Saturday, July 18, 2020

बहन जी व बहुजन समाज का अपमान करती ब्राह्मणी व बहुजन मीडिया

आज भारत की पत्रकारिता रसातल में पहुंच चुकी है। एक तरफ पत्रकार खुलेआम समाज में ढोंग-पाखण्ड को बढ़ावा देता है, तो दूसरी तरफ अफवाह फ़ैलाने व दंगे भड़काने का कार्य कर रहा हैं। इसके इतर, भारत की पत्रकारिता में गिरावट के स्तर का अंदाज़ा इस बात से भी लगाया जा सकता हैं कि ब्राह्मणी रोग से ग्रसित मीडिया तंत्र सरकार से सवाल पूछने के बजाय विपक्ष और जनता से सवाल पूछ रहा हैं। जनता के मुद्दे को उठाने के बजाय जनता को उनके मूल मुद्दों से भटकाने का घिनौना कार्य कर रहा हैं। आज की ब्राह्मणी मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ होने का दावा करते-करते लोकतंत्र को ही ख़त्म करने में हिन्दू आतंकियों का खुलेआम साथ दे रहीं हैं।

फिलहाल, इन सबसे परे भारतीय पत्रकारिता जगत पर ब्राह्मण-सवर्ण समाज के एकछत्र कब्जे के चलते भारत की पत्रकारिता जगत ने कभी भी हाशिए के लोगों को अपने पात्र-पत्रिकाओं व अखबारों में ना तो सम्मान दिया है, ना ही उनके न्याय के लिए कभी आवाज उठाई है। यही वजह रही है कि बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर, मान्यवर कांशीराम साहब जैसे महानायकों ने शोषित-पीड़ित लोगों तक पहुंचने के लिए अपने-अपने समय में काल और परिस्थिति के अनुसार अलग-अलग पत्र-पत्रिकाओं व अख़बारों का संपादन किया है। 

इस कड़ी में पिछड़े वर्ग के एकमात्र रहनुमा और भारत की लोकप्रिय नेता बहन जी तो अपने कार्यकर्ताओं को ही अपना मीडिया कहती हैं। इसकी खास वजह ये हैं कि पत्र-पत्रिकाएँ हो, अख़बार हो या फिर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, इस सबके तीन ही मुद्दे हैं। एक, ब्राह्मणवाद को मजबूत करना। दो, मुनाफा कमाना। तीन, अपने इन दोनों उद्देश्यों की पूर्ती के लिए राजनैतिक सत्ता पर ब्राह्मणी मानसिकता वाले लोगों को सत्तासीन करना। 

इस प्रकार, मीडिया जनता की आवाज बनने के बजाय मुट्ठीभर ब्राह्मणों-सवर्णों की गुलाम बनकर रह गयी हैं। ऐसे में, मजलूमों के शोषणकर्ताओं की निजी मिलकियत बनी मिडिया से मजलूमों, वंचितों और पिछड़ों के मुद्दों को उठाने की उम्मीद करना बहुजनों के लिए आत्मघाती ही होगा। 

यहीं नहीं, ये लोग अक्सर बहन जी की बातों को तोड़-मरोड़कर पेश करते हुए जनता को गुमराह करने का पूरा प्रयास करते हैं। यहीं वजह हैं बहन जी किसी टेलीविजन चैनल पर अपने प्रवक्ता आदि नहीं भेजती हैं। पार्टी की तरफ से बहन जी का ही बयान आता हैं, वो भी लिखित बयान। कोशिस यहीं होती हैं कि जनता तक सही सन्देश पंहुचें ताकि जनता गुमराह ना हो। यहीं वजह हैं कि अपने लिखित बयानों के साथ-साथ बहन जी को सिर्फ और सिर्फ अपने बुद्ध-फुले-शाहू-अम्बेडकरी मिशन के साथियों पर ही भरोसा हैं। इसलिए बुद्ध-फुले-शाहू-अम्बेडकरी मिशन में मशहूर कहावत हैं कि बहन जी और बसपा के कार्यकर्ता ही बहन जी और बसपा के सच्चे मीडिया हैं।

