Wednesday, July 17, 2019

बसपा की खिलाफत करते ब्राह्मणी बहुजन संगठन


ये सीधा सा सवाल हैं कि यदि बसपा अम्बेडकरवादी नहीं हैं तो ब्राह्मणी संगठन बसपा की खिलाफत करने वाले लोगों, आर्मियों, सेनाओं, दलों और तथाकथित बहुजन अधिकारी-कर्मचारी संगठनों को प्रमोट क्यों करते हैं। ये संगठन ब्राह्मणों व ब्राह्मणी संगठनों को खुलेआम गालीदेते हैं लेकिन फिर भी कोई ब्राह्मणी संगठन इनका विरोध नहीं करता हैं जबकि ब्रह्माणी व्यवस्था के खिलाफ लिखने वाले लेखकों की हत्या तक कर दी जाती हैं, जबकि ऐसे तथाकथित बहुजन संगठनों के पास जनाधार के नाम पर खुद उनके घर के लोग भी साथ नहीं हैं, बहुजन समाज तो बहुत दूर की बात हैं। ये लोग जब गुजरात में जेल भरों आंदोलन की बात करते हैं तो खुद इनके मुखिया और इनके चमचों के आलावा दूर-दूर तक कोई दिखाई नहीं पड़ता हैं। 

बसपा की वजह से जिन बहुजन संगठनों को ब्राह्मणी संगठनों द्वारा फण्ड मिल रहा हैं, जिनकी बुनियाद (रजिस्ट्रैशन) ब्राह्मणी फण्ड पर टिका हैं, वो ब्राह्मणी संगठनों को अम्बेडकरवादी मानते हैं और सबूत मागंते हैं कि सिद्ध कीजिये कि बसपा अम्बेडकरवादी हैं। 

जिन तथाकथित बहुजन संगठनों का रजिस्ट्रैशन (नींव) ही ब्रहम्णी फण्ड से हुआ हो वो बसपा पर मिशन से भटकने का झूठा आरोप लगाते हैं!

जब कोई ब्रहम्ण-सवर्ण व्यक्तिगत फायदे के लिए फण्ड देता है तो वो उसके निजी लाभ तक सीमित रह जाता है... इससे वो बहुजन समाज पार्टी की सरकार में बहन जी की नीतियों को प्रभावित नहीं कर सकता है! 
लेकिन जब कोई ब्रहम्णी संगठन जैसे आरएसएस, बीजेपी-कांग्रेस आदि किसी बहुजन संगठन को फण्ड करते हैं तो वो खुद उस संगठन का एजेण्डा तक तय करते हैं, और ये कहते हैं कि आपको कब ब्रहम्णी संगठनों का विरोध करना है, और कब बहन जी और बसपा का विरोध करना है! आप देखिये ब्रहम्णी संगठनों द्वारा फण्डित ऐसे बहुजन संगठन आम समय में ब्रह्मणी दलों जैसे कि बीजेपी-कांग्रेस आदि को कोसते हैं लेकिन जब ब्रहम्णी संगठन को फायदा पहुँचाना होता तो वो बहन जी और बसपा का विरोध करने लगते हैं.... और खुद की राजनैतिक पार्टी लांच कर चुनाव लड़ने की घोषणा कर देते हैं! ऐसे में ये किसके वोट में सेंध लगाते हैं... और ये किसकों फायदा पहुंचाते हैं? ये तय करता है कि ऐसे बहुजन संगठन हकीकत में ब्रहम्णी दलों व संगठनों के लिए कार्य करते हैं, और बहन जी व बसपा जैसे मिशन वाले दलों को सीधे नुकसान पहुंचाने का असफल प्रयास करते हैं!

कुछ गुमराह दलितों-बहुजनों को आज तक ब्रहम्णी संगठनों द्वारा दिये गए फण्ड व किसी ब्रहम्ण-सवर्ण द्वारा दिये गये फण्ड तक का अंतर नही मालूम है! यही लोग बसपा को कोसते हैं और बहुजनों को गुमराह करते हैं!

अडानी-अंबानी, सवर्ण नेताओं आदि के पास दौलत हो तो गुमराह दलित पचा लेता है क्योंकि उसे भी लगता है कि दौलत ब्रहम्णों-सवर्णों के पास ही हो सकती है लेकिन यदि कुछ दौलत किसी दलित-बहुजन नेतृत्व के पास हो, वो अच्छे घरों में रहने लगे, मंहगी गाड़ियों से चलने लगे तो.... ये खुद गुमराह दलितों-बहुजनों को ही नहीं पचती है, क्यूँ? क्योंकि इनकों सवर्णों के खरबों से दिक्कत नही है लेकिन अपने समाज के ही चंद लाख रखने वाले नेताओं से दिक्कत होती है.... इसीलिए मान्यवर इनकों केकड़ा कहते थे.....

कुछ गुमराह व ब्रह्मणी संगठनों द्वारा फण्डित रजिस्टर्ड बामसेफ वाले बसपा पर मिशन डूबोने को आरोप लगा रहे हैं, जो कि बेबुनियाद है, लेकिन इन रजिस्टर्ड बामसेफियों ने ही मिशन को कौन सा चार चांद लगा दिया है... इन बामसेफियों के दर्जनों रजिस्टर्ड बामसेफ हैं, इन सबकी सदस्यता भी कोई खास नहीं है तो ऐसे में ये सवाल लाजमीं है कि इनको यदि ब्रहम्णी संगठन फण्ड नहीं करता है तो फण्ड इनकों मिलता कहॉ से है? ये कहते हैं कि इनकी लड़ाई बीजेपी-कांग्रेस आदि की नीतियों से है तो बहन जी ने बहुजन समाज को कौन सा नुकसान किया है.... और यदि बहुजन समाज के लिए बहन जी ने कुछ नहीं किया है तो इन रजिस्टर्ड बामसेफियों ने ही क्या किया है?

आरएसएस ने बीजेपी के लिए कार्य किया है लेकिन रजिस्टर्ड बामसेफियों ने आज तक बसपा के लिए क्या किया है? किस आधार पर ये बसपा में एंट्री चाहते हैं, और क्यूँ बहन जी इनकों तवज्वों क्यूँ दे?

रामदास अठावले, रामविलास पासवान, उदितराज और रजिस्टर्ड बामसेफ वाले ब्रहम्णी से शादी करके अम्बेडकरवादी रह सकते हैं लेकिन सामाजिक संरचना की मजबूरी के चलते बसपा कुछ ब्रहम्णों-सवर्णों को टिकट देकर नहीं, ऐसा क्यूँ है?

रजिस्टर्ड बामसेफी कहते हैं कि वो गैर-राजनैतिक संगठन के तौर पर कार्य करना चाहते हैं तो फिर आपको बसपा में एंट्री पाने की बात बार-बार क्यूँ करते हो?

रजिस्टर्ड बामसेफ थिंकटैंक के तौर पर कार्य करना चाहता है! क्या थिंकटैंक के तौर पर कार्य करने के लिए बसपा में एंट्री जरूरी है?

कुछ रजिस्टर्ड बामसेफियों को लगता है कि बहन जी की ही वजह से बामसेफ वाले बहन जी को छोड़ के चले गए... जनाब आपको तो राजनीति करनी ही नहीं थी, आपने तो मान्यवर का भी विरोध किया था तो आपको राजनीति में एकाएक रूचि कैसे आ गई? जिन लोगों ने बसपा को छोडा है, लगभग सभी लोग मान्यवर साहेब के समय में ही या तो खुद छोड़कर चले गए या फिर मान्यवर साहेब ने ही किनारे लगा दिया? ऐसे जो बामसेफी खुद को गैर-राजनैतिक मानकर समाज सेवा करना चाहते हैं तो उनके लिए बहन जी कैसे बाधा बन गई? आप हर बात के लिए बहन जी को ही कोसते रहते हो, क्या बहन जी ने आप पर कोई पाबंदी लगा रखीं हैं? आपको वोट लेना नहीं है, गैर-राजनैतिक संगठन के तौर पर समाज में जागरूकता लाना है.... क्या ऐसा करने से बहन जी आपको रोकती हैं? जहॉ तक हम जानते हैं, बहन जी ने तो कभी किसी रजिस्टर्ड बामसेफ का जिक्र तक नहीं किया है, ना ही आपकी खिलाफत की है, ना ही आपके जनजागरण के कार्य में कोई बाधा उत्पन्न की हैं तो फिर आपको बहन से क्या समस्या हो सकती है? कहीं ये बहन जी के प्रति आपकी नफ़रत और राजनैतिक लालसा तो नहीं है?

रजिस्टर्ड बामसेफियों को आरोप है कि बहन जी मान्यवर साहेब के बताये रास्ते से थोड़ा विचलित हो गई है! यदि इस आरोप, जो कि पूरी तरह से निराधार है, गलत है, को थोड़ी देर के लिए सही मान भी लिया जाय तो खुद को मान्यवर का अनुयायी कहने वाले रजिस्टर्ड बामसेफी अलग-अलग रजिस्टर्ड बामसेफ बनाकर क्यूँ घूम रहे हैं?

यदि रजिस्टर्ड बामसेफियों आरएसएस की तरह कार्य करना चाहते हैं तो ये सवाल वाजिब है कि आरएसएस तो एक ही है, वो भी गैर-पंजीकृत, तो भी दर्जनों, वो भी रजिस्टर्ड, बामसेफ अस्तित्व में कैसे आ गये?

आरएसएस ने एक बार बीजेपी बनाई, बीजेपी पूरे भारत में दो सीट तक सिमट कर रह गयी...लेकिन आरएसएस ने दुसरी पार्टी तो नहीं बनाई बल्कि बीजेपी के साथ ही मजबूती के साथ खड़ी रही लेकिन खुद को बहुजन का थिंकटैंक कहने वाले रजिस्टर्ड बामसेफी बसपा का साथ कभी देना ही नहीं चाहते हैं, अपनी अलग-अलग राजनैतिक पार्टी बनाकर घूम रहे हैं, क्यूँ?

यदि रजिस्टर्ड बामसेफ वाले खुद को आरएसएस जैसा मानते है तो वो समीक्षा करने के बजाय बसपा को मिटाने पर क्यूँ तुले रहते हैं जबकि ये मान्यवर की बनाई पार्टी है, और मान्यवर साहेब की ही चुनी हुई बहन जी इसकी माननीया अध्यक्षा हैं!

