Wednesday, February 27, 2019

युद्ध नहीं, संविधान सम्मत सत्ता चाहिए

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राफेल-रक्षा, नोटबादळी, किसान विकासपत्र, जनधन योजना, व्यापम जैसे घोटालों से पूरी तरह जकड गए है। जनता में रोष है। ऐसे में सत्ता उनकी आँखों से ओझल नज़र आ रही है। ऐसे सरकार ने मास्टर स्ट्रोक लगाया है। धर्म- अन्धविश्वास-ढोंग-पांखण्ड के शिकंजे में कैद समाज बहुत डरपोक और भावुक होता है। ऐसे में सरकार ने देशभक्ति का मास्टर स्ट्रोक खेला है। इन सारे मुद्दों के मद्देनज़र पुलवामा अटैक की टाइमिंग ने बहुत से प्रश्न खड़े कर दिए है।

पुलवामा अटैक के सन्दर्भ में लोगों ने बहुत से सवाल सरकार के सामने रख दिए है। बामसेफ के राष्ट्रिय अध्यक्ष माननीय वमान मेश्राम और देश की जनता सरकार से जानना चाहती है कि जब सरकार को इस अटैक से सम्बंधित जानकारी एक हफ्ते मिल इनकों मिल गयी थी तो इन्होने ने उसको रोकने का प्रयास क्यों नहीं किया? जवानों ने हवाई सेवा मांगी तो उनकों हवाई सेवा मुहैया क्यों नहीं कराइ गयी? ३५० किलों बिस्फोटक देश में कैसे आया, इसकी सप्लाई किसने की, सरकार उन लोगों को पकड़ने में नाकाम क्यों रहीं है। जब हुकूमत को इस हमले की जानकारी थी तो उन्होंने इसको रोकने का प्रयास क्यों नहीं किया? वमान मेश्राम जी कहते है कि इन सभी सैनिकों को राजनीति के चलते मरवाया गया है। उन्होंने बताया कि हताहत होने वाले सैनिकों में ज्यादातर सभी बहुजन समाज के ही थे।

यदि हम पुलवामा अटैक के संदर्भ में पर्दे के पीछे गौर करने पर कुछ नए सवाल खड़े हो जाते है कि पुलवामा अटैक से सबसे ज्यादा फायदा किसको मिलेगा? सैनिकों की तश्वीरों से सजे होर्डिंग, बैनर, पोस्टर कौन लगवा रहा है, क्यों लगवा रहा है? सैनिकों की लाशों को कन्धा देकर सैनिकों की लाशों की नुमाइश कौन और क्यों कर रहा है? देश की जनता को सोचना चाहिए कि इधर अभी सैनिकों को दफ़न भी नहीं किया जा सका उधर उनकी लाशों को मुद्दा बनाकर चुनावी रैलियाँ कौन कर रहा था? देश पुलवामा में शहीद होने वालों के गम डूबा था तो पूरे देश में रैलियां और गठबंधन कौन कर रहा था, किस दल के थे ये लोग?पोखरण-२ को देशभक्ति का लिबास पहनकर खुद की पीठ ठोककर सत्ता की चाहत कौन रखता था, वह किस राजनैतिक दल से था? कारगिल के वार में सबसे पहले सैनिकों की लाशों का टीवी पर पहली बार नुमाइश की गयी, और इसी नुमाइश के पीछे सैनिकों के ताबूत तक बेंच लिए गए। इस कारगिल युद्द से सबसे ज्यादा फायदा किस राजनैतिक दाल को हुआ? ठीक आज बीस साल बाद पुलवामा अटैक के बहाने सत्ता हथियाने के षड्यंत्र वाले इतिहास को क्या दुहराया नहीं जा रहा है?

यदि पूरे पृष्ठिभूमि पर गौर किया जाय तो स्पष्ट है कि भारत बहुसंख्यक हिन्दू जनता के मन में एक फिरके विशेष की नफरत, उनकी देशभक्ति से भी ज्यादा प्रबल है। ये वो जनता है जो मुसलमान मतलब पाकिस्तान और पाकिस्तान मतलब मुसलमान समझती है। ये वो जनता है जो आतंकवादी मतलब मुसलमान और मुसलमान मतलब आतंकवादी समझती है। ये वो जनता है तो अपने तथाकथित हिन्दू समाज के ही दलित-आदिवासी और पिछड़े समाज से बेइंतहां नफ़रत करती है। ये नफ़रत इस कदर हावी है कि ये उनकों उनके संवैधानिक हक़ तक को नहीं देना चाहते है। ये लोग अपने हिन्दू समाज के ही लगभग ८५-९०% आबादी को गुलाम समझते है। ऐसे नफ़रत दौर में देशभक्ति की आग को भड़काकर सत्ता की रोटी सेकना बहुत ही आसान है। कारगिल वॉर के बाद की सत्ता इसी का प्रमाण है। यदि ब्राह्मणी सरकार के इस कार्यकाल पर गौर तो हम पाते है कि ये देशभक्ति का उन्माद ब्राह्मणी लोगों द्वारा  देश के बहुसंख्यक आबादी के प्रति अपने मन की नफ़रत को देशभक्ति का लिबास पहनाकर अपने देश की बहुसंख्यक आबादी के मुद्दों और हकों को दफ़न करने के लिए एक षड्यंत्र तौर पर अपनाया गया है।

