Tuesday, November 12, 2019

आरएसएस मुस्लिम विरोधी नहीं, बहुजन विरोधी हैं। 


किसी भी देश या समाज का आधार उस समाज को चलाने वाली विचारधारा होती है। इसी तरह से विविधता पूर्ण भारत में अनेकों विचारधाराएं हैं। इनमें कुछ प्रबल विचारधाराएं हैं जिन्होंने अलग-अलग संस्कृतियों को संरक्षित किया हुआ है। इसमें कुछ प्रमुख संस्कृतियों हैं जैसे कि इस्लामिक संस्कृति ब्राह्मणवादी संस्कृति जैनी संस्कृति, ईसाइयत और अंबेडकरवादी बुद्धिस्ट संस्कृति।

बाबा साहब कहते हैं कि भारत का इतिहास कुछ और नहीं बल्कि दो संस्कृतियों का द्वंद रहा है। यदि हम प्राचीन इतिहास की तरफ रुख करें तो हम पाते हैं कि ब्राह्मणों सवर्णों के भारत आगमन के बाद भारत का इतिहास बुद्धिज्म बनाम ब्राह्मणवाद था।

इस द्वंद के दरमियान बुद्धिज्म में ब्राह्मणवाद की विनाशक पद्धतियों के घालमेल हो जाने के चलते बुद्धिज्म कमजोर हुआ और ब्राह्मणवादी शक्तियां पूरे मुल्क पर काबिज हो गए। इसके बाद आने वाले अलग-अलग राज राजाओं के संरक्षण में ब्राह्मणवादी संस्कृति पलती रही, प्रबल होती रही।

इसके बाद भारत में इस्लाम का आगमन होता है। फिर हिंदू व्यवस्था के जातिवाद, छुआछूत, आर्थिक, राजनैतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक और अन्य सभी संभव प्रकार के अत्याचारों से निजात पाने के लिए देश के बहुजन समाज के लोगों ने ब्राह्मणवादी व्यवस्था का बहिष्कार करके सूफी संतों के प्रभाव में इस्लाम को कबूल किया। ये और बात है कि ब्राह्मणवाद के जहर से इस्लाम भी बच नहीं पाया है। नतीजा यह हुआ कि समानता का संदेश देने वाले इस्लाम में भी ब्राह्मणवादियों ने जात-पात, ऊंच-नीच का जहर बो दिया, जिसका खामियाजा आज भी ब्राह्मण व्यवस्था का बहिष्कार करने के बाद इस्लाम को कबूल करने वाला बहुजन समाज मुसलमान बनने के बावजूद भी भुगत रहा है।

इसके बाद जब भारत में ईसाइयत का आगमन हुआ तो इन लोगों ने भी यहां के बहुजन समाज को एक नई दिशा व दशा के साथ एक बेहतरीन समझ देते हुए एक सम्मानीय जीवन जीने का मकसद दिया, जिसके चलते बहुत सारे बहुजन समाज के लोग ईसाइयत को कबूल करने लगे। जिसके चलते ब्राह्मण व्यवस्था में गुलामी कर रहा तबका धीरे-धीरे बंटना शुरू हो गया। इसके बाद इन सब ने देश के बहुजन समाज को आजादी दिलाने वाले भारत के दो प्रमुख विचारधाराओं को कुचलने का काम किया जिसमें इस्लाम और ईसाइयत प्रमुख है।

इतिहास पर गौर किया जाए तो देश के ब्राह्मण-सवर्ण तबके ने कभी भी इस्लामी राजाओं का विरोध नहीं किया, बल्कि उनके साथ तो इन्होंने रोटी-बेटी का संबंध रखा जैसे कि अकबर-जोधाबाई आदि। इसकी वजह यह रही कि इस्लामी राजाओं ने भी काफी हद तक ब्राह्मणी व्यवस्था को कायम रखने के लिए ब्राह्मणों-सवर्णों की मदद की। मतलब की ब्राह्मणी व्यवस्था में हस्तक्षेप कम से कम किया, लेकिन इसके बावजूद मुस्लिम शासकों ने इस्लाम के क्समता के संदेश के तहत शिक्षा जैसे अहम पहलू के लिए देश के दलित वंचित पिछड़े बहुजन समाज के लोगों के लिए मदरसों के दरवाजे खोल दिए। इसी का परिणाम था कि भारत की सरजमीं पर कबीर जैसे लोग पैदा हुए जिन्होंने खुलेआम ब्राह्मणवाद व उनकी व्यवस्था को चैलेंज किया। लेकिन वहीं दूसरी तरफ मुसलमानों में भी एक उदारता दिखती है क्योंकि कबीर की लेखनी में सिर्फ ब्राह्मण वादियों पर ही हमला नहीं हुआ है बल्कि कबीर ने इस्लाम में फैली रूढ़ियों पर भी कठोर प्रहार किया है।

