Thursday, April 2, 2020

नाज़ीवाद-मनुवाद के तांडव से गुजरता भारत

नाज़ीवाद-मनुवाद के तांडव से गुजरता भारत
सर्वविदित हैं कि देश कोरोना की महामारी से गुजर हैं। इस समय हालत बहुत ही प्रतिकूल हैं। सरकार ने हेल्थ एमरजेंसी घोषित कर रखा हैं। यदि सरकार सही समय पर बुद्धिमानी भरा कदम उठाती तो ऐसी हालत से बचा जा सकता हैं। कोरोना की खबरे लगातार जनवरी से ही सुर्ख़ियों में बनी रहीं। यदि सरकार विदेशों से आने वाले लोगों पर कड़ी निगाह रखती तो शायद अमीरों द्वारा आयातित इस बीमारी की वजह से देश की लाचार जनता को शिकार नहीं बनना पड़ता।

इस आपातकाल ने सरकार और इसकी सारी नीतियों संग इसके विकास के दावे को पूरी से नंगा कर दिया हैं। आज देश २०१४ से भी बदत्तर कइयों गुना बदतर स्थिति से गुजार रहा हैं। नोबल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री अभिजीत बनर्जी और विश्वविख्यात समाजशात्री प्रो विवेक कुमार समेत दुनिया नई विभिन्न एजेंसियों ने भारत की मौजूदा स्थिति और सरकार की नीतियों के सन्दर्भ में लगातार सरकार को सचेत करते रहें हैं। लेकिन सरकार की मनुवादी नीतियों के चलते आज भारत मौत के मुँह में खड़ा हैं। 

प्रोफेसर विवेक कुमार अपने फेसबुक पोस्ट पर सरकार से सवाल करते हुए लिखते हैं कि 21 दिनों के लॉक डाउन की सबसे बड़ी चुनौती होगी कि सरकार किस तरह दिल्ली की 750 मलिन बस्तियों में रह रहे लगभग 3 लाख 50 ह्जार परिवार या लगभग 20 लाख लोगो को और मुंबई की मलिन बस्तियों के 52 लाख लोगो को रोजआना की ज़रूरी वस्तुओं और ख़ान-पान की व्यवस्था करा पाती है या नही? आनन्-फानन में लगाए गए जनता कर्फ्यू के संदर्भ में प्रो विवेक सर कहते हैं कि जनता कर्फ़्यू के दिन दिहाड़ी मजदूरों का क्या होगा? क्या उनको दो जून की रोटी मिलेगी? क्या किसी ने सोचा? अगर नही तो क्यों? निदा फ़ाज़ली ने अपने शेर में इसकी पड़ताल की है---
सब दिन अल्लाह के क्या मंगल क्या पीर
जिस दिन सोए देर तक भूखा रहे फकीर

 मौजूदा सरकार की मनुवादी और क्रोनी कैपिटलिज़्म की नीतियों के कारण आज देश की अर्थव्यवस्था रसातल में पहुँच चुकी हैं, लेकिन भारत के उद्योगघरानों के दिन दूनी रात चौगुनी मजबूत हुई हैं। राज्यसभा के सांसद राकेश सिन्हा ने क्रोनी कैप्टलिज़्म को कानूनी जामा पहनाने के लिए ही सदन में संविधान की प्रश्तावना से "समाजवाद" शब्द को हटाने के लिए मोशन भी मूव कर दिया हैं। ऐसे में ये स्पष्ट हैं कि देश की बहुजन समाज के प्रति सरकार अपने आपको जिम्मेदार और जबाबदेह नहीं मानती हैं, और ना ही देश की ८५% आबादी का उनके लिए कोई मायने हैं। 

