Wednesday, August 28, 2019

आप किसके साथ हैं - वैचारिकी या फिर भीड़ आर्मी ?

सामान्यतः आर्मी-सेना-फौज ये शब्द राजनीति से जुड़ा शब्द है! आर्मी में अलग-अलग विंग होते हैं जिनकों अलग-अलग परिस्थितियों में काम करने का प्रशिक्षण दिया गया होता है! ये जरूरत के मुताबिक विशेष कार्य को अंजाम देने हेतु ट्रेंड की गई होती हैं! बिना प्रशिक्षण के कोई आर्मी हो ही नहीं सकती हैं! चाहें आत्मरक्षा हो या आक्रमण, हिंसा किसी भी आर्मी-सेना-फौज का मूल गुण होता है! आर्मी-सेना-फौज का इस्तेमाल ही वहीं किया जाता है जहॉ हिंसा की प्रबल संभावना हो, या जन-मानस के प्राण को खतरा है, फिर चाहें हो युद्ध हो या बचाव राहत कार्य, जानमाल का खतरा होता ही है! आर्मी-सेना-फौज के संदर्भ में बेहिचक यह कहा जा सकता है कि हिंसात्मक कार्यों को अंजाम देने के लिए या फिर हिंसा द्वारा हिंसा से बचाव करने वाली हथियारों से सजी विवेकहीन मनुष्यों की एक ऐसी प्रशिक्षित भीड़ जिसका सत्ताशीनों या सत्ताभिलाषी स्वार्थी लोगों द्वारा इस्तेमाल करके राज्य जीते जाते हैं, सत्ता अख्तियार की जाती है, आत्मरक्षा की जाती है, अपनों को पूर्ण सुरक्षा की गारण्टी दी जाती है, शत्रु को नेस्तनाबूद करने का आश्वासन दिया जाता है!

फौज से इतर सत्ता पर कब्ज़ा करने के बजाय लोगों को बेहतरीन राह दिखाने वाले दल भी होते हैं जो किसी राज्य या समाज को दरकिनार कर सम्पूर्ण मानव हित में विचारों का उत्पादन करते हैं, उन विचारों को जन-जन तक पहुंचा कर दुनियां को एक नई दिशा व दशा देकर बेहतरीन समाज के निर्माण की पैरवी करते हैं! ये लोग कट्टरता से परे, मैत्री-करूणा भाव से ओत-प्रोत सम्पूर्ण संसार को अपना मानते हैं, मानव-मानव के मतभेद को स्वीकार करते हैं, मनभेद को मिटा कर सबके लिए करूणा व मैत्री की भावना का प्रचार करते हैं! दुनिया के विकास के संदर्भ में मतभेद का श्रेष्ठ योगदान रहा है। ये मतभेद सभी विचारों व विचारवंतों की ना सिर्फ समीक्षा करते हैं बल्कि संभावित सभी विचारों का मंथन करते हैं जिसके परिणामस्वरूप समाज को मानव हित के लिए परिमार्जित विचार प्राप्त होता है जिससे समाज में ज्ञान-विज्ञान का विचार आगे बढ़ता है, और समाज सतत सृजित होता रहता है! समाज की बुराइयों को नेस्तनाबूद कर सम्पूर्ण मानव हित में कार्य करने वाले ऐसे लोगों के समूह को दल, संघ, संगठन आदि नामों से जाना जाता है! साहित्य में सामान्यतः कहीं भी विद्वानों के संदर्भ में आर्मी-सेना-फौज जैसे शब्दों का इस्तेमाल नहीं मिलता है! और, यदि कहीं मिलता भी है तो वह व्यंग्य के तौर पर ही मिलता है!

ऐसे में देश के बुद्ध-अम्बेडकरी आन्दोलन की पैरोकारी करने वाले लोगों को समझना होगा कि समाजिक बदलाव, इसका मिशन और आन्दोलन वैचारिकी और अनुशासन से चलता है! इतिहास गवाह है गौतम बुद्ध से लेकर मान्यवर साहेब जैसे महानायकों द्वारा चलाये गये आन्दोलन वैचारिकी को केन्द्र में रखकर संवैधानिक दायरे में रहते हुए लोकतांत्रिक मंशा के अनुरूप ही हुए हैं, और आज भी ये आन्दोलन उन्हीं महानायकों के सिद्धांतों पर बगैर किसी समझौते के भारत में सामाजिक परिवर्तन की महानायिका माननीया बहन कुमारी मायावती जी द्वारा चलाये जा रहें हैं!

