Friday, July 5, 2019

भारतीय राजनीति में परिवारवाद


समाज अपने राजनीति की धारा तब तक सम्यक् तौर तय नहीं कर पाता है जब तक कि उसकी सम्यक् दृष्टि विकसित नहीं हो जाती है! ऐसे में उसकों नुमाइंदे कम, रहनुमा ज्यादा मिलते हैं! लेकिन जब समाज अपने हक, देश व कायदे की अस्मत पहचान जाता है तब वो समाज खुद अपने राजनैतिक धारा को तय करता है! परिणाम स्वरूप, तब उसको रहनुमा नहीं, नुमाइंदे मिलने लगते हैं!
बाबा साहेब डॉ अम्बेडकर रचित संविधान को अंगीकृत करने बाद भारत राजतंत्र से लोकतंत्र की तरफ चल पड़ा है! इसी संक्रमण की उतार-चढाव वाली स्थिति को संदर्भ में रखते हुए 26 नवम्बर 1949 को संविधान सभा में दिये अपने स्पीच में बाबा साहेब कहते हैं कि राजनीति में नायक पूजा देश को तानाशाही की तरफ ले जाता है!
इसके तमाम उदाहरण हैं जैसे कि कभी कांग्रेस की तानाशाही थी तो आज मौजूदा दौर में एनडीए-2 & 3 की सरकार है जिसकी सरकार ही नायक पूजा / भक्ति का परिणाम हैं! नतीजा, संविधान निहित समाजवाद के उद्देश्य को ताख पर रखकर देश के संसाधनों का निजीकरण करके देश में क्रोनी-कैपिटलिज्म को स्थापित किया जा चुका है, सरकार धर्म विशेष को बढ़ावा देकर संविधान की धर्मनिरपेक्षता को तार-तार कर दिया है, शिक्षा का व्यापारीकरण किया जा चुका है, सांस्कृतिक तौर पर अपराधी जातियों द्वारा दलित-बहुजन पर होने वाले अत्याचार में घातांकीय इजाफा हुआ है, आदिवासियों को उनके मूल स्थान से वंचित कर दर-दर की ठोकरे खाने को मजबूर किया जा रहा है, दलित-आदिवासी-पिछडे-अल्पसंख्यक बहुजन समाज की महिलाओं के साथ छेड़छाड़, रेप, हत्या इतनी आम हो चुकी है कि ये समस्या रही ही नहीं है, इत्यादि!
बाबा साहेब देश में राजनैतिक लोकतंत्र को लेकर कुछ हद तक निश्चिंत थे लेकिन सामाजिक-सांस्कृतिक-आर्थिक लोकतंत्र को लेकर बहुत ज्यादा चिंचित थे! हालाँकि कानूनी तौर पर भारत लोकतंत्र जरूर है लेकिन जन-जहन में लोकतांत्रिक भावना अभी कोसों दूर है, इसको स्थापित होने में अभी समय लगेगा!
इसी संदर्भ में हम पाते हैं कि कांग्रेस जैसी वैचारिक-सामाजिक-सांस्कृतिक-आर्थिक-राजनैतिक तौर पर स्थापित पार्टी भी बगैर गांधी परिवार के नही चल पायी है! कितने बार टूटने से बचाने के लिए गांधी परिवार को सामने लाया गया / आना पड़ा! सब जानते हैं कि मैडम सोनिया जी ना तो राजीव गांधी को राजनीति में आने देना चाहती थी, और ना ही खुद आना चाहती थी लेकिन पार्टी बिखराव के अजीब मोड पर खड़ी थी, देश की विरासत और परिवार के पुरखों की कर्मसंस्था को बचाने के लिए मैडम सोनिया जी को राजनीति में आना ही पड़ा!
किसी भी संस्था या दल को बचाने व चलाने के लिए इस तरह से किसी घराने विशेष की जरूरत का सतत बने रहना ही परिवारवाद है! इस पूरी पद्धति को हम रहनुमाई पद्धति कहते हैं! कोई भी राजतंत्र सीधे तौर पर लोकतंत्र में नहीं बदल सकता है है! इसको राजतंत्र व लोकतंत्र के बीच में आने वाली संक्रमण से गुजरना ही पड़ता है! रहनुमाई पद्धति राजतंत्र व लोकतंत्र के बीच में आने वाली संक्रमण व्यवस्था है! परिवारवाद, रहनुमाई पद्धति का ही एक सबसेट है!
ऐसे में यहॉ ये महत्वपूर्ण नहीं है कि पार्टियों में परिवारवाद है, महत्वपूर्ण ये है कि परिवारवाद को जनता स्वीकार ही क्यों करती है, क्यूँ कोई राजनैतिक संस्था किसी परिवार विशेष की मोहताज हो जाती है? क्यूँ जनता नुमाइंदगी के बजाय रहनुमाई की आदी है?
रहनुमाई पद्धति से भारत का कोई भी राजनैतिक दल अछूता नहीं है! कांग्रेस का परिवारवाद जग-जाहिर है! बीजेपी में परिवारवाद कांग्रेस से भी ज्यादा है, और तो और बीजेपी तो पूरी की पूरी एक जाति का ही परिवार है, लेकिन ये साइलेंट रहता है!