रजिस्टर्ड बामसेफी कहते हैं कि वो आरएसएस की तरह थिंकटैंक के तौर पर कार्य कर रहे हैं, यदि आप थिंकटैंक है तो सीधी राजनीति क्यूँ, अलग राजनैतिक दल क्यूँ, जबकि आप जिन मान्यवर साहेब के अनुयायी बनते हो उनकी खुद की राजनैतिक पार्टी सफलतापूर्वक अपनी अस्मिता को कायम कर चुकी है!

हम ये कतई नही कहते हैं कि मान्यवर साहेब की थ्योरी समीक्षा से परे है लेकिन फिर भी यदि बामसेफियों को मान्यवर साहेब की थ्योरी कुछ गलत लगती है या उसमें संसोधन की जरूरत है तो रजिस्टर्ड बामसेफी ये बताये कि उन्होनें क्या संसोधन किये, क्या लक्ष्य रखा और आज दो दशक से अधिक समय बीत जाने पर आपने क्या एचींव किया?

बामसेफ जैसे संगठन से आगे बढ़ कर मान्यवर ने बसपा बनाया तो बामसेफियों ने विरोध किया, फिर क्या कारण है लगभग सभी प्रकार के बामसेफ अपने-अपने राजनैतिक पार्टी बना रहे हैं, जबकि ये लोग तो सिर्फ गैर-राजनैतिक संगठन के तौर पर ही संघर्ष करने की पैरवी कर थे?

अलग-अलग बामसेफ (रजिस्टर्ड) का अस्तित्व में आना बामसेफ की घोर विफलता का प्रमाण है! बामसेफ मान्यवर साहेब ने बनाई! आज सारे बामसेफी खुद को मान्यवर का अनुयायी बताते है तो फिर ढेरों बामसेफ कैसे बन गए या रजिस्टर्ड हो गए! क्या वजह थी कि मान्यवर साहेब ने बामसेफ का रजिस्ट्रैशन करवाने से मना कर दिया?
फिर ऐसे कौन सी आफत आन पड़ी कि मान्यवर साहेब को बाईपास करके बामसेफ का रजिस्ट्रैशन करवाया गया, जबकि मान्यवर सहमत नहीं थे? क्या रजिस्टर्ड करवाकर ही मिशन चलाया जा सकता है? अपने आप को बहुजनों का आरएसएस समझने वाले बामसेफ को रजिस्टर्ड कराने की क्या जरूरत थी जबकि आरएसएस का आज तक रजिस्ट्रैशन कराया गया है? बामसेफ के संस्थापक मान्यवर साहेब ने जब बामसेफ को रजिस्टर्ड कराने से मना कर दिया तो बामसेफ को रजिस्टर्ड क्यूँ कराया गया? बहुजन मुक्ति मोर्चा, अम्बेडकाराइट पार्टी ऑफ इंडिया आदि की जमानत जब्त हो जाए तो बहन जी जिम्मेदार है.... ये कौन सी राजनीति है? बहुजन मुक्ति मोर्चा वालों की खुद की राजनैतिक पार्टी है, इसके बावजूद भी ये लोग बीएसपी के भविष्य को लेकर चिंतित क्यूँ रहते हैं?

बहन जी निर्दोष हैं, सुप्रीम कोर्ट ने भी माना फिर भी बहन जी से नफ़रत करने वाले लोग उनकों दोषी ही मानते हैं! ऐसा इसलिए है क्योंकि नफ़रत करने वालों का ध्येय ही नफ़रत और ईर्ष्या! ऐसे लोगों का किसी भी विश्लेषण, सबूत, तथ्य और परिस्थिति से कोई सरोकार नहीं है! 

संगठन से राजनैतिक दल तक, फिर चुनाव से सत्ता तक के सफर के दरमियान कई पड़ाव होते हैं! जैसे कि शुरूआत में छोटी सभा, फिर पदयात्रा, छोटी रैली आदि लेकिन सत्तारूढ़ होने के बाद अपने नेतृत्व के साथ-साथ जनता की भी जिम्मेदारी होती है कि वैचारिकी को आगे बढ़ने में आगे आए... ये जिम्मेदारी बसपा की जनता बखूबी निभा रही है, और बसपा सुप्रीमों बहुजन आंदोलन को सतत् अनवरत् आगे ले जा रही है, बहुजनों के मुद्दों को संसद के पटल तक, हुकूमत के कानों तक पहुंचा रही है! इसके बावजुद बहुजन समाज का एक तबका है जो बहन जी की जाति की वजह से, ब्रहम्णी दलों व संगठनों से फण्ड लेकर सतत् बहुजनों को गुमराह करने की फिराक में है! ऐसे लोगों का मानना है कि बहन जी सड़क पर उतर का विरोध करें! क्या ये मुनासिब है? यदि आज के हुकूमत-ए-नफरत में बहन जी ऐसा कुछ करती है तो प्रशासन के बूते की बात नहीं है कि बहुजन भीड़ को रोक सकें, ऐसे में वो लाठीचार्च ही नहीं करेगें बल्कि गोलियां भी चलायेगें, कानून का सहारा लेकर बहुजनों का कत्ल-ए-आम करेगें...जैसा कि 02 अप्रैल को हुआ था, जिसमें सैकड़ों बेगुनाह मारे जायेगें.... बहुजन समाज के गुमराह उपद्रवी लोग चाहते हैं कि बहुजन मारे जाये जिससे कि ये लोग पुनः बहन जी को बहुजन संहार का जिम्मेदार घोषित कर बहुजनों की लाश पर अपने स्वार्थ की रोटी सेक सकें! ऐसे लोगों से सावधान रहने की जरूरत है! याद रहें, ये वही लोग हैं जिनके पुरखे कभी बाबा साहेब का नाम लेकर मान्यवर साहेब को गाली देते थे और आज मान्यवर साहेब का नाम लेकर बहन जी को कोस रहे हैं, गाली दे रहे हैं!

सामाजिक-राजनैतिक क्षेत्र में सक्रिय लोगों के ऊपर आरोप लगना बहुत आम बात हैं। इन आरोपों से मान्यवर साहेब और बहन जी भी नहीं बच पायी हैं। बहन जी का विरोध करने के लिए बसपा कार्यालय जाने वालें लोगों, आप बहन जी का विरोध करों, अपने राजनैतिक पहचान बसपा की कब्र खोदऩे में व्यस्त रहों........उधर मोदी-योगी तुम्हारी कब्र खोद चुके हैं! 

कुछ दलित-बहुजन समाज के स्वाघोषित व सवर्ण प्रशंसा चाहने वाले विद्वान इंडियन एक्सप्रेस में छपी बसपा कार्यालय पर बसपा के परिवारवाद के खिलाफ चंद लोगों के प्रदर्शन को ऐतिहासिक बता रहे हैं लेकिन उन लोगों ने ये क्यूँ नहीं देखा है कि बसपा सुप्रीमों का विरोध करने वाला बहुत पहले भी बसपा सुप्रीमों पर आपत्तिजनक टिप्पणी कर चुका है, वो भीम आर्मी का प्रवक्ता है, उस भीम आर्मी का जिसको बहन जी ने नकार दिया है, जो खुद चुनाव में उतरने वाला था लेकिन दलित जनता के विरोध के चलते चुनाव नहीं लड सका!

इस विरोध प्रदर्शन में लगभग 5-6 लोग थे, इन 5-6 लोगों के विरोध का स्वाघोषित विद्वान ने ऐतिहासिक व दलित समाज द्वारा विरोध बताया है! क्या ये 5-6 लोग दलित समाज का नेतृत्व करते हैं? हॉ, सोशल मीडिया और पान की दुकानों पर सिगरेट की डंड्डी खरीदते हुए कुछ नौकरीपेशा लोग जैसे कि प्राइमरी के मास्टर, जूनियर हाईस्कूल, हाईस्कूल व इण्टर कालेज के अध्यापक, जिनका खुद का दिमाग कक्षा पॉचवीं, आठवाँ, दसवीं व बारहवीं के बच्चों से ज्यादा नही है, जो कलर्की करते हैं, दिनभर दिहाड़ी करते या किसी अन्य तरह की सरकारी नौकरी में कार्यरत है, जिनकों बसपा के शासन काल में सिर उठाकर, सीना ठोककर नौकरी करने का जज्बा मिला जो आज भी बरक़रार है, कुलमिलाकर जिनका पेट भरा है जिनकों अब सिर्फ सवर्ण प्रशंसा की चाहत में है, और जो लोग अपने गलत आचरण की वजह से पार्टी से निकाले जा चुके हैं... वहीं चंद मुट्ठी भर लोग जिन्होंने बसपा को कभी चंदा नहीं दिया है, वही लोग जो रजिस्टर्ड बामसेफ या किसी अन्य उपद्रवी सेना-आर्मी के उन्माद मे कैद होकर बाबा साहेब डॉ अम्बेडकर व मान्यवर साहेब की राह से खुद भटक गये हैं, जो स्वार्थी है.... वहीं लोग 2007 के बाद से लगातार बसपा व बहन जी का विरोध कर रहे हैं.... क्या चंद स्वार्थी, गुमराह-उन्मादी, गैर-बसपाई दलित-बहुजन का नेतृत्व करते हैं? क्या इनका विरोध दलित-बहुजन बहुजन का विरोध माना जाना चाहिए.... हमारे विचार से नहीं... बिल्कुल नहीं.... क्योकि यदि बसपा पार्टी के परिवारवाद का विरोध कांग्रेसी-भाजपाई-कम्यूनिसटी-संघी आदि से फण्ड लेकर सेना-आर्मी वाले करेगें तो इसे दलित-बहुजन बहुजन का विरोध कैसे माना जा सकता है? बसपा सुप्रीमों ने आर्मी को पार्टी का हिस्सा मानने से इन्कार कर दिया था, ये आर्मी चुनाव भी लडने वाली थीं, तो फिर आर्मी प्रवक्ता का बसपा से क्या वास्ता जो वे लोग बसपा के परिवारवाद का विरोध कर रहे हैं? निजी तौर पर हम राजनैतिक पार्टियों में हो रहे परिवारवाद का समर्थन नही करता हूँ! बसपाई बसपा की सुप्रीमों का विरोध करे तो समझ आता है लेकिन ये आर्मी-सेना व रजिस्टर्ड बामसेफ वाले क्यूँ विरोध कर रहे हैं, इनका तो अपना राजनैतिक दल है? बसपा कार्यालय पर बसपा के परिवारवाद का विरोध करने वाले क्या वकाई बसपाई थे, या फिर बसपाई के भेष में किसी सेना या आर्मी गिरोह वाले? यदि बीएसपी के परिवारवाद का विरोध कांग्रेसी-भाजपाई-कम्यूनिसटी-संघी-सेना-आर्मी वाले करें तो इसका क्या मतलब निकाला जाय? संघियों के लिए हर समस्या के जिम्मेदार "नेहरू जी" है, और बहुजन संघियों के लिए हर समस्या की जिम्मेदार "बहन जी"! सोशल मीडिया के बदौलत 02 अप्रैल जैसा आन्दोलन हुआ लेकिन अब सोशल मीडिया को ही टूल बनाकर बहुजन एकता को तोड़ा जायेगा!