एनडीए के सत्ता के दौरान की राजनीति (2013- अब तक, एनडीए काल) का एनडीए द्वारा इतना पतन कर दिया गया है कि आज के राजनैतिक परिवेश में यदि कोई रोड-शो करें, झूठे बयान दे, हास्य करें, नाटक मंडली को साथ लेकर नाच करें, बिना सबूत दूसरों पर आरोप लगायें, जुमले फेकें तो समझ जाइयें कि ये सब करने वाले के पास मानव हित की कोई वैचारिकी नहीं है, वो ही नहीं उसकी स्वार्थी नीतियाँ भी अंदर से पूरी तरह खोखली हैं! देश को समझाना होगा कि रोड-शो वही करता है जिसकें अनुयायी नहीं, भक्त होते हैं! ऐसे लोग अपार पूंजी के बल का इस्तेमाल करते हुए अपने चंद समर्थकों के साथ रोड पर दैनिक जीवन की जरूरतों को पूरे करने के लिए बाजार आये, सड़क पर चलनें वालों को अपने रोड-शो का हिस्सा बताकर मुखधारा मीडिया के माध्यम से एक माहौल तैयार करते हैं कि जनता उनके साथ है! और, जनता इनके झांसे में आ जाती हैं। जनता की इसी नासमझी की वजह से सत्ता उनकें हाथ लग जाया करती है जो जनता के रक्त के प्यासे रहते हैं! ऐसे रोड-शो में यदि लोग हताहत भी हो जायें तो उन्हें अपार भीड़ का हिस्सा करार कर अपने राजनीति की रोटी सेकनें से भी ये लोग पीछे नहीं रहते हैं।

आज सकल मानव हित की वैचारिकी से कोसों दूर तमाम बहुजन युवा आक्रामकता की तरफ उन्मुख हो रहें हैं। बहुजनशत्रु पक्ष द्वारा बहुजन समाज के ही कुछ युवाओं को मोहरा बनाकर बहुजन समाज की स्थापित राजनैतिक विरासत को, पार्टी को कमजोर करने की साज़िश करते हैं। इसका सबसे बड़ा प्रमाण शब्बीरपुर-सहारनपुर की घटना हैं जो ये बयां करता हैं कि कैसे बहुजनशत्रु के हाथों बिका हुआ बहुजन समाज के ही एक युवा ने ज्ञान-विज्ञान-शांति-समृद्धि प्रतीक बाबा साहेब के नाम पर हिंसात्मक आर्मी बनाकर अपने ही समाज के कुछ युवाओं को मौत के मुँह में झोंक दिया हैं, कुछ युवाओं को सलाखों के पीछे भेज दिया हैं, कुछ को अस्पताल पंहुचा दिया तो कुछ के भविष्य पर ही ताला लगा दिया हैं। ऐसे गुमराह लोग अक्सर कहते रहते हैं कि क्रान्ति खून माँगती हैं, कुर्बानी माँगती हैं। ऐसे लोगों से ये सवाल करना चाहिए कि ये खुद की क़ुर्बानीं क्यों नहीं देते हैं? इनसे पूछने की जरूरत हैं कि यदि बुद्ध से लेकर बहन जी तक ने लहुँ का एक कतरा बहायें बगैर सफलतापूर्वक बहुजन आन्दोलन चला सकते हैं तो फिर खून और क़ुर्बानीं की जरूरत क्यों हैं?

सोचियें, आज के माहौल में जब मीडिया प्रेस्टीट्यूट बन चुकी हैं ऐसे में, मुखधारा (ब्राह्मणी) मीडिया जिसकों प्रमोट कर रहीं हैं वो गुमराह युवा आपका अपना कैसे हो सकता हैं। ये प्रेस्टीट्यूट मीडिया कब से आपकी हितैषी बन गयी हैं। जिस प्रेस्टीट्यूट मीडिया हैं जिसने बहन जी की चुनावी रैलियों को नजरअंदाज कर आपको गुमराह किया कि बसपा का कोई जनाधार बचा ही नहीं हैं, वो प्रेस्टीट्यूट मीडिया आपकी हितैषी कब से हो गयी हैं। निष्पक्षता का दावा ठोकने वाले रवीश कुमार पाण्डेय (एनडीटीवी) ने भी रैदास विहार, दिल्ली के तोड़ें जाने को लेकर दिल्ली में हुए विरोध प्रदर्शन को हजारों की भीड़ बताकर पल्ला क्यों झाड लिया? रवीश कुमार पाण्डेय ने उस विरोध प्रदर्शन में लाखों की संख्या में मौजूद बसपा समर्थकों को नजरअंदाज कर सिर्फ आर्मी वाले को ही क्यों फोकस पर रखा?

