Saturday, March 21, 2020

कोरोना सबक - ईश्वर भगाओं, मंदिर मिटाओं , मानवता बचाओं

भारत की हिंदूवादी व्यवस्था पाखण्ड और अन्धविश्वास का घर हैं। इंसान ने यहाँ अपना विवेक पत्थरों के सामने गिरवी रख दिया हैं। भक्त धर्म और ईश्वर के नाम पर गोबर को खा चुका हैं, और मूत्र भी पी चुका हैं। कोरोना से बचने के लिए गौमूत्र पिये हुए भक्त अस्पताल तक पहुँच गए। कोरोना ने तो भक्तों के भगवानों तक को मास्क लगाने के लिए मजबूर कर दिया। पिछले छः साल से देश में कभी गौरक्षा तो कभी राष्ट्रभक्ति के नाम पर आतंक मचने वालों को भी कोरोना ने उनके घरों में कैद कर दिया। 

भारत के मौजूदा प्रधानमंत्री इतना झूठ बोल चुका हैं कि देश उनकी किसी भी बात को गंभीरता से नहीं लेता हैं। लेकिन अमरीका, जर्मनी, जापान, चीन इटली जैसे देशों की मिडिया से आ रहीं के चलते देश, मान गया हैं कि कोरोना एक घातक महामारी के तौर पर अपने पैर पसर रहीं हैं। बेहरहाल, कोरोना पर नियंत्रण के लिए वैज्ञानिक काम कर रहें हैं। यहाँ हम इस कोरोना संकट से मिलनी वाली महत्वपूर्ण सीख पर चर्चा जरूरी समझते हैं।

फ़िलहाल, हम यहाँ इस बात की तरफ ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं कि देश व दुनिया को बचने वाला कभी भी कोई भगवान् नहीं आएगा। हमको अपने विवेक से कार्य करते हुए ही दुनिया में शान्ति- समृद्धि कायम करना हैं। कोरोना ने भारत के अन्धविश्वास व धर्म के धंधे पर ताला लगवा दिया हैं। कोरोना के इस हेल्थ आपातकाल से हम बहुत कुछ सीख भी सकते हैं कि ईश्वर एक भ्रम है, और उस पर भरोसा करने वाले मानसिक तौर पर कमजोर। आपको बचाने के लिए कोई ईश्वर अवतार नहीं लेगा। अरे भाई, अवतार तो तब लेगा, जब ईश्वर जैसी कोई शक्ति होगा। ईश्वर जैसी हर दैवीय शक्ति व मंदिर आदि का हमेशा के लिए बहिष्कार करना है। जब कोरोना संकट की घड़ी में सारे ईश्वर अपने-अपने मंदिरों में कैद हो गए हैं तो जनता उनकों प्रीमियम क्यूं देती हैं? बुद्ध से लेकर बाबा साहेब, मान्यवर साहेब और बहन जी तक ने ईश्वर को अस्तित्व को नकार दिया हैं। ईश्वर और धर्म के सन्दर्भ में महान समाज सुधारक पेरियार ई वी रामास्वामी नायकर कहते हैं कि ईश्वर को धूर्तों ने बनाया हैं, गुण्डों ने चलाया हैं और मूर्ख उसकी पूजा करते हैं। यदि लोग कोरोना की इस घड़ी में भारत सबक ले तो "साम्प्रदायिक" ताकतों व राजनैतिक दलों को हमेशा के लिए दफ़न किया जा सकता है। यदि देशवासी उचित सबक ले तो कोरोना का संकट, भारत का भविष्य बदल सकता है।

साथ ही साथ, देश की सम्पदा आर्थिक और बौद्धिक सम्पदा को निजी हाथों में बेचने वाले मौजूदा माननीय प्रधानमंत्री जी क्या इस बात पर रौशनी डालेगें कि देश के प्राइवेट अस्पतालों व पैथोलॉजी आदि पर किस-किस जाति का कब्जा है? क्या देश के बहुजनों से देशभक्ति का प्रमाण मांगने वाली इन जातियों ने देश हित में अपने-अपने अस्पतालों को देश हित में समर्पित किया? देश में निजीकरण के हिमायती ये बताने का कष्ट करेंगे कि कितने प्राइवेट अस्पताल व पैथोलॉजी मुफ्त इलाज के लिए तैयार है। भारत जैसे गैर-बराबरी वाले देश में मूलभूत सुविधाओं का राष्ट्रीयकरण अत्यंत आवश्यक है। देश के सारे मंदिरों को हटाकर वहां उच्च स्तरीय सरकारी स्कूल व अस्पताल बनाये जाय। इस सन्दर्भ में, देश के सारे धर्म-धंधा स्थलों (मंदिर आदि) को हटाकर समुचित स्वप्रतिनिधित्व और सक्रिय भागीदारी के सिद्धान्त पर सरकारी स्कूल व अस्पताल की मुहिम शुरू की जाय। कोरोना संबन्धित आपात की इस घडी का मन्त्र भारत का भविष्य बदल सकता हैं, सांप्रदायिक ताकतों को मिटा सकता हैं, हिंदुत्व के नाम पर बहूजाओं पर हमला करने वाले दलों को सदा-सदा के लिए नेश्तनाबूद कर सकता हैं, जिसकी बुनियाद पर न्याय-समता-स्वतंत्रता-बंधुत्व-वैज्ञानिता पर आधारित बुद्ध-फुले-अम्बेडकर के सपनों नवीन मानवीय भारत का सृजन हो सकता हैं। भारत जैसे देश के लिए कोरोना संकट के इस घडी की सबसे बड़ी सीख यही हैं कि -

