Saturday, July 25, 2020

बहन जी को सब कुछ याद हैं।

बहन जी को सब कुछ याद हैं।
बीसवीं सदी के आठवें दशक की बात हैं। मान्यवर काशीराम साहेब बामसेफ के बैनर तले जहाँ एक तरफ सरकारी नौकरी-पेशा लोगों को एकजुट कर रहे थे तो वहीँ दूसरी तरफ डीएस-4 के मंच से देश के दलित-शोषित समाज को पूरी सिद्धत से जागृत कर उनकों बहुजन आन्दोलन के लिए तैयार कर रहे थे। इसी दरमियान विदर्भ में जन्मे एक युवक, जो कि मध्य प्रदेश शासन के अधीन ग्रामीण अभियंत्रण विभाग में नौकरी कर रहा था, मान्यवर के मिशन से प्रभावित होकर बहुजन आन्दोलन का हिस्सा बनता हैं।
एक बार की बात हैं। साहब लोगों को मिशन और कैडर के सन्दर्भ में दिशा-निर्देश दे रहे होते हैं कि ये युवक एकाएक साहेब के पास आता हैं और कहता हैं कि साहेब मै फिल्म बनाना चाहता हूँ। साहेब उसे फटकारते हुए कहते हैं कि "मैं यहाँ सरकार बनाने की बात कर रहा हूँ, और तू फिल्म बनाने की बात कर रहा हैं। कितनी पढाई की हैं? फिल्म के बारे में कुछ जानता हैं?" युवक बोला, "नहीं"। साहब ने कहा कि पहले जा फिल्म के बारे में पढ़ाई कर, फिर आना।"
साहेब की ये बात सुनकर वो युवक राष्ट्रिय नाट्य अकादमी में प्रवेश के अर्जी दिया। उसका चयन हो गया। उसने मध्य प्रदेश शासन के अधीन ग्रामीण अभियंत्रण विभाग की नौकरी से इस्तीफ़ा दे दिया। उसकी माता जी उसके सामने मिन्नतें कर रहीं थी कि नौकरी मत छोड़। लेकिन वो युवक नहीं माना।
जब एनएसडी के लिए वो युवक नागपुर स्टेशन पर ट्रेन पकड़ने आया तो उसकी माता जी ने स्टेशन पर मौजूद पुलिस कर्मी के पैर पकड़ कर उससे विनती करने लगी कि उसका बेटा सरकारी नौकरी छोड़कर नाचने-गाने की पढाई करने के लिए दिल्ली जा रहा हैं, उसके बेटे को रोक ले। लेकिन पुलिस वाला कैसे रोक सकता था। फिलहाल वो युवक ट्रेन पर चढ़ा और एनएसडी-दिल्ली पहुँच गया।
समय बीतता गया। उस युवक ने एनएसडी से अपनी पढाई पूरी करके दिल्ली के आस-पास के क्षेत्र में ही थियेटर करना लगा। थियेटर से परिवार चलाने भर की ही आमदनी हो पाती थी। उस युवक के ऊपर परिवार की भी जिम्मेदारी थी। फिलहाल, आर्थिक स्थिति बद्तर हो चुकी थी। इस प्रकार वो युवक बहुजन आन्दोलन में सक्रिय नहीं हो पाया। इसके बावजूद दिल्ली व आप-पास के क्षेत्र में वह आन्दोलन और सभाओं के भाग लेता रहता था।
बात १९८६ की हैं। दिल्ली में मान्यवर साहेब से हुई एक मुलकात के दौरान साहेब ने उससे पूछा कि "आज कल क्या कर रहे हो? फिल्म की पढाई पूरी कर ली?" उस युवक ने बताया कि साहब थियेटर कर रहा हूँ। इसके बाद मान्यवर साहेब ने बहन जी से कहा कि "इस बच्चे का ख्याल रखना"।
दिन, महीने और साल बीतते गये। वो युवक अपने थियेटर के कार्य में व्यस्त रहा। और, उसी से अपनी जीविका भी चलता रहा। लेकिन थियेटर से इतनी कमाई नहीं हो पा रहीं थी। इसलिए माली हालत ख़राब ही रहीं। बावजूद इसके अपनी लगन के चलते युवक थियेटर कार्य, लेखन और बहुजन मुद्दे को सामने लाने में लगा रहा। भारतीय भाषा आन्दोलन से जुड़े रहकर विश्व हिंदी दिवस समेत तमाम अवसरों पर अपनी आवाज को बुलंद करते हुए भारतीय भाषा विकास में अग्रणी भूमिका निभाई।
