Tuesday, July 21, 2020

बर्बाद करने से पहले बदनाम किया जाता हैं, अब बारी हैं जाटों और सिखों की

बिपुल कुमार देव, भाजपा नेता व त्रिपुरा मुख्यमंत्री, ने अपने एक बयान में कहा है कि सिखों और जाटों में दिमाग कम होता है। इस भाजपा नेता के इस बयान को गंभीरता से लेने की जरूरत है, क्योंकि शातिर मनुवादी आतंकी ताकतें एकाएक आक्रमण नहीं करती हैं। किसी भी समाज, संगठन या संस्था पर आक्रमण कर उसको बर्बाद करने से पहले उसके खिलाफ एक माहौल बनाया जाता हैं। आम लोगों के बीच में दुष्प्रचार के जरिए एक परसेप्शन तैयार किया जाता है। फिर इस माहौल, परसेप्शन के जरिये एक जनमत तैयार किया जाता है। फिर उसे पूरी तरह से जनसर्थन के साथ बर्बाद किया जाता हैं जैसे कि आज एअरपोर्ट, रेलवे, बीएसएनएल, पीएसयू, बहुजन आरक्षण, मुस्लिम समाज, दलित, आदिवासी, पिछड़े समाज आदि को किया जा रहा हैं। 
सर्वविदित हैं कि जब किसी झूठ को बार-बार कहा जाता है तो पब्लिक उसको सच मान लेती है। इसके बाद जब पब्लिक मनुरोगी आतंकी ताकतों की बातों को सच मान लेती है, तब मनुरोगी आतंकी ताकतों द्वारा अपने टारगेटेड संस्था, समाज या संगठन आदि पर आक्रमण करना व उसको तबाह करना आसान हो जाता है। मनुरोगी आतंकी ताक़तों के जरिये हो रहे इस दमन व नरसंहार में पब्लिक भी उन्हीं के साथ खड़ी हो जाती है। ऐसा करने में बहुजन विरोधी मीडिया का भी बहुत बड़ा हाथ होता है, जो मनुरोगी आतंकी ताक़तों के मंसूबे के मुताबिक कार्य करते हुए उनका सहयोग करती हैं। इस पूरे माजरे जो कुछ उदाहरणों द्वारा आसानी से समझा जा सकता हैं।
उदहारण - (१) आरक्षण को पहले बदनाम किया गया और फिर ख़त्म कर दिया गया। 
उदाहरण के तौर पर अगर देखा जाए तो भारत में बहुजन समाज के समुचित स्वप्रतिनिधित्व और सक्रिय भागीदारी (आरक्षण) पर किसी दल, संगठन, सरकारी संस्थाओं एवं न्यायपालिका में बैठी बहुजन विरोधी ताक़तों ने कभी भी अचानक आक्रमण नहीं किया है। इन सब ने सबसे पहले आरक्षण के खिलाफ एक माहौल बनाया है। माहौल को बनाने के लिए बहुजन विरोधी ताकतों द्वारा गांव के पान की दुकान से लेकर के विश्वविद्यालय, सेमिनार, कार्यालयों, विधानसभा और संसद के पटल पर विमर्श छेड़कर आरक्षण के खिलाफ एक माहौल बनाया गया। इसके बाद आरक्षण के विरोध में इतने सारे लेख लिखे गए और इतना सारा दुष्प्रचार किया गया कि भारत का भोला-भाला आम इंसान इनके बहकावे में आकर आरक्षण के खिलाफ लामबंद हो सामंती ताकतों के साथ खड़ा हो गया। इसके पश्चात जब पब्लिक के बीच में आरक्षण के खिलाफ एक फिरका तैयार हो गया, तब इन सामंती ताकतों ने न्यायपालिका में बैठे बहुजन विरोधियों का सहारा लेकर आरक्षण पर सीधा हमला कर दिया। नतीजा यह हुआ कि आरक्षण कागजों में जिंदा जरूर है लेकिन पूरी तरह से निष्प्रभावी हो चुका है। 