आगे, भारत जानता है कि सपा में किस तरह से पहले मुलायम यादव अपने भाइयों को राजनीति में लाते है, भतीजों को स्थापित करते हैं, बहुओं को राजनीति में लाते है फिर अपने बेटे को राजनीति में स्थापित करने, जनता में अखिलेश जी की स्वीकार्य कराने के लिए दिखावें के लिए भाई के साथ खड़े होकर अपने बेटे से लड़ते है, अंतत: अखिलेश जी को उनका समाज स्वीकार कर लेता है!
राजद में लालू यादव जी भी पहले अपनी पत्नी, फिर बेटी और बेटे को राजनीति में स्थापित करते हैं! राम विलास पासवान जी भी अपने बेटे चिराग पासवान को राजनीति में खड़ा कर चुके हैं! कश्मीर अब्दुल्ला परिवार में भी तीसरी पीढी को उमर अब्दुल्ला बखूबी तैयार कर रहे हैं! महाराष्ट्र में शिवसेना पहले से ही स्थापित प्राइवेट लिमिटेड राजनैतिक कम्पनी है!
यही हाल डीएमके व एआईडीएमके का भी है, बीजेडी के तो पार्टी के ही नाम मे वंश छिपा है, चन्द्रबाबू नायडू व बाईएसआऱ कांग्रेस भी इसी तरह से सतत अग्रसर है, नॉर्थ-ईस्ट भी इससे अछूता नहीं है! फिर राजनीति ही क्यूँ, पूरी की पूरी उच्च न्यायपालिका चंद परिवारों की बपौती बनकर रह गयी, पेशेवर धंधा बना दी गई है लेकिन न्यायपालिका का परिवारवाद चर्चा-विमर्श के दायरे से बाहर है!
एक बात और यहॉ गौर करने वाली है कि लोग हमेशा राजनीति के ही परिवारवाद की बात क्यूँ करते हैं? ये परिवारवाद तो न्यायपालिका समेत देश के लगभग हर महत्वपूर्ण संस्थानों में स्थापित है तो फिर राजनीति का परिवारवाद ही क्यूँ चर्चा का विषय रहता है?
हमारा स्पष्ट मानना है कि जिन संस्थानों में दलित-बहुजन समाज अपनी दस्तक दे चुका है, अपनी आवाज़ को बुलंद कर रहा है, सांस्कृतिक तौर पर अपराधी समाज के लोगों की आँखों में आँखें डाल कर सवाल कर रहा है, उन्हीं संस्थानों में ही परिवारवाद को उजागर किया जा रहा है! जिन संस्थानों में दलित-बहुजन समाज की पहुंच स्थापित नहीं हो पायी है, जिन संस्थानों पर सांस्कृतिक तौर पर अपराधी जातियों का एक छत्र कब्जा कायम है, उन संस्थानों में फैले परिवाद को दबाकर रखा गया है जिसका सबसे प्रबल-प्रखर व ज्वलंत उदाहरण भारत की उच्च न्यायपालिका है!
फिलहाल जहॉ तक रही बात परिवारवाद-रहनुमाई पद्धति के कारण की तो हमारे विचार से, इसके पीछे की मुख्य वजह जानने के लिए देश के इतिहास की तरफ जाना होगा! इसकी वजह हमें इतिहास में ही छिपी दिखाई पडती है जैसे कि भारत में शासनिक-प्रशासनिक व्यवस्था ही वंशों की रही है - मौर्य वंश, शुंग वंश, कुषाण, हूण, गुलाम वंश, मुगल वंश आदि! ऐसे में सदियों से लोगों के जहन पर राज कर रही ये पद्धति इतनी जल्दी बदल जायेगी, ये सोचना जल्दबाजी होगा! परिवारवाद देश की सामाजिक-सांस्कृतिक व्यवस्था व इतिहास का हिस्सा है! इससे छुटकारा पाना इतना सहज नहीं है जितना कि बहुजन समाज के तथाकथित चिंतक सोचते हैं!
मान्यवर काशीराम साहेब कहते हैं कि जैसी जनता होती है, उसको वैसा ही नेतृत्व मिलता है! जब जनता खुद रहनुमाई पद्धति (माई-बाप पद्धति) से अभी तक बाहर नही आ पायी है तो नुमाइंदगी पद्धति के आने में समय लगेगा! लेकिन भारत के शासनिक-प्रशासनिक व्यवस्था में ये जो संक्रमण चल रहा है, ये आवश्यक है, यही भविष्य के ताने-बाने को तय करते हुए भारत को रहनुमाई से नुमाइंदगी की पद्धति की तरफ ले जायेगी!
अब सवाल यह है कि अभी भारत के लोकतंत्र में रहनुमाई कब तक चलती रहेगी? हमारा मानना है कि जब भारत का सहसत्रब्दियों का इतिहास रहनुमाई पर आधारित रहा है तो इतनी जल्दी और इतनी आसानी से जन-जहन रहनुमाई पद्धति से नुमाइंदगी पद्धति पर नहीं जा पायेगी, ऐसा परिवर्तन समय लेता है लेकिन हॉ, संघर्ष जारी रहें, सकारात्मक परिणाम मिलेगा!
-----------------------रजनीकान्त इन्द्रा-----------------------



No comments:

Post a Comment