इस एकता को परिवारवाद के नाम पर स्वार्थी बहुजन आन्दोलन चलायेगा और ब्रहम्णी मीडिया फुल कवरेज देकर सहयोग करेगा, जिसके चलते हर हाल में फायदा बीजेपी-कांग्रेस व अन्य ब्रहम्णी दलों को होगा! 

बहुजन समाज में एक फिरका तैयार हो चुका है जो अपने ही समाज के लोगों को मानसिक गुलाम समझता है! उस तबके को लगता है कि बहुजन समाज वैचरिकी के बजाय व्यक्तिपूजा में मग्न हो चुका है! वो तबका फुले-शाहू-बाबा साहेब आदि की वैचारिकी की बात तो जरूर करता है लेकिन क्या वह स्थापित बहुजन राजनीति या अन्य क्षेत्र की संस्था को खत्म करके ही अगली व्यवस्था स्थापित करना चाहता है! बहुजन समाज का ये तबका विशेष ये क्यूँ भूल जाता है कि मान्यवर साहेब ने ही कहा है कि किसी रेखा को छोटी करने के लिए उस रेखा को मिटाने के बजाय उसके समान्तर उससे लम्बी रेखा खीच दी जाय? बहुजन समाज के इस तबके विशेष को क्यूँ लगता है कि पहले बहुजन समाज की पार्टी को मिटा दिया जाय उसके बाद ही कुछ हो सकता है? क्यूँ ये तबका एक बहुजन नेत्री से ही 24 कैरेट खरी राजनीति चाहती है जबकि ये स्थापित सत्य है कि राजनीति में कुछ भी 24 कैरेट जैसा संभव नहीं है, राजनीति में बहुत सारे क्रमचय-संचय करने पड़ते हैं?

बहुजन समाज का ये तबका विशेष क्यूँ लगातार राजतंत्र से लोकतंत्र के बीच आने वाले संक्रमण अवस्था (परिवारवाद-रहनुमाई पद्धति) को इनकार करता रहता है? क्यूँ बहुजन समाज का ये तबका विशेष भारत के इतिहास में दर्ज राजतंत्रात्मक व्यवस्था को लगातार नजरअंदाज करता जा रहा है? क्यूँ ये तबका बहुजन समाज की सकारात्मक सृजनात्मक समीक्षा करने के बजाय लगातार विरोध ही करता रहता है जबकि ये तबका ये बखूबी जानता है कि "सृजनात्मक समीक्षा" व "सिर्फ विरोध करने के लिए किये जा रहे विरोध" अच्छी तरह से समझता है? क्यूँ इस तबके को लगता सिर्फ यही सही है?

सकल बहुजन समाज को समग्रता के साथ देखे तो बहुजन समाज के पास संख्याबल है, पर्याप्त सम्पदा भी, है, वैचारिकी भी है, राजनैतिक, गैर-राजनैतिक संगठन भी है, फिर बहुजन समाज की गति मद्धिम है!
इसके संदर्भ में हमारा मानना है कि बहुजन समाज सतत संघर्ष कर रहा है, लड रहा है लेकिन बहुजन समाज जिस जमीन पर लड रहा है वो जमीन शत्रु की नही, खुद बहुजन समाज की है! तो ऐसे में लड़ाई के दौरान यदि बहुजन जीत भी गए फिर नुकासन तो बहुजन समाज का ही होना है!
दूसरा, बहुजन समाज इस राजनैतिक षडयंत्रकारी गेम में अपनी नहीं, बल्कि अपने शत्रु के बनाये मुद्दे व रणनीति के अनुसार लड रहा है! ऐसे में इस लड़ाई में यदि शत्रु जीत गया तो उसकी फतेह है ही, यदि हार भी गये तो वो बहुजन समाज को इस तात्कालिक गेम में उलझाकर अपने दूसरे महत्वपूर्ण मुद्दों को अंजाम दे चुका होता है! ऐसे में बहुजन शत्रु हारे या जीते हर हाल में फायदा उसी का होना है / होता है!
तीसरा, जब जंग की जमीन बहुजन समाज की है, मुद्दे, रणनीति बहुजन शत्रु के है तो सामान्य सी बात है कि बहुजन अपने लिए लडता दिखाई जरूर पडता है लेकिन वो अपने शत्रु के चुने हुए लेकिन बहुजन ज़मीन पर शत्रु का गेम, शत्रु के लिए, शत्रु के ही मुताबिक खुद बहुजन लड रहा है! ऐसे में नुकसान तो बहुजन का होना ही है!

बहुजन समाज के स्वाघोषित विद्वान व गुमराह युवाओं व नेताओं क्या आप ये बतायेगें कि आप अपने एंजेडें को लेकर आखिरी बार कब प्रदर्शन किये थे?

बहुजन समाज बाहर निकलता जरूर है लेकिन एजेंडा शत्रु का सेट किया हुआ होता है जैसे कि एससी-एसटी एक्ट हो, 13 प्वांइट रोस्टर हो, ऊना हो, सहारनपुर हो या कोई अन्य!

बहुजन समाज को लगता है कि इस राजनैतिक षडयंत्र वाले गेम में वो अपने लिए खेल रहा है लेकिन हकीकत में वो शत्रु के लिए खेल रहा होता है! क्योंकि इन गेम्स के द्वारा बहुजन शत्रु एक तरफ बहुजन समाज को उलझाये रखता है, और दूसरी तरफ अपने मुख्य कार्य को अंजाम दे रहा होता है!

ऐसा इसलिए होता है क्योंकि ये गेम भी उसका होता है, फील्ड भी उसी की होती है, रणनीति भी इसी की होती है.... बहुजन तो सिर्फ उसके मुताबिक खेल रहा होता है.... वो भी सिर्फ और सिर्फ हारने के लिए!

बहुजन समाज में ही एक उन्मादी तबका तैयार हो रहा है जो बाबा साहेब का नाम लेकर, संविधान की दुहाई देकर हर बात पर संवैधानिक रास्तों के बजाय "सड़क पर उतरने" जैसे असंवैधानिक रास्तों की लगातार पैरवी कर रहा है! ये कैसा अम्बेडकरवाद है? जब मान्यवर साहेब संघर्ष कर रहे थे तब बहुजन समाज के ही लोग बाबा साहेब का नाम लेकर उसी तरह से मान्यवर साहेब को कोस रहे थे, उनका विरोध कर रहे थे जैसे कि आज लोग मान्यवर साहेब का नाम लेकर बहन जी का विरोध कर रहे हैं! कुछ गुमराह बहुजन सड़क व हिंसात्मक प्रदर्शन की पैरवी करते रहते हैं, लेकिन मान्यवर साहेब कहते हैं कि पूरी मशीनरी दुश्मन के पास, गोली-बारूद उनके पास है, पुलिस-प्रशासन उनकी है, ऐसे में हमारा समाज उनसे कैसे लडेगा? यदि सत्ता पर बैठा शत्रु चाहें तो हमारे लोगों को चंद मिनट में ही कुचल कर रख देगा, उसी तरह से हमेशा के लिए नेस्तनाबूद कर देगा जैसे कि "दलित पैंथर्स" को किया था!

यही कारण है कि खुद बाबा साहेब भी कानूनी रास्ते से ही समस्या का समाधान खोज रहे थे, और सफल भी रहें हैं! हॉ, ये सत्य है कि बाबा साहेब ने कई जमीनी आन्दोलन किये है लेकिन तब की हुकूमत अंग्रेजों की थी, और अंग्रेज कानून व न्याय को मानने वाले थे जबकि बहुजन समाज को मौजूदा शत्रु ना तो न्याय व कानून को मानता है और ना ही उसमें न्यायिक चरित्र है! ऐसे में अपने ही लोगों की निर्रथक बलि चढ़ा कर क्या मिलेगा बहुजन समाज को? बाबा साहेब ने कहा है कि जब तक हमारे पास संवैधानिक रास्ते उपलब्ध है तब तक गैर-संवैधानिक रास्ते नहीं चुनने चाहिए! इसके बावजूद कुछ गुमराह बहुजनों को लगता है कि हर काम के लिए सड़क ही रास्ता है! 

भारत की राजनीति में वंशवाद जानने से पहले ये जानना जरूरी है कि भारत का इतिहास ही वंशवाद का रहा है! मौर्य वंश, मुगल वंश, गुलाम वंश आदि!
भारत की जनता आज भी परिवार पर ही विश्वास करती है! कांग्रेस इतनी पुरानी पार्टी होने के बावजूद भी बिना गांधी परिवार के नही चल पायी है, जिस बीजेपी का लोग दंभ भरते है क्या वो परिवारवाद से अछूती है, यहॉ तो सीधे जातिवाद है! इस पर किसी दलित-बहुजन ने आज तक सवाल नहीं किया है, क्यूँ? 

