि लोकतन्त्र की खूबी है कि यह अपने घाव खुद ही भरता है! लेकिन फिर भी मन चिंचित है क्योंकि भगवा आतंकवाद इस मंजर के खत्म होते-होते तमाम निर्दोषों को दफन कर चुका होगा!
जय भीम, जय भारत!
रजनीकान्त इन्द्रा, इतिहास छात्र इग्नू नई दिल्ली
दिसम्बर १७, २०१७

बहन जी पर ब्राह्मणी आरोप


प्रिय बहुजन साथियों, 
"ब्रह्मण व अन्य सभी ब्रहम्णी रोग से ग्रसित रोगी मूलनिवासी महानायिका वीरांगना बहन कुमारी मायावती जी को दौलत की बेटी कहते हैं! इनके निगाह में दौलत की बेटी ही सही लेकिन ये रोगी भी इस बात को मानते है कि इसी मूलनिवासी महानायिका बहन कुमारी मायावती जी ने उस ब्रह्मणी व्यवस्था की हलक में हाथ डाल अपनी व अपने मूलनिवासी समाज की अस्मिता को स्थापित किया है जिस ब्रहम्णी व्यवस्था ने मूलनिवासी समाज के अपनी मेहनत की कमायी हुई दौलत तक के रखने पर पाबंदी लगा रखी थी!"
धन्यवाद 
जय भीम, जय भारत! 
जय भीम, जय भारत!
रजनीकान्त इन्द्रा, इतिहास छात्र इग्नू नई दिल्ली
दिसम्बर १६, २०१७


ओबीसी-ब्राह्मणों का लठैत


प्रिय बहुजन साथियों,  
हम इस बात को स्वीकार करते हैं कि हम व हमारे बुद्ध-अम्बेडकरी विचारधारा के साथी अभी तक समस्त बहुजन समाज को बुद्ध-अम्बेडकरी विचारधारा से नही जोड पाये है, हालांकि हमारा बुद्ध-अम्बेडकरी करवॉ निरन्तर आगे बढ़ रहा है और लोगों तक पहुँच रहा, जिसकी वजह से बहुजन समाज का एक बड़ा तबका (पिछड़ा वर्ग) खुद को हिन्दू समझता है और ब्रहम्णों की तरफ से लठैती करता है, परिणामस्वारुप ब्रहम्ण खुद सुरक्षित रहता है और बहुजनों को धर्म के नाम पर बलि चढ़ाता है! फिलहाल, पिछड़े बहुजनों के इसी लठैती की बदौलत ब्रहम्ण बहुजन व मुस्लिम समाज में एक-दूसरे के प्रति नफ़रत फैलाता है! आज इसी ऩफरत के व्यापार की बदौलत ब्रहम्णी आतंकवादियों ने सत्ता पर कब्जा कर लिया है, नतीजतन- पूरे देश में ब्रहम्णी शासन की सह में बीच बजार कभी बीफ के नाम पर, कभी लव-जिहाद, कभी देशभक्ति, कभी गाय तो कभी गोबर तक के नाम पर बहुजनों, अल्पसंख्यकों के साथ-साथ लेखक, पत्रकार, व अन्य सभी बुद्धिजीवियों आदि के कत्ल को बेख़ौफ अंजाम दिया जा रहा है, लेकिन ये गलती (लोकसभा चुनाव-2014 और उ. प्र. विधानसभा चुनाव-2017) बार-बार नही होगी! 
याद रहे, ये लोकतन्त्र की खूबी है कि यह अपने घाव खुद ही भरता है!
धन्यवाद
जय भीम, जय भारत!
रजनीकान्त इन्द्रा, इतिहास छात्र इग्नू नई दिल्ली
दिसम्बर १६, २०१७

राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द ?



प्रिय साथियों,
अगर किसी को लगता है कि माननीय रामनाथ कोविन्द जी बीजेपी की बदौलत राष्ट्रपति बने है तो वह बहुत बड़ी गलतफहमी में है!
जगजीवन राम व इनके जैसों की कांग्रेस आदि में पूछ सिर्फ और सिर्फ इसलिए थी क्योंकि बाबा साहेब अपने वैचारिकी से लगातार गांधी व कांग्रेस को मुखर प्रखर व प्रबल रूप चैलेंज कर रहे थे! ठीक इसीतरह से यदि आज माननीय रामनाथ कोबिन्द जी, मीरा कुमार, राम विलास पासवान, अठावले आदि जैसों की की यदि आज ब्रहम्ण मण्डली में कोई पूछ है तो वह देन हैं-
1) बहुजन समाज के राजनैतिक सशक्तिकरण की,
2) बाबा साहेब डॉ अम्बेडकर के दिखाये रास्ते की जिस पर चलकर बहुजन समाज के राजनैतिक सशक्तिकरण हुआ,
3) बहुजन समाज को राजनीति पहचान दिलाने वाले मान्यवर काशीराम साहेब और बहुजन महानायिका वीरांगना बहन कुमारी मायावती जी के अथक संघर्ष व अदम्य साहस की!
बहुजन समाज के गद्दारों की पूछ सिर्फ तब तक ही है जब तक कि बीएसपी, बहन कुमारी मायावती जी और बहुजन समाज व उसके राजनीति की रीड मजबूत है!
धन्यवाद
जय भीम, जय भारत!
रजनीकान्त इन्द्रा, इतिहास छात्र इग्नू नई दिल्ली
दिसम्बर १६, २०१७