फिलहाल, मुख मीडिया जगत (मुख से जन्मे समाज की गुलाम मिडिया) ने ना ही बाबा साहब जैसे महानायक को कभी तरजीह दिया है, और ना ही मान्यवर कांशीराम साहब व बहन जी के प्रति कभी सम्मानजनक व्यवहार किया है। इसका ताजा उदहारण अभी भाजपा शासित मध्य प्रदेश के गुना जिले में दलित परिवार पर पुलिस और प्रशासन के अधिकारियों द्वारा किए गए वहशी दरिंदगी के खिलाफ जब भारत में सामाजिक परिवर्तन की महानायिका बहन कुमारी मायावती जी ने सरकार से सवाल किया तो १६ जुलाई २०२० को विधान केसरी ने लिखा कि "गुना में दलित परिवार पर हिंसा मामले में भड़की मायावती"; पंजाब केसरी लिखता हैं कि "गुना दलित पिटाई काण्ड पर भड़की मायावती"; नवभारत टाइम्स लिखता हैं कि "दलित किसान की पिटाई, शिवराज ने राहुल को लपेटा, मायावती दोनों पर भड़की"; दैनिक भास्कर लिखता हैं कि "गुना किसान काण्ड : शिवराज सरकार पर भड़की मायावती", भारत रिपब्लिक वर्ल्ड लिखता हैं कि "गुना की घटना पर भड़की मायावती"; सच न्यूज ने भी लिखा कि "गुना  परिवार पर हिंसा मामले में भड़की मायावती। हमने यहाँ इतने सारे अख़बारों व वेब पोर्टल के चरित्र को बेनक़ाब किया। यदि आप पुराने अख़बारों, पत्र-पत्रिकाओं को खगांले तो ये लिस्ट और भी लंबी हो जाएगी। 

फिलहाल ब्राह्मणी मीडिया तंत्र द्वारा इसके पहले भी बहन जी के संदर्भ में इस तरह की शब्दावली का प्रयोग किया जाता रहा हैं। सच तो यह हैं कि मीडिया जगत में अपमान जनक शब्दों का इज़ाद ही बाबा साहेब, मान्यवर काशीराम साहेब और पिछड़े वर्ग की बुलन्द आवाज़ बहन जी जैसी शख्सियत को अपमानित करने के लिए ही किया गया हैं। क्या आप ने ऐसे अभद्र शब्दों का इस्तेमाल किसी ब्राह्मणी महिला राजनेता के खिलाफ पढ़ा या सुना हैं? 

भारत जानता हैं कि हिंदी पट्टी में भड़कीभड़का जैसे शब्द का इस्तेमाल मवेशियों व अन्य जानवरों के लिए किया जाता है। यहां पर गौर करने वाली बात यह है कि ऐसी शब्दावली का प्रयोग भारत महानायिका बहन कुमारी मायावती जी के लिए किस निगाह से और क्यों किया जा रहा है? क्या इसी तरह की शब्दावली का प्रयोग ब्राह्मण सवर्ण समाज से आने वाले महिला राजनेताओं के लिए भी किया जाता है? स्पष्ट है कि इसका जवाब नकारात्मक है। 

ऐसे में एक शिक्षित व जागरूक इंसान के जहन में ये सवाल लाज़मी हैं कि बहन जी के लिए मीडिया अभद्र शब्दों का प्रयोग क्यों करता रहता हैं? फिलहाल स्पष्ट हैं कि बहन जी के प्रति इस तरह का अपमानजनक शब्दावली का प्रयोग भारतीय मीडिया तंत्र में एकछत्र राज कर रहे वंचित आदिवासी और पिछड़े बहुजन समाज से नफरत करने वाले लोगों की ओछी मानसिकता दर्शाती है।

इससे भी दुखद और शर्मनाक बात यह है कि बहुजन हलचल नाम के यूट्यूब चैनल ने भी बहन जी के लिए अपमानजनक टिप्पणी का प्रयोग किया है। गुना जिले में दलित परिवार पर पुलिस और प्रशासन के अधिकारियों द्वारा किए गए वहशी दरिंदगी के खिलाफ जब भारत में सामाजिक परिवर्तन की महानायिका बहन कुमारी मायावती जी ने सरकार से सवाल किया तो १६ जुलाई २०२० को बहुजन हलचल यूट्यूब चैनल कहता है कि "म.प्र. पुलिस का दलित माँ बेटे पर कहर! MAYAWATI ने उगला BJP कांग्रेस पर जहर"

