Friday, April 24, 2020

बुद्धिज़्म - परिमिता का सिद्धांत

बुद्ध वंदना
नमो तस्स भगवतो अरहतो सम्मासम्बुद्धस्स
नमो तस्स भगवतो अरहतो सम्मासम्बुद्धस्स
नमो तस्स भगवतो अरहतो सम्मासम्बुद्धस्स
त्रिशरणं 
बुद्धं शरणं गच्छामि
धम्मं शरणं गच्छामि
संघं शरणं गच्छामि
पंचशीलं 
पाणातिपाता वेरमणी सिख्खापदं समादियामि
अदिन्नादाना वेरमणी सिख्खापदं समादियामि
कामेसुमिथ्याचारा वेरमणी  सिख्खापदं समादियामि
मुसावादा वेरमणी सिख्खापदं समादियामि
सुरामेरयमज्जपमादट्ठाना वेरमणी सिख्खापदं समादियामि
साधु, साधु, साधु
नवीन सिद्धांत का चौथा भाग परिमिता का सिद्धांत है। परिमिता का सिद्धांत एक व्यक्ति के दैनिक जीवन में दस गुणों का आचरण करने के लिए प्रेरित करता है। वे दस गुण इस प्रकार हैं।
(1) पन्न, (2) शील, (3) नेक्खम, (4) दान, (5) वीर्य, (6) खांति (शांति) , (7) सच्च, (8) अधित्थान, (9) मेत्त और (10) उपेक्खा।
पन्न या बुद्धि वह प्रकाश है, जो अविद्या, मोह या अज्ञान के अंधकार को हटाता है। पन्न के लिए यह अपेक्षित है कि व्यक्ति अपने से अधिक बुद्धिमान व्यक्ति से पूछकर अपनी सभी शंकाओं का समाधान कर ले, बुद्धिमान लोगों से संबंध रखे और विभिन्न कलाओं और विज्ञान का अर्जन करे, जो उसकी बुद्धि विकसित होने मे सहायक हों।
शील नैतिक मनोवृत्ति अर्थात बुरा न करने और अच्छा करने की मनोवृत्ति, गलत काम करने पर लज्जित होना है। दंड के भय से बुरा काम न करना शील है। शील का अर्थ है, गलत काम करने का भय।
नेक्खम संसार के सुखों का परित्याग है।
दान का अर्थ अपनी संपत्ति, रक्त तथा अंग का उसके बदले में किसी चीज की आशा किए बिना, दूसरों के हित व भलाई के लिए अपने जीवन तक को भी उत्सर्ग करना है।
वीर्य का अर्थ है, सम्यक प्रयास। आपने जो कार्य करने का निश्चय कर लिया है, उसे पूरी शक्ति से कभी भी पीछे मुड़कर देखे बिना करना है।
खांति (शांति) का अभिप्राय सहिष्णुता है। इसका सार है कि घृणा का मुकाबला घृणा से नहीं करना चाहिए, क्योंकि घृणा, घृणा से शांत नहीं होती। इसे केवल सहिष्णुता द्वारा ही शांत किया जाता है।
सच्च (सत्य) सच्चाई है। बुद्ध बनने का आकांक्षी कभी भी झूठ नहीं बोलता। उसका वचन सत्य होता है। सत्य के अलावा कुछ नहीं होता।
अधित्थान अपने लक्ष्य तक पहुंचने के दृढ़ संकल्प को कहते हैं।
मेत्त (मैत्री) सभी प्राणियों के प्रति सहानुभूति की भावना है, चाहे कोई शत्रु हो या मित्र, पशु हो या मनुष्य, सभी के प्रति होती है।
उपेक्खा अनासक्ति है, जो उदासीनता से भिन्न होती है। यह मन की वह अवस्था है, जिसमें न तो किसी वस्तु के प्रति रुचि होती है, परिणाम से विचलित व अनुत्तेजित हुए बिना उसकी खोज व प्राप्ति में लगे रहना ही उपेक्खा है।
प्रत्येक व्यक्ति को चाहिए कि वह इन गुणों को अपनी पूर्ण सामर्थ्य के साथ अपने व्यवहार में अपनाए। इन पर आचरण करे। यही कारण है कि इन्हें परिमिता (पूर्णता की स्थिति) कहा जाता है। यही वह सिद्धांत है, जिसे बुद्ध ने संसार में दुःख तथा क्लेश की समाप्ति के लिए अपने बोध व ज्ञान के परिणामस्वरूप प्रतिपादित किया है।
स्पष्ट है कि बुद्ध ने जो साधन अपनाए, वे स्वेच्छापूर्वक अनुसरण करके मनुष्य की नैतिक मनोवृत्ति को परिवर्तित करने के लिए थे।
(यह बाबासाहेब अम्बेडकर द्वारा रचित किताब 'बुद्ध अथवा कार्ल मार्क्स' से लिया गया है)

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