Tuesday, February 19, 2019

बहुजन समाज और नेतृत्व के लिए सबक लेने का समय

जैसे जैसे आम चुनाव की तारीखें नजदीक आती जा रही हैं देश की राजनीति का हृदय स्थल कहे जाने वाले उत्तर प्रदेश में राजनीति का पारा लगातार गर्म होता जा रहा है। तेजी से घटे एक अलोकतांत्रिक घटनाक्रम में आज (१२ फरवरी २०१९) इलाहबाद विश्वविद्यालय के छात्रसंघ वार्षिकोत्सव में शामिल होने जा रहे उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को लखनऊ एअरपोर्ट पर ही रोक लिए गया। कारण बताया गया कि इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्रसंघ वार्षिकोत्सव में शामिल होने से इलाहाबाद में शांति-व्यवस्था भंग हो सकती है। इसलिए कानून व्यवस्था को बनाये रखने के लिए ऐसा किया गया है। इसी बीच अखिलेश यादव को लखनऊ में रोके जाने के विरोध में प्रदर्शन करने पर इलाहाबाद में सामाजिक न्याय के पक्ष में पूरी ताकत से अपनी आवाज बुलंद करने वाले सपा नेता धर्मेंद्र यादव पर भी पुलिस द्वारा लाठीचार्ज करने की घटना ने उत्तर प्रदेश में सत्ता के चरित्र को उद्घाटित कर दिया है। ये सारी घटनाएं बहुजन समाज व उनके नुमाइंदों को बहुत से संकेत देती हैं जो कि बहुजन समाज व उनके नेतृत्व को जानना होगा। इनको समझना होगा कि ये संघर्ष सिर्फ राजनीतिक ही नहीं है बल्कि ये राजनीतिक से कहीं अधिक ब्राह्मणवाद बनाम अम्बेडकरवाद का सांस्कृतिक द्वन्द है।

वैसे तो भारतीय राजनीति में सरकारों द्वारा राजनीतिक विरोधियों के आवागमन और सभा-सम्मेलनों को बाधित करना कोई नई बात नहीं है। अभी कुछ दिनों पहले ही पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा साम्प्रदायिक तनाव के मद्देनजर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को बंगाल में सभा करने से रोका जा चुका है। लेकिन अखिलेश यादव कोई क्रिमिनल नहीं हैं, उन पर कोई इस तरह का चार्ज भी कभी नहीं लगा है कि उनकी वजह से शान्ति-व्यवस्था को कोई खतरा हो। इसलिए योगी सरकार द्वारा इस तरह से अखिलेश यादव को रोका जाना पूरी तरफ से राजनीतिक साजिश का हिस्सा लगता है। लोकतंत्र में जनता की नुमाइंदगी करने वालों का इस तरह से रोका जाना लोकतंत्र की मूल भावना की निर्मम हत्या है।

इस घटना पर अपनी प्रतिक्रिया के तौर पर अखिलेश यादव अपने ट्विटर के माध्यम से कहते है कि “बिना किसी लिखित आदेश के मुझे एयरपोर्ट पर रोका गया। पूछने पर भी स्थिति साफ करने में अधिकारी विफल रहे। छात्र संघ कार्यक्रम में जाने से रोकने का एक मात्र मकसद युवाओं के बीच समाजवादी विचारों और आवाज को दबाना है।” आगे अखिलेश यादव लिखते है कि “एक छात्र नेता के शपथ ग्रहण कार्यक्रम से सरकार इतनी डर रही है कि मुझे लखनऊ हवाई-अड्डे पर रोका जा रहा है।” मौजूदा माहौल के सन्दर्भ में अखिलेश यादव लिखते है कि “शासन-प्रशासन ने हमें इलाहाबाद विश्वविद्यालय में जाने से रोकने का षडयंत्र रचा है पर वो हमें छात्रों से मिलने से नहीं रोक सकते है। राजनीतिक, सामाजिक क्षेत्रों के बाद अब विश्वविद्यालयों को संकीर्ण राजनीति का केंद्र बनाने की भाजपाई साज़िश देश के शैक्षिक वातावरण को भी दूषित कर देगी।”