फिलहाल, इधर मान्यवर साहेब की देख-रेख में माननीया बहन जी संघर्ष करती रहीं। बुद्ध-फुले-शाहू-अम्बेडकर के कारवां को नित नए मुक़ाम तक पहुँचती रहीं। साहेब, बहन जी के सतत संघर्ष और सकल बहुजन समाज में उभरती चेतना का परिणाम रहा कि ०३ जून १९९५ को पहली बार माननीया बहन जी ने भारत के सर्वाधिक आबादी वाले उत्तर प्रदेश की सरज़मी पर हुकूमत करने की शपथ ली। इसके बाद २१ मार्च १९९७ को दूसरी बार; ०३ मई २००२ को तीसरी बार मुख्यमन्त्री की शपथ ली।
इसके बाद ०९ अक्टूबर २००६ को मान्यवर साहेब का साया पिछड़े वर्ग, दलित, आदिवासी एवं अल्पसंख्यक समाज के सर से उठ गया। पिछड़े समाज की मसीहा माननीया बहन जी ने बहुजन समाज और बहुजन आन्दोलन की जिम्मेदारी को बखूबी संभल लिया। बहन जी ने इस कदर जिम्मेदारी निभा रहीं हैं कि भारत महानायिका बहन जी साहेब की कमी खलने नहीं दे रहीं हैं। इसका प्रमाण यह हैं कि बहन जी ने बुद्ध-बाबा साहेब के दिखलाये रास्ते पर चलते हुए १३ मई २००७ को पूर्ण बहुमत के साथ पिछड़े, दलित, आदिवासी और अल्पसंख्यक समाज की अपनी सरकार बनायीं।
फिलहाल १९८६ से लेकर २००७ लगभग २१ साल बीत गए। इस दरमियान उस युवक का मान्यवर साहेब व बहन जी से कोई ख़ास संपर्क नहीं रहा। वो युवक थियेटर में व्यस्त, अपनी जीवन जी रहा था। मुख्यमत्री बनते ही बहन जी ने उस युवक के एक दोस्त के पास फोन किया, और उस युवक दो दिन के भीतर लखनऊ भेजने के लिए कहा। उस युवक का दोस्त किसी कारण बस ये सूचना उस युवक तक नहीं पंहुचा सका। दो दिन से ज्यादा का वक्त बीत गया। एक शाम वो युवक फटेहाल, टूटी चप्पल पहने अपने दूसरे दोस्तों के साथ मंडी हॉउस के पास एक नुक्कड़ पर चाय पी रहा था। इतने वो उसका दोस्त आया और हर्ष से चिल्लाते हुए उस युवक से बोला कि तुम्हारी तो किश्मत खुल गई। तुम्हारे लिए लखनऊ से फोन आया था। तुमको तत्काल लखनऊ पहुँचाना हैं। अन्य दोस्त कुछ समझ ही नहीं पाये। वो शख्स भी आश्चर्यचकित था। उसको विश्वास नहीं हो रहा था कि बहन जी का बुलावा आया हैं। परन्तु, उसको याद था कि साहेब ने बहन जी से कहा था कि इस बच्चे का ख्याल रखना। शख्स अंदर ही अंदर खुश हो रहा था। आनन्द की तरंगे हिलोरे मार रहीं थी।
शख्स ने अपने दोस्त से बताया कि मेरे पास ना तो कपडे हैं, ना ही पैर में चप्पल। मै कैसे लखनऊ जाऊ। इसके बाद उसके दोस्त ने अगले दिन पांच हजार का इंतजाम किया। उस पैसे से उस शख्स ने नये कपडे, जूते आदि ख़रीदा। इसके बाद शाम वाली ट्रेन से लखनऊ के लिए रवाना हो गया। आँखों से नीद गायब थी। मन में तरह-तरह के विचार आ रहे थे। सोच रहा था कि लखनऊ में बहन जी ने अपने संघर्ष से पूर्ण बहुमत की सरकार बनायीं हैं। बहन से मिलने के बाद क्या होगा? बहन जी ने क्यों बुलाया हैं? इस तरह के सवाल उसके अंदर गूँज रहे थे। देखते-देखते रात गुजर गयी। सुबह करीब ६ बजे ट्रेन चारबाग पंहुच गयी। शख्स ट्रेन से उतरा और नहाने-धुलने के लिए रूम किरये पर लेने के लिए होटल पहुँचा गया।
