Sunday, March 29, 2020

कोरोना महामारी में विश्वास को चुकी सरकार और बदतर जीवन जीने को मजबूर जनता

कोरोना महामारी में विश्वास को चुकी सरकार और बदतर जीवन जीने को मजबूर जनता
दुनिया कोरोना कोविद-१९ वॉयरस की महामारी से गुजर रहीं हैं। भारत में भी ये अमीरों द्वारा आयातित बीमरी गरीबों को मौत के मुँह में लेकर खड़ा कर दिया हैं। विदेशों में पढ़ रहे अमीर घरों के छात्रों को सरकार हवाई जहाज से देश में वापस ला रहीं हैं लेकिन देश के विभिन्न शहरों में पढ़ रहें गरीब छात्रों पर सरकार लाठियां भाँज रहीं हैं। 

जिस तरह से लोग १९४७ में सिर पर बोझा लादे पाकिस्तानियों के खौफ में परिवार समेत छुपाते-छुपाते अपने लिए सुरक्षित जगह ढूढ़ रहें थे, ठीक उसी तरह से आज २०२० में भारतीय जनता अपने ही देश में अपने ही पुलिस कर्मियों और सरकार के खौफ में छुपते-छुपाते नंगे पैर बिना भोजन-पानी खेतों, जंगलों आदि से होकर अपने घर की तरफ जाने को मजबूर हो चुके हैं। 

जिस तरह से बच्चे १९४७ के दौरान भूख से बिलखते हुए खौफ में पैदल चलते जा रहे थे ठीक उसी तरह से आज २०२० में भी बच्चे भूख से बिलख रहें हैं। बच्चे का वीडियों वायरल हो रहा हैं। बच्चे बता रहें हैं कि किस तरह से उनकों चार-चार से अन्न का एक दाना तक नहीं मिला। उनके परिवार वाले जब राशन के लिए निकलते हैं तो किस तरह बेरहमी से पुलिस वाले पीटते हैं। किस तरह से लोग अपने ही देश के बड़े-बड़े शहरों में या तो पूरी तरह से कैद हो चुके हैं या फिर छुपाते-छुपाते अपने जान की खैर मानते हुए एक एक कदम अपने घर की खौफ में बढ़ा रहें हैं।

कोरोना की इस महामारी में लॉक्ड डाउन करना गलत नहीं हैं लेकिन इस कार्य को पूरी तैयारी के साथ करना चाहिए था। अब कोई ये दलील दे कि सरकार को समय नहीं मिला तो ऐसे भक्तों (मानसिक रोगियों) को समझाना होगा कि कोरोना जैसी महामारी से देश व विदेश के विशेषज्ञ शुरू से ही सरकार को चेतावनी  थे। देश के बड़ी विपक्षी राजनैतिक पार्टियाँ भी लगातार सरकार को आगाह कर रहीं थी। ऐसे में यदि सरकार यदि समय रहते तैयारी करती तो इस महामारी को हराना भारत के लिए बहुत आसान था। यदि सरकार एअरपोर्ट पर सख्ती बरतती तो कोरोना को काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता हैं। दैनिक भास्कर (२८.०३.२०२० पटना) लिखता हैं की १८ जनवरी से २३ मार्च तक "विदेश से आए १५ लाख लोगों पर नजर नहीं रखी, इससे खतरा बढ़ा।" एम्स के पूर्व निदेशक डॉ एमसी मिश्रा कहते हैं कि "सिस्टम की घोर लापरवाही की कीमत चुकानी पड़ेगी। भारत में फ़ास्ट डायग्नोस्टिक किट नहीं हैं। इससे ३० मिनट में रिपोर्ट मिल जाएगी। उसके बाद संक्रमितों का इलाज किया जा सकता हैं। वॉयरस फ़ैल चुका हैं। ऐसे में जाँच बेहद जरूरी हैं"। 