आपको समझने की जरूरत हैं कि बसपा कमजोर नहीं हुई, उसका जनाधार भी नहीं घटा हैं लेकिन मुखधारा (ब्राह्मणी) मीडिया द्वारा बार-बार बसपा को नजरअंदाज करके गुमराह युवाओं की भीड़ को लाइम लाइट में दिखाकर आपके मन में ये बिठाया जा रहा हैं कि आपकी अपनी राजनैतिक धरोहर ख़त्म हो गयीं हैं, जबकि हकीकत कुछ और ही हैं। आपको समझना होगा कि कैसे आपके जज़्बात, आपके युवाओं की नासमझी और बाबा साहेब की वैचारिकी पर ताला लगाकर जय भीम की माला गले में डालकर बहुजन शत्रुओं के हाथ बिका हुआ आपके ही समाज का स्वार्थी युवा आपको बेच रहा हैं?

सनद रहें, हिंसा, उन्माद, उपद्रव करके छोटी-मोटी लड़ाइयों में क्षणिक सफलता पायी जा सकती हैं लेकिन सामाजिक परिवर्तन के महायुद्ध को बुद्ध से लेकर बहन जी तक के दिखाएँ रस्ते पर चलकर ही जीता जा सकता हैं। ऐसे में अब जनता को समझना होगा, समझना होगा कि बुद्ध-अम्बेडकरी वैचारिकी को केन्द्र बनाकर, जनता को उचित मार्गदर्शन देते हुए, संवैधानिक, लोकतांत्रिक तरीकें से शांतिपूर्वक आपके हिस्से की लडाई कौन लड रहा है? कौन आपके हकों की ख़ातिर देश के राजनैतिक छाती पर लगातार गोल कर रहा है? कौन आपको बुद्ध-रैदास-कबीर-दादू-फूले-शाहू-अम्बेडकर-पेरियार-काशीराम के नक्श-ए-कदम पर चलकर भारत में सामाजिक परिवर्तन के आन्दोलन को सतत आगे ले जा रहा है? कौन हुक्मरान हैं जिसने संवैधानिक ढांचे के दायरे में रहकर आपके उन महाना़यकों-महानायिकाओं और उनकें संदेशों को संगमरमर के कठोर निर्दयी पत्थरों पर उकेर दिया है? आपके जिस गौरवशाली इतिहास को नकार दिया गया था, आपके जिस इतिहास को किताबों में कोई स्थान तक नहीं दिया गया था, आपके उस गौरवशाली इतिहास और आपके महाना़यकों-नायिकाओं के गौरवमयी संघर्षगाथाओं को किस बहुजन महानायिका ने अपने जोर-ए-बाजुओं की बदौलत निर्मम कठोर पत्थरों की छाती पर हमेशा के लिए दर्ज कर दिया है? आपके लहुँ का एक कतरा बहाएं बग़ैर आपके मान-सम्मान और भारत में सामाजिक परिवर्तन की लड़ाई कौन लड़ रहा हैं?

ऐसे में तय आपको करना हैं कि आप बुद्ध-अम्बेडकरी वैचारिकी वाले सामाजिक परिवर्तन के आंदोलन को सतत आगे ले जाने वाली बहुजन महानायिका के साथ हैं या फिर बुद्ध-अम्बेडकरी वैचारिकी को कुचलते हुए बहुजन शत्रु के हाथों खुद को बेचकर अपने निजी स्वार्थ के लिए अपने ही दलित-बहुजन युवाओं को मौत के मुँह में धकेलने वाले, दलित-बहुजन युवाओं के करियर को बर्बाद कर उनकों जेल की सलाखों के पीछे पहुँचाने वालों के साथ हैं, जो खुद हर प्रदर्शन में बेहोश हो जाने का नाटक करते हुए सही-सलामत अस्पताल पहुँच कर बार-बार जेल चला जाता हैं, और, मुफ्त में आपकी सहानुभूति प्राप्तकर आप के ही मिशन को मिटा रहा हैं? आप बुद्ध-अम्बेडकरी आन्दोलन वाले मान्यवर काशीराम साहेब द्वारा बनाये और माननीया बहन जी द्वारा सिंचित वैचारिक संगठन बसपा के साथ हैं या फिर बुद्ध-अम्बेडकरी वैचारिकी को कुचलने वाले हिंसात्मक युवाओं की गुमराह भीड़ वाली दिशाविहीन भीड़ आर्मी के साथ?
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~रजनीकान्त इन्द्रा~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

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