Friday, April 3, 2020

अम्बेडकर महापर्व

अम्बेडकर महापर्व

दुनिया जानती हैं कि बाबासाहेब डॉ अम्बेडकर सकल संसार में एकमात्र महामानव हैं जिनका जन्मदिन ज्ञानदिवस / शिक्षादिवस और अप्रैल का महीना अम्बेडकर माह के नाम से जाना जाता हैं। अम्बेडकर माह को ज्ञानमाह / शिक्षामाह के नाम से भी जाना जाता हैं। 

पूरी दुनिया में, मानवीय लोगों को न्याय-समता-स्वतंत्रता-बंधुत्व-करुणा के इस महापर्व का बड़ी बेसब्री से इंतज़ार रहता हैं। दुनिया के सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालय, संस्थान, संयुक्त राष्ट्र संघ, दुनिया के सभी देश और महाशक्तियाँ इस महापर्व को बड़े पैमाने पर सेलिब्रेट करती हैं। जगह-जगह विचार-गोष्ठियाँ आयोजित की जाती हैं। कविता पाठ होता हैं। बुद्ध-अशोक-रैदास-कबीर-घासीदास-बिरसा-नारायणगुरु-पेरियार-शाहूजी-मान्यवरसाहेब और सावित्री-रमा-फातिमा-उदादेवी-झलकारीबाई-फूलनदेवी और भारत के सामाजिक परिवर्तन की महानायिका और सर्वसमाज की चहेती सबसे लोकप्रिय लोकतंत्र की रहबर भारत की एकमात्र राष्ट्रिय नेता माननीया बहन कुमारी मायावती जी के जीवन संघर्ष और उनके दर्शन पर खुले मंचों से चर्चा कर लोगों का ज्ञानबर्धन किया जाता हैं, और मनुवाद को नष्ट कर मानवता को स्थापित करने के लिए प्रेरित किया जाता हैं। 

  मानवीय समाज के चिंतक, विचारक, लेखक, प्रोफ़ेसर, शोधछात्र, टिप्पणीकार, समीक्षक, अध्यापक, सरकारी व गैर-सरकारी नौकरी पेशा लोग जगह-जगह वैचारिक गोष्ठियाँ और सेमिनार करते हैं। भारत ही नहीं दुनिया की तमाम पत्र-पत्रिकाओं में लेख व शोधपत्र छपते हैं। देश-विदेश के विद्वान दुनिया में व्याप्त मानवता के लिए सबसे घातक नारीविरोधी जातिवादी वैदिक ब्राह्मणी मनुवादी रोग से सचेत करते हुए विश्व कल्याण के लिए भावी रूपरेखा खींचते हैं। भारत में लोग भारत राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया की समीक्षा करते हैं।  

  अम्बेडकर माह के शुरू होते ही मानवता पसन्द लोग अपने-अपने घरों की रंगाई-पुताई शुरू कर देते हैं। बच्चे प्रतियोगिताओं में भाग लेने के लिए मार्च महीने से ही तैयारियाँ शुरू कर देते हैं। माता-पिता बच्चों के लिए नए-नए कपड़े खरीदने की तैयारियों में लग जाते हैं। शिक्षा-ज्ञान के इस पर्व के महीनों पहले लोग बुद्ध-रैदास-कबीर-अम्बेडकर-पेरियार-काशीराम-बहनजी आदि की जीवनी सम्बन्धी पुस्तकों से बाज़ार सज जाते हैं। लोगों में इन किताबों के खरीदने और अपने सेज-सम्बन्धियों को उपहार स्वरुप देने के लिए होड़ लग जाती हैं। पूरा देश उत्साह और कौतुहल से सराबोर हो जाता हैं। भारत के इस महापर्व का नज़ारा, इसकी भव्यता को देखकर दुनिया खुद भारत की तरफ खिची चली आती हैं। भव्यता, शिक्षाप्रद सन्देश, न्याय-समता-स्वतंत्रता-बंधुत्व-करुणा का ये महापर्व अपने मानवीय मूल्यों से सराबोर होने वजह से संसार का सबसे अनूठा महापर्व हैं।

अम्बेडकर महापर्व के इस पूरे अम्बेडकर माह में अलग-अलग तारीखों पर देश के विभिन्न कोनों में अम्बेडकर मेलापेरियार मेलाकाशीराम मेलाबुद्ध मेला, घासी मेला, बिरसा मेला, अशोक मेला, फुले मेला और अन्य सभी महानायकों-महानयिकाओं के नाम पर अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग मेले का आयोजन किया जाता हैं। गांव-गांव में बुद्ध, अम्बेडकर, मान्यवर साहेब और बहनजी के जीवन का नाट्य मंचन किया जाता हैं। शहरों का हर्षोल्लास तो देखते ही बनता हैं। पूरा देश नीरे रंग की रौशनी में बड़ा ही मनोरम हो जाता हैं। 

