Tuesday, August 20, 2019

लोहियावाद मतलब कि ब्राह्मणी समाजवाद

"डॉ लोहिया की नजर में एक इंसान दूसरे इंसान को रिक्शे पर खींचता है, इसलिए ये अमानवीय है! हमारे इसी समाज में एक बड़ा वर्ग (दलित समुदाय) सदियों से दूसरे वर्ग का मल-मूत्र उठाकर ढोने और सफाई करने को मजबूर किया गया है लेकिन डॉ लोहिया ने कभी "मैनूअल स्कैवेंजिंग (Manual scavenging)" के खिलाफ कोई आन्दोलन क्यूँ नहीं चलाया। कारण, क्योंकि डॉ लोहिया गांधीवादी थे, और गांधी का मानना था कि ऐसा करना पुण्य का कार्य है!

गांधी कहते थे कि वो अपने शौचालय की सफाई खुद करते थे लेकिन क्या कभी गांधी ने नित-निरंतर दूसरों के मल-मूत्र को सिर पर रखकर ढोने और सफाई करने का पुण्य खुद प्राप्त किया या करना चाहा, या फिर क्या उनके शिष्यों ने ये पुण्यलाभ लिया या इस पुण्यलाभ को लेकर बैकुण्ठ की यात्रा करने के बारे में विचार किया? यदि नहीं, तो क्यूँ?

गांधी व डॉ लोहिया जैसे अन्य गांधीवादी लोगों के लिए "रिक्शे पर एक इंसान दूसरे इंसान को खींचता है" को मुद्दा बनाकर ब्रहम्णवाद को बिना चोट पहुँचायें अपने को समाज सुधारक सिद्धकर अपनी राजनैतिक मंशा व षडयंत्रकारी ब्रहम्णी नीतियों को अंजाम देना था, क्योंकि ये मुद्दा "सामाजिक संरचना" को चैलेंज नहीं करता है। लेकिन ये लोग यदि "मैनुअल स्कवैंजिंग (Manual scavenging)" को मुद्दा बनाते तो इससे समाजिक व्यवस्था ना सिर्फ चैलेंज होती है बल्कि इससे तो ब्रहम्णवाद की पूरी की पूरी इमारत ही दरकने लगती है!

हालाँकि गाँधी ने देश के अछूतों को हरिजन नाम की गली देकर हरिजन उत्थान का ढोंग तो किया, ये और बात हैं कि बाबा साहेब ने अपनी पुस्तक "What Congress and Gandhi have done to Untouchable" में गाँधी व उनकी कांग्रेस के ढोंग का पर्दाफाश कर दुनिया के सामने गाँधी और कांग्रेस को नंगा कर दिया।

फ़िलहाल जहाँ तक रहीं बात, डॉ लोहिया और उनके गांधीवादी समाजवाद की तो ये सत्य है कि रिक्शे वाला भी मजबूरी में जीविका के लिए ही रिक्शा खींचता और नित-निरंतर दूसरे का मल-मूत्र अपने सिर पर रखकर ढोनें व सफाई करने वाला समाज भी मजबूरी में ही जीविका के लिए ऐसा करता है! यहॉ ये दोनों ही कार्य आर्थिक मुद्दे के रूप जरूर नजर आते हैं लेकिन हकीकत कुछ अलग ही है! 'एक इंसान द्वारा दूसरे इंसान को रिक्शे पर खींचना' सिर्फ आर्थिक नीति का परिणाम है, लेकिन 'दलितों द्वारा दूसरे के मल-मूत्र को सिर पर रखकर ढोनें व सफाई करने का मुद्दा' सिर्फ और सिर्फ सामाजिक व्यवस्था का परिणाम है! सामाजिक व्यवस्था को ना तो गांधी जी चुनौती देना चाहते थे, ना ही उनके शिष्य डॉ लोहिया आदि! क्योंकि इन सबका मकसद बहुजन श्रम का इस्तेमाल कर ब्रहम्णवाद को मजबूत करना मात्र था, और आज सवर्ण समाजवाद की पैरवी करते हुए सामाजिक न्याय की गुहार लगाने वाले इनके अनुयायी भी यही कर रहे हैं! यहीं इनके कर्तव्य भी हैं क्योंकि ये गाँधी व उनके शिष्य डॉ लोहिया जैसों के अनुयायी हैं। जब खामियाँ पिछड़ी बहुजन जातियों में ही हैं तो हमें गाँधी व उनके सवर्ण अनुयायी डॉ लोहिया जैसे गांधीवादियों से कोई शिकायत नहीं हैं।

निष्कर्ष - डॉ लोहिया का समाजवाद, गांधीवाद के सिवा कुछ नहीं है। डॉ लोहिया के गाँधीवादी समाजवाद को सवर्ण/ब्राह्मणी समाजवाद कहना ज्यादा उचित होगा, जिसका मूल उद्देश्य बहुजनों के श्रम को हथियार बनाकर सिर्फ सवर्णों में व्याप्त आर्थिक विषमता को दूर करना है! यहीं लोहियावादी समाजवाद है, यहीं गांधीवादी समाजवाद है, यहीं सवर्ण/ब्राह्मणी समाजवाद हैं! इसलिए ध्यान रहें, डॉ लोहिया का गाँधीवादी/सवर्ण/ब्राह्मणी समाजवाद बहुजनों के श्रम को हथियार बनाकर सवर्णों में फैली आर्थिक विषमता को दूर करने के लिए समाजवाद के नाम से देश के सामने परोसा गया एक मीठा जहर हैं।"
---------------------------------रजनीकान्त इन्द्रा-------------------------------

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