जो बसपा को ना तो चंदा देते हैं, ना तो वोट, ऐसे ही लोग बसपा के खिलाफ सदा से दुष्प्रचार करते हैं! कुछ लोगों को आज भी सिर्फ बहन जी के कान के बूंदे, पैर की जूती, उनका गाड़ी-बंगला ही दिखाई देता है! ये बात स्पष्ट हो चुकी है कि बसपा का विरोध वहीं कर रहे हैं जो सतत् करते आ रहे हैं! आज कुछ लोगों से बात हुई वो टिकट बेचने का आरोप लगा रहे हैं! हमने उनसे पूछा कि आपने आज तक कितना चंदा दिया है, सब के सब सन्न! कुछ लोग हैं जिन्होंने कभी मिशन को समय दिया ही नहीं, वो लोग ये कह रहे हैं शादी करना या ना करना किसी का निजी फैसला है! ऐसे लोग खुद क्यूँ नही वहीं त्याग करके समाज की सेवा करते हैं! 
अपने सैद्धान्तिक लक्ष्य को पूरा करने के लिए सत्ता की जरूरत होती है और सत्ता को पाने के लिए राजनीति में बहुत सारे क्रमचय-संचय करने पड़ते हैं! बहुत सारी सोशल इंजिनीरिग करनी पड़ती हैं, राजनैतिक समझौते करने पड़ते हैं! ऐसे में लोग बसपा व बहन जी से लगातार 24 कैरेट खरी राजनीति की उम्मीद करते हैं, वो भी तब जब आर्थिक-सामाजिक-सांस्कृतिक तौर बहुजन समाज अपाहिज है, जबकि ये सत्य है कि राजनीति में 24 कैरेट खरे जैसा कुछ नहीं होता है! ऐसे राजनैतिक समझौते व राजनैतिक मजबूरी व इसके उतार-चढाव से अन्जान, नफरत से सराबोर, उन्मादी व स्वार्थी तबका खुद बहुजन समाज में है जिसका जन्म बहुत पहले हो चुका है, इसी तबके ने बाबा साहब का विरोध किया जगजीवन राम जैसों का सपोर्ट किया, मान्यवर साहेब के रहते मान्यवर साहेब का विरोध करता रहा है, आज उसी स्वार्थी तबके की नश्लें मान्यवर साहेब का ही नाम लेकर बहन जी का विरोध करते हैं! 
मान्यवर साहेब कहते हैं कि सत्ता पाने के लिए लोग एमपी-एमएलए का खरीद-फरोख्त करते हैं, इसके लिए या तो हम अपना ना बिकने वाला बहुजन समाज बनाये या फिर दूसरों को खरीदने के लिए धन जुटाये....कुलमिलाकर हर हाल में सत्ता पर कब्जा करना है क्योंकि सत्ता ही वह गुरू किल्ली है जिससे हम अपने समाज के उत्थान के लिए सारे दरवाजे खोल सकते हैं!
यदि इसी "राजनैतिक समझौते" के तहत बहन जी की सरकार ने किसी संगठन को दस लाख की राशि डोनेट कर दी, और सत्ता अख्तियार कर हुकूमत किया तो क्या ये बहुजन हित के खिलाफ है क्योंकि ये मुद्दा "दस लाख बनाम सत्ता" की है!
ऐसे में अब तय बहुजनों को करना है कि आप के लिए "दस लाख" जरूरी है या फिर "राजनैतिक सत्ता"?  बहुजन समाज के लोगों को "राजनैतिक समझौता" और "सैद्धान्तिक समझौते" के अंतर को समझना होगा!
दूसरी बात, जब बहन जी की सरकार ने दस लाख रूपये "राजनैतिक समझौते" के तहत डोनेट किये थे तब मान्यवर साहेब सक्रिय थे! इसलिए ये डोनेशन का फैसला अकेले बहन जी का नहीं हो सकता है! ये सर्वविदित है कि मान्यवर साहेब बहन जी के गुरू है, बहन जी इस तरह का कोई कार्य मान्यवर साहेब की रजामंदी के बगैर कतई नही कर सकती है!
ऐसे में बहुजन समाज को बर्बाद करने वाले ब्रहम्णी व्यवस्था के लिए काम करने वाले बहुजन समाज के स्वार्थी लोगों से यही कहना है कि मान्यवर का नाम लेकर बहन जी को कोसना ऐसे लोगों के मानसिक विक्षिप्तता का परिचायक है! बहुजन समाज के कुछ स्वार्थी व खुद को समीक्षक समझने वाले लोगों के रवैये से ऐसा प्रतीत होता है कि बसपा को खत्म करने की सबसे ज्यदा जल्दी इन्हें ही है! सावधान बहुजनों,
'राष्ट्रीय दलित चेतना मंच' नाम से एक संगठन घूम रहा है, ये आरएसएस का एक विंग है! इसका मकसद बाबा साहेब की वैचारिकी का ब्रहम्णीकरण कर बहुजनों की चेतना की हत्या करना है! 

 जिन लोगों को लगता है कि बसपा खत्म हो चुकी है उन लोगों की समस्या ये है कि वो सिर्फ लोकसभा-विधानसभा की जीती सीटों से ही किसी पार्टी के अस्तित्व का निर्धारण करते हैं जोकि राजनीति की बहुत ही संकुचित परिभाषा से निर्धारित की जा रही है!  ब्रहम्णी षडयंत्र के तहत सोशल मीडिया, प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, पान-परचून की दुकानों पर ट्रोलर्स के माध्यम से ये दुष्प्रचार कराया जा रहा है कि बसपा खत्म हो गई, बहन जी ने बसपा को बेच दिया है इत्यादि...और ऐसे गलत प्रचार में बहुजन समाज के ही लोग ब्रहम्णी संगठनों से अपना हिस्सा पा कर बहुजन समाज के बीच में ऐसे गलत बातों को प्रचार कर बहुजन समाज के राजनैतिक रसूख को मिटाने का कार्य कर रहे हैं.........ये सब बहुजनों को तोड़ने व गुमराह करने के लिए ही किया जा रहा है.... इसलिए बहुजनों को सावधान रहना चाहिए...... और याद रहे, बसपा की मजबूती इस बात से तय कीजिये कि विरोधियों ने कितने दलित-बहुजन नेताओं को तमाम विरोध के बावजूद एमपी-एमएलए-मंत्री, राष्ट्रपति, गवर्नर आदि बनाया है! जब तक दलित-बहुजन समाज से मजबूरी बस ही सही ब्रहम्णी दलों द्वारा एमपी-एमएलए-मंत्री, राष्ट्रपति, गवर्नर आदि बनाये जाते रहेगें तब तक बसपा के कमजोर होने का प्रश्न ही नहीं उठता है! 

पिछले लगभग तीन दशक से जो दलित-बहुजन एमपी-एमएलए-मंत्री, राष्ट्रपति,गवर्नर आदि बनाये गये हैं वो बसपा को काउण्टर करने की साजिश के तहत बनाये गये हैं! जो बहुजन विरोधी ब्रहम्णी संगठनों, सियासी दलों या ब्रहम्णी संगठनों से फण्ड लेकर बहुजन आंदोलन के नाम पर अपनी जीविका चला रहे हैं, उन सबका वजूद बसपा की बुलंदगी में निहित ही है, ये और बात है कि इसके बावजूद ऐसे दलित-बहुजन बसपा की ही जड़ों पर प्रहार कर रहे हैं! 

मान्यवर साहेब खुद कहते हैं कि वो अवसरवादी है और राजनीति अवसर का मामला होता है! अपने सैद्धांतिक लक्ष्य को पूरा करने के लिए किसी के साथ भी राजनैतिक समझौता किया जा सकता है....और जब ये राजनैतिक समझौता सैद्धान्तिक लक्ष्य के प्रतिकूल होने लगे तो राजनैतिक समझौते को तोड़ दिया जाता है! इसी राजनैतिक नियम के तहत यूपी में मान्यवर साहेब ने बीजेपी से तीन बार राजनैतिक समझौता करके फिर तोड दिया! मान्यवर साहेब ने तीन बार बीजेपी से समझौता किया, और सरकार बनाई, अपने सिद्धांत के लिए अपने सिद्धांत पर बहन जी के नेतृत्व में सरकार चलाई, ये समझौता राजनैतिक था, सैद्धान्तिक नहीं! कृपया राजनैतिक व सैद्धांतिक समझौते के अंतर को समझियें! 

याद रहें, 
भगवाधारियों के नक्श-ए-कदम पर चलने नीले गमछा-टोपीधारी उग्र बहुजन युवा व उनके संगठन बहुजन समाज के बुद्ध-अम्बेडकरी आन्दोलन के हितैषी नहीं, भगवाधारियों से भी बडे शत्रु हैं!  

जिस तरह से ब्रहम्ण-सवर्ण "दो गाली मोदी को" देते हुए "दो सौ गाली बहन जी को" देता है, और खुद को दलित-वंचित-आदिवासी-पिछडें समाज के लोगों के समक्ष अपने आप को निष्पक्ष प्रगतिशील बुद्धिजीवी साबित कर लेने का प्रयास करता है, ठीक उसी तरह से दलित-वंचित-आदिवासी-पिछडें का नयी पीढ़ी वाला पढा-लिखा लेकिन स्वार्थी नवयुवक तबका अपनी ही नेत्री "बहन को दो हजार गाली" और "मोदी जी को दो गाली" देकर ब्रहम्ण-सवर्ण लोगों के बीच खुद को निष्पक्ष प्रगतिशील बुद्धिजीवी साबित करने का असफल निर्रथक व मूर्खतापूर्ण प्रयास कर अपने समाज की कब्र खोद रहा है! मान्यवर साहेब महाराष्ट्र को ही अपनी राजनैतिक प्रयोगशाला बनाना चाहते थे लेकिन तब महाराष्ट्रवा ने कहा था कि "होउ सकत नाहीं"!
इसके बाद जब मान्यवर साहेब ने बहन जी को साथ लेकर उ. प्र. की सरजमीं पर राजनैतिक शुरूआत कर बहुजन राजनीति के माध्यम से भारत का राजनैतिक समीकरण ही बदल दिया तो आज उसी महाराष्ट्रवा के कुछ लोग मान्यवर साहेब की शिष्या बहन जी पर बहुजन दल को बर्बाद करने का आरोप लगा रहे हैं जबकि सच्चाई ये है कि महाराष्ट्र की ही सरजमीं पर कई राजनैतिक दल सक्रिय है, कुछ के लोग केन्द्र व राज्य में मंत्री भी है लेकिन इन सबके बावजूद भारत के दलित-बहुजन समाज की आवाज कोई और नहीं बहन जी ही क्यूँ हैं? बहन जी पर आरोप लगाने वालों क्या इस विषय पर कभी मंथन किया है? जो बहुजन साथी बहन जी पर पार्टी को बर्बाद करने का आरोप लगाते हैं, उन बहुजन समाज के उन लोगों से सवाल है कि उनके पुरखों ने जगजीवन राम का साथ देकर बाबा साहेब व उनके मिशन को कौन सा आबाद कर दिया था?  

