Friday, February 22, 2019

सपा-बसपा गठबंधन के मायने


21वीं सदी में, जनवरी 12, 2018 का दिन बहुजन समाज में अपने हक व वजूद को लेकर बढ़ती चेतना का सबसे सशक्त प्रमाण है! आज बाबा साहेब डॉ अम्बेडकर स्मारक के सामने स्थित ताज होटल उस महागठबंधन का साक्षी बना जिसने भारत के राजनैतिक हलके में भूचाल ला दिया है! ब्रहम्णवादी मीडिया बहुजन समाज की इस एकता को बर्दाश्त नहीं कर पा रहा है! राजनैतिक विश्लेषक व दल आम चुनाव 2019 के बदलते समीकरण को लेकर असहज महसूस कर रहे हैं! राजनैतिक, सामाजिक-सांस्कृतिक और अर्थ जगत के विद्वान निगाहें लगाये बहुजन समाज के कदमों की आहट सुनने का प्रयास कर रहें हैं! ऐसे में सबसे अहम सवाल यह है कि इस ऐतिहासिक पल के भूत और वर्तमान का भारत, बहुजन समाज, के आने वाले भविष्य पर क्या प्रभाव पड़ेगा ?
एक नजर बहुजन राजनीति के बीते समय पर
सर्वविदित है कि आधुनिक भारत में बहुजन समाज के हकों के लिए लंदन तक अपनी आवाज बुलंद करने वाले बाबा साहेब डॉ अम्बेडकर के महापरिनिर्वाण के बाद बहुजन समाज की राजनीति में एक विराम सा लग गया था! लेकिन चंद सालों बाद भारत की सरजमीं पर मान्यवर काशीराम के रूप में एक ऐसे नेतृत्व का उदय हुआ जिसने भारत की धरती को साइकिल से नापकर भारत की राजनीति में इंदिरा गांधी जैसे शुरमाओं के हृदय गति में अवरोध पैदा कर दिया! इस बहुजन महानायक ने जहॉ एक तरफ बहुजन समाज को बाबा साहेब डॉ अम्बेडकर से परिचित कराया वहीं दूसरी तरफ के फुले-अम्बेडकरी मिशन को परवान चढ़ाने के लिए बहुजनों में राजनैतिक चेतना का प्रसार किया! इस महामानव ने ब्रहम्णवादी सरकारों व संस्थानों द्वारा भूला दिये गये बोधिसत्व विश्वरत्न शिक्षा प्रतीक मानवता मूर्ति बाबा साहेब डॉ अम्बेडकर व बहुजन समाज की राजनैतिक अस्मिता को भारत की राजनीति में ही नहीं, बल्कि दुनियां के फलक पर स्थापित कर दिया!

बाबा साहेब के मिशन को समर्पित इस दूरदृष्टा ने बामसेफ, डीएस-4 जैसे बहुजन संगठन का सृजनकर बहुजन समाज के नौकरीपेशा व अन्य को अपने हकों के प्रति जगरूक कर भारत की राजनीति में आने वाली सुनामी की बुनियाद ऱखी! आखिर वह दिन, अप्रैल 14, 1984, आ ही गया जिस दिन बीएसपी की स्थापना कर भारत के राजनैतिक पट पर दस्तक दी! कॉरवॉ चलता रहा लोग जुडंते रहे! दो पैरों दो पहिए का ये बहुजन राजनीति का महाआन्दोलन आगे बढ़ता रहा! इसी दरमियान बहुजन समाज की अपनी हुकूमत और दलित समाज के मुद्दों पर खास तवज्जों देते हुए मुलायम यादव के साथ बसपा ने गठबंधन किया गया। मुलायम यादव मुख्यमंत्री बने और बहन जी को दोनों दलों के बीच सैद्धांतिक सामंजस्य बनाये रखने के लिए नियुक्त किया गया! लेकिन मुलायम यादव के मुख्यमंत्रित्व काल में दलित समाज के साथ अत्याचार बढ गया! मान्यवर साहेब के अनुसार अलीगढ में सपा से संरक्षण प्राप्त गुण्डों ने एक भट्टे पर काम करने वाले कुछ मजदूरों को जिंदा जला दिया, पंचायतीराज चुनाव में धांधली की गई आदि! भारतीय समाज के बहिष्कृत जगत के साथ अत्याचार, अनाचार, बलात्कार अपनी पराकाष्ठा पर पहुँच गया! मुलायम यादव की इस संविधान विरोधी अमानवीय रवैया के चलते मान्यवर साहेब ने सपा से समर्थन वापस ले लिया जिसके चलते मुलायम के कार्यकर्ताओं ने लखनऊ के गेस्टहाउस में बहुन जी पर जानलेवा हमला कर दिया! नतीजा मुलायम सिंह यादव का नफरती रवैया, फॉरवर्ड की राजनीति और दलित समाज की नफ़रत ने बसपा-सपा की कड़वाहट को हमेशा बढ़ाने का ही काम किया है!

