Sunday, August 25, 2019

मनुवादी बहुजनों के आँखों में खटकती बहुजन महानायिका

जो अपनी बहन-बेटियों शाम होते ही घर में कैद करने की मंशा रखते हैं, जो तरूणाई आते ही अपनी बहन-बेटियों को इस डर से शादी के बंधन में बांध देना चाहते हैं कि कहीं वो अपनी मर्जी से जीवन-साथी ना चुन ले, जो अपनी बहन-बेटियों के लिए सारी सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा का इंतजाम करके ही मरने की चाहत रखते हैं......आज वो ब्राह्मणी रोग से ग्रसित बहुजन समाज के ही लोग जिनकी बहन-बेटियों को सोने के गहने तक पहनने की इज़ाज़त नहीं थी, पावों में चप्पल तक पहनने की मनाही थी वो मनुवादी बहुजन आज बहन जी के कानों की बाली, पावों की सैण्डल देखते हैं। 
जो मनुवादी बहुजन लोग बहुजन महानायिका के आलिशान आवास पर टिप्पणी कर रहें हैं, जिनके पेट में बहन जी के ठाट-बाँट से मरोड़ उत्पन्न हो रहा हैं.....क्या उन लोगों ने कभी बहन जी के पावों के छालों की तरफ भी गौर किया हैं? क्या ऐसे लोगों ने कभी सोचा हैं कि जब इनकी अपनी बहन-बेटियों को घर की चहारदीवारी के बाहर कदम तक रखने की इज़ाज़त नहीं थीं, जब खुद इनके पुरखें अपने ही घर के सामने अपनी चारपाई पर ब्राह्मणों-सवर्णों के सामने नहीं बैठ सकते थे उस दौर में बहन जी मनुवादी दरिंदों की भीड़ को चीरते हुए बहुजनों के दुखों का इलाज़ ढूंढ रही थी। 
जब लोग बहन-बेटियों को अकेले कहीं जाने ही नहीं देते थे, उस माहौल में बहन जी अपने पिता जी का घर छोड़कर बाबा साहेब के मिशन को आगे बढ़ने के लिए मीलों पैदल चली हैं। जब आपके घरों में खाने को नहीं होता था उस दौर में आपके पुरखों को बेहतरीन जीवन का सपना देखना सीखा रहीं थीं। जब आपके बुजुर्ग गुलामी को अपनी नियति मान चुके थे तब बहन जी आपको देश का हुक्मरान बनाने की राह बना रहीं थीं। क्या भूल गए उनका इतिहास और उनका संघर्ष? 
बाबा साहेब को आदर्श मानाने के ढोंग करने वाले बहुजन समाज के लोग आज बाबा साहेब और मान्यवर साहेब से आन्दोलन और संघर्ष की प्रेरणा लेने के बजाय साम्प्रदिययिक दंगाई ब्राह्मणी दलों व संगठनों के ब्राह्मणी रोग से ग्रसित नेताओं की भाँति, बिना दुष्परिणाम को सोचे-समझे, बहन से रोड-शो की डिमाण्ड कर रहें है। समाज हित में जिनके पुरखें खुद कभी घर के बाहर नहीं निकलें हैं वो "बहन जी घर से बाहर निकलने और आन्दोलन कैसे किया जाता हैं" की शिक्षा दे रहें हैं। जिनके बाप-दादाओं ने जिंदगी में कभी समाज हित में निस्वार्थ भाव से एक पैसा चंदा भी नहीं दिया हैं उनकी औलादें बहन जी को दौलत की बेटी बता रहें हैं। जिनके घर वालों ने अपनी पूरी की पूरी जिन्दगी अपनी ही सन्तानों की फ़िक्र करते हुए सामाजिक सरोकारों से दूर हो गए उनकी नश्लें बहन जी पर परिवारवाद का आरोप मढ़ रहीं हैं। 
