Monday, February 25, 2019

संविधान सम्मत शासन और सामाजिक परिवर्तन के लिए जद्दोजहद ही है बसपा का एजेंडा : रजनीकांत इन्द्रा

पिछले काफी समय से बसपा प्रमुख मायावती पर पार्टी की मूल विचारधारा से समझौता करते हुए बहुजन समाज के हितों को ताक पर रखकर काम करने, पैसे के लिए टिकट बेचने, पार्क तथा स्मृति स्थल के नाम पर सरकारी पैसे का दुरुपयोग करने, पार्टी को अपनी इच्छानुसार बिना किसी एजेंडे के संचालित करने आदि जैसे आरोप लगते रहे हैं। हाल ही में सवर्णों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण का समर्थन करने के बाद अब तक मायावती का समर्थन करते आये दलितों के अंदर भी उनसे कुछ नाराज हैं। ऐसे में मायावती के नेतृत्व में बसपा की नीतियों, कार्यप्रणाली, उसके अब तक के प्रदर्शन तथा भावी संभावनाओं पर बहिष्कृत भारत ने एलीफ के संस्थापक और बहुजन समाज पार्टी को करीब से जानने वाले श्री रजनीकांत इन्द्रा से लम्बी बातचीत की जिसका सम्पादित अंश यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है। 
बहिष्कृत भारत : इन्द्रा जी सबसे पहले तो आपका हम स्वागत करते हैं और इस साक्षात्कार के लिए समय निकालने के लिए आपके प्रति आभार प्रकट करते हैं.
रजनीकांत इन्द्रा : जी धन्यवाद. मेरी तरफ से आपको और आपके सभी पाठकों को जय भीम, नमो बुद्धाय।
बहिष्कृत भारत : इन्द्रा जी पिछले काफी समय से बसपा प्रमुख पर पार्टी की नीतियों, कार्यप्रणाली तथा रणनीति को लेकर तमाम तरह के आरोप लगते रहे हैं. इस बार तो ऐसा लगता है कि परंपरागत तौर पर उनके साथ खड़े लोगों में भी कुछ के स्वर बदले हुए हैं. इसके बारे में आपकी प्रारंभिक टिप्पणी क्या है?
रजनीकांत इन्द्रा : बहन जी को गलत कहने वाले दो तरह के लोग हैं। एक, जो बहन जी को और उनके काम करने के तौर तरीकों को बिलकुल भी नहीं जानते और दूसरे जो इससे बखूबी परिचित हैं। पहले तरह के लोग अज्ञानतावश जबकि दूसरे तरह के लोग भयवश ऐसा करते हैं। निजी स्वार्थ के चलते भी बहुजन समाज के ही कुछ लोग हैं जो ना सिर्फ बहन जी पर आरोप लगाते हैं बल्कि बहन जी को दोषी की तरह देखते हैं, और दूसरे बहुजन साथी को गुमराह करने का जतन करते हैं। ऐसे लोगों के कुछ सवाल हैं जो खुद इनके नहीं है बल्कि ब्राह्मणों व सवर्णों द्वारा इनको अपने ही समाज की इमारत में सेंध लगाने के लिए दिये गये हैं।
बहिष्कृत भारत : आप कह रहे हैं कि बहुजन समाज के लोग ब्राह्मणों या सवर्ण समाज के बहकावे में आकर बसपा प्रमुख पर आरोप लगाते हैं लेकिन मायावती तो खुद ब्राह्मणों और सवर्णों को टिकट देती हैं. अगर आपका कहना सही है तो मायावती सवर्णों को टिकट क्यों देती हैं?