फिलहाल, अपने आप को सवर्ण समझने वाले पिछड़े समाज (ओबीसी) के राज में दलित समाज पर बढते अत्याचार के चलते मान्यवर साहेब जहॉ एक तरफ मुलायम यादव को सत्ता से बेदखल कर गुण्डाराज पर लगाम लगाई वहीं दूसरी तरफ आर्थिक राजनैतिक सामाजिक व सांस्कृतिक तौर पर बहुजन समाज के सबसे कमजोर दलित-वंचित-पीडित समाज को ओबीसी का पिछलग्गू बनने से रोकने के लिए ब्रहम्णी बीजेपी से सिर्फ राजनैतिक (ना कि सैद्धांतिक) समझौता करके दलित समाज को सत्तासीन कर दिया! सदियों से हिंदुओं द्वारा सतायें, सवर्णों द्वारा दबाये, मुस्लिमो-सिखों आदि द्वारा उपेक्षित दलित समाज की बेटी को भारत की सर्वाधिक आबादी वाले उत्तर प्रदेश की सरजमीं का हुक्मरान बनाकर भारत के राजनैतिक समीकरणों को छिन्न-भिन्न कर भारतीय राजनीति के नये समीकरण व मापदण्ड गढें!

हमारा स्पष्ट मानना है कि कोई किसी समाज को कब तक राजसत्ता के लिए प्रेरित कर सकता है? मान्यवर साहेब समाज की सामर्थ्य से बखूबी वाकिफ थे! वे अच्छी तरह से जानते थे कि बहुजन समाज, विशेष कर दलित-वंचित समाज, एक भूखा शेर है जो गरीबी की मार झेल रहा है, ब्रह्मणी समाज द्वारा बहिष्कार सहता चला आ रहा है, जिसने आज तक गाली, जलालत, अपमान, गरीबी की ही कसैला, कडुआ स्वाद चखा है लेकिन यदि इस दलित-वंचित समाज के मुख एक बार सत्ता का खून लग जायेगा तो ये समाज खुद सत्ता का शिकार करने को लालाइत हो जायेगा! मान्यवर साहेब ने बामसेफ, डीएस-4, बहुजन टाइम्स, चमचा युग और अम्बेडकरी विचारधारा को हर दलित-बहुजन तक पहुँचाकर सत्ता के शिकार का हुनर इस समाज को सिखा दिया है! इसी हुनर की बदौलत भारत में सामाजिक परिवर्तन की महानायिका बहुजन मल्लिका बहन कुमारी मायावती जी अपने जोर-ए-बाजुओं की बदौलत भारत की सर्वाधिक आबादी वाले उत्तर प्रदेश की सरजमीं पर चार-चार बार हुकूमत कर चुकी है! बहन कुमारी मायावती जी ने सिर्फ हुकूमत ही नहीं की बल्कि तमाम नेताओं को बता दिया कि हूकुमत कैसे की जाती है! बहन जी सभी आईएएस-आईपीएस-पीसीएस समेत सभी अधिकारियों को बता दिया कि आप जनता के मालिक नहीं, नौकर है! कानून की ताकत क्या होती है पहली बार जनता को समझ आया! गुण्डों में कानून का दहशत कायम हो गया! नतीजा ये हुआ कि बहन जी की हुकूमत के दौरान माफिया, गुण्डे, असामाजिक तत्व उत्तर प्रदेश छोड़ कर या तो नेपाल, भूटान आदि पड़ोसी देशों में चले गये या भारत के अन्य राज्यों में शरण ले लिए! कुल मिलाकर बहन जी की हुकूमत के दौरान या तो गुण्डे, माफिया खुद जेल की शरण में चले गये या फिर प्रदेश छोड़कर अन्डरग्राउंड हो गए!

