Friday, February 22, 2019

बहन जी पर नाजायज आरोप लगते गुमराह बहुजन


जिन्होंने अपनी ज़िन्दगी के चार सेकेंड भी समाज को नही दिया है आज वही लोग आरामदेह कुर्सियों पर बैठकर भारत के राजनैतिक फलक पर अपनी जिंदगी के चार दशक से भी अधिक समय तक बहुजन आंदोलन को समर्पित, बहुजनों की आवाज और भारत में सामाजिक परिवर्तन की महानायिका पर आरोप लगाते हैं! कितना दुःख होता है जब वो लोग आप पर आरोप लगाकर बिना सच्चाई जाने दोषी करार कर देता है जिनके लिए महानायिका ने अपना सब कुछ त्याग दिया!

बहुजन महानायिका पर बहुत सारे आरोप बहुजनों द्वारा ही लगाये जाते हैं! हम ये नहीं कहते हैं कि समीक्षा नहीं की जाय! बहन जी हो या कोई अन्य कोई भी समीक्षा के दायरे से बाहर नही हो सकता है। यदि मिशन व समय की नज़ाकत को समझते हुए समीक्षा की जाय तो मिशन को लाभ होगा, मिशन प्रबल व प्रखर होगा! लेकिन निजी स्वार्थ के चलते बहुजन समाज के ही कुछ लोग हैं जो ना सिर्फ बहन जी पर आरोप लगाते हैं बल्कि बहन जी को दोषी की तरह देखते हैं, और दूसरे बहुजन साथी को गुमराह करने का जतन करते हैं! ऐसे लोगों के कुछ सवाल है जो खुद इनके नहीं है बल्कि ब्राह्मणों व सवर्णों द्वारा इनकों अपने ही समाज की इमारत में सेंध लगाने के लिए दिया गया। चरों तरफ घटित हो रही राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक-सांस्कृतिक घटनाओं पर विश्लेषण करने के बाद कुछ ऐसे ही सवालों का जबाब देने का प्रयास करते है। जैसे -
१) बहन जी सवर्णों को टिकट क्यों देती है ?
बाबा साहेब कहते है कि राजनैतिक सत्ता ही वो मास्टर चाभी है जिससे बहुजन समाज अपने लिए अवसर के सारे दरवाजे खोल सकता है। इन दरवाजों को खोलने के लिए सत्ता चाहिए। सत्ता के लोकसभा व विधानसभा में सीट चाहिए। राजनीति पर सामाजिक ढांचे का गहरा प्रभाव है। ब्राह्मण-सवर्ण का इतना प्रभाव है कि आज भी पिछड़ा वर्ग उनके चंगुल में पूरी तरह से कैद। सामान्यतः यही होता है कि पिछड़ा वर्ग अपने वर्ग के उम्मीदवार को वोट ना करे, दलित समाज दलित उम्मीदवार को वोट ना करे, ब्राह्मण-सवर्ण तो पिछड़े-दलित दोनों को वोट नहीं करेगा लेकिन अपनी सामाजिक-सांस्कृतिक अस्मिता व प्रभाव क्षेत्र के चलते ब्राह्मण-सवर्ण अपने ब्राह्मण-सवर्ण के वोट साथ-साथ दलित व पिछड़े वर्ग का वोट पाने में सफल हो जाता है। पिछड़े वर्ग की गुलामी के चलते ही बहन जी ब्राह्मण-सवर्ण को टिकट देती है ताकी कम से कम पिछड़ा वर्ग ब्राह्मणों-सवर्णों के प्रभाव के चलते ही बसपा को वोट कर दे। २००७ में इसी तरह की सोशल इंजिनीरिंग हुई थी और बसपा सत्ता मी आयी थी।
२) बसपा ने हाथी को गणेश क्यों बना दिया है ?
जहॉ तक रही बात हाथी को गणेश करने की, तो ये बहन जी ने कभी नहीं कहा है कि हाथी नहीं गणेश है, और, सैद्धांतिक तौर पर ना ही कभी स्वीकारा है! हॉ, सोशल इंजिनीरिंग के दरमियान ब्राह्मणों-सवर्णों व खासकर आज के नव ब्राह्मण पिछड़े समाज को बसपा से जोड़ने के लिए उनके लोगो ने इस नारे हो गढ़ा है और प्रचारित किया है। लेकिन ये कभी भी बसपा के सिद्धांत में नही रहा है! बहन जी के शासन काल में हुए कार्यों पर नजर फेरिये तो आप पायेगें कि हर निर्माण पर आपको बहुजन विरासत नजर आएगी, बुद्ध-रैदास-कबीर-फुले-अम्बेडकर-मान्यवर काशीराम साहेब नज़र आयेगें। ऐसे में कोई कैसे कह सकता है कि बहन जी ने सिद्धांतों से समझौता कर लिया है।
३) बहन जी ने इतने सारे पत्थर और पार्क बनवाने के बजाय विश्वविद्यालय और अस्पताल बनवा दिया होता, हाथी और पार्क बनाने में पैसा क्यों खर्च किया?
