Monday, March 16, 2020

मान्यवर काशीराम साहेब - लोकतंत्र के महानायक एवं राष्ट्रिय नेता

मान्यवर काशीराम साहेब
लोकतंत्र के महानायक एवं राष्ट्रिय नेता
जैसा कि स्थापित है कि भारत के राजनैतिक जीवन में तो सबके लिए “एक व्यक्ति, एक वोट और एक वोट, एक मूल्य” का सिद्धांत लागू होता है, लेकिन सामाजिक-आर्थिक-सांस्कृतिक जीवन में आज भी गैर-बराबरी है। किसी भी देश की सामाजिक संरचना का उस देश की राजनीति पर बहुत गहरी छाप होती है, जिसके चलते उस देश के सामाजिक संरचना के ऊपरी पायदान पर बैठे लोग ही उस देश की राजनैतिक, आर्थिक और शैक्षणिक आदि क्षेत्रों में विषमतावादी (अलोकतांत्रिक) व्यवस्था काबिज हो जाते हैं, और सामाजिक पायदान का निचला हिस्सा जिसकी आबादी भारत में 85 फीसदी है, वह सत्ता-शासन व संसाधन से वंचित हो जाता है। नतीजा, चंद मुट्ठी भर ब्राह्मण-सवर्ण समाज के लोगों द्वारा देश की 85 फीसदी आबादी का सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक शोषण। इसलिए अब्राहम लिंकन द्वारा दी गई लोकतंत्र की स्वीकृत परिभाषा (लोगों द्वारा लोगों के लिए लोगों का शासन) भारत जैसे घोर विषमतावादी समाज वाले देश के साथ पूर्ण न्याय नहीं करती है।

विषमतावादी समाज में समता तभी आ सकती है जब उस देश के राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक क्षेत्र के हर पायदान पर उस देश के हर तबके की “समुचित स्वप्रतिनिधित्व व सक्रिय भागीदारी” हो। भारतीय संविधान में लोकतांत्रिक जड़ों को मजबूत करने वाले “समुचित स्वप्रतिनिधित्व व सक्रिय भागीदारी” के सिद्धांत को संविधान के संदर्भ में “आरक्षण” के नाम से जाना जाता है।

इसलिए लोकतंत्र की सही परिभाषा, जो हर मुल्क की हर परिस्थिति के लिए (सामाजिक, राजनैतिक व आर्थिक विषमताओं वाले मुल्क में भी) सही हो, देश की राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक क्षेत्र के हर पायदान पर उस देश के हर तबके की अपनी “समुचित स्वप्रतिनिधित्व और सक्रिय भागीदारी” है।

भारतीय समाज के सामाजिक संरचना में ऊंचे पायदान पर बैठे लोग आज भी देश में संवैधानिक व लोकतांत्रिक मूल्यों को नजरअंदाज करते हुए अपनी गैर-बराबरी वाली ब्राह्मणी, विषमतावादी, सामंती व गुलाम पसंद व्यवस्था को कायम रखना चाहते हैं।

ब्राह्मणी यथास्थिति को बनाए रखने के लिए तथाकथित उच्च जातियों के लोग संविधान प्रदत्त लोकतांत्रिक जड़ों को मजबूत करने वाले “समुचित स्वप्रतिनिधित्व व सक्रिय भागीदारी (आरक्षण)” के सिद्धांत को “मेरिट और कार्य दक्षता” आदि के नाम पर शुरू से ही बदनाम करते आ रहे हैं, जबकि हकीकत यह है कि देश के सभी सरकारी संस्थान आरक्षण वालों के ही कंधों पर टिका हुआ है।

मेरिट और कार्य दक्षता का दावा ठोकने वाले सवर्ण समाज ने ही प्राइवेट सेक्टर की बैंकों और कंपनियों आदि पर एक छात्र कब्जा जमा रखा है। इसके बावजूद यह सारी कंपनियां व बैंक लगातार डूबती जा रही है। इन कंपनियों व बैंकों का डूबना इनके “मेरिट और कार्य दक्षता” के खोखले दावे को दुनिया के सामने नंगा करने के लिए काफी है। 

फिलहाल, गैर-बराबरी वाले समाज में शोषक (ब्राह्मण, ठाकुर और बनिया) व शोषित (डीएस-4 मतलब दलित शोषित समाज समिति, जिसके अंतर्गत अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग और कनवर्टेड माइनॉरिटी आते हैं) जमात को स्पष्ट करते हुए मान्यवर कांशीराम साहब देश के बहुजन समाज से आह्वान करते हैं –
“ठाकुर ब्राह्मण बनिया छोड़,
        बाकी सब हैं डीएस-4।”

भारत के सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक व राजनीतिक तौर पर विषमतावादी समाज में लोकतंत्र की जड़ों को मजबूत करने के लिए लोकतंत्र की जो परिभाषा है, वह डॉक्टर बाबा साहब अंबेडकर के सिद्धांतों से उपज कर मान्यवर कांशी राम साहब की जुबान में इस तरह है –
“जिसकी जितनी संख्या भारी,
उसकी उतनी हिस्सेदारी।”