उदहारण - (२) दलितों-आदिवासियों को नक्सली करार कर आसानी से देश की सम्पदा को पूँजीपतियों को सौपी जा रहीं हैं।
सदियों से जंगलों व उसके इर्द-गिर्द रहने वाले दलितों-आदिवासियों से उनकी माटी और जंगल पर उनके हक़ को छीनकर जंगलों में धरती की कोख में दफ़न खनिजों को प्राइवेट हाथों में सौप दिया गया। जब दलितों-आदिवासियों ने अपने हक़ की बात की तो दलितों-आदिवासियों को राष्ट्रनिर्माण की राह में बाधा के रूप में प्रचारित किया गया। इसके बाद देश की जनता ने दलितों-आदिवासियों का दुःख-दर्द, उनके हक़ को समझे बगैर मनुवादियों के दुष्प्रचार को सही मान लिया। परिणामस्वरूप, सत्तासीन मनुरोगी ताक़तों ने बड़ी ही आसानी से दलितों-आदिवासियों को नक्सली घोषित कर दिया। नतीजा, कानूनन, मनुवादी ताक़तों को इन दलित-आदिवासियों को मारने, उनकी बच्चियों के साथ बलात्कार करने व जिन्दा दफ़न करने का हक़ मिल गया। इसी दमन के सहारे बड़ी ही आसानी से जंगलों के खनिजों को पूंजीपतियों के हाथों में सौंप दिया। देश में दलितों-आदिवासियों के मानवाधिकारों के लिए कभी भी किसी कोर्ट, मानवाधिकार आयोग, संगठन और सरकार ने न्यायिक इच्छा के साथ जहमत नहीं उठायी। और, ऐसा इसलिए संभव हो सका क्योकि दलितों-आदिवासियों को आज तक शासन-प्रशासन और सत्ता में समुचित स्वप्रतिनिधित्व व सक्रिय भागीदारी नहीं दिया गया। फिलहाल नक्सली करार देश की एक बड़ी आबादी आज कानूनन ब्राह्मणी ताक़तों के शोषण का शिकार हैं। देश की बाकी जनता ने भी सरकार के इस अधिकार को मान्यता दे ही रखी हैं। यदि कभी कोई इन नक्सलियों की समस्याओं को उठता है तो उस पर नक्सल होने का ठप्पा लगाकर देशद्रोही करार कर सलाखों की काल कोठरी में दफ़न कर दिया जाता हैं। और, ये सिलसिला बदस्तूर आज भी जारी हैं। 
उदहारण - (३) मुसलमानों को बदनाम कर आतंकवादी करार कर दिया गया। 
इसी तरह से मुसलमानों के खिलाफ भी उनके आतंकवादी होने का दुष्प्रचार इन्हीं सामंतवादी मनुवादी ताकतों द्वारा अस्सी के दसक में किया गया है। इसकी वजह ये हैं कि भारत की बड़ी आबादी धर्म के अफीम की आदी हैं। इसको धर्म के नाम पर किसी भी भट्टी में झोका जा सकता हैं। धर्म के नाम पर लोग खुद ही मर मिटने को उतारू रहते हैं। जनता की इसी मूर्खता का फायदा धर्म के ठेकेदारों ने उठाया। और, देश में हिन्दू बनाम मुस्लिम का माहौल तैयार किया। इसी कड़ी में मुस्लिमों को अधिकतर मामलों में फर्जी सबूतों के आधार पर पाकिस्तान से जोड़कर पूरे मुस्लिम समाज को आतंकवादी करार कर दिया गया। जबकि यदि भारत में आंकड़ा निकाला जाए तो आतंकवाद से कभी भी उतने लोग नहीं मरे हैं जितने की जातिवादी ताकतों द्वारा बहुजन समाज के लोगों