बहन जी के कार्यकाल में हुए निर्माण पर गौर कीजिए बहन जी ने गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय, महामाया प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, मेडिकल कॉलेज, इंजिनीरिंग कॉलेज, पॉलिटेक्निक कॉलेज, इण्टर कॉलेज आदि बनवाये है। रही बात बहुजन पार्कों की तो भारत के इतिहास से मिटा दिए गए बहुजन संतों-गुरुओं-समाज सुधारकों, विद्वानों, महानायकों-महनायिकाओं व स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को बहन जी ने पहली बार बहुजन भारत में स्थापित किया है। बहुजन इतिहास को पत्थरों पर उकेरा है। हमारी नजर में बहुजन पार्क भारत के सबसे बेहतरीन विश्वविद्यालों से भी बेहतरीन है क्योंकि भारत के विश्वविद्यालय पढ़े-लिखें लोगों को पढ़ाते हैं लेकिन बहुजन पार्क उन लोगों को भी पढ़ाते है, उनकों उनके अपने बहुजन संतों-गुरुओं-समाज सुधारकों, विद्वानों, महानायकों-महनायिकाओं व स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों से साक्षात्कार करवाते है, उनकों उनका इतिहास बतलाते है, उनकों उनके अपनी जीवन-शैली (बुद्धिज़्म) से मिलवाते है, उनकों अपनी मूल विरासत से परिचय करवाते है, जिन्होंने कभी स्कूल का मुँह तक नहीं देखा है। हकीकत में बहन जी ने ब्राह्मणवाद की छाती पर ताण्डव करते हुए देश की ८५% आबादी के इतिहास, गौरवगाथा, संघर्ष और वज़ूद को भारत के ही नहीं बल्कि दुनियां के फलक पर स्थापित किया है। ऐसे में तमाम बहुजन स्मारक विरोधियों से हमारा पूरी सख्ती से ये कहना है कि जब-जब हमारे बहुजन संतों-गुरुओं-समाज सुधारकों, विद्वानों, महानायकों-महनायिकाओं व स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के गौरवगाथाओं और इतिहास को इतिहास के पन्नों से मिटाने की कोशिस की जाएगी तब-तब हम अपने बहुजन संतों-गुरुओं-समाज सुधारकों, विद्वानों, महानायकों-महनायिकाओं व स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के गौरवगाथाओं और इतिहास को संगमरमर के कठोर निर्दयी पत्थरों पर दर्ज़ करने को मजबूर होगें। यहीं इतिहास में सम्राट अशोक ने किया था, और आज यही भारत में सामाजिक परिवर्तन की महानायिका ने किया है।
४) १०% सवर्ण आरक्षण पर बहन जी ने विरोध क्यों नहीं किया ?