होटल के मैनेजर ने शख्स का नाम पूँछा तो उसने अपना नाम यशवन्त उदय निकोसे बताया। यह नाम सुनते ही होटल के मैनेजर ने उसको पकड़ लिया। अपने गार्ड्स को एलर्ट कर दिया। पूछने पर मैनेजर ने बताया कि तुमको पुलिस ढूंढ रहीं हैं। तुम्हारे बारे में पूँछ-पूँछ कर पोलिस ने सबको परेशान कर दिया हैं। गार्ड्स से बोला कि इसको जाने मत देना, ये पुलिस द्वारा वांटेड हैं। शख्स ने बहुत मिन्नतें की कि मुझे आपके यहाँ एक कमरा चाहिए। मै ब्रश आदि करके नहाना-धुलना चाहता हूँ। उसकी मिन्नत सुनने के बाद उसके रूम के सामने गार्ड्स को तैनात कर मैनेजर ने पुलिस को सूचना दिया और बातचीत की।
इसके बाद जब निकोसे साहब नहा-धुल कर तैयार होकर बहन जी के आवास के लिए निकला। रिक्से वाले ने निकोसे को लेकर आवास की जगह आफिस पंहुच गया। गेट पर पंहुच कर गार्ड से निकोसे ने अपना परिचय बताया तो गार्ड ने रिक्शे वाले को एक जोरदार थप्पड़ लगा दिया, और कहा कि इनकों लेकर आवास पर जाओं। फिर रिक्शे वाला निकोसे साहब को लेकर आवास पर पहुँचा। वहां पहुंचकर गार्ड को अपना परिचय दिया। गार्ड ने अपने वॉकी-टॉकी पर अंदर बात की। निकोसे साहब भी वॉकी-टॉकी की बात सुन रहे थे। अंदर से निर्देश आया कि उनकों सम्मान के साथ बैठओं, चाय आदि दीजिये। बहन जी अभी आ रही हैं।
इसके बाद निकोसे साहब ने गार्ड द्वारा मारे गए थप्पड़ के लिए रिक्शे वाले से माफी मंगाते हुए उसको सौ रुपये दिए। निकोसे साहब अंदर गए।आदर-सत्कार किया गया। नास्ते में काजू किसमिस और मिठाइयाँ रखी हुए थी। निकोसे साहब ने नास्ता किया। इसके कुछ देर बाद ही भारत महानायिका बहन जी का आगमन हुआ। पहुंचते ही माननीय बहन जी ने निकोसे जी से उनका कुशल-मंगल पूंछा। इसके बाद सेक्रेटरी ने ढेर सारे पेपर मेज पर बिखेर दिया। बहन जी उन पेपर्स पर हस्ताक्षर करने को कहा। निकोसे साहब ने बिना कुछ सोचें-समझे और पेपर्स को पढ़े बगैर बहन जी के निर्देशानुसार हस्ताक्षर कर दिया। इसके बाद माननीय बहन जी निकोसे जी को महामहिम राज्यपाल से मिलवायीं। और, महामहिम राज्यपाल महोदय से कहा कि ये सब इनके कुछ कागज हैं, आप इनकों ध्यान से देख लीजिये, ये हैं श्री यशवंत निकोसे जी। हमारी सरकार श्री यशवंत निकोसे जी को उत्तर प्रदेश का सांस्कृतिक राज्य मंत्री बनाना चाहती हैं। सारी कागजी कार्यवाही पूर्ण होने के बाद निकोसे जी का शपथ ग्रहण हुआ। इसके बाद भारत महानायिका बहन जी ने श्री यशवंत निकोसे जी की काबिलियत को देखते हुए इन्हें उत्तर प्रदेश फिल्म विकास परिषद् का चेयरमैन और भारतेन्दु नाट्य अकादमी लखनऊ के निदेशक पद पर भी नियुक्त किया। ऐसी हैं बहन जी, जिन्होंने कल के नुक्कड़ के निकोसे को उत्तर प्रदेश का मंत्री बना दिया।[1]
याद रहें, ये वहीँ श्री यशवंत निकोसे है जिन्होंने बहुचर्चित "तीसरी आज़ादी" नाम की फिल्म बनायी हैं। इनके इन्हीं कार्यों और समर्पण की वजह से माननीय बहन जी ने श्री यशवंत निकोसे जी को ना सिर्फ उत्तर प्रदेश का सांस्कृतिक राज्य मंत्री बनाया बल्कि उत्तर प्रदेश फिल्म विकास परिषद् का चेयरमैन और भारतेन्दु नाट्य अकादमी लखनऊ के निदेशक पद पर भी नियुक्त किया। बहन जी मिशन के लिए योगदान देने वाले किसी भी शख्स को नहीं भूलती हैं, उचित अवसर आने पर ना सिर्फ उन्हें जान सेवा का उत्कृष्ट अवसर प्रदान करती हैं बल्कि उनका पूरा मान-सम्मान भी करती हैं।
सबक -