रजनीकांत इन्द्रा : बाबा साहेब कहते हैं कि राजनैतिक सत्ता ही वो मास्टर चाभी है जिससे बहुजन समाज अपने लिए अवसरों के सारे दरवाजे खोल सकता है। इन दरवाजों को खोलने के लिए सत्ता चाहिए। सत्ता के लोकसभा व विधानसभा में सीट चाहिए। राजनीति पर सामाजिक ढांचे का गहरा प्रभाव है। ब्राह्मण-सवर्ण का इतना प्रभाव है कि आज भी पिछड़ा वर्ग उनके चंगुल में पूरी आजाद नहीं हो पाया है। सामान्यतः यही होता है कि पिछड़ा वर्ग अपने वर्ग के उम्मीदवार को वोट ना करे, दलित समाज दलित उम्मीदवार को वोट ना करे, ब्राह्मण-सवर्ण तो पिछड़े-दलित दोनों को वोट नहीं करेगा लेकिन अपनी सामाजिक-सांस्कृतिक अस्मिता व प्रभाव क्षेत्र के चलते ब्राह्मण-सवर्ण अपने ब्राह्मण-सवर्ण के वोट के साथ-साथ दलित व पिछड़े वर्ग का वोट पाने में सफल हो जाता है। पिछड़े वर्ग की गुलामी के चलते ही बहन जी ब्राह्मण-सवर्ण को टिकट देती हैं ताकि कम से कम पिछड़ा वर्ग ब्राह्मणों-सवर्णों के प्रभाव के चलते ही बसपा को वोट कर दे। 2007 में इसी तरह की सोशल इंजिनीरिंग हुई थी और बसपा सत्ता में आयी थी।
बहिष्कृत भारत: क्या सोशल इंजीनियरिंग को ही ध्यान में रखकर बहन जी ने हाथी को गणेश बना दिया है ?
रजनीकांत इन्द्रा : जहाँ तक रही बात हाथी को गणेश करने की, तो ये बहन जी ने कभी नहीं कहा है कि हाथी नहीं गणेश है, और सैद्धांतिक तौर पर ना ही कभी स्वीकारा है। हाँ, सोशल इंजीनियरिंग के दरमियान ब्राह्मणों-सवर्णों व खासकर आज के नव ब्राह्मण पिछड़े समाज को बसपा से जोड़ने के लिए उनके लोगों ने इस नारे को गढ़ा है और प्रचारित किया है, लेकिन यह कभी भी बसपा के सिद्धांत में नहीं रहा है। बहन जी के शासन काल में हुए कार्यों पर नजर दौड़ाये तो आप पायेगें कि हर निर्माण पर आपको बहुजन विरासत की छाप नजर आएगी, बुद्ध-रैदास-कबीर-फुले-अम्बेडकर-मान्यवर काशीराम साहेब नज़र आएंगे। ऐसे में कोई कैसे कह सकता है कि बहन जी ने सिद्धांतों से समझौता कर लिया है।
बहिष्कृत भारत: क्या आपको नहीं लगता कि बसपा सुप्रीमो मायावती ने पार्कों और स्मारकों की बजाय सरकारी पैसे से विश्वविद्यालय और अस्पताल बनवाये होते तो अधिक बेहतर होता? हाथी और पार्क बनवाने किये गए व्यय को आप फिजूलखर्जी मानेंगे या नहीं?