इसके बाद जब भारत में ईसाइयत का आगमन हुआ तो अंग्रेजी हुकूमत ने एक समान शिक्षा नीति के तहत देश के हर तबके के हर वर्ग के लोगों को लिए शिक्षा के दरवाजे हमेशा हमेशा के लिए खोल दिए। अंग्रेजों की इन्हीं नीतियों का परिणाम था कि आधुनिक भारत में क्रांति के प्रतीक क्रांतिबां फूले ने शिक्षा अर्जित कर खुलेआम ब्राह्मणवाद को चैलेंज करते हुए एक नवीन समाज के सजन की कल्पना की। और इसी अंग्रेजी हुकूमत के दौरान महात्मा फुले की परंपरा को हकीकत की सरजमी पर बाकायदा स्थापित करने के लिए कानूनी व हकीकत का अमलीजामा पहनाने वाले बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर जैसे लोग शिक्षित हो पाए। उन्ही शिक्षा का परिणाम है कि आज इस देश का बहुजन समाज ना सिर्फ अपने मान-सम्मान के लिए सवर्णों को खुलेआम चैलेंज कर रहा है बल्कि देश की हुकूमत करने के लिए लगातार जद्दोजहद कर रहा है।

इस देश में इस समय ब्राह्मणवादी विचारधारा को पुनः स्थापित करने के लिए संघर्ष करने वाले RSS को सामान्य तौर पर इस्लाम का विरोधी समझा जाता है और कभी कभी ईसाइयत काफी विरोधी की समझा जाता है इसके पीछे दो कारण है हकीकत में ब्राह्मण व्यवस्था व RSS इस्लाम और ईसाइयत के विरोधी नहीं है बल्कि RSS ईसाइयत और इस्लाम का विरोध सिर्फ और सिर्फ इसलिए करता है क्योंकि इन दोनों ने देश के शूद्रों और बहिष्कृत समाज को शिक्षा के लिए दरवाजे खोल दिए जिसके चलते शूद्र और बहिष्कृत समाज ब्राह्मणवाद को खुली चुनौती देता आ रहा है।

फिलहाल यदि पर्दे के पीछे के षड्यंत्र को देखा जाए तो आज भी RSS इस्लाम का विरोधी नहीं है बल्कि इस्लाम को मुखौटा बना करके RSS दलित व शूद्रों के दमन के लिए षड्यंत्र कर रहा है। और देश का शुद्र और बहिष्कृत समाज इस षड्यंत्र को समझ पाने में नाकाम है। उसे लगता है कि RSS इस्लाम का विरोधी है और शूद्रों और बहिष्कृत समाज के लोगों के जेहन में भी ब्राह्मणवादी व्यवस्था के पोषकों ने मुसलमानों के प्रति इतनी नफरत भर दी है कि इस देश का शुद्र और बहिष्कृत समाज अपने असली शत्रु को पहचान ही नहीं पा रहा है।

इतिहास गवाह है शुरू से लेकर आज तक भारत में हजारों दंगे हुए हैं। इन सारे दंगों में मरने वालों की तादाद हमेशा शूद्र और बहिष्कृत समाज की ही होती है। और, दूसरी तरफ मुसलमानों में भी जो लोग दंगों में मारे जाते हैं। वह लोग कोई और नहीं बल्कि भारत के वह मूल निवासी हैं जिन्होंने कभी ब्राह्मण व्यवस्था के अत्याचार से तंग आकर इस्लाम को कबूल किया था। कहने का तात्पर्य है कि हिंदू मुस्लिम के नाम पर हो रहे दंगों में मारे जाने वाला तबका इस देश का मूलनिवासी बहुजन समाज ही है।

