Tuesday, April 7, 2020

अनुशासित होकर धैर्यपूर्वक बड़ी लाइन खीचों

अनुशासित होकर धैर्यपूर्वक बड़ी लाइन खीचों
बहुजन आन्दोलन का उद्देश्य न्याय-समता-स्वतंत्रता-बंधुत्व की वैचारिकी पर आधारित समतामूलक समाज का सृजन हैं। सदियों से आस्तिक ताकतों और नास्तिकों के बीच द्वन्द चलता आ रहा हैं। आस्तिकों ने जहाँ एक तरफ ईश्वर को गढ़कर अंधविश्वास, पाखंड और फरेब के माध्यम से समाज में पुरोहितवाद को स्थापित कर एक वर्ग विशेष के हाथों में सामाजिक-राजनैतिक-आर्थिक और सांस्कृतिक सत्ता सौंपकर बहुतायत का शोषण किया हैं, वही दूसरी तरफ नास्तिकों ने ईश्वर, पाखण्ड और अन्धविश्वास का खण्डन करके समाज में मानवीय व वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करने का कार्य किया हैं। वर्तमान में भारत की तरफ रुख करे तो हम पाते हैं कि भारत में सिर्फ राजनैतिक द्वंद नहीं चल रहा है बल्कि भारत सांस्कृतिक जंग का एक मैदान बन चुका है। 
बाबा साहेब कहते हैं कि भारत का इतिहास मूलतः ब्रह्मनिज़्म बनाम बुद्धिज़्म का द्वन्द ही रहा हैं। ब्रह्मनिज़्म जहाँ आस्तिकता (ईश्वर, पाखण्ड, अंधविश्वास और फरेब) हैं वही बुद्धिज़्म नास्तिकता (न्याय-समता-स्वतंत्रता-बंधुत्व और मानवीय वैज्ञानिक दृष्टिकोण) हैं। 
भारत के मौजूदा हालात के सन्दर्भ में विश्वविख्यात समाज वैज्ञानिक प्रो विवेक कुमार कहते हैं कि "भारत के दो प्राचीन दर्शनो 'नास्तिक' और 'आस्तिक' का संघर्ष सदियों पुराना है। बाबासाहेब ने इसे क्रांति और प्रति-क्रांति का नाम दिया था। वर्तमान भारतीय इतिहास को इसी दृष्टिकोण से समझना चाहिए।"
बुद्धिज़्म की महत्ता और देश के मौजूदा हालात पर चिंता व्यक्त करते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग में प्रोफेसर रहें प्रो ईश मिश्रा कहते हैं कि "समाज के अभिजनों (Elite) की समृद्धि के आधार पर इतिहास के किसी कालखंड को स्वर्णकाल नहीं कहा जाना चाहिए, लेकिन इतिहास का यही दस्तूर रहा है। प्राचीन यूनान या रोम के गौरव महल अमानवीय दास श्रम की बुनियाद पर खड़े थे। जिस राजा ने जितना रक्तपात किया वह उतना ही महान। आमजन की भाषा में, सर्वसुलभ जनतांत्रिक शिक्षा से उपजे ज्ञान की बुनियाद पर खड़ा बौद्ध क्रांति का युग, आमजन की दृष्टि से हमारे इतिहास का एक क्रांतिकारी युग था।"
आज देश के हालात बहुत नाजुक हो चुके हैं। इस समय देश सांस्कृतिक द्वन्द से गुजर रहा हैं। शासन-सत्ता पर काबिज आस्तिक शक्तियां तांडव कर रहीं हैं। ऐसे हालात में बहुजन आन्दोलन के अनुयायियों को बुद्ध-आंबेडकर-काशीराम-बहनजी से सीख लेते हुए पूरे संयम के साथ अपने आन्दोलन को मजबूत करते हुए जन-जन तक पहुँच कर उनकों जोड़ना बेहतर और जरूरी हैं। आन्दोलन का एक अहम् अंग हैं अनुशासन, दूसरा प्रतिक्रिया में उलझने से बचना और तीसरा हैं धैय। 