बसपा की ही हुकूमत में पहली बार बहुजन महानायकों के नाम पर जिलो का नामकरण किया गया, विश्वविद्यालय खोले गए, डिग्री कालेज, इण्टर कालेज, हाईस्कूल आदि खोले गए, अस्पताल बनवाये गए, छात्रवृत्ति बांटे गए, किताब, स्कूल में दाखिला, भूमिहीनों को पट्टा दिया गया, महिलाओं को पेंशन आदि का आदर्श व्यवस्था की गई! अम्बेडकर ग्राम योजना के तहत ब्रह्मणी व्यवस्था के चलते सदियों से गंदगी में रहने वाले दलित-बहुजन समाज को पहली बार पक्की सड़क, स्कूल, शौचालय, व हरियाली युक्त ग्राम का सपना पूरा किया हुआ! लखनऊ नोएडा में बहुजन प्रेरणा स्मारक बनवाये गए, हाइवे, आदि बनवाये गए! बसपा के हुकूमत ने जहॉ एक तरफ सरकारी नौकरों को उनकी जिम्मेदारियों का एहसास करा दिया गया वहीं दूसरी तरफ उनकी समास्शयाओं का शीघ्रता से संग्यान लेकर समाधान किया, भ्रष्टाचार की नाक में नकेल डालकर अंकुश लगा दिया गया! चारों तरफ समाजिक न्याय पर आधारित संविधान सम्मत शासन कायम हो गया, दलितों, आदिवासियों, गरीबो, किसानों आदि पर पर विशेष ध्यान दिया गया!

पहली बार मूलभूत सुविधाओं से साक्षात्कार करने के बाद देश के दलित-बहुजन समाज को सत्ता की ताकत का एहसास गया! या यूं कहिए कि दलित-वंचित समाज रूपी भूखे शेर के मुख सत्ता रूपी शिकार का खून लग गया! दलित-बहुजन समाज की इसी बुद्ध-अम्बेडकरी चेतना का परिणाम है कि बसपा के लोकसभा में शून्य सीट होने के बावजूद भी देश का ओबीसी-एससी-एसटी समाज बहन जी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए जद्दोजहद कर रहा है!
बसपा-सपा गठबंधन 2019
आज के राजनैतिक गठबंधन की कहानी आज नहीं बल्कि तब लिखी गई थी जब पहली बार बहुजन महानायक मान्यवर काशीराम साहेब ने बहन कुमारी मायावती जी को मुख्यमंत्री बनाया था! उस समय लोग काशीराम साहेब की आलोचना कर रहे थे लेकिन मान्यवर साहेब भारत की सामाजिक व्यवस्था को बखूबी जानते थे! मान्यवर साहेब समाज के ताने-बाने से बखूबी वाकिफ थे! इसी दरमियान मुलायम सिंह यादव के दलित विरोधी चेहरों को भी देख लिया था!

राजनैतिक तौर पर पिछडा वर्ग भले ही आज एससी-एसटी को स्वीकार कर ले लेकिन सामाजिक तौर पर वंचित जगत के साथ इसका व्यवहार पेशवाई ही है! आज भी पिछडा वर्ग बहन जी को या किसी अन्य दलित-वंचित समाज के नेतृत्व को सहर्ष स्वीकार नही कर पा रहा है, या यूँ कहिए कि स्वीकार करते समय असहज महसूस करता है! ये असहजता ग्रामीण भारत में बड़ी ही सरलता व सहजता से देखि जा सकती है। राजनैतिक गठबंधन के बावजूद गाँवों में पिछड़ा वर्ग बहन जो सहजता से स्वीकार करने की स्थिति में है। और पिछड़े वर्ग की इस असहजता का कारण राजनैतिक नहीं बल्कि बहन जी की सामाजिक पृष्ठभूमि है, उनका दलित-वंचित-अछूत जगत से होना और पिछड़ों द्वारा खुद को सवर्ण समझना है।

मान्यवर साहब ये सब जानते थे कि यदि अवसर की मांग के अनुसार दलित-वंचित-अछूत जगत को सत्ताशीन नहीं किया तो नव ब्राह्मण रूपी पिछडा वर्ग दलित-वंचित समाज के हाथ में सत्ता नही जाने देगा! परिणामस्वरूप राजनैतिक-सामाजिक-आर्थिक रूप दलितों की तुलना में संपन्न ये पिछड़ा वर्ग भविष्य में दलित-वंचित जगत के लिए नव ब्राह्मण बनकर जायदा खतरनाक हो सकता है। ऐसे में जब तक दलित-वंचित समाज के मुख सत्ता का स्वाद नही लगेगा तब तक भारत के सामाजिक परिवर्तन की राह प्रशस्त नही होगी! हमारे विचार से, इसी के मद्देनजर मान्यवर साहेब ने समय की नजाकत व मांग के अनुसार ब्रह्मणी बीजेपी से राजनैतिक समझौता करके दलित-वंचित जमात को हुक्मरानों की कतार में खड़ा कर दिया!