ब्रह्मणी रोग से संक्रमित जिन बहुजन समाज के लोगों को लगता है कि मान्यवर साहेब ने बहन जी को राजनीति की बनी बनायी थाली परोस दी थी, उन लोगों से सवाल है कि जब इनके दादा-परदादा अपने घर के सामने अपने ही चारपाई पर नहीं बैठ सकते थे उस समय वो कौन सी शख्सियत थी जो मान्यवर के साथ कंधे से कंधा मिलाकर गली-कूचों, गॉव-मुहल्लों में समाज को जागृत कर रहीं थीं! 

जिनके पुरखे आज के तीस साल पहले अपने घर के सामने अपने ही चारपाई पर नहीं बैठ सकते थे आज उनकी पीढियां सवर्णों की आँखों में आँखें डाल कर जवाब तलब कर रही है... इसके बावजुद ऐसे लोगों की औलादें बहन जी की खिलाफत करते हुए पूछ रहें है कि बहुजन सत्ता से सामाजिक व्यवस्था परिवर्तन हुआ या नहीं?
सामाजिक व्यवस्था परिवर्तन कोई एक दिन में होने वाला परिवर्तन नहीं है.... ये सतत् चलने वाली प्रक्रिया है!

समाज में एक स्वार्थी वर्ग तैयार हो चुका है जो अपने ही नेताओं को कमजोर करने की फिराक में लगा रहता है, सरकारी व गैर-सरकारी सेवाओं मे नुमाइन्दगीं करने वाले और पार्टी को फण्ड करने वाले लोगों के खिलाफ अपने समाज को भड़काकर अपने स्वार्थ को साधने में लगा हुआ है! ऐसे लोगों से समाज को सावधान रहनें की जरूरत है, नही तो ये खुद को खुद बनाने के लिए समाज को ही बेच देगें....

कुछ लोगों को लगता है कि बहन जी ने उन्हें बेच दिया है! ऐसे लोगों से सवाल ये है कि भारत की राजनीति में आपको आज जो कीमत मिली है वो किसकी देन है? आज आपको आपकी कीमत का एहसास हुआ, ये किसकी देन हैं? सावधान, 
बहुजन समाज में एक तबका ऐसा जन्म ले चुका है जो एक पल समाज को दिये बगैर समस्त बहुजन नीतियों को हाईजैक करना चाहता है! 23 मई के बाद, बसपा की इतनी आलोचना बहन जी से लोगों की उम्मीद का परिचायक है! वामन मेश्राम की उम्र लगभग बहन जी की उम्र के आस-पास है, फिर मूर्खों को वामन मेश्राम में भविष्य दिखता है..... चार बार की सीएम, कई बार की सांसद, कुशल प्रशासक, सफल नेतृत्व में नहीं! 

मान्यवर काशीराम साहेब रजिस्टर्ड बामसेफ के खिलाफ क्यों थें। किसके लिए मान्यवर को दरकिनार कर रजिस्टर्ड बामसेफ बनाया गया था? मान्यवर काशीराम साहेब के खिलाफत के लिए खड़े किये गए रजिस्टर्ड बामसेफ से बहुजनों को डरना चाहिए। रजिस्टर्ड मूर्खों की गैंग ब्रहम्णवाद के बजाय केवल ब्रहम्णों से ही लड़ने में बहादुरी समझ अपनी पीठ थपथपा रही हैं! रजिस्टर्ड मूर्खों को ये ही नहीं पता है कि उनका असली शत्रु ब्रहम्ण है या ब्रहम्णवाद! जो लोग बहन पर मान्यवर के बताये रास्ते से भटकने का झूठा आरोप लगाते हैं वो सब लोग कांग्रेस-बीजेपी-कम्यूनिस्ट-आप आदि बहुजन शत्रु दलों के घरों के सामने चौकीदारी कर रहे हैं, तो कुछ (जैसे रजिस्टर्ड बामसेफ आदि) इनसे फण्ड लेकर बहुजन समाज को बहन जी, बसपा व बहुजन आंदोलन के खिलाफ भड़का रहें हैं! जब पहली बार बहुजन समाज दिल्ली पर हुकूमत करने की तैयारी कर रहा है तो ऐसे नाजुक मौके पर रजिस्टर्ड बामसेफ वाले बहुजन राजनीति व नेत्री का विरोध क्यों कर रहे हैं? बहुजन नेत्री का बामसेफी विरोध किसके हित में है - बहुजन समाज के या फिर कांग्रेस-बीजेपी-कम्यूनिस्ट-आपी सवर्ण गैंग के? 

मानसिक विकलांग्ता व भक्ति का नशा बहुजन समाज के ही कुछ लोगों में इस कदर हो गया है कि वो तुरंत गाली-गालौज पर उतर जाते हैं! इन मानसिक रोगियों पर तरस आता है! क्या ऐसे मानसिक तौर पर बीमार बहुजन बुद्ध-अम्बेडकरी विचारधारा के वाहक हो सकते हैं? ज़िन्दगी में बसपा को एक नया चंदा देने वाले लोगों की दिली चाहत है कि बसपा हर सीट पर चुनाव लड़े! ऐसे लोग ही ये भी आरोप लगाते हैं कि बहन जी टिकट बेचती हैं! रजिस्टर्ड बामसेफ ने बहुजनों को गुमराह करके बहुजनों की एक ऐसी फौज खड़ी कर दी है जो ब्रहम्णवाद से कम ब्रहम्णों से ज्यदा नफरत करती है जबकि सच ये है ब्रहम्णवाद से पीड़ित हर इंसान एक तरह से ब्रहम्ण है! ऐसे ब्रहम्णों की लम्बी फौज खुद बहुजनों में ही मौजूद! मान्यवर साहेब ने बामसेफ से बसपा बनाई तो जिन लोगों ने खिलाफत की थी वहीं लोग आज बहुजन मुक्ति पार्टी बनाकर बसपा को गाली दे रहे हैं, फिर भी बहुजन समाज के गुमराह लोग ऐसे रजिस्टर्ड बामसेफ वाले को बहुजन हितैषी समझ रहे हैं! रजिस्टर्ड बामसेफ का वजूद बहुजन जागरण के कारण नहीं, बहन जी व बसपा की खिलाफत के कारण बना हुआ है! आज के सभी रजिस्टर्ड बामसेफ बहन जी को काउण्टर करने के लिए कांग्रेसियों व संघियों से फण्ड पा कर सांस ले रही है... वर्ना कब के दफन हो गई होती! 
 कुछ बामसेफियों का कहना है कि वामन मेश्राम को आरएसएस और बीजेपी जैसे ब्राह्मणी संगठन फण्ड नहीं करते हैं बल्कि बहुजन समाज के अधिकारी-कर्मचारी फण्ड देते हैं। ऐसे में पहला सवाल लाज़मी ये हैं कि दर्जनों बामसेफ घूम रहे हैं इन सभी को लिमिटेड अधिकारी-कर्मचारी कैसे फण्ड कर सकते हैं जबकि अधिकारी-कर्मचारी वर्ग कर विश्वास बामसेफ से लगभग पूरी तरह से उठ जायेगा। दूसरा, बसपा को बहुजन समाज का अधिकतर अधिकारी-कर्मचारी वर्ग फण्ड करता हैं ये बात बामसेफियों झूठ लगती हैं, ऐसे में इनके इस बात पर कोई क्यूँ और कैसे विश्वास करें कि इनकों आरएसएस और बीजेपी जैसे ब्राह्मणी संगठन फण्ड नहीं करते, बल्कि बहुजन समाज के अधिकारी-कर्मचारी फण्ड करते हैं।
आज के रजिस्टर्ड बामसेफ का जन्म मान्यवर साहेब को रोकने के लिए राजीव गांधी द्वारा फण्ड करके वामन मेश्राम के नेतृत्व में आगे लाया गया था!

आज ये सभी रजिस्टर्ड बामसेफ बीजेपी व कांग्रेस के पैसे से ही खड़े किये गये और बहुजनों को बांटने का कार्य बखूबी कर रहे हैं.... इनका मकसद बहुजन समाज को बांटकर बहुजन समाज की अम्बेडकरी राजनीति (बहन जी व बसपा) के बढ़ते कदमों को रोकना है! ऐसे में सभी बहुजनों को चाहिए कि वो इन रजिस्टर्ड बामसेफ को ना तो फण्ड करें और ना ही सपोर्ट करें! 
पिछले कुछ दिनों उन सभी लोगों से मुलाकात हो गई जो कहते हैं कि बहन जी टिकट बेचती, बहन जी ने मिशन डुबा दिया है, बाबा राजनैतिक सत्ता की बात कहते हैं.... आदिे कभी ये लोग मात्र गर्मी की वजह से वोट डालने नहीं गये हैं!
फिर यही लोग बसपा व बहन जी को राजनीति पर भाषण देगें..... बहुजन समाज में ऐसे मानसिक रोगियों की संख्या बहुत हैं!
बहन जी पर टिकट बेचने का आरोप वही बहुजन लगाते हैं जिन्होंने आज तक पार्टी फण्ड में एक नया भी डोनेट नहीं किया है! बहुजन समाज का पढ़ा-लिखा-नौकरी-पेशा तबका ब्राह्मणो-सवर्णों के बीच अपनी पहचान छुपकर जीने वाले लोग, और अपने आपको निष्पक्ष कहकर लेखों में अपनी विद्व्ता बघारने वाले लोग इसी श्रेणी में आते हैं। वो बहुजन मुद्दों पर लिखते जरूर हैं लेकिन उनकी लेखनी सिर्फ अपनी निजी स्वार्थी पहचान तक के लिए ही होती हैं। इनका समाज के सरोकारों से कोई हकीकत में कोई वास्ता नहीं हैं। ब्रहम्णी रोग से संक्रमित रोगी बहन जी का विरोध इसलिए भी करते है कि एक दलित की बेटी होकर टिकट माँगती नहीं है, बल्कि टिकट बांटती है।।  