डॉ राहत इंदौरी साहब कहते है कि "सरहद पर तनाव है, लगता है चुनाव है।" राहत साहेब का ये सेर आज के हालत बयां करता है। पुलवामा अटैक और तेरहवें दिन भारत की कार्यवाही बयां करती है कि इन सबका चुनावों से काफी गहरा रिश्ता है। अन्तर्राष्ट्रीय मामलों की विशेषज्ञ प्रो क्रिस्टीन फेयर कहती है कि "मैं बार-बार ये कहती रही हूं कि इन हमलों का संबंध भारत में होने वाले आम चुनावों से भी है! भारत में हुए किसी भी हमले की व्याख्या चुनाव नहीं कर सकते हैं क्योंकि भारत में हमले होते रहे हैं! लेकिन जिस तरह का हमला पुलवामा में हुआ है उससे पता चलता है कि हमले को काफ़ी सोच-समझकर अंजाम दिया गया है!" आगे प्रो. फेयर कहती है कि "मैं बार-बार ज़ोर देकर ये कहती रही हूं कि हमले का समय और तरीक़ा भारतीय चुनावों में मोदी की जीत सुनिश्चित करने के लिए हुआ दर्शाता है! इससे पहले भारतीय चुनावों में मोदी की जीत सुनिश्चित नहीं थी लेकिन अब जो हालात हैं उनमें मोदी का जीतना लगभग तय है और यही पाकिस्तानी ख़ुफ़िया तंत्र चाहता है!"

भारत के लोगों के सन्दर्भ में प्रो. क्रिस्टीना फेयर कहती है कि "भारत के लोग भले ये ना सुनना चाहें लेकिन सच ये है कि भारत के चुनावों में मोदी की जीत से सबसे ज़्यादा फ़ायदा पाकिस्तान के डीप स्टेट को ही होता है! इसकी वजह ये है कि पाकिस्तान में इस समय कई तरह के घरेलू दबाव हैं! सबसे बड़ी समस्या पश्तून आंदोलन की है जो पाकिस्तान की अखंडता के लिए बड़ा ख़तरा है! बलूचिस्तान में चल रहा संघर्ष भी पाकिस्तान के लिए ख़तरा है! एक मज़बूत भारत की ओर से ख़तरा पाकिस्तान को आंतरिक तौर पर एकजुट करता है!"

इसका मतलब साफ़ है कि इस तरह के हमले या फिर युद्ध आदि से भारत में सिर्फ और सिर्फ ब्राह्मणी ताक़तों, बीजेपी और नरेंद्र दामोदर मोदी को हो सकता है। यदि ऐसा हुआ तो भारत के बहुजन समाज के ऊपर होने वाले ब्राह्मणी अत्याचारों में घोर वृद्धि होगी। देश में साम्प्रदायिकता को बल मिलेगा। अल्पसंखयक में असुरक्षा की भावना लगातार बढ़ती जाएगी। दलितों पर होने वाले अत्याचारों में अप्रत्याशित वृद्धि होगी। संविधान की मनुस्मृति आधारित व्याख्या कर देश को बाबा साहेब रचित संविधान के बजाय मनुस्मृति से ही चलाया जायेगा। चुनाव आयोग, न्यायपालिका, रक्षा, सीबीआई आदि सभी संवैधानिक और अन्य सभी सरकारी संस्थाएं अपना वज़ूद खो देगीं। बहुजन आरक्षण पूरी तरफ से निष्प्रभावी कर दिया जायेगा। दलितों और आदिवासियों को ब्राह्मणी अत्याचारों से बचने वाले एससी-एसटी (प्रिवेंशन ऑफ़ एट्रोसिटी) एक्ट को ख़त्म कर दिया जायेगा। एयरपोर्ट, लालकिला आदि की तरह ही देश के सारे सरकारी उपक्रम उद्योगपतियों को बेच दिए जायेगें। लगभग सरकारी नौकरियां ख़त्म कर दी जायेगीं। बहुजन समाज भविष्य अंधकार सकंट में खड़ा है। इसलिए हमें युद्ध नहीं, बुद्ध चाहिए, सुख-शान्ति-समृद्धि और अपने सभी संवैधानिक व लोकतान्त्रिक अधिकार चाहिए, सम्यक लोकतंत्र और बाबा साहेब रचित संविधान सम्मत शासन चाहिए।। 