यहां पर सवाल यह उठता है कि यह बहुजन चैनल खुद को बहुजन हितैषी होने का दावा करता है लेकिन जब बहुजन समाज के ऊपर हो रहे अत्याचार के खिलाफ भारत महानायिका बहन कुमारी मायावती जी भाजपा सरकार से सवाल करती हैं तो इस बहुजन हलचल यूट्यूब चैनल वाले को जहर लगता है। इसका मतलब तो यहीं हैं कि इस बहुजन चैनल को भी आरएसएस-बीजेपी और कांग्रेस से कुछ पारितोषिक मिल गया होगा। इस बहुजन यूट्यूब चैनल का यह बर्ताव बहुजन समाज में पैदा हो चुके बुद्धिहीन स्वघोषित पत्रकारों की मूर्खता व ब्राह्मणी रोग से संक्रमण को व्यक्त करता हैं।

बाबा साहेब, बुद्ध-अम्बेडकरी मिशन और बहुजन मुद्दों और हितों का दावा करने वाले तमाम यूट्यूब चैनल के एंकर बिना किसी अध्ययन के मोबाइल उठाकर पत्रकार बन गए हैं। इन बहुजन यूट्यूबर पत्रकारों को ना तो बाबा साहेब के बारे में कोई खास जानकारी हैं, और ना ही उनके मिशन के बारे में कोई अध्ययन हैं। परिणामस्वरूप, ये बहुजन यूट्यूबर पत्रकार मान्यवर काशीराम साहेब, बहन जी, बामसेफ, डीएस-4 और बसपा को समझ ही नहीं पाए हैं। इसका नतीजा यह हुआ कि अपनी इस मूर्खता व अज्ञानता की वजह से ये बहुजन यूट्यूबर पत्रकार अक्सर बहन जी और बसपा के खिलाफ ही बयानबाजी करते रहते हैं, परिस्थितियों को समझे बगैर बसपा और बहन जी की नीतियों पर ही उंगुली उठाते रहते हैं। 

बहुजन यूट्यूबर पत्रकारों द्वारा ऐसा करने की दूसरी वजह ये हैं कि ये यूट्यूब चैनल इनकी जीविका का साधन हैं, इसके लिए इनकों अधिकतम लाइक्स व कॉमेंट्स चाहिए। बहुजन आंदोलन का नाम लेकर ये बहुजन यूट्यूबर पत्रकार अपने लाइक्स व कॉमेंट्स को बढ़ाने के लिए बहुजन समाज में जन्मे चमचों व गुंडों तक को हीरो बनाकर प्रमोट करने से कोई परहेज नहीं करते हैं। इन ब्राह्मणी चमचों-गुंडों और उनके ब्राह्मणी आकाओं द्वारा इन बहुजन यूट्यूबर पत्रकारों कों दो-चार हजार रूपये मिल जाते हैं। इन दो-चार हजार रुपयों के चक्कर में ये बहुजन यूट्यूबर पत्रकार बहुजन आन्दोलन और इसके नेतृत्व को ब्राह्मणी मीडिया से पहले ही ना सिर्फ बदनाम करना शुरू कर देते हैं बल्कि सफलतापूर्वक भोले-भाले बहुजन युवाओं व अन्य को गुमराह करने में सफल भी हो जाते हैं। 