संविधान निहित लोकतांत्रिक मूल्यों को भारत में पूरी तरह से लागू करने के लिए मान्यवर कांशीराम साहब ने अलग-अलग तरह के नारे गढकर लोकतंत्र की भावना को देश के जन-जन तक पहुंचाने का कार्य किया। भारत में लोकतांत्रिक जड़ों को मजबूत करने वाले और  संवैधानिक मूल्यों को बयां करते हुए मान्यवर कांशीराम साहब कहते हैं –
“वोट से लेंगे पीएम सीएम,
आरक्षण से लेंगे एसपी डीएम।”

मान्यवर साहब देश के वंचित जगत को राजनीति की मुख्यधारा में स्थापित करने और वंचित जगत को उसके वोट की ताकत से जोड़ने के लिए ही साहब “एक नोट, एक वोट” का नारा देते हैं। ये सिर्फ एक नारा ही नहीं था बल्कि दुनिया की राजनीति में सबसे अनोखा प्रयोग था। भारत में जहाँ ब्राह्मणी दल जनता को पैसे देकर उनका वोट खरीदते हैं उसी भारत में बाबा साहेब की वैचारिकी के बलबूते ही लोग मान्यवर साहेबको पैसा भी देते हैं और अपना वोट भी। मान्यवर साहेब कहते हैं कि जिसने हमें पैसा दिया हैं वो हमें जरूर वोट करेगा। ये अनोखा प्रयोग और इस पर मान्यवर का विश्वास बाबा साहेब की वैचारिकी और समाज के बारे साहेब के सामाजिक अध्यन और चिंतन को बयां करता हैं।  

बहुजन समाज के वोटों की बदौलत सत्ता-शासन व संसाधन पर एक छत्र राज कर रहे ब्राह्मणों-सवर्णों को चुनौती देते हुए साहब कहते हैं  –
“वोट हमारा राज तुम्हारा,
नहीं चलेगा, नहीं चलेगा।”
मान्यवर का यह नारा बहुजन समाज को इस तरह से झकझोर देता हैं कि लोग अपने वोट की ताकत को ना सिर्फ पहचान जाते हैं बल्कि उसी वोट के बलबूते भारत की सर्वाधिक आबादी वाले उत्तर प्रदेश की सरजमीं पर एक नहीं, दो नहीं, तीन नहीं बल्कि चार-चार बार देश के बहिष्कृत समाज की हुकूमत स्थापित कर देते हैं। साथ ही मान्यवर साहेब की शिष्या बहन कुमारी मायावती जी भी उन्हीं के नक्श-ए-कदम पर चलते हुए ऐसी संविधान सम्मत ऐसी हुकूमत करती हैं कि जिसकी मिशाल सम्राट अशोक के बाद इतिहास में भी नहीं मिलता हैं। 

भारत में जब राजनीतिक लोकतंत्र को ध्वस्त करते हुए ब्राह्मण-सवर्ण जातियों के गुंडों ने वंचित जगत के राजनैतिक भागीदारी को अपने मैन-मनी-माफिया के सिद्धांत से दफन कर रहे थे, तब भारत में लोकतांत्रिक मूल्यों को स्थापित करने के लिए देश की 85 फ़ीसदी आबादी की आवाज को मान्यवर साहेब ने कुछ इस तरह बुलंद किया हैं।
“चढ़ गुंडों की छाती पर,
मार मुहर तू हाथी पर ।”
यहीं वजह रहीं हैं कि बहुजन समाज के लोग प्राण की फ़िक्र किये बगैर अपने वोट की ताकत पर भरोसा कर ब्राह्मणों-सवर्णों की विषमतावादी ब्राह्मणी मानसिकता और उनके घमंड को पैरों तले रौंदकर अपनी राजनैतिक पहचान को दुनिया के फलक पर स्थापित कर दिया। 

बाबा साहब से ही प्रेरित होकर ही मान्यवर साहेब राजनीति को भारत में सामाजिक परिवर्तन का एक अहम हथियार कहतें हैं। इसीलिए मान्यवर साहब राजनीति को गुरुकिल्ली कहते हैं। राजनीतिक लोकतंत्र के संदर्भ में मान्यवर साहब देश की शासन-सत्ता पर विषमानुपातिक (अलोकतांत्रिक) तौर पर काबिज ब्राह्मणों सवर्णों को खुली चुनौती देते हुए कहते हैं –
“मैं इस देश का शासन बाबा साहब के बच्चों के बगैर चलने नहीं दूंगा।”