यदि सरकार विधायकों की खरीद-फरोख्त और मन्दिर-निर्माण आदि कार्यों से फुरसत निकलती तो देश को अमीरों द्वारा भारत में आयातित कोरोना जैसी महामारी से देश की गरीब लाचार दिहाड़ी मजदूरी करने वाली जनता को बचाया जा सकता था। लेकिन दुखद हैं कि सरकार ने अपनी पूँजीवादी मानसिकता को जमीन पर उतारने के चक्कर में पूरे देश को कोरोना जैसी महामारी के मुँह में झोक दिया। 

सत्तारूढ़ भाजपा के संघी राकेश सिन्हा ने संविधान की प्रश्तावना से "समाजवाद" शब्द हटाने के लिए मूव किये गए मोशन से यह समझा जा सकता हैं कि सकरार किस कदर अपने उद्योग घरानों की फरमाइस को पूरी करने के लिए कटिबद्ध हैं। यदि इनकों जनता की परवाह होती तो ये समाजवाद शब्द को हटाने की बात ना करते। यदि इनको देश की और देश की गरीब लाचार और भुखमरी में जी रहीं जनता की परवाह होती तो ये सरकारी उपक्रमों का निजीकरण करने के बजाय निजीक्षेत्र में देश के दलित-वंचित-पिछड़े समाज के समुचित स्वप्रतिनिधित्व व सक्रिय भागीदारी के संवैधानिक व लोकतान्त्रिक अधिकार को लागू करते। 

यदि इस सरकार को देश, जनता, संविधान, लोकतांत्रिक व संवैधानिक मूल्यों की परवाह होती तो ये सरकार निजीकरण करने के बजाय शिक्षा और स्वस्थ जैसी मूलभूत क्षेत्रों का राष्ट्रीकरण करती। लेकिन इस साकार ने ऐसा कुछ भी नहीं किया। क्यों, क्योकि ये सरकार चंद पूँजीपतियों और मुट्ठीभर ब्राह्मणो-सवर्णों के लिए कार्य कर रहीं हैं। इसलिए देश की ८५% से अधिक जनता की कोई परवाह नहीं हैं। इस लॉक्ड डाउन में यदि कोई मौत के मुँह में खड़ा हैं तो वह ब्राह्मण-सवर्ण नहीं हैं, बल्कि देश का दलित-आदिवासी-पिछड़ा वर्ग हैं। इसलिए सरकार सिर्फ अपने मन की बात करती हैं, उसको देश के ८५% से अधिक आबादी वाले बहुजन समाज के मन की पीड़ा सुननी ही नहीं हैं। 

आज राकेश सिन्हा जैसे संघी संविधान से समाजवाद जैसे शब्द हटाने के लिए पुरजोर पैरवी कर रहे हैं। ये देश में कैपिटलिज़्म नहीं, बल्कि क्रोनी कैपिटलिज़्म लाना चाहते हैं। ऐसे में क्या संघी राकेश सिन्हा या फिर सरकार ये जबाब देगी कि देश की दौलत से निर्मित सरकारी मेडिकल कालेजों से पढ़कर बड़े-बड़े निजी अस्पताल खोलकर देश की ग़रीब जनता को लूटने वाले निजी अस्पतालों के डाक्टर अपनी क्लिनिक बंद कर फरार क्यों हो हैं? जब देश हेल्थ एमरजेंसी से गुजर रहा हैं तो ये लोग देश के साथ क्यों नहीं खड़े हैं? निजीकरण की पैरवी और राष्ट्रीकरण की मुखालफत करने वाले क्या इस बात पर प्रकाश डालेगें कि जब देश आपातकाल से गुजर रहा हैं तो कोरोना की जाँच के लिए रूपये ५००० या फिर इससे अधिक क्यों उसूला जा रहा हैं? 

क्या देशभक्ति का प्रमाण मांगने वाले इस बात पर गौर करेगें कि इस आपातकाल में रूपये १५-२० तक के मास्क को रूपये १५० में बेचने वाले किस जाति के लोग हैं? क्या आरक्षण का विरोध करने वाले लोग ये बताने का प्रयास करेगें कि आज इस महामारी में साफ़-सफाई का जिम्मा थामे लोगों के आरक्षण का विरोध क्यों जाता हैं। क्या ये बताने की जहमत उठायेगें कि सदियों से स्वच्छता का मिशन चलाकर भारत की माठी को स्वच्छ बनाने वाले दलितों को ठेके पर क्यों रखा गया हैं? 

