Tuesday, February 19, 2019

सामाजिक परिवर्तन के लिए समाज को आना होगा आगे

बहुजन समाज की एक कमी है कि वह पांच साल में एक बार अपनी बहुजन पार्टी को वोट करके अपने सभी कर्तव्यों की इतिश्री मान लेता है. लोग सोचते हैं कि बाकी की जिम्मेदारी उनके नेताओं की है और चुनाव के बाद जो कुछ करना है वह बस नेताओं को करना है. यह एकांगी और पूर्णतया अनुचित विचार है. नेतृत्व हर मर्ज की दवा नहीं है. हमारा मानना है कि नेतृत्व का काम है मार्गदर्शन करना, रास्ता दिखाना, भटकाव के समय, बिखराव की परिस्थिति में सामने आकर समाज को एकजुट करते हुए परिवर्तन के कारवां को आगे बढ़ाना. वह हमेशा, हर विषय पर, हर जगह सक्रिय नहीं हो सकता. नेतृत्व से इतर भी बहुजन समाज को अपनी जिम्मेदारियों को समझते हुए आगे आना होगा, तभी सामाजिक परिवर्तन हो सकता है. कुछ वर्षों पूर्व जब दिल्ली में सवर्णों द्वारा आरक्षण के विरूद्ध प्रदर्शन किया जा रहा था तब एक बात जो खास तौर पर ध्यान देने योग्य थी कि प्रदर्शन में बच्चें व छात्र (सवर्ण) कम उनके अभिभावक (सवर्ण) ज़्यादा दिखाई पड़ते थे.

बहुजन समाज में आरक्षण आदि मुद्दों पर शायद ही किसी ने अभिभावकों को प्रदर्शन करते देखा है. आलम तो ये है कि यदि इलाहाबाद, लखनऊ, बनारस आदि जगहों पर खुद बच्चों के प्रदर्शन में शामिल होने की खबर अभिभावकों को लग जाय तो वो कहते हैं कि पढने के लिए भेजा है या फिर नेतागीरी करने के लिए? इतना ही नहीं सामान्य तौर पर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे बच्चों की भी यही मानसिकता होती है कि वो तो अधिकारी बनने आये हैं. उन्हें प्रदर्शनों में शामिल होकर अपना समय नहीं बर्बाद करना है. उसे जी-तोड़ मेहनत करना है, और अपनी मेहनत की बदौलत वह सफल हो जायेगा. लेकिन क्या इस ब्राह्मणी व्यवस्था में सिर्फ मेहनत (रट्टामार किताबी पढ़ाई) की बदौलत सफल हुआ जा सकता है? हमारे निर्णय में नहीं, बिल्कुल नहीं. लेकिन दुःख की बात है कि अधिकांश बहुजन छात्र यही सोचते हैं.


कहने का अभिप्राय यह है कि वोट देने मात्र से बहुजन समाज की जिम्मेदारी खत्म नहीं हो जाती है. हमें हर मुद्दे पर अपनी आवाज बुलंद करनी होगी. अपने नेतृत्व को ये बताना होगा कि हम जाग रहें हैं और हम आपके साथ हैं. लोकतंत्र में हम अपनी जिम्मेदारी सिर्फ और सिर्फ अपने नेतृत्व के कंधों पर नहीं डाल सकते हैं. आवाज़ जमीनी स्तर से उठनी चाहिए. जहां आप भटकेगें नेतृत्व आपका मार्गदर्शन करेगा लेकिन सत्य यही है कि सामाजिक परिवर्तन के इस महासंग्राम में समाज को भी अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी. समाज द्वारा ऐसा करना सामाजिक चेतना के जीवित होने, उसके जागरूक होने और सामाजिक परिवर्तन के कारवां को आगे बढ़ाने के प्रति समाज की प्रतिबद्धता का भी प्रमाण होगा.
रजनीकान्त इन्द्रा, इतिहास छात्र, इग्नू, नई दिल्ली
(Published on Bahishkrit Bharat web portal on Feb. 07, 2019)

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