ईश्वर भगाओं,
मंदिर मिटाओं ,
मानवता बचाओं।

फ़िलहाल, हमारी इस बात पर काफी लोग टिप्पणी कर रहे हैं कि आप हमेशा मंदिर और ईश्वर के पीछे पड़े रहते हैं। आप अल्लाह, गॉड, मस्जिद और चर्च के बारे में नहीं लिखते हैं। ऐसे लोगों से हमारा कहना है कि भारत देश का जितना नुकसान ईश्वर और मंदिर ने किया है उतना नुकसान किसी और ने नहीं किया है। भारत में इस्लाम और ईसाइयत के आगमन के साथ ही भारत के 85 फ़ीसदी आबादी वाले बहुजन समाज को पिछली कई सदियों में पहली बार शिक्षा हासिल करने का मौका मिला था।

भारत के राष्ट्रपिता ज्योतिबा फुले और आधुनिक भारत के पिता बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर यदि अपनी स्कूली शिक्षा पूरी कर भारत की सामाजिक परिस्थितियों को डटकर मुकाबला करते हुए भारत के पूरे के पूरे सामाजिक ढांचे को ही पलट कर न्याय-समता-स्वतंत्रता-बंधुत्व पर आधारित भारत के सृजन की कल्पना कर हकीकत की सरज़मी पर उतरने का काम कर पाए है तो ऐसा करने में ईसाइयित वाले मानवीय अंग्रेजों का बहुत बड़ा हाथ रहा है। इसीलिए राष्ट्रपिता ज्योतिर्बा फुले भारत में ईसाइयत के आगमन को बहुजनों के लिए वरदान मानते हैं। राष्ट्रपिता फुले जी खुद ईसायित को मानाने वालों से बहुत प्रभावित थे। कबीर और संत शिरोमणि संत रैदास जैसे समाज सुधारक यदि भारत की हिंदूवादी अमानवीय व्यवस्था पर कठोर टिप्पणी करते हुए एक नए समाज के सृजन की बात कर सके हैं तो वह मुसलमानों का दौर था जिसने उन्हें ऐसा करने में मदद किया।

ऐसा नहीं है संत रैदास और कबीर ने सिर्फ हिंदू कुरीतियों पर ही प्रहार किया है। उन्होंने इस्लाम के ही राज में इस्लाम की कुरीतियों पर भी कठोर प्रहार करते हुए समाज को नई दिशा देने का कार्य किया है। ऐसे में यदि निष्पक्ष तौर पर देखा जाए तो भारत के 85 फ़ीसदी आबादी वाले सकल बहुजन समाज का जितना शोषण मंदिर और ईश्वर ने किया है उतना किसी अन्य ने नहीं किया है। लेकिन इसका यह कतई मतलब नहीं है कि अन्य जगह बुराइयां नहीं हो सकती हैं। इसलिए जब हम मंदिर हटाकर सरकारी स्कूल व अस्पताल बनवाने और ईश्वर को भगाने की बात करते हैं तो इसका तात्पर्य है कि पहले मंदिर और ईश्वर का जब जनता बहिष्कार कर देगी तो अन्य लोग खुद-ब-खुद धार्मिक अंधविश्वास, पाखंड व भ्रम का बहिष्कार करने को मजबूर हो जाएंगे। यह एक प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया में मंदिर हटाकर सरकारी स्कूल व अस्पताल बनवाने और ईश्वर को भगाने का काम प्राथमिकता पर किए जाने की जरूरत है। जिसके परिणामस्वरूप अन्य फिरकें के लोग खुद-ब-खुद अपने धर्म की दुकानों को हटा लेंगे। देश की मूलभूत सुविधाओं के राष्ट्रीयकरण की देश को सख्त जरूरत है। जिसके हर क्षेत्र के हर पायदान पर देश के हर वर्ग के लोगों की समुचित स्वप्रतिनिधित्व व सक्रिय भागीदारी के सिद्धांत पर शिक्षा और स्वास्थ्य का राष्ट्रीकरण सबसे अहम् हैं। ऐसे में यदि हम कोरोना काल से सबक लेते हैं तो संविधान निहित मूल्यों पर आधारित एक नए भारत के  सृजन का रास्ता प्रशस्त हो जाएगा।
----------रजनीकान्त इन्द्रा----------


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