जहां तक रही बात संबंधों की तो भारत के ब्राह्मणों सवर्णों का मुसलमानों आदि के साथ रोटी बेटी तक का संबंध है तो जो समाज जिस समाज से हंसी खुशी के साथ रोटी बेटी का संबंध रख सकता है तो वह उस समाज का दुश्मन कैसे हो सकता है? ऐसे लोगों को तकलीफ तब होती है जब देश के शूद्र व बहिष्कृत समाज के लोग इस देश की मूलनु मुस्लिम तबके के छोटी जातियों के साथ, जो कि देश के मूल निवासी हैं, उनके साथ जब कोई इस तरह के संबंध की बात होती है तो वह इसे लव जिहाद के नाम से प्रचारित करके कुचलने का प्रयास करते हैं। जिसके परिणामस्वरूप कई बार दंगे हो जाते हैं और इन दंगों में मरने वाला तबका फिर वही इस देश का मूलनिवासी समाज ही होता है।

ऐसे में देश के शुद्ध व बहिष्कृत समाज को यह समझना होगा कि मुसलमान को मुखौटा बना करके धर्म के नाम पर उलझा करके इस देश की ब्राह्मणवादी शक्तियों ने शूद्र और बहिष्कृत समाज को उनके हकों से वंचित करने का पूरा का पूरा एक षड्यंत्र रचा है। यही वजह है कि जब मान्यवर कांशी राम साहब की अगुवाई में मंडल कमीशन को लागू करने के लिए भारत में एक आंदोलन चल रहा था तो इस बहुजन आंदोलन को कुचलने के लिए RSS ने देश में रथ यात्रा निकालकर पूरे के पूरे आंदोलन से बहुजनों को भड़काने का काम किया। इसलिए बहुजनों को यह समझना होगा कि भारत में असली लड़ाई फिलहाल के तौर पर मंडल बनाम कमंडल है और इस लड़ाई में बहुजन समाज को यह समझना होगा कि उसकी मुक्ति मंडल में निहित है, कमंडल तो उसके विनाश का कारण है।

इसी तरह से यदि साकेत में बुद्ध विहार के विवादित स्थल को देखा जाए तो वहां पर ब्राह्मणवादी शक्तियों ने जहां एक तरफ राम मंदिर के लिए विवादित जगह को देने का निर्णय कर लिया और राम के अस्तित्व को स्थापित कर दिया है, वहीं दूसरी तरफ मुसलमानों और इस्लाम का विरोध का ढोंग करने वाली ब्राह्मणवादी विचारधारा ने मुसलमानों को दूसरी जगह 5 एकड़ जमीन देकर के उनकी विचारधारा का भी खुलेआम समर्थन किया है लेकिन इन दोनों विचारधाराओं के बीच में बुद्ध की अस्तित्व को ही इन लोगों ने मिटा दिया है।

कहने का मतलब है कि साकेत बुद्ध विहार अयोध्या बाबरी मस्जिद विवाद में जहां एक तरफ राम को स्वीकृति मिली है वहीं दूसरी तरफ बाबरी मस्जिद को भी स्वीकृति मिली है। लेकिन बुद्ध को ना सिर्फ नकार दिया गया बल्कि उनके वजूद को ही कानून के सहारा लेकर हमेशा-हमेशा के लिए दफन कर दिया गया है।

इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि R.S.S. और ब्राह्मणवादियों का एकमात्र लक्ष्य देश के शुद्र और बहिष्कृत समाज को आजादी दिलाने वाली अंबेडकरी बुद्धिस्ट विचारधारा है, मुसलमानों व इस्लाम का विरोध तो एक मुखौटा मात्र है। इसलिए देश के मुस्लिम समाज, ईसाई समाज व अन्य लोगों से यह अपील है कि वह किसी का माध्यम ना बने और देश में ज्ञान विज्ञान तर्क और बौद्धिकता की संस्कृति का समर्थन करने वाले संविधान निहित मूल्यों को हकीकत की सरजमी पर उतारने में देश के शूद्र व बहिष्कृत समाज के साथ कंधे से कंधा मिलाकर के संविधान विरोधी शक्तियों को कुचलने के लिए कदमताल करते हुए एक नए भारत का सृजन करने में सहयोग करें।

सनद रहे,
RSS मुसलमानों का दुश्मन नहीं, बल्कि दलित-बहुजनों का दुश्मन है। क्योंकि मंदिर-मस्जिद के विवाद में मंदिर को भी अस्तित्व मिला और मस्जिद के भी अस्तित्व को स्वीकार किया गया लेकिन वहां से बुद्ध के वजूद को ही हमेशा-हमेशा के लिए सुप्रीम कोर्ट का सहारा लेकर नेस्तनाबूद कर दिया गया।

याद रहे,
RSS is Not Anti-Muslim only,
RSS is Anti-Dalit
RSS is Anti-Tribes
RSS is Anti-OBC
जय भीम, जय भारत



रजनीकान्त इन्द्रा

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