कोरोना आपातकाल के इस दौर में पूरा भारत पंगु हो गया हैं। जगह-जगह खाकी का खौफ हैं। अदालते भी अपने अधिकारीयों-कर्मचारियों के स्वास्थ को ध्यान में रखते हुए बंद पड़ी हैं। मेडिकल सुविधाएं उपलब्ध ना होने की वजह से सरकारी स्वस्थ कर्मी भी अपनी ड्यूटी पूरी तरह से नहीं कर पा रहें हैं। पूरे भारत में हेल्थ एमरजेंसी की बावजूद अयोध्या में राम मन्दिर का शिलान्यास किया गया, लोग भीड़ में इकट्ठा होकर मंदिरों में भजाम कीर्तन करते हुए पाए जा रहे हैं। हालाँकि कि पुलिस अलग-अलग घटनाओं को ट्विटर पर रिपोर्ट करने पर सज्ञान लेने का दवा कर रहीं हैं। लेकिन पुलिस के चरित्र के चलते हकीकत में संदेह लाज़मी हैं। कुछ जगह पर पुलिस लोगों को खाना बांटते हुए फोटो शेयर जरूर कर रहीं हैं। लेकिन जिस तरह से उत्तर प्रदेश पुलिस के ट्विटर एकाउंट से जानकारी मिली हैं उसे देखकर यहीं लगता हैं कि ये फोटो खींचने के लिए ही खाना बाँट रहें हैं। 

लोग अपने दैनिक आवश्यता की चीजों को लेने के लिए बहार निकलने से दर रहीं हैं क्योकि बड़े ही असंवेदनशील तरीके से पुलिस आम लोगों पर लाठियां भांज रहीं हैं। भारत समाज टीवी न्यूज़ चैनल से मिली जानकारी के अनुसार लखीमपुर में एक मजदूर युवक ने पुलिस की मार से तंग आकर आत्महत्या कर ली। ये युवक पुलिस से कहता रहा है कि उसकी कोरोना की जाँच करायी जाय लेकिन पुलिस उसको टॉर्चर करती रहीं हैं। ये कोई इकलौती घटना नहीं हैं। इस हेल्थ एमरजेंसी के दौरान ऐसी तमाम घटनाये सामने आ रहीं हैं। तेजस्वी यादव ने अपने ट्विटर पर एक वीडियों शेयर किया जिसमे पुलिस मजदूरों के साथ मार-पीट, गली-गलौज करती नजर आ रहीं हैं। 

अमानवीयता इस कदर आगे हाबी हो चुकी हैं कि उत्तर प्रदेश सरकार ने मजबूर लाचार, भूखे, बदहाल दिहाड़ी मजदूरों पर केमिकल की बारिश करवाई गयी हैं। उनके साथ ऐसा व्यवहार किया गया जैसे वो जानवर हो। रायबरेली के महाखेड़ा में लोग प्राइमरी स्कूल में कैद किये गए हैं जहाँ ना तो उनकों खाने की सुविधा हैं, ना सोने की। वे वीडियों को वॉयरल करके आपने आवाज को हुकूमत तक पहुँचाने का असफल प्रयास करते रहें। कानपुर के एक अस्पताल से एक वीडियों जारी हुआ हैं जिसमे एक युवक शायद कोरोना से ही पीड़ित है वो अस्पताल के गेट पर लोट रहा हैं लेकिन अस्पताल के लोग इतने असंवेदनशील हो चुके हैं कि किसी से कोई ध्यान ही नहीं दिया। ये घटनाये नहीं हैं बल्कि देश के कोने-कोने खासकर उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, राजस्थान, कर्णाटक आदि प्रान्तों में हालत अमानवीय हो चुका हैं। दिल्ली के बस अड्डे पर हजारों की तादात सरकार को दुनिया के सामने पूरी तरह से नग्न क्र चूका हैं। सरकार-प्रशासन और पुलिस अमानवीयता की हद को कांग्रेस-उत्तर प्रदेश, प्रियंका गाँधी, एनी और एबीपी न्यूज के ट्विटर एकाउंट को टैग करते हुए सचिन चौधरी, कांग्रेस, अपने ट्विटर पर लिखते हैं कि "मुरादाबाद में सड़क पर लोगों की मदद करते हुए मुझे एसएसपी अमित पाठक ने गिरफ्तार किया, एसएसपी का कहना हैं कि किसी की मदद मत करों। सरकार का आदेश हैं कि जो मर रहा हैं मरने दो। भाजपा सडकों पर लोगों को मरना चाहती हैं? क्या किसी की मदद करना भी अपराध हैं।" 

