Wednesday, July 29, 2020

राजस्थान की सियासी उथल-पुथल मे चमचों की बढ़ती तकलीफ

राजस्थान की सियासी उथल-पुथल मे चमचों की बढ़ती तकलीफ
        राजस्थान विधानसभा चुनाव २०१८ मुताबिक कांग्रेस १०० सीटों साथ बड़ी पार्टी बनकर उभरी, साम्प्रदायिक बीजेपी को राजस्थान की जनता ने ७३ सीटों समेट दिया। बहुजन समाज की एक मात्र पार्टी बसपा ०६ सीटों तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी।
फिलहाल, राजस्थान में सांप्रदायिक ताकतों को सत्ता दूर रखने की उम्मीद से बसपा ने लिखित तौर पर बिना शर्त कांग्रेस को समर्थन देकर सरकार बनवायी, लेकिन कांग्रेस के समय में भी जुल्म कम नहीं हुए। जनता पर हुए जुल्म के खिलाफ बसपा लगातार आवाज़ उठती रहीं। साथ ही, बसपा ने देशव्यापी ०२ अप्रैल की क्रांति के दौरान गिरफ्तार किये गए बेगुनाह बहुजन नवयुवकों के खिलाफ लगे आरोप को रद्द करने की मांग की। बसपा का दबाव कांग्रेस सरकार पर बढ़ता जा रहा था। इसलिए कांग्रेस ने बसपा के विधायकों को खरीद कर अपने आपको बसपा के दबाव से मुक्ति पाने और अपनी खुदमुख्तार सरकार बनाने के लिए बसपा विधायकों को खरीदने के कृत्य को अंजाम दिया। कांग्रेस के इस रवैये के संदर्भ में कर्णाटक के पूर्व मुख्यमंत्री एच डी कुमारस्वामी ने तो स्पष्ट दिया हैं कि "विधायक खरीद-फरोख्त का दूसरा नाम हैं कांग्रेस"।
फिलहाल, बसपा ने समय-समय पर शिकायत करती रहीं लेकिन किसी ने कोई सुनावई नहीं की। बसपा ने इस मसले को लेकर राज्यसभा चुनाव के दौरान चुनाव आयोग में भी अपील की लेकिन अपने अधिकार क्ष्रेत्र से बाहर का मामला बताकर चुनाव आयोग ने भी पल्ला छाड़ लिया। बसपा न्याय से महरूम रहीं। बसपा को मालूम था कि राजनीति में सहीं समय पर ही सही सबक सिखाया जा सकता हैं। इसलिए बसपा ने इन्तजार किया। और, जब २०२० में कांग्रेस के ही कुछ विधायक भाजपा के हाथों बिक गये तो कांग्रेस की सरकार खतरे में आ गयी। बसपा के लिए यही सबसे सहीं समय (जुलाई २०२०) हैं कि कांग्रेस को सबक सिखाया जाय। इसलिए बसपा ने अपने छह विधायकों को व्हिप के जरिये कहा हैं कि वे कांग्रेस के खिलाफ वोट करे। बसपा के व्हिप से कोंग्रेसी खेमे में खलबली मच गयी। और साथ ही, विधायक खरीद-फरोख्त में मसले को बसपा कोर्ट भी जाने की तैयारी कर रहीं हैं।
याद रहे, राजनीतिक लड़ाई में बार-बार कोर्ट जाना उचित नहीं है। राजनीतिक जंग में अपने राजनीतिक प्रतिद्वंदी पर सही समय पर सही वार करना ही उसके साथ सही न्याय है।
बसपा ने यही किया। बसपा के इस न्यायिक फैसले से बहुजन समाज के सबसे बड़े शत्रु बहुजन समाज में जन्मे चमचे, अपनी गुलामी के धर्म का पालन करते हुए अब बसपा को टारगेट कर उसके खिलाफ दुष्प्रचार  कर रहें हैं।
ऐसे गाँधी के हरिजनों से कुछ सवाल तो बनता ही हैं। बहुजन समाज जानना चाहता हैं कि बाबा साहब के विरोधियों (चमचों) को तकलीफ क्यों हो रही है? क्या गुलामी जहन में इस तरह समा चुकी है कि इनको अपनी स्वतंत्र राजनैतिक अस्मिता की पहचान तक नहीं है? बहुजन समाज के चमचों को यह सोचना चाहिए कि जब राजस्थान में बसपा कांग्रेस को समर्थन दे रही थी तो फिर बसपा के विधायकों को तोड़ने की क्या जरूरत थी? ऐसे में कांग्रेस ने तो राजस्थान में सकल बहुजन समाज की अस्मिता बसपा का अस्तित्व ही मिटाने का काम किया है, तो फिर बाबा साहब के विरोधी (चमचे) एक भी कोई ऐसा कारण बताएं कि बसपा कांग्रेस के खिलाफ वोट क्यों ना करें? जब कांग्रेस ने बसपा के 6 