Saturday, December 5, 2020

दलितों, अपना नायक पहचानना सीखों

कुछ दलितों की निग़ाह में वी पी सिंह भी दलितों के मसीहा हैं। इनकों लगता हैं वी पी सिंह ने ख़ुशी-ख़ुशी बाबा साहेब को भारतरत्न से नवाज़ा था। ऐसे बहुजनों को सोचना चाहिए कि क्या वी पी सिंह के ह्रदय में बाबा साहेब के विचार थे, या वे बाबा साहेब को बहुत मानते थे जो इन्होने बाबा साहेब को भारतरत्न से नवाज दिया? अनुसूचित जातियों का ये अंधापन ही इनकों लेकर डूब रहा हैं।

सोचो, यदि वी पी सिंह इतने ही अम्बेडकरवादी थे तो वी पी सिंह का नाम मान्यवर काशीराम साहेब के साथ लिया जाना चाहिए लेकिन ऐसा नहीं हैं, क्यों? सोचों यदि वी पी सिंह इतने ही अम्बेडकरवादी हैं तो बहन जी ने इनकी भी मूर्ती क्यों नहीं लगवाई जबकि बहुजन आंदोलन में सहयोग देने वाले हर नायक-महानायक, नायिका-महानायिका को बहन जी ने जन-जन के जहन में स्थापित कर दिया हैं?

हमारे विचार से ये दलितों की मूर्खता हैं कि ये हर "जय भीम" कहने वाले एवं बाबा साहेब को माला फूल चढाने वाले को अम्बेडकरवादी समझ लेते हैं। यदि अम्बेडकरवादी होने का यही पैमाना हैं तो श्री नरेंद्र मोदी जी सबसे बड़े अम्बेडकरवादी होने चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं हैं। फिलहाल, दलितों का ये अंधापन ही दलितों को उनके अपने मिशन से उनकों भटका रहा हैं।

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