रजनीकांत इन्द्रा : बहन जी के कार्यकाल में हुए निर्माण पर गौर कीजिए। बहन जी ने गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय, महामाया प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, मेडिकल कॉलेज, इंजिनीरिंग कॉलेज, पॉलिटेक्निक कॉलेज, इण्टर कॉलेज आदि बनवाये हैं। रही बात बहुजन नायकों के नाम पर बने पार्कों की तो भारत के इतिहास से मिटा दिए गए बहुजन संतों-गुरुओं-समाज सुधारकों, विद्वानों, महानायकों-महनायिकाओं व स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को बहन जी ने पहली बार इस देश में वास्तविक सम्मान और स्थान देने का कार्य किया है। उन्होंने बहुजन इतिहास को पत्थरों पर उकेरा है। हमारी नजर में बहुजन पार्क भारत के सबसे बेहतरीन विश्वविद्यालों से भी बेहतरीन हैं क्योंकि भारत के विश्वविद्यालय पढ़े-लिखें लोगों को पढ़ाते हैं लेकिन बहुजन पार्क उन लोगों को भी पढ़ाते हैं, उनको उनके अपने बहुजन संतों-गुरुओं-समाज सुधारकों, विद्वानों, महानायकों-महनायिकाओं व स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों से साक्षात्कार करवाते हैं, उनको उनका इतिहास बतलाते हैं, उनको उनकी अपनी जीवन-शैली (बुद्धिज़्म) से मिलवाते हैं, उनको अपनी मूल विरासत से परिचय करवाते हैं, जिन्होंने कभी स्कूल का मुँह तक नहीं देखा है। हकीकत में बहन जी ने ब्राह्मणवाद की छाती पर ताण्डव करते हुए देश की 85 प्रतिशत आबादी के इतिहास, गौरवगाथा, संघर्ष और वज़ूद को भारत के ही नहीं बल्कि दुनियां के फलक पर स्थापित किया है। ऐसे में तमाम बहुजन स्मारक विरोधियों के लिए यह एक सन्देश भी हैं कि जब-जब बहुजन संतों-गुरुओं-समाज सुधारकों, विद्वानों, महानायकों-महनायिकाओं व स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की गौरवगाथाओं और इतिहास को इतिहास के पन्नों से मिटाने की कोशिश की जाएगी तब-तब बहुजन समाज अपने संतों-गुरुओं-समाज सुधारकों, विद्वानों, महानायकों-महनायिकाओं व स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की गौरवगाथाओं और इतिहास को संगमरमर के कठोर निर्दयी पत्थरों पर दर्ज़ करने को मजबूर होगा। यहीं इतिहास में सम्राट अशोक ने किया था, और आज यही भारत में सामाजिक परिवर्तन की महानायिका ने किया है। इसके लिए आप बहन जी को कसूरवार नहीं ठहरा सकते। साथ ही एक और बात मैं कहना चाहूंगा कि बहन जी द्वारा बनवाये गए बहुजन स्मारकों पर हुए खर्च की बात तो सभी करते हैं लेकिन इन स्मारकों से सरकार को हर साल जो करोड़ों की आय होती हैं उसकी बात कोई नहीं करता. यह स्मारक और पार्क आज की तारीख में सरकार की आय का एक बहुत बड़ा स्रोत बन चुके हैं. इसके लिए तो कोई बहन जी को श्रेय नहीं देता।
बहिष्कृत भारत: बसपा का एजेंडा क्या हैं?
रजनीकांत इन्द्रा : जहाँ तक बसपा जैसी पार्टी की बात है तो लोगों को ये स्पष्ट होना चाहिए कि बसपा एक राजनैतिक दल मात्र नहीं बल्कि सामाजिक परिवर्तन के लिए राजनीति को माध्यम बनाकर नए भारत के निर्माण की संकल्पना की साथ कार्य करने वाली एक संस्था है। इसका एजेंडा अत्यंत दीर्घकालिक और व्यापक हैं। बसपा संविधान सम्मत शासन और सामाजिक परिवर्तन के उद्देश्यों के साथ राजनीति में है। यह बिना किसी भेदभाव के समाज के सभी वर्गों के लिए सत्ता और संसाधनों की न्यायोचित भागीदारी सुनिचित करने के एजेंडे के साथ राजनीति में है।
बहिष्कृत भारत: बसपा यदि बिना किसी भेदभाव के समाज के सभी वर्गों के लिए सत्ता और संसाधनों की न्यायोचित भागीदारी सुनिचित करने के एजेंडे के साथ राजनीति में है तो इसने सवर्णों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण का विरोध क्यों नहीं किया? सवर्ण तो पहले से ही आबादी के अनुपात में काफी अधिक स्थानों पर काबिज हैं। 
