Tuesday, February 19, 2019

बहुजन चेतना के प्रसार के साथ गायब हुई कुम्भ की रौनक

विगत कुछ वर्षों में जिस तरह से दलितों, आदिवासियों और पिछड़ों पर अत्याचार की घटना में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है और उसके नतीजे में इन वर्गों में अपने अस्तित्व को लेकर चेतना व जागरूकता का प्रसार हुआ है, उसका नतीजा कुम्भ में जुटने वाली भीड़ में नाटकीय तौर पर आई कमी के रूप में देखा जा सकता है. तमाम प्रशासनिक प्रयासों और मीडिया मैनेजमेंट के बावजूद इस बार पूरा का पूरा कुम्भ फ्लॉप हो गया है. मुख्यधारा मीडिया करोड़ों की भीड़ दिखा जरूर रहा है लेकिन ये सत्यता से कोसो दूर है.


हकीकत यह है कि भीड़ बढ़ाने के लिए वाराणसी रोड पर सहसों में और फैज़ाबाद रोड पर सोरांव में बसों को रोककर जबरन लोगों को पैदल चलने पर मजबूर किया जा रहा है. लोग बसों से उतर कर पैदल चले आ रहे हैं फिर भी भीड़ पूरी नहीं हो रही है. इसलिए संगम के पास पुलिस वाले जबरन कुम्भ शटल को रोककर ट्रैफिक मैनेजमेंट के नाम पर भीड़ इकठ्ठा करने की कोशिश कर रहे हैं. जैसे ही आप गंगा के दोनों पुल पार करते हैं पूरा का पूरा इलाहबाद उतना ही शान्त दिखता है जितना रविवार को होता है. एक बुजुर्ग ने बताया कि इससे ज्यादा लोग तो पिछली सरकारों के समय में स्नान करने आते थे. यहाँ एक और ध्यान देने योग्य बात यह भी है कि जो थोड़े बहुत लोग मेले में आये भी हैं उनमें से अधिकांशतः उत्तर प्रदेश से बाहर के ही हैं. मतलब साफ है कि बहुजन आंदोलन को आगे ले जाने में उत्तर प्रदेश नेतृत्व कर रहा है. इसलिए आप तथाकथित मुख्यधारा मीडिया की रिपोर्ट्स पर मत जाइये. बहुजन चेतना ने इस बार कुम्भ को पूरी तरह विफल कर दिया हैं. आने वाले समय में इसके काफी महत्वपूर्ण परिणाम सामने आएंगे.
रजनीकान्त इन्द्रा, इतिहास छात्र, इग्नू, नई दिल्ली
(Published on Bahishkrit Bharat web portal on Feb. 05, 2019)

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