जैसा कि सर्वविदित है कि एनडीए-२ के पहले भी छ बार आर्थिक आधार पर सवर्ण आरक्षण पारित हुआ था लेकिन संविधान के मूल ढाँचे के उलंघन व ५० फीसदी का बैरियर पार होने कारण न्यायपालिका द्वारा असंवैधानिक करार किया जा चुका है। इसलिए बहन जी इस बात को जानती थी कि ये सवर्ण आरक्षण कोर्ट ऑफ़ लॉ में स्टैण्ड नहीं करेगा। इस लिए समर्थन व विरोध का कोई मायने नहीं बनता है। ये पूरी तरह से एक पोलिटिकल स्टंट मात्र लगता है। और, यदि सुप्रीम कोर्ट संविधान के मूल ढांचे के उलंघन व ५० फीसदी का बैरियर पार होने के बावजूद १०% सवर्ण आरक्षण को संवैधानिक करार देती है तो इससे दो नतीजे सामने होगें। एक, सुप्रीम कोर्ट बहुजन के मामले में आरक्षण के खिलाफ फैसले देते है और जब बात सवर्ण आरक्षण की आयी तो उसी सुप्रीम कोर्ट इसे संवैधानिक करार कर दिया। मतलब कि खुलेआम जातिवाद। इससे जमीनी स्तर पर बहुजन मोबलाइज होगा और उच्च न्यायपालिका में समुचित आरक्षण की माँग के लिए सड़क पर होगा। दूसरा, ५० फीसदी का बैरियर पार होते ही ओबीसी के आरक्षण को २७ फीसदी से बढाकर ५४ फीसदी करने का रास्ता साफ़ हो जायेगा। परिणामस्वरूप जिसकी जितनी संख्या भारी, उतनी उसकी भागीदारी का रस्ता खुल जायेगा। इसलिए इस सन्दर्भ विशेष में बहन जी को कोसने के बजाय जमीनी स्तर पर देश की ८५ फीसदी आबादी को सड़क पर लाने की तयारी करों। आपके नेता होगें। हमारा मानना है कि नेतृत्व का काम है मार्गदर्शन करना, रास्ता दिखाना, भटकाव के समय, बिखराव की परिस्थिति में सामने आकर समाज को एकजुट करते हुए परिवर्तन के कारवां को आगे बढ़ाना। वह हमेशा, हर विषय पर, हर जगह सक्रिय नहीं हो सकता। नेतृत्व से इतर भी बहुजन समाज को अपनी जिम्मेदारियों को समझते हुए आगे आना होगा, तभी सामाजिक परिवर्तन हो सकता है.
५) बहन जी टिकट बेचती है, दलितों का वोट बेचती है ?
ऐसा कहना उचित नहीं लगता है। सतही तौर पर गौर करें तो लगता है कि बहन जी नॉट के लिए बहुजनों का वोट बेचती है। ऐसे में सबसे पहले बहुजन समाज को जानना होगा कि बसपा एक राष्ट्रीय पार्टी है। इसका कार्यालय इतना आलिशान है कि सदियों से गुलाम रही कौम इस पर फक्र करती है कि जिस कौम को आज़ादी से पहले इंसान भी नहीं समझा जाता था आज वही गुलाम कौम बाबा साहेब के दिखाए रास्ते पर चलकर देश की हुक्मरान कौम में शुमार हो चुकी है। ये सर्वविदित है कि पार्टी को चलने के लिए रूपये की जरूरत होती है। अन्य राष्ट्रीय पार्टियों की तरफ बसपा ने किसी उद्योग घराने से सम्बन्ध नहीं बनाये है। इसने पैसा या तो सीधे अपनी जनता से माँगा है या फिर बहन जी के चरणों में अपने वज़ूद को ढूढ़ने वालों से कुछ पैसा बहन जी को उसी नज़राने के तौर पर गिफ्ट किया करते है जैसे कि मुग़ल सल्तनत में बादशाह किया जाता था। ये नज़राना बहन जी बहुजन समाज की अपनी राजनीति व इसके आधारभूत ढांचे एवं प्रचार-प्रसार के लिए इस्तेमाल करती है। और, आज इसी राजनीतिक दल की बदौलत सकल बहुजन समाज की आवाज भारत के संसद में गूँजती है। जिनकों लगता है कि बहन जी ने अपने सिद्धांतों से समझौता किया है तो ऐसे लोगों को बसपा सरकार के दरमियान किये गए ऐतिहासिक कार्यों को देखना चाहिए, लखनऊ, नोएडा में बने बहुजन विरासत और विश्वविद्यालयों को देखना चाहिए, हर गली हर मोहल्ले में दलित-बहुजनों की हुंकार देखनी चाहिए, बहुजन समाज के आँखों पलने वाले सपनों चाहिए।।
६) बहन जी ने क्या दिया है ?
निजी स्वार्थों के चलते बसपा का विरोध करने वाले अक्सर बोल देते है कि बसपा ने क्या दिया है? ऐसे में सदियों से गुलाम रहें बहुजनों व अन्य लोगों से हम कहना चाहते है कि ४७ लोकसभा सीट वाली कांग्रेस भी श्योर नहीं है कि अगला प्रधानमंत्री उसी का होगा। ऐसे में शून्य सीट वाले बहुजन समाज पार्टी के बहुजन बहन जी को पीएम बनाने का सपना देख रहे है। बहुजन समाज को देश पर हुकूमत करने का रास्ते बाबा साहेब ने बनाया, हुकूमत की कुर्सी तक पहुँचाने का हुनर मान्यवर काशीराम साहेब ने सिखलाया। बाबा साहेब के बनाये रास्ते और मान्यवर साहेब के सिखलाये की बदौलत बहुजन समाज को भारत पर हुकूमत करने का सपना बहन जी ने देखना सिखाया है। बहुजन समाज को देश पर हुकूमत करने के सपने देखने की ताक़त बहन जी ने दिया है। याद रहें, सपने उसी के साकार होते है जिनमे सपने देखने की हिम्मत हो।
७) बसपा का क्या एजेण्डा है ?
