Saturday, May 29, 2021

संगठनों के समन्दर में अपना कौन?

भारत में समतामूलक समाज के निर्माण की लड़ाई लड़ने बहुजन समाज को आज मनुवादी समाज के साथ-साथ बहुजन समाज में जन्मे चमचों से भी पार पाना होगा।

आज चारों तरफ कई सारी अलग-अलग विचारधाराएं घूम रही है, और इनके अपने-अपने वर्जन हैं। हर संगठन व इसके पदाधिकारियों व प्रवर्तक के अपने-अपने अंबेडकर, अपने-अपने बुद्ध, अपने-अपने फूले, शाहू, रैदास, कबीर, परियार और अपने-अपने मान्यवर कांशी राम साहब है।

इन सब को हकीकत में बहुजन समाज व इसके आंदोलन से सीधे तौर पर कोई सरोकार नहीं है बल्कि यह लोग बहुजन आंदोलन व बहुजन समाज के हित को अपने स्वार्थ सिद्धि को छुपाने के लिए एक मुखोटे के तौर पर इस्तेमाल करते हैं। सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, शैक्षणिक, सांस्कृतिक मीडिया आदि क्षेत्रों में इतने सारे संगठन बने हैं कि संगठनों का एक विशाल समंदर तैयार हो चुका है।

बुद्ध, रैदास, कबीर, नानक, घासी, फुले, शाहू, अंबेडकर, मान्यवर कांशी राम साहब व अन्य सभी बहुजन महानायकों एवं महानायिकाओं के विचारों, संदेशों व गौरव गाथाओं के अलग-अलग तैयार वर्जन्स तथा संगठनों के बड़े समन्दर में बहुजन समाज के लिए सबसे बड़ी चुनौती यह कि वह बुद्ध, फूले, शाहू, अंबेडकर विचारधारा वाले राजनैतिक दल, नेता, संगठन, मीडिया, विचारक, लेखक, चितंक आदि की पहचान कैसे करें?

बहुजन समाज के एक्टिव कार्यकर्ता, वोटर व सपोर्टर तथा बहुजन आंदोलन के तमाम पढ़े-लिखे सिपाहियों में आज भी यह समझ नहीं विकसित हो पाई है कि वह पहचान सके कि उनका अपना वैचारिक साथी, नेता, दल, संगठन, लेखक, चिंतक व विचारक कौन है?

इस संदर्भ में सुविख्यात समाज विज्ञानी प्रोफेसर विवेक कुमार कहते हैं कि भारत में दो तरह के बहुजन समाज के हितैषी व अंबेडकरवादी हैं। (१) Ambedkarites by Convenience (२) Ambedkarites by Conviction

(1) पहले अंबेडकरवादी वह हैं जो अंबेडकाराइट्स बाई कन्वीनियंस (Ambedkarite by Convenience) है। ऐसे लोगों का उद्देश्य अंबेडकरवाद और बहुजन आंदोलन के लिए उग्रता प्रदर्शित कर चर्चा करते हुए एक पहचान पाना है।

ऐसे लोग ऊंची आवाज में गला फाड़-फाड़ कर बाबा साहब, बुद्ध, फूले, शाहू, पेरियार, डॉ अंबेडकर, मान्यवर साहब, बहनजी व अन्य सभी बहुजन नायकों नायिकाओं का जिक्र करते हुए समाज को जागरूक करने का दावा करते हैं।

ऐसे लोग तब तक अंबेडकरवाद व बहुजन समाज के पक्ष में तीखा भाषण करते हैं, लेख लिखते हैं जब तक कि इनकी बहुजन समाज में अपनी एक पहचान स्थापित नहीं हो जाती है।

ऐसे लोग भारत के बड़े शहरों में बैठकर अपनी सुविधा के अनुसार हर छोटी-छोटी बात पर धरना प्रदर्शन करते रहते हैं, जिसका प्राथमिक उद्देश्य हर बात के लिए छोटे-छोटे धरना, प्रदर्शन आदि कर बहुजन समाज के बीच एक पहचान पाना है।

और जब इन लोगों की अपनी एक पहचान स्थापित हो जाती है तब ऐसे लोग बहुजन समाज में बनी अपने इस छाप को बड़ी सरलता के साथ प्रत्यक्ष या फिर अप्रत्यक्ष रूप से अपने निजी फायदे के लिए मनुवादी दलों, संगठनों व ताकतों के हाथों अपनी कीमत के अनुसार बेच देते हैं।

