Tuesday, February 19, 2019

देवदासी प्रथा: धर्म की आड़ में अधर्म

हिन्दू धर्म में धर्म और आस्था के नाम पर हज़ारों वर्षों से लोगों का तरह-तरह से शोषण होता रहा है। इस धर्म में ऐसी अनेक प्रथायें अस्तित्व में रही हैं और आज भी कायम हैं जो न सिर्फ बर्बर, अपमानजनक और शोषणकारी बल्कि अमानवीय भी हैं। ऐसी ही एक बेहद घृणित और अमानवीय प्रथा को हम देवदासी प्रथा के नाम से जानते हैं।

देवदासी प्रथा हिन्दू धर्म की अत्यंत प्राचीन और सबसे घिनौनी प्रथा है। आज भी यह समस्या खासकर दक्षिण के राज्यों में बनी हुई है। धर्म और आस्था के नाम पर महिलाओं का शोषण हो रहा हैं। जिन छोटी छोटी मासूम बच्चियों के खेलने और पढ़ने के दिन होते हैं उन बच्चियों को देवदासी बनाकर धर्म और आस्था के नाम पर दान कर देते हैं। और फिर उनका पूरा जीवन धर्म, आस्था और शारीरिक शोषण के बीच जूझता रहता है। भारत में देवदासी प्रथा के चलते आज भी धर्म के नाम पर मंदिरों में महिलाओं का दैहिक शोषण हो रहा है। यहाँ एक बात विशेष रूप से ध्यान देने योग्य है कि इस प्रथा में सवर्ण महिलाएँ नहीं हैं बल्कि सिर्फ अनुसूचित जाति, आदिवासी और ओबीसी जाति की महिलाएँ होती हैं।

असल में यह भी मनुवादी सनातनी वैदिक ब्राह्मणों की कुटिल चाल है जिसके अंतर्गत वे बहुजन मूलनिवासी समाज की महिलाओं को गुलाम बनाने के लिए धर्म का सहारा लेते हैं। देवदासी प्रथा के तहत छोटी-छोटी मासूम बच्चियों को सजाया जाता है और उनका विवाह काल्पनिक भगवान की मूर्ति से कराया जाता है। विवाह संपन्न हो जाने के बाद इन बच्चियों के कपड़ों को लड़के उतारकर उन्हें निर्वस्त्र करते हैं जिसके बाद मंदिर का पुजारी या महंत उस बच्ची से शारीरिक संबंध बनाता है। ये सभी लड़कियां जो देवदासी होती हैं वो सब उस उम्र तक मनुवादी सनातनी वैदिक ब्राह्मण लोगों की हवस का शिकार बनती हैं जब तक कि उनका शरीर ढल नहीं जाता। तीस पार होने तक इनको देह व्यापार में धकेल दिया जाता है और इस तरह यह देवदासियां मनुवादी सनातनी वैदिक ब्राह्मणों की आय का जरिया बनती हैं।

भारत में अभी भी ऐसे तमाम स्थान हैं जहाँ देवदासी प्रथा आज तक अस्तित्व में है। केरल, आन्ध्रप्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र, कर्नाटक के कोल्हापुर, शोलापुर, सांगली,उस्मानाबाद, बेलगाम, बीजापुर, गुलबर्ग एवं झारखंड, तमिलनाडु, ओडिशा, उड़ीसा आदि में आज भी हम इस घृणित प्रथा का अमानवीय रूप देख सकते हैं। देवदासी प्रथा के पुरे फलसफे को समझने की कोशिश करें तो यह बात शीशे की तरह साफ़ हो जाती है कि यह धर्म के नाम पर सनातनी मनुवादी ब्राह्मणों द्वारा चलाया जा रहा महिलाओं के दैहिक शोषण का धंधा है जिसका शिकार बहुजन मूलनिवासी समाज की महिलाएँ होती हैं।


यह हैरान करने वाली स्थिति है कि आज जबकि पूरा देश मंदिर में महिलाओं के प्रवेश की बात या मीटू अभियान की चर्चा कर रहा है किसी को भी हिन्दू धर्म की इस घृणित प्रथा के नाम पर यौन दासी बना दी गयी बेबस महिलाओं की चीख सुनाई नहीं सुन दे रही है। कहने को संविधान, कानून, अदालतें, मीडिया सभी हैं लेकिन इन देवदासियों को न्याय मिलना तो दूर इनकी व्यथा तक लोगों के सामने नहीं आती है। इसकी सबसे बड़ी वजह सत्ता में बैठे लोगों और शोषण में लिप्त लोगों के बीच का सम्बन्ध है जो समान सामाजिक वर्ग से आने के साथ साथ वैचारिक रूप से भी ब्राह्मणवादी व्यवस्था के समर्थक और पोषक हैं। यह स्थिति तब तक नहीं बदल सकती जब तक बहुजन समाज इस शोषणकारी व्यवस्था के मूल अर्थात हिन्दू धर्म की जड़ मान्यताओं पर प्रहार करने के लिए कृतसंकल्प नहीं होता। इसके लिए उसे बुद्ध और आंबेडकर की वैचारिकी को अपनाना होगा जो न सिर्फ समता, स्वतंत्रता व बंधुत्व के सिद्धांतों पर आधारित है अपितु न्यायपूर्ण समाज के निर्माण का सबसे महत्वपूर्ण और प्रभावी दर्शन भी है।
दीपशिखा इन्द्रा, बी.टेक, एम.एस.डव्लू  
(Published on Bahishkrit Bharat web portal on Feb. 19, 2019)

No comments:

Post a Comment