लोकसभा चुनाव-२०१९ के एजेण्डे के सन्दर्भ में बात करते है। बसपा एक राष्ट्रीय पार्टी है। इसलिए ये सच है कि ऑफिसियल तौर पर राजनैतिक दलों को अपने एजेण्डे देश के सामने रखने चाहिए। ये बहन जी को भी करना चाहिए। यदि बहन जी ऐसा करती है तो देश को स्पष्ट सन्देश जायेगा। फ़िलहाल जहाँ तक बसपा जैसी पार्टी की बात है तो लोगों को ये स्पष्ट होना चाहिए कि बसपा एक राजनैतिक दाल नहीं बल्कि सामाजिक परिवर्तन के लिए राजनीति को माध्यम बनाकर भारत के लिए कार्य वाली एक संस्था है। बतौर सामाजिक परिवर्तन करके बुद्ध-अम्बेडकरी भारत के सृजन के लिए काम करने वाली ऐसे संस्था के बारे में हमारा निर्णय कहता है कि बसपा के संदर्भ में "एजेण्डा" शब्द को किसी एक कार्यकाल तक बांधना गलत होगा। क्योंकि सिर्फ सत्ता का सुख भोगने वाली राजनैतिक पार्टियों के लिए एजेण्डा सिर्फ और सिर्फ एक कार्यकाल तक सीमित हो सकता है लेकिन एक ऐसी पार्टी जिसका मूल मक़सद ही देश में अमूल-चूल सामजिक परिवर्तन है उसके संदर्भ में एजेण्डा का समय सिर्फ एक कार्यकाल विशेष तक सीमित करके देखना गलत होगा। ऐसे राजनैतिक दल के लिए उसका एजेण्डा उसके आन्दोलन का मूल होता है, और वो सतत अपने उस मूल को प्राप्त करने और अपने एजेण्डे को लागू करने के लिए संघर्षरत रहता है। इस सन्दर्भ में बसपा एक ऐसी ही राजनैतिक पार्टी जिसका मूल मक़सद ही भारत की सामाजिक संरचना को बदलना है, समता मूलक समाज की स्थापना करना है, भारत को उसके इतिहास से परिचित कराना है। 
यदि बसपा के कार्यकाल व बहन जी के प्रेस कॉन्फ्रेंस, संसद में दिए गए बयान, प्रेस विज्ञप्ति आदि पर गौर करें तो हम पाते है कि बसपा ने अपने कार्यकाल में संविधान सम्मत शासन, सामाजिक परिवर्तन के लिए जद्दोजहद, बहुजन संतों-गुरुओं-समाज सुधारकों, विद्वानों, महानायकों-महनायिकाओं व स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के गौरवगाथाओं और इतिहास की पुनर्स्थापना, ब्राह्मणवाद के खिलाफ खुली जंग, देश की शासन-सत्ता, संसाधन और निजी क्षेत्र के हर पायदान पर बहुजनों के समुचित स्वप्रतिनिधित्व व सक्रिय भागीदारी (आरक्षण) को तय करना, देश में कानून का राज़ स्थापित करना आदि क्या ये राष्ट्रहित व भारतकी जनता के लिए महत्वपूर्ण एजेण्डा नहीं है।
८) बहन जी को उच्चतम न्यायलय ने हाथी निर्माण में लगे गहन को वापस करने के लिए कहा है? बहन जी ने इस जनता पैसे को अभी तक वापस क्यों नहीं किया ?