ये बात यूट्यूब पर बने तमाम बहुजन चैनलों में भी देखने को मिलती है। ऐसे लोग यूट्यूब पर जब शुरू-शुरू में चैनल बनाते हैं तो वह बसपा व बहन जी के समर्थक के तौर पर खुद को प्रदर्शित करते है। और जब इनको व इनके चैनल को मनचाहा व्यूवरशिप व सब्सक्राइबर्स मिल जाते हैं, जिससे को इनको कुछ आमदनी के साथ-साथ पब्लिक में एक पहचान बन जाती है, तब ऐसे लोग अपने आप को निष्पक्ष दिखाने के लिए उस बसपा व भारत महानायिका परम आदरणीय बहन जी के विरुद्ध मिथ्यारोप लगाकर दुष्प्रचार करना शुरू करते हैं, जिनके नाम की बदौलत इनको व इनके यूट्यूब चैनल्स को पब्लिक के बीच एक पहचान मिली है।

इसके बाद ये Ambedkarite by Convenience वाले यूट्यूबर्स भी अपनी इस पहचान को बहुजन समाज, बहुजन आंदोलन, बसपा व बहन जी के शत्रुओं के हाथों में बड़ी आसानी से चंद रुपयों में बेच देते हैं।

आज के इस दौर में बहुजन आंदोलन में बहुजन समाज को जितना खतरा बहुजन विरोधी ताकतों से हैं उतना ही खतरा इन अंबेडकराइट्स बाई कन्वीनियंस से भी है। "अंबेडकराइट बाई कन्वीनियंस" बहुजन समाज में जन्मा एक ऐसा चमचा वर्ग है जो प्रत्यक्ष तौर पर मनुवादियों के हाथों में ना खेलते हुए पर्दे के पीछे से मनुवादियों के लिए खेलते हुए अपने स्वार्थ सिद्धि के लिए पूरी तन्मयता से काम करता है।

ऐसे लोग सोशल मीडिया और युट्यूब जैसे प्लेटफॉर्म्स पर बाबा साहब, फ़ूले व अन्य बहुजन नायक-नायिकाओं की किताबें, उनकी चिट्टियां आदि पढ़ते हुए पूरे समाज को संदेश देते हैं कि किस तरह से बहुजन समाज के लोगों को बहुजन महानायकओ द्वारा बताए गए रास्ते पर चलना चाहिए।

परंतु यह लोग अपनी स्थापित पहचान के तहत एक तरफ यह स्वीकार करते हैं कि यह बहुजन युवाओं का मार्गदर्शन कर रहे हैं। मतलब कि यह उनके मार्गदर्शक हैं। परंतु जब इनके निजी जिंदगी में देखा जाता है तो यह लोग पूरी तरह से मनुवादी पर्वो रीति-रिवाजों और परंपराओं को सेलिब्रेट करते हैं।

और जब इन पर कोई बहुजन सवालिया निशान लगाता है तो यह लोग निहायत ओछी भाषा का इस्तेमाल करते हुए उभरते सवालों को दफन करने का प्रयास करते हैं।

इन सबके बीच सबसे दुखद बात यह है कि बहुजन समाज के लोग और खासकर युवा वर्ग इन "अंबेडकराइट बाई कन्वीनियंस" को पहचान नहीं पाते हैं, और इनको लगातार बढ़ावा देते रहते हैं।

बहुजन समाज व युवाओं द्वारा इन "अंबेडकराइट बाई कन्वीनियंस" को पहचान ना पाने की मुख्य वजह है कि बहुजन समाज के लोगों, खासकर युवाओं, का बहुजन आंदोलन के विभिन्न पहलुओं के बारे में इनकी अनभिज्ञता।

ऐसे में बहुजन समाज के लोगों को बहुजन वैचारिकी को जानना व समझना होगा ताकि बहुजन समाज के लोग इन अंबेडकराइट से बाई कन्वीनियंस से पूरी सचेत रह सकें, और बहुजन समाज के इन नये चमचों को अनजाने में भी प्रचारित व प्रसारित करने से बच सकें।

(2) दूसरे अंबेडकरवादी वह हैं जो अंबेडकराइट्स बाई कनविक्शन (Ambedkarites by Conviction) है। यह लोग बहुजन आंदोलन की इतिहास, इसकी कार्यशैली, बहुजन महानायकों व महानायिकाओं के संघर्षों, संदेशों व गौरव गाथाओं को केवल सोशल मीडिया पर सकारात्मकता के साथ ही नहीं बल्कि गांव के निचले तबके तक छोटी-छोटी सभाओं व कैडर कैंपों के माध्यम से पहुंचाने का कार्य करते हैं।

