Friday, July 24, 2020

अब दुःख नहीं, आश्चर्य होता हैं


अब दुःख नहीं, आश्चर्य होता हैं
जनता भाजपा सरकार को दोष दी रही हैं। प्रधानमंत्री व मुख्यमंत्री संग अन्य मंत्रियों की डिग्रियों पर सवाल उठा रहे हैं। हमारे विचार ये सब अपनी जिम्मेदारियों से भागना हैं। यदि २०१४ से लेकर आज तक के इस आतंकराज पर गौर करें तो हम पाते हैं कि मौजूदा आतंकी सरकार का कोई दोष नहीं हैं। यदि सरकार ने कोई अस्पताल नहीं बनवाया, स्कूल नहीं खुलवाया, सड़के नहीं बनवायी, नोटबंदी,जीएसटी, कोरोना में घोटाला हुआ हैं, हत्या हुई हैं, तो भी इसकी जिम्मेदार सरकार नहीं बल्कि जनता हैं। क्योंकि जनता ने कश्मीर, पाकिस्तान, दलित-मुस्लिम दमन, पूँजीवाद, भक्ति,गाय-गोबर और मंदिर के नाम पर वोट किया हैं, सरकार को चुना हैं तो जनता शिक्षा, स्वस्थ जैसे तमाम मूलभूत जरूरतों की उम्मीद क्यों करती हैं? मान्यवर काशीराम साहब कहते हैं कि "जनता जैसी होती हैं उसको वैसे ही नेता मिलते हैं।" 
यदि आज जंगलराज की सरकार हैं तो इसकी दोषी खुद जनता हैं। बचपन से लेकर आज तक दलितों, आदिवासियों, पिछड़ों एवं मुस्लिम समाज पर लगातार हो रहे अत्याचार, लूटमार, हत्या, बलात्कार, दंगा-फ़साद जैसी घटनाओं को इतनी बार सुन चुके हैं कि अब दुःख होना बंद हो गया है। ज़हन ने मान लिया हैं कि ये सब सामान्य घटनाएँ हैं। इन सब का दोषी कोई राजनेता नहीं, बल्कि जनता खुद हैं।
इसलिए अब दमन,अत्याचार, बलात्कार, लूटमार और हत्या पर ना तो दुःख होता हैं और ना ही आश्चर्य। साथ ही अब देश की जातिवादी मनुरोगी ताकतों के चरित्र पर आश्चर्य नहीं होता है बल्कि आश्चर्य इस बात पर होता है कि बहुजन समाज एकजुट होकर के इन मनुरोगी ताकतों को जड़ से उखाड़ कर अभी तक क्यों फेंक नहीं पाया है? अब आश्चर्य इस बात पर होता है कि देश के बहुजन समाज के पास बुद्ध-रैदास-कबीर-फूले-शाहू-अंबेडकर-बिरसा-कांशीराम और बहनजी जैसे महानायक और महानायिकाएं हैं, अपनी स्वतंत्र बुद्ध-अम्बेडकरी विचारधारा है, अपनी पूँजी, अपने मुद्दों पर खड़ा अपना संगठन हैं, और अपनी बहुजन अस्मिता है, फिर भी इस देश का बहुजन समाज अपनी अस्मिता को पोषण देने के बजाय बहुजन विरोधी ताकतों को लगातार सींच क्यों रहा है। बहुजन समाज अपने अत्याचारियों को मजबूत करने में लगा हुआ है, ये आश्चर्य हैं। 
बहुजन समाज की तमाम सामाजिक राजनीतिक आर्थिक और शैक्षणिक बीमारियों से बहुजनों को अवगत कराते हुए उनके लिए अवसर के सारे दरवाजे खोलने वाली उसकी चाबी बाबा साहब ने बहुजनों हाथों में दे दी है, लेकिन बहुजन समाज इस चाबी का इस्तेमाल कर अपने लिए अवसर के दरवाजे खोलने के बजाय चमचागिरी में लगा हुआ हैं। मान्यवर साहेब व बहन जी ने जिस कांग्रेस व भाजपा को सांपनाथ और नागनाथ कहा हैं पढ़े-लिखे लोग उसकी चमचागिरी कर रहे हैं, ये सबसे बड़ा अचम्भा हैं। बहुजन समाज के पास आज बहन कुमारी मायावती जी के रूप में एक सशक्त और उम्दा नेतृत्व है, बहुजन समाज पार्टी जैसा एक राष्ट्रीय राजनैतिक पार्टी है, इसके बावजूद बहुजन समाज नीले झंडे के नीचे एकत्रित होकर अपनी हुकूमत स्थापित करने में असफल हो रहा है, ये हैं आश्चर्य का विषय। बहुजन समाज की नई-नवेली पार्टियां और रजिस्टर्ड संगठन अपने शोषक से लड़ने के बजाय बसपा से लड़ रहे हैं, ये हैं आश्चर्य की बात। 
इसलिए किसी को भी मौजूदा आतंकराज पर ना तो दुखी होना चाहिए और ना ही आश्चर्य करना चाहिए। लोगों ने जैसी सरकार चुनी हैं उनके साथ वैसा ही बर्ताव हो रहा हैं। यदि चाहिए, ऐसी सरकार चुनिए जिसका शासन-प्रशासन संविधान सम्मत व बेहतरीन रहा हो। हमारे विचार से किसी भी बात पर दुख प्रकट करने और शोक प्रकट करने से समस्या का समाधान नहीं होगा। यदि लोग न्याय चाहते हैं, यदि लोग चुश्त-दुरुश्त शासन चाहते हैं, मूलभूत सुविधाएँ चाहते हो, तो आप एक ऐसे पार्टी को सत्ता दीजिए जो देश के सबसे निचले तबके की बात करता हो, जो संविधान सम्मत शासन दिया हो, जो देश के बहुजनों का बुद्ध-अम्बेडकरी वैचारिकी पर आधारित अपना राजनैतिक दल हो। 
फिलहाल, बहुजन समाज जितनी जल्दी अपनी अस्मिता को स्थापित कर शासक जमात में शुमार हो जाएगा उतनी ही जल्दी उसको अत्याचारों से मुक्ति मिल जाएगी। यहां पर राजनीति के अलावा बहुजन समाज को चाहिए कि वह बाबा साहब द्वारा बताए गए रास्ते पर चलते हुए अपनी जीवनशैली में बड़ा बदलाव करें। मतलब कि अपनी जीवन शैली से सारे ब्राह्मणरीति-रिवाजों, तीज त्योहारों, ब्राह्मणी रहन-सहन आदि सब को दरकिनार करते हुए अपनी स्वतंत्र सामाजिक अस्मिता को स्थापित कर अपने संस्कृति का पोषित करें, राजनीति के साथ-साथ अपनी स्वतंत्र सामाजिक-सांस्कृतिक और आर्थिक अस्मिता को स्थापित करे। इसी में इस देश की भलाई है।
रजनीकान्त इन्द्रा
इतिहास छात्र, इग्नू - नई दिल्ली

No comments:

Post a Comment