यदि बहुजन संतों-गुरुओं-समाज सुधारकों, विद्वानों, महानायकों-महनायिकाओं व स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के गौरवगाथाओं, इतिहास व विरासत की पुनर्स्थापना जनता के पैसे की बर्बादी है तो ऐसे में सवाल ये उठता है कि 4200 करोड़ रूपये का कुम्भ बजट, 3000 करोड़ रूपये की पटेल मूर्ति, दिल्ली में सवर्ण नेताओं की समाधि, दीवाली में लाखों दीपों का वाराणसी व अयोध्या में जलाये जाना इत्यादि धन की बर्बादी क्यों नहीं है? ब्राह्मणी सरकारों के कार्यकाल में खर्च हुए धन का हिसाब आज तक क्यों नहीं माँगा गया? आज न्यायालय, सरकार और ब्राह्मणवादी मानसिकता से ग्रस्त लोग बहन जी को बहुजन स्मारकों के खर्च को वापस करने की बात कर रहे हैं लेकिन क्या कभी किसी अदालत ने ये पूछा कि बहुजन महापुरुषों से जुड़े स्मारकों का निर्माण तो दूर, क्या वजह है कि बहुजनों के गौरवशाली इतिहास, बहुजन क्रांतिकारियों की गौरवगाथाओं और बहुजनों के राष्ट्र-निर्माण में किये योगदान को स्कूल के पाठ्यक्रमों तक में शामिल नहीं किया गया? बहुजन समाज को उसके इतिहास से दूर क्यों रखा गया है? देश को, देश की अदालतों को ये जानकारी होनी चाहिए कि बहन जी के कार्यकाल में बने सभी बहुजन स्मारक कैबिनेट द्वारा प्रस्तावित और विधानसभा द्वारा पारित हैं। संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार यह सिर्फ और सिर्फ विधायिका का अधिकार है कि करारोपण या अन्य माध्यमों से राजस्व कैसे प्राप्त किया जाये और उसे कहाँ खर्च किया जाये। यह न्यायपालिका के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता कि विधायिका को वह यह निर्देश दे कि उसे पैसे कहाँ और कैसे खर्च करने हैं। क्या सुप्रीम कोर्ट के माननीय न्यायाधीश संविधान के अनुच्छेद 50 से परिचित नहीं हैं जो सरकार और न्यायपालिका कि हदों का निर्धारण करता है? यदि हैं तो फिर उनके इस फैसले का क्या अर्थ निकाला जाना चाहिए।
९) क्या हम बहन जी की आलोचना भी नहीं कर सकते है ?
बहन जी हो या कोई अन्य आलोचना या समीक्षा के दायरे में सब आते है। आलोचना और समीक्षा इंसान या संगठन को उसके मूल मकसद से बांधे रखती है। ऐसे में बहुजन आन्दोलन के विभिन्न पहलुओं के आंतरिक समीक्षा की, तो होती रहनी चाहिए लेकिन ये समीक्षा और आलोचना सृजन के लिए हो, बहुजन आन्दोलन को मजबूत करने के लिए हो, बहन जी या बहुजन आन्दोलन को सिर्फ गाली देने मात्र के लिए नहीं।
१०) बहन जी मुद्दों को लेकर सड़क पर क्यों नहीं उतर जाती है ?
ये सच है कि यदि बहन जी एक आवाज दे तो उत्तर प्रदेश व केंद्र सरकार उनकों रोक नहीं पायेगी। इसका ट्रेलर भारत बंद (०२ अप्रैल २०१८) के दरमियान देश देख चुका है। लेकिन हमारा मानना है कि बहन जी बुद्ध और अम्बेडकर की वारिस है। वो अच्छी तरह से जानती और समझती है कि क्या बहुजन हित में है, क्या नहीं ? बाबा साहेब ने ही कहा है जब तक हमारे पास लोकतान्त्रिक और संवैधानिक रास्ते है तब ऐसा कोई कदम नहीं उठाया जाना चाहिए जिससे कि समाज के लोगों को कोई नुकसान होने की सम्भावना भी हो। बहन जी अपने बहुजन समाज के माली हालत से अच्छी तरह वाकिफ है। बहन जी बेहतर तरीके से जानती है कि एक तरफ हमारे नव युवक स्कूलों और कालेजों की तरफ उन्मुख है, तो दूसरी तरफ केंद्र और सूबे में ब्राह्मणी सरकार है। यदि हमारे लोग सड़क पर आते है तो उन्हें गलत तरीके से कोर्ट केसेस में उलझा दिया जायेगा। इससे समाज के लोग परेशान होगें। अपने लोगों को मुशीबत में डाल कर कौन सा हल निकलने वाला है। हमारे पास अभी भी लोकतान्त्रिक रास्ते है, चुनाव का रास्ता है। हमें पूरा विश्वास है कि यदि बहुजन समाज अपने हितों और हकों को समझ जाय तो संवैधानिक व लोकतान्त्रिक तरीके से ब्राह्मणी सत्ता को नेस्तनाबूद किया जा सकता है, वो भी हमेशा के लिए।
रजनीकान्त इन्द्रा, इतिहास छात्र, इग्नू नई दिल्ली

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