विधायकों को तोड़ने का प्रयास किया तो चमचों व दलालों ने कांग्रेस के खिलाफ आवाज क्यों नहीं उठाई? बसपा एक राष्ट्रीय पार्टी है। किसी राष्ट्रीय पार्टी के साथ, वह भी तब जब वह आपका समर्थन कर रही है, तो उस समय उसके विधायकों को तोड़ना क्या जायज है? यदि बहुजन समाज में जन्मे चमचों, राहुल, प्रियंका और सोनिया गांधी ने गहलोत के असंवैधानिक अलोकतांत्रिक और अनैतिक कृत्य का विरोध नहीं किया तो इसका सीधा सा मतलब है कि यह सब इनकी मंशा के अनुरूप इनके ही इशारे पर अशोक गहलोत द्वारा किया गया हैं। प्रियंका गाँधी भी अपने गिरेबान में झांके बगैर बसपा के खिलाफ दुष्प्रचार करते हुए कह रहीं हैं कि बसपा ने भाजपा की मदद के लिए व्हिप जारी किया हैं। प्रियंका गाँधी को खुद से भी सवाल करना चाहिए कि उन्होंने खुद राजस्थान में बसपा के छह विधायकों की खरीद-फरोख्त क्यों की? क्या ये असंवैधानिक, अलोकतांत्रिक और अनैतिक कृत्य प्रियंका और उनकी पार्टी ने क्यों किया? चमचों संग प्रियंका गाँधी को याद रखना चाहिए कि बसपा ने कांग्रेस को बचाए रखने का ठेका नहीं ले रखा है। इसलिए अपने गिरेबान में झांके बगैर चमचों व प्रियंका गाँधी द्वारा बसपा पर कोई टिपण्णी करना या तो मूर्खता हैं, या फिर निहायत धूर्तता। 
बसपा बहुजन समाज की एक राजनीतिक पहचान है, और राजस्थान के मौजूदा हालात को देखते हुए बहुजन समाज की राजनीतिक पहचान व राजस्थान की जनता के विश्वास को बनाए रखना और उसको बचाए रखना ज्यादा जरूरी है। बसपा एक राष्ट्रीय पार्टी है। उसकी अपनी स्वतंत्र विचारधारा है। उसके अपने इस तंत्र नायक हैं, नायिकाएं हैं। और उसकी अपनी स्वतंत्र राजनैतिक रणनीति है जो वह अपनी शर्तों पर देशहित व जनहित के अनुसार निर्णय लेकर अपनी नीतियों को लागू करती है।प्रियंका गाँधी समेत बहुजन समाज में जन्मे चमचों को यह बात मालूम होनी चाहिए कि भारत में सर्व समाज की सर्वप्रिय भारत महानायिका बहन कुमारी मायावती जी ने बहुत पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि बसपा परम पूज्य बाबा साहब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर और मान्यवर कांशी राम साहब के त्याग, तपस्या और उनके आंदोलन की प्रवक्ता है। इसलिए यदि फिर भी चमचे बसपा व बहन जी पर इस तरह की कोई भी नकारात्मक व अनैतिक टिप्पणी करते हैं तो यह उनकी मूर्खता का प्रमाण मात्र होगा।  
प्रियंका गाँधी और चमचों को याद रखना चाहिए कि बहुजन समाज पार्टी गाँधी के हरिजनों व चमचों को खुश करने के लिए नहीं बल्कि बाबा साहब के मिशन को पूरा करने के लिए बनायीं गयी पार्टी हैं। बाबा साहब के विरोधी बहुजनों को क्या यह खबर नहीं है कि बहुजन विरोधी दलों में उनकी पूछ सिर्फ तब तक है जब तक बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर के बताए हुए रास्ते पर चलने वाली बसपा का अपना स्वतंत्र स्टैंड है?
फिलहाल, बसपा के लिए कांग्रेस और बीजेपी में कोई अंतर नहीं है, सत्ता में चाहें भाजपा रहें या कांग्रेस बहुजन हितों की रक्षा नहीं होनी हैं। लेकिन, मौजूदा हालात में कांग्रेस ने राजस्थान में बसपा का अस्तित्व मिटाने का प्रयास किया है। इसलिए कांग्रेस को सबक सिखाना ज्यादा जरूरी है, ताकि कांग्रेस व अन्य सभी दल कभी भी असंवैधानिक, अलोकतांत्रिक और अनैतिक कृत्य करने की हिम्मत ना कर सके।
रजनीकान्त  इन्द्रा (Rajani Kant Indra)
एमएएच (इतिहास), इग्नू-नई दिल्ली

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