क्या सफाई का सबसे महत्वपूर्ण कार्य वाले दलित समाज को सकरारी नौकरी नहीं मिलनी चाहिए? क्या देश में अमीरों द्वारा फैलाये गए कचरे को सुबह-सुबह उठकर साफ़ करने दलित समाज को मुफ्त स्वस्थ सेवा, जीवनबीमा और उनके काम के खतरे को मद्देनजर उनकों न्यायोचित वेतन नहीं मिलना चाहिए? फिलहाल, इसका जबाब संवैधानिक व लोकतांत्रिक मूल्यों को समझने और मानवीयता से ओत-प्रोत हुकूमत व लोग ही दे सकते हैं, जातिवाद के पोषक और देश की ८५% जनता के शोषक कतई नहीं।  

जनता के पैसे से उद्योग घरानों का घाटा तो पूरा कर दिया जाता हैं लेकिन क्या कभी उद्योग घरानों के मुनाफे से देश हित में कोई कार्य किया जाता हैं। यदि घाटे के दौरान जनता के पैसे से उनकी मदद की जा सकती हैं तो देश व जनता के हिट में, खासकर कोरोना जैसी महामारी के दौर में, इन उद्योग घरानों से वसूली क्यों नहीं की जा रहीं हैं। फ़िलहाल, क्रोनी कैपिटलिज़्म के पैरोकारों से जनहित की बात सोचना भी गुनाह हैं। 

कोरोना के चलते बुद्धिहीन तरीके से लॉक्ड डाउन के कारण बनारस के कोइरीपुर में दलित (मुसहर) घास खाने को मजबूर हैं। पत्नी के पैर में फ्रैक्चर के चलते पति अपनी पत्नी को कंधे पर उठाकर अहमदावाद से बनासकांठा के लिए २५७ किमी दूरी तय करने को मजबूर। इटली के बुद्धिजीवी वर्ग भक्तों (मानसिक रोगियों) से आह्वान कर रहे हैं कि अपनी भक्ति को टेस्ट करने के लिए उत्तरी इटली जाओ (Test Your Faith ! Visit Northen ITALY). इंडियन एक्सप्रेस (२२ मार्च २०२०, दिल्ली) लिखता हैं कि As per the data collected in the wake of the coronavirus outbreak, states there is One doctor per 11600 Indians, and One hospital bed per 1826 Indians. One Isolation bed per 84000 people, One Quarantine bed per 3600 people, as per Govt data.

इधर गोबरबुद्धियों का सरकार को सलाह हैं कि भारत आ रहें विदेशियों को एयरपोर्ट पर गौमूत्र पिलाये (हिन्दू महासभा)। श्री महाकालेश्वर मंदिर स्थित श्री पंचायती महानिर्वाणी अखाड़ा के गढ़पति गोबरबुद्धि विनीत गिरी महाराज का दवा हैं कि नारद संहिता ने दस हजार पहले ही कोरोना वॉयरस की भविष्यवाणी कर चुकी हैं। जनता कर्फ्यू और हेल्थ एमरजेंसी के बावजूद भी गोबरबुद्धि नृत्यगोपाल दास ा[आने भक्तों (मानसिक रोगियों) से कहता है कि रामनवमी पर आए भक्त, कुछ नहीं बिगाड़ेगा कोरोना। इस गोबरबुद्धि को समझाने में पूरा प्रशासन परेशान हो गया। अयोध्या में धर्म के ठेकेदारों ने अपनी मंदबुद्धि का बेहतरीन इस्तेमाल करते हुए अयोध्या में विशेष पूजा के साथ राम मंदिर का काम शुरू किया। 