बहुजन आन्दोलन के शत्रु और ब्राह्मणवादी दलों व संगठनों के चमचे कहते हैं कि बहन जी मिशन के लोगों को पहचानती नहीं हैं, मिशन के लोगों को पार्टी से बाहर कर दिया हैं, बहन जी मिशन से भटक चुकी हैं। ऐसे में नागपुर महाराष्ट्र के रहने वाले मिशन से कभी जुड़े रहे श्री यशवंत निकोसे को बहन जी उत्तर प्रदेश का सांस्कृतिक राजयमंत्री, उत्तर प्रदेश फिल्म विकास परिषद् का चेयरमैन और भारतेन्दु नाट्य अकादमी का निदेशक बनाया जाना बहुजन समाज में जन्मे बहुजन समाज के दलालों और ब्राह्मणवादी दलों व संगठनों के चमचों के मुँह पर जोरदार तमचा हैं।
स्पष्ट हैं कि बसपा एक मिशन हैं। बहन जी इस मिशन को बखूबी आगे बढ़ा रहीं हैं। अपनी आर्थिक मुक्ति चाहने वाले बहुजन समाज में जन्मे बहुजन समाज के दलालों और ब्राह्मणवादी दलों व संगठनों के चमचों के अपने स्वार्थ के चलते बसपा और बहन जो को बदनाम कर रहे हैं, बुद्ध-फुले-अम्बेडकरी आन्दोलन को तोड़ने की कोशिस कर रहे हैं। ऐसे में, नवयुवकों के सामने श्री यशवंत निकोसे का उदाहरण उचित मार्गदर्शन करता हैं कि बहन जी किसी को और कुछ भी नहीं भूलती हैं। मिशन के लोगों को बहन जी ने हमेशा सम्मान किया। उनकों वाज़िब पद आदि से नवाज़ा हैं।
फिलहाल ये बात जरूर सच हैं कि जो भी लोग बुद्ध-अम्बेडकरी विचारधारा से हटकर अपनी आर्थिक मुक्ति के लिए आन्दोलन का सौदा कर रहें हैं, उनकों बिना समय गवाये बहन जी पार्टी से बाहर का रास्ता दिखती हैं क्योकि आन्दोलन स्वार्थी लोगों से नहीं बल्कि अनुशासित, निष्ठावान और समाज व आन्दोलन के प्रति समर्पित लोगों से ही चलता हैं।
अपील - कृपया इस देश का बहुजन समाज मान्यवर काशीराम के साथ छल करने वाले कांग्रेस-बीजेपी-आरएसएस फण्डित रजिस्टर्ड बामसेफ और अन्य तमाम संगठनों व लोगों से सावधान रहें। क्योकि ये सभी संगठन बहुजन आन्दोलन से बहुजनों को तोड़ने का कार्य कर रहे हैं। बहुजन समाज को गुमराह कर बहुजन समाज की एक मात्र राष्ट्रिय पार्टी बसपा को कमजोर कर कांग्रेस और भाजपा को मजबूत करने के लिए ही इनकों फण्ड मिलता हैं। बुद्ध-फुले-रैदास-कबीर-बाबा साहेब-मान्यवर काशीराम साहेब, बामसेफ की तश्वीरों के इस्तेमाल और बहन जी एवं बसपा के प्रति बहुजन समाज को गुमराह करके ही इनकी जीविका चलती हैं, इसलिए ही इनकों ब्राह्मणी संगठनों एवं दलों से फण्ड मिलता हैं। इसलिए कांग्रेस-बीजेपी-आरएसएस फण्डित रजिस्टर्ड बामसेफ और ऐसे अन्य सभी संगठनों बहुजन समाज को सर्तक रहने की जरूरत हैं। आज की मौजूदा हालत व बसपा व बहन जी के खिलाफ हो रहे दुष्प्रचार के संदर्भ में बाबा साहेब की ये बात पूर्णतया प्रासांगिक हैं कि "आंदोलन की मजबूती के लिए सभी कार्यकर्ताओं को अपने वरिष्ठों के आदेशों को बिना शिकायत स्वीकारने होंगे।[2]"
रजनीकान्त  इन्द्रा (Rajani Kant Indra)
एमएएच (इतिहास), इग्नू-नई दिल्ली


[1] (ये पूरा वाकया मार्च ०७, २०२० की शाम ५:४० बजे श्री यशवन्त उदय निकोसे से नागपुर में मुलाकात के दौरान हुई बातचीत पर आधारित हैं)
[2] बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर, बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर संपूर्ण वाड़्मय, खंड-39 भाग-2, डॉक्टर अंबेडकर प्रतिष्ठान सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय भारत सरकार नई दिल्ली (2019); पृष्ठ संख्या-434

No comments:

Post a Comment