          आज इस आपातकाल में यदि सामाजिक ढांचे को ध्यान रखकर विश्लेषण किया जाय तो कोई भी बड़ी सरलता से समझ सकता हैं कि जितने सवर्ण हैं वे सब पूरी तरह से महफूज हैं। इस दौर में जो पीड़ित हैं, शोषित हैं जिसकी ना तो सरकार को कोई फ़िक्र हैं और ना ही जरूरत। सडकों पर पैदल चलते हुए जो लोग अपने घर पहुंचने की आस लेकर लाचार हालत में सडकों पर दिखाई दे रहें हैं, वे सब आपको बहुजन समाज के ही मिलेगें। सडकों पर पैदल चलकर मरने वालों की सख्या ३० पार कर चुकी हैं, ये मरने वाले कोई और नहीं बल्कि पिछड़े, दलित, आदिवासी और अल्पसंख्यक समाज के ही हैं। जिनको भोजन बांटकर फोटो खिचाई जा रहीं हैं वे गरीब बहुजन समाज के ही हैं। सड़क किनारे इस अप्रैल की कड़ी धुप में सडकों पर छुपकर रहने को मजबूर दिहाड़ी मजबूर, रिक्शे वाले वाले सवर्ण नहीं बल्कि बहुजन ही हैं। इस महामारी में मरने वाले, पीड़ित, शोषित सबके सब आपको बहुजन समाज के ही लोग मिलेंगे।  शहरों से अपने गांव लौट रहे दिहाड़ी मजदूरो,, जो कि नीची जातियों से हैं, सवर्ण फिजिकल डिस्टंटिंग के नाम पर बिना किसी सुविधा के गांव के बाहर रोककर प्रताड़ित कर रहे हैं। पुलिस-प्रशासन भी इनकी सुध नहीं ले रहा हैं। ये लोग मरने को मजबूर को हैं। 

इस पूरे प्रकरण को समग्रता से देखने पर पता चलते हैं कि शासन-प्रशासन और फोटो खिचाने वाले स्वघोषित समाज सेवक सब के सब ब्राह्मण-सवर्ण समाज के हैं, मजबूर लाचार लोग देश की पिछड़ी, दलित, आदिवासी और अल्पसंख्यक समुदाय के हैं। कोरोना की मार से बाद में लेकिन जातिगत भेदभाव से ये लाचार निचली जाति के लोग जरूर मर जायेगें। पूरे कोरोना के दौरान जातिवाद स्पष्ट रूप से दिखाई ही नहीं पड़ती हैं बल्कि इसी के तहत शासन-प्रशासन कार्य कर रहें हैं। ऐसे में इन सब दिहाड़ी मजदूर, रिक्शा चालक, सफाई कर्मी आदि के पास मौत के सिवा और कोई विकल्प नहीं हैं। कोरोना का तो हम नहीं कह सकते हैं लेकिन इस जातिवादी नीतियों के चलते ये सब जरूर मर जायेगें।  इस आपातकाल में यदि ई वि रामास्वामी नायकर पेरियार द्वारा लिखित और ललई यादव द्वारा अनुवादित सच्ची रामायण की एक लाइन भी सोशल मीडियन पर पोस्ट कर दीजिये तो उत्तर प्रदेश पुलिस तुरंत संज्ञान ले रहीं हैं लेकिन आम लोगों (आपातकाल से पीड़ित बहुजन) की समस्याओं को नजरअंदाज कर रहीं हैं। 

सरकार की मनुवादी नीतियों के चलते आज भारत का लोकतंत्र कराह रहा हैं। संवेदनशीलता मर चुकी हैं। लोगों को कोरोना से बचने के लिए लोगों पर जुल्म जायज करार कर दिया गया हैं। यदि आप पोलिस द्वारा शोषण की बात शासन-प्रशासन तक पहुँचाना भी चाहें तो आप नहीं पंहुचा सकते हैं। इस समय भारत फांसीवाद/नाजीवाद के तांडव से गुजर रहा हैं। देश को मालूम होना चाहिए कि जब आपके प्राण-रक्षा की दुहाई देकर आपका गला रेत दिया जाय तो इसे ही तानाशाही/फासीवादी/नाजीवाद कहते हैं।

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