Sunday, May 30, 2021

कैडर खत्म होने व पैसे को लेकर मिथ्यारोप लगाने वाले चमचों से सावधान

बहुजन आन्दोलन व बहुजन समाज की एकमात्र राष्ट्रिय पार्टी बसपा के सामने एक साथ कई चुनौतियाँ मौजूद हैं। इसमें से एक चुनौती हैं बहुजन समाज के चंद लोग जिनका उद्देश्य अपनी पार्टी को नुक्सान पहुंचना नहीं हैं परन्तु अपने निहित स्वार्थों के चलते वे अज्ञानता में ही सहीं अफवाहें फ़ैलाने का कार्य करते हैं। ऐसे लोग आरक्षण की बदौलत मिली शिक्षा, नौकरी और अपनी उम्र को ही अपनी काबिलियत और समाज सेवा समझते हैं। बहुजन समाज के ऐसे लोग अक्सर पार्टी व बहन जी को सोशल मिडिया के जरिये सलाह देते रहते हैं। और हमेशा शिकायत करते रहते हैं कि कैडर खत्म कर दिया गया है, और पैसे वालों को अहमियत दी जा रही है।

इसमें कोई शक नहीं है कि ऐसा कहने वाले लोग चुटकी भर होते हैं। ऐसे लोग अपनी भावना या फिर कुण्ठावश अपनी ही राष्ट्रिय राजनैतिक पहचान को कोसने में अपनी सारी ऊर्जा और समय नष्ट करते रहते हैं। ऐसे लोग समाज में पढ़े-लिखे होते हैं, आरक्षण के चलते अच्छे पदों पर होते हैं और बहुजन सत्ता आने के बाद से अन्य समाजों में भी इनकी स्वीकृति, सम्मान बढ़ा हैं जिसके चलते बहुजन समाज के कुछ भोले-भाले लोग इनकी अफवाहों के शिकार हो जाते हैं।

यह भी सच हैं अफवाहों के पैर तो नहीं होते जो कि स्थाई तौर पर जमीन पर टिक सकें परन्तु पंख जरूर होते हैं जो लोगों तक बहुत शीघ्रता से पहुँचते हैं। बहुजन समाज की राष्ट्रीय राजनैतिक पहचान, बहुजन आन्दोलन और बहुजन समाज को क्षति पहुँचाने की श्रेणी में पहले वे लोग हैं जिन्होंने पार्टी अपने निजी स्वार्थ के लिए ज्वाइन किया था, अपनी आर्थिक मुक्ति के लिए ज्वाइन किया है। ऐसे लोग चुनावी मौसम शुरू होने से पहले कार्यालय के चक्कर कटना शुरू कर देते हैं, पदाधिकारियों से मिलना-जुलना शुरू कर कर देते हैं। इसके बाद टिकट मांगने या फिर दिलाने के दावेदारी करने लगते हैं।

यहाँ पर यदि इनकी मंशा पूरी नहीं हुई तो ये लोग मैन व मनी के समीकरण को समझे बगैर पार्टी व पार्टी पदाधिकारियों पर दोषारोपण शुरू कर देते हैं। ये लोग पार्टी, इसके नेतृत्व व पदाधिकारियों को बदनाम करने के इरादे से अपना विरोध पार्टी कार्यालय के अंदर कम, गांव की भोली-भाली जनता के बीच ज्यादा करते हैं,  क्योकि इससे इनकों बहुजन विरोधी फिरके थोड़ी से जगह मिलने के सम्भवना होती हैं। 

साथ ही, यदि चुनाव के बाद परिणाम सकारात्मक नहीं हुए तो इन लोगों के दावे और मजबूत हो जाते हैं। ये कहते हैं कि पार्टी के पदाधिकारी भ्रष्ट हैं, चोर हैं। पार्टी ने कैडर बंद कर दिया हैं, पार्टी नेतृत्व को ऐसा नहीं करना चाहिए था, वैसा नहीं करना चाहिए था, उसको जिलाध्यक्ष नहीं बनाना चाहिए था, उसको मुख्य सेक्टर प्रभारी बनाकर बहुत बड़ी गलती की हैं। इसलिए चुनाव पर चुनाव हार रहे हैं, इसलिए लोग भाग जा रहे हैं। यही लोग बाद में दूसरी पार्टी ज्वाइन करके बाबासाहेब और मान्यवर साहेब का मिशन चलने का दावा करते हैं।

