Sunday, July 19, 2020

बसपा का उद्देश्य समतामूलक समाज का सृजन करना हैं, किसी का दमन नहीं

कुछ नासमझ उन्मादी बहुजन समाज के लोग चाहते हैं कि बहुजन समाज पार्टी भी ब्राह्मणी दलों की तरह जाति और धर्म के नाम पर उन्माद फैलाने वालों (बहुजन युवाओं आदि) को संरक्षण दे? ऐसे लोगों का मानना हैं कि बसपा में किसी गैर-बहुजन को को हिस्सेदारी ना दी जाय, उन्मादी बहुजन युवाओं को खुलेआम अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक तरीके से जाति और धर्म के नाम पर उत्पात करनी की छूट दी जाय। असंवैधनिक और अलोकतांत्रिक तरीकों के हिमायती ये जोशीले बहुजन युवा अक्सर संविधान व लोकतंत्र की रक्षा के लिए सोशल मिडिया और मंचों पर चीखते रहते हैं। क्या ऐसे बहुजन युवाओं से संविधान और लोकतंत्र के रक्षा की उम्मीद की जा सकती हैं? 
हमारे विचार ये उन्मादी बहुजन युवा बहुजन आन्दोलन, बहुजन वैचारिकी, उसके लक्ष्य से पूरी तरह से दूर हैं, नासमझ हैं। या फिर, ये ब्राह्मणी दलों व संगठनों के हाथ की कठपुतली मात्र हैं, जो बसपा के खिलाफ बहुजन समाज को गुमराह कर बुद्ध-अम्बेडकरी आन्दोलन की वाहक बहन जी और बसपा को कमजोर करने के लिए मोती रकम में ब्राह्मणी दलों व संगठनों द्वारा ख़रीदे गए हैं। ये उन्मादी बहुजन युवा ब्राह्मणवाद को मजबूत करने के लिए ब्राह्मणी दलों व संगठनों द्वारा प्राप्त धन से शान्ति, शिक्षा, समृद्धि प्रतीक बहुजन महानायकों के नाम पर ही हिन्दू आतंकी संगठनों के नक्श-ए-कदम पर सेना और आर्मी बनाकर बहुजन समाज को बहुजन आन्दोलन से दूर करने का प्रयास कर रहे हैं। 
    बहुजन महानायकों के नाम पर सेना, आर्मी व अन्य संगठन चलाने वाले, रजिस्टर्ड बामसेफ और अन्य बहुजन व मूलनिवासी नाम के संगठन मान्यवर काशीराम साहेब के नाम की दुहाई देकर बहन जी को कोसते रहते हैं। ऐसे लोगों को मान्यवर साहेब की ये बात जरूर याद रखनी चाहिए कि "जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी"। यही भारत में सामाजिक व्यवस्था के मद्देनज़र लोकतंत्र की सबसे उपयुक्त परिभाषा हैं। हमारे विचार से बसपा के संदर्भ में, "हर किसी को यह बात स्पष्ट रूप से समझ जानी चाहिए कि बहुजन समाज के हितों का संरक्षण और भारत में समतामूलक समाज की स्थापना ही बसपा, बहुजन आंदोलन, बहुजन वैचारिकी और बहन जी का लक्ष्य है।"
दुखद है कि नासमझ लोग गैर-बहुजनों के दमन को ही बहुजन आंदोलन समझते हैं। क्या गौतम बुद्ध, संत शिरोमणि संत रैदास, कबीर दास, गुरु घासीदास, बिरसा मुंडा, पेरियार, फुले, शाहू, बाबासाहेब डॉक्टर अंबेडकर, मान्यवर कांशीराम साहब की वैचारिकी का उद्देश्य गैर-बहुजनों का दमन है? यदि कोई ऐसा सोचता है तो हमारे विचार से वह नासमझ नहीं, बल्कि खुद ब्राह्मणी रोग से बुरी तरह ग्रसित है।
इसलिए किसी भी जाति, धर्म या तबके के खिलाफ किसी भी तरह की अलोकतांत्रिक, असंवैधानिक और अनैतिक टिप्पणी ना तो बहुजन वैचारिकी का हिस्सा है, ना बहुजन आंदोलन का और ना ही इसके वाहक बसपा का। इसलिए यदि भारत में बहुजन वैचारिकी की वाहक बहन कुमारी मायावती जी और बहुजन समाज पार्टी ब्राह्मणी रोग से ग्रसित बहुजनों के प्रति भी किसी भी ब्राह्मणी कृत्य के लिए किसी भी तरह का सख्त एक्शन लेती हैं तो यह न्याय पूर्ण ही है। ब्राह्मणी कृत्य व सोच वाले लोगों के खिलाफ सख्त कारवाही करते हुए भारत महानायिका बहन जी स्पष्ट करती रहीं हैं कि ब्राह्मणी कृत्य व सोच वाले किसी भी इंसान का बहुजन आन्दोलन, बहुजन वैचारिकी और इसके वाहक बसपा में कोई स्थान नहीं हैं।
इसलिए सकल बहुजन समाज के साथ-साथ गैर-बहुजन समाज को ये याद रखना चाहिए कि, दमन करने वाले कभी मसीहा नहीं बन सकते हैं। और, किसी भी समाज का दमन करके कभी समतामूलक समाज की स्थापना नहीं की जा सकती है। बसपा का उद्देश्य बहुजन समाज में जन्मे महानायकों-महनायिकाओं की वैचारिकी पर चलते हुए भारत में सामाजिक परिवर्तन व आर्थिक मुक्ति के लक्ष्य को प्राप्त कर समतामूलक समाज का सृजन करना हैं।
रजनीकान्त इन्द्रा
इतिहास छात्र, इग्नू - नई दिल्ली
१९.०७. २०२०

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