देश के बहुजन युवाओं को ज्ञात होना चाहिए कि जब दूसरी बार २५-२६ दिसंबर १९२७ को बाबा साहेब चवदार तालाब महाड़ सत्याग्रह के लिए जा रहें थे तब तत्कालीन कलेक्टर हुड ने बाबा साहेब से बात करने की इच्छा जताई। मिलने के बाद मिस्टर हुड ने बाबा साहेब से कहा कि सवर्णों ने कोर्ट में ये कहकर स्टे ले लिया हैं कि तालाब सवर्णों की निजी मिलकियत हैं। महाड तालाब का मामला कोर्ट में जा चुका हैं।
फिलहाल, बाबा साहेब सवर्णों के दावे को गलत करार करते हुए हुड से कहते हैं कि  "मिस्टर हुड आप जानते हैं कि सवर्णों का ये दावा सरासर गलत हैं।" हुड ने बाबा साहेब से कहा कि "ये मामला अब कोर्ट में हैं। यदि आप फिर भी महाड के सत्याग्रह को जारी रखते हैं तो हमें गिरफ्तारियां करनी होगी। क्या आप चाहते हैं कि आपके दस हजार लोग जेल जायें। ऐसा करने से आपका कौन सा मक़सद हल होने वाला हैं।" बाबा साहेब नेतात्कालीन परिस्थिति को ध्यान रखते हुए अपने इरादे को बदलकर अपनी लड़ाई को एक अनुशासित महासेनापति की भाँति कानूनन आगे बढ़ाने का रास्ता चुना। इसी आन्दोलन के दौरान शोषित-वंचित जगत को समझाते हुए बाबा साहेब कहते हैं कि "अनुशासन के बिना सत्याग्रह की ताक़त कम हो जाती हैं।"
  किसी भी आन्दोलन की सफलता के लिए "अनुशासन" सबसे महत्वपूर्ण होता है। बुद्ध-अम्बेडकरी आन्दोलन यदि आज इस मुकाम तक पहुंच पाया है तो उसकी एक महत्वपूर्ण वजह - बहुजन समाज का अनुशासन, संविधान, लोकतांत्रिक मूल्यों और कानून के प्रति सम्मान हैं। अनुशासन से ही आप अपने लक्ष्य की तरफ सुगमता से पहुँच सकते हैं। अनुशासन का एक अभिप्राय सही दिशा भी होता हैं। इसके संदर्भ में तथागत बुद्ध कहते है कि "गलत दिशा में बढ़ रही भीड़ का हिस्सा बनने से बेहतर है कि आप सही दिशा में अकेले चलों।" कहने का तातपर्य यह हैं कि हर परिस्थिति में हमें अनुशासन व संयम का पालन करना ही हैं। प्रतिक्रिया व प्रतिद्वंदियों के खिलाफ नकारात्मक प्रचार-प्रसार से बचना हैं। 
प्रतिक्रिया के संदर्भ में प्रो विवेक कुमार कहते हैं कि "नकारात्मक प्रचार भी एक प्रचार होता हैं।" इसलिए ये गौर करने वाली बात हैं कि प्रतिक्रिया बस किया गया हर कार्य आपके प्रतिद्वंदी के पक्ष में ही जाता है। आपके प्रतिद्वंदी का आपके द्वारा किया गया नकारात्मक प्रचार-प्रसार भी आपके प्रतिद्वंद्वी को ही मजबूत करता है। इसलिए बहुजन समाज को ऐसे कृत्यों से बचना आन्दोलन के लिए महत्वपूर्ण हैं।
आपका प्रतिद्वंदी आपको भटकाने के लिए ही ऐसे कृत्य करता है ताकि आप प्रतिक्रिया में उलझकर आप अपने मुद्दों से भटक जायें। ये गौर करने वाली बात हैं कि परिस्थितियां कितनी भी कठिन क्यों ना हो, लेकिन बहनजी एक पल भी अपने मिशन से इतर नहीं होती हैं। विरोधियों ने बहनजी के ऊपर आरोप लगायें, झूठे मुक़दमों से परेशान किया, अभद्र टिप्पणियाँ की लेकिन बहन जी ने इन सबसे उलझने के बजाय अनुशासित होकर पूरे संयम व धैर्य के साथ पूरी सिद्दत से अपने आन्दोलन को मजबूत कर आगे बढ़ाने में ही लगी रहती हैं। इसलिए वंचित-शोषित-पिछड़े समाज को भारत में पिछड़े-शोषित समाज की एकमात्र राष्ट्रिय पार्टी बसपा की एक मात्र उत्तराधिकारी और अध्यक्षा बहनजी से ये सीखने की जरूरत हैं कि विपरीत परिस्थितियों में कैसे मिशन को मजबूत करते हुए आगे बढ़ा जाए।