फिलहाल, जब देश, जनता, संविधान, लोकतंत्र के प्रति सरकार की मानसिकता ही दूषित हो जनता का सरकार पर अविश्वास लाज़मी हैं। ऐसे में माननीय नरेंद्र दामोदर मोदी का कहना हैं कि जनता ने जनता कर्फ्यू को गंभीरता ने नहीं लिया। उनकों सारी खामियां जनता में ही दिखाई पद रहीं हैं। लेकिन हमारे निर्णय में, जनता यदि कोरोना जैसी महामारी का गम्भीरता से नहीं ले रही है तो इसकी एक मात्र सरकार है। गौर करने वाली बात हैं कि -
१) जब मौजूदा सरकार महामारी के समय थाली पिटने को बोलेगी,
२) जब जिला प्रशासन (डीएम-एसपी, पीलीभीत) खुद थाली पीटते हुए
    जुलूस निकालेंगे,
३) जब सरकार के केंद्रीय मंत्री भीड़ इकट्ठा कर थाली पीटेंगे,
४) जब महामारी में सरकार सब कुछ ठप्प करके मंदिर बनवायेगी,
५) जब इसके मुख्यमंत्री मंदिरों में हवन करेंगे,
६) जब सरकार व इसके मंत्री (जबेडकर) ठोस कदम उठाने के बजाय
    दूरदर्शन पर रामायण देखते हुए रामायण का प्रचार करेंगे,
७) जब प्रशासन जनता को जागरूक करने व उनकी मदद करने के बजाय
     लाठी चार्ज करेगी,
८) जब बिना किसी योजना के आनन-फानन मेंपूरे देश में आपातकाल घोषित
     कर दिया जायेगा,
९) जब हेल्थ एमरजेंसी के बावजूद नवरात्र का जश्न मनाया जायेगा,
१०) जब कोरोना पर जागरूकता बढ़ाने के बजाय नवरात्र की बधाई दी
       जाएगी,
११) और, सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि २०१४ से लेकर आज तक      
       जुमलेबाजी, झूठ और फरेब के सिवा माननीय मोदी जी ने किया क्या है,
       जो जनता इन पर विश्वास करें, और इनकी बात माने। 
ऐसे में, मौजूदा सरकार, इसकी मंशा व इसके लोगों पर संदेह लाजमी है। फिर भी जिस तरह सरकार पर से जनता का भरोसा उठ गया है, उसके बावजूद भारतीय जनता का संकट की इस घड़ी में देश के लिए एकजुट होना जनता का देश के प्रति निष्ठा व समर्पण को दर्शाता है। ये बताता है कि ये देश के जिम्मेदार नागरिक हैं। इनकी नागरिकता और देश के प्रतिनिष्ठा पर सवाल उठाने वाला एक सच्चा देशद्रोही ही हो सकता हैं। 

यदि मीडिया की बात करें तो जनता भारत की गोदी मीडिया के गोबर-गौमूत्र थ्योरी से पहले से ही वाकिफ हैं। यहाँ पर पत्रकार पत्रकारिता करने नहीं चाटुकारिता करने के लिए आते हैं। इनकों भारत के लोगों से ज्यादा फ़िक्र पाकिस्तान की हो रहीं हैं कि पाकिस्तान सरकार क्या कर रहीं हैं। ये वो दलाल मीडया हैं जिसने अपने-अपने टेलीविजन चैनलों पर अमन के दौरान भी पाकिस्तान पर भारतीय हमले पर कार्यक्रम चलाती हैं। ये वो मीडिया हैं जो लगातार अपनी जातिवादी मानसिकता के तहत दलितों के हकों के खिलाफ जहर उगलती हैं लेकिन इस महामारी के दौरान अपनी जान हथेली पर लेकर देश सेवा में तत्पर दलितों के स्वस्थ, भुखमरी, शिक्षा, नौकरी आदि मुद्दे पर चुप्पी साध लेती हैं। दलितों और उनके आरक्षण के हकों का विरोध करने वाले ये गोदी दलाल क्या ये बताने का प्रयास करेगें कि कितने पूंजीपतियों ने अपनी लूट की कमाई देश को समर्पित की, कितने अस्पतालों और पैथोलॉजी वाली ने देश हित में कार्य कर रहे हैं, ये सभी निजी अस्पताल-पैथोलॉजी और कालाबाजरी करने वाले मेडिकल स्टोर और राशन आदि की दुकाने किस-किस जाति के लोगों की हैं।