सर्विदित हैं की बहुजन समाज ये बखूबी समझाता हैं कि ब्राह्मणी मीडिया बहुजन आन्दोलन और बहन जी के विरूद्ध आग ही उगलेगा। परन्तु, यहीं आग जब बहुजन समाज में जन्मे चमचों-गुण्डों और उनके ब्राह्मणी आकाओं से चंद रुपयों के लिए बहुजन यूट्यूबर पत्रकार उगलने लगता हैं तो बहुजन समाज कन्फ्यूज हो जाता हैं। परिणामस्वरूप, ऐसा करने से इन बहुजन यूट्यूबर पत्रकारों को शाम के चिकन-मटन व व्हिस्की की व्यवस्था जरूर हो जाती हैं लेकिन इनके इन हरकतों द्वारा बहुजन आन्दोलन, बहुजन समाज की एकमात्र राष्ट्रीय पार्टी (बसपा) और सकल बहुजन समाज की एकमात्र नेत्री बहन जी के प्रति जनता में संदेह उत्पन्न कर बहुजन समाज को गुमराह हो जाता हैं।ऐसी मूर्खतापूर्ण और ओछी हरकतें करने बावजूद भी ये बहुजन यूट्यूबर पत्रकार कहते हैं कि मिशन ख़त्म हो गया हैं, बसपा ख़त्म हो गयी हैं। 

इन बहुजन यूट्यूबर पत्रकारों की ओछी हरकतों के मद्देनज़र कोई भी जागरूक बहुजन इसी निर्णय पर पहुंचेगा कि ये बहुजन यूट्यूबर पत्रकार ब्राह्मणी मीडिया से भी ज्यादा खतरनाक हैं। क्योंकि बहुजन समाज जानता हैं कि ब्राह्मणी मीडिया उसकी दुश्मन हैं, इसलिए बहुजन उस पर विश्वास नहीं करता हैं। परन्तु, बहुजन यूट्यूबर पत्रकार तो बहुजन समाज में ही जन्मे चमचे हैं जिनकों भोला-भाला बहुजन पहचान नहीं पाता हैं, और गुमराह हो जाता हैं। 

यदि आप बहुजन यूट्यूब चैनल्स का अध्ययन करे तो आप पायेगें कि बहुजनों के बीच में आरएसएस-बीजेपी-आप-कांग्रेस आदि का प्रचार ब्राह्मणी मीडिया से ज्यादा बहुजन यूट्यूब चैनल्स ने किया हैं। इसकी वजह, इनकी मूर्खता, अध्ययन का आभाव,  लाइक्स व कॉमेंट्स की बेपनाह भूख हैं। ये बहुजन यूट्यूबर पत्रकार मान्यवर काशीराम साहेब की ये बात आज तक नहीं समझ पाए हैं कि नकारात्मक प्रचार भी प्रचार होता हैं।
साथ ही यदि आप बहुजन समाज में जन्मे स्वार्थी व ओछे चरित्र के कुछ नमूनों पर गौर करे तो पायेगें कि ब्राह्मणी मानसिकता के चलते ये लोग भी भारत महानायिका का अपमान करने से नहीं चूकते हैं। ओछी मानसिकता के ये बहुजन, खासकर युवा, भारत महानायिका बहन जी को बुआ कहकर सम्बोधित करते हैं। इनकी इन हरकतों की वजह से विरोधी भी बहन जी बुआ कहकर उनका अपमान करने से नहीं चूकते हैं। बहन जी को बुआ कहने वाले ओछी मानसिकता वाले बहुजनों ने क्या कभी सोचा हैं कि हर स्तर पर विरोध के बावजूद भी ब्राह्मण-सवर्ण समाज ने कभी भी बंगाल की दीदी (ममता बनर्जी) को आंटी क्यों नहीं कहा हैं? यदि ब्राह्मण-सवर्ण समाज अपने ब्राह्मण महिला नेता को दीदी के बजाय “आंटी” नहीं कह सकता हैं तो जाहिल बहुजन युवाओं ने बहन जी को बुआ क्यों कहा? लोक महानायिका बहन जी को बुआ कहने वाले जाहिलों को ये कब मालूम होगा कि आपके नेता का अपमान खुद आपके समाज का अपमान हैं। जो बहुजन जाहिल लोग बहुजन आन्दोलन के नेतृत्व बहन जी का अपमान करते हैं उनसे समाज के हित की उम्मीद कैसे कर सकते हो? बहन जी को बुआ कहने वाले वही ओछे लोग हैं जिनके पुरखों ने कभी बाबा साहेब और मान्यवर साहेब का विरोध किया था। ये जाहिल कोई और नहीं कांग्रेस-भाजपा-आप-सपा-कम्युनिस्ट आदी ब्राह्मणी राजनैतिक दलों में दरी बिछाने वाले गाँधी के हरिजन ही हैं। इन हरिजनों से बहुजन आन्दोलन और बुद्ध-फुले-शाहू-अम्बेडकरी मिशन को आज तक सिर्फ और सिर्फ नुक्सान ही हुआ हैं, और आगे भी ये गाँधी के हरिजन नुक्सान ही करेगें। 
कुल मिलाकर महत्वपूर्ण सवाल ये है कि चाहे कोई मीडिया तंत्र से हो, कोई राजनेता हो या फिर कोई अन्य ब्राह्मणी रोग से संक्रमित व्यक्ति हो, वह हमेशा बहुजन समाज की एकमात्र राष्ट्रीय नेता बहन जी के खिलाफ अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल करता रहता है। और, इस देश का बहुजन समाज इन शब्दों का इतना आदी हो चुका है कि उसको इस बात का इल्म ही नहीं है कि ब्राह्मण-सवर्ण मीडिया तंत्र उनके नेता की आवाज उन तक पहुंचा रहा है या फिर उनकी बातों को तोड़ मरोड़ कर उनके सामने पेश करने के साथ-साथ उनके नेता के लिए अभद्र भाषा का प्रयोग करते हुए उनको अपमानित भी कर रहा है।