भारत में समतामूलक समाज के लिए प्रतिबद्ध सामाजिक परिवर्तन की महानायिका बहन जी द्वारा बनवाएं गए अम्बेडकर पार्क लखनऊ, मान्यवर काशीराम साहेब इको गार्डन लखनऊ, माता रमाबाई मैदान लखनऊ, मान्यवर काशीराम साहब उद्यान लखनऊ, मान्यवर काशीराम साहब स्मृति उपवन लखनऊ, परिवर्तन चौक लखनऊ, राष्ट्रिय दलित प्रेरणा स्थल एवं ग्रीन गार्डन नोयडा, शिक्षाभूमि अम्बेकरनगर उत्तर प्रदेश, दीक्षाभूमि नागपुर, अम्बेडकर जन्मभूमि डॉ अम्बेडकर नगर (महू), चैत्यभूमि, सारनाथ, गया, संसद भवन दिल्ली, इंडियागेट, डॉ अम्बेडकर नैशनल मेमोरियल दिल्ली, भीमकोरेगॉव, श्रावस्ती, कुशीनगर समेत भारत के विभिन्न कोनों में बहुजन नायकों के जन्मस्थलों, प्रतिमा स्थलों, उद्यानों और अन्य सामाजिक स्थलों में बड़े ही हर्षोल्लास के साथ लाखों की संख्या में मानवतावादी लोग पहुँचते हैं। लोग यहाँ पहुंचकर जहाँ एक तरफ अपने महानायकों-महानयिकाओं के शौर्य-संघर्षों से गैरवांवित होते हैं तो वही दूसरी तरफ उनके गौरवगाथाओं से प्रेरणा पाते हैं। 

अम्बेडकर महापर्व के इस अवसर पर महाराष्ट्र की तो अपनी एक अलग ही पहचान हैं। यहाँ पर दुनिया के सबसे भव्य व विशालकाय आयोजन होते हैं। भारत के मशहूर गीतकार, संगीतकार, गायक अपने गायन कला के माध्यम से बुद्ध-बाबासाहेब-मान्यवरसाहेब-बहनजी के जीवन संघषों को बयाँ कर लोगों को प्रेरित करते हैं। जगह-जगह झाकियाँ निकली जाती हैं। खेल-कूद के मैदानों में विभिन्न खेलों और प्रतियोगिताओं का आयोजन बहुत ही सहज हैं। रात्रि में नागपुर, मुंबई, पुणे आदि शहर संग पूरा भारत नीली रौशनी से सज जाता हैं। लोग बाबा साहेब के संदेशों से ओत-प्रोत गीत-संगीत की धुन पर नृत्य करते हैं। घर-घर रंगोली बनायीं जाती हैं। हर घर नीले रंग के रौशनी वाली सजावट बरबस ही किसी का भी मन मोह लेती हैं। बच्चे-बच्चियों का उत्साह और उनका आमोद-प्रमोद और तरह-तरह के उनके खेलों का दृश्य बड़ा ही मनोरम लगता हैं। पूरा महाराष्ट्र संग पूरा भारत बुद्ध-अम्बेडकर-काशीराम-बहनजी के नीले रंग के ज्ञान-पुञ्ज में सिमट कर न्याय-समता-स्वतंत्रता-बंधुत्व-करुणा के सन्देश से दुनिया को मानवता के साँचे में ढाल देती हैं। नीले रंग में रगा भारत समता का सन्देश दे रहा होता हैं। ऐसे में आज नीला रंग दुनिया में न्याय-समता-स्वतंत्रता-बंधुत्व-करुणा का प्रतीक बन चुका हैं। 

साथ ही पंजाब और उत्तर प्रदेश में अम्बेडकर महापर्व की भव्यता तो देखते ही बनती हैं। पंजाब के गुरुद्वारों के साथ-साथ ब्रिटेन, फ़्रांस, जर्मनी, हंगरी, कनाडा, अमरीका, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, जापान आदि देशों में इस बहुजन महापर्व को बड़े पैमाने पर सेलिब्रेट किया जाता हैं। उत्तर प्रदेश के साथ-साथ मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखण्ड, आंध्र प्रदेश, कर्नाटका, राजस्थान, दिल्ली संग अन्य सभी प्रान्तों के विशाल व भव्य आयोजन विदेशी शैलानियों का मनमोह कर इस महापर्व का हिस्सा बनाने को मजबूर कर देते हैं। 

