Saturday, November 2, 2019

संवैधानिक वर्गों के अनुसार न्यायोचित नीति में ही निहित है देशहित

गरीब, किसान, जवान आदि जैसे शब्द गुमराह करने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं। यदि वाकई देश के लिए सरकार के मन में कुछ करने की न्यायिक मंशा है तो सरकार को सामान्य वर्ग, पिछड़ा वर्ग और अनुसूचित वर्ग के नाम पर नीतियां बनाई जानी चाहिए, और लागू की जानी चाहिए।

क्योंकि यह गरीब के नाम पर कोई नीति लाई जाती है तो उसका फायदा देश की बहुजन आबादी वाले गरीब को मिलने के बजाय बहुजनों से ज्यादा सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक, और राजनैतिक रूप से बेहतर सवर्ण गरीबों को मिल जाता है, और देश का वास्तविक गरीब गरीब ही रह जाता है। नतीजा, देश में आर्थिक गैर-बराबरी लगातार बढ़ती जा रही है।

यदि हम बात किसान की करें तो सरकारी आंकड़ों के अनुसार ही देश के बहुजन समाज के पास कुल जमीन-जायजाद का प्रतिशत इकाई अंक में ही सिमट जाता है जबकि लगभग पूरी जमीन-जायजाद के मालिक देश के सवर्ण समाज के लोग ही बने बैठे हैं। ऐसे में किसानों के नाम पर यदि कोई पॉलिसी लाई जाती है तो उसका सीधा-सीधा फायदा सिर्फ और सिर्फ सवर्णों को ही मिलता है, और देश का अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़ा वर्ग वाला बहुजन गरीब बधुआ-खेतिहर मजदूर बनकर ही रह जाता है। ऐसे में परिणाम फिर वही रहेगा, मतलब की देश में आर्थिक गैर-बराबरी में घोर बढ़ोतरी।

यदि जवानों के नाम पर कोई पॉलिसी लाई जाती है तो सामान्य तौर पर इसका सीधा फायदा सवर्ण समाज के जवानों को ही मिलता है। उदाहरण के तौर पर सेना में काम कर चुके लोगों को केंद्र सरकार और राज्य सरकार की नौकरियों में आरक्षण प्राप्त है लेकिन सशस्त्र बल को प्राप्त आरक्षण में कितने ऐसे लोग हैं जो बहुजन समाज में आते हैं? ऐसे में फिर इसका लाभ कहीं ना कहीं सवर्ण समाज तक ही सीमित रह जाता है, और देश का 85% आबादी वाला बहुजन समाज हाशिए पर चला जाता है। नतीजा, देश में आर्थिक गैर-बराबरी में इजाफा।

लेकिन यदि सरकार देश की सामाजिक संरचना को संदर्भ में रखकर के देश की नीतियां लागू करें, देश की शासन सत्ता और संसाधन के हर क्षेत्र के हर पायदान पर लोगों (General, OBC व SC-ST) की भागीदारी को सुनिश्चित करे तो देश के हर तबके का समुचित राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक व शैक्षणिक उत्थान सम्भव हो जायेगा। 

रजनीकान्त इन्द्रा
02.11.2019

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