तमाम बहुजन समाज के हितैषी होने का दावा करने वाले बुद्धिजीवी जो अक्सर फेसबुक और ट्विटर पर ट्रेड चलाते रहते हैं। क्या उन्होंने कभी भारत की एकमात्र राष्ट्रीय नेता बहन कुमारी मायावती जी के लिए जो अपमान जनक शब्दावली का लगातार इस्तेमाल किया जा रहा है, उसके खिलाफ कभी कोई फेसबुक-ट्विटर पर ट्रेंड चलाया है? क्या कभी इन स्वघोषित बुद्धिजीवियों ने मीडिया तंत्र से सवाल किया है? यदि नहीं तो क्यों? ऐसे सोशल मीडया चैम्पियनों की निष्ठा, ईमानदारी और मानवीयता पूरी तरह से संदेहास्पद हैं।

इस सब पर गौर करने के पश्चात् ये बात स्पष्ट हो जाती हैं कि बहुजन समाज में जागरूकता जरूर आई है। लेकिन अपने मुद्दे और अपने नेतृत्व व समाज के मान-सम्मान के संदर्भ में वह जागरूकता आज भी नहीं आ पाई है कि वह ब्राह्मणी तंत्र व लाइक्स व कॉमेंट्स के भूखे बहुजन यूट्यूबर पत्रकारों द्वारा बहुजन आन्दोलन, बहुजन नेतृत्व व बहुजन समाज के अपमान को पहचान सके। फिलहाल ब्राह्मणी मीडिया तंत्र व लाइक्स व कॉमेंट्स के भूखे बहुजन यूट्यूबर पत्रकारों द्वारा बहन जी व बहुजन समाज के लिए  अपमानजनक शब्दों के इस्तेमाल की हम कड़े शब्दों में विरोध करते हुए सकल बहुजन समाज से अपील करते हैं कि वह अपने एकमात्र राष्ट्रीय बहुजन नेत्री व भारत की सर्वप्रिय महानायिका बहन कुमारी मायावती जी के इस अपमान के खिलाफ आवाज बुलंद करें ताकि भविष्य में कोई किसी भी समाज या उसके नेतृत्व के खिलाफ इस तरह की अपमानजनक टिप्पणी करने की जुर्रत ना कर सके।

याद रहें, बहुजन समाज की एकमात्र राष्ट्रिय नेता और बहुजन महानायकों-महनायिकाओं के वैचारिकी की वाहक बहन जी का अपमान सकल बहुजन समाज का अपमान हैं।

रजनीकान्त इन्द्रा

इतिहास छात्र, इग्नू - नई दिल्ली

१८.०७. २०२०

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