इनकी भाषा में उग्रता का अभाव पाया जाता है। ऐसे लोग लोकतांत्रिक व संवैधानिक शब्दों का इस्तेमाल करते हैं और भारत के संवैधानिक संस्थाओं का आदर करते हुए संविधान के दायरे में रहकर लोकतांत्रिक नैतिकता के तहत अपनी बात रखते हैं।

इनकी भाषा में कभी वैमनस्यता नहीं दिखती है। ये लोग मानवीय मूल्यों के तहत अपनी बात जनता के बीच रखते हुए समता, बंधुत्व के मूल्यों को प्रचारित करते हैं। ये लोग बदले की नहीं समतावादी बदलाव की पैरवी करते हैं। ये किसी से बदला नहीं लेना चाहते हैं, ये लोग सबके साथ न्याय करना चाहते हैं। इनका उद्देश्य देशी-विदेशी की खाई खड़ी करना नहीं बल्कि संविधान निहित मूल्यों के तहत सबको समान नागरिक के तौर पर देखते हैं और संविधान के अनुसार आचरण करते हैं।

यह लोग संविधान व संविधान द्वारा स्थापित संस्थाओं में व संवैधानिक व लोकतांत्रिक प्रक्रिया में पूर्ण विश्वास रखते हुए अपने लक्ष्य तक पहुंचने की मंशा रखते हैं। साथ ही यह लोग हर बात पर विरोध, प्रदर्शन, धरना व अनशन करने में विश्वास नहीं रखते हैं। ये लोग बाबा साहब के बताए रास्ते पर चलते हुए संवैधानिक वह लोकतांत्रिक तरीके से अपने हक अधिकार व सत्ता प्राप्ति को देते हैं।

इन लोगों का उद्देश्य बहुजन समाज को उन्माद की तरफ धकेलना नहीं बल्कि बहुजन समाज को संवैधानिक व लोकतांत्रिक मूल्यों के संदर्भ में जागरूक करते हुए संवैधानिक व लोकतांत्रिक तरीके से सत्ता पर काबिज़ होकर अपने बहुजन आंदोलन व बहुजन महानायकों एवं महानायिकाओं के विचारों, संदेशों, संघर्षों व गौरव गाथाओं को ध्यान में रखकर भारत की सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक व शैक्षणिक व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन करते हुए बहुजन आंदोलन के अंतिम उद्देश्य "समतामूलक समाज" का सृजन करना होता है।

अंबेडकराइट बाइक कनविक्शन वाले लोग मान्यवर कांशी राम द्वारा बताए गए रास्ते व उनकी कार्यशैली पर पूरी तन्मयता के साथ शांतिपूर्वक बहुजन आंदोलन व बहुजन समाज के लिए अंबेडकरवादी विचारधारा पर सतत कार्य करते हुए अपने मुद्दे अपनी विचारधारा अपने नायक नायिकाएं अपनी पार्टी और अपने नेतृत्व पर पूर्ण विश्वास जताते हुए संवैधानिक व लोकतांत्रिक तरीके से सत्ता प्राप्त कर बेहतर भारत का सृजन करना चाहते हैं।

निष्कर्ष -

बहुजन समाज के लोगों को चाहिए कि वह बहुजन वैचारिकी पर अध्ययन करें जिससे कि बहुजन समाज के लोग Ambedkarite by Convenience और Ambedkarites by Conviction के फ़र्क को समझ सके और इनको पहचान सके। जिसके परिणामस्वरूप बहुजन लोग अपने समय व ऊर्जा का इस्तेमाल अंबेडकराइट बाई कन्वीनियंस के प्रचार-प्रसार में खर्च करने के बजाय बहुजन समाज के लोग अंबेडकराइट्स बाई कन्वीनियंस की पहचान कर इनको पूरी तरह से नजरअंदाज कर अंबेडकराइट्स बाई कनविक्शन वाली एकमात्र राष्ट्रीय पार्टी, इसके नेतृत्व, इसकी विचारधारा, इसके समर्थक, पदाधिकारी, कार्यकर्ता, प्रचारक, लेखक व कार्य आदि को जन-जन तक पहुंचाने और "सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय" की नीति को ध्यान में रखते हुए सत्ता प्राप्ति के लिए संघर्ष कर भारत की बहुजन समाज की एकमात्र बुद्ध फूले अंबेडकरी विचारधारा वाली पार्टी व इसके नेतृत्व को मजबूती प्रदान करने में खर्च करें।

रजनीकान्त इन्द्रा

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