की हत्या की गई हैं, गैंगरेप किया गया है। हिन्दू धर्म के ठेकेदारों ने मुस्लिम समाज को अत्याचारी करार कर आतंकवाद को राष्ट्रिय मुद्दा बनाया गया, इस पर विमर्श चलाया। लेकिन, इस देश में स्वघोषित बुद्धिजीवी उच्चजातीय समाज ने कभी भी जाति और वर्ण व्यवस्था को राष्ट्रिय मुद्दा नहीं बनाया, जाति के उन्मूलन और जातिवादी आतंकवाद को विमर्श में नहीं आने दिया। जबकि जातिवादी आतंकवाद के सामने पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद कुछ भी नहीं हैं। दुनिया जानती हैं कि जाति, जाति पोषक समाज व मनुरोगी लोग भारत के लिए पाकिस्तान से कई गुना ज्यादा खतरनाक हानि पंहुचा चुके हैं।
उदहारण - (४) बहुजनों को बदनाम कर उनकों अयोग्य करार किया जा रहा हैं। 
ठीक इसी तरह से दलित, आदिवासी और पिछड़े वर्ग के छात्रों को यह कहकर बदनाम किया जाता है कि इनके अंदर कार्य दक्षता नहीं है, क्षमता नहीं हैं, टैलेंट नहीं है, मेरिट नहीं है। इस झूठ को बहुजन विरोधी सामंती जातिवादी ताकतों ने इतना प्रचारित और प्रसारित किया हैं कि खुद बहुजन समाज का एक बड़ा तबका यह मानने लगा कि उनमें दक्षता, क्षमता, टैलेंट, मेरिट  की कमी है। और बहुजन समाज के भोले-भले लोगों के इस भोलेपन का फायदा उठाकर ब्राह्मणी ताक़तों ने बहुजन समाज के बच्चों को "अयोग्य (नॉट फ़ाउण्ड सूटेबल)" करार करके उनकी सीटें खाली छोड़ दी जिसको बाद में सवर्ण छात्रों द्वारा भर दिया जाता हैं। इन सबके बावजूद भी बहुजन खुद को अयोग्य मानकर अपनी आदर्श गुलामी के कर्तव्य को पूरी सिद्द्त से निभा रहा हैं।
उदहारण - (५) बीएसएनएल को बदनाम कर बर्बाद किया गया, इसके बाद पूरे टेलीकॉम सेक्टर को पूँजीपतियों को सौप दिया गया। 
इसका दूसरा उदाहरण टेलीकॉम कंपनियों से आप ले सकते हैं। जैसा कि हम सब जानते हैं कि बीएसएनल भारत की सबसे बड़ी दूरसंचार कंपनी है, जो जहां एक तरफ पूरे देश को एक सूत्र में बांधने का काम करती है तो वहीं दूसरी तरफ लाखों लोगों को रोजगार देती है। इन पब्लिक सेक्टर कंपनियों में आरक्षण की वजह से बहुजन समाज का एक बड़ा तबके जुड़ा हुआ हैं। बहुजन समाज के इस तबके को एकाएक सिस्टम से बाहर तो किया नहीं जा सकता हैं, इसलिए बहुजन विरोधी ताक़तों द्वारा पहले बीएसएनएल को बदनाम किया गया। बीएसएनएल को स्पेक्ट्रम विडिंग में भाग लेने से रोका गया ताकि प्राइवेट सेक्टर की टेलीकॉम कंपनियों को बढ़ावा दिया जा सके। यहीं वजह हैं कि प्राइवेट सेक्टर की कम्पनियां जब फोर-जी की सेवा दे रहीं होती हैं तो बीएसएनएल टू-जी और बहुत मुश्किल से थ्री-जी की सर्विस दे पाती हैं। इसके बाद पूरी प्लॉनिंग से बीएसएनल के खिलाफ दुष्प्रचार शुरू किया कि बीएसएनएल के नेटवर्क बहुत खराब है, बार-बार फोन कट जाता है, बीएसएनएल महंगा है, आदि। 
