Thursday, July 16, 2020

शोषक को नहीं, शोषित को ही दोष देती हैं तत्कालिक व्यवस्था


दुखद है, परन्तु सत्य है कि जब शोषित वर्ग अपने शोषण कर्ता के खिलाफ आवाज बुलंद करता है तो लोग शोषित को ही दोष देते हैं, और शोषित में ही कमियां ढूंढना शुरू कर देते हैं।

यही वजह है कि गैर-बराबरी वाले समाज में जब देश का बहुजन समाज बराबरी वाला समाज सृजित करने के लिए आवाज बुलंद कर रहा है तो गैर-बराबरी के हिमायती व ब्राह्मणी रोग से ग्रसित लोग दलित-बहुजन समाज को ही दोष दे रहे हैं, उन में कमियां ढूंढते हुए यह कह रहे हैं कि दलितों में जो नौकरी में आ गए हैं वह लोग अपने दलित भाइयों के साथ भेदभाव करते हैं। यह कथन दलितों के बीच व्याप्त भेदभाव को दूर करने के लिए नहीं, बल्कि दलितों को मोहरा बनाकर के ब्राह्मणवाद की जड़ को मजबूत करने का एक प्रयास है। ऐसा कह कर के ब्राह्मणवाद के पोषक लोग दलित बहुजन समाज के बीच बन रही एकता को खंडित करने के लिए एक षड्यंत्र के तौर पर प्रचारित कर रहे हैं।
जबकि यदि सर्वे किया जाए तो जिन नौकरी पेशा दलितों पर आरोप लगाया जा रहा है कि वह अपने ही समाज के गरीब दलित भाइयों से दूरी बना कर रखे हैं तो यह बात सतही तौर पर ठीक है जरूर नजर आती है परंतु यदि बारीकी से आकलन किया जाए तो नौकरी पेशा दलित बहुजन भी उसी गरीब दलित बहुजन समाज का हिस्सा है और उसकी जड़े उसी गरीब दलित-बहुजन समाज में निहित हैं तो वह अपने गरीब दलित-बहुजन समाज से नफरत कैसे कर सकता है? भेदभाव कैसे कर सकता है? उनसे दूर कैसे रह सकता है?
ऐसे में दलित बहुजन समाज के बीच बन रही एकता को खंडित करने के लिए ब्राह्मणवादी प्रोपेगेंडा से सावधान रहने की सख्त जरूरत है।
रजनीकान्त इन्द्रा

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