इन लोगों को मिशन से कोई रिश्ता-नाता नहीं होता हैं। ये लोग हमेशा शिकायत के ही मोड रहते हैं। इनके पास सिर्फ शिकायत होती हैं, समाधान, पार्टी के पैसा और समय बिल्कुल नहीं होता हैं। यदि पार्टी नेतृत्व इनकी बाते मानने लगती तो पार्टी 1984 में बन ही नहीं पाती क्योकि इन्हीं जैसे लोग थे जिन्होंने राजनैतिक पार्टी बनाने का विरोध किया था।

ऐसे लोगों के संदर्भ में अमिता अम्बेडकर, (वरिष्ठ युवा सक्रिय कार्यकर्ता, बसपा, लखनऊ) कहती हैं कि ऐसे लोग बहुजन आंदोलन व बहुजन राजनीति को मोबाइल के सिम की तरह इस्तेमाल करते हैं। मतलब कि इनके निजी स्वार्थ पूर्ति का नेटवर्क जिस पार्टी में मिलेगा उस पार्टी को तत्काल ज्वाइन कर लेंगे। इनकी अपनी ना तो कोई विचारधारा होती है, ना ही इनका अपना कोई स्टैंड होता है। इनका एकमात्र लक्ष्य होता हैं - निजी स्वार्थ पूर्ति का नेटवर्क का नेटवर्क पाना। 

जब एकमात्र बहुजन राजनैतिक दल बसपा में इनके स्वार्थ की पूर्ति नहीं हो पाती है, पार्टी पदाधिकारियों को इनकी मंशा व इनके उद्देश्य का भान हो जाता हैं तो इनको उठाकर बाहर फेंक दिया जाता है तब यह लोग अपने आप को बुद्धिजीवी दिखाने तथा पार्टी, पार्टी नेतृत्व व इसके अन्य पदाधिकारियों को गलत साबित करने के लिए या फिर दूसरे दलों में अपने आर्थिक मुक्ति के नेटवर्क को पाने के लिए बसपा को कोसना शुरू कर देते हैं।

यही लोग अक्सर कहते हैं कि बसपा ने कैडर बंद कर दिया है, और पैसे वालों को वरीयता देती है। जो कि सरासर गलत है और बहुजन समाज को गुमराह करने का बहुजन समाज में जन्मे चमचों द्वारा रचा गया एक बहुत बड़ा षड्यंत्र है, जिसके झलावे में कभी कभी भोली भाली जनता फंस भी जाया करती है।

दूसरे वह लोग हैं जो नौकरी पेशा में व्यस्त हैं, और घर से बाहर कभी निकलते तक नहीं है, और घर में बैठकर सोशल मीडिया और टीवी देख कर अपनी राय बनाते हैं। और विरोधियों द्वारा उछाले गए मुद्दों के भ्रम में पड़कर के अपने नेतृत्व पर लगातार सवालिया निशान लगाते रहते हैं, और दुष्प्रचार करते रहते हैं। सरकारी पदों पर बैठकर ये समाज का कितना प्रतिनिधित्व करते हैं यह सरकारी कार्यालयों के चक्कर कटाने वाले अच्छी तरह से वाकिफ हैं। इनका भी समाज से कोई लेना-देना नहीं होता है। ऐसे लोग बहुजन समाज की एकमात्र राष्ट्रीय अस्मिता के खिलाफ टिप्पणी करके सवर्ण समाज में अपने आपको निष्पक्ष साबित करते रहते हैं। साथ ही समाज में चर्चा में बने रहने के लिए अम्बेडकर जयंती आदि पर चंदा देते रहते हैं।

जब सेवानिवृत्ति का समय नजदीक आता हैं तो ये लोग बुद्ध, फुले, अम्बेडकर, मान्यवर साहेब की जयन्ती आदि पर पूरी तरह से सक्रिय हो जाते हैं। बड़ी राशि में चंदा देकर बड़े-बड़े कार्यकर्मों में माला पहनना शुरू कर देते हैं ताकि रिटायरमेंट के बाद जीवन अकेलेपन ना गुजरे और ये सकून से जी सके क्योंकि ये जानते हैं कि सरकारी पदों पर रहने के दौरान इन्होने समाज के लिए कुछ किया ही नहीं हैं तो जनता इनकों पूछेगी क्यों? इसलिए आरक्षण से प्राप्त शिक्षा और नौकरी पूरी करने के बाद सीधे टिकट व मंत्रालय चाहने वाले ऐसे चंदा देने वालों से बहुजन समाज को सावधान रहना चाहिए।