सदियों से मनुवाद के गुलामी की जंजीरों में जकड़ी नारी समाज अपने उद्धारक बोधिसत्व विश्वरत्न शिक्षामूर्ति मानवता प्रतीक प्रकाण्ड विद्वान बाबा साहेब डॉ अम्बेडकर के जन्मदिन पर खुशीपूर्वक तरह-तरह के व्यंजन बनाती हैं। महामानव डॉ अम्बेडकर के जन्मदिवस पर घरों में गुलगुला-गुझियाँ, पूड़ी-पराठे, गुलाब जामुन, रसमलाई, तरह-तरह के बर्फी, लड्डू, लस्सी, खीर, शाही पनीर, छोले-भटूरे आदि स्वादिष्ट व्यंजन व मिठाइयां बहुत ही सहज हैं। शाम के समय नारी समाज बहुजन आन्दोलन की वैचारिकी पर गीत-संगीत के साथ नृत्य कर खुशियाँ मनाती हैं। शिक्षा के महापर्व पर नारी समाज के साथ-साथ बड़े-बूढें और अन्य बच्चे सब लोग एक दूसरे को किताब-कलम का उपहार देते हैं। बन्धुता के तहत लोग आपस में मिल-जुलकर तरह-तरह के पकवान और मिष्ठान एक दूसरे को गिफ्ट करते हैं। पूरे विश्व में हर परिवार अपने-अपने घर में शाम को बुद्ध वंदना, त्रिशरण, पञ्चशील, २२ प्रतिज्ञा की लेते हुए सदा ब्राह्मणी धर्म, संस्कृति जैसे मानवता के हत्यारे रोग से दूर रहने की शपथ लेते हुए सकल मानव समाज के लिए मंगलकामनाएँ करते हैं।  

इस महापर्व के अवसर पर भारत में लोकतंत्र की महानायिका, भारत में सामाजिक परिवर्तन कर समतामूलक समाज की स्थापना के लिए सतत संघर्ष करने वाली, देश के पिछड़े वर्ग के दुखदर्द को समझने वाली, संविधान सम्मत कार्य करने वाली, बाबा साहेब डॉ अम्बेडकर की वैचारिक पुत्री, लोकतंत्र के महानायक मान्यवर काशीराम साहेब की अनुयायी, शिष्या और एकमात्र उत्तराधिकारी, सम्राट अशोक के बाद एकमात्र मानवता प्रिय शासक, भारत की एकमात्र राष्ट्रिय नेता बहन कुमारी मायावती जी देश के नाम सन्देश देकर देश व सकल विश्व के मानव समाज को सम्बोधित करती हैं। भारत के जन आकांक्षाओं पर खरी एक मात्र राष्ट्रिय पार्टी बहुजन समाज पार्टी के अन्य नेता अपने-अपने क्षेत्र में, प्रांतों की राजधानियों में, जिला मुख्यालयों पर, विधानसभा स्तर पर, ग्राम पंचायत स्तर पर लोगों से मिलते हैं, और देश समाज को बहुजन महानायकों-महानयिकाओं के संदेशों, उपदेशों पर चर्चा कर देश के कर्णधारों को मानवता के हत्यारे मनुवादी रोग के प्रति सचेत करते हैं।

बाबा साहेब मानवता के प्रतीक बनकर भारत की सीमा को पार करते हुए विश्वपटल पर समता-स्वतंत्रता-बंधुत्व-करुणा के प्रतीक बन चुके हैं। दुनिया के लगभग सभी देशों की सरकारें और वहाँ के लोग भारत राष्ट्रनिर्माता बाबासाहेब डॉ अम्बेडकर के जन्मदिन को अपने-अपने तरीके से सेलिब्रेट करते हैं। उदहारण के तौर पर कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया राज्य ने यूनाइटेड किंगडम की रानी तथा कनाडा एवं कॉमनवेल्थ की प्रमुख एलिज़बेथ द्वितीय की सहमति से 14 अप्रैल, 2021 को ‘डॉ. बी.आर. अंबेडकर समता दिवस’ घोषित करने का निर्णय लिया है। इससे सम्बन्धित जारी गैजट में भारतीय संविधान के निर्माण में बाबा साहेब के योगदान और सामाजिक भेदभाव के विरुद्ध उनके संघर्षों का उल्लेख करते हुए यह कहा गया है कि डॉ बी आर आंबेडकर समता दिवस’ सामाजिक न्याय और समानता की दिशा में बाबा साहेब के समर्पण की विरासत को स्मरण करने के लिए ब्रिटिश कोलंबिया समेत दुनिया भर के लोगों को प्रेरणा देने का काम किया है।

कुल मिलाकर न्याय-समता-स्वतंत्रता-बंधुत्व-करुणा पर आधारित अम्बेडकर महापर्व भारत व प्रत्येक वर्ष का पहला महापर्व हैं जिसका सेलेव्रेशन दुनिया के तमाम देशों में किया जाता हैं। अम्बेडकर महापर्व (१४ अप्रैल) के बाद दीक्षादीप महोत्सव (१४ अक्टूबर) दूसरा ऐसा महापर्व हैं जो भारत के रग-रग में समां कर भारत की संस्कृति का सबसे अहम् अंग बन गया हैं।

रजनीकान्त इन्द्रा, इतिहास छात्र, इग्नू-नई दिल्ली 

 

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