रजनीकांत इन्द्रा : जैसा कि सर्वविदित है कि एनडीए-2 के पहले भी छह बार आर्थिक आधार पर सवर्ण आरक्षण का विधेयक पारित हुआ था लेकिन संविधान के मूल ढाँचे के उल्लंघन व आरक्षण को लेकर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा लगाए गए 50 फीसदी का बैरियर पार होने कारण न्यायपालिका द्वारा असंवैधानिक करार दिया जा चुका है।  इसलिए बहन जी इस बात को जानती थी कि ये सवर्ण आरक्षण कोर्ट ऑफ़ लॉ में स्टैण्ड नहीं करेगा। इसलिए समर्थन व विरोध का कोई मायने नहीं बनता है। यह पूरी तरह से एक पोलिटिकल स्टंट मात्र लगता है। और, यदि सुप्रीम कोर्ट द्वारा संविधान के मूल ढांचे के उल्लंघन व 50 फीसदी का बैरियर पार होने के बावजूद 10 प्रतिशत सवर्ण आरक्षण को संवैधानिक करार दिया जाता है तो इससे दो नतीजे सामने होगें। एक, सुप्रीम कोर्ट बहुजन समाज के मामले में आरक्षण के खिलाफ फैसले देता है और जब बात सवर्ण आरक्षण की आयी तो उसी सुप्रीम कोर्ट ने इसे संवैधानिक करार कर दिया, मतलब कि खुलेआम जातिवाद। इससे जमीनी स्तर पर बहुजन मोबलाइज होगा और उच्च न्यायपालिका में समुचित आरक्षण की माँग के लिए सड़क पर होगा. दूसरा, 50 फीसदी का बैरियर पार होते ही ओबीसी के आरक्षण को 27 फीसदी से बढाकर 54 फीसदी करने का रास्ता साफ़ हो जायेगा। परिणामस्वरूप जिसकी जितनी संख्या भारी, उतनी उसकी भागीदारी का रास्ता खुल जायेगा। इसलिए इस सन्दर्भ विशेष में बहन जी को दोष देने की बजाय जमीनी स्तर पर देश की 85 फीसदी आबादी को सड़क पर लाने की तैयारी होनी चाहिए। इसके लिए समाज को भी अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी. हमारा मानना है कि नेतृत्व का काम है मार्गदर्शन करना, रास्ता दिखाना, भटकाव के समय, बिखराव की परिस्थिति में सामने आकर समाज को एकजुट करते हुए परिवर्तन के कारवां को आगे बढ़ाना. वह हमेशा, हर विषय पर, हर जगह सक्रिय नहीं हो सकता। नेतृत्व से इतर भी बहुजन समाज को अपनी जिम्मेदारियों को समझते हुए आगे आना होगा, तभी समाज में परिवर्तन हो सकता है।
बहिष्कृत भारत: बहन जी पर टिकट बेचने के आरोप लगते रहे हैं. आप इस पर क्या कहना चाहेंगे?
रजनीकांत इन्द्रा : सतही तौर पर देखें तो लगता है कि बहन जी नोट के लिए बहुजनों का वोट बेचती हैं या पैसे लेकर टिकट देती हैं लेकिन जब हम इसके जड़ में जाकर पड़ताल करते हैं तो यह बात सही नहीं लगती। ऐसे में सबसे पहले बहुजन समाज को जानना होगा कि बसपा एक राष्ट्रीय पार्टी है। इसका कार्यालय इतना आलिशान है कि सदियों से गुलाम रही कौम इस पर गर्व करती है कि जिस कौम को आज़ादी से पहले इंसान भी नहीं समझा जाता था आज वही गुलाम कौम बाबा साहेब के दिखाए रास्ते पर चलकर देश की हुक्मरान कौम में शुमार हो चुकी है। यह सर्वविदित है कि पार्टी को चलने के लिए रूपये की जरूरत होती है। अन्य राष्ट्रीय पार्टियों की तरह बसपा ने किसी उद्योग घराने से सम्बन्ध नहीं बनाये है। इसने पैसा या तो सीधे अपने कार्यकर्ताओं और समर्थकों से माँगा है या फिर बहन जी के काम से प्रभावित होकर लोग बसपा के मिशन को आगे बढ़ाने के लिए कुछ उपहार दे देते हैं। जिसे बहन जी वापस बहुजन समाज की अपनी राजनीति व इसके आधारभूत ढांचे एवं प्रचार-प्रसार के लिए इस्तेमाल करती हैं।  और, आज इसी राजनीतिक दल की बदौलत सकल बहुजन समाज की आवाज भारत के संसद में गूँजती है।
बहिष्कृत भारत: देश के सबसे बड़े सूबे की चार बार मुख्यमंत्री रह चुकी मायावती ने बहुजन समाज को सबसे महत्वपूर्ण कौन सी चीज दी है?