प्रो. राजकुमार, दिल्ली विश्वविद्यालय, कहते हैं कि -
"जो सामाजिक कार्यकर्ता बिना सोचे समझे तात्कालिक प्रभाव मे आकर बसपा के खिलाफ बोल या लिख रहें हैं, वो साथ साथ यह भी बताते चलें कि उनके सामाजिक बौद्धिक धार्मिक संगठनों या व्यक्तिगत मित्र मंडली में बहुजन समाज की 6743 उपजातियों में से कितनी उपजातियों के लोग जुड़े हुए हैं जबकि यह पूरी दुनिया जानती है कि जाति_तोड़ो_समाज_जोड़ो आंदोलन के तहत बसपा ने देशभर की हज़ारो जातियों में बहुजन विचारधारा का प्रचार प्रसार किया है. देश भर में बिखरे पड़े हमारे अनेको सामाजिक क्रांतिकारियों के आन्दोलन को राष्ट्रीय फलक पर बहुजन आन्दोलन के रूप में स्थापित कियाl 
बहुजन तथा बहुजन_समाज_निर्माण जैसी बुनियादी अवधारणाएँ सामाजिक परिवर्तन के आन्दोलन को बसपा की महत्वपूर्ण देन हैं l"

बहुजन समाज का उन्मादी युवा आर्मी-सेना बनाकर मच्छरों (ब्रहम्ण-सवर्ण) से लड़कर अपनी ऊर्जा व्यर्थ कर रहा है जबकि जरूरत है गंदगी (मनुवादी सनातनी वैदिक ब्रह्मणी विचारधारा) पर तेज़ाब डालकर ब्रश फेरने मात्र की! दलित समाज के आर्मी-सेना व रजिस्टर्ड बामसेफ के समर्थक बहन जी का विरोध ये कहते हुए भी कर रहे हैं कि जिस तरह से मुलायम-अखिलेश ने यादवों की एक तरफा भर्ती किया था उसी तरह से पूर्ण बहुमत में होने के बाद बहन जी ने दलितों की एक तरफा भर्ती क्यूँ नही किया? 2007 के बाद अस्तित्व में आया एक ग्रुप विशेष ही बसपा के हर फैसले का विरोध क्यों करता है? 


Monday, July 15, 2019

जातिगत भेदभाव की शिकार बहन जी

संगठन से राजनैतिक दल तक, फिर चुनाव से सत्ता तक के सफर के दरमियान कई पड़ाव होते हैं! जैसे कि शुरूआत में छोटी सभा, फिर पदयात्रा, छोटी रैली आदि लेकिन दल के सत्तारूढ़ होने के बाद नेतृत्व के साथ-साथ जनता की भी जिम्मेदारी होती है कि वो वैचारिकी को आगे बढ़ने के लिए सामने आगे आए। ये जिम्मेदारी बसपा की जनता बखूबी निभा रही है, और बसपा सुप्रीमों बहुजन आंदोलन को सतत् अनवरत् आगे ले जा रही है, बहुजनों के मुद्दों को संसद के पटल तक, हुकूमत के कानों तक पहुंचा रही है! इसके बावजुद बहुजन समाज का एक तबका, कुछ संगठन और स्वार्थी राजनैतिक मंशा को साधने वाले लोग है जो बहन जी की जाति की वजह से, ब्रहम्णी दलों व संगठनों से फण्ड लेकर सतत् बहुजनों को गुमराह करने की फिराक में है! ऐसे लोगों का मानना है कि बहन जी सड़क पर उतर का विरोध करें! ऐसे में यह सवाल लाज़मी हैं कि क्या ऐसा करना मुनासिब है? कुछ लोगों का कहना है कि बहन जी को मरने से लगता है तो बसपा की कमान किसी और के हाथों में क्यों नहीं सौप देती हैं? हमारा स्पष्ट मानना है कि ये वहीँ लोग हैं जिनके पुरखों ने कभी बाबा साहेब के विरोध में कांग्रेस का साथ दिया था। 

बहन जी के प्रति इस तरह का भ्रम फ़ैलाने वाले लोगों की सूची में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़े वर्ग के वो लोग हैं जिनके अन्दर ब्राह्मणी रोग (जातिवाद) इस कदर कायम हैं कि ये लोग आज भी चमार/जाटव को निम्नतम व बहिष्कृत समझते हैं। इसका मानना है कि निम्नतम व बहिष्कृत जाति के नेता द्वारा देश पर शासन नहीं किया जाना चाहिए। आजकल ब्राह्मणी राजनैतिक दलों द्वारा फण्ड लेकर खुद चमारों का एक युवा फिरका शिक्षा, शान्ति और समृद्धि प्रतीक बाबा साहेब के ही नाम पर खून-खराबे, लूटमार, हत्या, बलात्कार, मानवता संहार की प्रतीक आर्मी/फ़ौज/सेना बनाकर बाबा साहेब के नाम की हुंकार भर बहुजनों को गुमराह कर रहें हैं। इसमें वो लोग भी हैं जो बाबा साहेब की कर्मभूमि से जुड़ें है जिनकों लगता हैं कि महाराष्ट्र का होने के नाते, जो सम्मान, जो कद बहन जी का हैं, वो सम्मान और कद उनकों मिलना चाहिए था। ये वहीँ लोग हैं जिन्होंने बामसेफ दिल्ली द्वारा इकट्ठा किये हुए एक लाख रूपये में से पच्चीस हजार का गबन किया था, जिसकों होटल में व्यभिचार करते हुए पकड़ा गया था जिसके चलते उसको बामसेफ से मान्यवर साहेब ने किनारे कर दिया था। ये वहीँ लोग हैं जिन्होंने बसपा के गठन की बात करने पर मान्यवर साहेब का विरोध किया था, उनका साथ छोड़कर बामसेफ का पंजीकरण करवाकर खुद उसके राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गए। ये वहीँ लोग हैं जो मान्यवर साहेब, बहन जी और बसपा को नेश्तनाबूद करने की मंशा लेकर ब्राह्मणी राजनैतिक दलों (कांग्रेस-भाजपा और अन्य) का साथ दिया। दर्जनों बामसेफ का पंजीकरण करवाकर बहुजन अधिकारीयों-कर्मचारियों को भ्रमित किया, जिससे कि मान्यवर साहेब के बामसेफ द्वारा जो पैसा बसपा को मिलता था वो पैसा मान्यवर साहेब और बसपा तक ना पहुंचने पाये। ऐसे लोग ही अपने राजनैतिक स्वार्थ के चलते बसपा और बहन के खिलाफ दुष्प्रचार करते रहते हैं कि बहन जी ने अपना मीडिया नहीं बनाया, बहन जी कैडर नहीं कर रहीं हैं, बहन जी लोगों से मिलती नहीं हैं, बहन जी टिकट बेचती हैं आदि। ऐसे लोगों की आजकल मंशा है कि हर मुद्दे को लेकर बहन जी सड़क पर उतरें, रोडशो करे, मार्च करें, जुलूस निकालें आदि। हमारा मानना है कि नफ़रत की हुकूमत में अभी मुनासिब नहीं हैं क्योकि ऐसा करने से बहुजनों को फायदा कम नुकसान ज्यादा होगा। 

हमारा मत हैं कि यदि आज के हुकूमत-ए-नफरत में बहन जी ऐसा कुछ भी करती है तो प्रशासन के बूते की बात नहीं है कि बहुजन भीड़ को रोक सकें, ऐसे में वो लाठीचार्च ही नहीं करेगें बल्कि गोलियां भी चलायेगें, कानून का सहारा लेकर बहुजनों का कत्ल-ए-आम भी करेगें, जैसा कि 02 अप्रैल को हुआ था, जिसमें सैकड़ों बेगुनाह मारे जायेगें।. बहुजन समाज के गुमराह उपद्रवी लोग चाहते हैं कि बहुजन मारे जाये जिससे कि ये लोग पुनः बहन जी को बहुजन संहार का जिम्मेदार घोषित कर बहुजनों की लाश पर अपने स्वार्थ की रोटी सेक सकें! इसलिए ऐसे लोगों से सावधान रहने की सख्त जरूरत है! याद रहें, आपको उन्मादी बनाने वाले ये वही लोग हैं जिनके पुरखे कभी बाबा साहेब का नाम लेकर मान्यवर साहेब को गाली देते थे, और आज उनकी ही संताने मान्यवर साहेब का नाम लेकर बहन जी को कोस रहे हैं, गाली दे रहे हैं! बेहतरीन शासन-प्रशासन, उम्दा विकास, बहुजन सरकार जनता के द्वार, होने बावजूद भी बहुजन समाज की गैर-जाटव जातियों के अन्दर बहन जी के प्रति नफ़रत की मुख्य वजह बहन की चमार/जाटव जाति हैं, जिसे आज भी निम्नतम, घृणित व बहिष्कृत समझा जाता हैं। आज भी ब्राह्मण-सवर्ण के अलावा बहुतेरे अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़े वर्ग के गैर-जाटव लोगों द्वारा बहन जी को जातिसूचक गाली बहुत ही आम हैं। बहन जी के खिलाफ गाली-गलौज किये जाने पर, उन पर अभद्र टिपण्णी किये जाने पर गैर-जाटव समाज लगभग सोया ही रहता हैं, पद्मावती जैसे काल्पनिक पात्र के लिए देश में आन्दोलन छेड़ दिया जाता हैं, क्यों ? बहन जी प्रति लोगों के इस रवैये को चंद स्वार्थी लोगों द्वारा इस्तेमाल करके बहुजनों को गुमराह किया जा रहा हैं। इसलिए चंद ही सहीं लेकिन इस तरह से बहुजनों द्वारा भी बहन जी के साथ किये जा रहें जातिगत भेदभाव को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता हैं।
--------------------------रजनीकान्त इन्द्रा-------------------------

बहुजन कारवां को आगे बढ़ाती बहन जी


ब्रहम्णी संगठनों द्वारा फण्डित बहुजन समाज के स्वार्थी लोगों का कहना है कि माननीया बहन जी ने बाबा साहब के मिशन को डूबा दिया है जबकि हकीकत ये है कि बाबा साहेब के मिशन को आगे बढ़ाने में सबसे अहम योगदान ही मान्यवर साहेब व माननीया बहन जी ने दिया है! सन् 1978 से लेकर आज तक बाबा साहेब के मिशन के प्रति निष्ठावान माननीया बहन जी ने मान्यवर साहेब के दिशानिर्देश में बाबा साहेब की स्वीकृति को बहुजन समाज के घर में ही नहीं बल्कि बहुजनों के जहन में स्थापित कर दिया है!