बाबा साहेब के अधूरे पड़े संविधान निहित अनुच्छेद 340 के सपने को पूरा करें के लिए मान्यवर साहेब ने विश्वनाथ प्रताप और अन्य ब्राह्मण-सवर्ण को सीढ़ी चुनौती देते हुए चैलेंज करते हैं -
मण्डल कमीशन लागू करों,
वर्ना सिंहासन खली करों। 
ये मान्यवर साहेब ही थे जिन्होंने विश्वनाथ प्रताप सिंह को इस कदर मजबूर कर दिया कि वो ना सिर्फ बाबा साहेब को भारत रत्न से सम्मानित करते हैं बल्कि दशकों से धूल खा रहीं मण्डल आयोग की फाइलों को अमली जमा पहनने को विवश हो गये। लेकिन ये बहुत ही दुखद हैं कि अन्य पिछड़ा वर्ग आज भी मान्यवर साहेब और बहन जी के इस संघर्ष को नकार रहा हैं। अन्य पिछड़ा वर्ग आज भी बाबा साहेब से इतना घृणा करता हैं कि वो ‘जय राम’ बड़े गर्व से कहते हैं लेकिन “जय भीम” सुनने भी तैयार नहीं हैं। ऐसे जो अन्य पिछड़ा वर्ग बाबा साहेब से इतनी नफ़रत करता हैं वो मान्यवर साहेब और बहन जी कैसे सहन कर सकता हैं। फिर भी मण्डल कमीशन की रिपोर्ट लागू होने के बाद अन्य पिछड़े वर्ग में चेतना आयी हैं लेकिन अभी भी लाखों मील का सफर बाकी हैं।
ऐसे में हमारा पूर्ण विश्वास हैं कि जिस दिन अन्य पिछड़े वर्ग में चेतना आ जाएगी उस दिन वो बाबा साहेब, मान्यवर और बहन जी की वैचारिकी से खुद-ब-खुद ही जुड़ जायेगा। फिर भारत में संविधान निहित मूल्यों पर आधारित लोकतान्त्रिक व्यवस्था ना सिर्फ राजनैतिक बल्कि आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक क्षेत्र में स्थापित जाएगी जो कि रैदास-फुले-शाहू-बाबा साहेब-मान्यवर साहेब और बहन जी का सपना हैं।
इस तरह से भारत जैसे सामाजिक विषमता वाले देश में लोकतंत्र के सही मायने को जन-जन तक पहुंचाने के लिए पूरे देश में 4200 किमी से अधिक साइकिल यात्रा और 5000 किमी से अधिक पैदल यात्रा कर भारत के पचासी फीसदी आबादी वाले बहुजन समाज को जगाने वाले मान्यवर साहब ने भारत की सियासत में ऐसी हलचल पैदा कर दी कि ब्राह्मणों-सवर्णों की सदियों पुरानी सामाजिक-राजनैतिक-आर्थिक और सांस्कृतिक बादशाहत बालू की तरह उनकी पकड़ से फिसल गयी। साहेब के इसी व्यक्तित्व के चलते ही बहुजन समाज के लोग मान्यवर साहेब में बाबा साहेब की छवि देखते हैं। इसीलिए भारत के मूलनिवासी बहुजन समाज के लोग कहते हैं कि –
“बाबा साहब का मिशन अधूरा,
कांशीराम करेंगे पूरा।”
बाबा साहेब देश के दलित-वंचित-पिछड़े समाज को देश का हुक्मरान बनाना चाहते थे। और, साहेब ने बाबा साहेब के इस इच्छा को सिर्फ पूरा ही नहीं किया बल्कि साहेब के मार्गदर्शन में बाबा साहेब की वैचारिक बेटी बहन जी ने संविधान सम्मत ऐसी हुकूमत की जिसका लोहा ब्राह्मणी रोग से ग्रसित रोगी भी मनाता हैं।

मान्यवर साहेब के संघर्ष और वैचारिकी को समग्रता से अध्ययन करने पर पता चलता हैं कि भारत में लोकतंत्र की जड़ों को बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर के बाद मजबूती से स्थापित करने का श्रेय मान्यवर कांशीराम साहब को ही जाता है। साहब देश के अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग और कन्वर्टेड मायनॉर्टीज को जोड़कर बहुजन समाज का निर्माण करते हैं। मान्यवर साहब बहुजन समाज को उसके संवैधानिक व लोकतांत्रिक हकों के प्रति जागरूक करते हुए शासन-सत्ता व संसाधन में इनकी भागीदारी के समीकरण को तय करते हुए पिछड़े, दलित व आदिवासी समाज को हुक्मरान बनाकर भारत में लोकतंत्र की जड़ों को मजबूती से स्थापित करने वाले बाबा साहब के बाद लोकतंत्र के दूसरे सबसे बड़े मसीहा व राष्ट्रीय नेता हैं। इसीलिए मान्यवर कांशीराम साहब के बारे में कहा जाता है कि –
“काशी तेरी नेक कमाई,
तूने सोती कौन जगाई।”


-----रजनीकान्त इन्द्रा-----

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