लोकसभा चुनाव-२०१९, पुलवामा अटैक-२०१९ और सर्जिकल स्ट्राइक-२०१९ को ध्यान में रखते हुए भारत के सन्दर्भ में हमारी स्पष्ट राय है कि युद्ध हुआ तो सबसे ज्यादा नुकसान भारत, भारत, भारत के संविधान व लोकतंत्र को होगा! युद्ध हुआ तो ब्रहम्णी ताकते फिर से सत्ता पर कब्जा कर लेगीं, नतीजा भारत संविधान व लोकतंत्र की निर्मम हत्या! याद रहे कारगिल युद्ध के बाद ब्रहम्णी ताकते सत्ता पर काबिज हो गई थी, यदि बहुजन नहीं समझा तो 20 साल पुराना इतिहास खुद को दुहरायेगा! युद्द से सबसे ज्यादा फायदा नरेंद्र मोदी व बीजेपी जैसी ब्राह्मणी तक़तों व पाकिस्तान की हुकूमत का होगा। सबसे ज्यादा नुक्सान भारतीय बहुजन समाज व पाकिस्तानी आवाम का होगा। इसलिए हमें हम युद्ध नहीं चाहते हैं, हम भारत में बुद्धिज़्म-अम्बेडकारिज्म की बहुजन सत्ता चाहते हैं।

विषैले देशभक्ति के उन्माद में डूबे भारत के लोगों की सोच पर सवालियां निशान के चलते ही अन्तर्राष्ट्रीय मामलों की विशेषज्ञ प्रो क्रिस्टीन फेयर प्रो क्रिस्टीना फेयर कहती है कि "अमरीका में जब आम लोग मारे जाते हैं तब जनता भड़कती है, इसके उलट भारत में जब सैनिक मारे जाते हैं तब जनता भड़क उठती है!" भारतीय जनता की भावुकता को देखकर ही सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिक मार्कण्डेय काटजू ने कहा था कि भारत की ९०% आबादी मूर्ख है। जिस तरह से लोग भारत के लोकतंत्र और संविधान पर हो रहें ब्राह्मणी प्रहार को नज़रअंदाज कर देशप्रेम के बजाय देशभक्ति में डूब कर युद्ध की पैरवी कर रहें है, पाकिस्तान मुर्दाबाद कर रहे है, उससे तो ये प्रमाणित हो जाता है कि जस्टिक मार्कण्डेय काटजू सही कहते है।

युद्ध के सन्दर्भ में आर्थर पोन्सोन्बी कहते है कि "युद्ध झूठ के कोहरे में लड़े जाते हैं, इसके एक बड़े हिस्से का पता नहीं लगाया गया होता है और वह सत्य के रूप में स्वीकृत होता हैI यह कोहरा भय से पैदा होता है और संत्रास से पोषित होता हैI सर्वाधिक अतिकाल्पनिक कहानी पर भी संदेह करने या उसे खारिज़ करने की किसी कोशिश की तत्काल अगर देशद्रोह नहीं तो देशभक्ति-विरोधी कार्रवाई के रूप में भर्त्सना की जाती हैI इससे झूठों के फैलाव के लिए एक खुला मैदान मिल जाता हैI" ये सबकों याद रखना चाइये कि मामला युद्ध और नफ़रत से नहीं बातचीत से ही हल हो सकता है। सबकों ये जानना चाहिए कि युद्ध के बाद भी बातचीत से ही मसला हल होता है तो पहले ही बातचीत कर ली जाय।


सनद रहें, युद्ध वही चाहते है जो ब्राह्मणी आतंकी ताक़तों के साथ साथ हैं। युद्ध किसी भी समस्या का हल नहीं है। युद्ध से सदा नुकसान ही होता है। युद्ध में शहीद होने वाले ज्यादातर सैनिक बहुजन समाज के ही होते है तो ऐसे में ब्राह्मणी लोगों का कोई नुक्सान नहीं होता है। देशभक्ति के जहरीले उन्माद में डूबी जनता "जियो और जीने दो" (बुद्ध) के सिद्धांत को भूलकर खून के बदले खून चाहती है!ब्राह्मणी भी यही चाहती है। मौजूदा सरकार भी यही चाहती है और इसीलिए जनता को यही ये लोग परोस रहे हैं। लेकिन ये मत भूलिए कि जो खून बहेगा वो खून व लाशे देश के दलित-बहुजनों की होंगी, खेतिहर मजदूरों, व किसानों की होंगी! इसमें किसी अम्बानी-अडानी-माल्या-मोदी की लाश नहीं होगी। ऐसे में देश की जनता को हालत समझने होंगें। देश की बहुजन जनता को अपने हकों के लिए ब्राह्मणी ताक़तों के खिलाफ लड़ना होगा, देशभक्ति का लिबास ओढ़कर सत्ता पर नज़र गड़ाये बैठी ब्राह्मणी ताक़तों को मिटाना होगा, आदिवासियों के लिए हकों के लिए ब्राह्मणी पूँजीवाद के अजगर से लड़ना होगा, भारत में मानवता, संविधान व लोकतंत्र को बचाने के लिए मनुष्यों (सनद रहें मनु की वंशजों को मनुष्य कहते है) से लड़ना होगा। यही भारत के सच्चे प्रेमियों का भारत, भारत के संविधान व लोकतंत्र के प्रति सर्वोपरि कर्तव्य है।
रजनीकान्त इन्द्रा, इतिहास छात्र, इग्नू-नई दिल्ली

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