इनका भी जब रिटारयमेंट प्लान फेल होने लगता हैं तो ये समाज में शोर मचाना शुरू कर देते हैं कि पार्टी मिशन से भटक गयी, पैसे वालों को वरीयता दी जा रहीं, कैडर खत्म कर दिया गया हैं, आदि। पार्टी व पार्टी के पदाधिकारियों आदि पर लगातार पैसे का आरोप लगा करके पार्टी व पार्टी नेतृत्व को बदनाम करने वाले ऐसे लोग सच्चे मायने में बहुजन आंदोलन, इसके लक्ष्य, इसकी कार्यप्रणाली,राजनीति एवं रणनीति के फर्क से पूरी तरह अनजान है।

इनकी अज्ञानता का कारण कैडर नहीं बल्कि इनकी खुद की मिशन के प्रति निष्क्रियता होती हैं। इनके पास जब आप कैडर में शामिल होने और उसके लिए फण्ड की मांग रखों तो ये लोग तपाक से जबाब देते हैं कि "यार तुम लोग कुछ करते हो नहीं, चंदा मांगने चले आते हो।" सवाल यह होता हैं कि जब वह आपको कैडर के लिए निमंत्रण देने आया हैं तो आप और क्या चाहते हो?

बाद में, यहीं लोग पैसा और कैडर खत्म होने का आरोप लगते हैं। ये लोग आरक्षण से प्राप्त अपनी पदवी व उम्र को अपनी मेरिट समझते हैं। इसलिए इन लोगों ने कभी साहब से सीखने की कोशिश ना की है, ना ही कभी कोई कैडर अटैंड किया है, ना ही कैडर अटैंड करना चाहते हैं। क्योंकि अगर इन लोगों ने कभी कैंडर अटैंड किया होता या फिर घर पर ही कभी साहब को पढ़ा होता तो यह लोग मान्यवर कांशीराम साहब के उस रणनीति को जरूर जान पाते जिसमें मान्यवर कांशी रामसाहब मैन और मनी के बीच में एक सामंजस्य स्थापित करते हुए पार्टी चलाने की बात करते है। और यदि ये लोग मिशन के प्रति जरा से भी जागरूक व ईमानदार होते तो ये लोग साहेब के उस भाषण से जरूर परिचित होते जिसमे मान्यवर साहब कहते हैं कि अगर मेरे पास मात्रा रूपये 14000/- और होते तो मैं बहन जी को हरिद्वार के उप चुनाव में ही जीता करके लोकसभा भेज देता।

ऐसे लोग अपने इस अज्ञानता, अनभिज्ञता व अहंकार के चलते खुद को बुद्धिजीवी समझते हैं। नौकरी में होने के कारण अपने आप को विद्वान मानते हैं। साथ ही ऐसे लोग अपनी उम्र को मेरिट करार करते हुए अपने आप को ज्यादा जानकार साबित करने का प्रयास करते हैं। जबकि हकीकत में यह लोग बहुजन आंदोलन, इसके लक्ष्य, कार्यशैली, राजनीति आदि से ही पूरी तरह से अनजान है। और ऐसे लोग अपने इस अज्ञानता और अनभिज्ञता के चलते ना सिर्फ बहुजन समाज को गुमराह करते हैं बल्कि यह लोग बहुजन समाज के लिए खुद एक चुनौती बन गए हैं।

इसलिए आज बहुजन समाज व पार्टी को ना सिर्फ बहुजन समाज के विरोधियों से लड़ना पड़ता है बल्कि बहुजन समाज में जन्मे ऐसे अहंकारी, अज्ञानी व अनभिज्ञ स्वघोषित विद्वानों, बुद्धिजीवियों से भी पार पाने के लिए समय व ऊर्जा खर्च करना पड़ता है। यही वजह है कि बहुजन समाज पार्टी एक साथ मनुवादियों के साथ, बहुजन समाज के साम्रदायिक दलों के साथ, कम्युनिस्टों के साथ और बहुजन समाज में जन्मे बहुजन समाज व आन्दोलन के भीतर ही भीतर दीमक की तरह खोखला करने वाले तमाम फिरकों के साथ एक ही समय पर कई जंग लड़ रही है जिसकी वजह बहुजन समाज पार्टी या इसका नेतृत्व नहीं बल्कि बहुजन समाज वे लोग हैं जो आरक्षण से प्राप्त, शिक्षा, नौकरी, पद और अपनी उम्र को ही मेरिट मानते हैं।

रजनीकान्त इन्द्रा

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