रजनीकांत इन्द्रा : इसका जवाब है – देश का शासक बनने का सपना. ऐसे समय में जबकि 47 लोकसभा सीट वाली कांग्रेस भी श्योर नहीं है कि अगला प्रधानमंत्री उसी का होगा, शून्य सीट वाली बहुजन समाज पार्टी के बहुजन बहन जी को पीएम बनाने का सपना देख रहे हैं। यह बहुत बड़ी बात है। बहुजन समाज के देश पर हुकूमत करने का रास्ता बाबा साहेब ने बनाया, हुकूमत की कुर्सी तक पहुँचाने का हुनर मान्यवर काशीराम साहेब ने सिखलाया, बाबा साहेब के बनाये रास्ते और मान्यवर साहेब के सिखलाये की बदौलत बहुजन समाज को भारत पर हुकूमत करने का सपना बहन जी ने देखना सिखाया है। याद रहें, सपने उसी के साकार होते हैं जिनमे सपने देखने की हिम्मत हो।
बहिष्कृत भारत: अन्य राजनेताओं की तरह मायावती को कभी किसी मुद्दे को लेकर सड़क पर उतरते नहीं देखा गया है. इसके पीछे क्या कारण है?
रजनीकांत इन्द्रा : मेरा मानना है कि बहन जी बुद्ध और अम्बेडकर की वारिस हैं. वो अच्छी तरह से जानती और समझती है कि क्या बहुजन हित में है, क्या नहीं ? बाबा साहेब ने ही कहा है जब तक हमारे पास लोकतान्त्रिक और संवैधानिक रास्ते हैं तब ऐसा कोई कदम नहीं उठाया जाना चाहिए जिससे कि समाज के लोगों को कोई नुकसान होने की सम्भावना भी हो। बहन जी अपने बहुजन समाज की माली हालत से अच्छी तरह वाकिफ हैं। बहन जी बेहतर तरीके से जानती हैं कि एक तरफ हमारे नवयुवक स्कूलों और कालेजों की तरफ उन्मुख हैं, तो दूसरी तरफ केंद्र और सूबे में बहुजन विरोधी सरकार है। ऐसे में यदि हमारे लोग सड़क पर आते हैं तो उन्हें गलत तरीके से कोर्ट केसेस में उलझा दिया जायेगा। इससे समाज के लोग परेशान होंगे। अपने लोगों को मुसीबत में डाल कर कौन सा हल निकलने वाला है? हमारे पास अभी भी लोकतान्त्रिक रास्ते हैं, चुनाव का रास्ता है। हमें पूरा विश्वास है कि यदि बहुजन समाज अपने हितों और हकों को समझ जाय तो संवैधानिक व लोकतान्त्रिक तरीके से ही बहुजन विरोधी सरकार और व्यवस्था को नेस्तनाबूद किया जा सकता है, वो भी हमेशा के लिए। 
बहिष्कृत भारत: आपने बहिष्कृत भारत को इतना समय दिया और इतनी बेबाकी से बसपा से जुड़े विभिन्न विषयों पर अपनी राय रखी इसके लिए धन्यवाद। 
रजनीकांत इन्द्रा : धन्यवाद. जय भीम, नमो बुद्धाय। 
(फरवरी २५, २०१९ बहिष्कृत भारत में छपा साक्षात्कार)

No comments:

Post a Comment