जैसा कि स्थापित हैं कि जब-जब देश पर कोई विपत्ति आयी हैं देश का बहुजन समाज पूरे तन-मन-धन से देशहित में सबसे आगे रहीं हैं। जब देश का प्रधानमंत्री भी कोई रहत कोष की घोषणा नहीं कर पाया था उस समाज देश के पिछड़े समाज की एक मात्र उसकी अपनी बसपा पार्टी के सांसदों, विधायको, पार्सदों, ग्रामप्रधानों, अनुसूचित जाति के रेलवे अधिकारी-कर्मचारी संगठनों ने दिल खोलकर देश और जनता के हित में करोड़ों रुपये दिए। जब देश के उद्योग घराने, भक्त (मानसिक रोगी) और अपराधी जातियां, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत सभी केंद्रीय मंत्री, राज्य सरकार व इसके मंत्री, मुख्यमंत्री, संघी गैंग और भाजपा आदि के नेता ताली और थाली बजाकर महामारी का मजाक बना रहें थे तब पिछड़े समाज का नेतृत्व करने वाली एक मात्र राष्ट्रिय नेता बहन जी के सभी संसद, विधायक. पार्षद, प्रधान, पूर्व मंत्री, पूर्व संसद, पूर्व विधायक आदि देश हित में करोड़ों रुपये डोनेट कर रहे थे। जनता को वैचारिकी और मंशा से अपनी सरकार और राजनैतिक दल चुननी चाहिए। उम्मीद करते हैं के आगे से देश की जनता ऐसी गलती नहीं कभी करेगीं जो उसने आम लोकसभा चुनाव-२०१४ और २०१९ में कर चुकी हैं।    

फ़िलहाल, यदि भारत की जनता इस महामारी से निपटने के लिए एकजुट हुई हैं उसका योगदान बल्कि विदेशों की मीडिया को जाता हैं, क्योंकि ये मीडिया भारत की ब्राह्मण-सवर्ण जातिवादी मीडिया की तरह नहीं हैं। जनता को विदेशों से सोशल मीडया के जरिये आ रही ख़बरों ने जागरूक किया हैं। भारत की जनता तानशाह के कहने या फिर गोदी मिडिया पर भरोसा कर कोरोनावायरस से लड़नें को नहीं हुई तैयार हुई है, जनता सोशल मिडिया के जरिये जागरूक हुई हैं। भारत की गोदी मीडिया की हालत तो ये हैं कि गोदी मीडिया पर खुद भक्तों (मानसिक रोगी) तक को भरोसा नहीं है, आम जनता की क्या बात की जाए।

फ़िलहाल इन सबके बावजूद, एक जिम्मेदार नागरिक की हैसियत से हम देश की सरकार अपील करते हैं कि सरकार देश की जनता के लिए बाबा साहेब रचित संविधान निहित मूल्यों के तहत देश की ८५% दलित-आदिवासी-पिछड़ी जनता को मूलभूत सुविधाओं की पूर्ति करे। उनके मूलभूत मानवाधिकारों के मद्देनजर उनके साथ मानवीयता का व्यवहार करें। ये एक संवैधानिक लोकतांत्रिक देश है, तानाशाही से समस्या को कुछ पल के लिए दबाया जा सकता है लेकिन उसका समाधान नहीं किया जा सकता है। 

याद रहें ये न्याय-समता-स्वतंत्रता-बंधुत्व को स्थापित कर दुनिया को मानवता का पथ पढ़ाने वाले बुद्ध-अम्बेडकर का देश हैं। इसलिए इन मूल्यों के तहत कार्य करना देश की जनता और हुकूमत का संवैधनिक, लोकतान्त्रिक, नैतिक व मानवीय कर्तव्य हैं।
रजनीकान्त इन्द्रा


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