इस तरह के दुष्प्रचार करके बीएसएनएल को बदनाम किया गया। इसके बाद जनता में बीएसएनएल के खिलाफ एक जनमत तैयार हो गया। इसके बाद सत्ताधारी सामंती मनुवादी ताकतों द्वारा बीएसएनल को बर्बाद कर प्राइवेट सेक्टर की टेलीकॉम कंपनियां जैसे कि जियो आदि को बढ़ावा देने का खुलेआम मौका मिल गया। और, आज देखिये कि बीएसएनएल को हाशिये पर धकेल कर बोझ साबित कर दिया गया हैं। जनता ने भी बीएसएनएल को बोझ मान लिया। नतीजा ये हुआ कि सरकारी वेलफेयर ओरियंटेड बीएसएनएल को गर्त में पहुंचाकर उद्योगघरानों को टेलीकॉम इंडस्ट्री पर एकछत्र कब्ज़ा दे दिया गया। इसी षड्यंत्र के तहत आज रेलवे, एअरपोर्ट, हाइवे, टेलीकॉम, बैंक और अन्य सभी पीएसयू को पहले बदनाम कर फिर उनका निजीकरण किया जा रहा हैं। 
गौर करने वाली बात है कि यदि सरकार एकाएक बीएसएनल को बर्बाद करने पर लगती और प्राइवेट सेक्टर को बढ़ावा दे देती तो पब्लिक में विद्रोह हो जाता। इसलिए मनुवादी सामंती ताकतों द्वारा पहले बीएसएनएल के खिलाफ एक माहौल तैयार किया गया, उसके बाद बीएसएनएल को बर्बाद कर जियो आदि को बढ़ावा दे दिया गया। नतीजा, सामंती ताकतों को बढ़ावा देने वाली उद्योग घरानों की प्राइवेट टेलीकॉम कंपनियां जिओ आदि का विरोध करने के बजाए लाखों लोगों को सरकारी रोजगार देने वाली बीएसएनल को ही बोझ समझ मान लिया।
इस तरह से अगर देखा जाए तो दलित, आदिवासी, पिछड़े समाज को बदनाम करने के बाद मुसलमानों को बदनाम किया गया, बीएसएनएल जैसी सरकारी कंपनियों को बदनाम किया गया, और हाशिये पर धकेल कर पूंजीपतियों को टेलीकॉम का मालिक बना दिया गया। इसके बाद अब मनुवादी षड्यंत्र के तहत जाटों और सिखों को बदनाम किया जा रहा है। इसके पीछे एक रहस्य है। स्पष्ट हैं कि जो सिख समाज है वह हिंदू धर्म से पूरी तरह स्वतंत्र एक अलग धर्म है। लेकिन हिंदूवादी ताकते सिख धर्म को हिंदू धर्म का हिस्सा मान करके उनको अपने में समाहित कर सिख धर्म के वजूद को मिटाना चाहती हैं। जिससे कि उनके हिंदूवादी आतंक को बढ़ावा मिल सके। इसलिए अब सिखों और जाटों के खिलाफ अफवाहें फैला कर आम जनता के दिमाग में ये स्थापित किया जा रहा हैं कि जाट और सिख अयोग्य होते हैं। समय बीतने के साथ-साथ आने वाले समय में दलितों, आदिवासियों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों से नफ़रत करने वाली एक भीड़ जब तैयार हो जाएगी। इसके बाद सिखों और जाटों पर हिन्दू आतंकी ताकते उसी तरह से हमले, बलात्कार और अत्याचार करेंगे जैसा कि दलितों, आदिवासियों, पिछड़ों और मुसलमानों पर किया जा रहा है। 