इसी का नतीजा है कि आज नव ब्रह्मण रूपी पिछडां वर्ग बहुजन आन्दोलन के मायने, जरूरत और अपने व देश के हित को समझ रहा है! मंद वेग ही सही लेकिन आज पिछड़ा वर्ग बहुजन समाज को समझ रहा है, मुद्दों को जान रहा है और बहुजन एकता की तरफ उन्मुख होकर दलित-वंचित-आदिवासी समाज के साथ कंधें से कन्धा मिलाकर ब्राह्मणवादी विचारधारा को रौदते हुए फुले-अम्बेडकरी कारवां को एक-एक कदम करके आगे बढ़ता जा रहा है।

यदि राजनैतिक इतिहास पर गौर करें तो हम पते है कि बहुजन महानायक मान्यवर काशीराम साहेब ने बाबा साहेब डॉ अम्बेडकर द्वारा बनाए गये रास्ते पर चलकर पिछडों को उनका वाजिब हक दिलाने की जंग छेड़ दी! इस जंग के परिणामस्वरुप ही मण्डल कमीशन पर आधारित पिछडों को आरक्षण दिलाकर बहुजन क्रांति को पंख दे दिया! इसके परिणामस्वरूप विश्वविद्यालयों व ब्यूरोक्रेसी की संरचना में अमूल-चूल परिवर्तन हुआ! पिछडें वर्ग की विश्वविद्यालयों में दस्तक पिछडों को अपने सामाजिक-राजनैतिक-आर्थिक-सांस्कृतिक हक के प्रति जागरूक कर दिया! ब्रहम्णों-सवर्णों द्वारा आरक्षण विरोधी प्रदर्शन का बहिष्कार कर पिछड़े वर्ग ने बहुजन आन्दोलन में अपनी जागरूक दस्तक को प्रमाणित कर दिया है! इसी का परिणाम है कि आज पिछड़े वर्ग के आम जन भी ब्रहम्णवाद व इसकी व्यवस्था का मुखर रूप से विरोध करना शुरू कर दिया है, आज पिछडा वर्ग भी बहुजन आन्दोलन को सीचने वाले दलित-वंचित समाज से जुड रहा है, बहुजन कारवॉ को सशक्त कर रहा है!

जमीनी स्तर पर बहुजन समाज की यही बहुजन चेतना ही है जिसके चलते आज पूरे देश का बहुजन समाज एक स्वर में भारत में सामाजिक परिवर्तन की महानायिका बहुजन मल्लिका बहन कुमारी मायावती जी को देश का प्रधानमंत्री बनाने के लिए संघर्ष कर रहा है!

हमें सत्ता से ज्यादा खुशी इस बात की है कि सकल बहुजन समाज (ओबीसी-एससी-एसटी व कन्वर्टेड मायनॉरिटीज) में एक होने की भावना पैदा हो चुकी है जो कि इनमें सामाजिक-सांस्कृतिक एकता को जन्म दे रही है, ये कंधे से कंधा मिलाकर संघर्ष करने को तैयार है!

इसमें कोई संदेह नहीं है कि बसपा-सपा का ये राजनैतिक गठबंधन आज है, कल टूट जायेगा! लेकिन इस गठबंधन से बहुजन समाज में जो एकता बनी है, जो सामाजिक-राजनैतिक-आर्थिक-सांस्कृतिक समीकरण बने है उनका बहुजन आन्दोलन पर बहुत ही दूरगामी परिणाम होगा! हमारा मानना है कि राजनैतिक समीकरण कुछ मुद्दों पर बनते व बिगडते रहते है लेकिन बसपा-सपा गठबंधन - 2019 का बहुजन समाज के समाजिक व सांस्कृतिक एकीकरण पर बहुत सकारात्मक व गहरा प्रभाव होगा, जो कि तात्कालिक सत्ता से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण है!
रजनीकान्त इन्द्रा, इतिहास छात्र, इग्नू नई दिल्ली


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