ऐसे ब्राह्मणी रोग से संक्रमित मनुवादी दलित-बहुजन भी "चार दशक से भी ज्यादा समय से बहुजन समाज की सेवा करने वाली, बहुजन आन्दोलन को परवान तक पहुंचने वाली, अपने तरुणाई के समय में देश की गलियों में, मलिन बस्तियों, गांवों में, मुहल्लों में घूम-घूम कर दशकों बहुजन समाज को जागरूक करने वाली, भारत के राजनीति की छाती पर कदम-ताल करके भारतीय राजनीति के मूलस्वरूप को ही बदल देने वाली, बहुजन समाज को राजनैतिक तौर पर अनाथ होने से बचाने वाली, पिछडों के हकों के लिए लड़ने करने वाली, अछूतों को सत्ता का एहसास कराने वाली, देश को संविधान व कानून का मायने बताने वाली, दंगाईयों-गुण्डे-मावालियों की मण्डली में दहशत का पर्याय, नौकरशाहों को नौकर होने और जनता के मालिक होने का भान कराने वाली, भारत में लोकतन्त्र और संविधान की जड़ों को मजबूत करने वाली, राजाओं का धूल में मिटा कर नागरिकता की भावना को आगे बढाने वाली, समता की भावना को स्थापित करने के लिए जद्दोजहद करने वाली, साम्प्रदायिकता को नकारकर बंधुत्व को स्थापित करने वाली, तानाशाही की सरकारों को रिप्लेस कर करुणा-मैत्री भाव से हुकूमत करने वाली, बहुजनों को न्याय दिलाने वाली, धन-धरती का बँटवारा (पट्टा) करके समाजवाद की भावना को मूर्तरूप देने वाली, बहुजनों की भागीदारी को सत्ता-संसाधन के हर क्षेत्र के पायदान पर पहुँचने की राह प्रशस्त करने वाली, देश को बुद्ध से लेकर मान्यवर साहेब तक के सभी बहुजन महानायकों-महानायिकाओं को हर बहुजन के जहन में स्थापित करने वाली, बहुजन आन्दोलन के परचम को भारत ही नहीं दुनिया में बुलंद करने वाली, देश के हुक्मरानों को हुकूमत का मायने समझाने वाली, बहुजन अस्मिता को नए सिरे से स्थापित करने वाली, देश में सामाजिक-सांस्कृतिक-आर्थिक-राजनैतिक क्षेत्रों में बहुजनों को उनके हक़ के लिए जागरूक करने वाली, देश की संसद व सड़क पर बहुजनों की सबसे प्रबल व प्रखर आवाज, भारतीय राजनीति की सबसे बुलंद शख्शियत, दुनिया भर में आयरन लेडी के नाम से सुविख्यात, भारत में सामाजिक परिवर्तन की महानायिका बहन कुमारी मायावती जी" पर टिप्पणी कर रहे हैं....."
हमारा स्पष्ट मत हैं कि समीक्षा सबकी होनी चाहिए। समीक्षा के दायरे से कोई भी बाहर नहीं हो सकता हैं। बुद्ध से लेकर बहन जी तक सब के सब समीक्षा के दायरे में हैं। समीक्षा सृजनात्मक होती हैं लेकिन बहुजन समाज के ही लोग समीक्षा का नाम लेकर बहन जी, बसपा का सिर्फ और सिर्फ विरोध करने की मानसिकता के चलते अपनी मन की कुंठा निकालने हेतु अपने स्वार्थ में ब्राह्मणी रोग से संक्रमित मनुवादी बहुजन ही बहुजन महानायिका बहन जी जैसी बुलन्द शख्सियत को गाली देते हैं, ब्राह्मणी दलों के हाथों अपने जमीर को बेचकर अपनी ही नेत्री पर तोहमत लगाने लगते हैं। याद रहें, आपकी की ये हरक़त लंबे दौर में ना तो आपके हित में हैं, और ना ही आपके समाज व देश के हित में हैं। 
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~रजनीकान्त इन्द्रा~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

No comments:

Post a Comment