इस पूरी परिघटना के संदर्भ में, बसपा की तरफ से अखिलेश को पूरा सहयोग मिला है जो कि बसपा के ट्विटर पर लिखित सन्देश “समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष व उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव को आज इलाहाबाद नहीं जाने देने कि लिये उन्हें लखनऊ एयरपोर्ट पर ही रोक लेने की घटना अति-निन्दनीय व बीजेपी सरकार की तानाशाही व लोकतंत्र की हत्या का प्रतीक है।” से स्पष्ट झलकता है। आगे बहन जी ट्विटर पर लिखती है कि “क्या बीजेपी की केन्द्र व राज्य सरकार बीएसपी-सपा गठबंधन से इतनी ज्यादा भयभीत व बौखला गई है कि उन्हें अपनी राजनीतिक गतिविधि व पार्टी प्रोग्राम आदि करने पर भी रोक लगाने पर वह तुल गई है। अति दुर्भाग्यपूण। ऐसी आलोकतंत्रिक कार्रवाईयों का डट कर मुकाबला किया जायेगा।” इस राजनैतिक टीका-टिप्पणी के बाद आमजन भी बहुजन मीडिया (सोशल मीडिया) के जरिये अपनी प्रतिक्रिया दे रहे हैं और अपने मूलभूत लोकतान्त्रिक संवैधानिक हकों की हत्या के प्रति गम्भीरतापूर्वक अपनी नाराज़गी और आक्रोश व्यक्त कर रहे हैं।

इस घटना के सन्दर्भ में, बहुजन समाज (अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति-अन्य पिछड़ा वर्ग व कन्वर्टेड मॉयनॉरिटीज़), विशेष तौर पर अन्य पिछड़ा वर्ग, व अखिलेश यादव को खुद सोचना चाहिए कि जब अखिलेश यादव खुद कुम्भ स्नान करने के लिए आते है तो शान्ति-व्यवस्था पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। लेकिन जब वही अखिलेश यादव इलाहबाद विश्वविद्यालय के छात्रसंघ वार्षिकोत्सव में शामिल होने के लिए आना चाहते है तो शान्ति-व्यवस्था का हवाला देकर उन्हें रोक दिया जाता है। हमारे विचार से इसका कारण यह है कि जब अखिलेश यादव कुम्भ स्नान को आते हैं तो इससे हिंदुत्व को बढ़ावा मिलता है। इसलिए उनके आने पर कोई रोक नहीं लगाई जाती है। लेकिन जब वही अखिलेश यादव अपनी बात रखने और भारत की बहुजन युवा पीढ़ी से मुखातिब होने को आना चाहते हैं, अपने विचार साझा करना चाहते हैं, जोकि सामाजिक न्याय की भावना को बल देकर हिंदुत्व की व्यवस्था पर प्रहार करती है, तो ऐसे में अखिलेश यादव को शान्ति-व्यवस्था के नाम पर इलाहबाद विश्वविद्यालय के छात्रसंघ वार्षिकोत्सव में शामिल होने से रोक दिया जाता है। यहाँ बहुजन समाज, खास तौर पर पिछड़े वर्ग और खुद अखिलेश यादव आदि को यह समझना होगा कि उनकी मुक्ति मंदिर-भक्ति-भगवान और तीर्थ-स्नान में नहीं बल्कि फुले-अम्बेडकरी वैचारिकी में निहित है। पिछड़े वर्ग को चाहिए कि जितनी जल्दी हो सके हिंदुत्व व इसकी ब्राह्मणी व्यवस्था का बहिष्कार कर फुले-अम्बेडकर-पेरियार-ललई यादव बौद्ध की विचारधारा को आत्मसात कर ले। यही बहुजन समाज के बढ़ते कारवां के लिए बेहतर होगा।


बहुजन समाज को यह याद रखने की जरुरत है कि वर्तमान दौर संविधान, संविधान प्रदत्त मूलभूत मानवाधिकारों, अपनी अस्मिता और लोकतंत्र के पक्ष में मजबूती से खड़े होने का है। सपा-बसपा गठबंधन २०१९ के संदर्भ में घटित होने वाली ऐसी सभी घटनाएं बहुजन राजनीति के आन्दोलन में एक महत्वपूर्ण अध्याय सिद्ध होने वाली हैं। इनके निहितार्थों को २०१९ के लोकसभा चुनावों के नतीजों से आगे बढ़कर समझने की जरुरत है। बहुजन समाज के साथ घटित हो रही इस तरह की घटनाएं मौजूदा दौर में बहुजन समाज को राजनीतिक तौर पर एक तो करेगीं ही, लेकिन इससे जो सामाजिक-सांस्कृतिक समीकरण बनेगा वो बहुजन समाज की एकता व सामाजिक न्याय-समता-स्वतंत्रता-बंधुत्व के लिए सतत संघर्षशील बहुजन आंदोलन के लिए मील का पत्थर साबित होगा।
रजनीकान्त इन्द्रा, इतिहास छात्र, इग्नू, नई दिल्ली
(Published on Bahishkrit Bharat web portal on Feb. 12, 2019)

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