इसलिए देश के सिख और जाट समाज को यह समझने की जरूरत है कि उनको किसी भी अफवाह के चक्कर में ना पड़कर संविधान और लोकतंत्र में अपनी आस्था बनाए रखें। देश के संवैधानिक और लोकतान्त्रिक मूल्यों को मजबूती से स्थापित करने के लिए बहुजन समाज (दलित आदिवासी, पिछड़ों और कन्वर्टेड मॉयनॉरिटीज) के साथ कंधे से कंधा मिलाकर बहुजन विरोधी मनुवादी सनातनी ताकतों के खिलाफ एकजुट होकर उनको सत्ता से बेदखल कर लोकतान्त्रिक तरीके नेस्तनाबूद करने के लिए बहुजन आन्दोलन का हिस्सा बने।
पहले दलित का दमन हुआ, फिर आदिवासियों का, इसके बाद खुद को क्षत्रिय समझने वाले शूद्रों (पिछड़ों) का। इसके बाद मुसलमानों को आतंकवादी घोषित कर दिया गया। इन सबको जाति और धर्म के नाम पर बांटकर एक-दूसरे के प्रति इनके ज़हन में जहर भरा गया। इसलिए जातिवादी ताक़तों ने इनका अलग-अलग सफलतापूर्वक शोषण किया। परन्तु, ताज्जुब वाली बात यह रहीं हैं कि एक-दूसरे के शोषण और उन पर हो रहे अत्याचार के समय ये सब चुप रहें हैं। जाति का जहर इनमे इस कदर भर दिया गया कि दलितों का पिछड़े वर्ग और मुसलमानों ने भी खूब छक कर शोषण किया हैं, और आज भी कर रहे हैं। हिन्दू-मुस्लिम दंगों में खुद पिछड़ा वर्ग बढ़-चढ़कर ऐसे हिस्सा लेता हैं जैसे कि ओलम्पिक खेलने जा रहे हो। मुस्लिम भी कम नहीं हैं। ये भी पिछड़ों को हिन्दू समझकर, दलितों को अछूत व नीच समझ नफ़रत करता हैं। इस प्रकार ये सब एक दूसरे से जाति, धर्म और छुआछूत के कारण नफ़रत करते रहें, और एक दूसरे के शोषण को देख खुश होते रहें।
हालाँकि, मान्यवर काशीराम साहेब के अथक प्रयासों की वजह से आज दलित, आदिवासी, पिछड़ा और मुस्लिम वर्ग अपने शोषक को पहचान चुका हैं। इनमे बहुजन आन्दोलन और वैचारिकी के प्रति जागरूकता आई हैं। इसी का परिणाम हैं आज भारत में इनकी एक राष्ट्रिय राजनैतिक पहचान हैं। इनकी अपनी राष्ट्रिय राजनैतिक दल (बसपा) हैं। 
फिलहाल, बिपुल कुमार देव के बयानों को गंभीरता से लेते हुए जाट और सिख समुदाय को जितनी जल्दी हो सके अपने नरसंहारक शत्रु को पहचान जाय। वैसे ये ऐतिहासिक सत्य हैं कि जाटों ने दलितों और पिछड़ों पर खुद अत्याचार किया। लेकिन यदि जाट बहुजन आन्दोलन जुड़कर संगठित नहीं हुए तो अब इनकी बारी हैं। यदि जाट और सिख खुद को हिन्दू समझते रहें तो आने समय में इन सबकी वही हालत होगी जो दलितों, आदिवासियों, पिछड़ों और मुस्लिमों की हुई हैं। इस लिए जाटों, सिखों दलितों, आदिवासियों, पिछड़ों और मुस्लिमों को नवाज़ देवबंदी साहब ये पंक्तियाँ याद रखनी चाहिए - 
जलते घर को देखने वालों फूस का छप्पर आपका है,
आपके पीछे तेज़ हवा है आगे मुकद्दर आपका है।
उस के क़त्ल पे मैं भी चुप था मेरा नम्बर अब आया,
मेरे क़त्ल पे आप भी चुप है अगला नम्बर आपका है।
रजनीकान्त इन्द्रा
इतिहास छात्र, इग्नू-नई दिल्ली

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