राजनीति में किसी से कभी भी 24 कैरेट की उम्मीद करना नेतृत्व के प्रति नाइंसाफी है, और ऐसी उम्मीद करने वालों की राजनीति के प्रति अनभिग्यता का परिचायक है! ये सत्य है कि भारत में सामाजिक परिवर्तन के अहम लक्ष्य को पाने के लिए राजनीति सबसे सशक्त माध्यम है! यही कारण है कि बाबा राजनैतिक सत्ता को गुरू किल्ली कहते हैं! मान्यवर साहेब व बहन जी इसी राजनैतिक सत्ता के लिए सकल बहुजन समाज में जागरूकता लाकर बहुजन की हुकूमत स्थापित कर बहुजनों की राजनैतिक पहचान को दुनिया के पटल पर सशक्त रूप से स्थापित करते हैं!

भारत जैसे हजारों जातियों में बंटे समाज में सबकों एक मंच पर लाकर गुरू किल्ली को पाना इतना आसान नहीं है जितना लोग समझ रहें हैं! बहुजनों को इक्ट्ठा करने में ही लगभग 18 साल लगे साथ ही साथ बहुत सारे राजनैतिक समीकरण तय करने पड़े, सैद्धान्तिक लक्ष्य को पूरा करने के लिए राजनैतिक क्रमचय-संचय करने पड़े तब जाकर पहली बार भारत की सर्वाधिक आबादी वाले उत्तर प्रदेश की सरजमीं पर वंजित समाज की सत्ता स्थापित हो सकी है! फिर सत्ता अख्तियार कर बहन जी ने बहुजन नायकों-महानायकों-नायिकाओं-गुरूओं-संतों को भारत के इतिहास में दिलाया, लोगों के जहन तक पहुंचया! भारत में एक मुश्त तौर पर सभी बहुजन नायकों-महानायकों-नायिकाओं-गुरूओं-संतों-क्रांतिकारियों-विद्वानों को स्थापित करने का इतना महानतम् कार्य सिर्फ और सिर्फ माननीया बहन जी ने ही किया है!

भारत में आज वंचित बहुजन गर्व से जय भीम कहते हैं, ये गौरव भी बहन जी सत्ता का ही प्रतिफल है! बहन जी ने सभी बहुजन नायकों-महानायकों-नायिकाओं-गुरूओं-संतों-क्रांतिकारियों-विद्वानों के नाम पर विश्वविद्यालय, इंजिनियरिंग कॉलेज, ईण्टर कॉलेज, पॉलीटेक्निक कॉलेज, मेडिकल कॉलेज, संस्थाएं, रोड, गली-मुहल्ले, जिला, तहसील, भवन आदि बनवाकर बहन जी ने भारत निर्माण में बहुजन समाज द्वारा दिये गए योगदान से दुनियां को परिचित कराया! स्कूल के पाठ्यक्रम में बहुजनों के महापुरूषों को शामिल कर सभी बच्चों को बहुजन इतिहास व योगदान से परिचित कराया है!

माननीया बहन जी पर जो लोग बाबा साहेब के मिशन को डूबा देने का आरोप लगाते हैं उन लोगों का बाबा साहेब के मिशन का ग्यान ही नहीं है! बाबा साहेब का मिशन है भारत में न्याय-समता-स्वतंत्रता-बंधुता पर आधारित समाज की स्थापना करना! राजनैतिक सत्ता इस लक्ष्य के संदर्भ में एक अहम पहलू मात्र है, माध्यम मात्र है, लक्ष्य नहीं! बाबा साहेब ने राजनैतिक शक्ति को एक माध्यम ही माना है, ये और बात है कि बाबा साहेब के नाम पर अपनी जीविका चलाने वाले, ब्रहम्णी संगठनों से फण्डित लोगों ने तात्कालिक राजनैतिक शक्ति को ही लक्ष्य बनाकर बहुजनों को गुमराह करने का कार्य कर रहे हैं!

माननीया बहन जी ने भी अपने तमाम भाषणों में स्पष्ट किया है कि उनके लिए राजनैतिक शक्ति भारत में समतामूलक समाज बनाने का माध्यम मात्र ही है! बाबा साहेब के संदेशों को हर जहन में स्थापित करने के लिए राजनीतिक के अलावा भी बहुत से माध्यम है जैसे कि बाबा साहेब को अपनी संस्कृति में शामिल करना! आज बहुजन समाज के रोजमर्रा की जिंदगी जैसे कि शादी-विवाह, अम्बेडकर मेला, अम्बेडकर मिलन, अम्बेडकर महोत्सव, दीक्षा मेला, दीक्षा मिलन, दीक्षा महादीपावली, अम्बेडकर महापरिनिर्वाण दिवस, शिक्षक दिवस (सावित्री बाई फूले जन्मोत्सव) ज्योतिर्बा फूले जन्मोत्सव, शाहू महाराज जन्मोत्सव, शिवाजी महाराज जन्मोत्सव, माता रमाबाई जन्मोत्सव, बुद्ध पूर्णिमा, कबीर जन्मोत्सव, संत शिरोमणि संत रैदास जन्मोत्सव, मान्यवर काशीराम साहेब जन्मोत्सव, मान्यवर काशीराम साहेब महापरिनिर्वाण दिवस, जन कल्याणकारी दिवस (माननीया बहन जी जन्मोत्सव) आदि का आयोजन, और इन अवसरों पर बहुजन कारवां चर्चा, समीक्षा, सेमिनार, सभा, नाटक, शैक्षणिक आयोजन आदि के माध्यम से बाबा साहेब की वैचारिकी जन जन तक पहुंच रही है! ऐसा करने की प्रेरणा व साहस बहन जी की हुकूमत का ही परिणाम हैं!

हमारे दादा जी कहते थे कि एक समय था कि वंचित लोग खुद नीला झण्डा लेकर चलने में हिचकते थे लेकिन बहन जी की हुकूमत का ही प्रतिफल है कि आज के दौर में सांस्कृतिक तौर पर अपराधी जातियों के लोग भी अपने घरों पर नीला झण्डा लगाकर जय भीम का जयघोष कर रहे हैं! इस तरह से बहुजन समाज की जीवन शैली में आया बदलाव बहन जी की सत्ता का ही परिणाम हैं! आज बहुजन समाज के लोग खुलेआम सभा करते हैं, रैली करते हैं, सरकारी-गैर-सरकारी संस्थानों में जय भीम का उद्घोष करते हैं, अपनी मांग और अपने एजेण्डे की बात करते हैं, शादी-विवाह, जलसे आदि के दौरान बहुजन महाना़यकों-नायिकाओं के पोस्टर लगते हैं! क्या ये बहुजन कारवां के आगे बढ़ने का परिचायक नहीं है? बहुजनों की लेखनी का चलना, बहुजन जनता की आवाज़ आदि में भी बहन जी व उनकी हुकूमत का बहुमूल्य योगदान हैं! ऐसे में बाबा साहेब के मिशन को राजनैतिक शक्ति तक ही समेट कर देखना बाबा साहेब के मिशन को संकुचित करना है, ब्रहम्णवाद को बढ़ावा देना है!

बहुजन कारवां के संदर्भ में बहन जी ने बहुजन आंदोलन को परवान चढ़ा कर वो मुकाम हासिल कर लिया है कि आने वाले इतिहास में बाबा साहेब, मान्यवर काशीराम साहेब के बाद माननीया बहन जी का नाम दर्ज हो चुका है!
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संस्कारी वेश्यावृत्ति (Brahmanical Prostitution)

भारत में अक्सर शादियां खुद की च्वाइस ना होकर दूसरों की थोपी हुई होती है, जैसे माता-पिता, घर-परिवार व समाज! इस तरह की शादिया हमेशा लाभ को ही ध्यान में रख कर होती है! ये शादिया जहां एक तरफ जाति व्यवस्था को सुरक्षित रखती है वहीं दूसरी तरफ संस्कार, रीति-रिवाज, सामाजिक मर्यादा, पिता की इज्ज़त आदि के नाम पर पुरूष-प्रधानता की व्यवस्था को बकायादा कायम रखकर पीढी-दर-पीढी आगे बढ़ाती रहती हैं!

ऐसी शादियों में पुरूष को मन मॉफिक (जिस पर मन आया, चाहें हो खुद की बेटी-बहन ही क्यूँ ना हो) लड़की के साथ जीवन भर सहवास का अधिकार मिल जाता है तो दूसरी तरफ लड़की के पिता को समाज में अपनी हैसियत का ये उससे ज़्यादा सामाजिक हैसियत वाले परिवार से रिश्ता जुड़ जाता है!

पौराणिक कथाओं में स्पष्ट है कि ब्रह्मा ने अपनी बेटी सरस्वती से विवाह किया, सूर्य ने अपनी बेटी ऊषा से शादी किया तो दुर्वाशा ने अपनी मर्जी के मताबिक सुन्दर स्त्री कुंती के साथ मन-मॉफिक सहवास किया इत्यादि उदाहरण पुरूषवाद को मजबूती से स्थापित करते हैं!

इतिहास गवाह है कि जंग खाई तलवार लेकर अपनी बहादुरी का ढिंढोरा पीटने वाले भगोडें राजपूतों ने अपनी सुरक्षा, और डर के कारण खुद की बहन-बेटियों को मुगलों के हवाले कर दिया! ऐसा करने से राजपूतों को सुरक्षा मिल गई और मुगल साम्राज्य, जो कि राजपूतों की हैसियत से कईयों लाख गुना शक्तिशाली था, से रिश्ता जुड़ गया! कुलमिलाकर इस संबंध के केंद्र में फायदे ही होता है!

आज की मौजूदा एनडीए - 3 की सरकार व आरएसएस में संघियों को ही देखिए ये सब लोग मुस्लिम को शत्रु समझते हैं, खुद को हिंदुत्व के ठेकेदार कहते हैं लेकिन इनकी बेटियाँ मुस्लिमों की ही घरों में चहलकदमी कर मुस्लिम बच्चे की परवरिश कर रही है! ऐसा इसलिए संभव है कि यहॉ पर भी मामले के केंद्र में फायदा ही है जिसे बेटी के आजादी का लिबास पहना दिया है! यदि ये हकीकत में बेटी की आजादी का मामला होता तो ये हिंदुत्व के ठेकेदार लव जिहाद का प्रपोगण्डा ना फैलाते, अंतर्जातीय या अंतर्धार्मिक विवाह करने वाले गरीबों की हत्या ना करते!