ऐसे में, प्रतिद्वंदियों की बुराई करना, टिप्पणी करना, प्रतिद्वंदियों के खिलाफ प्रचार करना भी प्रतिद्वंदियों के पक्ष में किया गया प्रचार-प्रसार ही होता हैं। इसलिए प्रतिद्वंदियों का जिक्र किये बगैर अपने मुद्दों व समाधान की तरक़ीबों को वंचित-शोषित-पिछड़े लोगों तक पहुंचाओं। प्रतिक्रिया मुद्दे से भटकाती है। इसलिए प्रतिद्वंदियों की प्रतिक्रिया में उलझने से बचें। आप किसी की कमियां गिनाने के बजाय बुद्ध-अम्बेडकरी वैचारिकी का प्रचार-प्रसार कर सकल बहुजन समाज को जोड़ने के लिए लिखिए, और सत्ता पर कब्जा करने के लिए अपने लोगों को तैयार कीजिए।
आज के मौजूदा हुकूमत में ह्रदय विदारक फोटो व वीडियो मत शेयर कीजिए, क्योंकि हुकूमत की मानवीय संवेदनायें मर चुकी है। भक्तकाल तांडव कर रहा है। यदि कुछ अच्छा करने का जज्बा अभी भी जिंदा है तो अपनी सरकार बनाने के लिए जद्दोजहद कीजिए। निराश मत होइये। माना कि अंधेरा घना है, लेकिन सूरज का निकलना कहाँ मना है। निराश होने की कतई जरूरत नहीं हैं क्योंकि लोकतंत्र अपने घाव को खुद ही भरता है। ऐसे में धैर्य बनाये रखने की भी नितान्त आवश्यकता हैं। 
  प्रतिकूल परिस्थितियों में प्रतिक्रिया देकर खुदकुशी करने के बजाय आत्म-मंथन, अध्ययन, रणनीतिक तैयारी व लोगों को सुरक्षित ढंग से बुद्ध-अम्बेडकरी वैचारिकी से जोड़ने का काम किया जाना चाहिए। बहुजन समाज द्वारा कोई भी कार्य प्रतिक्रिया बस ना किया जाए बल्कि बुद्ध-अम्बेकडरी वैचारिकी को जन-जन तक पहुँचाने में अपनी ऊंर्जा लगाई जाय।
  हम समता-स्वतंत्रता-बंधुत्व और न्याय के लिए लड़ रहे हैं, ऐसे में हमारी जीत निश्चित है। बहुजन आन्दोलन के संदर्भ में बाबा साहेब कहते हैं कि "हमारी लड़ाई दौलत या सत्ता पाने की नहीं बल्कि अपनी आज़ादी और आत्मसम्मान पाने की हैं। हम इन्साफ की राह पर हैं। इसलिए इस लड़ाई में हमारी हार का सवाल ही नहीं उठता हैं।"
  बहुजन आंदोलन के सन्दर्भ में मान्यवर साहेब कहते हैं कि विरोधियों का काम है हमें गुमराह करना, लेकिन किसी भी कीमत पर गुमराह ना होना हमारा काम है। किसी की खींची लाइन मिटाने में ऊर्जा नष्ट करने के बजाय उससे बड़ी लाइन खींचने में ऊर्जा का सृजनात्मक सदुपयोग करें। भटकाने वाली प्रक्रियात्मक प्रवृत्ति से बचाव करते हुए धैर्यपूर्वक अनुशासित होकर सतत आगे बढ़ने में ही बुद्ध-अम्बेडकरी मिशन की सफलता निहित हैं। 
रजनीकान्त इन्द्रा

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