संस्कारी / ब्रहम्णी वेश्यावृत्ति में ग्राहक सिर्फ एक ही होता है जिसे आजकल पैसा लेकर या देकर अपनी बेटी-बेटे के लिए परिवार की इज्ज़त व अच्छे घर में रिश्ते के नाम पर खरीदा-बेचा जाता है! दहेज के संदर्भ में देखें तो लडका दहेज के नाम पर अपने बाप द्वारा बेचा और लड़की के बाप द्वारा खरीदा जरूर जाता है लेकिन इस प्रकार के विवाह में मन-मर्जी लड़के की ही चलती है! लडका लड़की के जीवन भर के भरण-पोषण का जिम्मा लेकर सारी जिन्दगी उसके साथ सहवास करता है! इसमें लड़की अपने पिता की इज्ज़त के नाम पर, सामाजिक रीति-रिवाज के लिए अपने इच्छा को दफन कर सदा के लिए अपने ग्राहक की होकर उसकी दासी भाव से सेवा करती है! यहीं हैं संस्कारी / ब्रहम्णी वेश्यावृत्ति (Brahmanical Prostitution).

खबरों में अक्सर सुनाई देता है कि किसी की लड़की घर से भाग गयी! ये नैरेशन ही पूरी तरह से गलत है क्योंकि कोई भी कभी भी घर से भाग ही नहीं सकता है! लड़कियां हमेशा कोठे से भागती है अपने जीवन की नई शुरुआत करने के लिए, अपना घर बसाने के लिए! जब घरों में लड़की-लडके की शादी के नाम पर खरीद-फरोख्त होती है तो वो घर घर नही कोठा बन जाता है! ऐसे में अपनी जिंदगी को बचाने के लिए कोठे से भागना कोई गुनाह नही है! ये और बात है कि ब्रहम्णी व्यवस्था के पैरोकारों ने ऐसे कोठों को घर का नाम देकर ऐसें कोठों से भागने वाले बच्चों को कोसते हैं, ऩाक को बचाने के लिए उनकी हत्या तक करते हैं!
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Wednesday, July 10, 2019

परिवार के सन्दर्भ में अधिकार एवं दायित्व


बच्चें कहीं अपने माता-पिता को घर से बेघर कर दे रहें हैं तो कहीं माता-पिता ही बच्चों को अपने जिंदगी से बेदखल कर दे रहें हैं। ये और बात हैं कि ये रिश्ते जैविक होते हैं, भावनात्मक होते हैं, प्यार-दुलार और सम्मान से पाले-पोषे गए होते हैं। इन रिश्तों को तोडना इतना आसान नहीं होता हैं। लोग कानूनी तौर पर अलग हो जाते हैं लेकिन इसका कतई मतलब नहीं है कि वो लगाव और एहसास भी मर जाता हैं। माता-पिता अपने बच्चों को कोसते हैं, शाप देते हैं, अर्थी उठाने और जिंदगी भर प्रताङित रहने का शाप दे देते हैं, लेकिन ये सब कुछ पल का गुस्सा मात्र होता हैं। माता-पिता अपने बच्चों से कभी जुदा नहीं हो सकते हैं, और ना ही बच्चे अपने माता-पिता से कभी अलग हो सकते हैं। यदि वो कभी अलग दिखते हैं तो इसका मतलब बस यहीं होता हैं कि उनका लगाव उनके आपसी ईगो के नीचे दब गया है, क्योकिं या तो माता-पिता ने बच्चे के अधिकार का हनन किया होगा या फिर बच्चे माता-पिता के प्रति अपने दायित्व से मुकर रहें होगें। इसी के चलते आये दिन अख़बारों में, सोशल मिडिया पर ये खबर आती रहती हैं कि पारिवारिक कलह के चलते बच्चे ने आत्महत्या कर ली, या फिर माता-पिता ने आत्महत्या कर ली हैं, या फिर माता-पिता ने बच्चे को जायजाद से बेदखल कर दिया हैं, घर से निकल दिया हैं, या फिर बच्चों ने माता-पिता को ही घर से निकाल दिया हैं। आज कल ऐसी समस्याओं की तादात में घातांकीय वृद्धि हो रहीं हैं।

ऐसी घटनाओं की पड़ताल जरूरी हैं कि क्या कारण हैं कि ऐसी घटनाओं की संख्या बढ़ती जा रहीं हैं ? क्या कारण हैं कि माता-पिता और बच्चों के बीच की खाई मोटी होती जा रहीं हैं? कहीं ये भारत में बदलते परिवेश का असर तो नहीं ? क्या ये एकाकी परिवार पद्धति का दुष्परिणाम तो नहीं हैं ? सारी स्थितियों का जायजा लिए बगैर किसी फैसले पर पहुंचना न्यायोचित नहीं होगा।

हालाकिं कि ये सच हैं कि भारतीय समाज और उसकी जीवन शैली संक्रमण के दौर में हैं। जहां एक तरफ लोग वैश्वीकरण की दस्तक से उत्साहित हैं, वहीँ दूसरी तरफ मनुवादी व्यवस्था में कैद लोग इसके विरोध में खड़े हैं। इस समय भारतीय समाज मुख्यतः दो विभिन्न प्रकार की जीवन शैलियों के द्वन्द से गुजर रहा हैं। सदियों से ब्राह्मणी व्यवस्था की गुलामी में कैद भारतीय युवा संवैधानिक और लोकतान्त्रिक मूल्यों की बदौलत आज अधिकारों की बात कर रहा हैं जो कि पुरानी मनुवादी व्यवस्था के खिलाफ हैं। इसलिए ब्राह्मणी व्यवस्था के लोग इनका विरोध करते हैं।

मनुवादी व्यवस्था में बच्चे एक आम नागरिक नहीं बल्कि माता-पिता के गुलाम होते हैं, उनकी जायजाद होते हैं। मनुवादी व्यस्था में बच्चों को बचपन से ही ट्रेंड किया जाता हैं कि माता-पिता के पैरों में स्वर्ग होता हैं, ये और बात है कि स्वर्ग को ना तो किसी ने आज तक देखा हैं, और ना ही किसी ने परिभाषित किया हैं। उस अदृश्य स्वर्ग को केंद्र में रखकर बच्चों को माता-पिता और गुरुओं के प्रति समर्पित होने का भाव जबरन उसी तरह से भर दिया जाता हैं जैसे कि ब्राह्मण के प्रति अन्य वर्णों व जातियों के दिलो-दिमाग में भर दिया जाता हैं। जिस तरह से ब्राह्मण अन्य सभी वर्णों व जातियों को अपना गुलाम समझता हैं, अपनी जायजाद समझ कर मनमर्जी उनका इस्तेमाल करता हैं लगभग वही व्यवहार माता-पिता द्वारा बच्चों के साथ किया जाता हैं। अपने लिए जैसा समर्पण ब्राह्मण समाज अन्य वर्णों व जातियों से चाहता हैं, ठीक वहीं समर्पण माता-पिता अपने बच्चों से चाहते हैं। यही कारण हैं कि ना तो ब्राह्मण अन्य वर्णों व जातियों को उनका मानवीय व मूलभूत हक़ देना चाहता हैं और ना ही माता-पिता बच्चों को उनका मूलभूत मानवीय हक़ देना चाहते हैं। हालाँकि माहौल बदल रहा हैं तो माहौल को देखते हुए और अपने आपको आधुनिक दिखाते हुए कुछ माता-पिता अपने आप को बहुत उदार दिखाते जरूर हैं लेकिन उनकी हर संभव कोशिस यहीं रहती हैं कि बच्चों की जिंदगानी के हर निर्णय वही करें और बच्चे उनके हर निर्णय को नतमस्तक होकर मान ले। सामान्यतः आज भारतीय समाज में यहां हो रहा हैं। 

माता-पिता द्वारा बच्चों के अधिकारों की हत्या भारत के ब्राह्मणवादी व्यवस्था का अहम् हिस्सा हैं जिसके चलते आज भी भारत में बच्चे आज़ाद नहीं, बल्कि गुलाम पैदा होते हैं। माता-पिता को भारत में बच्चों के अधिकारों की हत्या करने का हक़ सामाजिक-सांस्कृतिक हैं। दुनियां लोकतंत्र की बात कर रहा हैं लेकिन भारत जैसे लोकतान्त्रिक संवैधानिक देश में अपने हकों की हत्या को सहन करने वाले बच्चों को सभ्य, और अपने हकों के लिए बग़ावत करने वाले बच्चों को नालायक समझा जाता हैं। ऐसी स्थिति में आज के संवैधानिक और लोकतान्त्रिक मूल्यों वाले भारत में युवा दो राहें पर खड़ा दिख रहा हैं। वो समझ नहीं पा रहा हैं कि वो अपने मूलभूत अधिकारों के लिए लड़े या फिर ब्राह्मणी व्यवस्था द्वारा स्थापित मूल्यों को स्वीकार कर अपने मूलभूत अधिकारों की हत्या को सहन कर माता-पिता की लायक औलाद कहलायें।

हमारा स्पष्ट मानना है कि संयुक्त परिवार के मूल्यों से एकाकी परिवार के मूल्यों की तरफ बढ़ता समाज जहाँ एक तरफ अधिकारों के प्रति लोगों को सजग करते हुए उन्हें अपने मूलभूत अधिकारों के लिए लड़ने का साहस दे रहा हैं तो वही दूसरी तरफ लोगों को अपने माता-पिता और अन्य बड़े बुजुर्गों के प्रति असंवेदनशील व गैर-जिम्मेदार भी बना रहा हैं। हमारा स्पष्ट मानना हैं कि सभी के मूलभूत अधिकारों का सम्मान होना चाहिए। जिम्मेदारियों से भागना गलत हैं। जहाँ माता-पिता बच्चों को उनके परवरिश के साथ उनके हकों का ख्याल करते हैं, वही दूसरी तरफ बच्चों को भी माता-पिता के प्रति अपने दातयित्वों का भी भान होना चाहिए।
याद रहें,
जिम्मेदारियाँ किसी के अधिकारों का हनन नहीं करती हैं। सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा हैं कि राज्य के नीति निदेशक तत्व नगरिकों के मूलभूत मानवाधिकारों की हत्या नहीं करते हैं बल्कि उनकों सपोर्ट करते हैं। यही बात आम नागरिक (बच्चों व उनके माता-पिता) के सन्दर्भ में लागू होती हैं। माता-पिता को चाहिए कि वो बच्चों के अधिकारों का सम्मान करें और बच्चों को चाहिए कि वो माता-पिता के प्रति अपने दायित्वों का निर्वहन करें। दायित्व व अधिकार एक दूसरे के पूरक होते हैं, एक दूसरे की राह के बाधक नहीं।
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